यूरियाcdn.cseindia.org/userfiles/nitrogen-pollution-hindi.pdfनह बन तब ग...

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यूरिया जीवन से जहि तक का सफि क ूरि के दिन लि गए ह? ह सवल इसदलए कद क दिस ूर ि ने कई गुण पैिव ि बढ़कि दकसन को गिगि दक, वही अब उनह खून के आंसू ल िह है। अब उपि कम हो िही है औि िमीन के बंिि होने की दिकत भी बढ़ती ि िही ह, इसदलए दकसन ूरि से तौब किने लगे ह। एक हदल अधन म पहली बि भित म नइोिन की सदत क मूलंकन दक ग है िो बतत है दक ूर ि के अतद िक इतेमल ने नइोिन च को बु िी तिह भदवत दक है। ह पविण औि सेहत को भी नुकसन पहुंच िह है। अदत संगोमल औि अदनल असवनी िम ने ूरि के तमम पहलु की पड़तल की आवरण कथा विकास चौधरी / सीएसई

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  • यरूियाजीवन से जहि तक का सफिक्या ्ूरि्या के दिन लि गए हैं? ्ह सवयाल इसदलए क्ोंदक दिस ्रूि्या न ेकई गणुया पिैयावयाि बढ़याकि दकसयानों को गिगि दक्या, वही अब उनहें

    खनू के आंस ूरुलया िहया है। अब उपि कम हो िही ह ैऔि िमीन के बिंि होन ेकी दिकया्तें भी बढ़ती िया िही हैं, इसदलए दकसयान ्ूरि्या से तौबया

    किन ेलग ेहैं। एक हयादल्या अध््न में पहली बयाि भयाित में नयाइट्ोिन की स्थिदत कया मूल्यंाकन दक्या ग्या है िो बतयातया ह ैदक ्ूरि्या के अत्दिक

    इ्तेमयाल न ेनयाइट्ोिन चक्र को बिुी तिह प्रभयादवत दक्या ह।ै ्ह प्यायाविण औि सहेत को भी नकुसयान पहंुचया िहया है। अदषित संगोमलया औि अदनल अस्वनी िमयाया न े्ूरि्या के तमयाम पहलओुं की पड़तयाल की

    आवरण कथा

    विकास

    चौध

    री / स

    ीएसई

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 22 28/12/17 9:48 AM

  • 03 लाख टन नाइट्रस

    ऑकसाइड भारत के खेत छोड़ते हैं जो

    परायावरण में पहुंचकर वैश्वक तापमान में इजाफा करता है

    120 से अधिक वैज्ाधनकों ने

    करीब 5 वर्षों की मेहनत के बाद भारत में नाइट्रोजन की

    श्थिधत का मूलरांकन “इधंडरन नाइट्रोजन असेसमेंट” में

    धकरा है

    6,610धकलोग्ाम रूरररा का औसत इ्तमेाल एक

    भारतीर धकसान धपछले पांच दशकों में कर चुका

    है कराेंधक रह स्ता पड़ता है

    67 प्रधतशत रूरररा धमट्ी, जल और परायावरण में पहुंच जाता है। करीब

    33 प्रधतशत रूरररा का इ्तेमाल ही फसल कर

    पाती है

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 23 28/12/17 9:48 AM

  • आवरण कथा“इस बार तो हमने अपने एक एकड़ के खेत में चार-चार बार यूररया डाला। आप माननए नक 200 नकलो से अनिक का यूररया खेतों में डाल निया, लेनकन उपज नपछले साल से भी कम ही नमल पाई। अब यह यूररया हमारे नलए जी का जंजाल बन गया है। खेतों में डालो तो मुसीबत है और न डालने का तो अब सवाल ही नहीं पैिा होता।” नबहार के बेगुसराय नजले के बखरी गांव के 82 साल के नकसान निंन पोद्ार की इस उलझन का इलाज निलहाल नकसी के पास नहीं है। यूररया उनके खेतों का वह जीवन बन गया है नजसकी िसल जहर के रूप में कट रही है।

    िेश को कनृि के क्ेत्र में मजबूत बनाने के उद्ेशय से यूररया का इसतेमाल हररत कांनत (1965-66) के बाि पूरे िेश में नकया गया। पोद्ार कहते हैं, “शुरुआती सालों में िेश के कई इलाकों में इस यूररया के बारे में नकसानों को नवनिवत जानकारी नहीं िी गई। बल्क रात में खेतों में यूररया की बोरी चुपचाप डाल िी जाती थी, इससे भी जब बात नहीं बनी तब गांव के सरपंच के माधयम से यूररया नकसानों को अपने-अपने खेतों में उपयोग करने के नलए आग्रह नकया गया।” सभी नकसानों से सरकार ने 1966-67 के िौरान यूररया का इसतेमाल करने

    की लगातार नचरौरी की। उनहोंने बताया नक हमें ऐसा लगा था नक खेती से होने वाला नुकसान यूररया के उपयोग से मुनािे में बिल जाएगा। हुआ भी ऐसा ही। पैिावार बढ़ने से हम खुश थे। हालानंक शुरू में हम डर भी रहे थे नक यूररया के इसतेमाल से कहीं हमारी िसल ही चौपट न हो जाए। हमने डरते-डरते पहली बार 1967 में एक एकड़ में केवल चार नकलो यूररया डाला। जब िसल तैयार हुई तो हमें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। कयोंनक पहली बार हम िेख रहे थे नक गेहूं की उपज हमें तीन गुना अनिक नमली।

    पोद्ार ने बताया नक पहले हम इतने ही खेत में गोबर की खाि डाल कर चार कुंतल (400 नकलो ग्राम) उपज लेते थे। अब हम िेख रहे थे नक सीिे 1200 नकलो से अनिक गेहूं की उपज नमली। हम सभी को यकीन नहीं हुआ नक यह कौन सा चमतकार है। मेरे खेतों में बढ़ी पैिावार को िेख गांव के अनय नकसानों ने भी अगले साल यानी 1968 में अपने-अपने खेतों में सहकारी सनमनतयों से नमलने वाला यूररया डाला और वे भी अपनी-अपनी िसल िेखकर गिगि थे। आनखर तीन गुना जयािा िसल पाकर कौन नकसान होगा जो खुशी से िूला नहीं समाएगा। िेखते ही िेखते यूररया खेतों का नायक

    बन चुका था। सरकार ने भी यूररया के प्रचार में कसर नहीं

    छोड़ी थी। ऊपर से चला यह प्रचार नीचे तक जोर मारने लगा और नकसान तो इसकी ऐसे तारीि करने लगे जैसे अभी नि्मी हीरो पेपसी और कोला की करते हैं। इसकी वजह भी तो थी। भारतीय नकसानों ने आनियत का िौर बहुत कम िेखा है। आसमान और जमीन से ननकलती उममीिों में झूलते थे। एक नकसान को भला कया चानहए? उसकी खेतों की उपज उसके कुटुंब का पेट भरे। और जब खेतों की सामानय उपज से तीन गुना जयािा नमलने लगा तो जैसे लगा नक िेवी अण्णपू्णाणा प्रसन्न हो गई।

    नाइट्ोजन पौिों के नलए जरूरी होती है कयोंनक यह पौल्टक ततवों को प्रनतबिंक बनाता है। कलोरोनिल और प्रोटीन नसंथेनसस के जररए पौिे इससे भोजन तैयार करते हैं। प्राकनृतक रूप से यह जरूरी पौल्टक ततव नमट्ी में डाइएजोट्ोि जीवा्णु के जररए मौजिू रहते हैं। ये िाल जैसे पौिों की जड़ों में उपलसथत होते हैं। लेनकन औद्ोनगक कांनत के बाि यह प्राकनृतक मौजूिगी पयाणापत नहीं रही कयोंनक यह बढ़ती आबािी को भोजन उपलबि कराने में असमथणा थी। इस कार्ण प्राकृनतक रूप से मौजिू नाइट्ोजन के पूरक के नलए कृनत्रम िटटीलाइजर का

    बबहार के बेगुसराय के सलौना गांव के 80 वर्षीय देवनंदन चौधरी के अनुसार, यूररया के उपयोग से कुएं और तालाब का पानी पीने लायक नहीं रह गया है

    आशुत

    ोष

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  • आविष्कार व्यका गयका। पोद्कार ्हते हैं व् िह विल्ुल अजीि समय

    थका। यूररयका डकालका तो खेतों में जका रहका थका लेव्न उपज ्का नशका हमें चढ़ रहका थका। और हम इस नशे ्ो िढ़काते चले गए। हमने अगले सकाल (1969) अपने खेतों में यूररयका ्ी मकात्का दोगुनी ्र दी कयोंव् अि हमें यह महसूस होने लगका थका व् वजतनका अवध् यूररयका डकालेंगे, उतनी उपज अच्ी होगी। चकार ्े सथकान पर इस िकार हमने पूरे दस व्लो यूररयका ए् ए्ड़ ्े खेत में डकाल वदयका। उममीद ्े मुतकावि् तीन से िढ़्र पकंाच गुनका यकानी 1200 ्े मु्कािले 2000 व्लोग्काम गेहूं ्ी उपज हमें वमली। देश में व्सकानों द्कारका 1975 ्े आसपकास अपने-अपने खेतों में तीन से पकांच गुनका यूररयका डकालनका ए् सकामकानय सी िकात िन्र रह गई थी। यह भी सही है व् उसी दर से उन्का उतपकादन भी िढ़ रहका रहका थका। लेव्न व्सकानों ्ो इस िकारे में सर्कार ्ी ओर से ्ोई अवध्ृत जकान्कारी देने ्का ्हीं दूर-दूर त् ्ोई ्काय्यक्रम नहीं थका। इस्का नतीजका यह हुआ व् व्सकान अपने खेतों में यूररयका ्का उपयोग लगकातकार िढ़का रहका थका।

    उनहोंने ितकायका व् हम तो यह सपने में भी नहीं सोच स्ते थे व् वजस यूररयका ्ो हम सोनका समझ िैठे हैं, िह धीरे-धीरे हमकारे खेतों ्ो िंजर ्र रहका है। 1985 से 1995 ्े िीच प्रवत ए्ड़ 125 व्लोग्काम यूररयका डकाल ्र उपज ्का दस से 12 गुनका िढ़कायका। यहीं से हम नीचे उतरने लगे। खेती में पैदकािकार घटने लगी जिव् हम यूररयका ्ी मकात्का सकाल दर सकाल िढ़काते गए। 1997 में हमने 175 व्लो यूररयका डकालका और पकायका कयका? िही िस दस गुनका। यकानी अि यूररयका िढ़काने से खेतों ्ी पैदकािकार नहीं िढ़ रही थी िल्् घट रही थी।

    1995 ्े िकाद से पैदकािकार लगकातकार घट रही है। चकालीस सकालों से यूररयका ्े अंधकाधुंध इसतेमकाल ने खेतों ्ो िंजर ्र वदयका है। आवखर ए् िकार विर से व्सकानों ने अपने खेतों में गोिर आवद ्ी खकाद डकालनी शुरू ्ी। इससे पैदकािकार तो नहीं िढ़ी लेव्न घटनी भी ्म हुई। लेव्न 2010 त् आते-आते अि गोिर ्ी खकाद भी आसकानी से नहीं उपलबध हो पका रही थी। आज ्े हकालकात ये हैं व् व्सकान ए् ए्ड़ ्े खेत में 225 से 250 व्लो यूररयका डकालने से भी िकाज नहीं आ रहे हैं। ्कारण व् हर हकाल में िही 15-20 सकाल पहले ्ी 12 गुनका उपज ्ी जो दर्कार है। अि तमकाम ्ोवशशें नका्काम सकावित हो रही हैं। पोद्कार पुरकाने समय ्ो यकाद ्रते हुए ितकाते हैं व् आज से 50 सकाल पहले हमकारे देश ्े प्रधकानमंत्ी हमसे यूररयका इसतेमकाल ्रने ्ी वचरौरी ्र रही थे। आज पकांच दश् ्े िकाद जि हमकारे खेत पूरी तरह से खतम होने िकाले हैं तो ित्यमकान

    प्रधकानमंत्ी हमसे (26 वदसिंर, 2017 ्ो प्रसकाररत मन ्ी िकात में) अि यूररयका ्का ्म से ्म उपयोग ्रने ्ी अपील ्र रहे हैं। यही नहीं अि सर्कार यूररयका पर सलबसडी भी ्म ्रती जका रही है। 2015-16 ्े िजट में यूररयका ्े वलए 72,438 ्रोड़ सलबसडी रखी गई थी, वजसे 2016-17 ्े दौरकान घटका्र 70,000 ्रोड़ रुपए ्र वदयका। पोद्कार ने ए् अनुमकान लगकाते हुए ितकायका व् वप्ले 50 सकालों में हमने ए् ए्ड़ ्े खेत में लगभग 6,610 व्लो यूररयका ्का इसतेमकाल ्र लगभग 5,337 ्ंुतल उपज (गेहूं ि चकािल) हकावसल ्ी।

    नाइट्रोजन का आकलन यह वसि्फ ए् अ्ेले व्सकान नंदन पोद्कार ्ी ्हकानी नहीं है। विडंिनका है व् ए् अ्ेलका व्सकान

    पकांच दश्ों में 6,610 व्लो ग्काम से अवध् यूररयका ्का इसतेमकाल ्र चु् का है। जिव् पूरे देश में अि त् 195.88 वमवलयन टन यूररयका ्का इसतमेकाल ्र चु् का है। अि इससे नकाइट्ोजन ्े दुषपररणकाम सकामने आने लगे हैं। नकाइट्ोजन प्रदूषण ्का आ्लन भकारत में पहली िकार 120 से अवध् िैज्कावन्ों ने व्यका है।

    इंवडयन नकाइट्ोजन ग्ुप में शकावमल इन िैज्कावन्ों ने अपने आ्लन में ्हका है व् वप्ले पकांच दश्ों से यूररयका ्े िेतहकाशका इसतमेकाल से नकाइट्ोजन प्रदूषण ्का िैलकाि तेजी से हो रहका है। दरअसल, सकाल 2004 में भकारत ्े सियंसेिी िैज्कावन्ों ्का समूह दो सिकालों से जूझ रहका थका। िे सिकाल थे- वमट्ी और पयका्यिरण में मौजूद नकाइट्ोजन देश में पकाररलसथवत्ी ्ो व्स प्र्कार प्रभकावित ्र रहका है और यह ्हकंा से आ रहका है। इन सिकालों ्े जिकाि ्े वलए उनहोंने खोज शुरू ्ी। उनहोंने भकारत में नकाइट्ोजन ्े आ्लन ्े वलए सकाल 2004 में सोसकायटी िॉर ्नजरिेशन ऑि नेचर (एससीएन) ्ी सथकापनका ्ी। आगे विचकार विमश्य ्े िकाद 2006 में एससीएन ्े अंग ्े रूप में इंवडयन नकाइट्ोजन ग्ुप (आईएनजी) ्ी गठन व्यका। इस्े तहत दस सकालों में विवभन्न क्ेत्ों में ्काम ्रने िकाले ्रीि 120 िैज्कावन् जुड़ गए। नकाइट्ोजन ्का स्ोत पतका लगकाने ्े वलए ्ृवष, िकागिकानी, म्ली पकालन, मुगगीपकालन और मिेवशयों ्े अलकािका उनहोंने भकारत में तेजी से िढ़ रहे पररिहन क्ेत् पर धयकान ्ेंवरित व्यका।

    वप्ले पकांच सकालों में विनका सर्कारी मदद ्े उनहोंने गहन शोध व्यका और नतीजका “इवंडयन नकाइट्ोजन असेसमेंट” ्े प्र्काशन ्े रूप में सकामने आयका। अगसत 2017 में इस ेए्सवियर ने प्र्कावशत व्यका है। भकारत में इस तरह ्का यह पहलका मू्यकां्न

    �ोतः उर्वरक साखं्यिकी 2014-15, साठरा ंससंकरण, भारत के उर्वरक सघं, नई दिल्ी

    संपूर्ण अवधि में कुल यूरिया की खपत

    195.88 धमधलयन टन

    यरूिया की लालसा 1960-61 स े2015-16 तक यूिररयिा की खपत कई गुणा बढ़ गई। अमरेरका और चीन के बाि यिरूरयिा की खपत के माम्े में भारत तीसर ेस्ान पर है

    15

    12

    9

    6

    3

    0

    कु् यिरू

    रयिा क

    ा खपत

    दमद्

    यिन ट

    1960-61 1970-71 1980-81 1990-91 2000-01 2010-11 2015-16

    नाइट्रोजन प्रदूषण बच्चों के लिए खतरनाकपीने ्े पकानी में नकाइटे्ट से ्ह महीने ्े त् िच्ों ्ो बलू िेिी वसंड्ोम हो स्तका है। इस िीमकारी से ग्वसत िच्ों ्े खून में ऑकसीजन ्ी मकात्का ्म हो जकाती है कयोंव् नकाइटे्ट हीमोगलोविन ्े प्रभकाि ्ो िकावधत ्र देतका है। हीमोगलोविन ऑकसीजन ्का िकाह् है। इससे िच्ों ्ो िकार-िकार डकायररयका हो स्तका है। यह शिसन वक्रयका ्ो भी िकावधत ्रतका है। यह स्कूली िच्ों में उच् रकतचकाप और बलड प्रशेर भी िढ़का देतका है।

    बिू बेबी लिंड्रोम

    www.downtoearth.org.in | 25

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 25 28/12/17 9:48 AM

  • कृषि उपज बढ़ान ेके षिए यरूिया का इस्ेमाि अब इ्ना बढ़ गया ह ैषक इससे आम िोगों औि पयायाविण की सेह् पि बिुा असि पड़ने िगा ह।ै भाि् के ्माम िाजय इसका अधंाधुधं इस्ेमाि कि िह ेहैं। उत्ति प्रदशे इसमें अववि है

    मर्ज बढ़ता गया जयों-जयों दवा ली

    अप्रैल 2015 स ेमार्ज 2016 तक भारत के वववभन्न राजयों में यरूरया की वबक्ी ( मीवरिक टन में )

    डीटीई/ सीएसई डेटा सेंटर द्ारा तैयारइंफोग्राफफक्स : रराज कुमरार फ्संहस्ोत : फडपरार्टमेंर ऑफ फरटीलराइज्स्स, फमफिस्ट्री ऑफ कफेमकल्स, पेट्ोकेफमकल्स एंड फरटीलराइजर करी फरटीलराइजर मॉफिरररंग फ्सस्रम करी वेब्सराइर - www.urvarak.co.inफवशलेषण : अफषित ्संगोमलराअफिक इंफोग्राफफक्स के फलए जराएं www.downtoearth.org.in/infographics

    अंडमान व ननकोबार द्ीप समूह400

    अप्ैल 2015 से मार्च 2016 तक की अवनि में भारत में यूररया की कुल नबक्ी

    29.57 नमनलयन टन

    असम390,939

    मनिपुर19,346

    महाराष्ट्र2,360,176

    केरल140,784

    कना्चटक1,463,005

    झारखंड235,054

    जममू और कशमीर154,844

    नहमारल प्देश73,082

    हररयािा 2,112,981

    गुजरात2,086,725

    गोवा3,641

    दमन और दीव150दादरा और नगर हवेली995

    छत्ीसगढ़845,057

    नबहार2,358,174

    आंध्र प्देश1,547,249

    नदलली10,792

    मेघालय1,720

    पंजाब3,086,046

    पांनडरेरी13,272

    ओनडशा587,153

    नागालैंड540

    नमजोरम3,500

    राजस्ान2,077,106

    तनमलनाडु1,117,679

    उत्राखंड360,419

    पशशरम बंगाल1,438,000

    उत्र प्देश5,798,991

    नरिपुरा23,515

    तेलंगाना1,257,352

    मधय प्देश 2,387, 499

    आवरण कथा

    26 | जनवरी 2018

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 26 28/12/17 9:48 AM

  • है। इसके निषकर्षों में 30 रिव्यू पेपस्स शानमल हैं।इसमें भाित में िाइट्रोजि की ्ात्ा का पयूिा

    लेखा जरोखा है। उतसज्सि के निनभन्न स्रोतों से लेकि उि तमाम प्रनरि्ाओं का नजरि है नजससे ्ह प्ा्सििण में पहुंचकि प्रदयूर्ण का कािण बिता है। इसमें िाइट्रोजि करो न्यूितम कििे के उपा् भी सम्मनलत हैं जरो बताते हैं नक स्रोत में इसतेमाल कम किके इसे काफी हद तक िरोका जा सकता है। इसके प्रकाशि के साथ ही भाित अमेरिका औि ्यूिरोपी् संघ के बाद तीसिा ऐसा देश बि ग्ा है नजसिे अपिे क्ेत् में िाइट्रोजि का प्ा्सििण पि प्रभाि का आकलि नक्ा है।

    मयूल्ाकंि बताता है नक भाित में िाइट्रोजि प्रदयूर्ण का अहम स्रोत कनृर् है। इसका अनिकांश भाग िाइट्रोजि फर्टीलाइजि (उि्सिक) खासकि ्यूरि्ा के अत्निक इसतेमाल से आता है। भाित में कृनर् फसलों में ्यूरि्ा कनृत्म फर्टीलाइजि का मुख् स्रोत है। मयूल्ांकि के अिुसाि, देश में उतपानदत कुल िाइट्रोजि फर्टीलाइजि में इसकी नहससेदािी 84 प्रनतशत है।

    भाित िे नपछले 60 सालों में ्यूरि्ा का अत्निक इसतेमाल नक्ा है नजससे कनृर् उतपादकता में कई गुणा बढरोतिी हुई है। 1960-61 में कुल िाइट्रोजि फर्टीलाइजि में ्यूरि्ा का अंश 10 प्रनतशत था जरो 2015-16 में बढकि 82 प्रनतशत हरो ग्ा। फर्टीलाइजि असरोनसएशि ऑफ इंनि्ा (एफएआई) के आंकड़ों के अिुसाि, भाित हि साल 148 लाख र्ि ्यूरि्ा की खपत किता है। मयूल्ाकंि के अिुसाि, ्यूरि्ा के इसतमेाल की िजह इसका ससता हरोिा है।

    ्यूरि्ा के इसतेमाल िे अब तक देश में खाद्य सिुक्ा करो सुनिम्चत कििे में ्रोगदाि नद्ा है। लेनकि इसिे भाित करो उलझि भिी परिमसथनत्ों में भी िाल नद्ा है। एक तिफ इसे ्यूरि्ा की जरूित है क्ोंनक नकसािों करो लगता है नक उिकी जमीि करो ्यूरि्ा की आदत हरो गई है। उनहें ्ह भी िि है नक अगि िसा्ि का इसतेमाल बंद कि देंगे तरो उतपादकता बेहद िीचे चली जाएगी। िहीं दयूसिी तिफ इसका अत्निक इसतेमाल प्ा्सििण करो िुकसाि पहुंचा िहा है नजसे नि्ंनत्त कििे की जरूित है। इस संबिं में उत्ति प्रदेश के गुनलसतािपिु गािं के 79 िर्टी् नकसाि सिबजीत नसंह चौहाि िे बता्ा, “अब तरो हमािी जमीि करो ्यूरि्ा की ऐसी आदत पड़ गई है जैसे देशभि के लरोगों करो चा् की लत लगी हुई है।” ्यूरि्ा के बेतहाशा प्र्रोग से देश में खाद्यान्न के मामले में तरो देश आतमनिभ्सि हरो ग्ा लेनकि उसके बानशंदों का शिीि कमजरोि हरो ग्ा। इस संबंि में गौतमबुद्ध िगि के ममयूिा गािं के ििमिीि नसंह बताते हैं, “्यूरि्ा के अत्निक प्र्रोग

    से खाद्यान्नों में परोर्ेनश्म की मात्ा कम हरो जाती है। परोर्ेनश्म उच्च िकतचाप करो नि्ंनत्त िखिे के साथ-साथ हद् करो भी सिसथ िखता है। िह कहते हैं देशभि में िकतचाप औि हद् िरोनग्ों नक संख्ा में तेजी से बढरोतिी िासति में हरित रिांनत का ही परिणाम है। उिका कहिा है नक इस रिांनत िे गेहयूं-िाि में तरो आशातीत उतपादि बढा्ा लेनकि दलहि क्ेत् इससे बुिी तिह से प्रभानित हुआ। जबनक हमािे देश में ्ह प्ररोर्ीि का एक प्रमुख स्रोत है। इसकी कमी के कािण नबहाि, झािखंि, छत्तीसगढ, मध् प्रदेश औि ओनिशा में कुपरोर्ण एक गंभीि समस्ा

    बि गई है। कुपरोर्ण के कािण क्् िरोनग्ों की संख्ा में भी इजाफा हरो िहा है।

    कृनर् में अिाज में इसतमेाल हरोिे िाला ्यूरि्ा सिा्सनिक प्रदयूर्ण फैलाता है। भाित में चािल औि गेहयूं का सबसे अनिक उतपादि नक्ा जाता है। किीब 370 लाख हेकर्े्ि में चािल औि 261 लाख हेकर्े्ि में गेहयूं की पैदािाि की जाती है। अतः ्े सिा्सनिक 69.3 प्रनतशत िाइट्रोजि का उपभरोग किते हैं। ्यूरि्ा के रूप में मौजयूद 33 प्रनतशत िाइट्रोजि चािल औि गेहयूं के पौिे िाइटे्र् (NO3) के रूप में प्र्रोग किते हैं। इसे िाइट्रोजि ्यूज एनफनशएंसी अथिा एि्यूई कहा जाता है। बाकी 67 प्रनतशत अंश नमट्ी में मौजयूद िहता है औि ्ह आसपास के िाताििण में पहुंच जाता है जरो प्ा्सििण औि सिास्थ् पि असि िालता है।

    िाइट्रोजि प्रदयूर्ण के कई रूप हैं। िाइट्ेर् के रूप में ्ह पािी करो प्रदयूनर्त किता है। ्ह िाइटे्र् जमीि की सतह पि घुल जाते हैं औि पािी के बहाि के साथ झीलों, मछनल्ों के तालाबों, िनद्ों औि अंततः समुद्र में पहुंचकि उसकी पारिमसथनतकी करो िुकसाि पहुंचाते हैं। इससे जिै निनििता करो भािी िुकसाि पहुंचता है। उदाहिण के नलए भाित के तर्ी् क्ेत्ों में ्ह समदु्री घास, शिैालों औि प्रिाल नभनत्त्ों करो क्नत पहुंचाता है। इस संबिं में मध् प्रदेश के भरोपाल से साठ नकलरोमीर्ि दयूि िासलाखडे़ी गािं के 74 िर्टी् नकसाि अशफाक अहमद बताते हैं, “अब हमें शहद बाजाि से खिीदिा पड़ता है जबनक पहले हमािे खेतों के आसपास लगे पडे़ों में ही मिुमकखी का छत्ता लगा हरोिा आम बात थी, लेनकि इस ्यूरि्ा के कािण

    भारत ने पिछले 60 सालों में यूररया का अतयपिक इसतेमाल पकया है पिससे कृपि उतिादकता में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है

    मवेशी छोड़ते हैं अमोनिया और िाइट्रस ऑकसाइडमिेशी भाित में अमरोनि्ा के सबसे बड़े उतसज्सक हैं। कुल उतसज्सि में मिेनश्ों का ्रोगदाि 79.7 प्रनतशत है। अमरोनि्ा एिरोसरोल के जरिए िाताििण करो प्रभानित किता है जरो सांस संबंिी बीमारि्ों का कािक है। ्ह नमट्ी करो अ्ली् बिाता है औि उसकी उतपादकता घर्ा देता है। मिेशी िाइट्स ऑकसाइि का भी उतसज्सि किते हैं जरो िैम्िक जलिा्ु परिित्सि में ्रोगदाि देता है। इसके कुल उतसज्सि में मिेशी 70.4 प्रनतशत ्रोगदाि देते हैं। भाित में उत्ति प्रदेश सबसे ज्ादा अमरोनि्ा (12.7 प्रनतशत) औि िाइट्स ऑकसाइि (13.1 प्रनतशत) छरोड़ता है।

    सांस की बीमाररयां

    विकास

    चौध

    री / स

    ीएसई

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    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 27 28/12/17 9:48 AM

  • आवरण कथाअब मधुमक्खी फसलों के फूलों पर बैठतखी हखी नहीं। इसके अलावा ्ेतों से केचुए व केकड़े आदि सब गायब हो गए हैं। यहां तक दक सालों हो गए हैं हमें अपने ्ेतों में रंग-दबरंगखी दततलखी को उड़ते हुए िे्े।” वह कहते हैं यह तो ्ेतों कखी बात हुई। यूररया कखी अदधकता के कारण मेरे गांव के पास से बहने वालखी पात्ा निखी से मछलखी तक गायब हो गई हैं। कयोंदक मानसून के समय हमारे ्ेतों से बाररश का पानखी बहकर नदियों में हखी जाता है और अपने साथ यूररया भखी बहा ले जाता है। इसके कारण इस निखी में अब मछदलयां ्तम हो गई हैं।

    23 शहरों में उच्च सघनता मूलयाकंन में पाया गया है दक नाइटे्ट केवल सतह के पानखी पर हखी असर नहीं डाल रहा बललक इससे भूदमगत जल भखी प्रिूदित हो रहा है। इस जल का मनुषय के सवास्थय से सखीधा संबंध है। यह प्रिूिण पाचनदरिया, हृिय-सवसन पर प्रभाव, पेट के कैंसर और दशशुओं को बलू बेबखी दसंड्ोम के रूप में प्रभादवत करता है। मूलयांकन के अनुसार, 21 राजयों के 387 दजलों के भदूमगत जल में नाइटे्ट भारतखीय मानक बयूरो (बखीआईएस) द्ारा तय मानकों (45 दमलखीग्ाम प्रदत लखीटर) से अदधक है। यह भखी पाया गया है दक 23 मेट्ोपोदलटन शहरों में नाइट्ोजन कखी उच्च सघनता है। जमशिेपुर में यह सबसे अदधक 450 दमलखीग्ाम प्रदत लखीटर है। दबहार के बेगुसराय के सलौना गांव के 80 विषीय िेवनंिन चौधरखी कहते हैं, “बखीते िशकों में लगातार अतयदधक मात्ा में यूररया के उपयोग से हमारे कुएं और तालाब का पानखी पखीने लायक नहीं रह गया है।”

    मलूयांकन में एक अधययन के हवाल ेस ेकहा गया है दक पजंाब, हररयाणा और उत्तर प्रिेश के कई दहससों में कुए ंऔर बोरवले के पानखी में नाइटे्ट कखी सघनता दवशव सवास्थय सगंठन (डबलयूएचओ) द्ारा तय सखीमा से अदधक है। कृदि सघनता वाले हररयाणा में यह सबस ेबितर ह।ै यहा ंकुएं के पानखी में नाइटे्ट कखी औसत मौजिूगखी 99.5 दमलखीग्ाम प्रदत लखीटर ह ैजबदक डबलयएूचओ कखी दनधाधाररत सखीमा 50 दमलखीग्ाम प्रदत लखीटर ह।ै पलशचमखी उत्तर प्रिेश के मजुफफरनगर के दकसान अदनल चौधरखी कहत ेहैं, “यह सहखी बात ह ैदक यहा ंकुओं के पानखी में नाइटे्ट कखी मात्ा बहतु अदधक हो गई ह ैऔर इसके कारण लोग अब परूखी तरह स ेटेप वाटर पर दनभधार हो गए हैं।”

    ममट्टी का स्ास्थ्यनाइट्ोजन प्रिूिण दमट्खी के सवास्थय को प्रभादवत करता है दजसके पररणामसवरूप फसलों कखी पैिावार कम हो जातखी है। फटषीलाइजरों के अतयदधक इसतेमाल से जमखीन अनुतपािक हो जातखी है। ऐसा

    “मितनटी िरूरत हो, फर्टीलाइिर का उतना इसततेमाल सुमनश्चत करें”

    दुमन्या में ्ते कौन सते महससते हैं िो नाइट्ोिन ्चक्र के र्ूर्नते के प्रमत सबसते अमिक सं्तेदनशटील हैं?िुदनया के सभखी महतवपूणधा क्ेत् इस गंभखीर नाइट्ोजन चरिण के टूटने कखी जि में हैं। यह उन िेशों कखी

    समसया है जो जखीवाशम ईंधनों पर अतयदधक दनभधार हैं और जहां बड़े पैमाने पर ्ेतखी होतखी है। भारत और िदक्ण एदशया दवशिे रूप से संवेिनशखील हैं कयोंदक यहां आबािखी और उपभोग कखी िर तेजखी से बढ़तखी जा रहखी है। एफएओ के अनुमान के मुतादबक, 2050 तक िदक्ण एदशया में उवधारकों के इसतेमाल कखी िर िुदनया में सबसे जयािा होगखी। यह िदक्ण पूवधा एदशया से भखी अदधक होगखी। उतसजधान के पैमाने और पाररलसथदतकखी कखी संवेिनशखीलता पर यह दनभधार करता है। इस मामले में भखी िदक्ण एदशया अहम है। दहमालय के जंगल और पहाड़ों पर नाइट्ोजन प्रिूिण के असर का ्ास अधययन नहीं हुआ है। इसके दनचले दहससे में गंगा का मैिानखी इलाका है जो शायि नाइट्ोजन वायु प्रिूिण का वैलशवक केंद्र है। इन जंगलों का पाररलसथदतक ततं् कुछ हि कर प्रभादवत हो सकता है। उपमहाद्खीप के िूसरे छोर पर नाइट्ोजन चरि के टूटने से प्रवाल दभदत्तयां अदत संवेिनशखील हैं।

    भम्ष्य में म्मभन्न पाररससथिमतकटी िैसते समुद्र, झटीलें ् िंगल नाइट्ोिन प्रदूषण सते कैसते दूमषत होंगते?एफएओ के अनुसार, िदक्ण एदशया में 2050 तक उवधारकों का प्रयोग िोगुना हो जाएगा। जब तक इस प्रिूिण को रोकने का उपाय नहीं दकया जाएगा, तब तक यह इन सभखी तंत्ों को दबगाड़ने का काम करेगा। आशंका है दक समुद्रों में मृत तटखीय क्ेत् बढ़ जाएंगे, जो मछदलयों को प्रभादवत करेंगे। इसके साथ हखी प्रवाल दभदत्तयों के अदतसंवेिनशखील प्रवास के दलए भखी ्तरा बनेंगे। झखीलों के साथ भखी ऐसा िे्ा जाएगा। उनके शैवाल कखी बढ़ोतरखी होगखी। पखीने के पानखी कखी गुणवत्ता पर असर पड़ेगा और उसकखी जैव दवदवधता भखी प्रभादवत होगखी। जंगलों में वनसपदत और एपखीफाइटस पर असर होगा। एपखीफाइटस वे पौधे होते हैं जो दकसखी पेड़ पर उगते और जखीदवत रहते हैं। इनमें शैवाल, फनधा, काई और िूसरे पौधे शादमल हैं। वतधामान में शैवाल इत् के दलए उगाया जाता है। यह वातावरण में अतयदधक नाइट्ोजन से प्रभादवत हो सकता है। नाइट्ोजन का अतयदधक प्रयोग दमट्खी को अमलखीय बना सकता है और उसमें जहरखीले हेवखी मेटलस बढ़ा सकता है। इस कारण पखीने के पानखी कखी गुणवत्ता ्राब हो सकतखी है। ये प्रभाव दनलशचत रूप से हवा कखी गुणवत्ता को पादटटिकुलेट मैटर (पखीएम) के सहयोग से और ्राब कर सकते हैं। अमोदनयम नाइटे्ट पादटटिकल इंसानखी सवास्थय को चुनौतखी िेंगे। वहीं नाइट्स ऑकसाइड (N2O) और अनय नाइट्ोजन दरियाएं वैलशवक तापमान पर प्रभाव डालेंगखी।

    क्या नाइट्ोिन को मन्यंमरित करके इसका ्ैसश्क ्चक्रण बहाल हो सकता है?भारत और दवकासशखील िेशों में हो रहखी तरककखी वैलशवक नाइट्ोजन चरिण को बहाल करने के दलए अदत महतवपूणधा है। इस क्ेत् में भारत िुदनया का प्रदतदनदधतव कर रहा है। हाल हखी में इंदडयन नाइट्ोजन असेसमेंट प्रकादशत कखी गई है, साथ हखी भारत ने नखीम कोटेट यूररया नखीदत के दलए प्रदतबद्धता जता चुका है। इस तरह भारत िो क्ेत्ों में अग्णखी भूदमका दनभा सकता है। पहला, िुदनया कखी सबसे बड़खी अथधावयवसथाओं में शादमल होने के कारण भारत में क्मता है दक वह वैलशवक नाइट्ोजन चरि पर असर डाल सकता है। िूसरा, भारत में इस मुद्े का समथधान करके नेतृतव प्रिान कर सकता है। वह िूसरे को नाइट्ोजन के बेहतर प्रबंधन के दलए प्रोतसादहत कर सकता है।

    इटंरनेशनल नाइट्रोजन इनीशशएशटव के अध्यक्ष माक्क सतन न ेभारत में नाइट्रोजन प्रदषूण की स्थिशत पर डाउन टू अथि्थ स ेबात की

    28 | जनवरी 2018

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  • इसलिए होता है क्योंलि लिट्टी से िंबे सि्य िे लिए िाब्बन िात्ा (िाब्बन िंटेंट) घट जातटी है जो इसिे स्ास्थ्य पर असर डाितटी है। पोषि तत्ों और जैल्ि खाद िो िदे्नजर रखते हुए फटटीिाइजरों िे उप्योग िें संतुिन बनाना जरूरटी है।

    िूल्यांिन िें एि अध्य्यन िे ह्ािे से िहा ग्या है लि रांचटी िें नाइट्ोजन फटटीिाइजर ने लिट्टी िें िाब्बन िटी िात्ा िूि िात्ा से 28 प्रलतशत ति िि िर दटी है जबलि नाइट्ोजन, फासफोरस, पोटलेश्यि और जलै्ि खाद ने सं्ुयकत रूप से खेत िे िाब्बन िें 2.9 प्रलतशत िटी ििटी िर दटी है। इस संबंध िें पालिसतान िे लसंध से ल्स्ालपत और अब राजस्ान िे अनूपगढ़ िे छ्यासटीजटी गां् िे गुरुदे् लसंह िहते हैं, “्ूयरर्या िे िगातार उप्योग से हिारे खेतों िटी लिट्टी िटी उ््बराशककत पूरटी तरह से खति हो गई है।

    जलवायु परिवर्तन में योगदान नाइट्ोजन िा दुषपररणाि िे्ि पानटी और लिट्टी ति हटी सटीलित नहीं है। नाइट्स ऑकसाइड (N2O) िे रूप िें ्यह ग्टीन हाउस गैस भटी है और ्ैक््ि जि्ा्यु परर्त्बन िें इसिा बडा ्योगदान है। 2007 िें इंलड्यन नेट्ि्क फॉर किाइिेट चेंज असेसिेंट िे अध्य्यन िे अनुसार, भारत िें फटटीिाइजरों िा नाइट्स ऑकसाइड िे उतसज्बन िें अहि ्योगदान है जबलि ्ाहनों से होने ्ािे प्रदूषण (55.53 गटीगाग्ाि ्या Gg)औद्ोलगि और घरिेू सटी्ेज (15.81Gg) िा भटी ग्टीनहाउस गैसों िे बढ़ने िें ्योगदान है।

    एससटीएन िे िुख्य संरक्षि और संस्ापि ्यशपाि अबरोि ने डाउन टू अ््ब िो बता्या, “ग्टीनहाउस गैस िे रूप िें िाब्बन डाई ऑकसाइड िे िुिाबिे नाइट्स ऑकसाइड 300 गुणा अलधि

    प्रभा्शािटी है। उनहोंने िहा, “इंटरग्न्बिेंटि पैनि ऑन किाइिेट चेंज और ्ूयनाइटेड नेशंस फ्ेि्ि्क िन्ेंशन ऑन किाइिेट चेंज द्ारा िाब्बन पर बहुत बहसें हुई हैं, अब हिें नाइट्स ऑकसाइड और नाइट्ोजन प्रदूषण पर बहुत ध्यान देने िटी जरूरत है। 2010 िें भारत िें िृलष से िुि नाइट्स ऑकसाइड उतसज्बन 1.4 िाख टन ्ा। 1950 िें सािाना उतसज्बन 60 गटीगाग्ाि प्रलत साि ्ा जो 2010 िें बढ़िर 300 गटीगाग्ाि प्रलत साि हो ग्या है। नेचर किाइिेट चेंज जन्बि िें प्रिालशत 2012 िे शोधपत् िे अनुसार, इसिे उिट ल््् िा िृलष से ्ालष्बि उतसज्बन 6400 गटीगाग्ाि है।

    भारत िे लिए दभुा्बग्य ्यह है लि िृलष, नाइट्ोजन प्रदूषण िा िे्ि एि स्ोत है। िूल्यांिन प्रिालशत िरने ्ािे आईएनजटी िे अध्यक्ष एन रघुराि बताते हैं, “सटी्ेज और जैल्ि ठोस िचरा

    यरूिया नाइट्रोजन का सबस ेबड़ा स्रोत ह।ै यह पयायाविण में कई रूपों में मौजदू िहता ह।ै ममट्टी, हवा औि पानटी में ममलकि सहेत औि पारिस्थिमतक तंत्र पि यह अपना प्रभाव डालता है

    यरूिया का चक्र

    ककसान : मकसान खते में जरो यूरिया डालता उसका 33 प्रमतशत फसल इ्तमेाल कितटी है औि बाकटी 67 प्रमतशत हवा, पानटी औि ममट्टी में चला जाता है

    भकूमगर जल : यरूिया नाइट्रेट के रूप में ममट्टी से भमूमगत जल में पहंुच जाता ह ैऔि उस ेप्रदमूित किता है

    नदी औि झील : यरूिया जब नदटी औि झटील में जाता ह ैतरो जलटीय वन्पमत में वमृधि किता ह ैऔि इस बाकटी प्रामणयों केा ऑकसटीजन नहीं ममल पाता

    समदु्र : यरूिया नदटी व झटीलों के माधयम स ेसमदु्र में पहुचं जाता है औि जलटीय जटीवों करो ममलन ेवालटी ऑकसटीजन कम कि दतेा है

    मछली पालन : मछमलयों के मलए जरूिटी ऑकसटीजन जलटीय वन्पमत इ्तमेाल कि लते ेहैं

    उद्ोग : औद्रोमगक इकाइयों से नाइट्रोजन नाइट्स ऑकसाइड व नाइट्रोजन डाईऑकसाइड के रूप में पयायाविण में पहुचंता है

    वाहन : नाइट्रोजन ऑकसाइड वाहनों के धएु ंस ेमनकलता है व सासं सबंधंटी बटीमारियों का कािण बनता है

    वन: बारिश व नमदयों से नाइट्रोजन वनों में पहुचंकि उनके प्राकृमतक सतंलुन औि जवै मवमवधता पि असि डालता है

    NR (प्रमतमरियाशटील नाइट्रोजन) 100

    NR 67

    NR 33

    NR

    NR

    बादल: पयायाविण में पहुचंा नाइट्स ऑकसाइड व नाइट्रोजन ऑकसाइड बारिश के जरिए वापस जमटीन पि आ जाता है

    ग्ालफ

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    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 29 28/12/17 12:15 PM

  • आवरण कथा

    “नाइट्रोजन के गरै कृषि उदगम पर ररोक लगान ेकी जरूरत ह”ै

    भारत का नाइट्रोजन प्रदूिण दुषनया से अलग कैसे है?नाइट्रोजन प्रदूषण स्रोत के यरोगदान के हिसाब से अलग-अलग देशों में अलग िरो सकता िै। कृहष, घरेलू एवं हनगमों के सीवेज से लेकर जीवाशम ईंधनों का इसतेमाल, वािन, उद्रोग और पराली में आग आहद इसके स्रोत िरो सकते िैं। नाइट्रोजन प्रदूषण के हलए सबसे बडा मानव हनहममित स्रोत खेतों का अप्रयुकत फर्टीलाइजर िै, चािे वि मूलरूप से जैहवक िरो या रासायहनक। भारत में हप्रहसजन कृहष अविनीय िै और फर्टीलाइजरों के सर्ीक इसतेमाल के हलए श्रम लागत अहधक िै। अतः हकसान

    फर्टीलाइजरों का अहधक इसतेमाल करते िैं। लेहकन फसलें फर्टीलाइजरों का पणूमि इसतेमाल निीं कर पातीं, इसहलए नाइट्रोजन प्रदूषण में उनका यरोगदान िरोता िै। अहधकांश प्रदूषण अनाजों से िरोता िै, जबहक दूसरे देशों जैसे चीन में बागवानी की फसलों और नगदी फसलों का सवामिहधक यरोगदान िरोता िै। यूररोप में यि चारे, मवेहशयों और पशुपालन से अहधक प्रदूषण िरोता िै। अफ्ीका का नकारातमक यरोगदान िै। इसका अरमि िै हक पयामिपत मात्ा में रासायहनक फर्टीलाइजरों, खाद उपलबध न िरोने से हकसान जमीन में जरो नाइट्रोजन उपलबध िै, उसका दरोिन कर रिे िैं हजससे हमट्ी की गुणवत्ा कम िरो रिी िै।

    कया हम खाद्य संरक्षण सुषनश्चित करने के साथ फर्टीलाइजरों के इसतेमाल और नाइट्रोजन प्रदूिण के बीचि तालमेल षबठा सकते हैं?

    िां। भारत में खाद् उतपादन उस हिसाब से निीं बढ़ रिा िै हजस अनुपात में फर्टीलाइजरों का उपभरोग िरो रिा िै। हपछले दरो दशकों में अनाज के उतपादन में नाइट्रोजन का यरोगदान कम िुआ िै। अनय कारकों पर धयान हदए हबना फर्टीलाइजरों का बढ़ता इसतेमाल फसलों की कम उतपादकता के रूप में िी देखने करो हमलेगा। पयामिवरण करो भी इसकी कीमत चुकानी िरोगी। हसंहचत के्त्ों जिां एक साल में कई फसलें उगाई जाती िैं, विां िमें नाइट्रोजन फर्टीलाइजरों के असंतहुलत इसतमेाल पर तक्कपूणमि संतुलन की जरूरत िै। िमें यि सुहनशशचत करना िरोगा हक सभी क्ेत्ों में हजतना जरूरी िै, उतना फर्टीलाइजर िी प्रयरोग हकया जाए, भले िी मानसून पर हनभमिर भूहम पर फर्टीलाइजरों के इसतेमाल में ररोडा इजाफा करना पड़े। सबसे अिम बात, िमें नाइट्रोजन के गैर कृहष स्रोतों पर ररोक लगाने की जरूरत िै जरो काफी तेज गहत से प्रदूषण बढ़ा रिा िै।

    कया भारत में नाइट्रोजन प्रदिूण के कृषि स्रोत पर प्रषतबंध लगाकर वैश्वक नाइट्रोजन चिक्रण पुनः सथाषपत हरो सकता है?भारत के आकार करो देखते िुए किा जा सकता िै हक भारतीय उतसजमिन अमेररका और चीन से काफी कम िै लेहकन हफर भी हवशव में इसका अचछा खासा यरोगदान िै। मामूली प्रहतबंध वैशशवक चलन पर खास प्रभाव निीं डालेंगे, लेहकन बड़े उपाय जरूर असर डाल सकते िैं। मसलन, िाल के दरो नीहतगत हनणमियों करो िी लीहजए। अहनवायमि हकया गया िै हक खुदरा बाजार में नीम करोऱ्ेड यूररया िी यूररया का एकमात् स्रोत िरोगा। यूररया के रैले का आकार भी दस प्रहतशत कम हकया जा रिा िै। एक ऐसे देश में हजसके खेत 3,00,000 र्न नाइट्स ऑकसाइड ग्ीनिाउस गैस छरोडते िैं, विां नीम करोऱ्ेड यूररया और अनय उपायों से इसे अहधकतम 1,00,000 र्न पर सीहमत हकया जा सकता िै। अगर ऐसा सच में िरो पाया तरो भारत वैशशवक उतसजमिन में उललेखनीय सुधार कर सकता िै।

    इडंियन नाइट्रोजन ग्रुप के अधयक्ष एन रघरुाम न ेभारत में नाइट्रोजन प्रदषूण की स्थिडत पर िाउन टू अथि्थ स ेबात की

    भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का दूसरा सबसे बडा स्रोत िै। हवकहसत देशों में ऐसा निीं िै कयोंहक विां सीवेज और ठरोस कचरा प्रबंधन के बेितर तंत् ने इससे िरोने वाले प्रदूषण पर लगाम लगा दी िै। बशलक इनसे परोषक ततवों की ररकवरी तक की जाती िै जबहक भारत में यि स्रोत तेजी से बढ़ रिे िैं। फर्टीलाइजरों के मुकाबले इनकी वहृधि दर चार गुणा अहधक िै।” वि भारत में औद्रोहगक और घरेलू सीवेज से नाइट्रोजन के पुनचमिक्रण पर जरोर देते िैं और फर्टीलाइजर के रूप में इसे इसतेमाल करने की वकालत करते िैं। उनके अनुसार, देश में इस तरि का अभयास करके 40 प्रहतशत फर्टीलाइजर की बचत की जा सकती िै।

    भारत का पररविन क्ेत् भी नाइट्रोजन प्रदूषण में अिम यरोगदान देता िै। नाइट्रोजन ऑकसाइड (NOx) के रूप में यि वायु में प्रदूषण का मुखय घर्क िै और यि सांस संबंधी बीमाररयों की वजि बनता िै। ओजरोन के जररए यि जलवायु पररवतमिन में पररोक् रूप से यरोगदान देता िै। वैशशवक ग्ीन िाउस प्रभाव के हलए यि 10-15 प्रहतशत हजममेदार िै। भारत में वािन अहधकतम 32 प्रहतशत नाइट्रोजन ऑकसाइड का उतसजमिन करते िैं। इसमें सडक यातायात का यरोगदान 28 प्रहतशत िै। हदलली में सडक पररविन का यरोगदान 66 से 74 प्रहतशत िै जरो ठंड में सममॉग के रूप में पररलहक्त िरोता िै।

    ऊजामि क्ेत् भी नाइट्रोजन ऑकसाइड और नाइट्स ऑकसाइड के उतसजमिन में अचछा खासा यरोगदान देता िै। 2010 में हबजली उतपादन से सबसे अहधक 11.68 गीगाग्ाम नाइट्स ऑकसाइड उतसहजमित िुआ। यि इस क्ेत् के कुल उतसजमिन (12.06 Gg) में करीब 97 प्रहतशत िै।

    नाइट्रोजन सीमा से कई गुणा अषधक यि भारतीय मूलयांकन अिम िै कयोंहक मनुषय धरती पर नाइट्रोजन की सीमा करो पार कर चुके िैं। साल 2009 में नेचर जनमिल में प्रकाहशत शरोध में जरोिेन रमॉकसट्मॉम ने हवहलयम सर्ीफन के सार पयामिवरण में परोषक ततवों, उतसजमिन एवं अनय मानव हनहममित पररवतमिनों की सीमा करो सराहपत हकया रा। इसके दायरे में रिकर मानवों की कई पीहढ़यां गुजर बसर कर सकती िैं।

    वतमिमान में ऑसट़्ेहलयन नेशनल यूहनवहसमिर्ी में सेवामुकत पयामिवरण प्ररोफेसर सर्ीफन ने डाउन र्ू अरमि करो बताया,“नाइट्रोजन की सालाना सीमा 44 ऱ्ेराग्ाम (Tg) हनधामिररत की री। उनिोंने बताया हक मुखय रूप से नाइट्रोजन का फर्टीलाइजर के रूप में इसतेमाल करीब 150 ऱ्ेराग्ाम प्रहत वषमि िै जरो धरती की सीमा से तीन गुणा जयादा िै। असल में फर्टीलाइजरों के माधयम से वैशशवक सतर

    30 | जनवरी 2018

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  • पर कृत्रिम नाइट्रोजन बायलॉत्जकल नाइट्रोजन त्िक्से्न (बीएनएि) ्से अत्िक हरो गया है। भारतीय मृदा त्िज्ान ्ंस्ान ्से जुड़े एिं मूलयांकन में यरोगदान दसेनसे िालसे डीएलएन राि कहतसे हैं, “बीएनएि और िर्टीलाइजर का िैश्िक अनुपात करीब 1.4:1 हरोगा।

    केत्मकल िर्टीलाइजर बीएनएि करो पीछ़े छरोडकर करीब 40 प्रत्तशत अत्िक हरो गए हैं।” उनहोंनसे आगसे कहा, “कुछ ्ाल पहलसे तक यह और अत्िक ्ा, त्िकत््त दसेशों में इ्में कुछ त्गरािर् हुई है कयोंत्क उन दसेशों नसे नाइट्रोजन िर्टीलाइजरों की राशत्नंग शुरू कर दी है।” अमसेररका नसे ्ाल 2012 में अपना नाइट्रोजन अ्से्मेंर् तैयार त्कया ्ा। इ्नसे दसेश में नाइट्रोजन के प्रबंिन के त्लए नीत्तयों में बदलाि का माग्ग प्रशसत त्कया। उदाहरण के त्लए नाइट्रोजन िर्टीलाइजरों के इसतसेमाल के त्लए अमसेररका में तीन बसेसर् मैनसेजमेंर् प्रैशकर््से् (BMPs)के ्सेर् हैं। इ्में भुट़्े जै्ी तमाम ि्लों के त्लए िर्टीलाइजरों के उपयरोग की दर, र्ाइत्मंग और तरीकों का धयान रखा गया है।

    मूलयाकंन के अनु्ार, दुत्नया के अलग-अलग त्हस्ों में कृत्ि अ््गवयिस्ा की प्रकृत्त और आबादी की ्ंसकृत्त खा्कर आहार के चलतसे नाइट्रोजन प्रदूिण के स्रोत अलग-अलग हरो ्कतसे हैं। उदाहरण के त्लए भारत में अनाज का उतपादन का इ्में यरोगदान ्ब्से अत्िक है, चीन में बागिानी पहलसे स्ान पर है जबत्क यूररोपीय दसेशों में मीर् और दूि के त्लए मिसेत्शयों का पालना ्ब्से ऊपर है।

    क्या है उपया्अपनसे त्ि्लसेिण के आिार पर ए््ीएन का ्ुझाि है त्क भारत ऐ्ी नीत्तयां बनाए त्ज््से उ्का एनयूई बढ़ ्के। ऐ्ा करके पया्गिरण, मनुषयों के सिास्थय और जलिायु पररित्गन पर नाइट्रोजन प्रदूिण के अ्र करो कम त्कया जा ्कता है। नाइट्रोजन का इसतसेमाल त्नयंत्रित करके इ्से कािी कम त्कया जा ्कता है। इ््से भारत ्रकार की ओर ्से िर्टीलाइजरों पर दी जानसे िालसे ्श््डी का भार कम हरोगा।

    1991 में अ््गवयिस्ा में उदारीकरण के बाद ्से अनय िर्टीलाइजरों ्से ्रकार नसे अपना त्नयरंिण

    हर्ा त्लया ्ा लसेत्कन यूररया त्ज्में ्ब्से अत्िक नाइट्रोजन हरोता है, उ्से अब तक पूरी तरह त्नयंत्रित त्कया जा रहा है। दू् रसे श्दों में कहें तरो ्रकार इ्के उतपादन, आयात और त्ितरण पर त्नयंरिण रखती है। ्रकार त्क्ानों करो यूररया खरीदनसे के त्लए अनुदान भी दसेती है। यह अनय िर्टीलाइजरों के मुकाबलसे ्सता पडता है, इ्त्लए त्क्ान इ्का खुलकर इसतसेमाल करतसे हैं। इ्का नतीजा यह त्नकलता है त्क त्मट्ी अनय परोिक ततिों ्से िंत्चत रह जाती है और इ््से उ्के सिास्थय पर नकारातमक अ्र पडता है।

    मूलयाकंन में पाया गया है त्क ्ंभात्ित त्िक्रय मूलय 78.8 अमसेररकी डॉलर प्रत्त र्न नाइट्रोजन िर्टीलाइजर के आिार पर नगद ्श््डी करीब 7 त्बत्लयन अमसेररकी डॉलर बनती है। इ््से दसेश के करदाताओं पर भारी बरोझ आ जाता है। िैज्ात्नकों का अनुमान है त्क भारत हर ्ाल करीब 10 त्बत्लयन अमसेररकी डॉलर के मूलय के नाइट्रोजन का प्रयरोग करता है। जबत्क नाइट्रोजन प्रदूिण का सिास्थय, पाररस्त्तकी और जलिायु पर पडनसे िाला भार प्रत्त िि्ग 75 त्बत्लयन अमसेररकी डॉलर के बराबर है। उनहोंनसे यह भी पाया है त्क अगर एनयूई में 20 प्रत्तशत ्ुिार त्कया जाए तरो िैश्िक सतर पर हर ्ाल करीब 170 त्बत्लयन अमसेररकी डॉलर का लाभ हरोगा।

    कया भारत िर्टीलाइजरों के जयादा इसतसेमाल के जररए खाद्य ्ुरक्ा और नाइट्रोजन प्रदूिण के दुषपररणामों के बीच ्ंतुलन स्ात्पत कर ्कता है। जानकार हां में जिाब दसेतसे हैं। रघुराम बतातसे हैं

    सड़कों से नाइट्रोजनभारत में पररिहन क्सेरि नाइट्रोजन ऑक्ाइड का ्ब्से बडा उत्ज्गक है। यसे भी ्ां् ्ंबंिी बीमाररयों के कारण हैं। 2007 में ्डक पररिहन ्से इ्का 86.8 प्रत्तशत उत्ज्गन हुआ है। ्डक पर चलनसे िालसे िाहन ट्क और लॉरी ्से ्ब्से जयादा 39 प्रत्तशत नाइट्रोजन ऑक्ाइड का उत्ज्गन हरोता है। भारतीय शहरों में चसेन्ै ्ब्से जयादा नाइट्रोजन ऑक्ाइड (353.67 त्मलीग्ाम प्रत्त िग्ग त्कलरोमीर्र) छरोडता है। दू् रसे नंबर पर बैंगलरोर (323.75 त्मलीग्ाम प्रत्त िग्ग त्कलरोमीर्र) है। यसे आंकड़े 2009 के हैं।

    “70 के दशक में केंद्र ने यूरिया के प्रयोग के लिए प्रोत्ालित लकया। उत्ादन में अप्रतयालशत वलृधि िुई। ऐ्ा िगा लक िम फ्ि उत्ादन में ्ब्े आगे िोंगे। िेलकन, कुछ ्ाि

    बाद इ्के नकािातमक प्रभाव ्ामने आने िग।े जमीन की उव्विक शक्त खतम िोने िगी। खाद के बगिै कुछ भी उगाना मुक्कि िो गया”

    - ्िबजीत ल्ंि, गुलिसता्ुि गांव,गौतमबधुिनगि, उत्ति प्रदेश

    “्ैदावाि बढ़न े्े िम काफी खशु थ।े कुछ ्ाि बाद िी ्ता चि गया लक यि मीठा जिि िै। आज कसथलत यि िै लक िमािे जमान ेमें लज् खते ्े अचछी ्ैदावाि िोती थी,

    आज उ् खते में फ्ि िगाना घाटे का ्ौदा िो गया िै। एक तिि ् ेकिें तो यरूिया का इसतेमाि कि िमन ेअ्न े्ैिों ्ि कुलिाडी मािी िै।” - गिुाब ल्ंि, ग्ेटि नोएडा, उत्ति प्रदेश

    वाहनों का यरोगदान

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  • आवरण कथा

    कि किस गकि से फर्टीलाइिरों िा इसिेमाल बढ़ रहा है, उस अनुपाि में उतपादन में इिाफा नहीं हो रहा। ऐसा इसकलए क्योंकि अन्य सीकमि िारि भी हैं। वह िहिे हैं, “कसंचाई व अन्य पोषि ितवों में सुधार किए कबना अगर फर्टीलाइिरों िो उप्योग बढ़िा रहिा है िो फसलों िी गुणवत्ा में कगरावर् दि्ज होगी।”

    सर्ीफन िहिे हैं, “हमें नाइट्ोिन और फासफोरस फर्टीलाइिरों िे िम प्र्योग से फसल उगाने िे िरीिे सीखने होंगे। ऐसा िरने िे कलए सबसे महतवपणू्ज उपा्य िो कप्रकसिन एग्ीिलचर (िृकष िी ऐसी व्यवस्ा किसमें पौधों िे कलए पोषण ितवों िो सही िरूरि िे अनुसार इसिेमाल कि्या िाए) िहा िािा है। इसमें पौधे िी िरूरि िो देखिे हुए सही सम्य में नाइट्ोिन िी सही मात्ा उप्योग में लाई िािी है। इससे िहां फर्टीलाइिर िी बबा्जदी नहीं होिी, वहीं फसलों िो भी नुिसान नहीं पहुंचिा। इससे वैश्वि नाइट्ोिन िा उप्योग िम होगा अ्वा वह ग्ह िी सीमा िे भीिर रहेगा। लेकिन कप्रकसिन एग्ीिलचर िेवल िुछ स्ानों पर ही अपनाई िािी है। इसिा कवसिार िरने िी िरूरि है।”

    इंर्रनेशनल नाइट्ोिन इनीकशएकर्व िे माि्क सिन िहिे हैं, “नाइट्ोिन फर्टीलाइिरों िे इसिेमाल िो िम िरिे और िैकवि खाद िे पुनच्जक्रण से भारिी्य किसानों िो सुरकषिि खाद्ान्न उतपादन िी बेहिर संभावना है। इससे लाभ भी होगा और सरिार िी बडी धनराकश िी भी बचि होगी। इस सम्य िाब्जन और नाइट्ोिन िी बचि िरने वाले अभ्यासों पर भी बहुि ध्यान देने िी

    िरूरि है। ऐसा िरिे बेहिर नाइट्ोिन प्रबंधन में मदद कमलेगी और कमट्ी िी संरचना में सुधार कि्या िा सििा है। सा् ही सूखे में लचीलापन, कमट्ी िे िर्ाव और अन्य िलवा्यु से संबंकधि खिरों िो िम कि्या िा सििा है।” उनिे अनुसार, इन िरीिों िो अपनािर भारि वैश्वि नाइट्ोिन प्रबंधन िे षिेत् में कव्व िी अगुवाई िर सििा है। भारि आईएनिी िे माध्यम से पहले से इस कदशा में िाम िर रहा है किसने मूल्यांिन प्रिाकशि कि्या है और इंर्रनेशनल नाइट्ोिन इनीकशएकर्व में दकषिण एकश्याई अध्या्य िी अगुवाई िी है।

    रघुराम िोर देिर िहिे हैं, “हमारी ररपोर््ट ने प्रमाकणि कि्या है कि हमारे पास वह वैज्ाकनि

    षिमिा है िो प्रकिकक्र्याशील नाइट्ोिन िा आिलन, स्ोि, प्रवाह