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E ISSN 2320 0871 भारतीय भाषाओं की अंतराारीय मासिक शोध पिका 17 मा2017 पीअर रीयूड रेीड रसच जचल This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 9 छतीिगढ़ म पयाटन की िंभायता एवं याशा (िलािप र एवं िरग जा िंभाग के िंदभा म) णा ततवारी डॉ.प षोतम लाल ंकार ायापक (भ गोल ववभाग) ि.एम.डी. नातकोतर महाववयालय िलािप र, छतीिगढ़, भारत शोध िंेप भारतवष ा के ाीनतम आवत ा उिापथ एवं दणपथ क े मय माग ा म वं य एवं ितप ड़ा की खलाओं की ोटटय घाटटय और उपयकाओं क े मय छतीिगढ़, त का अन पम उपहार है । यह राय आटदम जनजातत का आलय, ि मार वन पी गली िे आछाटदत वयं की शंिा करता ह आ रोमांाकारी नैिग कता एवं ि दर उपयोगी वनपततय को अपने अं ल म िमेटे ए एक इततहाि त त करता है । जि यह राय 36 समी क े कल म जेय था तथा रतनप र और रायप र क े रय वारा थावपत, शाितनक खंडो वारा िंासलत था, उिक े पहले ि ही यह राय वयं क े अतव को एक िमय पनी लेखनी िे ित करता है । जि कार िह य रन वयं की आभा िे दैदीयमान होता है ठीक उिी कार छतीिगढ़ पी रन भारत क े दय थल म थत होकर अपने अनेक रममय िे जगमगा रहा है। त त शोध पि म छतीिगढ़ म पया टन की िंभावना पर वार ककया गया है तावना भारत के दयथल मयदेश के छतीगढ़ अंल को प थक कर 1 नवंिर 2000 ई. को एक नवीन राय का तनमााण ककया गया जो भारत का 26वां राय िना। इिके अंतगात मयदेश के िलािपुर, रायपुर एवं ितर िंभाग िमसलत ककए गये। छतीिगढ़ के आंगन म महानदी, सशवनाथ, इंावती, ि, हिदो, रहंद, मांड, ईि, अरपा आटद अनेक पुय िसललाओं ने अपने िरि वाह िे धान के इि कटोरो को ितोष एवं िरलता के वाह म िहाटहत रखा। िथ मैकल, सिहावा, अिुझमाड़, देवगढ़ और रायगढ़ की पहाड़ड़यां इिकी िुदंरता को वगुणणत करती ह। यह भारतीय इतहाि एवं ित म अपना ववसशट थान रखने वाली आटदम जनजाततय का तनवाि थल है। छतीिगढ़ का ेि ाीन काल िे ही ऐततहासिक, ितक एवं भौगोसलक वशेषताओं िपररपूणा है एवं अपनी अलग पहान एवं वशेषताओं के सलये सिध है। इि भू -भाग के ऐततहासिक काल म अनेक उथल-पुथल ह ए परंतु आज भी इिकी भौगोसलक वसशट एवं ितक ववराित जीवत एवं अुण हे जो क अयंत आकषाक है। पयाटन क ो का ेिीय िवेण िमाजक शोध, वैातनक अनुिंधान का ही एक वशेष प है। जिका िंिंध तय, घटनाओं , मानवीय कियाओं तथा उिम पाये जाने वाले

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  • E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं की अतंरााष्ट्रीय मासिक शोध पत्रिका 17 मार्ा 2017

    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 9

    छत्तीिगढ़ में पयाटन की िंभाव्यता एवं प्रत्याशा (त्रिलािपुर एवं िरगुजा िंभाग के िंदभा में)

    कृष्ट्णा ततवारी डॉ.पुरूषोत्तम लाल र्ंद्रकार प्राध्यापक (भूगोल ववभाग)

    िी.एम.डी. स्नातकोत्तर महाववद्यालय त्रिलािपुर, छत्तीिगढ़, भारत

    शोध िंके्षप भारतवषा के प्रार्ीनतम आवता उिापथ एवं दक्षक्षणपथ के मध्य मागा में ववधं्य एवं ितपुड़ा की शृ्रखलाओं की र्ोटटयों घाटटयों और उपत्यकाओं के मध्य छत्तीिगढ़, प्रकृतत का अनुपम उपहार है। यह राज्य आटदम जनजातत का आलय, िुकुमार वन रूपी गलीर्ों िे आच्छाटदत स्वयं की प्रशंिा करता हुआ रोमारं्ाकारी निैर्गाकता एव ं िुदंर उपयोगी वनस्पततयों को अपने अरं्ल में िमेटे हुए एक इततहाि प्रस्तुत करता है। जि यह राज्य 36 समट्टी के ककलों में दजेुय था तथा रतनपुर और रायपुर के कल्रु्ररयों द्वारा स्थावपत, प्रशाितनक प्रखंडो द्वारा िरं्ासलत था, उिके पहले िे ही यह राज्य स्वयं के अस्स्तत्व को एक िमय रूपनी लेखनी िे र्र्त्रित करता है। स्जि प्रकार िहुमूल्य रत्न स्वयं की आभा िे दैदीप्यमान होता है ठीक उिी प्रकार छत्तीिगढ़ रूपी रत्न भारत के हृदय स्थल में स्स्थत होकर अपन ेअनके रस्ममयों िे जगमगा रहा है। प्रस्तुत शोध पि में छत्तीिगढ़ में पयाटन की िभंावना पर ववर्ार ककया गया है।

    प्रस्तावना भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश के छत्तीगढ़ अंर्ल को पथृक कर 1 नविंर 2000 ई. को एक नवीन राज्य का तनमााण ककया गया जो भारत का 26वां राज्य िना। इिके अंतगात मध्यप्रदेश के त्रिलािपरु, रायपरु एव ं िस्तर िंभाग िस्ममसलत ककए गये। छत्तीिगढ़ के आंगन में महानदी, सशवनाथ, इंद्रावती, िोन, हिदो, ररहंद, मांड, ईि, अरपा आटद अनेक पणु्य िसललाओं ने अपने िरि प्रवाह िे धान के इि कटोरो को िंतोष एव ं िरलता के प्रवाह में िहाटहत रखा। िाथ मकैल, सिहावा, अिझुमाड़, देवगढ़ और रायगढ़ की पहाड़ड़यां इिकी िुदंरता को द्ववगणुणत करती हैं। यह भारतीय इततहाि एव ं

    िंस्कृतत में अपना ववसशष्ट्ट स्थान रखने वाली आटदम जनजाततयों का तनवाि स्थल है। छत्तीिगढ़ का के्षि प्रार्ीन काल िे ही ऐततहासिक, िांस्कृततक एव ंभौगोसलक ववशषेताओं िे पररपणूा है एव ं अपनी अलग पहर्ान एव ंववशेषताओ ं के सलये प्रसिद्ध है। इि भ-ूभाग के ऐततहासिक काल में अनेक उथल-पथुल हुए परंत ुआज भी इिकी भौगोसलक ववसशष्ट्ट एव ंिांस्कृततक ववराित जीवन्त एव ंअकु्षण्ण हे जो कक अत्यतं आकषाक है। पयाटन कें द्रो का के्षिीय िवेक्षण िामास्जक शोध, वजै्ञातनक अनिुधंान का ही एक ववशेष रूप है। स्जिका िंिधं तथ्यों, घटनाओ,ं मानवीय कियाओं तथा उिमें पाये जाने वाले

  • E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं की अतंरााष्ट्रीय मासिक शोध पत्रिका 17 मार्ा 2017

    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 10

    अंतः िंिधंों िे होता है। इि आधार पर प्रस्तुत शोध मे पयाटन के ववसभन्न पक्षों के ववषय का अध्ययन कर एक वजै्ञातनक योजनािद्य पद्धतत का प्रयोग ककया गया है। यह ताकका क तथा िमिद्ध पद्धततयों पर तनभार है। तथ्यों के िंग्रहण के सलये ‘िहभागी अवलोकन’ ‘अिहभागी अवलोकन’ तथा िाक्षात्कार की तकनीक को प्रयोग मे लाया गया है। इिके सलये ‘अिंरर्र्त िाक्षात्कार’ ‘िंरर्र्त िाक्षात्कार ‘केन्द्रीत िाक्षात्कार’ एव ं ‘िामूटहक िाक्षात्कार’ का प्रयोग ककया गया है। पयाटकों के छत्तीिगढ़ मे आने और यहााँ के पयाटन स्थलों के प्रतत रूर्र् तथा पयाटन स्थलों की िंख्या एव ं उनके स्वरूप को जानने के सलये ‘दैव तनदेशन प्रणाली‘ के ‘कोटा तनदशान’ का प्रयोग ककया गया है। छत्तीिगढ़ के पयाटन के्षि को िुगमता िे िमझने के सलए िंभाग के आधार पर र्ार के्षिों मे ववभक्त ककया जा िकता है। छत्तीिगढ़ के पयाटन केन्द्रो तक पयाटकों की पहुाँर् िुववधा, पररवहन, िंर्ार एव ंठहरने आटद की िुववधाओं का ध्यान मे रखत ेहुए इनका िभंागीय आधार पर िवेक्षण करना िुलभ होगा। छत्तीिगढ़ के पयाटन केन्द्रों का के्षिानिुार ववतरण तनमन रूप िे ककया जा िकता है : 1 त्रिलािपरु िभंाग: इिके अतंगात 1 त्रिलािपरु 2 कोरिा 3 रायगढ़ 4 जांजगीर र्ामपा स्जलो अंतगात आने वाले ववसभन्न पयाटन केन्द्र। 2 िरगजुा िभंाग: इिके अंतगात 1 अंत्रिकापरु 2 जशपरु 3 कोररया स्जलों मे आने वाले ववसभन्न पयाटन स्थल हैं। 3 िस्तर िभंाग: इिके अंतगात 1 िस्तर (जगदलपरु) 2 दंतेवाड़ा 3 कांकेर मे आने वाले पयाटन केन्द्र। 4 रायपरु िंभाग: इिके अंतगात 1 रायपरु 2 महािमुंद 3 धमतरी व दगुा 4 कवधाा

    5 राजनांदगांव में आने वाले पयाटन केन्द्र। त्रिलािपुर - यह िंभाग छत्तीिगढ़ राज्य मे ही नहीं िमपणूा भारत वषा मे अपने र्ावल उत्पादन, कोिा सिल्क एव ं िांस्कृततक पषृ्ट्ठभूसम के सलये प्रसिद्ध है। छत्तीिगढ़ को धान का कटोरा जैिे उपमा िे िुशोसभत करने में त्रिलािपरु और जांजगीर र्ामपा स्जले महत्वपणूा योगदान है। छत्तीिगढ़ का माननीय उच्र् न्यायालय त्रिलािपरु नगर मे ही स्स्थत है। त्रिलािपरु नगर लगभग 400 वषा परुाना है। यह पवूा मे रतनपरु राज्य के अंतगात आता था, लोक कथाओ ं के आधार पर त्रिलािपरु का नाम ‘त्रिलािा’ नामक मछुआररन के नाम पर रखा गया है। उक्त नाम की मछुआररन ने राजा रत्न देव द्वारा अपमातनत होने पर आत्मदाह कर सलया। इिके पमर्ाताप हेतु रत्नदेव ने इि स्थान का नाम त्रिलािपरु रखा।” 19 वी िदी मे गरुूघािीदाि नामक ितं ने ितनाम पथं की स्थापना की। ईस्ट इंड़ड़या कमपनी ने त्रिलािपरु को 1854 मे अपने अर्धकार में कर सलया। त्रिलािपरु-रायपरु मागा पर त्रिलािपरु मुख्य नगर िे लगभग 5 ककलोमीटर की दरूी पर ततफरा नामक स्थान है जहां एक प्रार्ीन कालीमाता का मंटदर है। यहां र्ैि नवराि एव ंशारदीय नवराि मे हजारों की िंख्या मे आि-पाि के के्षि के लोग दशान करने आते हैं। अर्ानकमार पररपथ - त्रिलािपरु स्जले के लोरमी तहिील तथा मैकल शे्रणी के गोद मे ििे अर्ाननकमार अभ्यारण्य का के्षिफल 551.55 कक.मी. है। िमदु्र ितह िे इिकी औित ऊंर्ाई 362मी.-720 मी. तक है। यहा ंकी औित वषाा 1000-1200 सम.मी. तथा तापमान 8 अंश िे 43 अंश िे.गे्र. तक रहता है। यह ढ़लानदार घाटटयों, दलदली घाि के छोटे-छोटे मैदान, िाल

  • E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं की अतंरााष्ट्रीय मासिक शोध पत्रिका 17 मार्ा 2017

    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 11

    और िािंों के जंगल टेढ़ी मेेेढ़ी िहने वाली नटदयंो िे तनिगा भूसम िे यकु्त है। यहा ंिाल, िाजा, ततन्िा, हल्द,ू आंवला, जामुन, िांि, आटद मुख्य वनस्पततयों के वकृ्ष हैं। यह Northern tropical moist deciduous वन के्षि के अंतगता आता है। यह अभ्यारण्य जैव ववववधता एव ंवन्य प्राणणयों के प्रर्रुता के कारण दशानीय है। यहा ंस्तनधारी प्राणी के रूप मे शरे, तेंदआु, गौर, िामभर, र्ीतल, र्ौसिगंा, वाककंगड़डयर, लंगरू, िुअर, भाल,ू और िोन कुत्ते िहुतायत मे पाए जाते हैं। इिमें पाये जाने वाले पक्षक्षयों का ििंार भी अनठूा है। मोर, मैना, कोयल, तोता, र्गद्ध, िटेर, नीलकंठ, िारि, ककंगकफशर, हररयल, हुदहुद, ितिहतनयां, नाइट जाट, तीतर, आटद पाये जात े है। इि अभ्यारण्य के अतंगात 22 वनग्राम हैं, स्जनमे िगैा जनजातत की आिादी 70 प्रततशत है। दशानीय स्थलः सिहावल िागर, रक्षा िाख, नाद िहरा, मेड्री िरई, टंगली पठार। रतनपुर - रतनपरु त्रिलािपरु के कोटा तहिील के अंतगात स्स्थत है। यह छत्तीिगढ़ की प्रार्ीनतम राजधानी थी। इि के्षि पर कल्र्ुररयों ने शािन ककया इिका पहला राजा रत्नदेव प्रथम एव ं अंततम शािक मोहनदेव था। रतनपुर गढ़ अपने वभैवशाली कलाकृतत के सलये दशानीय है। इिके भग्नावशेष अभी भी ववद्यमान हैं। स्जनमें गणेश द्वार के िामने ककले के द्वार पर र्ौखट के पत्थर पर उत्कृष्ट्ट नक्काशी का काम है। नटराज, ब्रमहा, ववष्ट्ण,ु नवग्रह की प्रततमाएं, कातताकेय की प्रततमा अत्यतं आकषाक है। यहा ंस्स्थत आस्था का प्रतीक महामाया मंटदर स्जिका तनमााण 11 वीं िदी मे रत्नदेव ने कराया, दशानीय है। महामाया देवी की प्रततमा की दो रे्हरे हैं। रतनपरु िे लगभग 6 ककलोमीटर

    रतनपरु कोटा मागा पर लखनीदेवी पहाड़ी है। स्जि पर लखनीदेवी मंटदर स्स्थत है। इिमे एक ताम्रपि असभलेख भी है। रतनपरु िे 5 ककलोमीटर रतनपरु-त्रिलािपरु मागा पर भरैविािा मंटदर है। भरैविािा की प्रततमा मूतत ा कला का उत्कृष्ट्ट उदाहरण है। इिके अततररक्त ऐततहासिक स्थलों मे रामटेकरी, र्गरजावन, हनमुान, कैरहापारा मे रत्नेमवर िरोवर के तट पर स्स्थत सशव मंटदर है। रतनपरु िे लगभग 4 कक.मी. की दरूी पर हनमुान जी का मंटदर है जहां प्रत्येक मंगलवार एव ं शतनवार को िकैड़ों श्रदृ्धाल ु आते हैं। ऐिा िताया जाता है कक यह मंटदर धासमाक दृस्ष्ट्टकोण िे भारत के सिद्ध हनमुान मंटदरों में िे एक है। रतनपरु त्रिलािपरु कटघोरा मागा पर त्रिलािपरु िे 25 ककलोमीटर की दरूी पर स्स्थत है। यहा ंपहुंर्ने के सलये प्रत्येक घटें के अंतराल मे िि िेवा, टैस्क्ियां उपलब्ध हैं। यहा ं आवाि की िुववधा नही है। परंतु टदनभर भ्रमण कर शाम को त्रिलािपरु लौटा जा िकता है। मल्हार- त्रिलािपरु िे राष्ट्रीय राजमागा 200 ककलोमीटर पर त्रिलािपरु जाजंगीर के मागा पर मस्तुरी नामक स्थान है। मस्तुरी िे लगभग 10 ककलोमीटर दक्षक्षण मे मल्हार ग्राम है। यह त्रिलािपरु स्जले का प्रर्ीन परुातास्त्वक ऐततहासिक स्थान है। प्रार्ीनकाल में उत्तर भारत के दक्षक्षण पवूी िमुद्री तट िे जुडने वाला मागा कौशामिी िे भरहुत होत ेहुये खरौद, सशवरीनारायण, शरभपरु (मल्हार) श्रीपरु होते हुए जाता था। स्जिका उल्लेख प्रार्ीन भारत के इततहाि मे है । मल्हार िे िातवाहनों के काल की मुद्राएाँ स्जि पर ‘वेदी श्री’ उत्कीणा है, प्राप्त हुई है। इि काल के ईंटो िे िने भवन एव ंरूपांककत मदृ भाडं यहां िे प्राप्त हुए हैं। दक्षक्षण

  • E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं की अतंरााष्ट्रीय मासिक शोध पत्रिका 17 मार्ा 2017

    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 12

    कौशल में कल्र्ुररयों के पवूा शरभपरुीय और िोमवशंी राजवशंो का शािन रहा। इि काल मे 5 लसलत कला केन्द्र ववशेष रूप िे उन्नत थे स्जिमे मल्हार एक था। िमुद्रगपु्त ने भारत ववजय के िमय दक्षक्षण कौशल का राजा महेन्द्र को परास्जत ककया स्जिकी राजधानी शरभपरु (मल्हार) थी। इिका प्रमाण ब्रामही सलवप में सलखी एक मुद्रा िे प्राप्त हुआ, स्जि पर महाराज महेन्द्रगपु्त सलखा हुआ है। मल्हार के के्षि मे शैव, वषै्ट्णव, िौद्ध धमा के मंटदर, मठ एव ंमूतत ायों के तनमााण हुआ है। मल्हार िे प्राप्त र्तभुाज ववष्ट्णु की प्रततमा स्जिमें मौयाकालीन ब्रामही सलपी का लेख अंककत है। यह मूतता भारत वषा मे अि तक प्राप्त असभसलणखत प्रततमाओं मे िििे प्रार्ीन है, जो लगभग 200 ईिापवूा की है। शैव धमा िे िंिरं्धत मूततायों लक्ष्मी, िरस्वती, दगुाा, मटहषािरु मदानी की प्रततमा के अततररक्त ड़डडनेमवरी (पावाती) की ववलक्षण कल्र्ुरीकालीन प्रततमा गे्रनाइट िे तनसमात है। जो मूतत ाकला की अनपुम कृतत है, ड़डडनेमवरी देवी की प्रततमा मल्हार की एक मंटदर में स्थावपत की गई है। मल्हार िे प्राप्त प्रततमाओं को भारतीय परुात्तव ववभाग ने मल्हार के िंग्राहलय मे रखा है। इि िंग्रहालय के पररके्षि मे एक पातालेमवर सशव मंटदर भी है, स्जिका गभा गहृ धरातल िे लगभग 8 फुट नीरे् है। इिके अततररक्त ववसभन्न धमाावलंत्रियों ने यहां मंटदरों एव ंमूतत ायों का तनमााण करवाया है। जैन धमा िे िंिरं्धत प्रततमाएं िढुीखार नामक ग्राम मे िंग्रटहत की गयी है। मल्हार िे प्राप्त ऐततहासिक िाक्ष्यों का काल अतत प्रार्ीन है। ये मूतत ायां और भग्नावशेष 9 वी. िदी ई.प.ू िे ववसभन्न कालिमों िे गजुरत ेहुए 14वीं ईिा तक के हैं।

    यहां का ड़डडनेमवरी देवी मंटदर तनकटवती के्षिों के लोगों के सलए गहरी आस्था का प्रतीक है। यहा ंपावाती कुआंरी रूप मे अथाात शलैितुा के रूप में हैं। काले रंग के गे्रनाईट िे िनी उत्कृष्ट्ट कलाकृतत की प्रततमा को ड़डड़डनदाई कहते है। तालाग्राम - यह मूतताकला का अनठुा केन्द्र है। इिका पता भारतीय परुातत्व ववभाग के प्रथम तनदेशक अलेक्जेन्डर कतनघंम ने 1873 मे लगाया था। इिका ववस्ततृ वववरण िाद में मध्यप्रदेश परुातत्व ववभाग के िलाहकार और हावडा ववमवववद्यालय के प्रो. डा. प्रमोद ने प्रस्तुत ककया। तालाग्राम त्रिलािपरु रायपरु मागा पर त्रिलािपरु िे 30 ककलोमीटर पर स्स्थत है। इि मागा पर भोजपरु ग्राम स्स्थत है। यहां िे ताला की दरूी लगभग 7 ककलोमीटर है। रेलमागा िे त्रिलािपरु रायपरु रेलमागा दगौरी नामक स्टेशन के तनकट है। यह स्थान अमेठी कांपा ग्राम के मतनयारी नदी के तट पर स्स्थत है। स्थापत्य कला के प्रार्ीन स्मारक देवरानी जेठानी मंटदर स्जिका तनमााण शरभपरुी शािक की दो रातनयों ने अपने-अपने नामों िे करावाया था। ऐततहासिक िाक्ष्यों िे पता र्लता है कक यह स्थान ववसभन्न धमो िंस्कृततयों एव ंिंप्रदायों की शरणस्थली रही होगी। यहा ंिे प्राप्त महारूद्र की प्रततमा का अलकंरण 12 रासशयों एव ं9 ग्रहों के िाथ ककया गया है। यह स्थान तांत्रिक अनषु्ट्ठानों का भी केन्द्र रहा होगा। देवरानी मंटदर के तनकट जेठानी मंटदर है। ये दोनों सशव मंटदरों के भग्नावशेष है। यहां िे प्राप्त मूततायों में यरूािन कातताकेय, द्ववमुखी गणेश, यक्ष, अधानारीमवर, उमा महेश आटद प्रमुख हैं। इन दोनों मंटदरों का ववसशष्ट्ट तल ववन्याि ववलक्षण प्रततमा तनरूपण तथा मौसलक अलंकरण की दृस्ष्ट्ट िे भारतीय कलाओ ं में अपना ववसशष्ट्ट स्थान रखते हैं।

  • E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं की अतंरााष्ट्रीय मासिक शोध पत्रिका 17 मार्ा 2017

    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 13

    देवरानी मंटदर में एक ववलक्षण प्रततमा प्राप्त हुई है, जो भारतीय कला में अपने ढंग की एक माि प्रततमा है। यह रूद्र की प्रततमा है,एक माि यही प्रततमा लगभग पणूारूप मे पाई गई है। यह प्रततमा शैवमत तंि तथा योग के गहुृदय सिदं्धांतो का प्रभाव और िमन्वय प्रस्ततु करता है। िेलगहना - रतनपरु कें दा मागा पर 22 कक.मी. पर दारिागर है। दारिागर िे 5 कक.मी. उत्तर की ओर िेलगहना स्स्थत है। यहां एक सिद्ध िािा पहाड़ी पर िदानदं जी महाराज का आश्रम है। यहां पारद सशवसलगं है। यहां कातताक माि का पणूणामा के रात मे मेला लगता है और हजारों लोंग दशान के सलये आते हैं। अमरकंटक - अमरकंटक का आधा भाग छत्तीिगढ़ में है। यह स्थान वटैदक काल िे ही धासमाक पयाटन स्थली रही है। इिमें नमादा नदी के उद्गम स्थल और मंटदर म.प्र. में है तथा िोन और जोटहला नदी का उद्गम स्थल और मंटदर छत्तीिगढ़ राज्य की िीमा में आते हैं। 3 िे 5 कक.मी. की पररधी मे िारे पयाटन स्थल होने के कारण यह के्षि छत्तीिगढ़ में मध्यप्रदेश के िरािर महत्व रखता है। यहां परम पजूनीय महामडंलेमवर स्वामी शारदानदं िरस्वती जी महाराज का आश्रम है तथा आश्रम पररिर मे अतत िनु्दर मंटदर है। िंपणूा अमरकंटक धमा का कें द्र और भारतीय आस्था का प्रतीक स्वरूप है। यहां के मंटदर प्रार्ीन भारतीय धासमाक एव ंदाशातनक िाटहत्यों मे उल्लेणखत है। लुतरा शरीफ - त्रिलािपरु िे त्रिलािपरु िलौदा मागा पर 32 कक.मी. पर स्स्थत यह िूफी दरगाह है। िफूी िंत हजरत िािा ियै्यद इंिान अली का दरगाह है। यहां िभी धमो के लोग आते हैं। यह एक र्मत्काररक शस्क्तयों का पववि स्थान है। यहा ंमन्नत मांगने वालों की इच्छा परूी होती

    है और कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। यह धासमाक एकता और गहरी आस्था का अनपुम स्थल है। कोरिा - कोरिा छत्तीिगढ़ राज्य की ववद्यतु नगरी है। यहां एन.टी.पी.िी. के ताप ववद्यतु उत्पादन गहृ है, स्जिकी कुल क्षमता 440 मेगावाट, छ.ग.रा.वव.म. पस्मर्म की क्षमता 9401 मेगावाट है तथा िालको नगर में 1200 मेगावाट का थमाल प्लांट लगाने की योजना है। कोरिा स्जला एि.ई.िी.एल. का महत्वपणूा कोयला उत्पादक के्षि है, दीपका, गेवरा आटद एि.ई.िी.एल. के िडे कोयला उत्पादक के्षि हैं। इिसलये कोरिा नगर को छत्तीिगढ़ की ऊजाा नगरी कहा जाता है। इन नगरों मे ववदेशी पयाटक आते रहते हैं, स्जनका िंिधं यहां स्स्थत उद्योग धंधे िे है। तुमहाण - कोरिा स्जले में स्स्थत तुमहाण त्रिलािपरु-अंत्रिकापरु मागा पर स्स्थत कटघोरा िे 10 ककलोमीटर दरूी पर स्स्थत है। यह कल्र्ुरी (हैहयवशंी) राजाओं की प्रथम राजधानी है, इिका परुातास्त्वक महत्व हैं। यहां कल्र्रुी नरेश रत्नदेव द्वारा तनसमात सशव मंटदर है जो लगभग 11 वीं िदी का है। लाफागढ़ / रे्तुरगढ़ - राष्ट्रीय राजमागा 111 पर त्रिलािपरु-कटघोरा मागा पर 45 ककलोमीटर की दरूी पर स्स्थत पाली और पाली िे 15 ककलोमीटर उत्तर स्जला मागा पर लाफागढ़ है, इिे र्ैतुरगढ़ भी कहते है। यह 15वीं िदी के गोंडों के िाम्राज्य मे इिका िामररक दृस्ष्ट्ट िे ववशेष महत्व है। यह ितपड़ुा पवातमाला के ऊपर प्राकृततक िमतल र्ोटी पर लगभग 2000 फुट की ऊंर्ाई पर अवस्स्थत है। यहां कल्र्ुरी यगुीन ककला लगभग 3000 फुट िे भी अर्धक ऊंर्ाई पर तनसमात है जो दगुमय और अभेद्य था।

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    इिकी प्रशिंा अंगे्रज शािक वेडालर ने भी ककया है। इिके अंदर महामाया देवी का मंटदर है तथा शंकरखोल नामक गफुा मे िलुआ पत्थर िे तनसमात सशवसलगं है लाफागढ़ पहुर्ने के सलये िि िेवा उपलब्ध है परतु उपयकु्त नही है। इिका कारण त्रिलािपरु िे तनजी वाहन द्वारा जाना उपयकु्त है। यद्यवप यह कोरिा स्जलान्तगता है। पाली - कोरिा स्जले मे स्स्थत छत्तीिगढ़ के प्रार्ीनतम स्थापत्य कला का अनठूा एव ं अद्भूत मंटदर स्जिकी स्थापत्य कला राजस्थान के मांउट आि ू के जय मंटदर, मध्यप्रदेश के खजुराहों एव ंभोरमदेव के िमतुल्य है। यहां स्स्थत मंटदर का तनमााण वविमाटदत्य जयमन्य ु ने 870 ई.प.ूकरवाया था और िमय-िमय पर स्थानीय शािकों ने इिे िरंक्षण प्रदान ककया। 11 वीं िदी मे इिकी जीणोंधार कल्र्रुी नरेश जाजल्ल देव प्रथम ने करवाया और अपना नाम उत्कीणा ककया यहां िे अन्य प्रार्ीन कालीन अवशेष प्राप्त हुये है। यह स्मारक वतामान भारतीय परुात्तव ववभाग द्वारा अर्धग्रटहत है। जांजगीर–र्ामपा - जांजगीर-र्ामपा स्जले का गठन िन ्1998 मे हुआ। जांजगीर र्ामपा स्जले का मुख्यालय जाजंगीर है। जांजगीर का नाम कल्र्रुी राजा जाज्वल्यदेव के नाम िे जाजंगीर पड़ा है। जाज्वल्यदेव के रतनपरु सशलालेख िे पता र्लता है कक उिने अपने नाम का एक नगर ििाया उिका नाम जाल्लपरु था, वतामान मे उिे जाजंगीर के नाम िे जाना जाता है। सशवरीनारायण - त्रिलािपरु िे दक्षक्षण पवूा टदशा मे त्रिलािपरु-पामगढ़ मागा पर 64 ककलोमीटर की दरूी पर मैकल पवात श्रृंखला के तहछटी मे ििे इि नगर मे कल्र्रुी कालीन स्थापत्य कला के िवाार्धक मंटदर है। महानदी, सशवनाथ व जोंक नदी के िंगम पर ििा यह पावन भूसम

    रामायणकालीन घटनाओं िे भी जुड़ा है। यह 12 वीं िदी का मंटदर स्थापत्य एव ं मूतत ाकला का एक अनठूा उदाहरण प्रस्ततु करता है। इि मंटदर की ऊंर्ाई लगभग 62 फुट पररर्ध 136 फुट तथा सशखर पर 10 स्वणणाम कला है। मंटदर पररिर मे अनेक मंटदर स्स्थत है। स्जन पर नारशलैी एव ंकल्र्रुी स्थापत्य कला का खुििूरत कलाकृततया ंदृमय होती है। यह रामायण कालीन स्थल है, वषै्ट्णवधमा के नगर के रूप मे सशवरीनारायण ववख्यात है। ऐिी मान्यता है कक शिरी के जूठे िेर श्री रामर्ंद्र जी ने यहीं खाये थे स्जि कारण इिका नाम शिरीनारायण हुआ। यहां शिरी का एक प्रार्ीन मंटदर है िंपणूा मंटदर पररिर मे वषै्ट्णव धमा िे िंिरं्धत आराध्य देवांेे की प्रततमा है। यद्यवप इि पररिर मे एक सशव मंटदर भी है। गभागहृ मे स्थावपत नरनारायण के प्रततमा के परै के पाि छोटा िा गढ़ढ़ा है स्जिमे जल भरा रहता है। यहां के पजुारी िताते है कक यह र्र्िोत्पला (महानदी) का जल है जो िदैव श्री नारायण के र्रण रज अपने सिर पर रखना र्ाहती है, इि कारण वह स्वय ं प्रकट हुई है। यहा ं वषा भर श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। माघ माि के पणूणामा को 15 टदनों का मेला लगता है जहा ंहजारों की िंख्या मे लोग आते है। इि मंटदर की तलुना तसमलनाडु मे स्स्थत ववष्ट्णुकारं्ी िे की जाती है। यह मंटदर प्रार्ीनकला का उत्कृष्ट्ठ उदाहरण है। यह ईंटो एव ंपत्थरों िे तनसमात है, ताराकृत योजना पर आधाररत है। सशखर मे उपरी भाग नही है यह नागरशैली का सशखर है। इिके द्वार में आठ शाखाएं हैं इिमें ववसभन्न मूततायों के अलंकरण हैं। खरौद (प्रार्ीन इंद्रप्रस्थ) - स्जला मुख्यालय जांजगीर िे 65 ककलोमीटर दरू उत्तर पस्मर्म में

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    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 15

    यह ऐततहासिक एव धासमाक महत्व का स्थल है। कुछ जनश्रुततयों के अनिुार वनवाि काल के काल मे श्रीरामर्ंद्र के अनजु लक्ष्मण ने इिकी स्थापना की थी यहां अदभुत सशव सलगं है जो नकुीले िलुआ पत्थरों का एक गचु्छा िवालाख सलगं स्वरूप मे है। यहां अन्य कई मंटदर जैिे शिरी मंटदर, कंठी देउल मंटदर आटद है। इिकी तुलना सशव कांर्ी िे की जाती है। यहां श्रद्धालुओं का आगमन वषा भर रहता है। यहां महासशवरात्रि मे ववशाल मेला लगता है। यह छत्तीिगढ़ की प्रमुख नदी र्र्िोत्पला (महानदी) के तट पर स्स्थत है। खरौद मे कलर्ुरी कालीन मंटदर, मूततायों के िाथ सशलालेख भी समले है। यह स्थान सशवरीनारायण का ही अंग है। िवाार्धक प्रार्ीन शिरी मंटदर भी है स्जिे परुात्तव ववभाग ने अर्धग्रटहत कर सलया है। लक्ष्मणेमवर मंटदर सशव मंटदर के दीवार पर ताम्रपि एव ं सशलालेख उत्कीणा है। इि स्थान का भ्रमण सशवरीनारायण के िाथ ही ककया जाता है। रायगढ़ - रायगढ़ त्रिलािपरु िभंाग के अंतगात एक स्जला है। जो केवल छत्तीिगढ़ ही नही ंिस्ल्क परेू भारत वषा में अपने कोिा सिल्क एव ंस्जंदल स्टील के नाम िे ववख्यात है। रायगढ़ में स्वतंिता पवूा एक शाही राज था और छत्तीिगढ़ के िंस्कृतत मे प्रमुख स्थान था कला और िंगीत को यहााँ के राजा का िंरक्षण प्राप्त था। तत्कालीन राजा र्िधर सिहं स्वय ंतिला वादन एव ंनतृ्य कला मे सिद्धहस्त थे और िंगीत पर अनेक पसु्तकों की रर्ना भी की थी। उनके नाम िे आज रायगढ़ मे एक िंगीत िमारोह मनाया जाता है। स्जिे र्िधर िमारोह कहत े हैं। इिे उस्ताद अलाउद्दीन िस्ममसलत रूप िे प्रस्तुत करत े हैं। र्िधर सिहं ने िंगीत मे रायगढ़ घराना स्थावपत ककया।

    िरगुजा - िरगजुा स्जले का प्रार्ीन ऐततहासिक महत्व रहा है। पाटलीपिु के मयों के पहले नन्दों के शािन काल में यह के्षि नदंवशं के अर्धकार मे था। तीिरी शताब्दी ई.प.ू यह के्षि पलाम ूस्जले के राजवशं के अंदर था और कालातंर 1882 रघनुाथ शरण सिहं देव के अर्धकार मे आ गया। िरगजुा के्षि महाकाव्य काल िे आज तक अपनी िंस्कृतत एव ंऐततहासिक धरोहरों को िर्ाने का प्रयाि कर रहा है। यह मान्यता है कक कालीदाि जिेै महाकवव एव ंह्वेनिांग जिेै महान पयाटक िे यह धरती पवूा मे वणणात की जा र्ुकी है। छत्तीिगढ़ का प्रमखु खतनज कोयला का यहा ंप्रर्ुर भंडार है। इिके अततररक्त यरेूतनयम का भी भंडार है। रामदाहा - स्जला मुख्यालय िकंुैठपरु िे 160 ककलोमीटर दरू गरुूघािीदाि राष्ट्रीय उद्यान के तनकट भावरखोल के तनकट िनाि नदी द्वारा 120 फुट र्ैड़ा जलप्रपात िनता है। जो िघन वनाच्छाटदत है और इिकी प्राकृततक िुन्दरता दशानीय है। यहां वपकतनक के सलये भ्रमण ककया जा िकता है। अमतृधारा जलप्रपात - मनेंद्रगढ़ िकंुैठपरु मागा पर नागपरु नामक स्थान िे 10 ककलोमीटर एव ंिरििपरु िे 18 ककलोमीटर की दरूी पर हिदेव नदी अमतृधारा स्स्थत है। वनों के िीर् स्स्थत यह प्रपात अिीम आनदं की अनभुूतत देता है। अमतृधारा जल प्रपात 10 फुट र्ौड़ा तथा लगभग 90 फुट ऊंर्ाई िे र्गरता है। हिदेव नदी के उद्गम पर ग्वार घाट नामक जलप्रपात स्स्थत है। स्जिकी र्ौड़ाई 10 फुट एव ं ऊंर्ाई लगभग 60 फुट है। इि स्थान पर आंवला के वकृ्ष िहुतायत मे पाये जाते हैं।

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    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 16

    तमोरवपगंला अभ्यारण्य - िरगजुा स्जले में स्स्थत तमोर वपगंला हरी-भरी ऊंर्ी-नीर्ी पत्रिकाओं िे तघरा हुआ है, तमोर वपगंला िरगजुा स्जले के पवूोत्तर भाग में स्स्थत है। इिकी िीमा झारखंड राज्य को स्पशा करती है तथा जशपरु स्जले िे तनकलने वाली कहार नदी तमोर वपगंला को सिरं्र्त करती है। यह 608 वगा ककलोमीटर में ववस्ततृ है। यहां वन्य जीवों मे िाघ, तेंदआु, भाल,ू र्ीतल, िांभर, िोनकुत्ता के अततररक्त हाथी अक्िर ववर्रण करते हुये पाये जाते हैं। तातापानी - अंत्रिकापरु-रामानजुगजं राजमागा पर 80 ककलोमीटर दरू स्स्थत तातापानी प्राकृततक उष्ट्ण जल का स्रोत है। यहां 10 स्रोत स्स्थत हैं। यहां के जल का तापमान 85 ड़डग्री िेंटीगे्रड है। जल के तलहटी मे पड़े पाषाणखंड भी अत्यर्धक गमा हैं। रक्िगंडा जलप्रपात - िरगजुा के र्ांदनी थाना के िमीप रेण नदी का प्रवाह इि नदी का जल ऊंर्ाई िे र्गरकर िकरें, गहरे कंुड का तनमााण करता है और 100 मीटर लमिी िुरंग िे होत ेहुये यह पानी िाहर तनकलता है। जो रंग त्रिरंगा टदखाई देता है। कोटली जलप्रपात - अंत्रिकापरु-कुिमी मागा पर 70 ककलोमीटर की दरूी पर स्स्थत ड़डपाडीह िे 15 ककलोमीटर दरू कन्हार नदी पर स्स्थत कोठली जलप्रपात है जो आकषाण का केन्द्र है। िेमरिोत अभ्यारण्य - अंत्रिकापरु िे 58 ककलोमीटर दरू सिदंरू, िेमर-रे्तन तथा िांिे नटदयों के प्रवाह के्षि में आने वाले इि अभ्यारण्य का ववस्तार 430.36 वगा ककलोमीटर है। इिके अर्धकाशं भाग मे िेमर नदी का िहाव है अतः इिका नाम िेमरिोत है। इि के्षि मे अर्धकांश िािं पाये जाते है तथा इिके

    अततररक्त यहां िाल, िरई, तेंद ू तथा आम के वकृ्ष पाये जात े है। वन्य जीवों मे तेंदआु, गौर, नीलगाय, भाल,ू िोनकुत्ता एव ं सियार आटद स्वच्छंद ववर्रण करते हैं। मैनपाट - िरगजुा स्जले का यह के्षि प्राकृततक दृस्ष्ट्टकोण िे अलौककक है। अंत्रिकापरु िे इिकी दरूी 85 ककलोमीटर है जो अंत्रिकापरु-रायगढ़ राजमागा पर स्स्थत है। यह अत्यतं ही शीत के्षि है। छत्तीिगढ़ का िवोच्र् सशखर गौरलाटा भी इिी के्षि मे स्स्थत है। अनेक ितत प्रवाटहत नटदयां, वनो के अंदर कलकल करत ेझरने और जंगलों िे तघरा यह पयाटन स्थल छत्तीिगढ़ का मुख्य पवातीय पयाटन स्थल है। िरभंजा जलप्रपात िे र्गरता मोततयों की तरह जल, िूया की ककरणों के िंपका में आते ही इंद्रधनषुीय रंग त्रिखेर देता है। इिकी ऊंर्ाई 150 फुट है। वषाा ऋतु मे उठते मेघ कमरों की णखडककयों िे िलोत प्रवेश करने का प्रयाि करते हैं। ऐिा प्रतीत होता है कक कालीदाि के मेघ िरू्ना लाये है। मैनपाट के टाइगर प्वाइंट की प्रततध्वतन ककिी सिहं की गजाना िे कम नही लगती। इिके मततरंगा पहाड़ िे तनकली ररहंद नदी और इिके तटों पर ववकसित िंस्कृतत एक िार पनुः नदी घाटी िभ्यता की याद टदलाती है। िंपणूा मैनपाट के्षि प्रकृतत के कौमाया िुंदरता का िोध काराता है। यहां ततब्िततयों का तनवाि स्थान है। इनके द्वारा तनसमात कालीन ववमव प्रसिद्ध है। मैनपाट पामेसलयन और जाििूी कुत्तों के सलये प्रसिद्ध है गमी के टदनों में इिकी जलवाय ु शीतल और िुखद रहती है। रामगढ़ - रामगढ़-अंत्रिकापरु िे 43 ककलोमीटर की दरूी पर स्स्थत है। प्रार्ीन इततहाि के आधार पर प्रयाग रामेमवरम ्मागा पर दंडकारण्य स्स्थत है। इततहािववद कतनधम ने इिे रामायण काल

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    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 17

    मे वणणात र्र्िकूट माना है। कुछ ववद्वानों का यह भी मत है कक महाकवव कालीदाि मे महाकाव्य मेघदतू की रर्ना यहााँ की थी। यहा ंपर िहने वाली रेणुका नदी स्जिके तटों पर प्रार्ीन मंटदरों के अवशेष तथा प्रार्ीन िभ्यता के ववकाि के तथ्य प्रकाश मे आए है। प्रार्ीन मानव अपनी कलावप्रयता को असभव्यक्त करने के सलये कंदराओ ं मे शैलर्र्ि अंककत करते थे। यहां र्ट्टानों को दो अधार्ंद्राकार भागों मे काटकर गफुाओं का तनमााण ककया गया है। इिे िीतािेंगरा और जोगीमारा नाम टदया गया है। इन गफुाओं मे उत्कीणा कला मानव के मूल असभव्यस्क्त के िाकार स्वरूप का प्रमाण देती है। कला ककिी की जागीर नही अवपतु िहर्री है, यह मानव जीवन के प्रत्येक पररस्स्थततयों का दपाण है। िीतािेंगरा की गफुा की िनावट नाट्यशाला के िमान है और िंभवतः यह ववमव की प्रार्ीनतम ्नाट्यशाला है। इिके अंदर उत्कीणा लेख गपु्तकालीन ब्राही सलवप के िमान हैं तथा कही-ंकहीं नागरी सलवप और मौयाकालीन सलवपयों का भी प्रयोग ककया गया है। एक स्थान पर कुछ िंख्यात्मक गान भी सलखे है। िीता िेंगरा के िारे मे यह मान्यता है कक श्री रामर्ंद्र के वनवाि काल मे िीता िही तनवाि करती थी। इिके तनकट दिूरी गफुा जोगी मारा है। जो िााँर्ी एव ं भरहुत की खुदाई िे प्राप्त िाक्ष्यों के िमान है। इिके अंदर जो सभत्ती र्र्ि ईिा पवूा 30 वीं शताब्दी के सशलालेखों के िमान सलवप है। इिके अततररक्त तुराापानी जो स्वच्छ जल के र्ट्टान के िीर् िे िहती है एक पानी की धारा है। पनरुी दरवाजा, वसशष्ट्ट गफुा, सिहं दरवाजा तथा महेशपरु जहा ं7 वीं िदी िे 10 वीं

    िदी तक के ववशाल मंटदरों का भग्नावशेष है। यहां िंभवतः द्रववड़ जाततयों का अवशेष था। गुरूघािीदाि राष्ट्रीय उद्यान - पवूावती िंजय राष्ट्रीय उद्यान जो मध्यप्रदेश के िीधी एव ंछत्तीिगढ़ के कोररया एव ंिरगजुा के्षि में फैला था, स्जिमें छत्तीिगढ़ स्स्थत के्षिों को समलाकर गरुूघािीदाि राष्ट्रीय उद्यान िनाया गया। इिका के्षिफल 1440 वगा ककलो मीटर है तथा केन्द्र कोररया स्जले के पस्मर्मोत्तर के मध्य मे स्स्थत है। यह छत्तीिगढ़ के खुििरुत ववहारों मे िे एक है परंतु कम प्रर्ाररत एव ंअंदरूनी के्षि में होने के कारण यह ख्यातत प्राप्त या लोकवप्रय नहीं िन िका है। यह राष्ट्रीय उद्यान िनाि नदी के प्रवाह के्षि के अंतगात आता है। यहां अर्धकत्तर िाल के वन पाये जाते है। वन्य जीवों मे र्ीतल, भाल,ू िाभंर ,िाघ, नीलगाय,एव तेंदआु आटद हैं। जशपुर - जशपरु स्जला छत्तीिगढ़ के पवूी भाग मे स्स्थत है। जशपरु स्जला प्राकृततक रूप िे अत्यतं िुन्दर है। िरगजुा िंभाग के अतंगात एक स्जला है स्जिका मुख्यालय जशपरु नगर है। जशपरु स्जले मे स्स्थत छत्तीिगढ़ का िििे छोटा अभ्यारण्य जो 104.55 वगा ककलोमीटर मे ववस्ततृ है। इिमें कई ककस्म के वन्य प्राणी पाये जाते हैं। इि के्षि में तपकरा नामक स्थान को नागलोक कहा जाता है। कारण यहा ं ववसभन्न प्रजातत के ववशधर नाग पाये जाते हैं। ‘कोटत्रिरा’ ईि नदी के तट पर स्स्थत एक िरुमय स्थान है। जशपरु के दक्षक्षण पवूा मे स्स्थत पडंरा पाट िे ईि नदी तनकलती है, जो महानदी की िहायक है। यहां का िगीर्ा तहिील जलप्रपातों और प्राकृततक िौन्दयो िे भरा है स्जिमें राजपरुी, धनपरुी, रानीदाह, भृंगराज अत्यतं ही िुदंर और मनोरम जलप्रपात है। जशपरु नगर िे 15 ककलोमीटर की दरूी पर लोरो घाट है। वहा ं फूल और वकृ्षों की

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    पीअर रीव्यडू रेफ्रीड ररसर्च जर्चल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 18

    घाटी है। इनके िीर् उपस्स्थ्त लोरो घाट के झरने का पानी मोततयों के िदृमय जान पडता है। छत्तीिगढ़ वन ववभाग अि इिे फूलों की घाटी के रूप मे पररवततात करने का प्रयाि कर रही है। िांस्कृततक पयाटन छत्तीिगढ़ में िांस्कृततक मेले एव ं उत्िव तथा सशल्पकला भारतीय िंस्कृतत के अंग है। ग्रामीण कलाकारों एव ंसशल्पकारों की कला जिेै-िस्तर की ‘घडवा’ सशल्प कला तथा स्थानीय त्यौहारों मे जैिे ‘िस्तर का दशहरा’ नारायणपरु की मडई, ‘भोरम उत्िव’ ‘रावतनार्ा उत्िव’ रायगढ़ का ‘र्िधर िमारोह’ आटद प्रमुख हैं। यहां के लोकनतृ्य भी प्रसिद्ध है। दंतेवाड़ा में फागनु मड़ई के अविर पर पशु नतृ्य होता है। र्ीतल आटद जो स्वांग नतृ्य हुआ करत ेहैं। इनमें असभनय की भी ववशेषता देखी जा िकती है। महाभारत एव ं रामायण के ववववध प्रिंगो पर आधाररत कई नतृ्य होते हैं। स्जिमें भतरा नाट्य शैली जो एक स्वतंि नाट्यशलैी का लोकनाट्य है, देखने योग्य है। िस्तर का गेंड़ी नतृ्य प्रसिद्ध है, गेंड़ी िािं या लकड़ी िे िनाई जाती है, और उिे दोनो परैों मे अलग अलग िाधं टदया जाता है। गेंड़ी नताकों की गेंड़ी िाधना इतनी आमर्याजनक होती है कक वे एक गेंड़ी का जमीन िे उपर उठाकर केवल एक गेंड़ी पर आरूढ़ होकर कूद-कूद कर नार्ते हैं। छत्तीिगढ़ की लोककला में िस्तर का प्रमुख योगदान है। यहां की पाषाण कला उन्नत है। स्जिमें िारिरु और नारायणपरु ववशेषरूप िे प्रसिद्ध हैं। छत्तीिगढ़ की मतृतका सशल्पकला के कलाकार एव ं उत्पाद यहां के लगभग िभी अंर्लों मे पाये जाते हैं। छत्तीिगढ़ की मसृ्त्तका सशल्पकला टेराकोटा के नाम िे प्रसिद्ध है। छत्तीिगढ़ की काष्ट्ठकला और िांिकला अत्यतं ही आकषाक है।

    िस्तर का दशहरा अपने आप मे एक ववर्र्ि पारंपररक त्यौहार है। यह त्यौहार माता दंतमेवरी देवी को िमवपात है, जो 15 टदनों तक र्लता है। यह िंपणूा िस्तर की जनता की एकता का प्रतीक है। माता दंतमेवरी के छि को रथ पर िठैाने िे लेकर िस्तर के राजमहल तक पहुाँर्ने तथा राजमहल िे वापि मंटदर तक पहुर्ने तथा राजमहल िे वापि मंटदर तक पहंुर्ाने की किया में प्रत्येक आटदवािी िमाज का श्रमदान ववसभन्न स्वरूपों मे रहता है। इि आधार पर पयाटन कें द्रों का िवेक्षण कर इिे छत्तीिगढ़ के र्ार राजस्व िंभागों को प्रमुख केन्द्र मानते हुए ववसभन्न राजस्व स्जलों मे स्स्थत पयाटन स्थलों का महत्व और उनके स्वरूपों मे ववभास्जत ककया गया है। तनष्ट्कषा िंपणूा भारत वषा मे परूि िे पस्मर्म और उत्तर िे दक्षक्षण तक पयाटन की अपार िंभावनाएं हैं। टहमाच्छाटदत पवात श्रृंखलाओं िे िागर की गहराई तक एव ंहरे भरे मैदानी के्षि एव ंअभेद्य गहन वनों िे लेकर मरूस्थल तक की ववशेषतायें इि देश के पयाटन को िशुोसभत करती है। िमदृ्ध ऐततहासिक िास्कृततक प्रार्ीन परंपरायें दशानीय है। छत्तीिगढ़ राज्य इन्ही िारे ववशेषताओ ं िे पररपणूा है परंतु िाधनों के अभाव के कारण पणूातः ववकसित नही हो पाया है। के्षिीय आधार पर इनके िवेक्षण िे वास्तववकता का पता र्लता है तथा वे तथ्य भी उजागर होते हैं स्जनकी अतत आवमयकता है, जो छत्तीिगढ़ के पयाटन को एक िमदृ्ध एव ंशस्क्तशाली स्वरूप दे िकत े हैं। िवेक्षण िे ज्ञात है कक अर्धकाशंतः पयाटन केन्द्र आधारभतू िुववधाओं के अभाव के कारण ववकसित नही हो पा रहे हैं। यहााँ वतामान में पयाटन मुख्यतः धासमाक है। स्जिके कारण िाहरी पयाटकों की िंख्या कम है। िुरक्षा के

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    अभाव के िाथ ठहरने और खाने पीने की िमुर्र्त व्यवस्था नहीं है और पयाटन केन्द्रों पर मागादशाकों का अभाव है। छत्तीिगढ़ में इको टूररज्म को िमुर्र्त ढंग िे ववकसित ककया जा

    िकता है। िरगजुा, िस्तर, दंतेवाड़ा और त्रिलािपरु स्जले में इकोटूररज्म के ववकसित होने की प्रर्रु िंभावनाएं ववद्यमान हैं।

    बिलासपरु एव ंसरगजुा सभंाग के पयचटर् एव ंधार्मचक स्थल क्रमांक पयचटर्

    कें द्र कें द्र के अंतगचत दर्चर्ीयस्थल कें द्र से अर्ुमानर्त दरूी एवं पहंुर् मागच

    1 त्रिलािपुर कानन पंडारी अभ्यारण्य, अर्ानकमार, पररपथ रतनपुर मल्हार तालागाम्र िेलगहना अमरकंटक लुतरा शरीफ

    त्रिलािपुर-तखतपुर मागा 10 ककमी दरूी त्रिलािपुर-पेंड्रा मागा 58 ककमी दरूी त्रिलािपुर-कोरिा मागा 25 ककमी दरूी त्रिलािपुर-सशवरीनारायण मागा 32 ककमी त्रिलािपुर-रायपुर मागा 24 ककमी दरूी त्रिलािपुर-पेंड्रा मागा 50 ककमी की दरूी त्रिलािपुर-पेंड्रा मागा 123 ककमी की दरूी त्रिलािपुर-अकलतरा मागा 30 ककमी दरूी

    2

    कोरिा

    कोरिा तुमहाण लाफागढ़ र्ैतुरगढ़ पाली

    त्रिलािपुर िे िड़क िे 124, रेल िे 90 ककमी कटघोरा िे 20 ककमी की दरूी पाली िे 11 ककमी की दरूी पाली िे 28 ककमी कोरिा िे त्रिलािपुर िड़क मागा िे 62 ककमी

    3 जाजंगीर-र्ांपा

    सशवरीनारायण खरौद,प्रार्ीन इन्द्रप्रस्थ

    जाजंगीर र्ापंा िे िड़क मागा द्वारा 41 ककमी त्रिलािपुर िे िड़क मागा द्वारा 36 ककलोमीटर

    4 रायगढ़ रायगढ़ त्रिलािपुर िे हावड़ा मागा पर रेल द्वारा 132 ककमी 5 िरगुजा िरगुजा

    कलर्ा भदवाही अमतृधारा जल प्रपात रामदाहा तातापानी कोटली जलप्रपात िमरिोत अभ्यारण्य मैनपान रामगढ़, गुरू घािीदाि उद्यान

    त्रिलािपुर िे अनुपपुर रेलमागा अंत्रिकापरु िड़क मागा अंत्रिकापुर िे उदयपुर िड़क मागा िे 63 ककलोमीटर अंत्रिकापुर-मनेन्द्रगढ़ िड़क मागा िे 120 ककमी अंत्रिकापुर-िकंुैठपुर मागा िे 160 ककमी अंत्रिकापुर िे िड़क मागा द्वारा 80 ककमी अंत्रिकापुर-कुिमी िड़क मागा िे 70 ककमी अंत्रिकापुर िड़क मागा िे डीपाडीह 90 ककमी अंत्रिकापुर िे रायगढ़ िड़क मागा पर 85 ककमी अंत्रिकापुर-मनेन्द्रगढ़ मागा पर नागपरु िे 10 ककमी

    िगीर्ा िगीर्ा जशपुर िे िड़क मागा 112 ककलोमीटर 6 जशपुर जशपुर नगर

    लोरोधाट, रानी-दाह प्रपात, दमेरा एव हरााडीपा

    त्रिलािपुर िे िड़क मागा द्वारा 208 ककलोमीटर जशपुर िे िड़क मागा द्वारा 20 ककलोमीटर

    7 मनने्द्रगढ़ अमतृधारा जलप्रपात िरगुजा िे 120 ककलोमीटर िड़क मागा

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    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 5, Issue 5 20

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