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EDITOR EDITOR EDITOR EDITOR - - - - PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE VASUDHA VASUDHA VASUDHA VASUDHA A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI ON ON ON ON Year 9, Issue 33 Year 9, Issue 33 Year 9, Issue 33 Year 9, Issue 33 Jan. Jan. Jan. Jan.-March, 2012 March, 2012 March, 2012 March, 2012 kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka vsu2a vsu2a vsu2a vsu2a s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur v8R Ñ - A.k ËË, jnvrI-macR ÊÈÉÊ

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    Year 9, Issue 33Year 9, Issue 33Year 9, Issue 33Year 9, Issue 33

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  • म� और त ूदो तो नह� ं

    डॉ. �याम �सहं श�श

    मेरे देश

    तरेा चपा-चपा मेरा शरर है

    तरेा जल मेरा मन है

    तरे वायु मेर आ�मा है

    इन सबसे �मलकर ह

    तू बनता है मेरे देश

    म� और तू दो तो नहं है।

    शरर आ�मा मन

    एक ह $ाणी के

    'थूल या स)ूम अंग है

    म� इ,ह- बँटने नहं दूँगा

    म� इ,ह- लुटने नहं दूँगा

    म� इ,ह- �मटने नहं दूँगा.

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pतक,

    सा�हि@यक आयाम भी क� : म� रह� अ>नल जोशी ४३

    गणत�G �दवस डॉ. शंभ ुनाथ ४४

    मV और तू दो तो नह�ं डॉ. �याम �सहं श�श १अ

    bया फागनु क� फगनुाई है डॉ. डडंा लखनवी ४४अ

    rcnaAo. me. iniht ivcar t4a mNtVy rcnakaro. ke injI ivcar t4a mNtVy hE.| .vsu2a' rcnakaro. ke ivcaro. ke il0 ]%rdayI nhI. hE| p/kaxk kI Aa)a ibna ko{ rcna iksI p/kar ]² wejne ke il0 sMpkR pta : 16 Revlis Crescent, Toronto, Ontario M1V-1E9, Canada. TEL. 416-291-9534

    vai8Rk xuLk Annual subscription..........$25.00 Dak µara By Mail, Canada & USA.........$35.00, Other Countries........$40.00

    Website: http://www.Vasudha1.webs.com e-mail: [email protected]

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 p

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pत एव ंकला@मक jि�ट

    से. इसी तरह Kकसी भी रा� क� एकता और अखंडता के �लए देश म� एक भाषा, एक सं�कृ>त और एक

    आlथ9क 3णाल� क� आव�यकता होती है. मातभृू�म क� भावना म� ह� रा��य भावe को 3ो@साहन �मलता है.

    यह भावना देश म� प�>त उ@प�न करती है और Xवचारe को ?यावहाHरक �प देती है. भाषाओं के इ>तहास

    के पHर3ेmय से डढ़े सौ वषn क� अवlध म� रा�भाषा �ह�द� ने अपनी Xवशेषताओं और योQयताओं के बल

    पर �वा�भमान का अहसास कराया है. हम� यह तoय Xव�मतृ नह�ं करना चा�हए Kक �ह�द� क� सभी

    बो�लयाँ �मल कर एक �ह�द� जातीय तंG का >नमा9ण करती हV. �ह�द� �हदं�ुतान क� बोल� है, कह�ं से लाद�

    गई भाषा नह�ं है. यह वह भाषा है िजसका सा�ह@य पHरपूण9 है. �ह�द� -ां>त, जन-जागरण, देशो@थान क�

    ऐ>तहा�सक बोल� है. गुfनानक, संत कबीर ने सामािजक चतेनाओं को �ह�द� म� ह� बल 3दान Kकया था.

    रसखान ने qजrबहार� क� ल�लाओं को गा-गाकर लोक-कsयाण क� भावना जगाई थी. महा@मा गाँधी ने मंच

    पर, पG-पrGकाओं म�, सभा, 3ाथ9ना, 3वचन आ�द म� �ह�द� माTयम से ह� अपार जन-समुदाय को झंकृत

    Kकया था.

    यह� नह�ं आज़ाद� क� लड़ाई हमने '�ह�द� और �ह�दो�ता'ं के नाम पर लड़ी थी. भले ह� आज़ाद�

    के बाद हम जैसे एकाएक पलट से गए और �ह�द� क� बढ़ती हुई समXृ� तथा उपादेयता को हमने राजनी>त

    के द�मक से चटवा �दया. दरअसल, हमारे राजनेता डरे नह�ं और न ह� झुके, बिsक भाषा संबंधी Xववादe से

    अपना पsला झाड़त ेहुए उ�हeने उदारवाद� तथा >नरपेM होने का ढeग Kकया, कारण Kक उ�ह� उनके वोट क�

    lचतंा थी. फल�व�प अंvेजी आज तक फलती-फूलती हम पर लद� है. पुरानी कहावत है, 'कज़9 या ख़ैरात

    का पैसा आदमी के आ@मसBमान को खा जाता है.' सच तो यह है क� इस देश के नेताओं ने जब रा��य

    �वा�भमान को ह� ताक पर रख �दया है, तो उ�ह� �ह�द� के �वा�भमान क� Kफ़- bयe हो.

    रा�भाषा के �प म� �ह�द� के �वा�भमान को हम� इस पHर3ेmय म� समझना होगा क� रा��य

    एकता म� इसका बहुत बड़ा योगदान रहा, मानव क� सामािजक एवं रा��य भावना को बढ़ाने म� भी इसक�

    अहम ्भू�मका रह� और देश को औप>नवे�शक दासता से मुिbत �दलाने के �लए �वतंGता-संvाम के दौरान

    हमारे नेताओं, समाज-सधुारकe, कXवयe, लेखकe, पGकारe और दाश9>नकe ने एकजुट होकर �वभाषा, �वदेश

    और �वराज के �लए bया कुछ नह�ं Kकया.

    रा�भाषा �ह�द� का मान रखे वगैर रा� के सBमान क� कsपना नह�ं क� जा सकती. रा�भाषा

    के 3योग से ह� रा� का नाम गौरवशाल� होगा. �ह�द� भारत को एक सूG म� जोड़ने वाल� लोक भाषा है.

    �ह�द� जानने वाले लोग आज द>ुनया भर म� फैले हुए हV. 3सार क� jि�ट से यह, द>ुनया क� सबसे बड़ी

    भाषा है. यह 3ारBभ से ह� स{यताओं के सम�वय और सहयोग से Xवक�सत हुई है. �ह�द� क� यह� शिbत

    है और इस शिbत का �Gोत जनता क� आकांMा और सपने रहे हV. यह बात अलग है क� बदलत ेसमय क�

    अपेMाओं के अनु�प �ह�द� का पHरवध9न और संवध9न करना होगा.

    रा�भाषा �ह�द� क� एक Xवशेषता यह भी है क� �ह�द� भाषा के सम�त श|दe का }ान अपने

    अ�त:मन क� >तजोर� म� रख कर आप अ�य भाषाएँ जैसे तलेग,ु त�मल, मलयालम, क�नड़, बंगाल�,

    गुजराती, मराठ एवं यहाँ तक क� अरबी एवं इटालवी भाषाएँ बड़ी सगुमता से सीख सकत ेहV. ऐसा कदाlचत ्

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pतयe

    का भंडार है उसे �ह�द� भाषा ने ह� एक सूG म� Xपरोया है.

    संपक9 भाषा व रा�भाषा होने के चलत ेजन-मानस के संवेदन-�पंदन से Xवक�सत एव ं>नबा9ध होती

    है और अपने Xवकास के �लए शासक-वग9 क� मुखापेMी नह�ं होती है. रा�भाषा का MेG समाज के सभी

    वगn और सम�त काय9-?यापार, lचतंन-प�>त का MेG है; पर�तु राजभाषा Xवधान, शासन, �याय आ�द

    सरकार� तंG के 3@यMत: अधीन तथा सरकार Yवारा >नयंrGत �शMा, तकनीक एवं ?यवसाय आ�द तक ह�

    सी�मत होती है.

    रा�भाषा बुX�जीXवयe के साथ-साथ अनपढ़-गँवार के बीच भी 3सार पाती है. इस 3कार रा�भाषा

    के �प म� �ह�द� को हम पाते हV Kक यह एक सम�ृ और सरल भाषा तो है ह�, इसक� देवनागर� जैसी सरल

    �लXप तो शायद ह� कोई हो. रा�भाषा �ह�द� का MGे आज ?यापक हो गया है. यह माG सBपक9 भाषा ह�

    नह�ं, सा�हि@यक भाषा और संघ क� राजभाषा के साथ-साथ Xव�व के मानlचG पर भी �थान पा गई है.

    यYयXप भाषा के 3>त भावना@मक लगाव भी ज�र� है िजसम� रा�वाद >न�हत है, तथाXप वह� भाषा जीXवत

    रहती है िजसम� समकाल�न चुनौ>तयe का सामना करने क� सामoय9 हो तथा आधु>नक संवेदनाओं को

    अ�भ?यbत करने क� शिbत हो. रा�भाषा �ह�द� अपनी इ�ह�ं Xवशेषताओं के चलत ेरा��य, �थानीय और

    वैि�वक XवXवधताओं के बीच एक ?यावहाHरक सेतु क� भू�मका >नभा रह� है. इसी क� वज़ह से रा�भाषा

    �ह�द� को संयुbत रा� संघ म� भी देर-सबेर मा�यता �मल जायेगी. आख़र सवा अरब भारतीय जनता क�

    आवाज़ क� उपेMा कब तक क� जा सकेगी? चँूKक भारत क� अथ9-?यव�था तजेी से वै�वीकृत हो रह� है,

    भारत और Xवक�सत रा�e के बीच नये 3कार के राजनी>तक कूटनी>तक-सामHरक समीकरण बन रहे हV

    अत: भXव�य म� लBबे अस! तक �ह�द� को संयुbत रा� सघं से बाहर रखना बहुरा��य आlथ9क महारlथयe

    के �लए लाभदायक नह�ं होगा.

    इसम� त>नक संदेह नह�ं Kक रा�भाषा �ह�द� झलकती है; उसम� भारतीय जीवन, सं�कृ>त और उस

    सं�कृ>त के साथ अंतरा9��य सं�कृ>तयe के Xवकास क� सहज Tव>न 3>तTव>नत होती है. यह� कारण है Kक

    Xवदेशe म� सैकड़e वषn से रह रहे भारतीय मूल के लोगe क� �ह�द� म� भारतीयता का सह� �प आज भी

    देखने को �मलता है. आज �ह�द� का एक अंतरा9��य �व�प एवं मह@व है.

    यह �ह�द� ने अपनी योQयता Yवारा अिज9त Kकया है. इन सार� ि�थ>तयe और Xवशेषताओं क�

    jि�ट से रा�भाषा के �प म� �ह�द� के �वा�भमान को अMgुण बनाये रखना हम सभी सजग एवं जाग�क

    रचनाकारe, पGकारe एवं lचतंकe-Xवचारकe का न केवल नै>तक दा>य@व बनाता है, बिsक यह हमारा रा��य

    कत9?य भी है.

    संयम सं�कृ>त का मूल है। Xवला�सता >नब9लता और चाटुकाHरता के वातावरण म� न तो सं�कृ>त का उव होता है और

    न Xवकास। - काका कालेलकर

    सा�ह@य का कत9?य केवल }ान देना नह� ंहै परंतु एक नया वातावरण देना भी है। - डॉ. सव9पsल� राधाकृ�णन

    जीवन का मह@व तभी है जब वह Kकसी महान Tयेय के �लए समXप9त हो। यह समप9ण }ान और �याययुbत हो। -

    इं�दरा गाँधी

    कXवता का बाना पहन कर स@य और भी चमक उठता है। - अ}ात

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 p

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pत को मVने X3ये तुझी से पाया

    �नेह भरा घट फूट न जाए, मेरे गीत समझना तुम।

    कलरव गान Xवहग का मोहक मन म� 3ीत जगाता अपनी रसवाणी से अ�तत9म का तमस �मटाता

    कोई यह सुख लूट न जाए, मेरे गीत समझना तुम।

    उBमीदe का पंख लगाए उड़ता रहा गगन म� श|द मेरे Xवचरण करत ेहV भावe के उपवन म�

    सुख के ये पल �ठ न जाएँ, मेरे गीत समझना तुम। थक� िज़ंदगी टूट न जाए, मेरे गीत समझना तुम।

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 p hk on d ` Iy a iv aV al aya maoM i S ax ak in ay au > hk on d ` Iy a iv aV al aya maoM i S ax ak in ay au > hk on d ` Iy a iv aV al aya maoM i S ax ak in ay au > h u e.u e.u e.u e. b ahn a T / oin a Mg a k a ^l aoj a b ahn a T / oin a Mg a k a ^l aoj a b ahn a T / oin a Mg a k a ^l aoj a b ahn a T / oin a Mg a k a ^l aoj a ma oM p ` iSax ak .ma oM p ` iSax ak .ma oM p ` iSax ak .ma oM p ` iSax ak . n aIrd k p Ur qal aa k a^l a oj a maoM l a o@c ar r hao g ay aa.n aIrd k p Ur qal aa k a^l a oj a maoM l a o@c ar r hao g ay aa.n aIrd k p Ur qal aa k a^l a oj a maoM l a o@c ar r hao g ay aa.n aIrd k p Ur qal aa k a^l a oj a maoM l a o@c ar r hao g ay aa. Ba a[Ba a[Ba a[Ba a[ -- -- AK b aar aoM k a g ahn a AQ y ay an a k rt o qa o.AK b aar aoM k a g ahn a AQ y ay an a k rt o qa o.AK b aar aoM k a g ahn a AQ y ay an a k rt o qa o.AK b aar aoM k a g ahn a AQ y ay an a k rt o qa o. Amar j aIt AK b aar k I t r f t ak t I Ba I n ah IM qa I.Amar j aIt AK b aar k I t r f t ak t I Ba I n ah IM qa I.Amar j aIt AK b aar k I t r f t ak t I Ba I n ah IM qa I.Amar j aIt AK b aar k I t r f t ak t I Ba I n ah IM qa I.

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    ik sa I k ao n ahIM hO .ik sa I k ao n ahIM hO .ik sa I k ao n ahIM hO .ik sa I k ao n ahIM hO . c a aho k O n aDa hao̧ c a aho iT mb ak T MU̧ maO M k hI M n ahIM j aa} Mg aa ."c a aho k O n aDa hao̧ c a aho iT mb ak T MU̧ maO M k hI M n ahIM j aa} Mg aa ."c a aho k O n aDa hao̧ c a aho iT mb ak T MU̧ maO M k hI M n ahIM j aa} Mg aa ."c a aho k O n aDa hao̧ c a aho iT mb ak T MU̧ maO M k hI M n ahIM j aa} Mg aa ." Baa[Baa[Baa[Baa[ -- -- n a o sama Jaay aa¸ " y ahaM s ao n a o sama Jaay aa¸ " y ahaM s ao n a o sama Jaay aa¸ " y ahaM s ao n a o sama Jaay aa¸ " y ahaM s ao c aal aIsa g au n aI t nc aal aIsa g au n aI t nc aal aIsa g au n aI t nc aal aIsa g au n aI t n aK a imal aog aI¸ G ar k a saar a d il a_ r Q au l a j aaeg aa."aK a imal aog aI¸ G ar k a saar a d il a_ r Q au l a j aaeg aa."aK a imal aog aI¸ G ar k a saar a d il a_ r Q au l a j aaeg aa."aK a imal aog aI¸ G ar k a saar a d il a_ r Q au l a j aaeg aa." " Aap Q aa oAa o Apn aa d il a_ r ." Aap Q aa oAa o Apn aa d il a_ r ." Aap Q aa oAa o Apn aa d il a_ r ." Aap Q aa oAa o Apn aa d il a_ r . ma or a f a^mama or a f a^mama or a f a^mama or a f a^ma -- -- k ao[k ao[k ao[k ao[ -- -- j amaa n a k ro."j amaa n a k ro."j amaa n a k ro."j amaa n a k ro." " b aov ak Uf¸ t U Bark r d st Kt k rog aa¸ t BaI j amaa ha og aa f a^ma" b aov ak Uf¸ t U Bark r d st Kt k rog aa¸ t BaI j amaa ha og aa f a^ma" b aov ak Uf¸ t U Bark r d st Kt k rog aa¸ t BaI j amaa ha og aa f a^ma" b aov ak Uf¸ t U Bark r d st Kt k rog aa¸ t BaI j amaa ha og aa f a^ma -- -- ."."."." " k haM hO M f a^ma" k haM hO M f a^ma" k haM hO M f a^ma" k haM hO M f a^ma -- -- ¸ l aaA ao maO M f aD , dMU̧ " n aIr d ]z a.¸ l aaA ao maO M f aD , dMU̧ " n aIr d ]z a.¸ l aaA ao maO M f aD , dMU̧ " n aIr d ]z a.¸ l aaA ao maO M f aD , dMU̧ " n aIr d ]z a. A mar j aIt n ao f amaA mar j aIt n ao f amaA mar j aIt n ao f amaA mar j aIt n ao f ama -- -- b aIc a mb aIc a mb aIc a mb aIc a m aoM l a pk il ay aa.aoM l a pk il ay aa.aoM l a pk il ay aa.aoM l a pk il ay aa. pMk j a BaI ]sa id n a v ahIM A ay aa hu Aa qaa.pMk j a BaI ]sa id n a v ahIM A ay aa hu Aa qaa.pMk j a BaI ]sa id n a v ahIM A ay aa hu Aa qaa.pMk j a BaI ]sa id n a v ahIM A ay aa hu Aa qaa. " t u mhoM n ahIM j aan aa t ao hma oM d o da o." t u mhoM n ahIM j aan aa t ao hma oM d o da o." t u mhoM n ahIM j aan aa t ao hma oM d o da o." t u mhoM n ahIM j aan aa t ao hma oM d o da o. hma BaI in ak l a k r d oK oM [ s a n ark sao."hma BaI in ak l a k r d oK oM [ s a n ark sao."hma BaI in ak l a k r d oK oM [ s a n ark sao."hma BaI in ak l a k r d oK oM [ s a n ark sao." n aIr d ] l aJa p D,a¸ " ik sao n ar k k h r hI ha oÆn aIr d ] l aJa p D,a¸ " ik sao n ar k k h r hI ha oÆn aIr d ] l aJa p D,a¸ " ik sao n ar k k h r hI ha oÆn aIr d ] l aJa p D,a¸ " ik sao n ar k k h r hI ha oÆ [ sa G ar k a o y a a ]sa G ar k ao y aa Apn aI n aaO k ir y aaoM [ sa G ar k a o y a a ]sa G ar k ao y aa Apn aI n aaO k ir y aaoM [ sa G ar k a o y a a ]sa G ar k ao y aa Apn aI n aaO k ir y aaoM [ sa G ar k a o y a a ]sa G ar k ao y aa Apn aI n aaO k ir y aaoM

    k aoÆk aoÆk aoÆk aoÆ hd hO ¸ j ar a saI shd hO ¸ j ar a saI shd hO ¸ j ar a saI shd hO ¸ j ar a saI s aoMG a @y aa ima l aI¸ t u mhoM y ahaM n ar k id Ka[aoMG a @y aa ima l aI¸ t u mhoM y ahaM n ar k id Ka[aoMG a @y aa ima l aI¸ t u mhoM y ahaM n ar k id Ka[aoMG a @y aa ima l aI¸ t u mhoM y ahaM n ar k id Ka[ -- -- don ao l ag aaÆ"don ao l ag aaÆ"don ao l ag aaÆ"don ao l ag aaÆ" " @y aa hO y aha M p r Ñ" @y aa hO y aha M p r Ñ" @y aa hO y aha M p r Ñ" @y aa hO y aha M p r Ñ saar o id n a ma ohn at k r ao̧ ig an aosaar o id n a ma ohn at k r ao̧ ig an aosaar o id n a ma ohn at k r ao̧ ig an aosaar o id n a ma ohn at k r ao̧ ig an ao –––– ig an aay ao $py ao ha qa Aat o hO M.ig an aay ao $py ao ha qa Aat o hO M.ig an aay ao $py ao ha qa Aat o hO M.ig an aay ao $py ao ha qa Aat o hO M. c aar Tc aar Tc aar Tc aar T \\ \\ y aUSan a n a k r oM y aUSan a n a k r oM y aUSan a n a k r oM y aUSan a n a k r oM

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    [l aa hab aad y au in av aisa[l aa hab aad y au in av aisa[l aa hab aad y au in av aisa[l aa hab aad y au in av aisa -- -- T I maoM n aaO k r I imal a g ay aI AaOr hma sab a [l aa hab aad I b an a g ay ao.T I maoM n aaO k r I imal a g ay aI AaOr hma sab a [l aa hab aad I b an a g ay ao.T I maoM n aaO k r I imal a g ay aI AaOr hma sab a [l aa hab aad I b an a g ay ao.T I maoM n aaO k r I imal a g ay aI AaOr hma sab a [l aa hab aad I b an a g ay ao. [ s a b aIc a b ac c a o C a oT o s ao[ s a b aIc a b ac c a o C a oT o s ao[ s a b aIc a b ac c a o C a oT o s ao[ s a b aIc a b ac c a o C a oT o s ao b aD,o h a o g ay ao.b aD,o h a o g ay ao.b aD,o h a o g ay ao.b aD,o h a o g ay ao. Baa[Baa[Baa[Baa[ -- -- k I t In a aoM b a oiT y aaM A aO r Am ar ao k o c aIn aU m a In aU h maar o t ak k I t In a aoM b a oiT y aaM A aO r Am ar ao k o c aIn aU m a In aU h maar o t ak k I t In a aoM b a oiT y aaM A aO r Am ar ao k o c aIn aU m a In aU h maar o t ak k I t In a aoM b a oiT y aaM A aO r Am ar ao k o c aIn aU m a In aU h maar o t ak

    p r f aoT aog a` af b an ak r r K o r h o.p r f aoT aog a` af b an ak r r K o r h o.p r f aoT aog a` af b an ak r r K o r h o.p r f aoT aog a` af b an ak r r K o r h o. ]n ak o b aar o maoM K b ar im al at I r hI ik saO n D I b ahu t Ac C a ip Aan aa o b aj aat I ]n ak o b aar o maoM K b ar im al at I r hI ik saO n D I b ahu t Ac C a ip Aan aa o b aj aat I ]n ak o b aar o maoM K b ar im al at I r hI ik saO n D I b ahu t Ac C a ip Aan aa o b aj aat I ]n ak o b aar o maoM K b ar im al at I r hI ik saO n D I b ahu t Ac C a ip Aan aa o b aj aat I hO ¸ ik n aIt a n ao sa aoS al a v akhO ¸ ik n aIt a n ao sa aoS al a v akhO ¸ ik n aIt a n ao sa aoS al a v akhO ¸ ik n aIt a n ao sa aoS al a v ak -- -- ma oM g a` oj au eSan a ik y aa hO AaO r saama oM g a` oj au eSan a ik y aa hO AaO r saama oM g a` oj au eSan a ik y aa hO AaO r saama oM g a` oj au eSan a ik y aa hO AaO r saa Q an a a k I Saad I v ahIM k o ek A maIr b aa iSan d o sao Q an a a k I Saad I v ahIM k o ek A maIr b aa iSan d o sao Q an a a k I Saad I v ahIM k o ek A maIr b aa iSan d o sao Q an a a k I Saad I v ahIM k o ek A maIr b aa iSan d o sao t y a ha o g ay aI hO .t y a ha o g ay aI hO .t y a ha o g ay aI hO .t y a ha o g ay aI hO . hm aar I smaR it y aaoM m aoM v a o ABaI Ba I b aic c ay aaM q aI M̧ j aa o y a haM s ao j aat o v a> r ao r hI q aIM AaO r k ht I hm aar I smaR it y aaoM m aoM v a o ABaI Ba I b aic c ay aaM q aI M̧ j aa o y a haM s ao j aat o v a> r ao r hI q aIM AaO r k ht I hm aar I smaR it y aaoM m aoM v a o ABaI Ba I b aic c ay aaM q aI M̧ j aa o y a haM s ao j aat o v a> r ao r hI q aIM AaO r k ht I hm aar I smaR it y aaoM m aoM v a o ABaI Ba I b aic c ay aaM q aI M̧ j aa o y a haM s ao j aat o v a> r ao r hI q aIM AaO r k ht I q aIM̧ " hmaoM n a hIM j aan aa [ t n aI dUr ¸ hma v aap sa Aa j aay aoMg a o."q aIM̧ " hmaoM n a hIM j aan aa [ t n aI dUr ¸ hma v aap sa Aa j aay aoMg a o."q aIM̧ " hmaoM n a hIM j aan aa [ t n aI dUr ¸ hma v aap sa Aa j aay aoMg a o."q aIM̧ " hmaoM n a hIM j aan aa [ t n aI dUr ¸ hma v aap sa Aa j aay aoMg a o."

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 p

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pत न होती.

    मानव म� गर Xवरिbत होती

    लोभ-विृ@त कतई न होती.

    शिbत, भिbत, Xवरिbत,

    3ाथ9ना क� देन हV ब�धु!

    कहता है सत-्lचत-्}ान �सधुं

    rब�द ुम� झरे rबना �स�धु

    स}ुान क� वषा9 न होती,

    जहाँ पर म>त सोती

    वहाँ पर कलह होती,

    घर, गाँव, शहर म� होती

    3देश और देश म� होती.

    मानव मे गर शिbत होती

    दानव क� उ@पि@त न होती.

    3ाथ9ना म� है शिbत

    शिbत म� है भिbत

    भिbत म� है Xवरिbत

    Xवरिbत म� है जीवन

    जीवन vहण क�िजये!

    मरण को मुिbत द�िजये!

    इसी म� है बहु-जन �हत

    इसी म� है देश-�हत.

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pतया डाह होनी चा�हए. Kफर

    भी मुझ ेअपने प>त क� वकालत से Yवेष नह�ं है, तो इसका सारा Zेय शायद उ�ह� ह� �मलना चा�हए. या

    Kफर यह भी हो सकता है Kक मV बहुत उदारमना हँू. य�द इनक� ?य�तताएँ वकालत तक ह� सी�मत होती,ं

    तो भी गनीमत थी. इनके Xव�ततृ काय9-MेG को देख कर तो मुझ ेरोज़ ह� :ौपद� के चीर का �मरण हो

    आता है. भूतपूव9 संसद सद�य, संवैधा>नक मामलe के Xवशेष}, �ह�द� और अvेँजी सा�ह@य के XवYवान

    और Xव�भ�न राजनी>तक, सामािजक सं�थानe म� सK-य �प से �ह�सा लेने वाले मेरे बुX�जीवी प>त क�

    ?य�तता अपने-आप म� एक अनोखी 3K-या है.

    मV �वीकार करती हँू Kक इनक� आकgठ ?य�तता को देख कर मVने कई बार सोचा था Kक मV

    अपने इकलौत े बेटे अ�भषेक को हरlगज़ वक�ल नह�ं बनने दूँगी. Kक�तु Xवचारe म� यe-यe पHरपbवता

    आती गई, मेर� धारणा बदलती गई और आज मV अ�भषेक को इनके जैसा ह� ?य�त वक�ल बनाने को

    उ@सुक हँू. वकालत म� उसक� flच देखकर मुझ ेमेरे सपने पूरे होने क� संभावना �प�ट नज़र आती है. यह�

    नह�ं, मेरा वश चला, तो मV अपनी बेट� अ�भलाषा को भी वकालत करत ेदेखना चाहँूगी.

    वकालत के आरं�भक वषn म� क�ठन संघष9 होता है. अथक पHरZम करना पड़ता है और अवकाश

    का सव9था अभाव रहता है. वह� प@नी के �लए पर�Mा के वष9 होत े हV. सफलता के साथ-साथ इनक�

    ?य�तता भी बढ़ती गई, Kक�तु इस पेशे म� सफलता का अपना ह� पुर�कार है - वै�श�य है. मV जानती हँू

    Kक उस पुर�कार को अिज9त करने म� मेरा और पHरवार का आधारभूत योगदान है. इसी�लए इतनी ?य�तता

    म� भी आ�व�त और स�तु�ट हँू.

    वकालत एक बहुत 3ाचीन ?यवसाय माना जाता है. उसम� बुX�, XवYव@ता, वbततृा और वाक्-

    कौशल का ?यापक सम�वय आव�यक है. वकालत क� अपनी परBपराएँ हV, अपने आदश9 हV. एक अलग ह�

    पHरवेश है. वक�ल कानून के पुरो�हत और ?यायाता होत े हV और वकालत का पेशा �याय-तंG क� एक

    आव�यक कड़ी है. एक योQय वक�ल क� तक9 -शिbत सुतीmण, उसक� बुX� अ@य�त Xवक�सत और उसका

    }ान सुXव�ततृ होता है. मनु�य-जीवन के हर पहल ूको देखने और समझने का अवसर वक�ल को �मलता

    है. ऐसे ?यिbत का साि�नTय बौX�क jि�ट से �फू>त9दायक और बहुरंगी होता है. इनक� इ�ह�ं Xव�भ�न

    ग>तXवlधयe ने शायद मेरे जीवन को इतनी नूतनता और वैXवTय दे �दया है Kक Kकसी भी Mण मVने अपने

    को ऊबा हुआ या बोर नह�ं महसूस Kकया.

    वकालत का पेशा बड़ा �दलच�प माना गया है. अvेँजी सा�ह@य, वक�लe और वकालत के 3>त

    Xव�भ�न 3कार क� चुटKकयe-चुटकलe से भरपूर है. एक बार डॉ. जॉनसन ने अपना पHरचय देत े हुए कहा

    था, 'आप शायद आ�चय9 कर� , मV एक वक�ल भी हँू और एक भ: पुfष भी!' मानe वकालत और भ:ता म�

    कोई Xवरोधाभास हो! कई लोग वकालत क� पHरभाषा करत े हुए कहत ेहV Kक वक�ल का काम है सच को

    झूठ और झूठ को सच साrबत करना. Kक�तु वा�तव म� वक�ल का काय9-MेG समाज म� �याय और ?यिbत-

    �वातंय क� 3>त�ठा से घ>न�ठ सBब�ध रखता है.

    यह बात दसूर� है Kक कोट9 म� अदालती बहस करत-ेकरत ेउनको यह आदत हो जाती है Kक घर पर

    भी हर बात पर बहस करने से बाज नह�ं आत.े

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pुनया कुछ हद तक एक 'एबनॉरमल' द>ुनया है. इसी�लए

    शायद मेरा यह दा>य@व हो गया है Kक मV वक�ल साहब के दै>नक जीवन को सBयक्, समरस और मानवीय

    धरातल पर चलाऊँ. मेर� नाज़ुक ि�थ>त क� कsपना क�िजये!

    वक�ल साहब जरा फुस9त म� होत ेहV तो �वीकार करत ेहV Kक मV उनक� हर ज�रत बड़ी त@परता

    और लगन से पूरा करती हँू. और वा�तव म� यथा-सBभव मVने इ�ह� सामािजक और पाHरवाHरक उलझनe

    और सम�याओं से मुbत रखा है. पर जब ?य�तता अपनी चरम-सीमा पर होती है तो ये मेरा Kकया-कराया

    सब-कुछ भूल जात ेहV. कोट9 जात ेहुए Kकसी एक ज�र� कागज़ के न �मलने पर तुर�त कह बैठ� गे - 'ओफ़

    ओ! तुम जरा भी Tयान नह�ं रखती हो, कमला! पता नह�ं वह कागज़ तुमने कहाँ फ� क �दया.' दो पल बाद

    ह� वह भला-सा कागज़ उनके कोट क� जेब म� >नकल आता है और वे 'आय एम वेर� सॉर�' कहत ेहुए कार

    म� बैठ कर कोट9 क� ओर चल देत ेहV. शाम को कोट9 से आत ेह� जब ये 'कुछ' कह कर पुकारत ेहुए अ�दर

    आत ेहV तो मेर� �दन-भर क� तप�या पूर� हो जाती है.

    जरा अ�त-?य�त से हV वक�ल साहब, इस�लए मेरे rबना अपने को बड़ा >न�सहाय-सा महसूस करत े

    हV. य�द वा�तव म� न भी करत े हe, तो दशा9त े तो ऐसा ह� हV. मुझ े इनका यह असहाय-भाव कभी-कभी

    अछा भी लगता है और कभी खीझ भी आती है. हालत कभी-कभी इस हद तक पहँुच जाती है Kक इ�ह�

    यास लगी हुई होती है, पर काम क� अlधकता के कारण कई बार ये घgटe पानी Xपये rबना ह� रह जात े

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pत पी लेत ेहV.

    घर-गहृ�थी से इ�ह� मतलब नह�.ं मV Kकतना खच9 करती हँू, कहाँ खच9 करती हँू - इससे इ�ह� कोई

    वा�ता नह�.ं अपने �लए, अपने-आप पाँच �पये खच9 करने क� इ�ह� फुस9त नह�.ं कोई आदत नह�.ं ?यसन

    नह�.ं हो भी कहाँ से, उसके �लए भी तो वत चा�हए!

    पता नह�ं, इनके पास bया जाद ूहै Kक इतना ?य�त रहते हुए भी ये मुझे देश-Xवदेश क� याGाएँ

    करा देत ेहV. जब-तब हम चल-lचG, नाटक आ�द भी देख �लया करत ेहV, भले ह� 3ाय: जब तक हम पहँुचत े

    हV, Xपbचर आरंभ हो चुक� होती है. Xपक>नक पर भी हम 3ाय: दसूरे-चौथे रXववार को कुछ घgटe के �लए

    चले जात ेहV. वैसे इनसे बात� करने का उपयुbत समय है - इनका शेव करने का वत. मझु ेसत हुbम है

    Kक जब ये शेव कर�, मV इनके पास खड़ी रहा क�ँ. वा�तव म� यह� Mण हमारे अपने होत ेहV और उस समय

    हम दोनe को लगता है, मानe समय ठहर गया है. उस समय इनके �दमाग म� फ़ाइल� नह�ं होतीं, �सफ़9 मV

    होती हँू.

    सच कहँू तो इनक� ?य�तता देख कर तो मV ख़ुद बीमार पड़ने से भी डरने लगी हँू Kक कह�ं इ�ह� Kकसी

    3कार क� असुXवधा न हो जाए. भगवान ्क� शु-गुजार हँू Kक ?य�तताओं का इतना अ>तरेक होत ेहुए भी

    मेरे वक�ल साहब अपने पHरवार के 3>त अपने 3ेम और कत9?य का >नवा9ह करने क� कला म� बड़ ेदM हV.

    इसी�लए इनक� ?य�तताओं के 3>त मेर� �शकायत म� तीखेपन क� बजाय स�ह�णुता क� भावना आ गई है.

    मेरे समM मह@व इस बात का नह�ं है Kक इ�हeने मुझ े Kकतना समय �दया, बिsक मह@व इस

    बात का है Kक वह समय मझु ेआख़र �दया कैसे? अपने पूण9 साि�नTय और साहचय9 से इ�हeने हमारे

    दांप@य-जीवन म� अपनी ?य�तताओं के बीच भी, माधुय9 और शा�वत ् 3ेम का आसव डाला है. हम दोनe

    सदैव एक-दसूरे के पूरक बने हV. इ�हeने मुझ े केवल गहृणी अथवा गहृ-3ब�धक कभी नह�ं समझा, सदैव

    सहचर� माना है. इनक� ?य�तताएँ हमारे जीवन को कंु�ठत या उपे^Mत कभी नह�ं कर पा और हमारे

    रोमांस के Mणe म� �शlथलता कभी नह�ं आ पाई. बचe के �लए समुlचत समय व ेनह�ं दे पात,े Kक�तु

    उनके शार�Hरक और मान�सक ?यिbत@व के पूण9 Xवकास के �लए अछे सं�कार और चHरG->नमा9ण के 3>त

    पूर� तरह सच�ेट रहत ेहV और जब भी समय �मलता है, बचe के साथ वे �वयं बचा बन जात ेहV.

    इनक� ?य�तताएँ मेर� आदत बन चुक� हV. जब कभी ये याGा पर चले जात ेहV तब इन ?य�तताओं

    के न रहने से मुझ ेऐसा लगने लगता है मानe मेरा सब कुछ खो गया है और मV पनु: उन कुछ उलझी और

    कुछ सुलझी ?य�तताओं म� आकgठ डूब जाने को आतुर हो जाती हँू.

    त=ुहारा साथ मधपु शमा

    दखु को मHने कभी आह म� कभी नह+ं जाना कभी हास म� त=ुहारे साथ को ह+ कभी उ\yवास म�. सखु माना और तमु तो रहे हो त=ुहारा मेरा साथ हमेशा ह+ मेरे साथ छूटा ह+ कब कभी सामन े जो और कोई हो लेता साथ, कभी याद म� चाहे वो सखु का हमजोल+ कभी चाह म� दखु ह+ Qय� न होता.

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pछप जाता है। जैसे �दsल� क� अपनी कोई अथ9नी>त नह�ं है, वैसे ह� अपना मौसम भी नह�ं है। अथ9नी>त

    जैसे डॉलर, पड, fपया, अ�तरा9��य मु:ा-कोष या भारत सहायता bलब से तय होती है, वैसे ह� �दsल� का

    मौसम क�मीर, �सिbकम, राज�थान आ�द तय करत ेहV।

    इतना बेवकूफ़ भी नह�ं Kक मान लूँ , िजस साल मV समारोह देखता हँू, उसी साल ऐसा मौसम रहता

    है। हर साल देखने वाले बतात ेहV Kक हर गणतंG �दवस पर मौसम ऐसा ह� धूपह�न �ठठुरनवाला होता है।

    आखर बात bया है? रह�य bया है?

    जब कांvेस टूट� नह�ं थी, तब मVने एक कांvेस मंGी से पूछा था Kक यह bया बात है Kक हर

    गणतंG�दवस को सूय9 >छपा रहता है? सूय9 क� Kकरणe के तले हम उ@सव bयe नह�ं मना सकत?े उ�हeने कहा

    जरा धीरज रखए। हम को�शश म� हV Kक सूय9 बाहर आ जाए। पर इतने बड़ े सूय9 को बाहर >नकालना

    आसान नह�ं हV। वbत लगेगा। हम� स@ता के कम से कम सौ वष9 तो द�िजए। �दए। सूय9 को बाहर >नकालने

    के �लए सौ वष9 �दए, मगर हर साल उसका छोटामोटा कोना तो >नकलता �दखना चा�हए। सूय9 कोई बचा

    तो है नह�ं जो अ�तHरM क� कोख म� अटका है, िजसे आप आपरेशन करके एक �दन म� >नकाल द�गे।

    इधर जब कांvेस के दो �ह�से हो गए तब मVने एक इंडकेट� कांvेस से पूछा। उसने कहा- 'हम हर बार सूय9

    को बादलe से बाहर >नकालने क� को�शश करत ेथे, पर हर बार �सडंीकेट वाले अड़गंा डाल देत ेथे। अब हम

    वादा करत ेहV Kक अगले गणतंG �दवस पर सूय9 को >नकालकर बताएँगे।'

    एक �सgडीकेट� पास खड़ा सनु रहा था। वह बोल पड़ा - ‘यह लेडी )3धानमंGी (कBयु>न�टe के

    चbकर म� आ गई है। वह� उसे उकसा रहे हV Kक सूय9 को >नकालो। उ�ह� उBमीद है Kक बादलe के पीछे से

    उनका यारा ‘लाल सूरज’ >नकलेगा। हम कहत ेहV Kक सूय9 को >नकालने क� bया ज�रत है? bया बादलe को

    हटाने से काम नह�ं चल सकता?'

    मV संसोपाई भाई से पूता हँू। वह कहता है- 'सूय9 गैर-कांvेसवाद पर अमल कर रहा है। उसने

    डाbटर लो�हया के कहने पर हमारा पाट-फाम9 �दया था। काँvेसी 3धानमंGी को सलामी लेत ेवह कैसे देख

    सकता है? Kकसी गैर-काँvेसी को 3धानमंGी बना दो, तो सूय9 bया, उसके अछे भी >नकल पड़�गे।

    जनसंघी भाई से भी पूछा। उसने कहा- 'सूय9 सेbयुलर होता तो इस सरकार क� परेड म� >नकल आता। इस

    सरकार से आशा मत करो Kक भगवान अंशुमाल� को >नकाल सकेगी। हमारे राय म� ह� सूय9 >नकलेगा।

    साBयवाद� ने मुझसे साफ़ कहा- 'यह सब सी.आई.ए. का षडयंG है। सातव� बेड़ ेसे बादल �दsल� भेजे जात े

    हV।’

    �वतंG पाट के नेता ने कहा- '�स का XपछलQग ूबनने का और bया नतीजा होगा?'

    3सोपा भाई ने अनमने ढंग से कहा- 'सवाल पेचीदा है। नेशनल क�सल क� अगल� बैठक म� इसका

    फ़ैसला होगा। तब बताऊँगा।’

    राजाजी से मV �मल न सका। �मलता, तो वह इसके �सवा bया कहत ेKक इस राज म� तारे >नकलते

    हV, यह� गनीमत है।’

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pनकले।

    �वतंGता-�दवस भी तो भर� बरसात म� होता है। अंvेज बहुत चालाक हV। भर� बरसात म� �वतंG

    करके चले गए। उस कपट� 3ेमी क� तरह भागे, जो 3े�मका का छाता भी ले जाए। वह बेचार� भीगती बस-

    �टVड जाती है, तो उसे 3ेमी क� नह�ं, छाता-चोर क� याद सताती है।

    �वतंGता-�दवस भीगता है और गणतंG-�दवस �ठठुरता है।

    मV ओवरकोट म� हाथ डाले परेड देखता हँू। 3धानमंGी Kकसी Xवदेशी मेहमान के साथ खुल� गाड़ी म�

    हV। रेडयो �टपणीकार कहता है- 'घोर करतल-Tव>न हो रह� है।’ मV देख रहा हँू, नह�ं हो रह� है। हम सब तो

    कोट म� हाथ डाले बैठे हV। बाहर >नकालने का जी नह�ं हो रहा है। हाथ अकड़ जाएँगे।

    लेKकन हम नह�ं बजा रहे हV, Kफर भी ता�लयाँ बज रह� ंहV। मैदान म� जमीन पर बैठे व ेलोग बजा

    रहे हV, िजनके पास हाथ गरमाने के �लए कोट नह�ं है। लगता है, गणतंG �ठठुरत ेहुए हाथe क� ता�लयe पर

    �टका है। गणतंG को उ�ह�ं हाथe क� ताल� �मलतीं हV, िजनके मा�लक के पास हाथ >छपाने के �लए गम9

    कपड़ा नह�ं है। पर कुछ लोग कहत ेहV- 'गर�बी �मटनी चा�हए।’ तभी दसूरे कहत ेहV- 'ऐसा कहने वाले 3जातंG

    के �लए खतरा पैदा कर रहे हV।’

    गणतंG-समारोह म� हर राय क� झाँक� >नकलती है। ये अपने राय का सह� 3>त>नlध@व नह� ं

    करतीं। ‘स@यमेव जयते’ हमारा मोटो है मगर झाँKकयाँ झूठ बोलती हV। इनम� Xवकास-काय9, जनजीवन

    इ>तहास आ�द रहत े हV। असल म� हर राय को उस Xव�श�ट बात को यहाँ 3द�श9त करना चा�हए

    िजसके कारण Xपछले साल वह राय मशहूर हुआ। गुजरात क� झाँक� म� इस साल दंगे का j�य होना

    चा�हए, जलता हुआ घर और आग म� झeके जात ेबच।े Xपछले साल मVने उBमीद क� थी Kक आ� क�

    झाँक� म� हHरजन जलत ेहुए �दखाए जाएँगे। मगर ऐसा नह�ं �दखा। यह Kकतना बड़ा झूठ है Kक कोई राय

    दंगे के कारण अ�तरा9��य या>त पाए, लेKकन झाँक� सजाए लघु उYयोगe क�। दंगे से अछा गहृ-उYयोग

    तो इस देश म� दसूरा है नह�ं। मेरे मTय3देश ने कुछ साल पहले स@य के नजद�क पहंुचने क� को�शश क�

    थी। झाँक� म� अकाल-राहत काय9 बतलाए गए थे। पर स@य अधूरा रह गया था। मTय3देश उस साल राहत

    कायn के कारण नह�ं, राहत-कायn म� घपले के कारण मशहूर हुआ था। मेरा सुझाव माना जाता तो मV झाँक�

    म� झूठे मा�टर रोल भरत े �दखाता, चुकारा करनेवाले का अँगूठा हज़ारe मूखn के नाम के आगे लगवाता।

    नेता, अफसर, ठेकेदारe के बीच लेन-देन का j�य �दखाता। उस झाँक� म� वह बात नह�ं आई। Xपछले साल

    �कूलe के ‘टाट-पी कांड’ से हमारा राय मशहूर हुआ। मV Xपछले साल क� झाँक� म� यह j�य �दखाता-

    ‘मंGी, अफसर वगैरह खड़ ेहV और टाट-पी खा रहे हV।

    जो हाल झाँKकयe का, वह� घोषणाओं का। हर साल घोषणा क� जाती है Kक समाजवाद आ रहा है।

    पर अभी तक नह�ं आया। कहां अटक गया? लगभग सभी दल समाजवाद लाने का दावा कर रहे हV, लेKकन

    वह नह�ं आ रहा। मV एक सपना देखता हँू। समाजवाद आ गया है और वह ब�ती के बाहर ट�ले पर खड़ा है।

    ब�ती के लोग आरती सजाकर उसका �वागत करने को तैयार खड़ े हV। पर ट�ले को घेरे खड़ े हV कई

    समाजवाद�। उनम� से हरेक लोगe से कहकर आया है Kक समाजवाद को हाथ पकड़कर मV ह� लाऊँगा।

    समाजवाद ट�ले से lचsलाता है- 'मुझ ेब�ती म� ले चलो।’ मगर ट�ले को घेरे समाजवाद� कहत ेहV - 'पहले

    यह तय होगा Kक कौन तरेा हाथ पकड़कर ले जाएगा।’

    समाजवाद क� घेराबंद� है। संसोपा-3सोपावाले जनताि�Gक समाजवाद� हV, पीपुsस डमेो-ेसी और

    नेशनल डमेो-ेसीवाले समाजवाद� हV। -ाि�तकार� समाजवाद� हV। हरेक समाजवाद का हाथ पकड़कर उसे

    ब�ती म� ले जाकर लोगe से कहना चाहता है- 'लो, मV समाजवाद ले आया।’

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pनकल रहा है। उसे सब जगह पहँुचाया जाए। उसके �वागत और सुरMा का पूरा ब�दोब�त Kकया जाए।

    एक सlचव दसूरे सlचव से कहेगा- 'लो, ये एक और वी.आई.पी. आ रहे हV। अब इनका इंतज़ाम करो। नाक

    म� दम है।’

    कलेbटरe को हुbम चला जाएगा। कलेbटर एस.डी.ओ. को �लखेगा, एस.डी.ओ. तहसीलदार को।

    पु�लस-दतरe म� फरमान पहँुच�गे, समाजवाद क� सुरMा क� तैयार� करो। दतरe म� बड़ ेबाब ूछोटे बाब ूसे

    कह�गे- 'काहे हो >तवार� बाब,ू एक कोई समाजवाद वाला कागज आया था न! जरा >नकालो!’ >तवार� बाब ू

    कागज >नकालकर द�गे। बड़ ेबाब ूKफर से कह�गे- 'अरे वह समाजवाद तो परसe ह� >नकल गया। कोई लेने

    नह�ं गया �टेशन। >तवार� बाब,ू तुम कागज दबाकर रख लेत े हो। बड़ी खराब आदत है तुBहार�।’ तमाम

    अफसर लोग चीफ़-से-ेटर� से कह�गे- 'सर, समाजवाद बाद म� नह�ं आ सकता? बात यह है Kक हम उसक�

    सुरMा का इंतजाम नह�ं कर सक� गे। पूरा फोस9 दंगे से >नपटने म� लगा है।’ मुय सlचव �दsल� �लख देगा-

    'हम समाजवाद क� सुरMा का इंतजाम करने म� असमथ9 हV। उसका आना अभी मुsतवी Kकया जाए।’

    िजस शासन-?यव�था म� समाजवाद के आगमन के कागज दब जाय� और जो उसक� सरुMा क�

    ?यव�था न करे, उसके भरोसे समाजवाद लाना है तो ले आओ। मुझ ेखास ऐतराज भी नह�ं है। जनता के

    Yवारा न आकर अगर समाजवाद दतरe के Yवारा आ गया तो एक ऐ>तहा�सक घटना हो जाएगी।

    ये जीवन-7प उ�तर !कतने कह जाएँ अ;य गोजा ये जीवन-�प उ@तर Kकतने कह जाएँ

    rबना उ@तर भी Kकतने 3�न रह जाएँ

    �मट� पीड़ा के काँटे, खलत ेसुख के फूल

    मगर Kकतने �मटे rबन काँटे सह जाएँ

    कभी चाहा नह�ं आकाश जीवन म�

    rबना देखे सपन म� खोए रह जाएँ

    ये पीड़ा ऐसी, जैसे जल हो सागर का

    यू ँखार� धारा म� बेबस-से बह जाएँ गगन म� मन के छाया हो >नराशा-तम हज़ारe आशा आ�था-सूय9 कह जाएँ

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 p

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 p

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    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pतया आंट� का फोन �मलाने लगी Kक

    मोनी को ले चल�। मVने कहा, ‘नेहा, वह बहुत दरू रहती हV, कैसे आय�गी।’

    ‘तो Kफर वमा9 आंट� को फ़ोन करके कहो, स�मत को भेज दो।’

    वमा9 आंट� ने भी कोई मुि�कल बता कर इंकार कर �दया।

    इस बीच रXव आ गया। 3काश और रXव बैठक म� बैठे बात� करने लगे। नेहा मेरे पीछे पड़ी रह�। मV उसे भीतर

    के कमरे म� ले गया। वहा ँदेखा Kक मेर� बड़ी बेट� �शमा�लया बैठ रो रह� है। पूछा, ‘bया हुआ?’

    बोल�, ‘Kकतनी पागल है यह। सब मना कर रहे हV, Kफर भी पीछे पड़ी हुई है। इसे समझ bयe नह� ंआता। आठ

    साल क� हो गयी। शी इज़ सो डम।’

    दो �दन पहले जब �शमा�लया ने यह बात कह� थी तो नेहा ने पलट कर कहा था, ‘‘देअर इज़ नlथगं राँग इन

    बीइंग डम।’ उसने अपने दोनe हाथ अपनी छोट� सी जैकेट क� जेबe म� डाल �लये थे और यंू खड़ी हो गयी थी मानe आठ

    साल क� नह� ंअारह साल क� हो।

    जब से मV अपनी दोनe बे�टयe को लेकर अमेHरका लौटा हँू, अbसर घर पर खुद खाना बनाता हँू - इंडयन

    खाना। और बाहर Kकसी इंडयन रे�Gा ंम� जाकर खाना मुझ ेपसंद नह� ंहै। दाल मखनी हो या मसूर क�, एक छोट�-सी

    लेट के जब चार-पांच डॉलर देने पड़त ेहV तो चुभत ेहV। मालमू है Kक दाल कैसे बनी है, उसम� bया-bया पड़ा है तो उसके

    इतने पैसे bयe दो। बाहर का खाना खाकर हाज़मा खराब होने का डर अलग रहता है। इस�लये बाज़ार म� मसालe के

    ड|बe के ऊपर जो पाक-Xवlध बतायी गयी होती है उसी से काम चलाता हँू और दोनe बे�टया ँबड़ ेशौक से खाती हV।

    खाना बनाने का यह मेरा पहला अवसर है। Kफर भी वह मेरे बनाये पकवानe क� तार�फ़ करती हV। खाना खात े हुए

    कह�गी, बहुत मज़े का बना है....स|ज़ी थोड़ी और देना।....आप तो श�नो मासी से भी अछा बनात ेहो।....पापा, आप

    खचड़ी बनाओ जैसी मBमी बनाती हV। मV मन ह� मन अपने को शैफ समझने लगा हँू।

    अbसर दोनe खाना बनाने म� मेर� मदद भी करती हV। मV स|ज़ी बनाता हँू, नेहा सलाद काटती है, मV चपाती

    बनाता हँू, �शमा�लया उ�ह� चुपड़ती है। मV खाना परोसता हँू, व ेदोनe ल�ट� लगाती हV। बाद म� वह बत9न साफ़ करने को

    भी तैयार रहती हV, मV ह� मना कर देता हँू। या>न Kक, यू ँतो सब ठक चल रहा है, बस मुि�कल तब पड़ती है जब नेहा

    कहती है, ‘पापा, बोर हो रह� हँू, कह� ंबाहर च�लये घूमने, खाना बाहर खाय�गे।’ उसक� बड़ी बहन, जो खुद अभी तरेह

    क� ह� है उसे कभी डाँटती है कभी यार से समझाती है, अंत म� वह ह� हार जाती है और रोती-झींकती मेरे पास आती है,

    ‘पापा, शी इज़ र�यल� डम। इसे समझ bयe नह� ंआता। यह बची नह� ंहै।’

    मेरा �सर �भ�ना जाता है। मुँह से >नकलता है, ‘हे भगवान! इनक� मा ँको भेज। वह ह� इ�ह� सँभाल सकती है।’

    हम� नई �दsल� एयरपोट9 से Xवदा करत ेहुए इनक� मा ँने – िजसे भारत म� अपने दतर से लBबी छुी न �मल

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pतरछ रेखाओ ंके बीच rबछे rबदंओु ंको >नगलती जा रह� है। िजतने rबदंओु ंको

    पैकमेन >नगलता है, खलाड़ी को उतने ह� अlधक अंक �मलत ेजात ेहV। तो यह है इसका मनपसंद खेल, िजसके बारे म�

    �शमा�लया ने मुझ ेबताया था Kक नेहा बहुत अछा खेलने लगी है। उसने बताया था Kक शु�-शु� म� उसका �कोर

    हज़ार-दो हज़ार से ऊपर नह� ंटपता था, पैकमेन rबदंओु ंको >नगलने क� बजाये खुद ह� Kकसी ‘भूत’ का �शकार हो जाता

    था। अब नेहा दस-बीस हज़ार तक �कोर बड़ ेमज़े म� कर लेती है, भूत को पैकमेन के आगे फटकने नह� ंदेती।

    मुझ ेबचe का वीडओ खेल खेलना पसंद नह� ंहै। मV उ�ह� वीडओ-खेल खर�दकर घर लाने नह� ंदेता। उ�ह�

    ऐसे खेल खेलने चा�हये िजनसे शर�र क� कसरत हो, हाथ-पावँ �हल�, मासपे�शया ँमजबूत हe। यह bया Kक एक ह� जगह

    खड़ ेहो रहे, और �-�न पर पैकमेन तो bया बैड�मटंन और सॉकर जैसे कसरती, सासँ-फुलाऊ खेल खेलत ेरहे। इन खेलe

    से तो भी एक खेल क� तरह 3�तुत Kकया जाने लगा है।

    मV चाह रहा था Kक नेहा जsद� से जsद� दो-तीन गेम खेले, पीOज़ा खाये और घर चले। लेKकन वह मुझ ेघेर-

    घार कर लायी थी। अपने आठ साल के जीवन-अनुभव से उसने इतना अव�य जान �लया था Kक मा-ँबाप से Kकस तरह

    काम >नकाला जाता है। जब दोनe साथ हe तो उनसे कभी-कभी बात मनवानी ज़�र क�ठन हो जाती है, लेKकन अगर

    दोनe म� से कोई एक अकेला हो तब तो काम बहुत आसान हो जाता है। वह खेल म� मेर� flच जगाने क� को�शश करने

    लगी। बीच-बीच म� बोलती, ‘पापा आप खेलोगे। मV जवाब देता तू ह� खेल।’

    उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘खेलो न। आपको बड़ा मज़ा आएगा। मV हाथ पीछे खींच लेता। वह Kफर खेलने

    लगती।’

    ‘ओ गॉश!’

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pनकल आया, ‘बोला चल चल�।’ और तज़े कदमe से बाहर के दरवाज़ ेक� ओर चल �दया।

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pनण9य ठक ठहराने के अंदाज़

    म� कहा, ‘माना मVने कहा था पीOज़ा खला लाऊँगा, लेKकन देखा था Kकतनी भीड़ थी, पता है Kकतना वbत लगता।

    3काश और रXव अंकल घर पर इंतज़ार कर रहे हV।’

    वह चुप रह�। ठंड म� वह अपनी जेबe म� हाथ डाले चलती रह�।

    मV कहता गया, ‘और भी बच ेहV तुBहारे साथ के। सभी अपने मा-ँबाप का कहना मानत ेहV।’

    नेहा क� आँखe से आँस ूबह >नकले। वह अपना मुँह बंद रखे हुए थी, ताKक उसका रोना सनु कर पास से

    गुज़रत ेलोग उसे न देखने लग�।

    मV कहता गया, ‘डपंल के पापा ने मना Kकया वह मान गई। स�मत क� मBमी ने उसे इशारा Kकया, वह समझ

    गया। सब बच ेअपने घर म� खाना खात ेहV। कभी सनुा है �द?या-शेफाल� ने अपने मBमी-पापा से कहा हो बाहर खाना

    खलाने ले चलो?’

    वह पैर पटकत ेहुए एकाएक फूट पड़ी, ‘उनक� मा,ं रोज़ उनके �लये इतना �वाद खाना बनाती हV, उ�ह� खाना

    बाहर जाकर खाने क� bया ज़�रत है।’

    ‘बस-बस, चुप कर’, मVने डपट �दया।

    कुछ क़दम हम खामोश चलत ेरहे। घर क� सी�ढ़यe के पास पहँुच कर वह fक गई। मV आगे >नकल गया।

    �शमा�लया, जो अपाट9म�ट क� बाsकनी म� खड़ी हमार� 3तीMा कर रह� थी। उसने मेरे और नेहा के बीच यह झगड़ा होत े

    देख �लया था। और कुछ सनु भी �लया था। वह सी�ढ़या ँफलागँती दौड़ी चल� आयी। उसने नेहा के पास जाकर उसके

    कान म� कुछ कहा। �शमा�लया का चहेरा कुछ सत हो गया। मVने सनुा उसने नेहा से कहा है, ‘‘यू आर सो डम।’’

    मा ँ डॉ. �शव चौहान '�शव' गंगा के पवन नीर-सी >नम9ल पीड़ा गर घनीभूत हो जाये

    परोपकार क� मूरत, मा ँ याद ज�र तब आती, मा ँ

    श|दe म� बखानी न जाये ममता के आँचल को पसारे

    qम�प म� होती, मा ँ >नत उठ सधुा लुटाती, मा ँ

    वेदe म� हV, ऋचाएँ या लोर�, पलना संग जड़ुी है

    कम9योग म� गीता मा ँ एक अनसुलझी पहेल�, मा.ँ

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pत लmमण�सहं के साथ शाद� के महज़ डढ़े साल के भीतर ह�

    स@याvह म� शा�मल हो ग और जेलe म� ह� जीवन के अनेक मह@वपूण9 वष9 गुज़ारे। गहृ�थी और न�ह� बचe का

    जीवन सँवारत े हुए उ�हeने समाज और राजनी>त क� सेवा क�। देश के �लए कत9?य और समाज क� िज़Bमेदार�

    सँभालत ेहुए उ�हeने ?यिbतगत �वाथ9 क� ब�ल चढ़ा द� - न होने दूँगी अ@याचार, चलो मV हो जाऊँ ब�लदान।

    सभु:ाकुमार� क� कXवता 'झाँसी क� रानी' महाजीवन क� महागाथा है। कुछ पंिbतयe क� इस कXवता म�

    उ�हeने एक Xवराट जीवन का महाका?य ह� �लख �दया है। इस कXवता म� लोकजीवन से 3ेरणा लेकर लोक आ�थाओ ंसे

    उधार लेकर जो एक �मथक�य संसार उ�हeने खड़ा Kकया है उससे 'झाँसी क� रानी' के साथ सभु:ा जी भी एक Kकंवदंती

    बन गई हV। भारतीय इ>तहास म� यह शौय9गीत सदा के �लए �वण9म अMरe म� अंKकत हो गया है -

    �सहंासन �हल उठे, राजवंशe ने भकुृट� तानी थी

    बूढ़े भारत म� भी आई, Kफर से नई जवानी थी

    गमुी हुई आज़ाद� क� क�मत सबने पहचानी थी

    दरू Kफरंगी को करने क� सबने मन म� ठानी थी।

    आज हम िजस धम9>नरपेM समाज के >नमा9ण का संकsप लेत ेहV और सां3दा>यक साव का वातावरण

    बनाने के �लए 3य@नशील हV- सभु:ा जी ने बहुत पहले अपनी कXवताओ ंम� भारतीय सं�कृ>त के इन 3ाणत@वe को

    रेखांKकत कर �दया था -

    मेरा मं�दर, मेर� मि�जद, काबा-काशी यह मेर�

    पूजा-पाठ, Tयान जप-तप है घट-घट वासी यह मेर�।

    कृ�णचं: क� -�ड़ाओं को, अपने आँगन म� देखो।

    कौशsया के मातमृोद को, अपने ह� मन म� लेखो।

    3भ ुईसा क� Mमाशीलता, नबी महुBमद का Xव�वास

    जीव दया िजन पर गौतम क�, आओ देखो इसके पास।

    सभु:ाकुमार� चौहान का ज�म नागपंचमी के �दन १६ अग�त १९०४ को इलाहाबाद के पास >नहालपुर गाँव म�

    हुआ था। Xपता का नाम ठाकुर रामनाथ �सहं था। सभु:ाकुमार� क� का?य 3>तभा बचपन से ह� उजागर हो गई थी।

    १९१३ म� नौ साल क� उ¡ म� सभु:ा क� पहल� कXवता 3याग से >नकलने वाल� पrGका मया9दा म� छपी थी।

    'सभु:ाकँुवHर' नाम से छपी यह कXवता 'नीम' के पेड़ पर �लखी गई थी। सभु:ा अपनी बहनe के साथ �कूल जाती और

    �कूल क� चारद�वार� के भीतर दौड़-भाग और खेलकूद क� पूर� �वतंGता थी। सभु:ा चंचल और कुशाv बुX� थी। पढ़ाई

    म� अ?वल आने का उसको इनाम �मलता था। सभु:ा अ@यंत शी¥ कXवता �लख डालती, गोया उसको कोई 3यास ह� न

    करना पड़ता हो। �कूल के काम क� कXवताएँ तो वह साधारणतया घर से आत-ेजात ेइbके म� �लख लेती थी। इसी

    कXवता क� वजह से भी �कूल म� उसक� बड़ी चाहत थी।

  • vsu2a

    v8R 9, A.k 33 jnvrI-macR 2012 pत9 से सुख पाया। ई�या9 क� म�लनता उनके बचपन क� मैGी को म�लन नह� ंकर

    पाई।

    सभु:ा क� पढ़ाई नवी ंकMा के बाद छूट गई। गांधी जी क� असहयोग क� पुकार को पूरा देश सनु रहा था।

    सभु:ा ने भी �कूल से बाहर आकर पूरे मन-3ाण से असहयोग आंदोलन म� अपने को झeक �दया- दो �पe म�। एक तो

    देश-सेXवका के �प म� और दसूरे, देशभbत कXव के �प म�। 'ज�लयांवाला बाग' (१९१७) के नशंृस ह@याकांड से उनके

    मन पर गहरा आघात लगा। उ�हeने तीन आQनेय कXवताएँ �लखीं। 'ज�लयाँवाले बाग़ म� वसंत' म� उ�हeने �लखा -

    पHरमलह�न पराग दाग़-सा बना पड़ा है

    हा ! यह यारा बाग खून से सना पड़ा है।

    आओ X3य ऋतुराज ! Kकंतु धीरे से आना

    यह है शोक-�थान यहा ँमत शोर मचाना।

    कोमल बालक मरे यहा ँगोल� खा-खाकर

    क�लया ँउनके �लए lगराना थोड़ी लाकर।

    भाई ने जब सभु:ा का Xववाह नाटककार लmमण �सहं के साथ तय कर �दया तो सभु:ा क� अTयाXपका ने

    कहा Kक आप इस लड़क� का Xववाह न कर� , यह तो एक ऐ>तहा�सक लड़क� होगी। इसका Xववाह करके आप देश का

    बड़ा नुकसान कर�गे। आगे चलकर यह� लड़क� सभु:ाकुमाह� चौहान हुई, िज�हeने 'झाँसी क� रानी' जैसी ऐ>तहा�सक

    कXवताएँ �लखी ंऔर जो देश क� आज़ाद� के �लए अनेक बार जेल ग।

    सभु:ा क� शाद� अपने समय को देखत ेहुए -ां>तकार� शाद� थी। न लेन-देन क� बात हुई, न बहू ने पदा9 Kकया

    और न कड़ाई से छुआछूत का पालन हुआ। दsूहा-दलुहन एक-दसूरे को पहले से जानत े थे, शाद� म� जैसे लड़के क�

    सहम>त थी, वैसे ह� लड़क� क� भी सहम>त थी। बड़ी अनोखी शाद� थी - हर तरह ल�क से हटकर। ऐसी शाद� पहले

    कभी नह� ंहुई थी।

    जबलपुर से दादा माखनलाल चतुव!द� कम9वीर >नकालत ेथे। उसम� लmमण �सहं को नौकर� �मल गई। सभु:ा

    भी उनके साथ जबलपुर आ ग। सभु:ा जी सास के अनुशासन म� रहकर माG सुघड़ ग�ृहणी बनकर संतु�ट नह� ंथीं।

    उनके भीतर जो तजे था, काम करने का उ@साह था, कुछ नया करने क� जो लगन थी, उसके �लए घर क� चारद�वार�

    क� सीमा बहुत छोट� थी। सभु:ा जी म� �लखने क� 3>तभा थी और अब प>त के fप म� उ�ह� ऐसा ?यिbत �मला था

    िजसने उनक� 3>तभा को पनपने के �लए उlचत वातावरण देने का 3य@न Kकया।

    दोनe प>त-प@नी मन-3ाण से कांvेस का काम करने लग�