for a richer haul
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www.afeias.com IMPORTANT NEWSCLIPPINGS (09-Aug-21)
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Date:09-08-21
For A Richer Haul
Olympic medals come when massive amounts of cash meet absolutely professional talent spotting
TOI Editorials
We have done well but we must do much better.
Tokyo has seen India score its biggest ever medal
haul of 7 but rank only 48 in the overall tally. In
2008 we asked why it had taken so long for the first
individual gold to come yet celebrated grandly, not
knowing the wait for the next one would be 13
years long. Such a drought must not be repeated.
We must triple our gold tally in Paris and take it to
10 in Los Angeles. These are realistic goals.
Though shooting disappointed in Tokyo its base
has been cemented over the past decade; now fill in
the gaps. Embrace more ambitious visions in
wrestling and boxing too.
Countries like the UK and China have achieved a
striking upswing in Olympic fortunes with massive
injections of cash. By one expert estimate GoI
spends 3 paise per day per capita on sports as
compared to China’s Rs 6.10, almost 200 times
more. Still, money alone cannot cut it. Detailed
planning, efficient scouting, investing in disciplines
with the best medal prospects, thoroughly professionalising sports management, these are the true brahmastras.
The PPP model has scored wins in Tokyo but there is room for improvement. Alongside international exposure,
pro leagues in men’s and women’s hockey plus a vibrant tournament circuit in individual sports, will make the
difference between being on the podium or not. Corporate sponsors must really step up here, to help build a
healthier ecosystem where audiences engage with a variety of sports and more jobs open up for sportspersons.
Expanding India’s talent lab is governments’ job. Our Olympians’ background stories make it clear how meagre
resources remain at the grassroots level, how lackadaisical the sport administrations are. Realising our
ambitions at the 2024 and 2028 Olympics means the work of identifying the next Neeraj Chopra, Mirabai
Chanu, PV Sindhu, Manpreet Singh … must gather pace right away.
Finally, have the Tokyo Olympics been worth it? Every human being who has been uplifted by the grit, grace
and excellence displayed by the world’s athletes amid a global pandemic, would say an emphatic yes.
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Date:09-08-21
Hail Neeraj Chopra! And a Golden Future
Spearhead a thriving athletics business
ET Editorials
India has a new hero in real life, Neeraj Chopra. By becoming the first Indian to win a track and field gold at the
Olympics, he has set a record and secured for himself a lucrative future of bounteous awards, endorsement deals
and even, with his good looks, a possible Bollywood look-in. But that is not all. The more the rewards of
athletic success, the greater the incentive for fresh talent to enter the field and do well. Neeraj Chopra’s gold
medal-winning throw of the javelin is going to open a new segment of India’s burgeoning sports business,
specifically, athletics, and, as a byproduct, many more golds for India in future international sporting meets.
Success for national teams in sports and games comes when such success translates into a financial win for
those who star in such success. So far, in India, this has demonstrably worked only in cricket. But with a
population larger than that of the entire African continent, India should be able to produce winners in every
sport and game imaginable. That means spotting the right talent at an early age, nurturing it during school and
higher levels of education and launching it into a career that, over the athlete’s lifetime, earns at least as well as
a decent job. In India, outside the tiny layer of the elite, parents set their children’s life goals. Of course, the
children of politicians, fortune tellers and priests have a genetic career path. For the rest, notions of success still
form a tiny cluster around doctors, engineers, chartered accountants, civil servants, MBAs and lawyers. Few
would think of letting, leave alone encouraging, their offspring to pursue careers in sports. That changed with
the Indian Premier League, for cricket. Some wrestling success saw intense interest in that sport. Other sports
are gradually beginning to register on the edges of parental consciousness.
Neeraj Chopra has done for athletics across India what a Payyoli Express (PT Usha) had achieved in Kerala.
That lone winner will soon have company, lots of them. May they charge into a golden future!
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Date:09-08-21
भारतीय हॉकी के सितारे और िामाजिक हकीकत
शेखर गुप्ता
जिस दिन भारतीय मदिला िॉकी टीम टोक्यो ओललिंपिक के
सेमीफाइनल में अिेंटीना से िारी, िो व्यजक्त सुर्खियों में आए
क्योंकक उन्िोंने ओललिंपिक की सबसे खतरनाक फॉरवर्ि र्खलाडर्यों में गिनी िा रिी विंिना कटाररया के घर के िास 'िश्न'
मनाया िो िरअसल एक शलमिंिा करने वाली िरकत थी। विंिना ने
िक्षिण अफ्रीका के र्खलाफ अिम मुकाबले में टीम की ओर से
ििली िैदिक (एक मैच में तीन िोल) भी लिाई थी। इस िीत के
साथ भारत अिंततम चार में ििुिंचा था।
यि खराब 'िश्न' ककस बात का था? क्योंकक ये व्यजक्त उच्च
िातत के थे और विंिना एक िललत िररवार की िैं। स्थानीय
मीडर्या ररिोटों के अनुसार िोनों िुरुषों की समस्या यि थी कक
मदिला िॉकी टीम में कई िललत िैं। इसे राष्ट्िीय शमि किना और
िोषी लोिों के र्खलाफ कडी कारिवाई की मािंि करना उगचत िै,
िालािंकक विंिना के भाई के िवाले से किा िया िै कक िुललस थाने के
अगिकारी उनकी लशकायतों िर ध्यान निीिं िे रिे थे। िालािंकक मैं इससे पे्ररणा लेकर एक िोर्खम भरे िेत्र में प्रवेश कर रिा ि िं और
सवाल करना चािता ि िं कक आर्खर किकेट समेत अन्य खेलों से इतर िॉकी में ऐसा क्या िै िो भारत की िातत, िातीयता, भौिोललक
और िालमिकता आिाररत पवपविता को इतने बेितर ढिंि से िेश करती िै।
मैं इसे िोर्खम भरा िेत्र क्यों किता ि िं? ििली बात, इसललए क्योंकक उच्च िातत जिसका तमाम बिसों और सोशल मीडर्या िर िबिबा िै उसे 'िातत' िैसे पिछडे मुद्िों िर चचाि करना िसिंि निीिं क्योंकक ये भारत को 'िीछे' ले िाती िैं। िब भी कोई व्यजक्त किकेट में िारिंिररक उच्च िाततयों के िबिबे की बात करता िै तो लोिों की नाराििी िेखते िी बनती िै। प्रततकिया इतनी तीव्र िोती िै कक िम
एक सािारण बात किने में भी घबराते िैं और वि यि कक भारतीय किकेट में समावेशन बढऩे के साथ इसका स्तर भी सुिरा िै। या एक
सवाल कर सकते िैं कक अिर भारतीय किकेट िािंतत तेि िेंिबािों की बिौलत उभरी िै तो और उसके िास बडी तािाि में तेि िेंिबाि
िैं तो ये प्रततभाएिं किािं से आई िैं? यदि इससे ककसी के सवणि िौरव को ठेस ििुिंचती िै तो मैं िमा चािता ि िं लेककन भारतीय किकेट में समावेशन बढऩे के बाि यि अगिक प्रततभासिंिन्न, आिामक, ऊिािवान और सफल बनी िै। इसके ललए टीम और बीसीसीआई नेततृ्व
को शे्रय दिया िाना चादिए कक विािं सिी मायनों में प्रततभा का मान ककया िया।
ि सरी ओर िॉकी में कुछ तो िै जिसने िमेशा इस खेल को उिेक्षित रखा: अल्िसिंख्यक, आदिवासी, िौण समझे िाने वाले विि और
िाततयािं इसमें प्रमुखता से दिखती िैं। िम समािशास्त्र की बात निीिं कर सकते लेककन इततिास और तथ्यों की कर सकते िैं। अतीत में मुजस्लम और लसख, एिंग्लो इिंडर्यन, ि वी और मध्य भारत के मैिानों के विंगचत आदिवासी विि, मर्णिुरी, कोिावा आदि िशकों तक
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िॉकी में अिनी प्रततभा का िुनर बबखेरते रिे िैं। ििंिाब के मुख्यमिंत्री अमररिंिर लसिंि तथा अन्य लोिों की इस बात के ललए आलोचना ककउन्िोंने याि दिलाया कक ओललिंपिक में कािंस्य ििक िीतने वाली भारतीय िुरुष िॉकी टीम के आठ सिस्य उनके राज्य के िैं। उन्िोंने
लसख निीिं किा लेककन िमें याि रखना िोिा।
िम तथ्यों और इततिास िर भरोसा करेंिे। भारत ने ििली बार 1928 में एम्सटर्िम ओललिंपिक में िॉकी में भाि ललया था। ध्यान चिंि
टीम में थे लेककन टीम के कप्तान का आगिकाररक नाम था ियिाल लसिंि। उनका ि रा नाम िै ियिाल लसिंि मुिंर्ा। आिको मिानायक
बबरसा मुिंर्ा याि िैं? िेश का ििला ओललिंपिक स्वणिििक एक ऐसे व्यजक्त के नेततृ्व में आया िो झारखिंर् के िरीब आदिवासी िररवार
से था। मुझे निीिं लिता कक िेश का कोई अन्य बडा खेल ऐसा िावा कर सकता िै।
यि एक समदृ्ि िरिंिरा की शुरुआत थी ििािं ि वी-मध्य िेत्र का आदिवासी भारत तनरिंतर िॉकी की प्रततभाएिं िेता रिा िै। इसमें कुछ
बेितरीन बचाव करने वाले र्खलाडी शालमल िैं। मौि िा मदिला टीम में िीि गे्रस एक्का और सलीमा टेटे और िुरुष टीम में वीरेंद्र
लाकडा और अलमत रोदििास इसका उिािरण िैं। इनमें सलीमा स्िाइकर िबकक बाकी सभी डर्फें र्र िैं। यदि ये ियािप्त निीिं तो अतीत
के माइकल ककिं र्ो और दिलीि दटर रिकी िैसे डर्फें र्रों को याि कीजिए।
इस िरिंिरा को आदिवासी िेत्रों में बनी कुछ बेितरीन अकािलमयों ने बढावा दिया िै। झारखिंर् के ख िंटी और ओडर्शा में सुिंिरिढ और
उसके आसिास ऐसी कई अकािमी िैं। ियिाल लसिंि ने भारत को ििला ओललिंपिक स्वणि दिलाने अलावा अन्य मित्त्वि णि काम ककए। बचिन में िी एक बिदटश िािरी िररवार ने उन्िें अिनी छत्रछाया में ले ललया था। उन्िें अध्ययन के ललए ऑक्सफर्ि भेिा िया ििािं उन्िोंने काफी अच्छा प्रिशिन ककया। िरिंतु उन्िोंने आईसीएस बनकर िीवन बबताने के बिाय भारत के ललए खेलना और काम करना चुना। वि आदिवालसयों के प्रतततनगि के रूि में सिंपविान सभा में थे और भारतीयों को वैि रूि से शराब िीने िर िर घ िंट के साथ उनका शुकिया अिा करना चादिए क्योंकक उन्िोंने िमें िेशव्यािी शराबबिंिी के आसन्न सिंकट से बचाया था। उस िािंिीवािी मािौल में सिंपविान सभा का मन शराबबिंिी का था लेककन उन्िोंने िोर िेकर किा कक शराब िीना िम आदिवालसयों की िरिंिरा िै, आि उस िर
प्रततबिंि लिाने वाले कौन िोते िैं?
िॉकी की बात करें तो ििली टीम में आठ एिंग्लो इिंडर्यन थे। िोलकीिर ररचर्ि एलन नाििुर में िन्मे और ओक ग्रोव मस री तथा सेंट
िोसेफ नैनीताल में िढे थे। उन्िोंने ि री प्रततयोगिता में एक िोल निीिं िोने दिया। यदि मैं यिािं-विािं राि से भटक रिा ि िं तो इसललए कक
मैं बताना चािता ि िं कक केवल किकेट निीिं बजल्क सभी खेलों का इततिास दिलचस्ि ककस्सों से भरा रिा िै। बाकी र्खलाडर्यों की बात
करें तो तीन मुजस्लम, एक लसख, युवा ध्यान चिंि और झारखिंर् का एक आदिवासी कप्तान टीम का दिस्सा थे। बाि के ओललिंपिक में मुजस्लमों और लसखों की तािाि में इिाफा िुआ। इसीललए पवभािन ने िेश की िॉकी को झटका दिया। ढेर सारी प्रततभाएिं िाककस्तान
चली िईं और सन 1960 के ओललिंपिक में उसने भारत को स्वणि िीतने से रोक दिया।
च िंकक पवभािन के घाव िरे थे इसललए िाककस्तान िमारा नया प्रमुख प्रततद्विंद्वी बन िया, उसके साथ ििंि भी िोती रिीिं। सन 1970 के
आरिंभ तक िेश की राष्ट्िीय टीम में ज्यािा मुसलमान निीिं थे। भोिाल के शानिार स्िाइकर इनाम-उर-रिमान का कुख्यात मामला भी िुआ जिन्िें 1968 के मैजक्सको ओललिंपिक में ले िाया िया लेककन उन िर भरोसा निीिं िताया िया। िाककस्तान के र्खलाफ तो कतई
निीिं।
बाि में कई मुजस्लम िॉकी लसतारे सामने आए। मोिम्मि शादिि और िफर इकबाल ने भारत की कप्तानी की। सबसे चगचित नाम िै
डर्फें र्र असलम शेर खान का। भारत ने सन 1975 में कुआलालिंिुर में इकलौता पवश्व कि िीता था। सेमीफाइनल में मलेलशया के
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र्खलाफ भारत एक िोल से िीछे था और खेल समाप्त िोने में चिंि लमनट बचे थे। कई िेनल्टी कॉनिर भी लमल रिे थे लेककन सुरिीत
लसिंि और माइकल ककिं र्ो उन्िें िोल में निीिं बिल िा रिे थे।
65वें लमनट में एक िेनल्टी कॉनिर लमला (तब खेल 70 लमनट का िोता था) िो आर्खरी उम्मीि था। तीन बार (1948, 1952 और 1956)
के ओललिंपिक चैंपियन कोच बलबीर लसिंि सीतनयर ने असलम को िीवन मरण का यि शॉट लेने बेंच से बुलाया। अिर आिको वि
फुटेि लमले तो िेर्खए कैसे युवा असलम मैिान में आते िैं अिने िले से ताबीि तनकालकर च मते िैं और बराबरी का िोल िाि िेते िैं। मैच अततररक्त समय में िया और स्िाइकर िरचरण लसिंि िीत दिला िी। िम िानते िैं कक असलम शेर खान बाि में सािंसि बने। आिािी के बाि उन्िोंने िी मुजस्लमों के ललए भारतीय िॉकी के िरवािे खोले। आि 1975 के पवश्व कि के बाि की राष्ट्िीय िॉकी टीम
खोजिए और आि िाएिंिे कक यि रुझान मिब त िोता िया। िर भारतीय टीम चािे मदिला िो या िुरुष, उसमें पवपविता तनखरकर
दिखती िै। मर्णिुर के मैती समुिाय की आबािी बमुजश्कल 10 लाख िै। टोक्यो में नीलकािंत शमाि और सुशीला चान के रूि में िुरुष और
मदिला टीमों में उनकी भािीिारी िेखने को लमली। िाललया अतीत को याि करें तो थोइबा लसिंि, कोठािीत गचिंिलेनसाना और
नीलकमल लसिंि याि आते िैं। क्या किकेट टीम में ि वोत्तर का कोई र्खलाडी िेखा िै आिने?
आर्खर सैकडों वषों से िॉकी विंगचतों का खेल क्यों बना िुआ िै? मुझसे मत ि तछए। मैं केवल िकीकत बता सकता ि िं और याि दिला सकता ि िं कक भारतीय किकेट के उभार में समावेशन का योििान िै। यिािं िातत और शे्रष्ट्ठता की बेतुकी बिस बिंि िोनी चादिए। मेरी बात उच्च िाततयों के र्खलाफ निीिं िै। उनमें काबबललयत िै लेककन िेश तो तभी समदृ्ि िोिा िब िम तमाम सामाजिक दिस्सों की प्रततभाओिं तक ििुिंचेंिे।
Date:09-08-21
खुदरा बािार पर कब्ि ेकी िंग
आलोक िोशी, ( वररष्ठ पत्रकार )
सुप्रीम कोटि ने एमेिॉन के िि में फैसला सुनाया। अर्ानी, अिंबानी को सुप्रीम कोटि से तिडा झटका। सुप्रीम कोटि ने एमेिॉन की यागचका िर िो फैसला सुनाया, उसके शीषिक कुछ ऐसे िी बन सकते िैं। बिरिाल, फ्य चर गु्रि के प्रोमोटर ककशोर बबयानी ने अिना ि रा ररटेल और कुछ िोलसेल कारोबार ररलायिंस ररटेल को बेचने का िो सौिा ककया था, सुप्रीम कोटि ने उस िर रोक लिा िी िै।
यि मामला जितना दिख रिा िै, उससे किीिं ज्यािा िेचीिा िै। अिालत में लडाई िेफ बेिोस के एमेिॉन और फ्य चर गु्रि के प्रोमोटर
ककशोर बबयानी के बीच िी चल रिी थी और आि भी चल रिी िै। लेककन िरअसल यि मुकाबला ितुनया के सबसे अमीर आिमी िेफ
बेिोस और भारत के सबसे अमीर आिमी मुकेश अिंबानी या उनकी किं ितनयों के बीच िै। और िािंव िर िै भारत का ररटेल या खुिरा बािार।
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फॉरेस्टर ररसचि की एक ररिोटि के अनुसार, वषि 2020 में भारत का ररटेल कारोबार करीब 883 अरब र्ॉलर यानी करीब 65 लाख करोड
रुिये का था। इसमें से भी लसफि ककराना या ग्रोसरी का दिस्सा 608 अरब र्ॉलर या 45 लाख करोड रुिये के करीब था। इसी एिेंसी का अनुमान था कक 2024 तक यि कारोबार बढकर एक लाख तीस ििार करोड र्ॉलर या 97 लाख करोड रुिये तक ििुिंच चुका िोिा। यिी वि बािार िै, जिस िर कब्िा िमाने की लडाई एमेिॉन व ररलायिंस ररटेल के बीच चल रिी िै। वि वक्त िया, िब ककशोर बबयानी ररटेल ककिं ि किलाते थे। आि तो वि िो िाटों के बीच फिं से िुए िैं। िीते कोई भी, फ्य चर गु्रि की तो िान िी िानी िै। ककशोर बबयानी के
कारोबार की किानी बिुत से लोिों के ललए सबक का काम भी कर सकती िै कक कैसे एक िरा सी िलती आिको बिुत बडी मुसीबत में फिं सा सकती िै। उन्िोंने एक सौिा ककया था, तब शायि यि सोचा था कक भपवष्ट्य में यि मास्टरस्िोक साबबत िोिा, लेककन अब विी िले की फािंस बन चुका िै।
ककस्सा थोडा लिंबा िै, लेककन िरूरी िै। ककशोर बबयानी ररटेल ककिं ि किलाते थे। ज्यािातर लोि उन्िें िैंटल न स्टोसि और बबि बािार के
नाम से िी ििचानते िैं। िब से ररटेल में पविेशी तनवेश की चचाि शुरू िुई, तभी से यि सवाल ि छा िा रिा था कक ितुनया के बडे दिग्िि
ररटेलर िब भारत आएिंिे, तब उनमें से कौन ककशोर बबयानी को अिना भािीिार बनाने में कामयाब िोिा। ररटेल कारोबार िर भारत
की बडी किं ितनयों की तनिािें भी दटकी थीिं। ररलायिंस ररटेल िीरे-िीरे चला, लेककन अब वि िेश का सबसे बडा ररटेलर बन चुका था।
इस बीच फ्य चर गु्रि कुछ ऐसी िुित में लिा रिा कक ककसी तरि किं िनी में इतना िैसा लाने का इिंतिाम िो िाए कक वि बािार में कमिोर न िडे। ररटेल सेक्टर में पविेशी तनवेश के तनयम उसके रास्ते में बािा खडी कर रिे थे। एमेिॉन िैसी किं िनी भी भारत में िैर
फैलाना चािती थी, लेककन ऑनलाइन कारोबार में लिी किं िनी के ललए इसमें घुसना और मुजश्कल था। कफर 2019 में फ्य चर गु्रि से एक
बयान आया कक उनकी एक किं िनी फ्य चर क िन्स लललमटेर् ने एमेिॉन के साथ करार ककया िै और एमेिॉन ने इस किं िनी में 49
प्रततशत दिस्सेिारी खरीिी िै। िोनों किं ितनयों ने यिी किा था कक यि तो लॉयल्टी िॉइिंट और गिफ्ट वाउचर िैसा काम करने वाली किं िनी िै और इसमें तनवेश का गु्रि के ररटेल कारोबार से कोई ररश्ता निीिं िै।
यि अिंिािा निीिं था कक यि छोटा सा सौिा िी आिे चलकर बिुत बडा बवाल खडा करने वाला िै। शायि ककशोर बबयानी को या फ्य चर
गु्रि के लोिों को अिंिािा रिा िो, मिर तब भी वि शायि यि निीिं सोच रिे थे कक एक दिन उन्िें अिना कारोबार ररलायिंस को बेचना िडेिा। लॉकर्ाउन शुरू िोने के ििले िी किं िनी भारी िरेशानी में थी, लेककन लॉकर्ाउन बिुत मििंिा िडा। पिछले साल अिस्त में फ्य चर गु्रि ने अिना ररटेल कारोबार ररलायिंस को बेचने का समझौता ककया।
यि समझौता िोते िी एमेिॉन के साथ उसके िुराने करार का भ त िाि उठा। एमेिॉन ने अब सामने आकर बताया कक जिस फ्य चर
क िन्स में उसने 49 प्रततशत दिस्सा खरीिा था, वि फ्य चर ररटेल में करीब 10 प्रततशत दिस्सेिारी की माललक िै, इस नाते एमेिॉन भी उस किं िनी में करीब िािंच प्रततशत का दिस्सेिार िै। एमेिॉन ने यि भी किा कक 2019 के करार में एक ररजस्िक्टेर् िसिन्स यानी ऐसे
लोिों और किं ितनयों की ललस्ट थी, जिनके साथ फ्य चर गु्रि को सौिा निीिं करना था। ररलायिंस ररटेल इस ललस्ट में शालमल था।
यि झिडा लसिंिािुर की अिंतरराष्ट्िीय ििंचाट में ििुिंचा और उसने सौिे िर एक तरि से स्टे िे दिया। एमेिॉन िब यि फैसला लाि करवाने की मािंि के साथ दिल्ली िाईकोटि िया, तो विािं से ििला आिेश उसके िी िि में आया। लेककन इसके बाि िाइकोटि की िी बडी बेंच ने इस फैसले को िलटकर सौिे िर रोक लिाने का आिेश खाररि कर दिया। तब मामला सुप्रीम कोटि िया, ििािं से पिछले िुरुवार
को फैसला आया िै। अब सुप्रीम कोटि के फैसले की यि बात समझनी िरूरी िै कक कोटि ने लसफि यि किा िै कक लसिंिािुर की ििंचाट अिर
कोई फैसला सुनाती िै, तो वि भारत में भी लाि िोिा, इसीललए फ्य चर व ररलायिंस का सौिा कफलिाल आिे निीिं बढ सकता।
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इस बीच भारतीय प्रततस्िद्र्िा आयोि, यानी सीसीआई ने एमेिॉन को नोदटस दिया िै कक वषि 2019 में फ्य चर गु्रि के साथ समझौता करते वक्त उसने कुछ िरूरी चीिों को िरिे में रखा था। तकि यि िै कक तब िोनों किं ितनयों ने किा था कक इस समझौते का फ्य चर गु्रि
के ररटेल कारोबार से कोई ररश्ता निीिं िै, िर अब एमेिॉन इसी समझौते के सिारे ररटेल कारोबार का सौिा रुकवाना चािता िै। सीसीआई के िास यि अजख्तयार िै कक अिर वि चािे, तो िुरानी तारीख में भी वि फ्य चर और एमेिॉन के सौिे को रद्ि कर सकता िै।
यि ि रा मामला िेश के ि सरे व्यािाररयों के ललए सबक िै। चािर से बािर िैर फैलाना तो कारोबार में िरूरी िै, लेककन यि ध्यान रखना भी िरूरी िै कक इस चक्कर में किीिं चािर न फट िाए। किि लेने में भी साविान रिें और बडी किं ितनयों से ररश्ते िोडने में तो और भी साविान रिें।