class-9.stjosephscoedkolar.in/study/9/class hindi12 may.pdf · 2020. 5. 12. · class-9....

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Class-9. Subject-Hindi पाठ- सखयां एवं सबद कव- कबीर दास - मानसरोवर सुभर जल, हंसा के ल कराǑहं मुネताफल मुネता चुगɅ , अब उड़ी अनत जाǑहं ।। भावाथ[ - मानसरोवर झील जल से भरȣ है उसमɅ हंस Đȧडा कर रहे हɇ वे मोǓतयɉ को चुगते हɇ , ऐसे आनंददायक èथान को छोड़कर कहȣं और नहȣं जाना चाहते हɇ मन Ǿपी सरोवर आनंद Ǿपी जल से भरा है उसमɅ हमारȣ जीवाラमा Ǿपी हंस वहार करते हɇ भाव यह अगर मनुçय ईæवर भिネत मɅ लȣन कर ले तो जो आनंद उसे मलेगा उससे वह ワत हो जाएगा _ Ĥेमी ढूंढत मɇ फरौ , Ĥेमी मले कोइ Ĥेमी को Ĥेमी मले , सब वष अम होई ।। भावाथ[ -- कबीर दास जी कहते हɇ कȧ मɇ सヘचे ईæवर Ĥेमी को ढूंढता फर रहा पर मुझे ऐसा कोई Ĥेमी नहȣं मला जो ईæवर का सヘचा Ĥेमी है सヘचे Ĥेमी को हȣ ईæवर मलता है , और जब ऐसा होता है तो मन कȧ बुराइयɉ का वष अヘछाइयɉ का अम बन जाता है अथा[त उसे अɮभुत आनंद कȧ Ĥािワत हो जाती है -- हèती चǑढ़ए 」ान कौ , सहज दुलȣचा डाǐर èवान Ǿप संसार है , भू ंकन दे झख माǐर ।। भावाथ[ -- कभी का मानना है सहज समाध ( レयान) का दुलȣ चा ǒबछाकर 」ान के हाथी कȧ सवारȣ करो अथा[त 」ान Ĥािワत के लए सहज समाध लगाओ तुàहारȣ आलोचना करने वाले यǑद ƣɉ के समान भɉकते समय बबा[द करते हɇ तो तुम ऐसे लोगɉ कȧ चंता मत करो अंत मɅ वे èवयं हȣ चुप हो जाएंगे -- पखापखी के कारनै , सब जग रहा भुलान Ǔनर पख होई के हǐर भजे , सोई संत सुजान ।। भावाथ[ -- कबीर दास जी कहते हɇ भारतीय समाज मɅ अनेक संĤदाय Ĥचलत है एक प「 को बह अヘछा मानकर समथ[न करते हɇ और लोग उसी संĤदाय का कɪटर वरोध करते हɇ इसी प「- वप「 के चネकर मɅ लोग अपने उɮदेश को भूल जाते हɇ इस प「- वप「 के चネकर मɅ पड़ने वाले अथा[त Ǔनçप「 होकर ईæवर कȧ आराधना करने वाले हȣ सヘचे संत है . Ǒहंदू मूआ राम कǑह , मुसलमान खुदाइ कहै कबीर सो जीवता , जो दुह के ǓनकǑट जाइ ।। भावाथ[ - कबीर दास जी कहते हɇ कȧ Ǒहंदू अपने धम[ को Įेçठ मानकर राम- राम जपते ラयु को Ĥाワत हो जाते हɇ वहȣं मुसलमान अपने धम[ को Įेçठ बताते खुदा- खुदा करके ラयु को Ĥाワत हो जाते हɇ अथा[त दोनɉ ने राम और खुदा के चネकर मɅ जीवन को åयथ[ कर लया कव उसी åयिネत का जीना साथ[क मानता है जो राम और खुदा के शネकर से ऊपर उठकर ईæवर कȧ भिネत करता है . काबा फǐर कासी भया, रामǑहं भया रहȣम मोट चून मैदा भया, बैǑठ कबीरा जीम ।। भावाथ[ - कबीर दास जी कहते है धाम[क संकȧण[ता मɅ फं सकर मɇ काबा और काशी , राम और रहȣम मɅ अंतर समझता था, कं तु धाम[क संकȧण[ता से ऊपर उठकर सोचने पर Ǒहंदू - मुसलमान के धाम[क èथल काशी और काबा मɅ कोई भेद नहȣं रह गया राम और रहȣ रहȣम का नाम एक समान पवğ बन गया अब तक मɇ िजसे मोटा आटा अथा[त खाने के अयोハय समझता था वहȣ मोटा आटा अब मैदे के समान ǒबãक बारȣक बन गया है और मɇ उसे खाते आनंद उठा रहा .- ऊंचे का जनमया, जे करनी ऊंच होइ सुबरन कलस सुरा भरा, साधु Ǔनंदा सोइ ।। भावाथ[ - कबीरदास जी कहते हɇ कोई åयिネत के वल अヘछे पǐरवार या खानदान मɅ पैदा होने से महान नहȣं बन जाता है इसके लए उसे अヘछे कम[ करना आवæयक है अथा[त åयिネत सफ[ ऊंचे मɅ जロम लेने से नहȣं बिãक अपने अヘछे कमɟ से महान बनता है सोने जैसीअラयंत मूãयवान धातु से बने पाğ मɅ यǑद शराब भर दȣ जाए तो भी साधु ( सマजन åयिネत) उसकȧ Ǔनंदा हȣ करते हɇ अथा[त èवण[ पाğ मɅ शराब भरने के कारण हȣ वह पाğ Ǔनंदनीय बन जाता है

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  • Class-9. Subject-Hindi पाठ-९ स�खयां एवं सबद क�व-कबीर दास १-मानसरोवर सभुर जल, हंसा के�ल करा�ह ं। म�ुताफल म�ुता चगु�, अब उड़ी हुई अनत न जा�ह।ं। भावाथ�-मानसरोवर झील जल से भर� है। उसम� हंस ��डा कर रहे ह� । वे मो�तय� को चगुत ेह�, ऐसे आनंददायक �थान को छोड़कर कह�ं और नह�ं जाना चाहत ेह�। मन �पी सरोवर आनदं �पी जल से भरा हुआ है ।उसम� हमार� जीवा�मा �पी हंस �वहार करत ेह� । भाव यह �क अगर मन�ुय ई�वर भि�त म� ल�न कर ले तो जो आनंद उसे �मलेगा उससे वह त�ृत हो जाएगा। २_�ेमी ढंूढत म� �फरौ , �ेमी �मले न कोइ। �ेमी को �ेमी �मले, सब �वष अमतृ होई ।। भावाथ�--कबीर दास जी कहत ेह� क� म� स�चे ई�वर �ेमी को ढंूढता �फर रहा हंू पर मझु ेऐसा कोई �ेमी नह�ं �मला जो ई�वर का स�चा �ेमी है ।स�चे �ेमी को ह� ई�वर �मलता है, और जब ऐसा होता है तो मन क� बरुाइय� का �वष अ�छाइय� का अमतृ बन जाता है अथा�त उसे अ�भतु आनंद क� �ाि�त हो जाती है। ३--ह�ती च�ढ़ए �ान कौ , सहज दलु�चा डा�र । �वान �प संसार है , भूकंन दे झख मा�र ।। भावाथ�--कभी का मानना है �क सहज समा�ध ( �यान) का दलु� चा �बछाकर �ान के हाथी क� सवार� करो अथा�त �ान �ाि�त के �लए सहज समा�ध लगाओ त�ुहार� आलोचना करने वाले य�द कु�� के समान भ�कत ेहुए समय बबा�द करत ेह� तो तमु ऐसे लोग� क� �चतंा मत करो ।अतं म� वे �वय ंह� चपु हो जाएंगे। ४--पखापखी के कारन ै , सब जग रहा भलुान। �नर पख होई के ह�र भजे , सोई संत सजुान।। भावाथ�--कबीर दास जी कहत ेह� �क भारतीय समाज म� अनेक स�ंदाय �च�लत है। एक प� को बहुत अ�छा मानकर समथ�न करत ेह� और कुछ लोग उसी स�ंदाय का क�टर �वरोध करत े ह�। इसी प�- �वप� के च�कर म� लोग अपने उ�देश को भलू जात ेह�। इस प�- �वप� के च�कर म� न पड़ने वाले अथा�त �न�प� होकर ई�वर क� आराधना करने वाले ह� स�चे सतं है ५. �हदं ूमआू राम क�ह , मसुलमान खदुाइ । कहै कबीर सो जीवता , जो दहंुु के �नक�ट न जाइ।। भावाथ� -कबीर दास जी कहत ेह� क� �हदं ूअपने धम� को �े�ठ मानकर राम- राम जपत ेहुए म�ृय ुको �ा�त हो जात ेह�। वह�ं मसुलमान अपने धम� को �े�ठ बतात ेहुए खदुा- खदुा करके म�ृय ुको �ा�त हो जात ेह� अथा�त दोन� ने राम और खदुा के च�कर म� जीवन को �यथ� कर �लया। क�व उसी �यि�त का जीना साथ�क मानता है जो राम और खदुा के श�कर से ऊपर उठकर ई�वर क� भि�त करता है। ६. काबा �फ�र कासी भया, राम�ह ंभया रह�म । मोट चनू मदैा भया, बै�ठ कबीरा जीम ।। भावाथ�-कबीर दास जी कहत ेहै �क धा�म�क संक�ण�ता म� फंसकर म� काबा और काशी ,राम और रह�म म� अतंर समझता था, �कंत ुधा�म�क संक�ण�ता से ऊपर उठकर सोचने पर �हदं-ू मसुलमान के धा�म�क �थल काशी और काबा म� कोई भेद नह�ं रह गया। राम और रह� रह�म का नाम एक समान प�व� बन गया। अब तक म� िजसे मोटा आटा अथा�त खाने के अयो�य समझता था वह� मोटा आटा अब मदेै के समान �ब�कुल बार�क बन गया है और म� उसे खात ेहुए आनंद उठा रहा हंू। ७.-ऊंचे कुल का जन�मया, जे करनी ऊंच न होइ। सबुरन कलस सरुा भरा, साध ु�नदंा सोइ ।। भावाथ�-कबीरदास जी कहत ेह� �क कोई �यि�त केवल अ�छे प�रवार या खानदान म� पदैा होने से महान नह�ं बन जाता है। इसके �लए उसे अ�छे कम� करना आव�यक है अथा�त �यि�त �सफ� ऊंचे कुल म� ज�म लेने से नह�ं बि�क अपने अ�छे कम� से महान बनता है सोने जसैीअ�यंत म�ूयवान धात ुसे बने पा� म� य�द शराब भर द� जाए तो भी साध ु(स�जन �यि�त) उसक� �नदंा ह� करत ेह� अथा�त �वण� पा� म� शराब भरने के कारण ह� वह पा� �नदंनीय बन जाता है।

  • सबद(पद) मोक� कहां ढंूढे बंदे, म� तो तरेे पास म�। ना म� देवल ना म� मसिजद, ना काबे कैलास म�। ना तो कौने कम� म�, नह�ं योग बरैाग म�। खोजी होय तो तरुत े�म�लह�, पाल भर क� तलास म�। कह� कबीर सनुो भई साधो, सब �वांसो क� �वांस म�। भावाथ�- ई�वर �वयं मन�ुय से कहता है �क हे मन�ुय, तमु मझु ेकहां ढंूढने का �यास कर रहे हो, म� तो त�ुहारे पास ह� हंू। म� (ई�वर) �कसी म�ंदर म� नह�ं रहता हंू और न ह� मि�जद म�। म� मसुलमान� के प�व� तीथ� �थल काबा और �हदंओु ंके प�व� �थल तथा भगवान �शव के �नवास �थल कैलाश पव�त पर भी नह�ं रहता हंू। मझु ेइन �थान� पर खोजना और मेरे �लए भटकना �यथ� है मझु े�कसी �वशषे �कार क� ��याओ ंतथा नाना �कार के कम�कांड से भी नह�ं पाया जा सकता है और ना योग साधना जसैी ��याओ ंसे। कुछ लोग अपनी घर-गहृ�थी तथा ससंार से वरैा�य लेकर मझु ेढंूढने का �यास करत ेह� ।जो �यथ� है यह सब तो �दखावट� ��याएं ह�। अगर कोई मझु ेस�चे मन से खोजने वाला हो तो म� एक �ण मा� क� तलाश म� ह� �मल सकता हंू। अथा�त पल भर म� दश�न दे सकता हंू कबीर कहत ेह� �क हे सतंो, �ानी प�ुष�, सनुो । जसेै हर �ाणी के भीतर सांसे समाई है, उसी �कार ई�वर भी सभी �ा�णय� म� �या�त है, उसे बाहर नह�ं, अपने अदंर खोजने क� आव�यकता है। -��न उ�र १. मानसरोवर से क�व का �या आशय है? उ�र=मानसरोवर �त�बत म� ि�थत एक झील है ,िजसे �हदंओु ंका प�व� तीथ� भी माना जाता है तथा िजसम� हंस आनंद पवू�क ��ड़ा करत ेहुए मोती चगुत ेरहत ेह�। क�व ने मन को मानसरोवर कहा है। मन �पी प�व� सरोवर िजसम� जीवा�मा �पी हंस �भ ुभि�त म� ल�न हो आनंद के मोती चगुतरेहत ेह�। २. क�व ने स�चे �ेमी क� �या कसौट� बताई है? उ�र=क�व ने स�चे �ेमी क� कसौट� बतात ेहुए कहा है �क वह �दन- रात ई�वर �ाि�त म� लगा रहता है। वह सांसा�रक मोह -माया से दरू रहता है। ई�वर के �मलने पर मन क� सभी बुराइयां अ�छाइय� म� बदल जाती है। ३. इस ससंार म� स�चा सतं कौन कहलाता है? उ�र=इस ससंार म� स�चा संत वह� है जो �कसी भी मत और सं�दाय से �नरपे� होकर ई�वर क� भि�त म� ल�न रहता है।सांसा�रक मोह- माया , लोभ, लालच, छल- कपट से दरू रहता है। वह राम रह�म काबा काशी हो एक समान समझता है। ४. अ�ंतम दो दोहे के मा�यम से क�व ने �कस तरह क� सकं�ण�ता क� और संकेत �कया है? उ�र= दो दोह� के मा�यम से कबीर ने 2 �न�न सकं�ण�ता क� ओर सकेंत �कया है- (1) अपने मत या सं�दाय को सव�प�र बताने तथा दसूरे मत या स�ंदाय क� �नदंा करने क� सकं�ण�ता। (2) ऊंचे कुल खानदान म� सयंोगवश पैदा हो जाने पर अपने कुल और जा�त को �े�ठ मानकर घमडं करने क� संक�ण�ता। ५.�कसी भी �यि�त क� पहचान उसके कुल से होती है या उसके कम� से? तक� स�हत उ�र द�िजए। उ�र=�कसी भी �यि�त क� पहचान उसके कम� से होती है, कुल से नह�ं। ऊंचे कुल म� ज�म लेने वाला य�द नीच कम� करता है तो वहां �नदंा का पा� है। इसके �वपर�त कोई �यि�त �न�न म� लेकर भी अ�छे काम करता है तो उसे अपने कम� से पहचान �मलती है। कोई उसक� कुल जा�त नह�ं पूछता। ६. का�य स�दय� �प�ट क�िजए- ह�ती च�ढ़ए �ान कौ,सहज दलु�चा बा�रश।

  • �वान �प ससंार है ,भकंून दे झख मा�र। उ�र=का�य स�दय�-�ान का मह�व बतात ेहुए कबीर जी ने �ान �ा�त करने पर बल �दया है। उनके अनसुार �ान �ाि�त सहज साधना �वारा करनी चा�हए साथ ह� आलोचक� क� परवाह ना करत ेहुए आगे बढ़ना चा�हए। (१) �पक अलकंार का �योग है। जसेै �ान �पी हाथी, सहज साधना �पी दल�चा , �वान �पी संसार। (२) भकंून दे झख मा�र महुावरे का �योग (३) सध�ुकड़ी भाषा का �योग है। ७. मन�ुय ई�वर को कहां-कहां ढंूढता �फरता है? उ�र=मन�ुय ई�वर को ससंार म� अनेक �थान� पर ढंूढता-�फरता है। वह (ई�वर को म�ंदर, मि�जद ,गु��वारे आ�द )�थान� म� ढंूढता है। अपने- अपने तीथ� �थान� काशी ,काबा ,कैलाश जसेै �थान� म� खोजता है। मन�ुय योग जसैी अनेक साधना तथा अनेक पजूा प�ध�तय� के �वारा ई�वर को खोजता है। ८. कबीर जी ने ई�वर �ाि�त के �लए �कन �च�लत �व�वासो का खंडन �कया है? उ�र=कबीर जी ने ई�वर �ाि�त के �न�न �च�लत �व�वास� का खंडन �कया है- कबीर जी ने �च�लत �व�वास� का खंडन करत ेहुए कहा है �क ई�वर ना तो मं�दर, मि�जद ,काबा , काशी म� ह� और न ह� कम�कांड तथा योग साधना से �मलता है तथा बैरागी बनने से भी ई�वर क� �ाि�त नह�ं होती है यह सब ढ�ग है और �यथ� का �दखावा है। ९. कबीर जी ने ई�वर को सब �वांस�क� �वांस म� �य� कहा है? उ�र-ई�वर घट-घट म� �या�त है। वह इस ससंार के हर �ाणी क� सांस� म� समाया हुआ है। इस�लए कबीर जी ने ई�वर को सब �वांस� क� �वांस म� कहा है।