उद पु के प्र ुख स्थं कलाका एवंस...

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SHISRRJ19237 | Received : 01 April 2019 | Accepted : 25 April 2019 | March-April 2019 [ 2 (2) : 130-142] Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal © 2019 SHISRRJ | Volume 2 | Issue 2 | ISSN : 2581- 6306 130 उदयप र के म ख थंभ कलाकार एवं समकालीन कला परय डॉ. संदीप क मार मेघवाल (वतं कलाकार) पता- म . पो.- गातोड़(जयसमंद), तहसील- सराड़ा, जला- उदयप , राजथान-313905 राजथान का दिणी भ -भाग भौगोलिक एवं सांक तिक टि से ववलिटििा लिए ह ए ववयमान है। इस िे म उदयप , गरप , बांसवाड़ा, चिौड़ग, िापग, लसरोही जि थि है। इन जि म थि ववव की ािीन अराविी पवविंखिा म जनजातिय की बह ििहै। भौगोलिक एवं सांक तिक पररवेि के अन ि इन जनजातिय के पारंपरक रीतिरवाज, ववास, मायिाएं , लिकार, वाम आदपहाड़ी वन से आछाददि संक ति धान िे सांक तिक ववलभनिा रहन-सहन, आभ षण, लभव चिण, काटठ किा, साज-सजा, जिवाय के अन सार उसव, रीति रवाज, वन सपदा से ज ड़ी धालमवक प टठभ लम का िे किामक टिकोण से महवप णव थान रखिा है। यह िे आददकाि से किामक गतिववचधय का क रहा है जैसे आहड़ सयिा, चगि , बिाथि, िाविी इयादद। द सरी और मेवाड़ का इतिहास राटरीय वालभमान, पराम एवं सांक तिक िे िना िे मे महवप णव योगदान है। यहा भागवि, गीि गोववंद जैसे अनेक सचि ंथ महवप णव सांक तिक तनचध है। इसी म मे राजसी वैभव मे पिववि देि की परंपरागि चिकिा से िेकर समकािीन चिकिा दौर के ववकास म मे कई किाकार जनरि है। इस म मे म ख किाकार का दिण राजथान िे म योगदान पर यानाकवषवि करगे।

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  • SHISRRJ19237 | Received : 01 April 2019 | Accepted : 25 April 2019 | March-April 2019 [ 2 (2) : 130-142]

    Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal

    © 2019 SHISRRJ | Volume 2 | Issue 2 | ISSN : 2581- 6306

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    उदयपुर के प्रमुख स्थंभ कलाकार एवं समकालीन कला पररदृश्य

    डॉ. संदीप कुमार मेघवाल (स्वतंत्र कलाकार)

    पता- मु. पो.- गातोड़(जयसमंद), तहसील- सराड़ा, जजला- उदयपुर, राजस्थान-313905

    राजस्थान का दक्षिणी भू-भाग भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से ववलिटििा लिए हुए ववध्यमान

    है। इस िेत्र में उदयपुर, डूगंरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, प्रिापगढ़, लसरोही ष्जिें ष्स्थि है। इन ष्जिों में

    ष्स्थि ववश्व की प्रािीन अराविी पवविश्रखंिा में जनजातियों की बहुििा है। भौगोलिक एवं सांस्कृतिक

    पररवेि के अनुकूि इन जनजातियों के पारंपररक रीतिररवाज, ववश्वास, मान्यिाए,ं लिकार, ववश्राम आदद

    पहाड़ी वनों से आच्छाददि संस्कृति प्रधान िेत्र सांस्कृतिक ववलभन्निा रहन-सहन, आभूषण, लभवत्त चित्रण,

    काटठ किा, साज-सज्जा, जिवायु के अनुसार उत्सव, रीति ररवाज, वन सम्पदा से जुड़ी धालमवक पटृठभूलम

    का िेत्र किात्मक दृष्टिकोण से महत्वपूणव स्थान रखिा है। यह िेत्र आददकाि से किात्मक गतिववचधयों

    का कें द्र रहा है जैसे आहड़ सभ्यिा, चगिुंड, बिाथि, िदं्राविी इत्यादद। दसूरी और मेवाड़ का इतिहास

    राटरीय स्वालभमान, पराक्रम एवं सांस्कृतिक ििेना िेत्र मे महत्वपूणव योगदान है। यहााँ भागवि, गीि

    गोववदं जैसे अनेक सचित्र ग्रंथ महत्वपूणव सांस्कृतिक तनचध है। इसी क्रम मे राजसी वैभव मे पल्िववि

    प्रदेि की परंपरागि चित्रकिा से िेकर समकािीन चित्रकिा दौर के ववकास क्रम मे कई किाकार

    सजृनरि है। इस क्रम म ेप्रमुख किाकारों का दक्षिण राजस्थान िेत्र में योगदान पर ध्यानाकवषवि करेंगे।

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    गोवर्धनलाल जोशी उदयपुर (1914 ई.) बंगाि के किाकारों व किा लििकों के सातनध्य में किा लििण प्राप्ि कर अपने सांस्कृतिक पररवेि से उत्प्रेररि होने वािे किाकारों में राजस्थान के वयोवदृ्ध किाकार गोवधवन िाि जोिी, ‘बाबा’ का नाम प्रमुखिा से लिया जािा हैं। नाथद्वारा के समीपस्थ द्वाराकाधीि की नगरी- कांकरोिी में 15 मािव, 1914 को एक सामान्य पररवार में जन्मे बाबा ने द्वा रकाधीि मंददर में चित्रत्रि लभवत्त चित्र व वपछवाई चित्रों को देखकर रूजान पैदा हुआ। चित्रकार गोवधवन जोिी किा िेत्र में बाबा के नाम से प्रलसद्ध हुए क्योंकक अददवासी भीिों के संग रहकर उनके दैतनक

    जीवन के रेखांकन एवं ग्राम्यबािा जैसे चित्रण कायों से वविषे ख्याति अष्जवि कर परम्परा व आधतुनकिा के मध्य एक नवीन कडी को जोडने की वविषे भूलमका तनभाई 1984 ई. मे राजस्थान िलिि किा अकादेमी से आप प्रदेि के सवोच्ि किा सम्मान किाववद से सम्मातनि हुए।(चित्र संख्या-1) परमानन्द चोयल कोटा (1924-2012 ई.) कोिा ररयासि मे जन्मे श्री िोयि की किा लििा महाराजा स्कूि ऑफ आिवस जयपुर में तनयलमि अध्ययन ित्कािीन प्रलसद्ध चित्रकार एवं आिायव िैिेन्द्रनाथ ड़ ेिथा रामगोपाि ववजयवगीय के तनदेिन मे ककया। 1948 ई. स े आप कोिा महाववद्यािय म ेचित्रकिा प्राध्यापक तनयुक्ि हुए ित्पश्िाि सर जे.जे.स्कूि ऑफ आिवस बम्बई से किा डडप्िोमा व 1955 ई. मे एम.ए. दहन्दी में की उपाचध प्राप्ि करने मे सफि रहे। 1957 ई. स ेआपका कायव िेत्र उदयपुर बन गया व आप महाराणा भूपाि कोिेज उदयपुर के चित्रकिा ववभागाध्यि पद पर आ गये। आप प्रदेि से अनेक बार किा पुरस्कारों एवं किा के उच्ि सम्मान फेिोलिप पश्िाि 1984 ई. में आपको केन्द्रीय िलिि किा अकादमी नई ददल्िी ने राटरीय पुरस्कार का सम्मान देकर प्रदेि को गौरवाष्न्वि ककया है। आपकी किाकृतियां देि ववदेि के अनेक किासंग्रहों एवं तनजी संग्रह में सुरक्षिि हैं।1(चित्र संख्या-2) बी.जी शमाध उदययुर (1924 - 2003 ई.) नाथद्वारा में जन्मे चित्रकार भॅंवर िाि चगरधारी िाि िमाव ने बीसवीं सदी के िौथे दिक से ही प्रस्िुि पान ववकेे्रिा जैसे िघुचित्र एवं वपछवाई चित्रण मे राटरीय स्िर पर वविषे ख्याति प्राप्ि की है। 1947 ई. में सर जे.जे.स्कूि ऑफ आिवस मुम्बई के आिायव को अपनी एक किाकृति रेखांककि कर इिना प्रभाववि कर ददया कक कृति को देख करके ही किा ववद्यािय में प्रवेि दे ददया। किा जगि मे िघुचित्रण परंपरा को आमजन के बीि गहरी छाप छोड़ी। इनके द्वारा दहन्द ूदेवी-देविाओं के चित्रण

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    चित्र संख्या-2

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    कर केिेण्डर कािव के माध्यम से घर-घर मे किा को पुजा के स्थान पर जगह बनाई। मुम्बई के किा व्यवसाइयों में थोडें ही समय में स्थान बना कर िमाव वपक्िर पष्लिकेिन्स नाम से चित्र प्रकािको मे प्रलसद्ध हो गये ित्पश्िाि उदयपुर में भी आपने बी.जी. िमाव किा दीघाव के तनमावण से देि ववदेिों में ख्यति अष्जवि की है। ()(चित्र संख्या-3) बशीर अहमद परवेज, नाथद्वारा (1936 ई.) श्री परवेज ने उदयपर ववश्वववद्यािय से चित्रकिा के प्रथम समूह 9671 ई.में एम. ए. की उपाचध पाकर अपने चित्र देि ववदेि के ववएना आटरीया, त्रत्रवेन्द्रम िथा राज.ि.क.अकादमी.जयपुर मे प्रदलिवि करिे राजस्थान की िोक किा में अल्पना व मांडणो पर िाेधपूणव कायव के साथ ही राजस्थान िैक्षिक अनुसंधान एवं प्रलििण संस्थान उदयपुर के सहायक तनदिक पद से सेवातनविृ होकर अपने रिनात्मक कायों मे ित्पर हैं। (चित्र संख्या-4) ओमदत्त उपाध्याय, अजमरे (1937 ई.) किा के नवसजृन में श्री उपाध्याय ने किा की प्रारंष्म्भक लििा पाे्रे. रवव साखिकर के तनदिन में ग्रहण कर सर जे.जे. स्कूि ऑफ आिवस मुम्बई किा ववद्यािय की छात्र प्रतियोचगिा 1958 ई. में स्वणव पदक पश्िाि 1960 में जी डी कोमलिवयि आिव िथा 1961 में जी.डी.आिव डडप्िोमा में प्रथम शे्रणी से सफििा पश्िाि युगोस्िेववया की द्ववववषवय छात्रवतृि1964-66 से स्नािकोत्तर किा लििा पाे्रप्ि की। 1973 में आपके चित्रों को राटरीय किा प्रदिवनी में प्रतितनचधत्व लमिा। आप प्रदेष की प्रयोगिीि किा संस्था िखमण -28 की स्थापना में प्रारष्म्भक प्रणेिा रहे। उदयपुर ववश्वववद्यािय चित्रकिा ववभागाध्यि पद स े सेवातनविृ होकर यू.एस.ए. में अपन ेरिनात्मक कायों करिे हुए हाि म ेस्वगववास हो गया।2(चित्र संख्या-5) सुरेश शमाध, कोटा 1937ई. प्रदेि की प्रारष्म्भक किा लििा पश्िाि श्री िमाव ने ववश्व भारिी िाष्न्ि तनकेिन से िार वषीय तनयलमि किा डडप्िोमा 1962 ई. में सफििा प्राप्ि ककया। रा.ि.क.अ.जयपुर से किाववद ियन 1985, िाईफ िाइम अचिवमेंि अवाडव 2015में, कें द्रीय िलििकिा अकादमी नई ददल्िी से रत्न सदस्यिा 2012 म ेपुरस्कृि ककये गये। ित्पश्िाि प्रदेि के महाववद्याियों की उच्ि किा लििा सेवा में तनयुक्ि हुए। देि-ववदि में चित्र प्रददविवि करिे हुए आपने ब्रुकिेन िथा न्ययाकव के किा संस्थानों में छापाचित्रों मे वविषे अध्ययन ककया। चित्रण के नवप्रयोगों सें

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    लमतनमि चित्रण एवं एके्रलिक रंग संयोजन की सपाि अकंन पद्धति का ववस्िार ककया। प्रदेि की प्रयोगवादी किा संस्था िखमण-28 के संस्थापक अध्यि रहकर युवा चित्रकारों को आधतुनकिा की ओर अग्रसर करने में सकक्रय भूलमका तनभािे रहे हैं। सुखाडडया ववश्वववद्यािय चित्रकिा ववभाग के अध्यि पद पर सेवाऐं देिे हुए सेवा तनविृ होकर अपनी किाकृतियों से राप्रीय एवं अन्िरराटरीय प्रदिवतनयों में प्रदेि को गौरवाष्न्वि कर रहे हैं।5(चित्र संख्या-6) रार्ाकृप्ण वशशष्ठ, उदयपुर (1938 ई.) किा लििा िोध एवं चित्रण कायों केा सलमवपवि उदयपुर जन्मे िेखक वलिटठ ने राजस्थान ववश्वववद्यािय के एम.ए. चित्रकिा प्रथम समूह 1966 ई. में प्रथम स्थान प्राप्ि कर राजस्थान स्कूि ऑफ आिवस जयपुर से पंिवषीय किा डडप्िोमा 1969 ई. में पणूव कर चित्रकिा में पी.एि.डी 1974 ई. िथा डी.लिि 1993 ई. उपाचधयों की प्रदेि में पहि की। राजस्थान ववश्वववद्यािय िलिि किा संकाय जयपुर के अध्यि पद से सेवातनवतृि पश्िाि किा सजवन व िेखन कायों मे ित्पर हैं।(चित्र संख्या-7)

    लक्ष्मीलाल वमाध, उदयपुर (1944ई.) चित्रण एवं छापा चित्रण में दि श्रीवमाव ने 1967 में उदयपुर ववश्वववद्यािय से एम. ए. प्रथम शे्रणी में प्रथम उपाचध की सफििा प्राप्ि की। 50-60 के दिक मे उदयपुर मे खखरनी की िकड़ी के खखिौनो का कारोबार प्रलिद्ध था इसमे कायव को सीखा। िखमण-28 के सकक्रय संस्थापक सदस्य होकर उसके तनिी तनधावरण एवं प्रतिटठान के रख रखाव में सदैव योगदान दे रहे है। मोहनिाि सुखाडडया ववश्वववद्यािय उदयपुर के चित्रकिा ववभाग ववभागाध्यि पद से सेवातनविृ होकर अपने रिनात्मक कायों में सजृनिीि हैं।2(चित्र संख्या-8) शैल चोयल कोटा (1945 ई.) चित्रकार वप्रिंमेकर और लििक िैि िोयि न ेउदयपुर ववश्वववद्यािय से 1969 मे एम ए चित्रकिा में प्रथम स्थान पश्िाि यहीं प्रध्यापक तनयकु्ि हो गये ित्पश्िाि मेरठ ववश्वववद्यािय से नाथद्वारा की चित्रकिा पर पी एि डी उपाचध पाई। राजस्थान स्कूि ऑफ आिवस से डडप्िोमा व स्िेड कॉिेज ऑफ आिवस िंदन में वप्रिंमेककंग का वविषे अध्ययन ककया। परंपरा का पूणवरूपेण पररत्याग ककए त्रबना आधतुनक किा को ववस्िार देने की नवीनिा वािे अत्यिं सुखद

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    रंगों व रूपों की प्रस्िुति डॉ िैि िोयि की अपनी व्यष्क्िगि किािैिी बन गई है। फििःसुखाडडया ववश्वववद्यािय उदयपुर में दो दिको से चित्रकिा ववभाग में रीडर पद पर सेवाएं देकर स्वैष्च्छक सेवातनवतृि पश्िाि स्विंत्र चित्रकार के के रूप मे सजृनरि है।1(चित्र संख्या-9) रामेश्वर शसहं देवगढ (1948 ई.)

    उदयपुर ववश्वववद्यािय से 1982ई. में एम ए चित्रकिा उपाचध पश्िाि रामशे्वर लसहं ने राजस्थान के फडचित्रण से प्रभाववि होकर अपनी किाकृतियों में कोिाज की भांति देवनागरी लिपी के मध्य पारदिी रंगिों के साथ आकारों को कभी जिाकर िो कभी गूंथकर किाकृतियों में संयोष्जि कर प्रािीन केलिग्राफी के मध्य वपघििी घडडयों से राजसी ठाि बाि को किाधारा से जोडने की वविषे पद्वति द्वारा अिीि को सुरक्षिि रखने का ध्येय से ही इनके रिनात्मक कायो की अलभवदृ्चध हुई है।3(चित्र संख्या-10)

    चन्र प्रकाश चौर्री, कांकरोली (1951 ई.)

    लिल्प एवं चित्रण से जुडे े़ िन्द्रप्रकाि िधैरी उदयपुर ववश्वववद्यािय से चित्रकिा में एम. ए. पश्िाि े्

    राजस्थान िलिि किा अकादमी िखमण -28 के सकक्रय सदस्य होकर संस्था द्वारा नई ददल्िी,बम्बई,जयपुर, उदयपुर, बैंगिोर में आयोष्जि समूह प्रदिवनी किा लिववरों व कायविािाओं में भाग िेिे हुए अनेक साववजतनक एवं तनजी संग्रहाियों में लिल्प कृतियां सुरक्षिि हैं।(चित्र संख्या-11) ककरण मुर्ड धया, उदयपुर (1951 ई.) उदयपुर ववश्वववद्यािय से चित्रकिा में एम.ए. 1972 में प्रथम श्रणैी और प्रथम स्थान से ककया। भारिीय चित्र िैलियों के त्रबम्बों और रूपाकारों को नूिन प्रयोग देकर तनजी संयोजन के साथ चित्रत्रि करने में ककरण की िूलिका ने अपनी सजवनधलमविा का पररिय प्रांिीय, राटरीय और अन्िराटरीय स्िर पर ददया हैं। मेवाड़ के पररवेि और उसके प्राकृतिक सौन्दयव के मध्य अवष्स्थि राजप्रासाद एवं भवनों को सूक्ष्म रेखांकन और सुमधुर रंगयोजना में चित्रत्रि करने की इन्होंने अपनी तनजी िैिी बनाई हैं।6(चित्र संख्या-12) बसन्त कष्यप उदयपुर (1952 ई.)

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    उदयपर ववश्वववद्यािय से 1974 ई. में एम.ए. चित्रकिा पश्िाि े् बसन्ि कश्यप न ेयही पर अपना िोध प्रस्िुि कर 1997 ई. में पीएि.डी. उपाचध प्राप्ि की। आपको राटरीय िलिि किा अकादेमी से राटरीय पुरुस्कार से नवाजा गया है। आप आज किा समूह के सकक्रय सदस्य रहकर अनेक एकि प्रदिवतनयों व सामूदहक प्रदिवतनयों में भाग िेिे रहे है। हाि म ेआप प्राध्यापक पद से सेवातनविृ होकर किा-िैत्र में कमविीि है।3 (चित्र संख्या-13)

    लशलत शमाध, नाथद्वारा (1953 ई.) उदयपुर ववश्वववद्यािय से 1975

    ई. में चित्रकिा में एम.ए. उपाचध पश्िाि े् अपने वपिा चित्रकार घनश्याम िमाव की सूझ-बूझ के अनुरूप चित्र की भााँति परम्परा में नवीन आयाम देकर किा सजवन में ित्पर हैं। जापान व

    यूनाईिेड ककंग्डम के संग्रहों के साथ ही पष्श्िम िैत्र सांस्कृतिक केन्द्र, लमिेतनयम किा दीधाव उदयपुर

    जवाहर किा केन्द्र एवं राजस्थान िलिि किा अकादमी जयपुर, कॉिेज ऑफ आिव ददल्िी, िण्डीगढ़ आदद प्रमुख संग्रहों में चित्र सुरक्षिि हैं। स्विन्त्र चित्रकार रहकर कायवरि हैं।6(चित्र संख्या-14) राजाराम व्यास, उदयपुर (1955 ई.) उदयपुर ववश्वववद्यािय से चित्रकिा में एम.ए. उपाचध के पश्िाि े् किा िैत्र में अनेक सामूदहक प्रदिवतनयााँ िथा एकि प्रदिवतनयों में िखमण-28 के सकक्रय सदस्य रहकर देि के ववलभन्न नगरों में अपनी कृतियााँ प्रदलिवि कर प्रदेि में अपनी वविषे पहिान बनाई हुई हैं। सम्प्रति-किा एवं ससं्कृति प्रकोटठ राजस्थान िैिखणक अनुसंधान एवं लििण संस्थान में कायवरि रहे हैं।(चित्र संख्या-15) ववष्णु प्रकाश माली, उदयपुर (1956 ई.) उदयपुर ववश्वववद्यािय से 1977 ई. में चित्रकिा में स्नािकोत्तर प्रथम शे्रणी उपाचध पश्िाि 1991 ई. में मेवाड़ के मूति वलिल्प पर पीएि.डी. उपाचध प्राप्ि की। िखमण-28 के सकक्रय सदस्यिा के साथ ववलभन्न सामूदहक प्रदिवतनयों व कायविािाओं में भाग िेिे हुए पुरस्कृि ककये गये हैं। राजकीय महाववद्यािय नाथद्वारा के चित्रकिा ववभाग में प्राध्यापक पद से सेवातनविृ होकर ववववध किा गतिववचधयों मे िेखन िथा चित्रण के रिनात्मक कायो में कायविीि हैं।

    छोटूलाल, उदयपुर (1957 ई.)

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    उदयपुर ववश्वववद्यािय से 1981 में चित्रकिा स्नािकोत्तर प्रथम शे्रणी उपाचध से स्वणव पदक प्राप्ि छोिूििाि िूलिका किाकार पररषद् उदयपुर द्वारा उत्कृटठ कृति पर सम्मातनि ककये गये। देि-ववदेि के तनजी संग्रहों में कृतियााँ सुरक्षिि हैं। दहन्दसु्िान ष्जंक लिलमिेड उदयपुर में कायवरि रहकर स्विन्त्र चित्रकार के रूप मे िजृनिीि हैं। अब्बासअली बाटलीवाला उदयपुर (1958 ई.) उदयपुर ववश्वववद्यािय से 1982 ई. में एम.ए. चित्रकिा उपाचध के पश्िाि े् अलबासअिी बाििीवािा ने स्थानीय देवी-देविाओं के देवरों की किात्मकिा से प्रभाववि होकर। उस संस्थापन के रूप को अपने चित्रो मे उकेर ठेठ िोक किा को सम्मान ददया गया। यह आज समूह उदयपुर के सकक्रय सदस्य रहि ेहुए अपने रिनात्मक कायो से उच्िकोदि के सम्मान त्रत्रनािे अवाडव प्राप्ि करिे हुए अपने सजृनात्मक कायव मे कायविीि हैं।1(चित्र संख्या-16) युगल शमाध, नाथद्वारा (1959 ई.) सुखाडड़या ववश्वववद्यािय, उदयपुर से 1981 ई. में एम.ए. चित्रकिा एवं 1994 ई. में पीएि.डी. उपाचध प्राप्ि युगि िमाव ने 1982 ई. में िलिि किा अकादमी नई ददल्िी के गढ़ी स्िूडडयों में ग्राकफक प्रलििण प्राप्ि ककया। मानव संसाधन मंत्रािय भारि सरकार द्वारा 1989-90 ई. से जूतनयर फैिोलिप प्राप्ि कर वविषे अध्ययन ककया। इनकी कामधेनु चित्र श्रखंिा वविषे रौिक है। युगि िमाव राजकीय महाववद्यािय नाथद्वारा के चित्रकिा ववभाग में प्राध्यापक पद पर रहकर किा कायो में वविषे कायव कर रहे हैं।1(चित्र संख्या-17) ज्ञान शसहं, इलाहाबाद (1960 ई.) बनारस दहन्द ू ववश्वववद्यािय से 1987 में एम.एफ.ए. मूति वकिा उपाचध ग्रहण कर ज्ञानलसहं ने अनेक किा समूहों में लिल्पकृतियााँ राटरीय आधतुनक किा दीघाव ददल्िी, उत्तर प्रदेि िलिि किा अकादमी व केन्द्रीय अकादमी ददल्िी, गोआ किा अकादमी, िेत्रीय िलिि किा अकादमी संस्थान िखनऊ में संगदृहि हैं। हाि मे यह उदयपुर मे अपना स्िुडडयो बनाकर लिल्प व्यवसाय स्विन्त्र मूति वकार हैं।(चित्र संख्या-18) गगन बबहारी दार्ीच, उदयपुर (1960 ई.) उदयपुर ववश्वववद्यािय से 1982 में चित्रकिा में स्नािकोत्तर उपाचध प्राप्ि कर 1992 में इसी ववश्वववद्यािय से पीएि.डी. उपाचध प्राप्ि की िथा राजस्थान िलिि किा अकादमी चित्र संख्या-18

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    जयपुर की ववलभन्न प्रदिवतनयों में भाग िेिे हुए कृतियााँ प्रदलिवि कर िकेु हैं। यह मणृलिल्प किा मे कृतियााँ बनािे है। मोिेिे मे ही अपना मणृकिा का स्िूडडओं बना रखा है। देि ववदेि के प्रमुख साववजतनक एवं तनजी संग्रहों में अपने लिल्प डमेोन्स्रिन की किाकृतियां जो वविषे उल्िेखनीय रही वे आज भी सुरक्षिि हैं। यह हाि मे राजकीय महाववद्यािय नाथद्वारा में चित्रकिा ववभागाध्यि के पद पर कायवरि रह कर सजृनात्मक कायव कर रहे हैं।(चित्र संख्या-19)

    मीना बया, उदयपुर (1963 ई.) सुखाडड़या ववश्वववद्यािय उदयपुर से 1985 ई. में चित्रकिा में एम.ए. स्वणव पदक उपाचध पश्िाि े् मीना बया ने किा प्रदिवतनयों से पष्श्िम िैत्र सांस्कृतिक केन्द्र उदयपुर की कायविािाओं में छापाकार व मोिेिा के िेराकोिा लिववरों 1986 भाग लिया एवं कई सरकारी एवं अधवसरकारी संस्थाओ द्वारा आयोष्जि किा लिववर मे िगािार भागीदारी तनभाई है। इनकी किा मे िोक ित्वों समकािीन ववषयों के साथ सुंदर संयोजन देखने को लमििा हैं। हाि मे मीना बया मीरा कन्या महाववद्यािय, उदयपुर चित्रकिा ववभाग में प्राध्यावपका पद

    पर रहकर सजृनात्मक कायव कर रही हैं।4(चित्र संख्या-20) हेमन्त द्वववेदी, उदयपुर (1966 ई.) सुखाडड़या ववश्वववद्यािय, उदयपुर से 1988 ई. में एम.ए. चित्रकिा िथा 1992 ई. में पी एि.डी. उपाचध प्राप्ि कर हेमन्ि द्वववेदी ने िखमण-28 के सकक्रय सदस्य की भूलमका तनभािे हुए अपने चित्रों की अनेक एकि प्रदिवतनयााँ केन्द्रीय िलिि किा अकादमी एवं आइफैक्स नई ददल्िी की लमिेतनयम किादीधावओं में आयोष्जि कर चित्र प्रदलिवि ककये हैं। यह िोक जन मे नर-नारी के ववववध आंिररक सुंदरिा का चित्रण करिे है। िो इन ददनों िीव्र रंगो के प्रयोग के साथ राजस्थानी स्थापत्य की धरोहर का चित्रण अपनी तनजीगि िैिी के माध्यम से भी ककया है। हाि मे यह मोहनिाि सुखाडड़या ववश्वव े़वद्यािय के दृश्यकिा ववभाग में ववभागाध्यि एवं आिायव पद पर रह कर सजृनात्मक कायव कर रहे हैं।6(चित्र संख्या-21) नरेन्र शसहं चचन्टू, उदयपुर (1968 ई.)

    चित्र संख्या- 19

    चित्र संख्या- 21

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    उदयपुर ववश्वववद्यािय से चित्रकिा में 1990 ई. में एम.ए. उपाचध के पश्िाि े् नरेन्द्र लसहं चिन्िू ने िैि-चित्र डडष्जिि व के्रयोन चित्रण पद्धति में अनेक प्रयोग करि ेहुए में एकि प्रदिवितनयााँ आयोष्जि करके अपने किा प्रयोगों को ववस्िार दे रहे हैं। यह देिज ववषयों को प्राथलमकिा से ववषयगि होिे है। नारी के ववववध रूपों को सॉफ्ि पेस्िि से बड़ी मनोरक आभा प्रदिवन बहुि रौिक है। इनकी त्वररि रेखांकन की पद्धति भी मोलिकिा का पररिायक है। देि-ववेदेि की अनेक सामूदहक प्रदिवतनयों में पहिान बनािे हुए राजस्थान िलिि किा अकादमी में चित्र प्रदलिवि। यह हाि में स्विन्त्र चित्रकार के रूप में कायवरि हैं।(चित्र संख्या-22) मदन शसहं राठौड बाडमेर (1968ई.)

    राजस्थान ववश्वववद्यािय जयपुर से 1991ई. चित्रकिा मे एम.ए. प्रथम शे्रणी में प्रथ्म प्रथम स्थान की उपाचध पश्िाि लििाववभाग में त्रत्रकिा व्याख्यािा पद पाकर अनेक किा गोष्टियों एवं किा लिववरों भाग िेिे हुए 1995ई. से मोहनिाि सुखाडड़या ववश्वववद्यािय उदयपुर में सहायक आिायव पद पर तनयुक्ि हो हुए। 1997 ई. राजस्थान ववश्वववद्यािय से चित्रकिा में पी.एि.डी. उपाचध पाई। ववभागाध्यि होकर कई राटरीय एवं अिंराटरीय सेलमनार कायविािाओं का आयोजन करवाकर किा साधना, िेखन एवं कािा आयोजन मे कायविीि हैं। हाि मे दृश्यकिा ववभाग, मोहनिाि सुखाडडया ववश्वववद्यािय मे आिायव पद पर कायवरि हैं।(चित्र संख्या-23) र्मधवीर वशशष्ठ उदयपुर (1969 ई.) महवषव दयानन्द ववश्वववद्यािय, अजमेर से चित्रकिा में एम.ए. 1990 ई. में प्रथम स्थान व राजस्थान ववश्वववद्यािय जयपुर से 1992 ई. में पीएि.डी. उपाचध प्राप्ि कर धमववीर वलिटठ 1993 स ेराजकीय महाववद्यािय, भरिपुर व किा महाववद्यािय जयपुर में चित्रकिा प्राध्यापक रहे हैं। राज्य एवं राटरीयस्िर की कई किा गोष्टठयों और कायविािाओं में पुरस्कृि हुए। आपमोहनिाि सुखाडड़या ववश्वववद्यािय में चित्रकिाववभाग के सहआिायव व अध्यि पद पर रहकर चित्रण एवं डडष्जिि संयोजन कायो में प्रयोगरि हैं।(चित्र संख्या-24)

    चित्र संख्या-23

    चित्र संख्या- 24

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    भूपेश कावर्ड़या, उदयपुर (1969 ई.) आत्मदीक्षिि मूति वकार भूपेि कावडड़या केन्द्रीय िलिि किा अकादमी ददल्िी, राजस्थान िलिि किा अकादमी जयपुर, िखमण-28, आइफेक्स जैसी कई राटरीय अिंराटरीय एवं राज्य स्िरीय किा प्रदिवतनयों व लिववरों में भाग िेकर अनेक किा संग्रहों में लिल्पकृतियााँ संगदृहि हैं। यह िोक किा ित्वो का समकािीन रूपों मे अपनी अलभव्यष्क्ि का माध्यम िनुिे है। यह स्विंत्र किाकार के रूप मे सजृन कायव कर रहे हैं।6(चित्र संख्या-25)

    शाहहद परवेज, उदयपुर (1970 ई.) सुखाडड़या ववश्वववद्यािय उदयपुर से चित्रकिा में एम.ए. 1993 ई. में पूणव कर िादहद परवेज ने अनेक एकि प्रदिवतनयों व सामूदहक प्रदिवतनयों में भाग लिया। िादहद के चित्रों मे हास्य है, किाि है और सबसे खास बाि है उदयपुर के िोक जीवन का पैना तनरिण। वे जीवन के मामूिी सी ददखने वािी घिनाओं व िणों को चित्र फे्रम में संजोकर हमें उस िण व घिना का किात्मक आभास करािे हैं। हाि में यह मोहनिाि सुखाडड़या ववश्वववद्यािय के

    दृश्यकिा ववभाग में प्राध्यापक पद पर कायव कर रहे हैं।1(चित्र संख्या-26) सुशील ननम्बाकध बड़ी सादड़ी (1971 ई.) राजस्थान स्कूि ऑफ आर्टवस जयपुर से बी.एफ.ए. 1992 सुखाडड़या ववश्वववद्यािय, उदयपुर से एम.ए. चित्रकिा

    1997 के पश्िाि े् सुिीि तनम्बाकव ने राजस्थान िलिि किा अकादमी एंव ववलभन्न किा समूहों में भाग लिया िथा किा िैत्र में ख्याति प्राप्ि की है। हाि म े यह मीरा कन्या राजकीय महाववद्यािय उदयपुर में व्याख्यािा पद पर कायवरि हैं।(चित्र संख्या-27) आकाश चोयल, उदयपुर (1974 ई.) एम.एस. ववश्वववद्यािय, बड़ौदा से बी.एफ.ए. 1997 पश्िाि कॉिेज ऑफ आिव ददल्िी से एम.एफ.ए.1999 के साथ ही जयपुर, ददल्िी, मुम्बई आदद स्थानों में कईबार अपनी कृतियााँ प्रदलिवि की गई। इसके अतिररक्ि

    चित्र संख्या-25

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    चित्र संख्या- 28

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    भारि द्वै-वावषवकी िलिि किा अकादमी, ददल्िी व राजस्थान िलिि किा अकादमी, जयपुर में भाग िेिे हुए पुरस्कृि होकर कमविीि हैं।1(चित्र संख्या-28) राजेश यादव, उदयपुर (1975 ई.) राजस्थान स्कूि ऑफ आिव जयपुर से बी.एफ.ए. प्रथम श्रणैी में सफि होकर राजेि यादव राज्य व अखखि भारिीय स्िर की प्रदिवतनयों किा लिववरों एव ंकिा मेिों में भाग िेिे हुए स्विन्त्र चित्रण कायो में सजृनरि हैं।1(चित्र संख्या-29) हदनेश उपाध्याय, उदयपुर

    उदयपुर के ददनेि उपाध्याय समसामतयक मूति वकार के रूप में जाने जािे है। किा के िेत्र के कई पुरूस्कार हालसि ककए है एवं किा प्रदिवनी, लिववर, कायविािा में भागीदारी तनभाई हैं। हाि में माखणक्यिाि वमाव आददम जाति िौध एवं प्रलििण संस्थान, उदयपुर में किा प्रकोटठ में कायवरि हैं। उपाध्याय ने अपनी मूति वलिल्प िैिी में आददवासी किा का आग्रह पािे है। यह अपनी मूति व में मेंवाड़ की गवरी िोकनतृ्य नादिका के पात्रों को पाषाण लिल्प मे गढ़िे हैं। जैसा कक चित्र में गवरी का मुख्यपात्र लिव भस्मासुर का लिल्प बनाया है। एक अन्य मूति व में गवरी के दो पात्रों को ही लििा पर मढ़ा हैं। (चित्र संख्या-30)

    चचमन डांगी, उदयपुर (1979 ई.) मोहनिाि सुखाडड़या ववश्वववद्यािय, उदयपुर स ेएम. ए. एवं पीएिडी कर समकािीन किाकार के िेत्र मे चिमन डांगी का स्थान संस्थापन किा माध्यम में लिया जािा है। इन्होने देि ही नहीं अवपिु ववदेि में भी अपने संस्थापन किा के उत्तम उदाहरण सषृ्जि व प्रदलिवि ककए हैं। इनका एक संस्थापन अनिाइल्ड गॉड पयाववरण संरिण के उनके वविार को व्यक्ि करिा

    है, ष्जसमें ददन प्रतिददन िर्टिानों के नटि ककए जाने की व्यथा है। वही साथ-साथ पेंदिगं ववधा मे भी कायविीि है। यह उदयपुर मे स्विंत्र किाकार के रूप मे सजृनिीि हैं।(चित्र संख्या-31)

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    शशमधला राठौर, उदयपुर िलमविा उदयपुर की समसामतयक किाकार है। इनके चित्रों में प्रागेतिहालसक चित्र के मेंि खािे

    ित्वों को देखा जा सकिा हैं। ष्जसमें आखेि दृश्य ष्जसमें दहरणों का लिकार करिें गुहावासी, घोड़ ेपर सवारी यात्रा, उत्सव, ज्यादािर मानवाकृतियों हचथयार िीर, भािें, ििवार, से आबद्ध हैं। सम्पूणव चित्रों में प्रागेतिहालसक प्रभाव की सुस्पटि झांकी दृटिव्य हैं।(चित्र संख्या-32)

    रोकेश कुमार शसहं, उदयपुर रोकेि मूतिकिा ववधा मे एक जाना पहिाना नाम है। इन्होन ेमोहनिाि सुखाडड़या ववश्वववद्यािय, उदयपुर से एम. ए. की उपाचध ग्रहण कर िगािार किा िेत्र मे सजृनिीि है। राटरीय एवं राज्य स्िर पर कई एकि एवं समूह प्रदिवतनयााँ की है। कई संस्थाओं से किा सम्मान मीि िकेु हैं। हाि मे िखमण- 28 संस्थान मे रहकर स्विंत्र किा साधना मे िग्न हैं।(चित्र संख्या-33)

    मयंक शमाध, उदयपुर (1983ई.) मोहनिाि सुखाडड़या ववश्वववद्यािय, उदयपुर से एम. ए. िथा पीएिडी की उपाचध ग्रहण कर मयंक िगािार किा िेत्र मे सजृनकायव कर रहे है। इनके कायव मे स्थानीय िो क का िानाबाना का समसामतयक संयोजन देखने को लमििा हैं। हाि मे िखमण- 28 संस्थान मे रहकर स्विंत्र किा साधना म ेिग्न हैं।(चित्र संख्या34) संदीप कुमार मेघवाल, उदयपुर (1990ई.) मोहनिाि सुखाडड़या ववश्वववद्यािय, उदयपुर से 2012 मे एम. ए. िथा 2018 मे पीएिडी की उपाचध ग्रहण कर संदीप िगािार किा िेत्र मे सजृनकायव कर रहे है। मुख्यि ग्राकफक एवं पेंदिगं ववधा के साथ कुछ फोिोग्राफी भी वविषे रुझान रखिे है। संदीप ने कई िहरों म ेददल्िी,जयपुर, उदयपुर मे प्रदिवतनयााँ िगा िकेु है। इनको िलिि किा अकादेमी जयपुर एवं राटरीय एवं अंिराटरीय स्िर पर सम्मातनि ककया जा िकुा है। इनकी किा मे स्थानीय जनजाति िोक की ववषयों का समकािीन फ्यूजन का अद्भुि संयोजन देखने को लमििा हैं। हाि मे यह उदयपुर मे रहकर स्विंत्र किाकार के रूप मे सजृनिीि हैं।(चित्र संख्या-35 ) इन किाकारों के अिावा भी उदयपुर एवं आसपास के िेत्रों मे कई किाकार िजृनिीि हैं। छगन पिेि, संदीप पािीवाि, तनमवि यादव, मंदीप िमाव,दवुषवि भास्कर,कंिन राठौर, जगदीि कुमावि, हेमंि जोिी, रोकेि कुमार लसहं, तनमवि यादव जैसे कई नामी चित्रकार है। इन

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    सभी के पूणव िल्िीनिा से सजृनिीििा के पररणाम मे नव उददि किाकारों को प्रेरणा लमििी रहेगी। संदभध-

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    2. ििमणी, िलिि किा एव ंसौंदयव पत्रत्रका उदयपरु, 3-4 अकं, फरवरी 2017 3. किा लिववर, रेडीश्नि लमतनएिर पेंदिगं ऑफ राजस्थान एंड प्रजेंि आिव सेनेररयों कायविािा, मोहन िाि,

    सखुाडड़या, वव. वव. उदयपरु, 2011

    4. मीना बया : िोक किा-सी सहज और भावात्मक अलभव्यष्क्ि, समकािीन किा अंक 19, नई ददल्िी प.ृ 52 5. ििमणी, िलिि किा एव ंसौंदयव पत्रत्रका उदयपरु, अकं-1, अगस्ि 2015 6. www.bougainvillaea.co.in

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