hindi book-singhasan-battisi shri by yashpal-jain
DESCRIPTION
Hindi Book-Singhasan-Battisi Shri by Yashpal-JainTRANSCRIPT
पकाशक
मंती
ससता सािितय मणडल
एन-७७, कनॉट सककस, नई ििलली- ११०००१●
सातंवी बार: २००१
पितयाँ : १,०००
मूलय : र.२०.००●
मुदक
बुकमैन िपनटसक
ििलली -९२
यि माला
इस माला मे बडी सरस-सुबोध भाषा मे भारत की आतमा की झांकी ििखाने का
पयत िकया गया ि।ै भारत संतो, िवदानो, वीरो, पवकतो, तीथो, निियो वनो आिि-आिि
का िशे ि।ै उतर से लेकर िििण तक और पूवक से लेकर पििम तक संसकृित की ऐसी धारा
पवािित िोती िै, जो सारे िशे को एक और अखंड बनाती ि।ै
भारत मे अनेक धमक िै, अनेक भाषांए िै, नाना पकार के आचार-िवचार ि,ै लेिकन ििर
भी अनेकता के बीच एकता ििखाई ितेी ि।ै इसका कारण यि ि ै िक िमारे संतो और
मिापुरषो ने कभी मनुषय के बािरी भेिो पर जोर निी ििया। उनिोने इंसान को इंसान के
रप मे िखेा। संत, तीथक पवकत, नििया आिि िकसी धमक-िवशेष के निी िोते, सबके िोते ि।ै
इस माला की पुसतको के पीछे िमारी यिी भावना ि ैिक पाठक अपने िशे को अचछी
तरि िखेे, उसके असली रप को पिचाने और एक मिान िशे के नागिरक के नाते उनके जो
कतकव िै, उनका पालन करे।
पुसतको की भाषा इतनी आसान ि ैिक कम पढ िलखे पाठक भी इनि ेअचछी तरि पढ
और समझ सकते ि।ै पतयेक पुसतक मे कई-कई िचत भी ििये गए ि।ै िम आशा करते ि ैिक
पाठक इन पुसतको को बड ेचाव से पढगेे, िसूरो को पढवायेगे और इनका भरपूर लाभ लेगे।
-मंती
पाठको से
छोटे-बड ेसबके मन मे किािनयो पढने की इचछा िोती ि।ै किािनया रोचक और
मनोरंजक िो तो वे उनके पीछे खाना पीना सब भूल जाते ि।ै पुरातन काल से अब तक
भांित-भांित की किािनयो की धारा इसी लोकरिच के कारण लगातर बिती चली आ रिी
ि।ै
िमारा पाचीन सािितय तो किािनयो का अटूट भणडार ि।ै और वे किािनया भी ऐसी
ि।ै िक पढ ेजाओ ििर भी तृिि न िो।
इस पुसतक की किािनया ऐसी िी ि।ै उजियनी के राजा भोज के काल मे एक खेत मे
राजा िवकमािितय का िसिासन गडा हआ िमलता ि।ै उसके चारो ओर आठ आठ पुतिलया
ि।ै जब राजा भोज उस िसिासन पर बैठने को िोता ि ैतो वे पुतिलया िखलिखलाकर िसं
पडती ि।ै राजा भोज उनसे िसंने का कारण पूछता ि ैतो पतयेक पुतली राजा िवकमािितय
के गुणो की एक-एक किानी सुनाती ि ैऔर अंत मे किती ि ैिक तुमिारे अंिर ये गुण िो तो
िसिासन पर बैठो।
जैसा िक पुसतक के नाम से मालूम िोता िै, इस पुसतक मे बतीस किािनया ि।ै िर
किानी िसूरी से िभन ि।ै सभी किािनया इतनी ििलचसप ि।ै िक पुसतक को िबना समाि
िकये छोडना किठन ि।ै
िमे आशा ि ैिक पुसतक को सभी वगो के पाठक चाव से पढगेे।
-समपािक
िसिासन बतीसी
बहत ििनो की बात ि।ै उजैन नगरी मे राजा भोज नाम का एक राजा राज
करता था। वि बडा िानी और धमाकतमा था। नयाय ऐसा करता िक िधू और पानी अलग-
अलग िो जाये । उसके राज मे शेर और बकरी एक घाट पानी पीते थे। पजा सब तरि से
सुखी थी।
नगरी के पास िी एक खेत था, िजसमे एक आिमी ने तरि–तरि की बेले और साग-
भािजया लगा रकखी थी।
एक बार की बात ि ैिक खेत मे बडी अचछी िसल हई। खूब तरकािरया उतरी, लेिकन खेत
के बीचो-बीच थोडी-सी जमीन खाली रि गई। बीज उस पर डाले थे, पर जमे निी। सो
खेत वाले न कया िकया िक विां खेत की रखवाली के िलए एक मचान बना िलया। पर
उसपर वि जैसे िी चढा िक लगा िचललाने- "कोई िै? राजा भोज को पकड लाओ और
सजा िो।"
िोते-िोते यि बात राजा के कानो मे पहचंी। राजा ने किा, "मुझे उस खेत पर ले चलो। मै
सारी बाते अपनी आंखो से िखेना और कानो से सुनना चािता ह।ं"
लोग राजा को ले गये। खेत पर पहचंने िी िखेते कया ि ैिक वि आिमी मचान पर खडा
ि ैऔर कि रिा िै- "राजा भोज को िौरन पकड लाओ और मेरा राज उससे ले लो। जाओ,
जलिी जाओ।"
यि सुनकर राजा को बडा डर लगा। वि चुपचाप मिल मे लौटा आया। ििक के मारे उसे
रातभर नीि निी आयी। जयो-तयो रात िबताई। सवेरा िोते िी उसने अपने राजय के
जयोितिषयो और पंिडतो को इकटा िकया उनिोने ििसाब लगाकर बताया िक उस मचान
के नीचे धन िछपा ि।ै राजा ने उसी समय आजा िी िक उस जगि को खुिवाया जाय।
खोिते-खोिते जब कािी िमटी िनकल गई तो अचानक लोगो ने िखेा िक नीचे
एक िसिासन ि।ै उनके अचरज का िठकाना न रिा। राजा को खबर िमली तो उसने उसे
बािर िनकालने को किा, लेिकन लाखो मजिरूो के जोर लगाने पर भी वि िसिासन
िसिासन के चारो ओर आठ-आठ पतुिलया खडी थी।
टस-से मस-न हआ। तब एक पंिडत ने बताया िक यि िसिासन िवेताओ का बनाया हआ
ि।ै अपनी जगि से तबतक निी िटेगा जबतक िक इसको कोई बिल न िी जाय।
राजा ने ऐसा िी िकया। बिल ितेे िी िसिासन ऐसे ऊपर उठ आया, मानो िूलो का
िो। राजा बडा खुश हआ। उसने किा िक इसे साि करो। सिाई की गई। वि िसिासन
ऐसा चमक उठा िक अपने मंुि िखे लो। उसमे भांित-भांित के रत जड ेथे, िजनकी चमक से
आंखे चौिधयाती थी । िसिासन के चारो ओर आठ-आठ
पुतिलया बनी थी। उनके िाथ मे कमल का एक-एक िूल था। किी-किी िसिासन का रंग
िबगड गया था। किी किी से रत िनकल गये थे। राजा ने हकम ििया िक खजाने से रपया
लेकर उसे ठीक कराओ।
ठीक िोने मे पांच मिीने लगे। अब िसिासन ऐसा िो गया था। िक जो भी िखेता,
िखेता िी रि जाता। पुतिलया ऐसी लगती, मानो अभी बोल उठेगी।
राजा ने पंिडतो को बुलाया और किा, "तुम लोग कोई अचछा मुहतक िनकालो। उसी
ििन मै इस िसिासन पर बैठूंगा।" एक ििन तय िकया गया। िरू-िरू तक लोगो को
िनमतण भेजे गये। तरि-तरि के बाजे बजने लगे, मिलो मे खुिशयो मनाई जाने लगी।
सब लोगो के सामने राजा िसिासन के पास जाकर खड ेिो गये। लेिकन जैसे िी
उनिोने अपना िाििना पैर बढाकर िसिासन पर रखना चािा िक सब-की-सब पुतिलया
िखलिखला कर िसं पडी। लोगो को बडा अचंभा हआ िक ये बेजान पुतिलया कैसे िसं पडी।
राजा ने डर के मारे अपना पैर खीच िलया और पुतिलयो से बोला, "ओ पुतिलयो ! सच-
सच बताओ िक तुम कयो िसंी?"
पिली पुतली का नाम था। रतमंजरी। राजा की बात सुनकर वि बोली, " राजन!
आप बड ेतेजसवी ि,ै धनी ि,ै बलवान िै, लेिकन घमंड करना ठीक निी। सुनो! िजस राजा
का यि िसिासन िै, उसके यिां तुम जैसे तो िजारो नौकर-चाकर थे।"
यि सुनकर राजा आग-बबूला िो गया। बोला, "मै अभी इस िसिासन को तोडकर
िमटी मे िमला िगूंा।"
पुतली ने शांित से किा, "मिाराज ! िजस ििन राजा िवकमािितय से िम अलग हई
उसी ििन िमारे भागय िूट गये, िमारे िलए िसिासन धूल मे िमल गया।"
राजा का गुससा िरू िो गया। उनिोने किा, "पुतली रानी ! तुमिारी बात मेरी समझ
मे निी आयी। साि-साि किो।"
पुतली ने किा, "अचछा सुनो।"
: १ :
अंबावती मे एक राजा राज करता था। उसका बडा रौब-िाब था। वि बडा िानी
था। उसी राजय मे धमकसेन नाम का एक और बडा राजा हआ। उसकी चार रािनया थी। एक
थी बाहण िसूरी िितय, तीसरी वैशय और चौथी शूद। बाहणी से एक पुत हआ, िजसका
नाम बाहणीत रकखा गया। िताणी से तीन बेटे हए। एक का नाम शंख, िसूरे का नाम
िवकमािितय और तीसरे का भतृकििर रकखा गया। वैशय से एक लडका हआ, िजसका नाम
चंद रकखा गया। शूदाणी से धनवनतािर हए।
जब वे लडके बड ेहए तो बाहणी का बेटा िीवान बना। बाि मे विां बड ेझगड ेहए।
उनसे तंग आकर वि लडका घर से िनकल पडा और धारापूर आया। ि ेराजन् ! विां का
राज तुमिारा बाप था। उस लडके ने िकया कया िक राजा को मार डाला और राजय अपने
िाथ मे करके उजैन पहचंा। संयोग की बात िक उजैन मे आते िी वि मर गया। उसके
मरने पर िताणी का बेटा शंख गदी पर बैठा। कुछ समय बाि िवकमािितय ने चालाकी से
शंख को मरवा डाला और सवयं गदी पर बैठ गया।
एक ििन राजा िवकमािितय िशकार खेलने गया। िबयावान जंगल। रासता सूझे
निी। वि एक पेड चढ गया। ऊपर जाकर चारो ओर िनगाि िौडाई तो पास िी उसे एक
बहत बडा शिर ििखाई ििया । अगले ििन राजा ने अपने नगर मे लौटकर उसे बुलवाया।
वि आया। राजा ने आिर से उसे िबठाया और शिर के बारे मे पूछा तो उसने किा, "विां
बाहबल नाम का राजा बहत ििनो से राज करता ि।ै आपके िपता गंधवकसेन उसके िीवान
थे। एक बार राजा को उन पर अिवशास िो गया और उनि ेनौकरी से अलग कर ििया।
गंधबकसेन अंबावती नगरी मे आये और विां के राजा िो गये। ि ेराजन्! आपको जग जानता
िै, लेिकन जबतक राजा बाहबल आपका राजितलक निी करेगा, तबतक आपका राज
अचल निी िोगा। मेरी बात मानकर राजा के पास जाओ और पयार मे भुलाकर उससे
ितलक कराओ।’’
िवकमािितय ने किा, "अचछा।" और वि लूतवरण को साथ लेकर विां गया। बाहबल
ने बड ेआिर से उसका सवागत िकया और बड ेपयार से उसे रकखा। पांच ििन बीत गये।
लूतवरण ने िवकमािितय से किा, "जब आप िविा लोगे तो बाहबल आपसे कुछ मांगने को
किगेा। राजा के घर मे एक िसिासन िै, िजसे मिािवे ने राजा इनद को ििया था। और इनद
ने बाहबल को ििया। उस िसिासन मे यि गुण ि ै िक जो उसपर बैठेगा। वि सात दीप
नवखणड पृथवी पर राज करेगा। उसमे बहत-से जवािरात जड ेि।ै उसमे सांचे मे ढालकर
बतीस पुतिलया लगाई गई ि।ै ि ेराजन् ! तुम उसी िसिासन को मागं लेना।"
अगले ििन ऐसा िी हआ। जब िवकमािितय िविा लेने गया तो उसने विी िसिासन
मागं िलया। िसिासन िमल गया। बाहबल ने िवकमािितय को उसपर िवठाकर उसका
ितलक िकया और बड ेपेम से उसे िविा िकया।
इससे िवकमािितय का मान बढ गया। जब वि लौटकर घर आया तो िरू-िरू के
राजा उससे िमलने आये। िवकमािितय चैन से राज करने लगा।
एक ििन राजा ने सभा की और पंिडतो को बुलाकर किा, "मै एक अनुषान करना
चािता ह।ं आप िखेकर बताये िक मै इसके योगय ह।ं या निी।" पंिडतो ने किा, "आपका
पताप तीनो लोको मे छाया हआ ि।ै आपका कोई बैरी निी। जो करना िो, कीिजए।"
पंिडतो ने यि भी बताया िक अपने कुनबे के सब लोगो को बुलाइये, सवा लाख कनयािान
और सवा लाख गाये िान कीिजए, बाहाणो को धन िीिजये, जमीिारो का एक साल का
लगान माि कर िीिजये।"
राजा ने यि सब िकया । एक बरस तक वि घर मे बैठा पुराण सुनता रिा। उसने
अपना अनुषान इस ढगं से पूरा िकया िक ििुनया के लोग धनय –धनय करते रि।े
इतना किकर पुतली बोली, "ि ेराजन् ! तुम ऐसे िो तो िसिासन पर बैठो।" □
पुतली की बात सुनकर राजा भोज ने अपने िीवान को बुलाकर किा, " आज का
ििन तो गया। अब तैयारी करो, कल िसिासन पर बैठेगे।"
अगले ििन जैसे िी राजा ने िसिासन पर बैठना चािा िक िसूरी पुतली, ि ैजो
राजा िवकमािितय जैसा गुणी िो।"
राजा ने पूछा, "िवकमािितय मे कया गुण थे?"
पुतली ने किा, "सुनो ।"
:२:
एक बार राजा िवकमािितय की इचछा योग साधने की हई। अपना राजपाट
अपने छोटे भाई भतृकििर को सौपकर वि अंग मे भभूत लगाकर जंगल मे चले गये।
उसी जंगल मे एक बाहण तपसया कर रिा था। एक ििन िवेताओ ने पसन िोकर उस
बाहण को एक िल ििया और किा, "जो इसे खा लेगा, वि अमर िो जायगा।" बाहण ने
उस िल को अपनी बाहणी को ि ेििया। बाहाणी ने उससे किा, "इसे राजा को ि ेआओ
और बिले मे कुछ धन ले आओ।" बाहण ने जाकर वि िल राजा को ि े ििया। राजा
अपनी रानी को बुित पयार करता था, उससे किा, "इसे अपनी रानी का ि ेििया । रानी
की िोसती शिर के कोतवाल से थी। रानी ने वि िल उस ि ेििया। कोतवाल एक वेशया के
पास जाया करता था। वि िल वेशया के यिां पहचंा । वेशया ने सोचा िक, "मै अमर िो
जाऊंगी तो बराबर पाप करती रहगंी। अचछा िोगा िक यि िल राजा को ि े ि।ूं वि
जीयेगा तो लाखो का भला करेगा।" यि सोचकर उसने िरबार मे जाकर वि िल राजा को
ि े ििया। िल को िखेकर राजा चिकत रि गया। उसे सब भेि मालूम हआ तो उसे बडा
िु:ख हआ। उसे ििुनया बेकार लगने लगी। एक ििन वि िबना िकसी से किे-सुने राजघाट
छोडकर घर से िनकल गया। राजा इंद को यि मालूम हआ तो उनिोने राजय की रखवाली
के िलए एक िवे भेज ििया।
उधर जब राजा िवकमािितय का योग पूरा हआ तो वि लौटे । िवे ने उनि ेरोकां
िवकमािितय ने उससे पूछा तो उसने सब िाल बता ििया। िवकमािितय ने अपना नाम
बताया, ििर भी िवे उनि ेन जाने ििया। बोला, "तुम िवकमािकितय िो तो पिले मुझसे
लडो।"
िोनो मे लडाई हई। िवकमािितय ने उसे पछाड ििया। िवे बोला, "तुम मुझे छोड
िो। मै तुमिारी जान बचाता ह।ं"
राजा ने पूछा, "कैसे?"
िवे बोला, "इस नगर मे एक तेली और एक कुमिार तुमि ेमारने की ििराक मे ि।ै
तेजी पाताल मे राज करता ि।ै और कुमिार योगी बना जंगल मे तपसया करता
‘‘तमु िवकमािितय िो तो पिले मुझसे’ लडो।’’
ि।ै िोनो चािते ि ैिक एक िसूरे को और तुमको मारकर तीनो लोको का राज करे।
योगी ने चालाकी से तेली को अपने वश मे कर िलया ि।ै और वि अब िसरस के पेड पर
रिता ि।ै एक ििन योगी तुमि े बुलायगा और छल करके ले जायगा। जब वि िवेी को
िडंवत करने को कि ेतो तुम कि िनेा िक मै राजा ह।ं िणडवत करना निी जानता। तुम
बताओ िक कैसे करं। योगी जैसे िी िसर झुकाये, तुम खांड ेसे उसका
िसर काट िनेा। ििर उसे और तेली को िसरस के पेड से उतारकर िवेी के आगे खौलते तेल
के कडाि मे डाल िनेा।’’
राजा ने ऐसा िी िकया। इससे िवेी बहत पसन हई और उसने िो वीर उनके साथ
भेज ििये। राजा अपने घर आये और राज करने लगे। िोनो वीर राजा के बस मे रि ेऔर
उनकी मिि से राजा ने आगे बड–ेबड ेकाम िकये।
इतना किकर पुतली बोली, "राजन् ! कया तुममे इतनी योगयता िै? तुम जैसे
करोडो राजा इस भूिम पर िो गये ि।ै"□
िसूरा ििन भी इसी तरि िनकल गया। तीसरे ििन जब वि िसिासन पर बैठने को
हआ तो रिवभामा नाम की तीसरी पुतली ने उसे रोककर किा, "ि ेराजन्! यि कया करते
िो? पिले िवकमािितय जैसे काम करो, तब िसिासन पर बैठना !"
राजा ने पूछा, "िवकमािितय ने कैसे काम िकये थे?"
पुतली बोली, "लो, सुनो ।"
: ३ :
एक ििन राजा िवकमािितय निी के िकनारे अपने मिल मे बैठे गाना सुन रि े थे।
उनका मन संगीत के रस मे डूबा हआ था। इतने मे एक आिमी गुससा िोकर अपनी सी
और बचे के साथ घर से िनकला और वे सब-के-सब निी मे कुि पड।े जब वे डूबने लगे तो
उनिोने पुकारा िक ि ैकोई धमाकतमा, जो िमे िनकाले! आिमी बहत ‘िाय-िाय’ कर रिा था
और अपनी करती पर पछता रिा था। तभी राजा के आििमयो ने राजा को खबर िी । वे
िौड ेआये। आिमी िरैान िोकर कि रिा था िक ि ैकोई ईिर का, बंिा जो िमे पार लगाये
! राजा विां आया और उन लोगो को डूबते िखे सवयं निी मे कूि पडा। पानी मे आगे
बढकर उसने सी और बचे का, िाथ पकड िलया। तभी वि आिमी भी राजा से िलपट
गया। राजा घबराया। उनके साथ वि भी डूबने लगा। उसी समय उसे अपने िोनो वीरो
की याि आयी। याि आते िी वे िोनो विां आ गये और चारो को बािर िनकाल लाये।
वि आिमी राजा के "पैरो पर िगर पडा और बोला, "मिाराज ! आपने िमारी जान
बचाई िै, आप िमारे भगवान िो।" राजा ने किा, "बचाने वाला तो ईिर ि।ै" और बहत-
सा धन िकेर उनि ेिविा िकया ।
पुतली बोली, "ि ेराजन् ! इतने ििममत वाले िो तो िसिासन पर बैठो।" □
मुहतक टल गया। अगले ििन राजा िसिासन पर बैठने के िलए आया तो चंदवाली नाम
की चौथी पुतली ने उसे रोका और किा िक पिले मेरी बात सुन लो।
: ४ :
राजा िवकमािितय ने एक बार बडा िी आलीशान मिल बनवाया। उसमे किी
जवािरात जड ेथे तो किी सोने और चांिी का काम िो रिा था। उसके दार पर नीलम के
िो बडे-बड ेनगीने लगे थे, िजससे िकसी की नजर न लगे। उसमे सात खणड थे। उसके तैयार
िोने मे बरसो लगे। जब वि तैयार िो गया तो िीवान ने जाकर राजा को खबर िी। एक
बाहण को साथ लेकर राजा उसे िखेने गया। मिल को िखेकर बाहण ने किा, "मिाराज
! इसे तो मुझे िान मे ि ेिो।" बाहण का इतना किना था िक राजा ने उस मिल को तंुरत
उसे िान कर ििया। बाहण बहत पसन हआ अपने कुनबे के साथ उसमे रिने लगा ।
एक ििन रात को लकमी आयी और बोली, "मै किां िगर ?" बाहण समझा िक कोई
भूत ि।ै वि डर के मारे विां से भागा और राजा को सब िाल कि सुनाया। राजा ने िीवान
को बुलाकर किा, "मिल का िजतना मूलय िै, वि बाहण को ि ेिो।"
इसके बाि राजा सवयं जाकर मिल मे रिने लगा। रात को लकमी आयी और उसने
विी सवाल िकया। राजा ने ततकाल उतर ििया िक मेरे पलंग को छोडकर जिां चािो िगर
पडो। राजा के इतना किते िी सारे नगर पर सोना बरसा । सवेरे िीवान ने राजा को
खबर िी तो राजा ने िढढोरा िपटवा ििया िक िजसकी िि मे िजतना सोना िो, वि ले ले।
इतना किकर पुतली बोली, " मिाराज !; इतना था िवकमािितय पजा का िितकारी
तुम िकस तरि उसके िसिासन पर बैठने की ििममत करते िो?" □
वि साइत भी िनकल गई। अगले ििन ििर राजा िसिासन पर बैठने को उसकी ओर
बढा िक पांचवी पुतली लीलावती बोली, "राजन् ! ठिरो। पिले मुझसे िवकमािितय के गुण
सुन लो।"
:५:
एक बार िो आिमी आपस मे झगड रि ेथे। एक किता था िक तकिीर बडी िै, िसूरा
किता था िक पुरषाथक बडा ि।ै जब िकसी तरि मामला न िनबटा तो वे इनद के पास गये।
इनद ने उनि ेिवकमािितय के पास भेज ििया। राजा ने उनकी बात सुनी और किा िक छ:
मिीने बाि आना। इसके बाि राजा ने िकया कया िक भेस बिलकर सवयं यि िखेने िनकल
पडा िक तकिीर और पुरषाथक मे कौन बडा ि।ै घूमते-घूमते उसे एक नगर िमला।
िवकमािितय उस नगर के राजा के पास पहचंा और एक लाख रपये रोज पर उसके यिां
नौकर िो गया। उसने वचन ििया िक जो काम और कोई निी कर सकेगा, उसे वि करेगा,
उसे वि करेगा। एक बार की बात ि ैिक उस नगर की राजा बहत-सा सामान जिाज पर
लािकर िकसी िशे को गया। िवकमािितय साथ मे था। अचानक बड ेजोर का तूिान आया।
राजा ने लंगर डलवाकर जिाज खडा कर ििया। जब तुिान थम गया तो राजा ने लंगर
उठाने को किा, लेिकन लंगर उठा िी निी। इस पर राजा ने िवकमािितय से किा, "अब
तुमिारी बारी ि।ै" िवकमािितय नीचे उतरकर गया और भागय की बात िक उसके िाथ
लगाते िी लंगर उठ गया, लेिकन उसके चढने से पिले िी जिाज पानी और िवा की तेजी
से चल पडा।
िवकमािितय बिते-बिते िकनारे लगा। उसे एक नगर ििखाई ििया। जयोिी वि नगर
मे घुसा, िखेता कया ि,ै चौखट पर िलखा ि ैिक यिां की राजकुमारी िसिवती का िववाि
िवकमािितय के साथ िोगा। राजा को बडा अचरज हआ। वि मिल मे गया। अंिर िसिवती
पलंग पर सो रिी थी। िवकमािितय विी बैठ गया। उसने उसे जगाया। वि उठ बैठी और
िवकमािितय का िाथ पकडकर िोनो िसिासन पर जा बैठे। उनका, िववाि िो गया।
उनि ेविां रिते–रिते कािी ििन बीत गये। एक ििन िवकमािितय को अपने नगर
लौटने क िवचार आया और असतबल मे से एक तेज घोडी लेकर रवाना िो गया। वि
अवनती नगर पहचंा। विां निी के िकनारे एक साधु बैठा था। उसने राजा को िूलो की एक
माला िी और किा, "इसे पिनकर तुम जिां जाओगे, तुमि े िति िमलेगी। िसूरे, इसे
पिनकर तुम सबको िखे सकोगे, तुमि ेकोई भी निी िखे सकेगा।" उसने एक छडी भी िी।
उसमे यि गुण था िक रात को सोने से पिले जो भी जडाऊ गिना उससे मांगा जाता, विी
िमल जाता।
िोनो चीजो को लेकर राजा उजैन के पास पहचंा। विां उसे एक बाहण और एक
भाट िमले। उनिोने राजा से किा, "ि ेराजन् ! िम इतने ििनो से तुमिारे दार पर सेवा कर
रि ेिै, ििर भी िमे कुछ निी िमला।" यि सुनकर राजा ने बाहण को छडी ि ेिी और भाट
को माला। उनके गुण भी उनि ेबता ििये। इसके बाि राजा अपने मिल मे चला गया।
छ: मिीने बीत चुके थे। सो विी िोनो आिमी आये, िजनमे पुरषाथक और भागय को
लेकर झगडा िो रिा था। राजा ने उनकी बात का जवाब ितेे हए किा, "सुनो भाई, ििुनया
मे पुरषाथक के िबना कुछ निी िो सकता। लेिकन भागय भी बडा बली ि।ै" िोनो की बात
रि गई। वे खुशी-खुशी अपने अपने घर चले गये।
इतना किकर पुतली बोली, "ि े राजन् ! तुम िवकमािितय जैसे तो िसिासन पर
बैठो।" □
उस ििन का, मुहतक भी िनकल गया। अगले ििन राजा िसिासन की ओर बढा तो
कामकंिला नाम की छठी पुतली ने उसे रोक िलया। बोली, " पिले मेरी बात सुनो।"
: ६ :
एक ििन राजा िवकमािितय अपनी सभा मे बैठा हआ था िक एक बाहण आया। उसने
बताया िक उतर मे एक जगंल ि।ै उसमे एक पिाड ि।ै उसके आगे एक तालाब ि,ै िजसमे
सििटक का एक खंभा ि।ै जब सूरज िनकलता ि ैतब वि भी बढता जाता ि।ै िोपिर को
वि खंभा सूरज के रथ के बराबर पहचं जाता ि।ै िोपिर बाि जब सूरज के िछपने के साथ
वि भी पानी मे लोप िो जाता ि।ै
यि सुनकर राजा को बडा अचंभा हआ। बाहण के चले जाने पर उसने िोनो
वीरो को बुलाया और बाहण की बताई सब बात सुनाकर किा िक मुझे उस तालाब पर ले
चलो।
वीरो ने बात-की बात मे उसे विां पहचंा ििया। राजा िखेता कया ि ैिक तालाब का
चारो ओर से पका घाट बना ि।ै और उसके पानी मे िसं, मुगाकिबया चकोर, पनडुबबी
िकलोल कर रिी ि।ै राजा बहत खुश हआ। इतने मे सूरज िनकला। खंभा ििखाई िनेे लगा।
राजा ने वीरो से किा िक मुझे खंभे पर िबठा िो। उनिोने िबठा ििया। अब खंभा ऊंचा िोने
लगा। जयो जयो वि सूरज के रथ के बराबरा पहचंा, राजा को गमी लगने लगी। जब वि
सूरज के रथ के बराबर पहचंा, राजा जलकर अंगारा िो गया। सूरज के रथवान ने यि िखेा
तो रथ को रोक िलया। सूरज ने झांका तो उसे जला हआ आिमी ििखाई ििया। उसने
सोचा िक जबतक मरा हआ आिमी पडा ि,ै तबतक मै भोजन कैसे करं। उसने अमृत लेकर
राजा पर िछडका। राजा जी उठा। उसने सूरज पणाम िकया। सूरज ने पूछा तो उसने बता
ििया िक मेरा नाम िवकमािितय ि।ै सूरज ने अपना कुणडल उतारकर राजा को ििया और
उसे िविा िकया।
राजा अपने नगर मे लौटा। रासते मे उसे एक गुसाई िमला। उसने किा, ‘ि ेराजा ! यि
कुणडल मुझे ि ेिो।" राजा ने िसंकर वि कुणडल उसे ि ेििया और अपने घर चला आया।
इतना किकर कामकंुिता बोली, "तुम ऐसे िो तो िसिासन पर बैठो।" □
राजा बडा गुससा हआ। उसने मन-िी-मन किा, " कुछ भी िो, मै कल िसिासन पर
जरर बैठूंगा।"
राजा खंभे पर बैठ गया।
अगले ििन जब वि ऐसा करने लगा तो कोमुिी नाम की सातवी पुतली उसके पैरो मे
आ िगरी। बोली,
"जरा मेरी बात सुन लो, तब िसिासन पर बैठना।"
: ७ :
एक ििन राजा िवकमािितय सो रिा था। आधी रात बीत चुकी थी। अचानक उसे िकसी के
रोने की आवाज सुनायी िी। राजा ढाल-तलवार लेकर, िजधर से आवाज आ रिी थी, उधर
चल पडा। चलते-चलते निी पर पहचंा। िखेता कया ि ैिक एक बडी सुनिर तरण सी धाड े
मार-मारकि रो रिी ि।ै राजा ने पूछा तो उसने किा िक मेरा आिमी चोरी करता था। एक
ििन कोतवाल ने उसे पकड िलया और सूली पर लटका ििया। मै उसे पयार से खाना
िखलाने आयी हं, पर सूली इतनी ऊंची ि ैिक मेरा िाथ उसके मंुि तक निी पहचं पाता।
राजा ने किा, "इसमे रोने की कया बात िै? तुम मेरे कनधे पर चढकर उसे िखला
िो।"
वि सी थी डायन। राजा के कनधे पर सवार िोकर उस आिमी को खाने लगी। पेट
भरकर वि नीचे उतरी। राजा से बोली,"मै तुमसे बहत खुश ह।ं जो चािो सो मांगो।" राजा
ने किा, "अचछा, तो मुझे अनपूणाक ि ेिो।" वि बोली, "अनपूणाक तो मेरी छोटी बिन के
पास ि।ै तुम मेरे साथ चलो, ि ेिगूंी।"
वे िोनो निी के िकनारे एक मकान पर पहचें। विां उस सी ने ताली
बजाई। बिन आयी। सी ने उसे सब बात बताई और किा िक इसे अनपूणाक ि ेिो। बिन ने
िसंकर उसे एक थैली िी और किा, ‘जो भी खाने की चीज चािोगे, इसमे से िमल
जायगी।" राजा ने खुश उसे ले िलया और विां से चल ििया। निी पर जाकर उसने सान-
धयान पूजा-पाठ िकया। इतने मे एक बाहण विां आया। उसने किा, "भूख लगी ि।ै" राजा
ने पूछा, "पूछा, "कया खाओगे ?" उसने जो बताया, विी राजा ने थैली मे िाथ डालकर
िनकालकर ि ेििया। बाहण ने पेट भरकर खाया, ििर बोला, "कुछ िििणा भी तो िो।"
राजा ने किा, "जो मांगोगे, िगूां।" बाहण ने विी थैली मांग ली। राजा ने खुशी-खुशी ि ेिी
और अपने घर चला आया।
पुतली बोली, "ि ेराजन् ! िवकमािितय को िखेो, इतनी मेिनत से
पाई थैली बाहण को ितेे ने लगी। तुम ऐसे िानी िो तो िसिासन पर बैठो, निी तो पाप
लगेगा।" □ राजा भोज िसिासन पर बैठने को उतावला िो रिा था। अगले ििन जब वि
िसिासन पर बैठने को आगे बढा िक पुषपावती नाम की आठवी पुतली ने उसे रोक ििया।
बोली, "इस पर बैठने की आशा छोड िो।"
राजा ने पूछा, "कयो?"
उसने किा, "लो सुनो।"
: ८ :
एक ििन राजा िवकमािितय के िरबार मे एक बढई आया। उसने राजा को काठ
का, एक घोडा ििखाया और किा िक यि ने कुछ खाता िै, न पीता ि ैऔर जिां चािो, विां
ले जाता ि।ै राजा ने उसी समय िीवान को बुलाकर एक लाख रपया उसे िनेे को किा।,
"यि तो काठ का ि ैऔर इतने िाम का निी ि।ै" राजा ने िचढकर किां, "िो लाख रपये
िो।" िीवान चुप रि गया। रपये ि ेििये। रपये लेकर बढई चलता बना, पर चलते चलते
कि गया िक इस घोड ेमे ऐड लगाना कोडा मत मारना।
एक ििन राजा ने उस पर सवारी की। पर वि बढई की बात भूल गया। और उसने
घोड ेपर कोडा जमा ििया। कोडा लगना था िक घोडा िवा से बाते करने लगा और समुद
पार ले जाकर उसे जंगल मे एक पेड पर िगरा ििया। लुढकता हआ राजा नीचे िगरा मुिाक
जैसा िो गया। संभलने पर उठा और चलते-चलते एक ऐसे बीिड वन मे पहचंा िक
िनकलना मुिशकल िो गया। जैसे-तैसे वि विां से िनकला। िस ििन मे सात कोस चलकर
वि ऐसे घने जंगल मे पहचंा, जिां िाथ तक निी सूझता था। चारो तरि शेर-चीते ििाडते
थे। राजा घबराया। उसे रासता निी सूझता था। आिखर पंदि ििन भटकने के बाि एक
ऐसी जगि पहचंा जिां एक मकान था। और उसके बािर एक ऊंचा पेड और िो कुए ंथे।
पेड पर एक बंििरया थी। वि कभी नीचे आती तो कभी ऊपर चढती।
राजा पेड पर चढ गया और िछपकर सब िाल िखेने लगा। िोपिर िोने पर एक
यती विां आया। उसने बाई तरि के कुए ंसे एक चुललू पानी िलया और उस बंििरया पर
िछडक ििया। वि तुरनत एक बडी िी सुनिर सी बन गई। यती पिरभर उसके साथ रिा,
ििर िसूरे कुए ंसे पानी खीचकर उस पर डाला िक वि ििर बंििरया बन गई। वि पेड पर
जा चढी और यती गुिा मे चला गया।
राजा को यि िखेकर बडा अचंभा हआ। यती के जाने पर उसने भी ऐसा
िी िकया। पानी पडते िी बंििरया सुनिर सी बन गई। राजा ने जब पेम से उसकी ओर
िखेा तो वि बोली, "िमारी तरि ऐसे मत िखेो। िम तपसवी ि।ै शाप ि ेिगेे तो तुम भसम
िो जाओगे।"
राजा बोला, " मेरा नाम िवकमािितय ि।ै मेरा कोई कुछ निी िबगाड सकता ि।ै"
राजा का नाम सुनते वि उनके चरणो मे िगर पडी बोली, "ि ेमिाराज! तुम अभी यिां से
चले जाओ, निी तो यती आयगा और िम िोनो को शाप िकेर भसम कर िगेा।"
राजा ने पूछा, "तुम कौन िो और इस यती के िाथ कैसे पडी?"
वि बोली, "मेरा बाप कामिवे और मां पुषपावती ि।ै जब मै बारि बरस की हई तो मेरे
मां-बाप ने मुझे एक काम करने को किा। मैने उसे निी िकया। इसपर उनिोने गुससा िोकर
मुझे इस यती को ि ेडाला। वि मुझे यिां ले आया। और बंििरया बनाकर रकखा ि।ै सच िै,
भागय के िलखे को कोई निी मेट सकता।"
राजा ने किा, "मै तुमि े साथ ले चलंूगा।" इतना किकर उसने िसूरे कुए ं का, पानी
िछडककर उसे ििर बंििरया बना ििया।
अगले ििन वि यती आया। जब उसने बंििरया को सी बना िलया तो वि बोली, "मुझे
कुछ पसाि िो।"
यती ने एक कमल का िूल ििया और किा, " यि कभी कुमिलायगा निी और रोज
एक लाल िगेा। इसे संभालकर रखना।"
यती के जाने पर राजा ने बंििरया को सी बना िलया। ििर अपने वीरो को बुलाया।वे आये
और तखत पर िबठाकर उन िोनो को ले चले। जब वे शिर के पास आये ता िखेते कया िै
िक एक बडा सुनिर लडका खेल रिा ि।ै अपने घर चला गया। राजा सी को साथ लेकर
अपने मिल मे आ गये।
अगले ििन कमल मे एक लाल िनकला। इस तरि िर ििन िनकलते-िनकलते बहत से
लाल इकटे िो गये। एक ििन लडके का बाप उनि ेबाजार मे बेचने गया। तो कोतवाल ने
उसे पकड िलया। राजा के पास ले गया । लडके के बाप ने राजा को सब िाल ठीक-ठीक
कि सुनाया। सुनकर राजा को कोतवाल पर बडा गुससा आया और उसने हकम ििया िक
वि उसे बेकसूर आिमी को एक लाख रपया ि।े
इ़़तना किकर पुतली बोली, "ि ेराजन्! जो िवकमािितय जैसा िानी और नयायी िो,
विी इस िसिासन पर बैठ सकता ि।ै" □ राजा झंुझलाकर चूप रि गया। अगले ििन वि पका करके िसिासन की तरि बढा िक
मधुमालती नाम की नंवी पुतली ने उसका रासता रोक िलया। बोली, "ि ेराजन् ! पिले
मेरी बात सुनो।"
: ९ :
एक बार राजा िवकमािितय ने िोम िकया। बाहण आये, सेठ-साहकार आये, िशे-िशे
के राजा आये। यज िोने लगा। तभी एक बाहण मन की बात जान लेता था। उसने
आशीवाकि ििया, "ि ेराजन्! तू िचरजीव िो।"
जब मनत पूरे हए तो राजा ने किा, "ि ेबाहण ! तुमने िबना िणडवत् के आशीवाकि
ििया, यि अचछा निी िकया-
जब लग पांव ने लागे कोई।
शाप समान वि आिशष िोई।।"
बाहण ने किा, "राजन् तुमने मन-िी-मन िणडवत् की, तब मैने आशीष िी।"
यि सुनकर राजा बहत पसन हआ और उसने बहत-सा धन बाहण को ििया। बाहण
बोला, "इतना तो िीिजये, िजससे मेरा काम चले।"
इस पर राजा ने उसे और अिधक धन ििया। यज मे और जो लोग आये थे। उनि ेभी
खुले िाथ िान ििया।
इतना किकर पुतली बोली, "राजन् ! तुम िसिासन पर बैठने के योगय
निी। शेर की बराबरी िसयार निी कर सकता, िसं के बराबर कौवा निी िो सकता, बंिर
के गले मे मोितयो की माला निी सोिती। तुम िसिासन पर बैठने का िवचार छोड िो।"□
पर राजा भोज निी माना। अगले ििन ििर िसिासन की ओर बढा तो िसवी
पुतली पेमवती ने उसके रासते मे बाधा डाल िी। बोली, "पिले मेरी बात सुनो।"
राजा ने िबगडकर किा, "अचछा, सुनाओ।"
पुतली बोली, "लो सुनो।"
: १० :
एक ििन िवकमािितय अपने बगीचे मे बैठा हआ था। वसनत ऋतु थी। टेसू िूले हए
थे। कोयल कूक रिी थी। इतने मे एक आिमी राजा के पास आया। उसका शरीर सूखकर
कांटा िो रिा था। खाना पीना उसने छोड ििया था, आंखो से कम िीखता था। वाकुल
िोकर वि बार-बार रोता था। राजा ने उसे धीरज बंधाया और रोने का कारण पूछा। उसने
किा, "मै कािलजर का रिनेवाला ह।ं एक यती ने बताया िक अमुक जगि एक बडी सुनिर
सी तीनो लोको मे निी ि।ैलाखो राजा-मिाराज और िसूरे लोग आते ि।ै उसके बाप ने
एक कढाव मे तेल खौलवा रकखा ि।ै किता ि ैिक कढाव मे सान करके जो जाता िनकल
आयगा, उसी के साथ वि अपनी जल चुके ि।ै जबसे उस सी को िखेा ि,ै तबसे मेरी यि
िालत िो गई ि।ै"
राजा ने किा, "घबराओ मत। कल िम िोनो साथ-साथ विां चलेगे।"
अगले ििन राजा ने सान पूजा आिि से छूटी पाकर िोनो वीरो को बुलाया।
राजा के किने पर वे उनि ेविी ले चले, जिां वि सुनिर सी रिती थी। विां पहचंकर वे
िखेते कया ि ै िक बाजे बज रि ेि।ै और राजकनया माला िाथ मे िलये घूम रिी ि।ै जो
कढाव मे कूिता िै, विी भून जाता ि।ै
राजा उस कनया के रप को िखेकर बहत पसन हआ और कढाव के पास जाकर झट
उसमे कूि पडा। कूिते िी भुनकर राख िो गया।
राजा के िोनो वीरो ने यि िखेा तो अमृत ले आये और जैसे िी राजा पर िछडका,
वि जी उठा।
ििर कया था ! सबको बडा आननि हआ। राजकनया का िववाि राजा
के साथ िो गया। करोडो की समपित िमली।
सी ने िाथ जोडकर किा, "ि ेराजन् ! तुमने मुझे ि:ुख से छुडाया"
राजा के साथ जो आिमी गया था, वि अब भी साथ था। राजा ने उस सी को
बहत-से माल-असबाब सिित उसे ि ेििया।
राजकनया ने िाथ जोडकर राजा से किा, "ि ेराजन्! तुमने मुझे ि:ुख से
छुडाया। मेरे बाप ने ऐसा पाप िकया था िक वि नरक मे जाता और मै उम भर कांरी
रिती।"
इतना किकर पुतली बोली, "िखेा तुमने ! राजा िवकमािितय ने िकतना पराकम
करके पाई हई राजकनया को िसूरे आिमी को ितेे तिनक भी ििचक न की । तुम ऐसा कर
सकोगे तभी िसिासन पर बैठने के योगय िोगे।" □
राजा बड ेअसमंजस मे पडा। िसिासन पर बैठने की उसकी इचछा इतनी बढ गई थी
िक अगले ििन वि ििर विां पहचं गया, लेिकन पैर रखने को जैसे िी बढा िक गयारिवी
पुतली पदावती ने उसे रोक ििया। बोली, "ठिरो मेरी बात सुनो ।"
राजा रक गया। पुतली ने अपनी बात सुनायी।
: ११ :
एक ििन िवकमािितय अपने मिल मे सो रिा था। रात का समय था।
अचानक उतर ििशा से िकसी के रोने की आवाज आयी। राजा ढाल-तलवार लेकर अंधेरी
रात मे उसी तरि बढा। जंगल मे जाकर िखेता कया ि ैिक एक सी धाड ेमार-मारकर रो
रिीि।ै एक िवे उसे िरैान कर रिा था। राजा को कोध आ गया। िोनो मे लडाई ठन गई।
राजा ने ऐसे जोर से तलवार मारी िक िवे का िसर धड से अलग िो गया। िवे के िसर और
धड से िो वीर िनकले। वे राजा से िलपट गये। उनमे से एक को तो राजा ने मार डाला,
िसूरा बचकर भाग गया।
राजा ने उस सी से साथ चलने को किा। सी बोली, "ि ेभूपाल !मै किी भी
जाऊं, उस रािस से बच निी पाऊंगी। उसके पास एक मोिनी िै, जो उसके पेट मे रिती
ि।ै उसमे ऐसी ताकत ि ैिक एक िवे के मरने पर चार िवे बना सकती ि।ै"
यि सूनकर राजा विी िछप गया और िखेने लगा िक आगे कया िोता ि।ै शाम
िोते िी वि िवे ििर आया। उस सी को िरैान करने लगा। राजा से यि न िखेा गया । वि
िनकलकर आया। और िवे से लडने लगा। लडते–लडते उसने ऐसा खांडा मारा िक िवे का
िसर कट गया। धड से मोिनी िनकली और अमृत लेने चली। राजा ने उसी समय अपने
वीरो को बुलाया। उसने किा िक िखेो, यि सी जाने न पाये। वीर उसे पकडकर ले आये।
राजा ने पूछा," तुम कौन िो? िसंती िो तो िूल झडते ि ै। िवे के पेट मे कयो रिती िो ?"
वि बोली, "मै पिले िशव की गण थी। एक बार िशव की आजा को मानने से चूक गई
तो शाप िकेर उनिोने मुझे मोिनी बना ििया। और इस िवे को ि ेििया। तबसे यि मुझे
अपने पेट मे डाले रिता ि।ै ि ेराजन्! अब मै तुमिारे बस मे ह।ं तुमिारे पास रहगंी, जैसे
मिािवे के पास पावकती रिती थी।"
राजा और िवे लडने लगे।
राजा मोिनी और उस िसूरी सी को लेकर अपने मिल मे आया। उसने मोिनी से
िववाि कर िलया। िसूरी सी से यि पूछने पर िक वि कौन िै, उसने बताया, "मै
िसिलदीप के एक बाहण की कनया ह।ं एक ििन अपनी सिखयो के साथ तालाब पर निाने
गई। निा-धोकर पूजा-पाठ करके लौटने लगी तो यि रािय मेरे सामने जा गयां। इसने
मुझे बहत सताया। ि ेराजन् ! तुमने मेरा जो उपकार िकया उसे मै कभी निी भूलंूगी। तुम
िजार बरस तक जीओगे। और नाम कमाओगे।"
इसके बाि राजा ने अपने राजय मे से एक योगय बाहण ढुढंवाकर उसके साथ
उस सी का िववाि करा ििया और सवयं उसका कनयािान िकया। लाखो रपये उनि ेिान
मे ििये।
किानी सुनाकर पुतली बोली, ‘‘ि ेराजा भोज! तुम ऐसे िो तो िसिासन पर बैठो।’’ □राजा जी मसोसकर रि गया। उसने तय िकया िक अब वि िकसी का निी सुनेगा।
लेिकन अगले ििन ििर विी हआ। राजा के िसिासन की ओर पैर बढाते िी बारिवी पुतली
कीितमती ने उसे रोकर सुनाया:
: १२ :
एक ििन िवकमािितय अपने िरबार मे बैठा हआ था। उसने किा, ‘‘किलयुग मे
और कोई िाता िै?’’ एक बाहण ने बताया िक समुद के िकनारे एक राजा रिता िै, वि
बडा िान करता ि।ै सवेरे सान करके एक लाख रपये ितेा ि,ै तब जल पीता ि।ै ऐसा
धमाकतमा राजा िमने निी िखेा।
बाहण की बात सुनकर राजा की इचछा हई िक उसे िखेे। अगले ििन अपने वीरो
की मिि से विां पहचं गया। विां के राजा के उसी बडी आवभगत की ! वि उसके यिां
चार िजार रपये पर काम करने लगा तय हआ िक जो काम कोई भी निी कर सकेगा, उसे
वि करेगा।
विां रिते-रिते नौ-िस ििन बीत गये। राजा िवकमािितय सोचने लगा िक िान मे
यि जो एक लाख रपये ितेा िै, वे किां से आते िै? पता लगाना चाििए। एक ििन िो पिर
रात गये, िवकमािितय ने िखेा िक राजा जंगल की ओर अकेला जा रिा ि।ै वि पीछे-पीछे
िो िलया। जंगल मे जाकर राजा िवेी के मंििर के आगे रका। विां एक कढाव मे तेल खौल
रिा था। राजा ने तालाब मे सान िकया, िवेी के िशकन िकये और ििर कढाव मे कूि पडा।
कूिते िी भुन गया। तब चौसठ जोिगिनया आयी और उनिोने राजा के बिन को नोच-
नोचकर खा डाला। इतने मे िवेी आयी और उसने िाड-िपजर पर अमृत िछडक ििया।
राजा उठ खडा हआ। िवेी ने मंििर मे से एक लाख रपये लाकर ििय। राजा रपये लेकर
चला आया।
अगले ििन िवकमािितय ने भी ऐसा िी िकया। उसे भी लाख रपये िमल गये। इस
पकार सात बार उसने ऐसा िकया। आठवी बार जब वि कढाव मे कूिने को हआ तो िवेी ने
उसे रोक ििया। किा िक जो मांगो सो पाओ। िवकमािितय ने उससे वि थैली मांग ली,
िजसमे से वि िवेी रपये ििया करती थी। िवेी ने ि ेिी।
िसूरे ििन हआ कया िक जब वि राजा रोज के ििसाब से विां पहचंा तो िखेता
कया ि ै िक न विां मंििर िै, न कढाव। वि िु:खी िोकर घर लौट आया। उसे पास िान
करने को रपये न थे तो वि जल कैसे पीता ? कई ििन बीत गये। राजा की ििे सूख गई।
एक ििन िवकमािितय ने उससे पूछा िक आपके िु:ख का कया कारण ि?ै राजा ने बता
ििया। यि सुनते िी िवकम ने थैली िनकालकर उसे ि ेिी और किा, ‘‘मिाराज, अब सान-
धयान करके िनतय कमक कीिजये। इस थैली से िजतने रपये चािोगे, िमल जायंगे।’’
थैली िमल जाने पर राजा का सब काम अचछी तरि से चलने लगा। िवकमािितय
अपने नगर को लौट आया। □
पुतली बोली, ‘‘राजन्, िखेा ऐसी थैली िनेे मे िवकमािितय न ििचका, न
पछताया। ऐसा जो राजा िो, विी िसिासन पर बैठे।’’
राजा भोज बडी िदिवधा मे पडा। कया करे? िसिासन पर बैठने की उसी इचछा
इतनी बलवती थी िक अगले ििन वि ििर उधर गया, पर हआ विी, जो िपछले ििनो मे
हआ था। तेरिवी पुतली सुलोचना आगे आयी और उसने राजा को रोककर किा िक पिले
मेरी बात सुनो, तब िसिासन पर पैर रखना।
: १३ :
एक बार राजा िवगमािितय िशकार खेलने जंगल मे गया। बहत-से मुसाििब भी
उसे साथ थे। जंगल मे जाकर िशकार के िलए तैयारी हई। जानवर िघर-िघरकरआने लगे।
इसी बीच राजा की िनगाि एक पिरि ेपर पडी। उसने बाज छोडा और सवयं घोड ेपर
सवार िोकर उसे िखेता हआ चला। चलते-चलते कोसो िनकल गया। शाम िोने को हई तब
उसे पता चला िक उसे साथ कोई निी ि।ै चारो ओर घना जंगल था। रात िोने पर राजा ने
घोड ेको एक पेड से बांध ििया और उसकी जीन िबछाकर बैठ गया। तभी उसने िखेा िक
पास मे जो निी िै, वि बढती आ रिी ि।ै राजा पीछे िट गया। निी और बढ आयी। उसी
समय उसने िखेा िक धार मे एक मुिाक बिा आ रिा ि ैऔर उस पर एक योगी और एक
बैताल खीचातानी कर रि ेि।ै बैताल किता था िक मै इसे िजार कोस से लाया ह।ं सो मै
खाऊंगा। योगी किता था िक मै इस पर अपना मंत साधंूगा। जब झगडा िकसी तरि निी
िनबटा तो उनकी िनगाि राजा पर पडी। वे उसके पास आये और सब िाल सुनाकर किा
िक तुम जो िैसला कर िोगे, उसे िम मान लेगे। राजा ने किा िक पिले मुझे तुम िोनो कुछ
िो, तब नयाय करंगा। योगी ने िसंकर उसे एक बटुआ ििया और उससे किा िक तुम जो
मांगोगे, विी यि िगेा। बैताल ने उसे मोिनी ितलक ििया। किा िक जब तुम िघसकर इसे
माथे पर लगा लोगे तो सब तुमसे िबेगे, कोई तुमिारे सामने निी ठिर सकेगा।
राजा ने िोनो चीजे ले ली। ििर उसने बैताल से किा िक तुमि ेअपना पेट भरना
ि ैन ! तो मेरे घोड ेको खा लो और इस मुि ेको योगी को ि ेिो। इस िैसले से िोनो खुश िो
गये।
राजा िोनो चीजो को लेकर विां से चला। अपने नगर के पास पहचंने पर उसे एक
िभखारी िमला। विा बोला, ‘‘मिाराज, कुछ िीिजये।’’
राजा ने बटुआ उसे ि ेििया और उसका भेि बता ििया। उसके बाि राजा घर लौट
आया।
पुतली बोली, ‘‘राजन्, इतना ििलवाला कोई िो तो िसिासन पर बैठे।’’ □
िसूरे ििन राजा बड े तडके उठा। उसने िीवान को बुलाकर किा िक आज िम
िसिासन पर जरर बैठेगे। सौ गाये िान की गई। ऐन वक पर चौििवी पुतली ितलोचनी ने
रोक ििया। राजा ने उठा पैर पीछे खीच िलया।
ितलोचनी ने सुनाया:
: १४ :
एक बार राजा िवकमािितय की इचछा हई िक वि यज करे। िशे-िशे को नयोते
भेजे। सातो दीपो के बाहणो को बुलाया, राजाओ को इकटा िकया। एक वीर सवगक के
िवेताओ को बुलाने भेजा राजा ने एक बाहण से किा िक तुम जाकर समुद को नयोता िे
आओ। बाहण चला। चलते-चलते समुद के िकनारे पहचंा। विां िखेता कया ि ैिक चारो
ओर पानी-िी-पानी ि।ै नयोता िकसे िे? तब उसने िचललाकर किा िक ि ेसमुद ! तुम यज
मे आना।
जब वि चला तो आगे उसे बाहण के भेस मे समुद िमला। उसने किा, ‘‘मै आने को
तो तैयार ह,ं लेिकन मेरे आने से पानी भी आयगा और बहत-से नगर डूब जायंगे। सो तुम
राजा से सब बात कि िनेा और ये पांच लाल और घोडा सौगात मे मेरी ओर से ि ेिनेा।’’
बाहण पांचो रत और घोडा लेकर वापस आया और राजा को सब िाल कि
सुनाया। राजा ने वे चीजे उसी बाहण को िान मे ि ेिी। बाहण पसन िोकर चला गया।
पुतली बोली, ‘‘ऐसा कोई िानी िो तो िसिासन पर बैठै!’’ □
राजा चुप रि गया। अगले ििन पंदिवी पुतली अनूपवती की बारी आयी। उसने भी
विी िकया, जो चौिि कर चुकी थी। उसने किा िक लो, िवकमािितय के गुण कान लगा कर
सुनो।
: १५ :
एक ििन राजा िवकमािितय अपनी सभा मे बैठे हए थे। किी से एक पंिडत आया।
उसने राजा को एक शोक सुनाया। उसका भाव था िक जबतक चांि और सूरज िै, तबतक
िवदोिी और िवशासघाती कष पायंगे। राजा ने उसे एक लाख रपये ििये और किा िक
इसका ममक मुझे समझाओ। बाहण ने किा, ‘‘मिाराज! एक बूढा अजानी राजा था। उसके
एक रानी थी, िजसे वि बहत पयार करता था। िमेशा साथ रखता था। िरबार मे भी उसे
साथ िबठाता था। एक ििन उसके िीवान ने किा, ‘‘मिाराज! ऐसा करना अचछा निी ि।ै
लोग िसंते ि।ै अचछा िो िक आप रानी का एक िचत बनवाकर सामने रख ले।’’ राजा को
यि सलाि पसनि आयी। उसने एक बड ेिोिशयार िचतकार को बुलवाया। वि िचतकार
जयोितष भी जानता था। उसने राजा के किने पर एक बडा िी संुिर िचत बना ििया।
राजा को वि बहत पसंि आया। लेिकन जब उसी िनगाि टांग पर गई तो विा एक ितन
था। राजा को बडा गुससा आया िक रानी का यि ितल इसने कैसे िखेा।
उसने उसी समय िचतकार को बुलवाया और जललाि को आजा िी िक जगल मे ले
जाकर उसी आंखे िनकाल लाओ। जललाि लेकर चले। आगे जाकर िीवान ने जललािो को
रोका और किा िक इसे मुझे ि े िो और ििरन की आंखे िनकालकर राजा को ि े िो।
जललािो ने ऐसा िी िकया। जब वे आंखे लेकर आये तो राजा ने किा, ‘‘इनि ेनाली मे िेक
िो।’’
उधर एक ििन राजा का बेटा जंगल मे िशकार खेलने गया। सामने एक शेर को
िखेकर वि डर के मारे पेड पर चढ गया। विां पिले से िी एक रीछ बैठा था। उसे िखेते
िी उसके पाण सूख गये। रीछ ने किा, ‘‘तुम घबराओ निी। मै तुमि ेनिी, खाऊंगा, कयोिक
तुम मेरी शरण मे आये िो।’’ जब रात हई तो रीछ बोला, ‘‘िम लोग िो-िो पिर जागिर
पिरा ि,े तभी इस नािर से बच सकेगे। पिले तुम सो लो।’’
राजकुमार सो गया। रीछ चौकसी करने लगा। शेर नीचे से बोला, ‘‘तुम इस
आिमी को नीचे िेक िो। िम िोनो खा लेगे। अगर तुमने ऐसा निी िकया तो जब इस
आिमी की पिरा िनेे की बारी आयगी, तब यि तेरा िसर काटकर िगरा िगेा।’’ रीछ ने
किा, ‘‘राजा के मारने मे, पेड के काटने मे, गुर से झूठ बोलने मे, और जंगल जलाने मे बडा
पाप लगता ि।ै उससे जयािा पाप िवदोि और िवशासघात करने मे लगता ि।ै मै ऐसा निी
करंगा।’’
आधी रात िोने पर राजकुमार जागा और रीछ सोने लगा। शेर ने उससे भी विी
बात किी। बोला, ‘‘तू इसका भरोसा मत कर। सवेरा िोते िी यि तुझे खा जायगा।’’
रीछ ने किा, ‘‘तुम घबराओ निी।’’
राजकुमार उसकी बातो मे आ गया और इतने जोर से पेड को ििलाया िक रीछ
िगर पड।े इतने मे रीछ की आंखे खुल गई और वि एक टिनी से िलपट गया। बोला, ‘‘तू
बडा पापी ि।ै मैने तेरी जान बचाई और तू मुझे मारने को तैयार िो गया। अब मै तुझे खा
जाऊं तो तू कया कर लेगा!’’
राजकुमार के िाथ-पांव िूल गये। खैर, सवेरे शेर तो चला गया और इधर रीछ
राजकुमार को गंूगा-बिरा बनाकर चलता बना।
राजकुमार घर लौटा तो उसकी िालत िखेकर राजा को बडा िु:ख हआ। उसने
बहतेरा इलाज कराया, पर कोई िायिा न हआ। तब एक ििन िीवान ने किा, ‘‘मेरे बेटे
की बह बहत िोिशयार ि।ै’’ राजा ने किा, ‘‘बुलाओ।’’ िीवान के यिां वि िचतकार िछपा
हआ था। उसने उसका सी का भेस बनवाया और िरबार मे लाया। पि ेकी आड मे वि सी
बैठी। उसने राजकुमार से किा, ‘‘मेरी बात सुनो। िवभीषण बडा शूरवीर था, पर िगा
करके रामचनद से जा िमला और राजय का नाशक हआ। भसमापुर ने मिािवे की तपसया
करके वर पाया, ििर उनिी के साथ िवशासघात करके पावकती को लेने की इचछा की, सो
भसम िो गया। ि ेराजकुमार! रीछ ने तुमिारे साथ इतना उपकार िकया था, पर तुमने उसे
धोखा ििया। पर इसमे िोष तुमिारा निी िै, तुमिारे िपता का ि।ै जैसा बीज बोयेगा, वैसा
िी िल िोगा।’’
इतनी बात सुनते िी राजकुमार उठ बैठा। राजा सब सुन रिा था। बोला, ‘‘रीछ की
बात तुमि ेकैसे मालूम हई?’’
उसने किा, ‘‘राजन्! जब मै पढने जाती थी तो मैने अपने गुर की बडी सेवा की
थी। गुर ने पसन िोकर मुझे एक मंत ििया। उसे मैने साधा। तबसे सरसवती मेरे मन मे
बसी ि।ै िजस तरि रानी का ितल मैने पिचान कर बनाया, वैसे िी रीछ बात जान ली।’’
यि सुनकर राजा सारी बात समझ गया। उसने पिाक िटवा ििया। खुश िोकर िचतकार को
आधा राजय िकेर अपना िीवान बना िलया।
इतना किकर बाहण बोला, ‘‘मिाराज! मेरे शोक का यि ममक ि।ै’’
राजा िवकमािितय ने पसन िोकर िजार गांव उसके िलए बांध ििये।
पुतली बोली, ‘‘कयो राजन् ! ि ैतुममे इतने गुण ?’’
राजा बडी परेशानी मे पडा िीवान ने किा, ‘‘मिाराज ! आप िसिासन
पर बैठेगे तो ये पुतिलया रो-रोकर मर जायंगी।’’ पर राजा न माना। अगले ििन ििर
िसिासन की ओर बढा िक सोलिवी पुतली सुनिरवती बोल उठी, ‘‘िै-िै, ऐसा मत करना।
पिले मेरी बात सुनो।’’
: १६ :
उजैन नगरी मे छतीस और चार जात बसती थी। विां एक बडा सेठ था। वि
सबकी सिायता करता था। जो भी उसके पास जाता, खाली िाथ न लौटता। उस सेठ के
एक बडा सुनिर पुत था। सेठ ने सोचा िक अचछी लडकी िमल जाय तो उसका बयाि कर ि।ूं
उसने बाहणो को बुलाकर लडकी की तलाश मे इधर-उधर भेजा। एक बाहण ने सेठ को
खबर िी िक समुद पार एक सेठ िै, िजसकी लडकी बडी रपवती और गुणवती ि।ै सेठ ने
उसे विां जाने को किा। बाहण जिाज मे बैठकर विां पहचंा। सेठ से िमला। सेठ ने सब
बाते पूछी और अपनी मंजूरी िकेर आगे की रसम करने के िलए अपना बाहण उसके साथ
भेज ििया। िोनो बाहण कई ििन की मंिजल तय करके उजैन पहचें।
सेठ को समाचार िमला तो वि बहत पसन हआ। िोनो ओर से बयाि की तैयारी
िोने लगी। िावते हई। बयाि का ििन पास आ गया तो िचता हई िक इतने िरू िशे इतने
कम समय मे कैसे पहचंा जा सकता ि।ै सब िरैान हए। तब िकसी ने किा िक एक बढई ने
एक उडन-खटोला बनाकर राजा िवकमािितय को ििया था। वि उसे ि ेि ेतो समय पर
पहचंा जा सकता ि ैऔर लग मे िववाि िो सकता ि।ै
सेठ राजा के पास गया। उसने िौरन उडन-खटोला ि ेििया और किा, ‘‘तुमि ेऔर
कुछ चाििए तो ले जाओ।’’
सेठ ने किा, ‘‘मिाराज की िया से सबकुछ ि।ै’’
उडन-खटोला लेकर बारात समय पर पहचं गई और बडी धूम-धाम से िववाि िो
गया। बारात लौटी तो सेठ राजा का उडन-खटोला वापस करने गया। राजा ने किा, ‘‘मै
िी हई चीज वापस निी लेता।’’
इतना किकर उनिोने बहत-सा धन उस सेठ को ििया और किा, ‘‘यि मेरी ओर से
अपने बेटे को ि ेिनेा।’’
पुतली बोली, ‘‘िवकमािितय की बराबरी तो इंद भी निी कर सकता। तुम िकस
िगनती मे िो’’ □
वि ििन भी गुजर गया।
अगले ििन राजा ििर िसिासन पर बैठने को गया तो सतयवती नाम की सतिवी
पुतली ने उसे रोककर यि किानी सुनायी:
: १७ :
एक ििन वीर िवकमािितय अपनी सभा मे बैठा था। अचानक उसने पंिडतो से पूछा,
‘‘बताओ, पाताल का राजा कौन िै?’’ एक पंिडत बोला, ‘‘मिाराज ! पाताल का राजा
शेषनाग ि।ै’’ राजा की इचछा हई िक उसे िखेे। उसने अपने वीरो को बुलाया। वे राजा को
पाताल ले गये। राजा ने िखेा िक शेषनाग का मिल रतो से जगमगा रिा ि।ै दार पर
कमल के िूलो की बंिनवारे बंधी हई ि।ै घर-घर आनंि िो रिा ि।ै खबर िमलने पर
शेषनाग दार पर आया। पूछा िक तुम कौन िो? राजा ने बता ििया। ििर बोला, ‘‘आपके
िशकन की इचछा थी, सो पूरी हई।’’
शेषनाग राजा को अंिर ले गया। विां उसी खूब आवभगत की। राजा पांच-सात
ििन विां रिा। जब िविा मांगी तो शेषनाग ने उसे चार लाल ििये। एक का गुण था िक
िजतने चािो, उतने गिने उससे ले लो। िसूरे लाल से िाथी-घोडे-पालिकया िमलती थी,
तीसरे से लकमी और चौथे से ििरभजन और अनेक काम करने की इचछा पूरी िोती थी।
राजा अपने नगर मे आया। विां उसे एक भूखा बाहण िमला। उसने
िभिा मांगी। राजा ने सोचा िक एक लाल ि ेि।े उसने बाहण को चारो लाल के गुण बताये
और पूछा िक कौन-सा लोगे? उसने किा िक मै घर पूछकर अभी आता ह।ं घर पहचंने पर
उसने लालो की बात किी तो बाहणी ने किा, ‘‘वि लाल लो, जो लकमी ितेा िै; कयोिक
लकमी से िी सब काम सधते ि।ै’’ बाहण के बेटे ने किा, ‘‘अकेली लकमी से कया िोगा !
तुम वि लो, िजससे िाथी-घोडे-पालिकया िमलती ि।ै’’ बेटे की बह ने किा, ‘‘तुम वि लो,
िजससे गिने िमलते िै; कयोिक गिनो से बहत-से काम िनकलते ि।ै’’ बाहण ने किा, ‘‘तुम
तीनो बौरा गये िो। मेरी इचछा िसवा धमक के और कुछ निी; कयोिक धमक से जग मे यश
िमलता ि।ै मै तो वि लाल चािता ह ंिजससे धमक-कमक िो।’’ चारो की चार मित। बाहण
कया करे! आकर उसने राजा को सब िाल कि सुनाया। राजा ने किा, ‘‘मिाराज! तुम
उिास न िो। चारो लाल ले जाओ।’’
बाहण को चारो लाल िकेर िवकमािितय अपने घर लौट आया।
पुतली बोली, ‘‘इस किलयुग मे ि ैकोई जो उस राजा के समान िान िे?’’ □
राजा भोज बडा िनराश हआ। अगले ििन जब वि िसिासन पर बैठने को हआ तो
उसे अठारिवी पुतली रपरेखा ने रोक ििया और यि किानी सुनायी:
: १८ :
एक ििन िो सनयासी झगडते हए राजा िवकमािितय के यिां आये। एक किता था
िक सबकुछ मन के वश मे ि।ै मन की इचछा से िी सब िोता ि।ै िसूरा किता था िक
सबकुछ जान से िोता ि।ै राजा ने किा, ‘‘अचछी बात ि।ै मै सोचकर जवाब िगूंा।’’
इसके बाि कई ििन तक राजा िवचार करता रिा। आिखर एक ििन उसने िोनो
संनयािसयो को बुलाकर किा, ‘‘मिराज ! यि शरीर आग, पानी, िवा और िमटी से बना
ि।ै मन इनका सरिार ि।ै अगर ये मन के ििसाब से चले तो घडी भर मे शरीर का नाश िो
जाय। इसिलए मन पर अंकुश िोना जररी ि।ै जो जानी लोग ि।ै, उनकी काया अमर िोती
ि।ै सो ि ेसंनयािसयो ! मन का िोना बडा जररी िै, पर उतना िी जररी जान का िोना भी
ि।ै’’
इस उतर से िोनो संनयासी बहत पसन हए। उसमे से एक ने राजा को खिडया का
एक ढलेा ििया और किा, ‘‘ि ेराजन्! इस खिडया से ििन मे जो िचत बनाओगे, रात को वे
सब शकले तुमि ेपतयि अपनी आंखो से ििखाई िगेी।’’
इतना किकर िोनो संनयासी चले गये। उनके जाने पर राजा ने अपने मिल
िो संनयासी राजा के पास आये।
की सिाई कराई और ििर िकवाड बंि करके उसने कृषण, सरसवती आिि की तसवीरे
बनाई। रात िोने पर वे सब उसे साि िीखने लगे। वे आपस मे जो बात करते थे, वि भी
राजा को सुनायी ितेी थी। सवेरा िोते िी वे सब गायब िो गये और िीवार पर िचत बने
रि गये।
अगले ििन राजा ने िाथी, घोडे, पालकी, रथ, िौज आिि बनाये। रात को ये सब
ििखाई ििये। इसी तरि तीसरे ििन उसने मृिगं, िसतार, बीन, बांसुरी, करताल, अलगोजा
आिि एक-एक बजाने वाले साथ मे बना ििये। रात भर वि गाना सुनता रिा।
राजा रोज कुछ-न-कुछ बनाता और रात को उनका तमाशा िखेता। इस तरि कई
ििन िनकल गये। उधर राजा जब अंिर मिल मे रािनयो के पास निी गये तो उनि ेिचता
हई। पिले उनिोने आपस मे सलाि की, ििर चार रािनया िमलकर राजा के पास आयी।
राजा ने उनि ेसब बाते बता िी। रािनयो ने किा िक िमे बडा िु:ख ि।ै िम मिल मे आपके
िी सिारे ि।ै
राजा ने किा, ‘‘मुझे बताओ, मै कया करँ। जो मांगो, सो ि।ूं’’
रािनयो ने विी खिडया मांगी। राजा ने आनंि से ि ेिी। □
पुतली ने किा, ‘‘राजा भोज, िखेो, कैसी बिढया चीज िवकमािितय के िाथ लगी
थी, पर मांगने पर उसने िौरन ि ेिी। तुम इतने उिार िो तो िसिासन पर बैठो।’’
वि ििन भी िनकल गया। राजा कया करता ! अगले ििन जब िसिासन की ओर
बढा तो तारा नाम की उनीसवी पुतली झट उसके रासते को रोककर खडी िो गई। बोली,
‘‘पिले मेरी बात सुनो।’’
: १९ :
एक बाहण िाथ-पैर की लकीरो को अचछी तरि जानता था। एक ििन उसने रासते
मे एक पैर के िनशान िखेे, िजसमे ऊपर को जानेवाली एक लकीर थी और कमल था।
बाहण ने सोचा िक िो न िो, कोई राजा नंगे पैर इधर से गया ि।ै यि सोचकर वि उन
िनशानो को िखेता हआ उधर चल ििया। कोसभर गया िोगा िक उसे एक आिमी पेड से
लकिडया तोडकर गटर मे बांधते हए ििखाई ििया। उसने पास जाकर पूछा, ‘‘तुम यिां
कबसे िो? इधर कोई आया ि ैकया?’’
उस आिमी ने जवाब ििया, ‘‘मै तो िो घडी रात से यिां ह।ं आिमी तो िरू, मुझे
छोडकर कोई पिरनिा भी निी आया।’’ इस पर बाहण ने उसका पैर िखेा। रेखा और कमल
िोनो मौजूि थे।
बाहण बड ेसोच मे पड गया िक आिखर मामला कया िै? सब लिण राजा के िोते
हए भी इसकी यि िालत िै! बाहण ने पूछा, ‘‘तुम किां रिते िो और लकडी काटने का
काम कबसे करते िो?’’ उसने बताया, ‘‘मै ! राजा िवकमािितय के नगर मे रिता ह ंऔर
जबसे िोश संभाला िै, तब से यिी काम करता ह।ं’’ बाहण ने ििर पूछा, ‘‘कयो, तुमने
बहत िु:ख पाया ि?ै’’ उसने किा, ‘‘भगवान् की इचछा ि ैिक िकसी को िाथी पर चढाये,
िकसी को पैिल ििराये। िकसी को धन-िौलत िबना मांगे िमले, िकसी को मांगने पर टुकडा
भी न िमले। जो करम मे िलखा िै, वि भुगतान िी पडता ि।ै’’
यि सब सुनकर बाहण सोचने लगा िक मैने इतनी मेिनत करके िवदा पढी, सो
झूठी िनकली। अब राजा िवकमािितय के पास जाकर उसे िनशान भी िखंूे। न िमले तो
पोिथयो को जला िगूंा।
इतना सोच वि िवकमािितय के पास पहचंा। राजा के पैर िखेे तो उनमे कोई
िनशान न था। यि िखेकर वि और भी िखुी हआ और उसने तय िकया िक घर जाकर
िकताबे जला िगेा। उसे उिास िखेकर राजा ने पूछा, ‘‘कया बात िै?’’
बाहण ने सब बाते िी। बोला, ‘‘िजसके पैर मे राजा के िनशान ि,ै वि जंगल मे
लकडी काटता ि।ै िजसके िनशान निी िै, वि राज करता ि।ै’’
राजा बोला, ‘‘मिाराज! िकसी के लिण गुि िोते ि,ै िकसी के ििखाई ितेे ि।ै’’
बाहण ने किा, ‘‘मै कैसे जानंू?’’
राजा ने छुरी मंगाकर तलुवे की खाल चीरकर लिण ििखा ििये। बोला, ‘‘िे
बाहण ! ऐसी िवदा िकस काम की, िजसे सब भेि न मालूम िो!’’
यि सुनकर बाहण लिजत िोकर चला गया।
पुतली बोली, ‘‘जो इतना सािस कर सता िो, वि िसिासन पर बैठे। नाम, धमक
और यश आिमी के जाने से निी जाना जाता—जैसे िूल निी रिता, पर उसकी सुगंिध इत
मे रि जाती ि।ै’’□
सुनकर राजा को चेत हआ। किने लगा, ‘‘यि ििुनया िसथर निी ि।ै पेड की छांि
जैसी उसी गित ि।ै िजस तरि चांि-सूरज आते-जाते रिते िै, वैसे िी आिमी का
जीना=मरना ि।ै ििे िु:ख ितेी ि।ै सुख ििर-भजन मे ि।ै’’
राजा ने यि सब सोचा, लेिकन जैसे िी अगला ििन आया िक िसिासन पर बैठने
की ििर इचछा हई। वि उधर गया िक बीसवी पुतली चनदजयोित ने उसे रोक ििया। बोला,
‘‘पिले मेरी बात सुनो।’’
: २० :
एक बार काितक के मिीने मे राजा िवकमािितय ने भजन-कीतकन कराया। राजा की
खबर पाकर िरू-िरू से राजा लोग आये, योगी आये। जब राजा सबका पसाि िनेे लगा तो
उसने िखेा िक और सब िवेता तो आ गये िै, पर चंदमा निी आये। राजा ने अपने वीरो को
बुलाया और उनकी मिि से चंदलोक पहचंा। विां जाकर चंदमा से किा, ‘‘ि ेिवे! मेरा
कया अपराध ि ैजो आपने आने की कृपा निी की ? आपके िबना काम अधूरा रिगेा।’’
चंदमा ने िसंकर किा, ‘‘तुम अपने जी मे उिास न िो। मेरे जाने से संसार मे अंधेरा
िो जायगा। इसिलये मेरा जाना ठीक निी। तुम जाओ और अपना काम पूरा करो।’’
इतना किकर चंदमा ने उनि ेअमृत िकेर िविा िकया। रासते मे राजा िखेते कया िै
िक यम के ितू एक बाहण के पाण िलये जा रि ेि।ै राजा ने उनि ेरोका, पूछने पर मालूम
हआ िक उजैन नगरी के एक बाहण को िमे ििखा िो, तब ले जाना।’’
राजा ने किा, ‘‘पिले उस बाहण को िमे ििखा िो, तब ले जाना।’’
वे सब उजैन आये। राजा ने िखेा िक वि तो उसी का पुरोिित ि।ै राजा ने यम के
ितूो को बातो मे लगाकर मुि ेके मंुि मे अमृत डाल ििया। वि जी उठा। यम के ितू िनराश
िोकर चले गये। पुतली बोली, ‘‘ि ेराजा ! तुम इतना पुरषाथक कर सको तो िसिासन पर
बैठो।’’
राजा ने कीतकन कराया।
राजा मन मारकर रि गया, पर िसिासन पर बैठने की उसकी इचछा जयो-की-तयो
बनी रिी। अगले ििन जब वि उस पर बैठने को हआ तो इकीसवी पुतली अनुरोमवती
रोककर अपनी बात सुनाने लगी।
: २१ :
िकसी नगर मे एक बाहण रिता था। वि बडा गुणी था। एक बार वि घूमते-घूमते
कामानगरी मे पहचंा। विां कामसेन नाम का राजा राज करता था। उसके कामकंिला नाम
की एक नतककी थी। िजस ििन बाहण विां पहचंा, कामकंिला का नाच िो रिा था। मृिगं
की आवाज आ रिी थी। आवाज सुनकर बाहण ने किा िक राज की सभा के लोग बड ेमूखक
िै, जो गुण पर िवचार निी करते। पूछने पर उसने बताया िक जो मृिगं बजा रिा िै, उसके
एक िाथ मे अंगूठा निी ि।ै राजा ने सुना तो मृिगं बजाने वाले को बुलाया और िखेा िक
उसका एक अंगूठा मोम का ि।ै राजा ने बाहण को बहत-सा धन ििया और अपनी सथा मे
बुला िलया। नाच चल रिा था। इतने मे बाहण ने िखेा िक एक भौरा आया और
कामकंिला को काट कर उड गया, लेिकन उस नतककी ने िकसी को मालूम भी न िोने ििया।
बाहण ने खुश िोकर अपना सबकुछ उसे ि ेडाला। राजा बडा गुससा हआ िक उसी िी हई
चीज उसने कयो ि ेिी और बाहण को िशे िनकाला ि ेििया। कामकंिला चुपचाप उसके
पीछे गई और उसे िछपाकर अपने घर मे ले आयी। लेिकन िोनो डरकर विां रिते थे। एक
ििन बाहण ने किा, ‘‘अगर राजा को मालूम िो गया तो िम लोग बडी मुसीबत मे पड
जायंगे। इसिलए मै किी और िठकाना करके तुमि ेले जाऊंगा।’’
इतना किकर वि उजैन मे राजा िवकमािितय के यिां गया और उससे सब िाल
किा। राजा बाहण को लेकर अपनी िौज सिित कामानगरी की तरि बढा। िस कोस
इधर िी डरेा डाला। इसे बाि िवकमािितय ने िकया कया िक वैद का भेस बनाकर
कामकंिला के पास पहचंा। बाहण की याि मे वि बडी बेचैन िो रिी थी। राजा ने किा,
‘‘ऐसे िी िमारे यिां माधव नाम का एक बाहण था, जो िवरि का िु:ख पाकर मर
गया।’’ इतना सुनकर कामकंिला ने एक आि भरी और उसके पाण िनकल गये।
राजा ने लौटकर यि खबर बाहण को सुनायी तो उसकी भी जान िनकल गई।
राजा को बडा िु:ख हआ और वि चंिन की िचता बनाकर खुि जलने को तैयार िो गया।
इसी बीच राजा के िोनो वीर आ गये और उनिोने किा, ‘‘ि ेराजा! तुम ि:ुखी मत िो, िम
अभी अमृत लाकर बाहण और कामकंिला को िजला िगेे।’’
इसके बाि िवकमािितय ने कामानगरी के राजा से युद िकया और उसे िरा िकया।
कामकंिला उसे िमल गई और उसने बडी धूमधाम से उसका िववाि बाहण से कर ििया।
पुतली बोली, ‘‘ि ेराजन्! तुममे इतना सािस िो तो िसिासन पर बैठो।’’
राजा चुप रिा गया। □
अगले ििन उसे बाईसवी पुतली अनूपरेखा ने रोककर यि किानी सुनायी:
: २२ :
एक ििन राजा िवकमािितय ने अपने िीवान से पूछा िक आिमी बुिद अपने कमक से
पाता ि ैया अपने माता-िपता से? िीवान ने किा, ‘‘मिाराज! पूवकजनम मे जो जैसा कमक
करता ि,ै िवधाता वैसा िी उसके भागय मे िलख ितेा ि।ै’’ राजा ने किा, ‘‘यि तुमने कया
किा? जनम लेते िी लडका माता-िपता से सीखता ि।ै’’ िीवान बोला, ‘‘निी मिाराज !
कमक का िलखा िी िोता।’’
इस पर राजा ने कया िकया िक िरू िबयावान मे एक मिल बनवाया और उसमे
अपने िीवान के, बाहण के और कोतवाल के बेटे को जनमते िी गंूगी, बिरी और अंधी
िाइयां िकेर उस मिल मे िभजवा ििया। बारि बरस बाि उनि ेबुलाया। सबसे पिले उसने
अपने बेटा से पूछा, ‘‘तुमिारे कया िाल ि ै?’’ राजकुमार ने िसंकर किा, ‘‘आपके पुणय से
सब कुशल ि।ै’’ राजा ने खुश िोकर मंती की तरि िखेा। मंती ने किा, ‘‘मिाराज ! यि
सब कमक का िलखा ि।ै’’ ििर राजा ने िीवान के बेटे को बुलाया और उससे विी सवाल
िकया। उसने किा, ‘‘मिाराज ! संसार मे जो आता िै, वि जाता भी ि।ै सो कुशल कैसी
?’’ सुनकर राजा चुप िो गया। थोडी िरे बाि उसने कोतवाल के बेटे को बुलाया। कुशल
पूछने पर उसने किा, ‘‘मिाराज! कुशल कैसे िो ? चोर चोरी करते िै, बिनाम िम िोते
ि।ै’’ इसके बाि बाहण के बेटे की बारी आयी। उसने किा, ‘‘मिाराज ! ििन-ििन उमर
घटती जाती ि।ै सो कुशल कैसी ?’’
चारो की बाते सुनकर राजा समझ गया िक िीवान का किना ठीक था। मिल मे
कोई िसखाने वाला निी था। ििर भी वे चारो सीख गये तो इसमे पूवकजनम के कमो का िी
िाथ रिा िोगा। राजा ने िीवान को अपने सब सरिारो का सरिार बनाया और चारो
लडको के िववाि करके उनि ेबहत-सा धन ििया।
राजा ने चारो लडको को बुलाया।
पुतली बोली, ‘‘राजा िोकर भी जो अपनी बात पर िठ न करे और सिी बात को माने,
विी िसिासन पर पांव रकखे।’’
□
अगले ििन तेईसवी पुतली करणवती ने राजा को रोका और अपनी किानी
सुनायी:
: २३ :
जब राजा िवकमािितय गदी पर बैठा तो उसने अपने िीवान से किा िक तुमसे काम
निी िोगा। अचछा िो िक मेरे िलए बीस िसूरे आिमी ि ेिो। िीवान ने ऐसा िी िकया। वे
लोग काम करने लगे। िीवान सोचने लगा िक वि अब कया करे, िजससे राजा उससे खुश
िो। संयोग की बात िक एक ििन उसे निी मे एक बहत िी सुनिर िूल बहता हआ िमला,
िजसे उसने राजा को भेट कर ििया। राजा बडा पसन हआ और उसने किा, ‘‘इस िूल का
पेड लाकर मुझे िो, निी तो मै तुमि ेिशे-िनकाला ि ेिगूंा।’’ िीवान बडा ि:ुखी हआ और
एक नाव पर कुछ सामान रखकर िजधर से िूल बिकर आया था, उधर चल ििया।
चलते-चलते वि एक पिाड के पास पहचंा, जिां से निी मे पानी आ रिा था। वि
नाव से उतरकर पिाड पर गया। विां िखेता कया ि ैिक िाथी, घोड,े शेर आिि ििाड रिे
ि।ै वि आगे बढा। उसे ठीक वेसा िी एक और िूल बिता हआ ििखाई ििया। उसे आशा
बंधी। आगे जाने पर उसे एक मिल ििखाई ििया। विां पेड मे एक तपसवी जंजीर से बंधा
उलटा लटक रिा था और उसे घाव से लह की जो बंूि ेनीचे पानी मे िगरती थी, वे िी िूल
बन जाती थी। बीस और योगी विां बैठे थे, िजनका शरीर सूखकर कांटा िो रिा था।
एक तपसवी उलटा लटका था।
िीवान ने बहत-से िूल इकटे िकये और अपने िशे लौटकर राजा को सब िाल
कि सुनाया। सुनकर राजा ने किा, ‘‘तुमने जो तपसवी लटकता िखेा, वि मेरा िी शरीर
ि।ै पूवक जनम मे मैने ऐसे िी तपसया की थी। बीस योगी जो विां बैठे िै, वे तुमिारे ििये हए
आिमी ि।ै’’ इतना बताकर राजा ने किा, ‘‘तुम िचता न करो, जबतक मै राजा हं, तुम
िीवान रिोगे। अपना पिरचय िनेे के िलए मैने यि सब िकया था। अपने बड ेभाई को मैने
मारा तो इसमे िोष मेरा निी था। जो करम मे िलखा िोता िै, सो िोकर िी रिता।’’
पुतली बोली, ‘‘राजा भोज!तुम िो ऐसे, जो िसिासन पर बैठो?’’
□
अगले ििन चौबीसवी पुतली िचतकला की बारी थी। उसने राजा को रोककर
अपनी किानी किी।
: २४ :
एक बार राजा िवकमािितय गंगाजी निाने गया। विां िखेता कया ि ैिक एक बिनये
की संुिर सी निी के िकनारे खडी एक साहकार के लडके से इशारो मे बात कर रिी ि।ै
थोडी िरे मे जब वे िोनो जाने लगे तो राजा ने अपना एक आिमी उनके पीछे कर ििया।
उसने लौटकर बताया िक उस सी ने घर पर पहचंने पर अपना िसर खोलकर ििखाया,
ििर छाती पर िाथ रकखा, और अंिर चली गई। राजा ने पूछा िक इसका कया मतलब िै
तो उसने किा, ‘‘सी ने बताया िक जब अंधेरी रात िोगी तब मै आऊंगी। साहकार के
लडके ने भी वैसा िी इशारा करके किा िक अचछा।’’
इसके बाि रात को राजा विां गया। जब रात अंधेरी िो गई तो राजा ने िखडकी
पर कंकडी मारी। सी समझ गई िक साहकार का लडका आ गया। वि माल-मता लेकर
आयी। राजा ने किा, ‘‘तुमिारा आिमी जीता ि।ै वि राजा से िशकायत कर िगेा तो
मुसीबत िो जायगी। इससे पिले उसे मार आओ।’’ सी गई और कटारी से अपने आिमी को
मारकर लौट आयी। राजा ने सोचा िक जब यि अपने आिमी की सगी निी हई तो और
िकसकी िोगी। सो वि उसे बिकाकर निी के इस िकनारे पर छोड उधर चला गया। सी ने
राि िखेी। राजा न लौटा तो वि घर जाकर िचलला-िचललाकर रोने लगी िक मेरे आिमी
को चोरो ने मार डाला।
अगले ििन वि अपने आिमी के साथ सती िोने को तैयार िो गई। आधी जल चुकी
तो सिा न गया। कूिकर बािर िनकल आयी और निी मे कूि पडी। राजा ने किा, ‘‘यि
कया?’’ वि बोली, ‘‘इसका भेि तुम अपने घर जाकर िखेो। िम सात सिखया इस नगर मे
ि।ै एक मै हं, छ: तुमिारे घर मे ि।ै’’
इतना किकर वि पानी मे डूब मरी। राजा घर लौटकर गया और सब िाल िखेने
लगा। आधी रात गये छिो रािनया सोने के थाल िमठाई से भरकर मिल के िपछवाड ेगई।
विां एक योगी धयान लगाये बैठा था। उसे उनिोने भोजन कराया। इसके बाि योग-िवदा
से छ: ििे करके छिो रािनयो को अपने पास रकखा। थोडी िरे बाि रािनया लौट गई।
राजा ने सब बाते अपनी आंखो से िखेी। रािनयो के चले जाने पर राजा योगी के
पास गया। योगी के किा, ‘‘तुमिारी जो कामना िो सो बताओ।’’ राजा बोला, ‘‘ि ेसवामी!
मुझे वि िवदा ि ेिो, िजससे एक ििे की छ: ििे ेिो जाती ि।ै’’ योगी ने वि िवदा ि ेिी।
इसे बाि राजा ने उसके टुकडे-टुकड ेकर डाले। ििर वि रािनयो को लेकर गुिा मे आया
और उनके िसर काटकर उसमे बंि करके चला आया। उनका धन उसने शिर के बाहणो मे
बांट ििया।
पुतली बोली, ‘‘ि ेराजा! िो तुम ऐसे, जो िसिासन पर बैठो?’’□
उस ििन भी मुहतक िनकल गया। अगले ििन पचीसवी पुतली जयलकमी ने उसे
रोककर किानी सुनायी:
: २५ :
एक गरीब भाट था। उसकी कनया बयाि के योगय हई तो उसने सारी ििुनया के
राजाओ के यिां चकर लगाये, लेिकन िकसी ने भी उसे एक कौडी न िी। तब वि राजा
िवकमािितय के पास पहचंा और उसे सब िाल कि सुनाया। राजा ने तुरंत उसे िस लाख
रपये और िीरे, लाल, मोती और सोने-चांिी के गिने थाल भर-भरकर ििये। बाहण ने सब
कुछ बयाि मे खचक कर डाला। खाने को भी अपने पास कुछ न रकखा।
पुतली बोली, ‘‘इतने िानी िो तो िसिासन पर बैठो।’’ □
राजा की िरैानी बहत बढ गई। रोज कोई-न-कोई बाधा पड जाती थी। अगले ििन
उसे छबीसवी पुतली िवदावती ने रोका और बोली, ‘‘पिले िवकमािितय की तरि यश
कमाओ, तब िसिासन पर बैठना।’’ इतना किकर उसने सुनाया:
: २६ :
एक ििन राजा िवकमािितय के मन मे िवचार आया िक वि राजकाज की माया मे
ऐसा भूला ि ै िक उससे धमक-कमक निी बन पाता। यि सोच वि तपसया करने जंगल मे
चला। विां िखेता कया ि ैिक बहत-से तपसवी आसने मारे धूनी के सामने बैठे साधना कर
रि ेि ैऔर धीरे-धीरे अपने शरीर को काट-काटकर िोम कर रि ेि।ै राजा ने भी ऐसा िी
िकया। तब एक ििन िशव का एक गण आया और सब तपिसवयो की राख समेटकर उन पर
अमृत िछडक ििया। सारे तपसवी जीिवत िो गये, लेिकन संयोग से राज की ढरेी पर अमृत
िछडकने से रि गया, तपिसवयो ने यि िखेकर िशवजी से उसे िजलाने की पाथकना की और
उनिोने मंजूर कर ली। राजा जी गया। िशवजी ने पसन िोकर उससे किा, ‘‘जो तुमिारे जी
मे आये, वि मांगो।’’
राजा ने किा, ‘‘आपने मुझे जीवन ििया ि ैतो मेरा ििुनया से उदार कीिजये।’’
िशव ने िसंकर किा, ‘‘तुमिारे समान किलयुग मे कोई भी जानी, योगी और िानी निी
िोगा।’’
इतना किकर उनिोने उसे एक कमल का िूल ििया और किा, ‘‘जब यि मुरझाने
लगे तो समझ लेना िक छ: मिीने के भीतर तुमिारी मृतयु िो जायगी।’’
िूल लेकर राजा अपने नगर मे आया और कई वषक तक अचछी तरि से रिा। एक
बार उसने िखेा िक िूल मुरझा गया। उसने अपनी सारी धन-िौलत िान कर िी।
पुतली बोली, ‘‘राजन् ! तुम िो ऐसे, जो िसिासन पर बैठो ?’’□
वि ििन भी िनकल गया। अगले ििन उसे सताईसवी पुतली जगजयोित ने रोककर
यि किानी सुनायी:
: २७ :
एक बार िवकमािितय से िकसी ने किा िक इद के बराबर कोई राजा निी ि।ै यि
सुनकर िवकमािितय ने अपने वीरो को बुलाया और उनि ेसाथ लेकर इंदपुरी पहचंा। इंद ने
उसका सवागत िकया और आने का कारण पूछा। राजा ने किा, ‘‘मै आपके िशकन करने
आया ह।ं’’ इंद ने पसन िोकर उसे अपना मुकुट तथा िवमान ििया और किा, ‘‘जो तुमिारे
िसिासन को बुरी िनगाि से िखेेगा, वि अंधा िो जायगा।’’
राजा िविा िोकर अपने नगर मे आया।.......
राजा इनदपुरी पहचंा।
पुतली किानी सुना रिी थी िक इतने मे राजा भोज िसिासन पर पैर रखकर खडा
िो गया। खड ेिोते िी वि अंधा िो गया और उसे पैर विी िचपक गये। उसने पैर िटाने
चािे, पर िटे िी निी। इस पर सब पुतिलया िखलिखलाकर िसं पडी। राजा भोज बहत
पछताया। उसने पुतिलयो से पूछा, ‘‘मुझे बताओ, अब मै कया करं?’’ उनिोने किा,
‘‘िवकमािितय का नाम लो। तब भला िोगा।’’ राजा भोज ने जैसे िी िवकमािितय का नाम
िलया िक उसे िीखने लगा और पैर भी उखड गये।
पुतली बोली, ‘‘ि ेराजन् ! इसी से मै किती ह ंिक तुम इस िसिासन पर मत बैठो,
निी तो मुसीबत मे पडोगे।’’
□
अगले ििन राजा उसे ओर गया तो मनमोिनी नाम की अटाईसवी पुतली ने उसे
रोककर यि किानी सुनायी:
: २८ :
एक बार िवकमािितय से िकसी ने किा िक पाताल मे बिल नाम का बहत बडा
राजा ि।ै इतना सुनकर राजा ने अपने वीरो को बुलाया और पाताल पहचंा। राजा बिल
को खबर िभजवाई तो उसने िमलने से इंकार कर ििया। इस पर राजा िवकमािितय ने िखुी
िोकर अपना िसर काट डाला। बिल को मालूम हआ तो उसने अमृत िछडकवाकर राजा को
िजिा कराया और किलाया िक िशवराित को आना। राजा ने किा, ‘‘निी, मै अभी िशकन
करंगा।’’ बिल के आििमयो ने मना िकया तो उसने ििर अपना िसर काट डाला। बिल ने
ििर िजनिा कराया और उसके पेम को िखेकर पसन िो, उससे िमला। बोला, ‘‘ि ेराजन् !
यि लाल-मंूगा लो और अपने िशे जाओ। इस मंूगे से जो मांगोगे, विी िमलेगा।’’
मंूगा लेकर राज िवकमािितय अपने नगर को लौटा। रासते मे उसे एक सी िमली।
उसका आिमी मर गया था और वि िबलख-िबलखकर रो रिी थी। राजा ने उसे चुप िकया
और गुण बताकर मंूगा उसे ि ेििया।
पुतली बोली, ‘‘ि ैराजन्! जो इतना िानी और पजा की भलाई करने वाला िो, वि
िसिासन पर बैठे।’’□
इस तरि अटाईस ििन िनकल गये। अगले ििन वैििेी नाम की उनतीसवी पुतली ने
रोककर अपनी गाथा सुनायी:
: २९ :
एक ििन राजा िवकमािितय ने सपना िखेा िक एक सोने का मिल िै, िजसमे तरि-
तरि के रत जड ेिै, कई तरि के पकवान और सुगंिधया िै, िुलवाडी िखली हई िै, िीवारो
पर िचत बने िै, अंिर नाच और गाना िो रिा ि ैऔर एक तपसवी बैठा हआ ि।ै अगले ििन
राजा ने अपने वीरो को बुलाया और अपना सपना बताकर किा िक मुझे विां ले चलो,
जिां ये सब चीजे िो। वीरो ने राजा को विी पहचंा ििया।
राजा को िखेकर नाच-गान बंि िो गया। तपसवी बडा गुससा हआ। िवकमािितय ने
किा, ‘‘मिाराज! आपके कोध की आग की कौन सि सकता िै? मुझे िमा करे।’’ तपसवी
पसन िो गया और बोला, ‘‘जो जी मे आये, सो मांगो।’’ राजा ने किा, ‘‘योिगराज! मेरे
पास िकसी चीज की कमी निी ि।ै यि मिल मुझे ि ेिीिजये।’’ योगी वचन ि ेचुका था।
उसने मिल राजा को ि ेििया।
मिल ि ेतो ििया, पर वि सवयं बडा िखुी िोकर इधर-उधर भटकने लगा। अपना
िखु उसने एक िसूरे योगी को बताया। उसने किा, ‘‘राजा िवकमािितय बडा िानी ि।ै तुम
उसे पास जाओ और मिल को मांग लो। वि ि ेिगेा।’’
तपसवी ने ऐसा िी िकया। राजा िवकमािितय ने मांगते िी मिल उसे ि े ििया।
पुतली बोली, ‘‘राजन् ! िो तुम इतने िानी तो िसिासन पर बैठो ?’’□
अगले ििन रपवती नाम की तीसवी पुतली की बारी थी। सो उसने राजा को
रोककर यि किानी सुनायी:
: ३० :
एक ििन रात के समय राजा िवकमािितय घूमने के िलए िनकला। आगे चलकर
िखेता कया ि ै िक चार चोर खड ेआपस मे बाते कर रि ेि।ै उनिोने राजा से पूछा, ‘तुम
कौन िो?’’ राजा ने किा, ‘‘जो तुम िो, विी मै ह।ं’’ तब चोरो ने िमलकर सलाि की िक
राजा के यिां चोरी की जाय। एक ने किा, ‘‘मै ऐसा मुहतक िखेना जानता ह ंिक जायं तो
खाली िाथ न लौटे।’’ िसूरे ने किा, ‘‘मै जानवरो की बोिलया समझता ह।ं’’ तीसरा बोला,
‘‘मै जिां चोरी को जाऊं, विां मुझे कोई न िखे सके, पर मै सबको िखे लंू।’’ चौथे ने किा
, ‘‘मेरे पास ऐसी चीज ि ैिक कोई मुझे िकतना िी मारे, मै ने मरं।’’ ििर उनिोने राजा से
पूछा तो उनिोने किा, ‘‘मै यि बता सता ह ंिक धन किां गडा ि।ै’’
पांचो उसी वक राजा के मिल मे पहचें। राजा ने जिां धन गडा था, वि सथान
बता ििया। खोिा तो सचमुच बहत-सा माल िनकला। तभी एक गीिड बोला, जानवरो की
बोली समझने वाले चोर ने किा, ‘‘धन लेने मे कुशल निी ि।ै’’ पर वे न माने। ििर उनिोने
एक धोबी के यिां सेध लगाई। राजा को अब कया करना था। वि उनके साथ निी गया।
अगले ििन शोर मच गया िक राज के मिल मे चोरी िो गई। कोतवाल ने तलाश
करके चोरो को पकडकर राजा के सामने पेश िकया। चोर िखेते िी पिचान गये िक रात
को उनके साथ पांचवां चोर और कोई निी, राज था। उनिोने जब यि बात राजा से किी
तो वि िसंने लगा। उसने किा, ‘‘तुम लोग डरो मत। िम तुमिारा कुछ भी निी िबगडने
िगेे। पर तुम कसम लो िक आगे से चोरी निी करोगे।
िजतना धन तुमि ेचाििए, मुझसे ले लो।’’
राजा ने मंुिमांगा धन िकेर िविा िकया।
पुतली बोली, ‘‘ि ेराज भोज! ि ैतुममे इतनी उिारता?’’□
अगले ििन राजा ने जैसे िी िसिासन की ओर पैर बढाया िक कौशलया नाम की
इकतीसवी पुतली ने उसे रोक ििया। बोली, ‘‘ि ेराजा ! पीतल सोने की बराबरी निी कर
सकता। शीशा िीरे के बराबर निी िोता, नीम चंिन का मुकाबला निी कर सकता तुम भी
िवकमािितय निी िो सकते। लो सुना:’’
: ३१ :
राजा िवकमािितय को जब मालूम हआ िक उसका अंतकाल पास आ गया ि ैतो
उसने गंगाजी के िकनारे एक मिल बनवाया और उसमे रिने लगा। उसने चारो ओर खबर
करा िी िक िजसको िजतना धन चाििए, मुझसे ले ले। िभखारी आये, बाहण आये। िवेता
भी रप बिलकर आये। उनिोने पसन िोकर राजा से किा, ‘‘ि ेराजन् ! तीनो लोको मे
तुमिारी िनशानी रिगेी। जैसे सतयुग मे सतयवािी ििरिद, तेता मे िानी बिल और दापर
मे धमाकतमा युिधिषर हए, वैसे िी किलयुग मे तुम िो। चारो युग मे तुम जैसा राजा न हआ
िै, न िोगा।’’
िवेता चले गये। इतने मे राजा िखेता कया ि ैिक सामने से एक ििरन चला आ रिा
ि।ै राजा ने उसे मारने को तीर-कमान उठाई तो वि बोला, ‘‘मुझे मारो मत। मै िपछले
जनम मे बाहण था। मुझे यती ने शाप िकेर ििरन बना ििया ओर किा िक राजा
िवकमािितय के िशकन करके तू ििर आिमी बन जायगा।’’
इतना किते-किते ििरन गायब िो गया और उसी जगि एक बाहण खडा िो गया।
राजा ने उसे बहत-सा धन िकेर िविा िकया।
पुतली बोली, ‘‘ि ेराजन् ! अगर तुम अपना भला चािते िो तो इस िसिासन को
जयो-का-तयो गडवा िो।’’ पर राजा का मन न माना।□
अगले ििन वि ििर उधर बढा तो आिखरी, बतीसवी पुतली ने, िजसका नाम
भासमती था, उसे रोक ििया। बोली, ‘‘ि ेराजन्! पिले मेरी बात सुनो।’’
: ३२ :
राजा िवकमािितय का आिखरी समय आया तो वि िवमान मे बैठकर इंदलोक को
चला गया। उसे जाने से तीनो लोको मे बडा शोक मनाया गया। राजा के साथ उसके िोनो
वीर भी चले गये। धमक की धवजा उखड गई। बाहण, िभखारी, िखुी िोकर रोने लगे।
रािनया राजा के साथ सती िो गई। िीवान ने राजकुमार जैतपाल को गदी पर िबठाया।
एक ििन की बात ि ैिक नया राजा जब इस िसिासन पर बैठा तो वि मूिचछत िो
गया। उसी िालत मे उसने िखेा, राजा िवकमािितय उससे कि रि ेि ैिक तू इस िसिासन
पर मत बैठ। जैतपाल की आंखे खुल गई और वि नीचे उतर आया। उसने िीवान से सब
िाल किा। िीवान बोला, ‘‘रात को तुम धयान करके राजा से पूछो िक मै कया करं। वि
जैसा कि,े वैसा िी करो।’’
जैतपाल ने ऐसा िी िकया। राजा िवकमािितय ने उससे किा, ‘‘तुम उजैन नगरी
और धारा नगरी छोडकर अंबावती नगरी मे चले जाओ और राजय करो। इस िसिासन को
विी गडवा िो।’’
सवेरा िोते िी राजा जैतवाल ने िसिासन विी गडवा ििया और आप अंबावती
चला गया। उजैन और धारा नगरी उजड गई। अंबावती नगरी बस गई।
पुतली की यि बात सुनकर राजा भोज बडा पछताया और िीवान को बुलाकर
आजा िी िक इस िसिासन को जिां से िनकलवाया था, विी गडवा िो। ििर अपना
राजपाट िीवान को सौपकर वि एक तीथक मे चला गया और विी तपसया करने लगा।
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