श्री गुरुगीता · ूतजी ने का : े िव...
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शरी गरगीता
अनकरम
परासताविक
भगिान शकर और दिी पािवती क सिाद म परकट हई यह शरीगरगीता समगर सकनदपराण का वनषकरव ह इसक हर एक शलोक म सत जी का सचोट अनभि वयकत
होता ह जसः
मखसतमभकर चव गणाना च वववरधनम
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम
इस शरी गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करन िाला ह गणो की िदधि करन िाला ह दषकतो का नाश करन िाला और सतकमव म वसदधि दन िाला ह
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधिषोडशीम
ह वपरय शरीगरगीता का एक एक अकषर मतरराज ह अनय जो विविध मतर ह ि इस
का सोलहिाा भाग भी नही अकालमतयरतरी च सवध सकटनावशनी
यकषराकषसभतावद चोरवयाघरववघावतनी
शरीगरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और शर आवद का घात करती ह
शवचभता जञानवतो गरगीता जपदधि य
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत
जो पवितर जञानिान परर इस शरीगरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता इस शरीगरगीता क शलोक भिरोग-वनिारण क वलए अमोघ औरवध ह साधको क वलए परम अमत ह सवगव का अमत
पीन स पणय कषीण होत ह जबवक इस गीता का अमत पीन स पाप नषट होकर पर
म शावत वमलती ह सवसवरप काभान होता ह
तलसीदास जी न ठीक ही कहा हः
गर विन भववनवर तरवर न कोई
जो विरवच सकर सम रोई
आतमदि को जानन क वलए यह शरीगरगीता आपक करकमलो म रखत हए ॐॐॐ
परम शावत
विवनयोग ndash नयासावद
ॐ असय शरीगरगीतासतोतरमालामतरसय भगिान सदावशिः ऋवर विराट छनदः शरी गरप
रमातमा दिता ह बीजम सः शदधकतः सोऽहम कीलकम शरीगरकपापरसादवसदधयरथ ज
प विवनयोगः
अरथ करनयासः
ॐ ह सा सयावतमन अगषठाभा नमः
ॐ ह सी सोमातमन तजवनीभा नमः
ॐ ह स वनरजनातमन मधयमाभा नमः
ॐ ह स वनराभासातमन अनावमकाभा नमः
ॐ ह स अतनसकषमातमन कवनवषठकाभा नमः
ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः
इवत करनयासः
अरथ हदयावदनयासः
ॐ ह सा सयावतमन हदयाय नमः
ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा
ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट
ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम
ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट
ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट
इवत हदयावदनयासः
अरथ धयानम
नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम
वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1
िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम
वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2
िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम
ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3
तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम
ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4
तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः
पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5
इवत धयानम
मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा
ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरदिाय नमः पवरथवयापक गध समपवया
वम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः आकाशातमक पषप
समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमनशरीगरदिाय नमः िापवातमक ध
प आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः तजातमक दीप दशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः अपातमक न
िदयक वनिदयावम ससिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः सिावतमका
न सिोपचारान समपवयावम
इवत मानसपजा
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
|| अथ िथमोऽधयायाः||
अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |
समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||
पहला अधयाय
जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका
र हो | (1)
ऋषयाः ऊचाः
सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |
गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||
ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह
म सनाओ | (2)
यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |
यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||
यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |
तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||
वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)
गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |
तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||
जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ
पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)
इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |
कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||
इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)
सत उवाच
शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |
वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||
सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप
णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर
िा और परसननता स सवनय | (7)
परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|
ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||
वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |
िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||
िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |
दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||
पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क
लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ
हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-
बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प
छा |
पावधतयवाच
ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |
तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||
पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर
त ह | (11)
वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |
नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||
आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप
होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)
भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |
बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||
ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत
म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)
इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |
आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||
इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर
कार कहा | (14)
मरादव उवाच
न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |
न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||
शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र
हसय कहता हा |
मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |
लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||
ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य
ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |
यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |
तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||
वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |
यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |
ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||
जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि
ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |
वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |
मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||
शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |
अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||
जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |
गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||
ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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शरीगरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और शर आवद का घात करती ह
शवचभता जञानवतो गरगीता जपदधि य
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत
जो पवितर जञानिान परर इस शरीगरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता इस शरीगरगीता क शलोक भिरोग-वनिारण क वलए अमोघ औरवध ह साधको क वलए परम अमत ह सवगव का अमत
पीन स पणय कषीण होत ह जबवक इस गीता का अमत पीन स पाप नषट होकर पर
म शावत वमलती ह सवसवरप काभान होता ह
तलसीदास जी न ठीक ही कहा हः
गर विन भववनवर तरवर न कोई
जो विरवच सकर सम रोई
आतमदि को जानन क वलए यह शरीगरगीता आपक करकमलो म रखत हए ॐॐॐ
परम शावत
विवनयोग ndash नयासावद
ॐ असय शरीगरगीतासतोतरमालामतरसय भगिान सदावशिः ऋवर विराट छनदः शरी गरप
रमातमा दिता ह बीजम सः शदधकतः सोऽहम कीलकम शरीगरकपापरसादवसदधयरथ ज
प विवनयोगः
अरथ करनयासः
ॐ ह सा सयावतमन अगषठाभा नमः
ॐ ह सी सोमातमन तजवनीभा नमः
ॐ ह स वनरजनातमन मधयमाभा नमः
ॐ ह स वनराभासातमन अनावमकाभा नमः
ॐ ह स अतनसकषमातमन कवनवषठकाभा नमः
ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः
इवत करनयासः
अरथ हदयावदनयासः
ॐ ह सा सयावतमन हदयाय नमः
ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा
ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट
ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम
ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट
ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट
इवत हदयावदनयासः
अरथ धयानम
नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम
वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1
िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम
वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2
िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम
ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3
तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम
ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4
तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः
पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5
इवत धयानम
मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा
ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरदिाय नमः पवरथवयापक गध समपवया
वम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः आकाशातमक पषप
समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमनशरीगरदिाय नमः िापवातमक ध
प आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः तजातमक दीप दशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः अपातमक न
िदयक वनिदयावम ससिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः सिावतमका
न सिोपचारान समपवयावम
इवत मानसपजा
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
|| अथ िथमोऽधयायाः||
अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |
समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||
पहला अधयाय
जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका
र हो | (1)
ऋषयाः ऊचाः
सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |
गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||
ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह
म सनाओ | (2)
यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |
यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||
यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |
तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||
वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)
गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |
तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||
जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ
पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)
इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |
कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||
इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)
सत उवाच
शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |
वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||
सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप
णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर
िा और परसननता स सवनय | (7)
परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|
ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||
वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |
िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||
िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |
दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||
पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क
लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ
हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-
बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प
छा |
पावधतयवाच
ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |
तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||
पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर
त ह | (11)
वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |
नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||
आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप
होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)
भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |
बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||
ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत
म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)
इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |
आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||
इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर
कार कहा | (14)
मरादव उवाच
न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |
न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||
शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र
हसय कहता हा |
मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |
लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||
ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य
ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |
यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |
तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||
वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |
यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |
ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||
जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि
ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |
वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |
मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||
शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |
अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||
जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |
गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||
ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः
इवत करनयासः
अरथ हदयावदनयासः
ॐ ह सा सयावतमन हदयाय नमः
ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा
ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट
ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम
ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट
ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट
इवत हदयावदनयासः
अरथ धयानम
नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम
वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1
िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम
वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2
िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम
ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3
तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम
ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4
तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः
पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5
इवत धयानम
मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा
ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरदिाय नमः पवरथवयापक गध समपवया
वम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः आकाशातमक पषप
समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमनशरीगरदिाय नमः िापवातमक ध
प आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः तजातमक दीप दशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः अपातमक न
िदयक वनिदयावम ससिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः सिावतमका
न सिोपचारान समपवयावम
इवत मानसपजा
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
|| अथ िथमोऽधयायाः||
अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |
समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||
पहला अधयाय
जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका
र हो | (1)
ऋषयाः ऊचाः
सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |
गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||
ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह
म सनाओ | (2)
यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |
यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||
यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |
तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||
वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)
गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |
तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||
जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ
पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)
इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |
कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||
इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)
सत उवाच
शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |
वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||
सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप
णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर
िा और परसननता स सवनय | (7)
परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|
ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||
वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |
िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||
िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |
दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||
पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क
लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ
हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-
बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प
छा |
पावधतयवाच
ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |
तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||
पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर
त ह | (11)
वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |
नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||
आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप
होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)
भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |
बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||
ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत
म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)
इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |
आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||
इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर
कार कहा | (14)
मरादव उवाच
न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |
न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||
शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र
हसय कहता हा |
मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |
लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||
ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य
ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |
यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |
तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||
वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |
यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |
ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||
जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि
ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |
वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |
मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||
शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |
अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||
जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |
गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||
ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
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इवत मानसपजा
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
|| अथ िथमोऽधयायाः||
अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |
समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||
पहला अधयाय
जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका
र हो | (1)
ऋषयाः ऊचाः
सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |
गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||
ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह
म सनाओ | (2)
यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |
यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||
यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |
तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||
वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)
गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |
तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||
जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ
पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)
इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |
कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||
इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)
सत उवाच
शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |
वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||
सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप
णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर
िा और परसननता स सवनय | (7)
परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|
ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||
वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |
िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||
िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |
दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||
पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क
लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ
हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-
बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प
छा |
पावधतयवाच
ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |
तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||
पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर
त ह | (11)
वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |
नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||
आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप
होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)
भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |
बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||
ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत
म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)
इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |
आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||
इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर
कार कहा | (14)
मरादव उवाच
न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |
न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||
शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र
हसय कहता हा |
मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |
लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||
ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य
ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |
यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |
तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||
वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |
यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |
ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||
जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि
ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |
वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |
मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||
शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |
अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||
जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |
गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||
ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |
तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||
जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ
पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)
इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |
कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||
इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)
सत उवाच
शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |
वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||
सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप
णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर
िा और परसननता स सवनय | (7)
परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|
ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||
वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |
िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||
िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |
दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||
पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क
लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ
हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-
बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प
छा |
पावधतयवाच
ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |
तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||
पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर
त ह | (11)
वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |
नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||
आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप
होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)
भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |
बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||
ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत
म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)
इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |
आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||
इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर
कार कहा | (14)
मरादव उवाच
न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |
न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||
शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र
हसय कहता हा |
मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |
लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||
ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य
ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |
यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |
तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||
वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |
यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |
ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||
जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि
ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |
वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |
मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||
शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |
अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||
जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |
गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||
ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प
छा |
पावधतयवाच
ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |
तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||
पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर
त ह | (11)
वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |
नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||
आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप
होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)
भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |
बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||
ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत
म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)
इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |
आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||
इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर
कार कहा | (14)
मरादव उवाच
न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |
न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||
शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र
हसय कहता हा |
मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |
लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||
ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य
ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |
यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |
तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||
वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |
यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |
ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||
जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि
ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |
वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |
मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||
शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |
अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||
जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |
गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||
ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||
शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र
हसय कहता हा |
मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |
लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||
ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य
ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |
यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |
तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||
वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |
यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |
ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||
जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि
ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |
वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |
मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||
शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |
अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||
जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |
गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||
ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
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ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श
ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)
गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |
तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||
ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)
गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |
ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||
जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि
शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |
दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |
सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||
वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता
ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)
शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |
गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||
शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक
उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)
अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |
जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||
अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)
सवदवशकसयव च नामकीतधनम
भवदनिसयवशवसय कीतधनम |
सवदवशकसयव च नामवचिनम
भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||
अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)
काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |
गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||
गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)
गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |
ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||
गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)
गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |
गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||
बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत
हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत
न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)
सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |
एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||
अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)
गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |
तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||
विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह
| (32)
गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |
अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||
lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)
गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |
अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)
गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |
गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||
lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह
lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)
गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |
रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||
गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र
कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)
सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |
वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||
गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर
िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)
यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |
साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||
वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम
वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)
ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |
यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||
ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)
एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |
गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||
जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)
भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |
यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||
ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न
ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)
तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |
गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||
इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक
मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)
सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |
गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||
सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)
वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |
लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||
यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)
गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |
गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||
गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क
हत ह | (45)
अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |
योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||
ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)
दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |
मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||
दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस
िा की विवध नही जानत | (47)
तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |
लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||
ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)
यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |
तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||
यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)
न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |
ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||
गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न
ही होग |
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||
|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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|| अथ वितीयोऽधयायाः ||
बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत
िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |
एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम
भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||
दसरा अधयाय
जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह
(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस
आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो
क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)
गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |
अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||
शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन
त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए
| (53)
वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |
दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||
यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो
स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)
करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |
समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||
एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |
स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||
करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन
नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग
र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक
सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)
यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |
गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||
ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)
हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |
गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||
शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा
वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)
गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |
अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||
गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो
लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)
अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |
कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||
सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)
दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |
तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||
जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि
परीत करनिाल को नही होती | (61)
अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |
भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||
सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि
शय हो जाता ह | (62)
गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |
उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||
ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ
स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)
न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |
दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||
गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया
न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)
नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |
नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||
गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए
(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)
गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |
कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||
गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |
रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)
अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |
दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||
जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत
हो सकत ह | (67)
पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |
नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||
पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)
गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |
नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||
चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना
चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए
| (69)
गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |
सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||
गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
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गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का
पररताग करना चावहए | (70)
मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |
कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||
ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)
ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |
त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||
गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच
सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)
वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |
भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||
गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)
गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |
समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||
शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क
मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)
सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |
तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||
जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
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Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
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जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार
आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)
अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |
ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||
हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा
ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)
अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |
अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||
म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)
अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |
ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||
अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |
वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||
ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत
जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी
अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)
यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |
शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||
वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव
(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म
शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)
यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |
सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||
वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
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वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)
सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |
कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||
सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)
गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |
दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||
सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र
हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)
जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |
षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||
ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)
गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |
गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||
मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)
एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |
िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||
अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता
ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)
न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |
गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||
िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद
ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)
चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |
गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||
गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण
ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)
न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |
यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||
एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि
ती राजाओ को वमलता ह | (89)
वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |
इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||
हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)
यताः परमकवलय गरमागण व भवत |
गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||
मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा
रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)
एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||
एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||
अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |
आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||
गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ
िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष
ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)
गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |
तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||
गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर
हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)
तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |
एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||
उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो
ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)
सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |
सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||
जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी
ि को सिवजञ कहत ह | (96)
यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |
मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||
ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)
यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |
आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||
ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद
अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)
वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |
गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||
वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)
सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |
गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||
गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प
रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)
तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |
ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||
इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर
दि की ही शरण लनी चावहए | (101)
जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |
सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||
जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
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जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए
कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |
(102)
वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |
सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||
पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना
नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)
न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |
वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||
जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा
म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)
पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |
सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||
कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |
कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||
जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |
एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||
भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल
कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप
र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |
(105 106 107 )
सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |
गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||
गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह
| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |
(108)
अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |
लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||
ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा
| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |
(109)
लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |
जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||
जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर
पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क
मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)
इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |
वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||
भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)
गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |
मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||
ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः
खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)
गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |
अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
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अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||
ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |
(113)
अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |
सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||
ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा
ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)
अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |
यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||
गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत
चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)
सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |
यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||
गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा
ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ
करन स वमलता ह | (116)
मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |
अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||
इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |
(117)
मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
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मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |
दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||
इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |
(118)
मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |
दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||
इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह
दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)
अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |
दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||
इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)
मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |
सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||
ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत
करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)
य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |
वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||
वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)
सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |
अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||
यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)
आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |
वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||
यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)
अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |
सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||
यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)
सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |
य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||
इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत
कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |
(126)
वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |
गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||
यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह
| (127)
जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |
शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||
शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)
जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |
गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||
जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |
सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||
वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर
क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)
गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |
दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||
वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)
भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |
गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||
सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |
ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||
ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन
क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)
आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |
अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||
शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |
तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||
आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार
जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)
कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |
उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||
ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर
एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)
शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |
पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||
सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह
वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)
वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |
मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||
कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
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कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो
ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह
ए जप वनषफल होत ह | (138)
कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |
कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||
काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प
र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)
आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |
नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||
अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त
रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)
उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |
यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||
उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण
दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||
|| अथ ततीयोऽधयायाः ||
अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |
सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||
शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |
वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||
पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |
वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||
तीसरा अधयाय
ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न
दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श
भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल
सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना
चावहए |
जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |
रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||
जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल
म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)
समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |
वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||
समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स
वसदधि जलदी होती ह | (146)
आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |
तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||
ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब
गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)
मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |
गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||
भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर
नरक म पड़त ह | (148)
ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |
यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||
वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|
ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)
रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|
रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||
वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय
ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)
शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |
मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||
शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |
(151)
गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |
गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||
गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न
ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)
समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |
वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||
वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ
वभनन ह | (153)
तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |
ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||
इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)
गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |
अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||
ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा
स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)
सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |
एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||
जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी
अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)
गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |
सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||
गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल
सिवतीरथवमय ह | (157)
कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |
अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||
ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो
गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)
अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |
मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||
अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच
ना तक नही | (159)
गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |
तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||
वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह
रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)
चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |
मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||
जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम
गरतव शोभा पाता ह | (161)
गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |
कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||
गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)
सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |
सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||
सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर
क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)
वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
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Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
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वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |
यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||
ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो
िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)
वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |
िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||
ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन
करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)
पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |
स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||
पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम
दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)
मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |
वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||
मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि
गर कहत ह | (167)
अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |
वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||
ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता
त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)
ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |
कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||
ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा
रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
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रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)
सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |
जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||
सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो
विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)
िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |
लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||
अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प
नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)
एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |
तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||
ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर
का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)
पावधतयवाच
सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |
दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||
पवधती न करा
परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर
का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)
शरीमरादव उवाच
वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |
बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||
शरी मरादवजी िोल
वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो
ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)
शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |
तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||
ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह
लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह
और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)
अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |
सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||
अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो
न चावहए | (176)
जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |
गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||
ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम
गर राजा ह | (177)
मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |
तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||
मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और
विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)
सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |
अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||
सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स
चमच परम गर ह | (179)
िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |
अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||
दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन
िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)
यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |
सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||
वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम
गर ह | (181)
सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |
याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||
जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी
और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)
मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |
न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||
वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |
यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||
ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म
स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर
को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश
यो का छदन करत ह | (183 184)
गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |
पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
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पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||
ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा
तर सशय नही ह | (185)
कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |
मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||
अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स
मय तारणहार ह | (186)
कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |
तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||
सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव
ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)
सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |
तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||
ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |
(188)
न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |
भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||
गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प
श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)
तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |
गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||
इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब
ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)
वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |
कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||
ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह
और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)
कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |
मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||
िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स
भी मकत हो जाता ह | (192)
दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |
वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता
ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)
वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |
ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||
वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन
ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)
एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |
वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||
वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ
सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)
अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
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अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |
िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||
ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स
दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)
सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |
सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||
सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क
हनी चावहए | (197)
नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |
अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||
नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी
चावहए | (198)
सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |
वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||
सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क
हनी चावहए | (199)
एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |
शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||
एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर
वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)
गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |
गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
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गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||
गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म
तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)
वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |
तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||
वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर
त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)
सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |
एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||
सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो
अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)
न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |
गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||
ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर
गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)
गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |
गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||
भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी
नही करना चावहए | (205)
ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |
अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||
ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)
गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
करन का सामथयव परापत करत ह | (211)
मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |
समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam
Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis
Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier
aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt
Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email
sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl
Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland
Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38
httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137
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ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो
क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)
सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |
गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||
शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स
िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)
गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |
गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||
गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग
रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)
गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |
गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||
बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क
छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)
जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |
गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||
गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर
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गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |
सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||
गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय
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समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||
ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा
णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)
यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |
इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||
म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव
रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)
अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |
जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||
ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको
जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)
|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||
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