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1 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS VISIONIAS www.visionias.in समसामयिकी अैल - 2018 Copyright © by Vision IAS All rights are reserved. No part of this document may be reproduced, stored in a retrieval system or transmitted in any form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise, without prior permission of Vision IAS

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    समसामयिकी अप्रैल - 2018

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  • 2 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    विषय सूची

    1. राजव्यिस्था और सवंिधान 4

    1.1. लोकसभा एिं विधानसभाओं के एक साथ चनुाि 4

    1.2 राजस्थान में ऄनुसूवचत क्षेत्रों का विस्तार 5

    1.3. ऄनुसूवचत जावत तथा ऄनुसवूचत जनजावत (ऄत्याचार

    वनिारण) ऄवधवनयम 7

    1.4.राष्ट्रीय ऄल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्था अयोग 8

    1.5. धमम पररितमन का ऄवधकार एक मलू ऄवधकार 9

    1.6. फेक न्यज़ू (भ्रामक समाचार) 10

    1.7. राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान 11

    1.8. वित्त अयोग द्वारा 2011 की जनगणना का ईपयोग 12

    1.9. भारतीय प्रवतस्पधाम अयोग (CCI) 13

    1.10 पूिोत्तर के वलए नीवत फोरम 13

    1.11 गिनेंस और भ्रष्टाचार पर IMF फे्रमिकम 14

    1.12. इ-विधान वमशन मोड पररयोजना 15

    2. ऄतंरामष्ट्रीय सबंधं 16

    2.1 िुहान वशखर सम्मेलन 16

    2.2 भारत-नेपाल संबंध 17

    2.3. भारत-विटेन वद्वपक्षीय िाताम 18

    2.4. राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक (चोगम) 19

    2.5. भारत-नॉर्डडक सम्मलेन 20

    2.6. आंवडया-विस्बाडने काफं्रें स, 2018 21

    2.7. पनमुनजोम घोषणा 22

    2.8.ऄफ्रीकी-एवशयाइ ग्रामीण विकास सगंठन 22

    2.9. क्लेररफाआययग लॉफुल ओिरसीज यज़ू ऑफ़ डटेा एक्ट

    (क्लाईड एक्ट) 23

    2.10. यहद महासागर को नया अकार दनेे हतेु चीन द्वारा नहर

    के वनमामण की योजना 23

    2.11. एवशयन प्रीवमयम 24

    2.12. साईथ एवशयन क्लाआमेट अईटलकु फोरम 25

    2.13 इ- विदशेी क्षेत्रीय पजंीकरण कायामलय योजना 26

    3. ऄथमव्यिस्था 27

    3.1. कमोवडटी स्पॉट और डरेरिेरटव्स बाजार का एकीकरण27

    3.2. ऐल्गोररदम टे्रयडग 28

    3.3. एंजल टैक्स से छूट 29

    3.4. स्थािर संपदा वनिेश ट्रस्ट और ऄिसंरचना वनिशे ट्रस्ट30

    3.5. पारस् पररक सहमवत प्रक्रिया 30

    3.6. विदशेी पोटमफोवलयो वनिेश 31

    3.7. विकासात्मक और विवनयामक नीवतयों पर िक् तव् य 32

    3.8. भारतीय ररजिम बैंक न ेGVA के स् थान पर GDP का

    ईपयोग करने का वनणमय वलया 33

    3.9. ईदारीकृत विप्रषेण योजना 34

    3.10. परम् परागत कृवष विकास योजना 34

    3.11. प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना 35

    3.12. राष्ट्रीय बासं वमशन 36

    3.13. ग्रामीण विदु्यतीकरण 37

    3.14. फेम योजना के प्रथम चरण का विस्तार 39

    3.15. तेल और गैस ऄन्िषेण 40

    3.16. कोल बेड मीथेन का ऄन्िषेण 41

    3.17. ईत्तम ऐप 41

    3.18. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 42

    3.19. IMF का िल्डम आकोनॉवमक अईटलुक 43

    3.20. ग्लोबल फाआंडके्स ररपोटम 2017 43

    3.21. भारत की GSP पात्रता समीक्षा 43

    3.22. यू.एस. करेंसी िाच वलस्ट 44

    4. सरुक्षा 45

    4.1. रक्षा वनयोजन सवमवत 45

    4.2. धनशोधन वनिारण ऄवधवनयम में संशोधन 46

    4.3. िामपंथी ईग्रिाद को वनयंवत्रत करना 47

  • 3 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    4.4. तटीय सरुक्षा योजना 48

    4.5. साआबर हमले के विरुद्ध महत्िपूणम समझौता 50

    4.6. आंवडयन ओशन नेिल यसपोवजयम 50

    4.7. सुरक्षा ऄभ्यास 51

    5. पयामिरण 52

    5.1 भारत में िनावि और ईसका प्रबंधन 52

    5.2. जल-ऄभािग्रस्त शहर 54

    5.3. जलिायु ऄनुकूल कृवष के वलए महाराष्ट्र सरकार की

    पररयोजना 55

    5.4. प्लावस्टक ऄपवशष्ट प्रबंधन (संशोधन) वनयम, 2018 55

    5.5. 8िीं क्षेत्रीय 3R फोरम 56

    5.6. ग्लोबल एनजी ट्रांसफॉमेशन:ए रोडमैप टू 2050 57

    5.7. ग्लोबल कमीशन ऑन द वजयोपोवलरटक्स ऑफ़ एनजी

    ट्रांसफॉमेशन 58

    5.8. आंटरनशेनल एनजी फ़ोरम 58

    5.9. ग्रीनको रेटटग 59

    5.10. सोलर वजयो-आंजीवनयटरग 59

    5.11.UNCCD की एवशया पैवसक्रफक रीजनल िकम शॉप 60

    5.12.बायोमास प्रबंधन पर टास्क फोसम 62

    5.13 स्टेट ऑफ द िल्डमस बडमस ररपोटम 2018 64

    5.14. विश्व का सबसे छोटे भूवम फनम की खोज 65

    5.15. स्िेल तरंगें 65

    6. विज्ञान और प्रौद्योवगकी 67

    6.1. राष्ट्रीय बायोफामाम वमशन 67

    6.2. ऄथम बायो-जीनोम प्रोजेक्ट 67

    6.3. ऑक्सीटोवसन पर प्रवतबंध 68

    6.4. प्रोजेक्ट धूप 69

    6.5. ऄंतररक्षीय कचरा 69

    6.6. अआंस्टीन टरग (िलय) 70

    6.7. यूरोपीय ऄतंररक्ष एजेंसी (ESA) का GAIA वमशन 71

    6.8. ट्रांवज़टटग एक्सोप्लेनेट सिे सैटेलाआट (TESS) वमशन71

    6.9. आसरो का IRNSS-1I ईपग्रह 71

    6.10. साईंयडग रॉकेट: RH-300 MKII 72

    6.11. LYRID 2018 73

    7. सामावजक मदु्द े 74

    7.1. स्टेट ऑफ़ सोशल सेफ्टी नेट्स 2018 74

    7.2. मानि ऄवधकार संरक्षण(सशंोधन)विधेयक, 2018 76

    7.3. बच्चों से बलात्कार 76

    7.4. NIRF आंवडया रैंककग -2018 77

    7.5. ईन्नत भारत ऄवभयान 2.0 78

    7.6. राष्ट्रीय अविष्कार ऄवभयान 79

    7.7. िन धन योजना 79

    7.8. ग्राम स्िराज ऄवभयान 80

    7.9. राष्ट्रीय िार्डषक ग्रामीण स्िच्छता सिेक्षण 80

    8. ससं्कृवत 82

    8.1. विश्व धरोहर स्थल 82

    8.2. कोणाकम मंक्रदर 83

    8.3. मधुबनी वचत्रकला 84

    8.4. राष्ट्रीय संस्कृवत वनवध 84

    8.5. यूनेस्को एटलस ऑफ़ दी िल्डमस लैंग्िजेजे आन डेंजर 85

    9. नीवतशास्त्र 86

    9.1. ऄसमानता एिं नीवतशास्त्र 86

    10. विविध 88

    10.1. ऄक्रदलाबाद डोकरा तथा िारंगल की दररया ं 88

    10.2. िल्डम काईंवसल ऑन वसटी डटेा सर्टटक्रफकेशन 88

    10.3 UN रोड सेफ्टी ट्रस्ट फंड 89

    10.4.विश्व प्रसे स्ितंत्रता सचूकाकं 90

    10.5. फेडरेशन ऑफ आंवडयन एक्सपोटम ऑगमनाआजेशन

    ग्लोबलयलकर 90

    10.6. ऄभ्यास चििात 91

  • 4 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    1. राजव्यिस्था और संविधान

    (POLITY AND CONSTITUTION)

    1.1. लोकसभा एि ंविधानसभाओं के एक साथ चनुाि

    (Simultaneous Elections)

    सरु्डखयों में क्यों?

    हाल ही में, विवध अयोग ने लोकसभा एिं विधानसभाओं के एक साथ चनुाि करान ेसे सम्बंवधत ह्िाआट पेपर जारी क्रकया।

    संबंवधत जानकारी

    चुनाि अयोग की प्रथम िार्डषक ररपोटम (1983) में एक साथ चुनाि कराने का विचार रखा गया तथा बाद में विवध अयोग की ररपोटम

    (1999) और संसदीय स्थायी सवमवत की 79िीं ररपोटम (2015) में भी आस विचार को अगे बढ़ाया गया।

    2017 में, एक साथ चुनाि कराने के विचार की प्रासंवगकता पर चचाम करने के वलये नीवत अयोग द्वारा एक पेपर जारी क्रकया गया।

    एक साथ चनुाि (SE) स ेसम्बवंधत तथ्य

    एक साथ चुनाि कराने का अशय भारतीय चनुाि चि को आस प्रकार सरंवचत करना ह ैक्रक लोकसभा एिं राज्य विधानसभाओं के चुनाि एक

    ही समय में हों तथा क्रकसी विवशष् ट वनिामचन क्षते्र के मतदाता राज्य विधानसभा और लोकसभा, दोनों के वलए एक ही क्रदन मतदान करें।

    आसका ऄथम यह नहीं ह ैक्रक दशेभर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के वलए एक ही क्रदन मतदान क्रकया जाना अिश्यक है।

    ऄतीत में, 1967 तक भारत में एक साथ चनुाि अयोवजत क्रकय ेजात ेथे, क्रकन्तु ये विधानसभाओं के समय पूिम विघटन के कारण बावधत हो

    गए।

    लोकतंत्र के तृतीय स् तर के चुनाि एक साथ होने िाले चुनािों में सवम्मवलत नहीं क्रकया जा सकते क्योंक्रक -

    o यह राज्य सूची का विषय ह।ै

    o स्थानीय वनकायों की संख्या ऄत्यवधक ह।ै

    ड्राफ्ट पपेर की कुछ वसफाररशें

    RPA ऄवधवनयम 1951 की धारा 2 में "एक साथ चनुाि" की पररभाषा को जोड़ा जा सकता ह।ै

    संविधान के ऄनचु्छेद 83 और 172 (जो िमशः संसद के दोनों सदनों और राज्य विधावयकाओं की ऄिवध से संबंवधत हैं) को RPA

    ऄवधवनयम 1951 के ऄनभुाग 14 और 15 (िमशः संसद के दोनों सदनों और राज्य विधावयकाओं में अम चुनािों की ऄवधसूचना स े

    संबंवधत) के साथ ईवचत रूप से संशोवधत क्रकया जाना चावहए। आसका ऄथम यह होगा क्रक मध्यािवध चुनािों के पश्चात् गरठत नइ लोकसभा

    और विधानसभा, केिल शेष ऄिवध के वलए ही कायमरत रहेगी।

    संविधान की दसिीं ऄनुसूची के ऄनुच्छेद 2(1) (b) के तहत ईवल्लवखत दल बदल विरोधी काननू को एक ऄपिाद के रूप में हटाया जाए,

    ताक्रक वत्रशंकु सदन की वस्थवत में गवतरोध से बचा जा सके।

    अम चुनािों की ऄवधसूचना जारी करने के वलए 6 महीने की सांविवधक सीमा को बढ़ाने हतेु RPA, 1951 की धारा 14 और 15 को

    संशोवधत क्रकया जाना चावहए ताक्रक एक साथ चुनाि अयोवजत करने में चुनाि अयोग को लचीलापन प्रदान क्रकया जा सके।

    ऄविश्वास प्रस्ताि के कारण विधानसभा के समयपिूम विघटन का एक विकल्प यह हो सकता ह ै क्रक ऄविश्वास प्रस्ताि लाने िाले सदस्यों

    द्वारा ईसके साथ ही िैकवल्पक सरकार के गठन का प्रस्ताि भी प्रस्तुत क्रकया जाए।

    सरकार को वस्थरता प्रदान करने हतेु लोकसभा/विधानसभा का नतेतृ्ि करन े के वलए प्रधानमंत्री/मखु्यमतं्री का सम्पणूम सदन द्वारा चनुाि

    क्रकया जा सकता ह,ै जैसे क्रक लोक सभा के ऄध्यक्ष को चुना जाता है।

    अचार सवंहता (MCC)

    यह राजनीवतक दलों की सिमसम्मवत स े विकवसत मानदडंों का एक समुच्चय ह।ै यह ईन मानदंडों को वनधामररत करता है वजनका

    राजनीवतक दलों, चुनाि में खड़े प्रत्यावशयों ि सत्ताधारी दल को चुनािों की प्रक्रिया के दौरान सख्ती से पालन करना पड़ता ह।ै

    आसे चुनाि कायमिम की घोषणा की तारीख से लागू क्रकया जाता ह ैऔर यह चुनाि की प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहती है।

    एक साथ चनुाि करिाए जान ेकी अिश्यकता

    बार-बार चुनाि करिाए जाने के कारण अचार सवंहता लबं ेसमय तक लाग ू रहती है, पररणामस्िरूप विकास कायमिमों, कल्याणकारी

    योजनाओं, पूंजीगत पररयोजनाओं का कायामन्ियन बावधत होता ह ैतथा आससे पॉवलसी पैरावलवसस एि ंगिनेंस डेक्रफवसट की वस्थवत ईत्पन्न

    होती ह।ै

    चुनाि में राजनीवतक दलों, ईम्मीदिारों जैसे विवभन्न वहतधारकों द्वारा भारी मात्रा में धन का व्यय क्रकया जाता ह।ै चुनाि जीतने के वलए

    वनधामररत सीमा से ऄवधक व्यय करने की प्रिृवत दशे में भ्रष्टाचार और काल ेधन के बढ़न ेके वलए ईत्तरदायी प्रमखु कारणों में स ेएक ह।ै

  • 5 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    सरकारी दवृष्टकोण से देखने पर स्पष्ट होता हैं क्रक चुनािों को संपन्न करिाने के वलये प्रशासवनक मशीनरी के एक पूरे सेट की अिश्यकता

    होती ह।ै नतीजतन, बार-बार होने िाले चुनाि प्रक्रिया प्रबधंन की प्रशासवनक लागत में िृवद्ध करते हैं।

    आसके ऄवतररक्त, अम तौर पर पूरे चुनाि के दौरान सुरक्षा बलों (विशेष रूप स ेCAPF) की तनैाती होती ह।ै ऐसा न होने पर ईन सुरक्षा

    बलों को अंतररक सुरक्षा ईद्देश्यों के वलए तैनात क्रकया जा सकता ह।ै

    बार-बार होने िाले चुनाि विधायी कामकाज में बाधा डालते हैं, क्योंक्रक अगामी चनुाि जीतन े की बाध्यता ऄल्पकावलक राजनीवतक

    ऄवनिायमता को तात्कावलक प्राथवमकता बना दतेी ह।ै

    ऄन्य मदु्दे- बार-बार होने िाले चुनाि सामान्य सािमजवनक जीिन में व्यिधान और अिश्यक सेिाओं के कामकाज को प्रभावित करते हैं।

    o चूंक्रक चुनािों के दौरान जावत, धमम और सांप्रदावयक मुद्दें ध्यानाकषमण में होत ेहै, ऄत: चुनािों की अिृवत्त में िृवद्ध दशे भर में ऐसे

    विभाजनकारी मदु्दों को कायम रखती है।

    एक साथ चनुाि की अलोचना

    समयािवधयों के यसिनाआज़ेशन के वलए विवभन्न विधान सभाओं की ऄिवध में कमी या विस्तार की अिश्यकता होगी वजसे सत्तारूढ़ दल

    (ऄिवध के संकुचन के मामले में) या विपक्षी दल (ऄिवध के विस्तार के मामले में) द्वारा समर्डथत नहीं क्रकया जाएगा।

    आसके ऄवतररक्त यह भी वििाद का विषय ह ैक्रक क्या भारत के वनिामचन अयोग के वलए आतने व्यापक स्तर पर चनुाि अयोवजत करना

    व्यिहायम है।

    यक्रद एक साथ चुनाि के लक्ष्य को प्राप्त कर भी वलया जाता है तो आसे बनाए रखना मुवश्कल होगा क्योंक्रक ऄनुच्छेद 83 (2) और 172 (1)

    के तहत िमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की ऄिवध वनवश्चत नहीं ह।ै

    ऄल्प-सवूचत मतदाताओं के द्वारा चयन के कारण a) राज्य विधानसभा चुनािों में मतदान के दौरान मतदाताओं के व्यिहार को प्रभावित

    करने िाले राष्ट्रीय मुद्दे; या b) लोकसभा चुनािों में मतदाताओं के व्यिहार को प्रभावित करने िाले क्षेत्रीय मुद्दे ईत्पन्न हो सकते हैं।

    बार-बार होने िाले चुनािों के कारण राजनीवतक दल के नतेा, वनरंतर मतदाताओं के सपंकम में रहत ेहैं तथा आससे नेताओं की जनता के प्रवत

    ईत्तरदावयत्ि में िवृद्ध होती ह।ै यह नेताओं को 'जनता की नब्ज' को टटोलन े में मदद करता ह ैऔर विवभन्न स्तरों पर चुनािी पररणाम

    समय-समय पर सरकार को ईसके कायमिमों में अिश्यक सुधार की गंुजाआश से ऄिगत कराते रहते हैं।

    अग ेकी राह

    भारत में एक साथ चुनाि अयोवजत करिाने के ऄत्यंत करठन कायम के क्रियान्ियन हतेु सभी वहतधारकों के मध्य समन्िय और विचार-विमशम की

    अिश्यकता होगी। आसके ऄवतररक्त, लोकसभा और विधानसभाओं के कायमकाल का यसिनाआज़ेशन (ससंदीय सवमवत द्वारा क्रदए गए सझुाि के

    ऄनसुार) एक बार में करने के बजाय विवभन्न चरणों में क्रकया जा सकता ह।ै कानून के माध्यम से एक साथ चुनाि अयोवजत करने हतेु मजबूर

    करने के स्थान पर, ईन राज्य विधानसभाओं में एक साथ चुनाि अयोवजत करने के प्रयास क्रकए जाने चावहए वजनका कायमकाल एक साथ पूणम हो

    रहा है।

    1.2 राजस्थान में ऄनसुवूचत क्षते्रों का विस्तार

    (Expansion of Scheduled Areas in Rajasthan)

    सरु्डियों में क्यों?

    हाल ही में, कें द्रीय मंवत्रमंडल द्वारा राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में भारतीय सवंिधान की ऄनसुचूी-V के ऄधीन ऄनुसूवचत क्षेत्रों का विस्तार करने की

    स्िीकृवत प्रदान की गयी है।

    ऄन्य सबंवंधत तथ्य

    आससे पूिम राजस्थान में 1981 में क्रकये गए ऄनुसूवचत क्षेत्रों के विस्तार के बाद, 2011 की जनगणना के अधार पर राज्य में पुनगमठन के

    कारण 2014 में एक और विस्तार प्रस्तावित क्रकया गया था।

    ये क्षेत्र ऄब कें द्रीय और राज्य सरकारों की ितममान योजनाओं के ऄंतगमत जनजातीय ईप-योजना के एक भाग होंगे।

    सम्बवंधत तथ्य

    ऄनचु्छेद 244

    पांचिीं ऄनुसूची के ईपबंध ऄसम, मेघालय, वत्रपुरा और वमजोरम राज्यों से वभन्न क्रकसी राज्य के ऄनसुूवचत क्षेत्रों और ऄनुसूवचत जनजावतयों

    के प्रशासन और वनयंत्रण के वलए लागू होंगे।

    क्रकसी क्षते्र को ऄनसुवूचत क्षते्र घोवषत करने हतेु मानदडं

    जनजातीय जनसंख्या की बहुलता;

    क्षेत्र की सघनता और युवक्तयुक्त अकार;

    क्षेत्र की ऄल्प-विकवसत प्रकृवत

    लोगों के अर्डथक स्तर में सुस्पष्ट ऄसमानता।

  • 6 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    आन मानदडंों को भारतीय सवंिधान में िर्डणत नहीं क्रकया गया है क्रकन्तु ये पूणमतया स्थावपत हो चुके हैं।

    ऄनसुवूचत क्षते्र िाल ेराज्य

    अंध्र प्रदशे, छत्तीसगढ़, गुजरात, वहमाचल प्रदशे, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओवडशा, राजस्थान और तेलंगाना के क्षेत्रों में ऄनुसूवचत क्षेत्र

    संबंधी प्रािधान लागू हैं।

    जनजातीय ईप-योजना (TSP)

    यह जनजातीय लोगों के तीव्र सामावजक-अर्डथक विकास की एक रणनीवत ह ैजो राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की िार्डषक योजना का एक ऄंग

    होती ह।ै

    TSP स ेजनजावतयों और जनजातीय क्षते्रों को प्रदत्त लाभ ईस राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की समग्र योजना द्वारा प्रदत्त लाभों के ऄवतररक्त होते

    हैं।

    जनजातीय ईप-योजना के तहत प्रदान की गयी रावश कम से कम प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की जनजातीय जनसखं्या के समानपुात में

    होनी चावहए।

    पाचंिीं ऄनसुचूी (ऄनचु्छेद 244)

    पांचिीं ऄनुसूची द्वारा पिूोत्तर राज्यों के बाहर वनिास करन ेिाली ऄनसुवूचत जनजावतयों के वहतों को सरंवक्षत क्रकया गया है। यह भारत के

    ईन बड़े वहस्सों में "ऄनुसूवचत क्षेत्रों" का वनधामरण करती है वजनमें "ऄनुसूवचत जनजावतयों" के वहतों को संरवक्षत क्रकया जाना अिश्यक है।

    ऄनुसूवचत क्षेत्र की 50 प्रवतशत स ेऄवधक अबादी का जनजातीय होना अिश्यक है।

    5िीं ऄनसुचूी के ऄतंगमत राज्यपाल की शवक्तयां

    राज्यपाल की विवभन्न शवक्तयों में शावमल हैं-

    o राज्य के क्रकसी ऄनुसूवचत क्षेत्र में शावंत और सशुासन हते ुविवनयमन करना, जैसे- ऄनुसूवचत क्षेत्रों में ऄनुसूवचत जनजावतयों के सदस्यों

    के द्वारा या ईनके मध्य भूवम ऄंतरण को वनवषद्ध या प्रवतबंवधत करना; ईन क्षेत्रों में ऄनुसवूचत जनजावतयों के सदस्यों को क्रकये जान े

    िाले भूवम अिंटन को विवनयवमत करना; ऐसे क्षेत्र में ऄनुसूवचत जनजावतयों के लोगों को साहूकारों द्वारा धन ईधार दनेे के व्यिसाय

    को विवनयवमत करना।

    o संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पाररत क्रकए गए क्रकसी भी ऄवधवनयम के ऄनुसूवचत क्षेत्रों में लागू न होन ेके सबंंध में वनदशे दनेा।

    o ईपयुमक्त िर्डणत क्रकसी भी विवनयमन के वनधामरण की प्रक्रिया में, राज्यपाल क्रकसी भी संघ या राज्य काननू को वनरस्त या सशंोवधत कर

    सकता है।

    o राज्यपाल आस प्रकार के विवनयमन राज्य की जनजातीय सलाहकार पररषद ्के परामशम स ेही बना सकता है।

    जनजावत सलाहकार पररषद ् (Tribes Advisory Council: TAC): 5िीं ऄनुसूची के तहत वनधामररत क्रकया गया ह ै क्रक यह TAC का

    कत्तमव्य होगा क्रक िह राज्य में जनजावतयों के कल्याण और प्रगवत से संबंवधत विषयों (राज्यपाल द्वारा संदर्डभत) पर राज्यपाल को परामशम

    प्रदान करे।

    राष्ट्रपवत और ऄनसुवूचत क्षते्र: राष्ट्रपवत को राज्यपाल से परामशम के बाद क्रकसी भी ऄनसुवूचत क्षते्र की सीमाओं में पररितमन करने की शवक्त

    प्रदान की गयी है।

    o राज्यपाल द्वारा वनधामररत क्रकये गये विवनयमन केिल राष्ट्रपवत की स्िीकृवत के ईपरांत ही प्रभािी होते हैं। राज्यपाल के वलए ऄनुसूवचत

    क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपवत के समक्ष िार्डषक ररपोटम प्रस्तुत करना ऄवनिायम ह।ै

    ऄनसुचूी में सशंोधन: संसद विवध द्वारा आस ऄनुसूची के क्रकसी भी प्रािधान में पररिद्धमन, पररितमन या वनरसन के माध्यम से संशोधन कर

    सकती ह।ै ऐसा कोइ कानून संविधान के ऄनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं माना जायेगा।

    पांचिीं ऄनुसूची के ईपबंधों का पचंायतों के प्रािधान (ऄनसुवूचत क्षते्रों पर विस्तार) ऄवधवनयम, 1996 के माध्यम से और ऄवधक कानूनी

    और प्रशासवनक सुदढृीकरण हुअ है।

    ऄनसुचूी की ऄन्य महत्िपणूम विशषेताएं हैं:

    o यह जनजावत सलाहकार पररषद ्की स्थापना संबंधी प्रािधानों को ईपबंवधत करती ह।ै

    o यह ऄनुसूवचत क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में संघ द्वारा क्रकसी राज्य को क्रदए गए वनदशेों के विस्तार के संदभम में भी ईपबंध करती ह।ै

    जनजातीय सलाहकार पररषद ्

    आसकी स्थापना राष्ट्रपवत के वनदशे द्वारा ऄनुसूवचत क्षेत्र िाले राज्य में या क्रकसी ऐसे राज्यों में भी जहां ऄनुसूवचत जनजावत तो ह ैक्रकन्त ु

    ऄनुसूवचत क्षेत्र नहीं ह,ै में की जाती ह।ै

    o आसमें 20 सदस्य शावमल होते हैं, वजनमें से तीन-चौथाइ ईस राज्य की विधानसभा में ऄनुसूवचत जनजावतयों के प्रवतवनवध होन े

    चावहए।

    o राज्यपाल आन पररषदों के सदस्यों की संख्या को विवनयवमत करने, ईनकी वनयुवक्त की रीवत, आन पररषदों के ऄध्यक्ष, ऄवधकाररयों और

    कममचाररयों की वनयुवक्त तथा आसकी बैठकों और सामान्य कायमिावहयों का संचालन करने के वलए वनयम ईपबंवधत कर सकता है।

    (नोट: जनजातीय ईप-योजना के वलए समसामवयकी फरिरी 2018 देखें)

  • 7 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    1.3. ऄनसुवूचत जावत तथा ऄनसुवूचत जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) ऄवधवनयम

    [Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act]

    सरु्डियों में क्यों?

    हाल ही में, सिोच्च न्यायालय के वनदशेों के कारण ऄनुसूवचत जावत तथा ऄनुसूवचत जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) ऄवधवनयम, 1989 चचाम में

    रहा।

    ऄनसुवूचत जावत तथा ऄनसुवूचत जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) ऄवधवनयम, 1989

    यह ऄनुसूवचत जावत तथा जनजावत के सदस्यों के विरुद्ध ऄत्याचारों का वनषेध करता है, तथा ऐस ेऄपराधों की सुनिाइ तथा पीवड़तों के

    पुनिामस हतेु विशेष न्यायालयों की स्थापना करता ह।ै

    यह गैर-ऄनुसूवचत जावत/जनजावत सदस्यों द्वारा SC/ST के सदस्यों के विरुद्ध क्रकये जाने िाले ईन कृत्यों को रेखांक्रकत करता है वजन्हें

    ऄपराध के रूप में माना जायेगा।

    आस ऄवधवनयम में यह स्पष्ट क्रकया गया ह ैक्रक एक गैर-ऄनुसूवचत जावत / जनजावत समूह से सम्बंवधत लोक सेिक यक्रद SC/ST से संबंवधत

    ऄपने कतमव्यों में क्रढलाइ बरतता ह ैतो यह दण्डनीय होगा।

    SC/ST ऄवधवनयम के ऄंतगमत क्रकए गए क्रकसी ऄपराध की जााँच, पुवलस ईपाधीक्षक (DSP) से नीचे के स्तर का ऄवधकारी नहीं कर

    सकता।

    कुछ विवशष्ट ऄपराधों के वलए ऄवधवनयम में मृत्युदण्ड तथा संपवत्त जब्त करने का भी प्रािधान है। आस ऄवधवनयम के ऄंतगमत शावमल

    ऄपराधों के दोहराए जाने पर और ऄवधक कठोर दंड की भी व्यिस्था ह।ै

    ‘पीवड़त व्यवक्त तथा गिाहों के ऄवधकारों’ हतेु नया ऄध्याय जोड़ने, सरकारी कममचाररयों के द्वारा ‘जानबूझकर कर की गइ लापरिाही' को

    पररभावषत करने तथा नए ऄपराधों जैसे जूतों की माला पहनाना अक्रद को जोड़ने हतेु ऄवधवनयम को 2016 में संशोवधत क्रकया गया।

    पृष्ठभवूम

    आस ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम के ऄंतगमत दज़म की गयी एक वशकायत यावचका पर सिोच्च न्यायालय ने प्रक्रियात्मक सुरक्षा ईपायों की

    अिश्यकता का ऄनुभि क्रकया तथा सुभाष महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य िाद में ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम के सम्बन्ध में वनम्नवलवखत

    वनदशे ज़ारी क्रकए:

    o ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम के ऄंतगमत दज़म वशकायत में यक्रद प्रथम दषृ्टया कोइ मामला न बनता हो या न्यावयक संिीक्षा के ईपरांत

    वशकायत प्रथम दषृ्टया दभुामिनापूणम प्रतीत होती हो तो ऐसी वस्थवत में ऄवग्रम जमानत पणूमतः प्रवतबवंधत नहीं होगी।

    o ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम के प्रकरणों में वगरफ़्तारी के क़ाननू के ज्ञात दरुुपयोग पाए जाने के कारण, ऄब क्रकसी लोक सिेक की

    वगरफ़्तारी वनयोक्ता ऄवधकारी की स्िीकृवत (पूिम स्िीकृवत) के पश्चात तथा गैर-लोकसेिक की वगरफ़्तारी, िररष्ठ पुवलस ऄधीक्षक की

    ऄनुमवत के पश्चात की जा सकती ह।ै यह ऄनुमवत अिश्यक समझे जाने िाले प्रकरणों में दी जा सकती है, और मवजस्टे्रट के वलए

    वहरासत की ऄिवध बढ़ाये जाने हतेु ऐसे कारणों की संिीक्षा करना अिश्यक है।

    o झूठी संवलप्तता से क्रकसी वनदोष के बचाि के वलए पुवलस ईपाधीक्षक द्वारा प्राथवमक जााँच की जा सकती ह ैताक्रक यह सुवनवश्चत क्रकया

    जा सके क्रक िास्ति में लगाए गए अरोप ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम के दायरे में अते भी हैं या नहीं और कहीं ये दभुामिनापूणम या

    ऄवभप्रेररत तो नहीं हैं।

    o ईपयुमक्त वनदशेों के क्रकसी भी ईल्लंघन के विरुद्ध कारमिाइ की जाएगी जो ऄनुशासनात्मक कारमिाइ से लेकर ऄिमानना के वलए क्रदए

    जाने िाले दंड तक कुछ भी हो सकती ह।ै

    तत्पश्चात, कें द्र ने ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम के तहत दायर की गयी वशकायत पर सिोच्च न्यायालय के स्ितः वगरफ़्तारी को रोकन े

    संबंधी वनणमय के विरुद्ध ऄपील की, क्रकन्तु सिोच्च न्यायालय ने ऄपने वनणमय को यथाित बनाए रखा।

    वनणमय के पक्ष में तकम

    वनदोष व्यवक्तयों की सुरक्षा: यह वनणमय ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनसुूवचत जनजावतयों के सदस्यों के ऄवधकारों में ऄिरोध ईत्पन्न नहीं कर

    रहा ह ैऄवपतु यह ऐसे वनदोष व्यवक्तयों की रक्षा करन ेपर कें क्रद्रत है, वजन्हें झूठे मामल ेमें फंसाया गया ह।ै

    मनमान ेढंग स ेवगरफ्तारी के विरुद्ध स्िततं्रता: विलास पांडुरंग पिार और शकंुतला दिेी मामलों में न्यायालय ने यह भी कहा क्रक ऄवग्रम

    जमानत पर रोक वनरपेक्ष नहीं हैं, विशेष रूप से तब जबक्रक कोइ मामला ही न बन रहा हो या अरोप स्पष्टतया झूठे या प्रेररत प्रतीत हो रहे

    हों। आसके पीछे यह तकम वनवहत ह ैक्रक मनमाने ढंग से वगरफ्तारी से स्ितंत्रता, विवध के शासन का एक मूलभूत ऄंग ह।ै

    ऄवधवनयम का दरुुपयोग: NCRB के अंकड़े दशामते हैं क्रक ऄत्याचार (वनिारण) ऄवधवनयम के तहत दजम 75% मामलों में अरोवपत व्यवक्त

    वनदोष सावबत हुए हैं या मामले िापस ले वलये गए हैं। यह ऄवधवनयम के दरुुपयोग को दशामता है।

    ऄनसुवूचत जावतयों और ऄनसुवूचत जनजावतयों (ऄत्याचार वनिारण) सशंोधन विधयेक, 2014 पर ससंद की स्थायी सवमवत न ेऄत्याचार

    ऄवधवनयम के तहत वगरफ्तारी के विरुद्ध सुरक्षा की अिश्यकता पर भी बल क्रदया था।

  • 8 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    वनणमय के विपक्ष में तकम

    यह वनणमय िंवचत एिं ऄत्यंत वपछड़े समुदाय को ऄवधकार प्रदान करने हतेु ऄवधवनयवमत काननू के क्रियान्ियन को कमजोर कर सकता ह।ै

    साथ ही यह वनणमय SC-ST समुदाय के वलए ईनके संिैधावनक ऄवधकारों, विशेषकर ऄनुच्छेद 17 के तहत ऄस्पृश्यता ईन्मूलन के

    ऄवधकार, से िंवचत होने का कारण भी बन सकता है।

    ऄवतररक्त प्रक्रियात्मक अिश्यकताएं, 1989 के ऄवधवनयम के सख्त प्रितमन को प्रभावित करेंगी। आस ऄवधवनयम के तहत अने िाले मामलों

    के पंजीकरण में पहले से ही ऄनवुचत देरी दखेी जाती ह;ै आस प्रकार यह वनणमय ऄवधवनयमन की प्रभािकाररता को और कम कर सकता है।

    शवक्तयों का पथृक्करण: न्यायालय विवध के दायरे या विधावयका के मंतव्य को विस्तार नहीं कर सकता है, क्योंक्रक यह विधावयका की

    शवक्तयों का ऄवतिमण होगा और पररणामस्िरूप न्यावयक ऄवतसक्रियता की वस्थवत ईत्पन्न हो जाएगी।

    ईन मामलों में दोषवसवद्ध की दर वनम्न हैं, वजनमें दबाि बनाया जाता ह ैतथा आस दर के वनम्न होने का एक ऄन्य कारण वनम्नस्तरीय जाचं

    और ऄवभयोजन पक्ष की ऄक्षमता भी है, क्योंक्रक गिाह ऐसे मामलों में ऄपना बयान बदल दतेे हैं। साथ ही, समय के साथ झूठे मामले दजम

    होने में कमी अइ ह ैऔर ऄनुसूवचत जावत / ऄनुसूवचत जनजावत ऄवधवनयम के तहत दोषवसवद्ध के मामलों में भी सुधार हुअ है।

    NCRB के अंकड़ों से पता चलता ह ैक्रक वपछले दस िषों (2007-2017) में दवलतों के विरुद्ध ऄपराधों में 66% की िृवद्ध हुइ है। आस वनणमय

    का प्रवतकूल प्रभाि दवलतों के विरुद्ध होने िाले ऄपराधों की वनम्न ररपोर्टटग के रूप में हो सकता है। आन ऄपराधों की ररपोर्टटग पहले से ही

    काफी कम होती ह।ै

    वनष्कषम

    ऄनुसूवचत जावतयों /ऄनुसवूचत जनजावतयों के ऄवधकारों तथा वनदोष व्यवक्तयों की सुरक्षा के मध्य संतुलन प्राप्त करने के वलए , ऄवभयुक्तों के

    बचाि हतेु ऄवधवनयम में एक ऄतंर्डनवहत प्रािधान के वलए संसदीय स्थायी सवमवतयों की मांग पर विचार क्रकया जाना चावहए। साथ ही

    दोषवसवद्ध की दरों के संबंध में यचताओं को कम करने के वलए अपरावधक न्याय प्रणाली में भी सुधार क्रकये जाने चावहए।

    1.4.राष्ट्रीय ऄल्पसखं्यक शकै्षवणक ससं्था अयोग

    (National Commission for Minority Education Institutions)

    सवुखयों में क्यों?

    हाल ही में, ईच्चतम न्यायालय ने कहा क्रक राष्ट्रीय ऄल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्था अयोग (NCMEI) को क्रकसी भी संस्थान को एक ऄल्पसंख्यक

    वशक्षा संस्थान का दजाम प्रदान करने की मूल क्षते्रावधकाररता प्राप्त ह।ै

    भारत में ऄल्पसखं्यक िगों को प्राप्त सिंैधावनक सरुक्षा

    ऄनचु्छेद 29

    भारत के राज्यक्षेत्र या ईसके क्रकसी भाग के वनिासी नागररकों के क्रकसी ऄनुभाग को, वजसकी ऄपनी विशेष भाषा, वलवप या संस्कृवत है,

    ईसे बनाए रखने का ऄवधकार होगा।

    राज्य द्वारा पोवषत या राज्य-वनवध से सहायता प्राप्त क्रकसी वशक्षण ससं्था में प्रिेश से क्रकसी भी नागररक को केिल धमम, मूलिंश, जावत,

    भाषा या आनमें से क्रकसी के अधार पर िंवचत नहीं क्रकया जाएगा।

    ऄनचु्छेद 30

    धमम या भाषा पर अधाररत सभी ऄल्पसंख्यक-िगों को ऄपनी रुवच के ऄनुसार वशक्षण संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का ऄवधकार

    होगा।

    क्रकसी ऄल्पसंख्यक-िगम द्वारा स्थावपत और प्रशावसत वशक्षण संस्थान की संपवत्त के ऄवनिायम ऄजमन के वलए ईपबंध करने िाली विवध

    बनाते समय, राज्य यह सुवनवश्चत करेगा क्रक ऐसी संपवत्त के ऄजमन के वलए ऐसी विवध द्वारा वनयत या ईसके ऄधीन ऄिधाररत रकम

    आतनी हो क्रक ईस खंड के ऄधीन प्रत्याभूत ऄवधकार वनबमवन्धत या वनराकृत न हो जाए।

    वशक्षण संस्थाओं को सहायता दनेे में राज्य क्रकसी वशक्षा संस्था के विरुद्ध आस अधार पर विभेद नहीं करेगा क्रक िह धमम या भाषा

    अधाररत क्रकसी ऄल्पसंख्यक-िगम के प्रबंध में है।

    ऄनुच्छेद 30 में ऄल्पसंख्यक िगों द्वारा बच्चों को ईनकी भाषा में वशक्षा प्रदान करने के ऄवधकार को भी सवम्मवलत कर वलया गया ह।ै

    ऄल्पसंख्यक शैवक्षक संस्थानों के प्रकार:

    o राज्य से सहायता तथा मान्यता प्राप्त

    o राज्य से केिल मान्यता प्राप्त

    o राज्य से न तो सहायता और न ही मान्यता प्राप्त

    पहले और दसूरे प्रकार के संस्थान पाठ्यिम वनमामण, ऄकादवमक मानकों, ऄनुशासन, स्िच्छता, रोजगार आत्याक्रद के सन्दभम में राज्य की

    विवनयामकीय शवक्त के ऄधीन हैं।

    तीसरे प्रकार के संस्थान ऄपने मामलों को प्रशावसत करने के वलए स्ितंत्र हैं परन्तु संविदा कानून, श्रम कानून, औद्योवगक कानून आत्याक्रद

    जैसे सामान्य कानूनों के संचालन के ऄधीन हैं।

  • 9 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    ऄन्य सबंवंधत तथ्य

    सिोच्च न्यायालय ने वनणमय क्रदया ह ैक्रक ऄल्पसंख्यक संस्थान में पररिर्डतत होने की आच्छा रखने िाले क्रकसी संस्थान को ‘ऄनापवत्त प्रमाण

    पत्र’ जारी करने की शवक्त केिल अयोग में वनवहत ह।ै

    आस वनणमय के ऄनुसार, अयोग को सभी चरणों में ऄल्पसंख्यक संस्थान की वस्थवत को वनर्ददष्ट करने का ऄवधकार प्रदान क्रकया जाएगा।

    सिोच्च न्यायालय ने कलकत्ता ईच्च न्यायालय के ईस वनणमय को खाररज कर क्रदया वजसके तहत फैसला क्रदया गया था क्रक ऄल्पसंख्यक दज़ाम

    घोवषत करने के वलए राष्ट्रीय ऄल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्था अयोग के पास कोइ मूल क्षेत्रावधकार नहीं है।

    NCMEI स ेसम्बवंधत तथ्य

    मानि संसाधन विकास मंत्रालय के ऄंतगमत NCMEI की स्थापना, 2004 में जारी एक ऄध्यादशे के तहत की गयी थी वजसे कालांतर में

    NCMEI ऄवधवनयम द्वारा प्रवतस्थावपत कर क्रदया गया।

    आस अयोग में एक ऄध्यक्ष तथा तीन ऄन्य सदस्य होते हैं; वजसमें

    o ऄध्यक्ष को ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चावहए तथा िह क्रकसी ऄल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखता हो।

    o सदस्य भी ऄल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखते हों तथा प्रवतष्ठा, क्षमता एिं सत्यवनष्ठा िाले व्यवक्त हों।

    कें द्र सरकार ने छह ऄल्पसंख्यक समुदायों को ऄवधसूवचत क्रकया है, जो क्रक मुवस्लम, इसाइ, वसख, बौद्ध, पारसी ि जैन हैं। हालांक्रक अज तक

    क्रकसी भाषाइ ऄल्पसंख्यक को ऄवधसूवचत नहीं क्रकया गया ह।ै

    आसवलए भाषाइ ऄल्पसंख्यक, अयोग के क्षेत्रावधकार से बाहर हैं।

    अयोग एक ऄधम-न्यावयक प्रावधकरण ह ैवजसे एक वसविल न्यायालय के ऄवधकार प्रदान क्रकये गये हैं।

    अयोग द्वारा क्रदए गए क्रकसी भी वनणमय के सम्बन्ध में क्रकसी िाद, अिेदन या कायमिाही पर विचार केिल संविधान के ऄनुच्छेद 226 ि

    227 के तहत ईच्च न्यायालय तथा ऄनुच्छेद 32 के तहत सिोच्च न्यायालय की ररट क्षते्रावधकाररता के ऄंतगमत क्रकया जा सकता ह।ै

    अयोग, ऄवधवनणमयात्मक तथा ऄनशुंसात्मक कायम करता है। जैसे:

    o आसे वनर्ददष्ट ऄल्पसंख्यकों के शैवक्षक ऄवधकारों से संबंवधत क्रकसी भी मामले पर कें द्र सरकार तथा राज्य सरकारों को परामशम दनेा।

    o ऄपनी पसंद के शैक्षवणक संस्थान की स्थापना करने तथा ईसके प्रशासन के ऄल्पसंख्यकों के ऄवधकार के ईल्लंघन या ईससे िंवचत क्रकये

    जाने के सम्बन्ध में क्रकसी ऄल्पसंख्यक संस्थान द्वारा प्रस्तुत की गयी यावचका पर या स्ितः संज्ञान (सुओ मोटो) से या संस्थान की ओर

    से क्रकसी व्यवक्त द्वारा की गयी वशकायत पर ऄथिा क्रकसी विश्वविद्यालय की संबद्धता से संबंवधत क्रकसी वििाद की जाचं करना।

    o ऄल्पसंख्यकों के शैवक्षक ऄवधकारों की सुरक्षा के वलए संविधान द्वारा या ईसके तहत, ऄथिा कुछ समय के वलए लागू क्रकसी कानून

    द्वारा प्रदान क्रकये गये सुरक्षा ईपायों की समीक्षा करना तथा ईनके प्रभािी कायामन्ियन के ईपायों की ऄनुशंसा करना।

    o ऄल्पसंख्यक प्रवस्थवत तथा ऄल्पसंख्यकों द्वारा स्थावपत ईनकी पसंद के संस्थानों को प्रोत्सावहत एिं संरवक्षत करने के ईपायों को वनर्ददष्ट

    करना।

    o ऄल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्थानों से संबंवधत कायमिमों तथा योजनाओं के प्रभािी कायामन्ियन के वलए ईपयुक्त सरकार को ऄनशुसंाएं

    प्रदान करना।

    अयोग को ईन मामलों में ऄपीलीय क्षेत्रावधकार भी क्रदया गया ह ैजहां राज्य सरकार ने ऄल्पसंख्यक संस्थान को स्थावपत करने के वलए

    NOC प्रदान करने से मना कर क्रदया हो।

    1.5. धमम पररितमन का ऄवधकार एक मलू ऄवधकार

    (Right to Convert is a Fundamental Right)

    सरु्डियों में क्यों?

    हाल ही में, सिोच्च न्यायालय द्वारा क्रकसी व्यवक्त के ‘धमम के चयन संबंधी ऄवधकार’ (Right to choose a religion) के विषय में वनणमय क्रदया

    गया।

    “धमम की स्िततं्रता का ऄवधकार” स ेसम्बवंधत सिंधैावनक प्रािधान:

    ऄनचु्छेद 25: लोक व्यिस्था, सदाचार और स्िास्थ्य तथा आस भाग के ऄन्य ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, सभी व्यवक्तयों को ऄंतः करण की

    स्ितंत्रता का और धमम के ऄबाध रूप से मानने, अचरण करने और प्रचार करने का समान ऄवधकार होगा।

    ऄनचु्छेद 26: लोक व्यिस्था, सदाचार और स्िास्थ्य के ऄधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्डमक संप्रदाय या ईसके क्रकसी ऄनुभाग को धार्डमक और

    परोपकारी प्रयोजनों के वलए संस्थानों की स्थापना और पोषण का, ऄपने धमम विषयक कायों का प्रबंध करने का तथा ऐसी संपवत्त का विवध के

    ऄनुसार प्रशासन करने का ऄवधकार होगा।

    ऄनचु्छेद 27: आस ऄनुच्छेद में िर्डणत क्रकया गया है क्रक क्रकसी भी व्यवक्त को ऐसे करों का संदाय करने के वलए बाध्य नहीं क्रकया जाएगा वजनके

    अगम क्रकसी विवशष्ट धमम या धार्डमक सम्प्रदाय की ऄवभिृवद्ध या पोषण में व्यय करने के वलए विवनर्ददष्ट रूप से विवनयोवजत क्रकए जाते हैं।

    ऄनचु्छेद 28: आस ऄनुच्छेद के तहत यह ऄवनिायम ह ैक्रक राज्य द्वारा वित्त पोवषत शैक्षवणक संस्थानों में कोइ धार्डमक वनदशे नहीं क्रदया जाएगा।

  • 10 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    ऄन्य सबंवंधत तथ्य

    वनम्नवलवखत ऄिलोकन 26 िषीय होम्योपैथी छात्रा हाक्रदया के िाद में सिोच्च न्यायालय द्वारा क्रदए गए वनणमय के भाग हैं। आस मामले में

    सिोच्च न्यायालय ने वनम्नवलवखत वनणमय क्रदया:

    o चयन का ऄवधकार (Right to choice): धार्डमक अस्था की स्ितंत्रता क्रकसी भी व्यवक्त की स्िायत्तता के वलए अिश्यक ह।ै अस्था का

    चयन व्यवक्त का बुवनयादी विषय है वजसके ऄभाि में धमम के चयन का ऄवधकार अधारहीन हो जाता है।

    o स्िततं्रता (Liberty): विश्वास और अस्था सम्बन्धी विषय (वजसमें क्रकसी भी धमम में विश्वास करना सम्मवलत ह)ै संिैधावनक स्ितंत्रता

    की मूल भािना में वनवहत हैं और यह संविधान विश्वास करने िालों के साथ-साथ ऄनीश्वरिाक्रदयों (agnostics) के वलए भी ईपलब्ध

    ह।ै

    o पहचान (Identity): पहनािा एिं भोजन, सोच एिं विचारधारा, प्रेम एिं जीिनसाथी चुनना अक्रद पहचान के केन्द्रीय पहलु हैं।

    जीिनसाथी के चयन में समाज की कोइ भूवमका नहीं होती है।

    o सिंैधावनक सरंक्षण (Constitutional Protection): संविधान प्रत्यके व्यवक्त की जीिन शैली या विश्वास (वजसका पालन िह करना

    चाहता ह)ै को बनाए रखने की क्षमता को सुरक्षा प्रदान करता है।

    सिोच्च न्यायालय ने कहा क्रक धमम के चयन और ऄपनी पसंद ऄनुसार वििाह करने का ऄवधकार साथमक ऄवस्तत्ि के मूलभूत भाग हैं। राज्य

    और "वपतृसत्तात्मक सिोच्चता" व्यवक्त के आस वनणमय में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

    यह सिोच्च न्यायालय के “प्रचार (propagate)” शब्द के संदभम में क्रकए गए पूिम वनिमचन में पररितमन करता है। पूिम वनिमचन के ऄनुसार

    आसका ऄथम ह ै"ऄपने धार्डमक वसद्धांतों का विस्तार करने हतेु क्रकसी भी व्यवक्त को ऄपने धमम को प्रसाररत करने या प्रचार करने का ऄवधकार

    प्राप्त ह"ै, परन्तु क्रकसी ऄन्य व्यवक्त को ऄपने धमम को पररिर्डतत करने का ऄवधकार आसमें शावमल नहीं है।

    वनष्कषम

    सिोच्च न्यायालय का यह वनणमय धमम की स्ितंत्रता और ऄंतःकरण की स्ितंत्रता को पुनजीवित करता है वजसे मानिावधकारों की सािमभौवमक

    घोषणा के तहत ऄंतरामष्ट्रीय कानून के ऄंतगमत मान्यता प्राप्त ह।ै आसके ऄवतररक्त सिोच्च न्यायालय द्वारा आस तथ्य को भी स्िीकार क्रकया गया क्रक

    ऐसे कुछ ऄहस्तांतरणीय ऄवधकार संपूणम मानिता को प्राप्त हैं। भारत भी मानिावधकारों की सािमभौवमक घोषणा का एक हस्ताक्षरकताम दशे ह।ै

    1.6. फेक न्यज़ू (भ्रामक समाचार)

    (Fake News)

    सरु्डियों में क्यों?

    हाल ही में, केन्द्रीय सूचना एिं प्रसारण मंत्रालय द्वारा फेक न्यूज़ (भ्रामक समाचार) पर ऄपने क्रदशा-वनदशे को िापस लेने के पश्चात् समाचार

    पोटमलों एिं मीवडया िेबसाआटों को वनयंवत्रत करने के वनयमों को तैयार करने हतेु एक सवमवत का गठन क्रकया गया ह।ै

    फेक न्यज़ू के बारे में

    फेक न्यूज़ ईन िबरों, कहावनयों, सूचनाओं, डाटा तथा ररपोटों को संदर्डभत करते हैं जो पूणमतः ऄथिा अंवशक रूप से भ्रामक होते हैं।

    फेक न्यूज़ क्रकसी भी विषय-िस्तु से सम्बंवधत हो सकते है:

    o िावणवज्यक रूप से प्रेररत सनसनीखेज सामग्री,

    o राष्ट्र-राज्य (नेशन स्टेट) द्वारा प्रायोवजत गलत सूचना,

    o ऄत्यवधक पक्षपातपूणम न्यूज साआट,

    o स्ियं सोशल मीवडया,

    o व्यंग्य ऄथिा नक़ल ईतारना।

    फेक न्यूज़ को मीवडया के विवभन्न माध्यमों, जैसे- यप्रट, आलेक्ट्रॉवनक और सोशल मीवडया के माध्यम से प्रचाररत क्रकया जा सकता ह।ै

    यद्यवप फेक न्यूज़ के विरुद्ध कुछ ऄप्रभािी चेक एिं बैलेंस मुख्य धारा की मीवडया में मौजूद हैं, क्रकन्तु सोशल मीवडया में आस प्रकार की कोइ

    व्यिस्था नहीं है।

    मानहावन का मुकदमा दायर करने, FIR दजम करने तथा वशकायत करने हतेु न्यूज़ िॉडकास्टसम एसोवसएशन (NBA), िॉडकायस्टग कंटेंट

    कंप्लेंट काईंवसल (BCCC), प्रेस कॉईवन्सल ऑफ़ आंवडया (PCI) आत्याक्रद जैसे केिल कुछ ही तंत्र मौजूद हैं।

    फेक न्यज़ू स ेसबंवंधत मदु्दे

    मीवडया में विश्वास: नागररक मुख्य धारा के मीवडया द्वारा प्रकावशत क्रकसी भी समाचार को सत्य मानते हैं तथा बहुत कम नागररक सोशल

    मीवडया पर प्रसाररत समाचारों की प्रामावणकता को जााँचने का प्रयत्न करते हैं।

    सामावजक सद्भाि पर प्रभाि: फेक न्यूज़ लोकतंत्र में मीवडया को प्राप्त स्ितंत्रता का ईपयोग करके गलत सूचना के प्रसारण हतेु ऄिसर

    प्रदान करते हैं जो समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। आन्हें वनम्नवलवखत संदभों में समझा जा सकता ह:ै

    o कुछ विवशष्ट व्यवक्तयों या विरोवधयों की छवि एिं चररत्र को हावन पहुाँचाने या ईन्हें बदनाम करने ऄथिा लोकवप्रयता प्राप्त करने हतेु

    गलत सूचनाओं के प्रसार के द्वारा जनमत को विचवलत करना।

  • 11 April/2018/0004 www.visionias.in ©Vision IAS

    o जनता तथा सरकार के मध्य ऄविश्वास की भािना ईत्पन्न करना, जैसे- आलेक्ट्रॉवनक िोटटग मशीन से छेड़छाड़ संबंधी समाचार जो

    तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण पर अधाररत थे।

    o दगंों तथा धार्डमक प्रतीकों ऄथिा इश्वर को ऄपमावनत करने संबंधी भ्रामक तस्िीरों का ईपयोग करके समदुायों के मध्य यहसा एि ंघणृा

    को बढ़ािा दनेा, ईदाहरण स्िरूप - मुजफ्फराबाद के दंगे; बंगलुरु जैसे स्थानों से ईत्तर-पूिी लोगों का पलायन, अक्रद।

    o सोशल मीवडया साआटों द्वारा भ्रामक ऄवधप्रचार के माध्यम से युिाओं में कट्टरता का प्रसार करना (Radicalization)।

    फेक न्यज़ू के वनयतं्रण स ेसबंद्ध चनुौवतयााँ

    मानक पररभाषा का ऄभाि: 'फेक न्यूज़' एक ऄस्पष्ट शब्द ह ैऔर ितममान समय में आसकी कोइ अवधकाररक पररभाषा ईपलब्ध नहीं है।

    विवनयमन का ऄभाि: मुख्य धारा के मीवडया द्वारा स्ि-विवनयमन बहुत हद तक ऄप्रभािी रहा है। फेक न्यूज़ को वनयंवत्रत करने हतेु सरकार

    द्वारा क्रकए गए क्रकसी भी प्रत्यक्ष प्रयत्न को मीवडया (लोकतंत्र का चौथा स्तंभ) की स्ितंत्रता का हनन माना जाता ह।ै

    सतंलुन प्रावप्त में करठनाइ: फेक न्यूज़ को वनयंवत्रत करने के प्रयासों द्वारा िैधतापरक जााँच-पड़ताल तथा स्रोत-अधाररत पत्रकाररता ऄथिा

    संविधान के ऄनुच्छेद 19 में सुवनवश्चत ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता को क्षवतग्रस्त नहीं क्रकया जाना चावहए। साथ ही, समाचारों में जानबूझकर

    की गयी छेड़छाड़ एिं ऐसे समाचार वजनके सत्य होने का विश्वास है, के मध्य ऄंतर क्रकया जाना चावहए।

    सोशल मीवडया पर फेक न्यज़ू का पता करना: आंटरनेट ईपयोगकतामओं (भारत में 35 करोड़ से ऄवधक) तथा सोशल मीवडया

    ईपयोगकतामओं (20 करोड़ से ऄवधक व्हाट्सएप ईपयोगकताम) की संख्या ऄत्यवधक विशाल होने के कारण फेक न्यूज़ की ईत्पवत्त का

    पता लगाना लगभग ऄसंभि हैं।

    अग ेकी राह

    नीवत का वनमामण करना: सरकार द्वारा फेक न्यूज़ को वनयंवत्रत करने के मुद्दों के संबंध में वहतधारकों की राय लेकर एक मसौदा तैयार करना

    चावहए। 'फेक न्यूज़' से संबंवधत भविष्य के क्रदशा-वनदशेों द्वारा 'फेक न्यूज़' को ही लवक्षत करना चावहए तथा 'फेक न्यूज़' के नाम पर मीवडया

    को वनयंवत्रत करने का प्रयत्न नहीं क्रकया जाना चावहए।

    विवनयामक ततं्र: PCI में सुधार करने के साथ आसे सशक्त बनाने की अिश्यकता ह ै ताक्रक यह एक ओर मीवडया और ऄवभव्यवक्त की

    स्ितंत्रता तथा दसूरी ओर जानने के ऄवधकार के मध्य संतुलन स्थावपत कर सके।

    जागरूकता: लोगों को फेक न्यूज़, ईनके प्रसार से ईत्पन्न होने िाले खतरों तथा आस प्रकार के क्रकसी भी तथ्य पर विश्वास करने में सािधानी

    बरतने के विषय में ऄिगत कराया जाना चावहए।

    प्रामावणक समाचार: प्रामावणक समाचार का प्रसार करने हतेु सोशल मीवडया पर सरकारी संगठनों के ऑक्रफवशयल ऄकाईंट भी मौजूद होने

    चावहए।

    फेक न्यूज़ के खतरे की रोकथाम हेतु सोशल मीवडया हाईसों को भी प्रयास करना चावहए। ईदाहरणाथम हाल ही में, फेसबुक द्वारा घोषणा की

    गइ ह ैक्रक कनामटक चुनािों के दौरान फेक न्यज़ू से मकुाबला करने हतेु ईसने एक भारतीय तथ्य-जांच एजेंसी बूम लाआि के साथ करार क्रकया

    ह।ै

    1.7. राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान

    (Rashtriya Gram Swaraj Abhiyan)

    सरु्डियों में क्यों?

    प्रधानमंत्री ने 24 ऄप्रैल, 2018 को पंचायती राज क्रदिस पर पुनगमरठत राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान का शुभारम्भ क्रकया।

    राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान (RGSA) का पररचय

    यह राजीि गांधी पंचायत सशवक्तकरण ऄवभयान का पुनसंरवचत संस्करण है।

    यह कें द्र द्वारा प्रायोवजत ऄवभयान ह ै वजसका ईद्देश्य ग्रामीण स्थानीय वनकायों को अत्मवनभमर, वित्तीय रूप स ेसशक्त तथा ऄवधक दक्ष

    बनाना है।

    आस योजना के केन्द्रीय घटकों में राष्ट्रीय स्तर की गवतविवधयां जैसे ‘तकनीकी सहायता ह