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कफीयदास: जीवन ऩरयचम by Dr. Kamraj Sindhu Assistant Professor Directorate of Distance Education Kurukshetra University Kurukshetra For B.A,Part-1(Hindi )

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कफीयदास: जीवन ऩरयचम

by

Dr. Kamraj Sindhu

Assistant Professor

Directorate of Distance Education

Kurukshetra University Kurukshetra

For B.A,Part-1(Hindi )

ऩूया नाभ सॊत कफीयदास जन्भ सन 1398 (रगबग) जन्भ बूमभ रहयताया तार, काशी

भतृ्मु सन 1518 (रगबग) भतृ्मु स्थान भगहय, उत्तय प्रदेश अववबावक नीरु औय नीभा ऩति/ऩत्नी रोई सॊिान कभार (ऩुत्र), कभारी (ऩतु्री)

कभम बूमभ काशी, फनायस कभम-ऺेत्र सभाज सुधायक कवि

भुख्म यचनाएॉ साखी, सफद औय यभैनी ववषमसाभाजजक

बाषा अिधी, सधुक्कडी, ऩॊचभेर खखचडी मिऺाननयऺय नागरयकिा बायतीम

चौदह सौ ऩचऩन सार गए चॊद्रवाय एक ठाठ ठए।जेठ सुदी फयसामि को ऩूयनभासी प्रगि बए।

जीवन ऩरयचमकफीय के जन्भ के सॊफॊध भें अनेक ककॊ वदन्न्िमाॉ हैं। कुछ रोगों के अनुसाय वे जगद्गुरु याभानन्द स्वाभी के आिीवामद से कािी की एक ववधवा ब्राह्भणी के गबम से उत्ऩन्न हुए थे। ब्राह्भणी उस नवजाि मििु को रहयिाया िार के ऩास पें क आमी। उसे नीरु नाभ का जरुाहा अऩने घय रे आमा। उसीने उसका ऩारन-ऩोषण ककमा। फाद भें मही फारक कफीय कहरामा। कतिऩम कफीय ऩन्न्थमों की भान्मिा है कक कफीय का जन्भ कािी भें रहयिाया िाराफ भें उत्ऩन्न कभर के भनोहय ऩुष्ऩ के ऊऩय फारक के रूऩ भें हुआ। एक प्राचीन ग्रॊथ के अनुसाय ककसी मोगी के औयस िथा प्रिीति नाभक देवाङ

कुछ रोगों का कहना है कक िे जन्भ से भुसरभान थे औय मुिािस्था भें स्िाभी याभानन्द के प्रबाि से उन्हें हहॊद ुधभम की फातें भारूभ हुईं। एक हदन, एक ऩहय यात यहते ही कफीय ऩञ्चगॊगा घाट की सीह़िमों ऩय गगय ऩड।े याभानन्द जी गॊगास्नान कयने के लरमे सीह़िमाॉ उतय यहे थे कक तबी उनका ऩैय कफीय के शयीय ऩय ऩड गमा। उनके भुख से तत्कार याभ-याभ' शब्द ननकर ऩडा। उसी याभ को कफीय ने दीऺा-भन्त्र भान लरमा औय याभानन्द जी को अऩना गरुु स्िीकाय कय लरमा। कफीय के ही शब्दों भें- हभ कासी भें प्रकट बमे हैं, याभानन्द चेतामे l

जन्भस्थान

कफीय के जन्भस्थान के सॊफॊध भें भत हैं : भगहय, काशी भगहय के ऩऺ भें मह तकम हदमा जाता है कक कफीय ने अऩनी यचना भें िहाॉ का उल्रेख ककमा है : "ऩहहरे दयसन भगहय ऩामो ऩुनन कासी फसे आई अथामत ्काशी भें यहने से ऩहरे उन्होंने भगहय देखा। भगहय आजकर िायाणसी के ननकट ही है औय िहाॉ कफीय का भक़फया बी है।

मिऺा

कफीय फड ेहोने रगे। कफीय ऩ़ेि-लरखे नहीॊ थे- अऩनी अिस्था के फारकों से एकदभ लबन्न यहते थे। भदयसे बेजने रामक साधन वऩता-भाता के ऩास नहीॊ थे। जजसे हय हदन बोजन के लरए ही गचॊता यहती हो, उस वऩता के भन भें कफीय को ऩ़िाने का विचाय बी न उठा होगा। मही कायण है कक िे ककताफी विद्मा प्राप्त न कय सके। भलस कागद छूिो नहीॊ, क़रभ गही नहहॊ हाथ।ऩोथी ऩ़िी- ऩ़िी जग भुआ, ऩॊडडत बमा न कोई।ढाई आखय पे्रभ का ऩ़ेि सो ऩॊडडत होम।।

वैवाहहक जीवन

कफीय का वििाह िनखेडी फैयागी की ऩालरता कन्मा 'रोई' के साथ हुआ था। कफीय को कभार औय कभारी नाभ की दो सॊतान बी थी।जफकक कफीय को कफीय ऩॊथ भें, फार- ब्रह्भचायी औय वियाणी भाना जाता है। इस ऩॊथ के अनुसाय काभात्म उसका लशष्म था औय कभारी तथा रोई उनकी लशष्मा। रोई शब्द का प्रमोग कफीय ने एक जगह कॊ फर के रुऩ भें बी ककमा है। िस्तुत् कफीय की ऩत्नी औय सॊतान दोनों थे। एक जगह रोई को ऩकुाय कय कफीय कहते हैं :-कहत कफीय सुनहु ये रोई।हरय बफन याखन हाय न कोई।मह हो सकता हो कक ऩहरे रोई ऩत्नी होगी, फाद भें कफीय ने इसे लशष्मा फना लरमा हो।

आयॊब से ही कफीय हहन्द ूबाि की उऩासना की ओय आकवषमत हो यहे थे। अत: उन हदनों जफकक याभानॊद जी की फडी धूभ थी, अिश्म िे उनके सत्सॊग भें बीसजमभलरत होते यहे होंगे। याभानुज की लशष्म ऩयॊऩया भें होते हुए बी याभानॊद जी बजक्त का एक अरग उदाय भागम ननकार यहे थे जजसभें जानत-ऩाॉनत का बेद औय खानऩान का आचाय दयू कय हदमा गमा था। अत: इसभें कोई सॊदेह नहीॊ कक कफीय को ‘याभ नाभ’ याभानॊद जी से ही प्राप्त हुआ। ऩय आगे चरकय कफीय के ‘याभ’ याभानॊद के ‘याभ’ से लबन्न हो गए। अत: उनकी प्रिजृत्त ननगुमण उऩासना की ओय दृ़ि हुई।

सॊत" शब्द सॊस्कृत "सत"् के प्रथभा का फहुिचनाॊत रूऩ है, जजसका अथम होता है सज्जन औय धालभमक व्मजक्त। हहॊदी भें साधु ऩुरुषों के लरए मह शब्द व्मिहाय भें आमा। कफीय, सूयदास, गोस्िाभी तरुसीदास आहद ऩुयाने कविमों ने इस शब्द का व्मिहाय साधु औय ऩयोऩकायी, ऩुरुष के अथम भें फहुराॊश: ककमा है औय उसके रऺण बी हदए हैं। मह आिश्मक नहीॊ कक सॊत उसे ही कहा जाए जो ननगुमण ब्रह्भ का उऩासक हो। इसके अॊतगमत रोकभॊगरविधामी सबी सत्ऩुरुष आ जाते हैं, ककॊ तु आधुननक कनतऩम साहहत्मकायों ने ननगुमखणए बक्तों को ही "सॊत" की अलबधा दे दी औय अफ मह शब्द उसी िगम भें चर ऩडा है।

भूजत्तम ऩूजा को रक्ष्म कयते हुए उन्होंने एक साखी हाजजय कय दी-

ऩाहन ऩूजे हरय मभरैं, िो भैं ऩजूौंऩहाय।था िे िो चाकी बरी, जासे ऩीसी खाम सॊसाय।।

ववचाय उन्होंने जो व्मॊग्मात्भक प्रहाय ककए औय अऩने को सबी ऋवषमों भुतनमों से आचायवान ्एवॊ सच्चरयत्र घोवषि ककमा, उसके प्रबाव से सभाज का तनम्नवगम अप्रबाववि न यह सका एवॊ आधुतनक ववदेिी सभ्मिा भें दीक्षऺि एवॊ बायिीम सभ्मिा िथा सॊस्कृति से ऩयाङ्भुख कतिऩम जनों को उसभें सच्ची भानविा का सॊदेि सुनने को मभरा।यवीॊद्रनाथ ठाकुय ने ब्रह्भसभाजी ववचायों से भेर खाने के कायण कफीय की फातनमों का अॊगे्रजी अनुवाद प्रस्िुि ककमा औय उससे आजीवन प्रबाववि बी यहे। कफीय की यचना भुख्मि: साखखमों औय ऩदों भें हुई हैं। इनभें उनकीस्वानुबूतिमाॉ िीव्र रूऩ भें साभाने आई हैं। सॊिऩयॊऩया भें हहॊदी के ऩहरे सॊि साहहत्म भ्रष्टा जमदेव हैं। मे गीिगोववॊदकाय जमदेव से मबन्न हैं।सेन बाई, यैदास, ऩीऩा, धन्ना, नानकदेव, अभयदास, धभमदास, दाददूमार, गयीफदास, सुॊदयदास, दरयमादास, कफीय की पे्रभ साधना

व्मन्तित्व हहन्दी साहहत्म के हजाय िषों के इनतहास भें कफीय जसैा व्मजक्तत्ि रेकय कोई रेखक उत्ऩन्न नहीॊ हुआ। भहहभा भें मह व्मजक्तत्ि केिर एक ही प्रनतद्िन्द्िी जानता है, तुरसीदास। ऩयन्तु तुरसीदास औय कफीय के व्मजक्तत्ि भें फडा अन्तय था। मद्मवऩ दोनों ही बक्त थे, ऩयन्तु दोनों स्िबाि, सॊस्काय औय दृजष्टकोण भें एकदभ लबन्न थे। भस्ती, फ़क्कडाना स्िबाि औय सफकुछ को झाड–पटकाय कय चर देने िारे तेज ने कफीय को हहन्दी–साहहत्म का अद्वितीम व्मजक्त फना हदमा है। उसी ने कफीय की िाखणमों भें अनन्म–असाधायण जीिन यस बय हदमा है।

इसी व्मजक्तत्ि के कायण कफीय की उजक्तमाॉ श्रोता को फरऩूिमक आकृष्ट कयती हैं। इसी व्मजक्तत्ि के आकषमण को सरृदम सभारोचक समबार नहीॊ ऩाता औय यीझकय कफीय को 'कवि' कहने भें सॊतोष ऩाता है। ऐसे आकषमक िक्ता को 'कवि' न कहा जाए तो औय क्मा कहा जाए? ऩयन्तु मह बूर नहीॊ जाना चाहहए कक मह कविरूऩ घरुए भें लभरी हुई िस्तु है।अन्मान्म सॊतों से विशषे फना देता है। मद्मवऩ कफीयदास एक ऐसे वियाट औय आनॊदभम रोक की फात कयते हैंl

कृतिमाॉ सॊत कफीय ने स्िमॊ ग्रॊथ नहीॊ लरखे, भुॉह से बाखे औय उनके लशष्मों ने उसे लरख लरमा। आऩ के सभस्त विचायों भें याभनाभ की भहहभा प्रनतध्िननत होती है। िे एक ही ईश्िय को भानते थे औय कभमकाण्ड के घोय वियोधी थे। अिताय, भूजत्तम, योजा, ईद, भसजजद, भॊहदय आहद को िे नहीॊ भानते थे।

कफीय के नाभ से लभरे ग्रॊथों की सॊख्मा लबन्न-लबन्न रेखों के अनुसाय लबन्न-लबन्न है। एच.एच. विल्सन के अनुसाय कफीय के नाभ ऩय आठ ग्रॊथ हैं। विशऩ जी.एच. िेस्टकॉट ने कफीय के 74 ग्रॊथों की सूची प्रस्तुत की तो याभदास गौड ने हहॊदतु्ि' भें 71 ऩुस्तकें गगनामी हैं। कफीय की िाणी का सॊग्रह फीजक' के नाभ से प्रलसद्ध है। इसके तीन बाग हैं-

यभैनी सफद सायिी

साहहन्त्मक ऩरयचम

कफीय सन्त कवि औय सभाज सुधायक थे। उनकी कविता का एक-एक शब्द ऩाखॊडडमों के ऩाखॊडिाद औय धभम के नाभ ऩय ढोंग ि स्िाथमऩनूत म की ननजी दकुानदारयमों को ररकायता हुआ आमा औय असत्म ि अन्माम की ऩोर खोर धजज्जमाॉ उडाता चरा गमा। कफीय का अनुबूत सत्म अॊधविश्िासों ऩय फारूदी ऩरीता था। सत्म बी ऐसा जो आज तक के ऩरयिेश ऩय सिालरमा ननशान फन चोट बी कयता है औय खोट बी ननकारता है।

• कफीयदास की बाषा औय िैरी

कफीयदास ने फोरचार की बाषा का ही प्रमोग ककमा है। बाषा ऩय कफीय का जफयदस्त अगधकाय था। जजस फात को उन्होंने जजस रूऩ भें प्रकट कयना चाहा है, उसी रूऩ भें कहरिा लरमा बाषा कुछ कफीय के साभने राचाय–सी नजय आती है। उसभें भानों ऐसी हहमभत ही नहीॊ है कक इस राऩयिा पक्कड कक ककसी फ़यभाइश को नहीॊ कय सके।िाणी के ऐसे फादशाह को साहहत्म–यलसक काव्मानॊद का आस्िादन कयाने िारा सभझें तो उन्हें दोष नहीॊ हदमा जा सकता। कफीय ने जजन तत्त्िों को अऩनी यचना से ध्िननत कयना चाहा है, उसके लरए कफीय की बाषा से ज़्मादा साफ़ औय जोयदाय बाषा की समबािना बी नहीॊ है औय जरूयत बी नहीॊ है।

कफीय दिमन

कफीय की कविता जीिन के फाये भें अऩने दशमन का एक प्रनतबफॊफ है. उनका रेखन को भुख्म रूऩ से ऩुनजमन्भ औय कभम की अिधायणा ऩय आधारयत थे. कफीय के दशमन जीिन के फाये भें फहुत स्ऩष्ट था. िह एक फहुत ही साधायण तयीके से जीिन जीने भें विश्िास कयते थे. िह ऩयभेश्िय की एकता की अिधायणा भें एक भजफूत विश्िास था. उसने कोई फोरे याभ याभ कोई खदुाई की धायणा की िकारत भूर विचाय के लरए सॊदेश है कक चाहे आऩ हहॊद ूबगिान मा भुजस्रभ बगिान के नाभ का जाऩ, तथ्म मह है कक िहाॉ केिर एक ही ऩयभेश्िय है जो इस खफूसूयत दनुनमा के ननभामता है l

कफीयदास की भहहभाजो रोग इन फातों से ही कफीयदास की भहहभा का विचाय कयते हैं िे केिर सतह ऩय ही चक्कय काटते हैं। कफीयदास एक जफयदस्त क्राजन्तकायी ऩुरुष थे। उनके कथन की ज्मोनत जो इतने ऺेत्रों को उदबालसत कय सकी है सो भाभूरी शजक्तभत्ता की ऩरयचानमका नहीॊ है। ऩयन्त ुमह सभझना कक उदबालसत ऩदाथम ही ज्मोनत है, फडी बायी ग़रती है। उदबालसत ऩदाथम ज्मोनत की ओय इशाया कयते हैं औय ज्मोनत ककधय औय कहाॉ ऩय है, इस फात का ननदेश देते हैं। ऊऩय–ऊऩय, सतह ऩय चक्कय काटने िारे सभुद्र बरे ही ऩाय कय जाएॉ, ऩय उसकी गहयाई की थाह नहीॊ ऩा सकते।

• भतृ्मुकफीय ने काशी के ऩास भगहय भें देह त्माग दी। ऐसी भान्मता है कक भतृ्मु के फाद उनके शि को रेकय वििाद उत्ऩन्न हो गमा था। हहन्द ूकहते थे कक उनका अॊनतभ सॊस्काय हहन्द ूयीनत से होना चाहहए औय भुजस्रभ कहते थे कक भुजस्रभ यीनत से। इसी वििाद के चरते जफ उनके शि ऩय से चादय हट गई, तफ रोगों ने िहाॉ पूरों का ढेय ऩडा देखा। फाद भें िहाॉ से आधे पूर हहन्दओुॊ ने रे लरए औय आधे भुसरभानों ने। भुसरभानों ने भुजस्रभ यीनत से औय हहॊदओुॊ ने हहॊद ूयीनत से उन पूरों का अॊनतभ सॊस्काय ककमा। भगहय भें कफीय की सभागध है। जन्भ की बाॉनत इनकी भतृ्मु नतगथ एिॊ घटना को रेकय बी भतबेद हैं ककन्तु अगधकतय विद्िान उनकी भतृ्मु सॊित 1575 विक्रभी (सन 1518 ई.) भानते हैं, रेककन फाद के कुछ इनतहासकाय उनकी भतृ्मु 1448 को भानते हैं l

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