lagna chandrika jyotish prakashan - internet archive

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Page 1: Lagna Chandrika Jyotish Prakashan - Internet Archive

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भाषा-टीका

` . १ _ परकाशय :-५ ` जयोतिष. परकरारन

( ___ चौक ( चितरा क सामन), वाराणसी २२१००१

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॥ .५ ~ ~ ~ 3 ९ अ ~ ^, ¬ ~ ~ ~~ ~~

ऋकासणीनायन किरचिता

लगनचनदिका खनो धिनी“ लिनकीवयाखयो कतः

वयाखय7क7र--

शरीकाशीजयोतिरवितसमिलिमनवरी-- दकजकचलयालिः ऋगिकरकदकः

-परक7डकत

जयोतिष यरवछाशन सोक, वाराणसी- २२९१०५०१

फन - ३२२०४०२

कलककता क कतिरक --

खाककर पसाद बकसलर

१६६ ज. महातमा गधी रोड

| 3

कलकतता-७०००० ५

मलय ३०)-

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परकाशक : ।

जयोतिष परकाशन ॥ चौक, चितरा क सामन

वाराणसी -२२१००१

फोन : ३२०४०२

~.

सरवाधिकार सरकषित : परथम ससकरणम‌

सन‌ १६६६ ई.

मय : ३०)-

फोटो कमपोजिग ‡

जयोतिष परकाशन चौक, वाराणसी

2,

मदरक :

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विषयानकरमणिका

लगन चनदिकछासथ- किकयदरकरसगणिका विषयाः पषठानि | विषयाः पषठानि थसः परिचछदः ८८ £ ८८ | दितयः परिचछदः ८८ २८८

^ |लगनादिदरादशभावसथरविफलम‌ ७३ € |लगनादिदरादशभावसथ चनदरफलम‌ ७५ ८ | लगनादिदरादशभावसथ कजफलम‌ ७७

३८ |लगनादिदरादणभावसथ बधफलम‌ ७६ ४ १ |लगनादिदरादशभावसथ गरफलम‌ ८१

मदखलाचरणम‌ विशषसजञा शभाणभयोगाः सवरीसमबनधीशभाशभयोगाः तरतफलम‌ पकषफलम‌ वारफलम‌ वारायः तिथिफलम‌ ननदादितिथिफलम‌ जनमनकषतरफलम‌ योगफलम‌ करणफलम‌ मषादिराशिफलम‌ सकषपण मषादिराशिफलम‌ मषादिलगनोतपननफलम‌ जनमराशिनवमाशफलम‌ गणफलम‌ गणडयोगः गणडशानतिः रवयादीना सवोचगतफलम‌ मलतरिकोणगतगरहफलम‌ सवगहसथगरहफलम‌ मितरगहसथगरहफलम‌ शतरगहसथगरहफलम‌ नीचगहसथगरहफलम‌

४२ लगनादिदरादशभावसथ शकरफलम‌ ८३ ४२ |लगनादिदरादशभावसथ शनिफलम‌ ८५ ४४

४५ ४८

४६

८४

1

नरचकरम‌ रविचकरम‌ चनदरचकरम‌ भौमचकरम‌

६० |अघवकनम‌ ६४ | गरचकर‌ ६४ | गकरचकरम‌ ६६ | शनिचकरम‌ ६७ | राहचकरम‌

€ कतचकरम‌ ६८ |सरीचकरम‌ ६६ |सरयकालानलचकरम‌ ७० | चनदरकालानलचकरम‌ ७१ | यमदषटराचकरम‌ ७९ | वधफलम‌ ७२ |दरगचकरम‌ ७२ | रवयादीना मधयमचारः

छतीयः पररचछदः ८८२ ८८ ८७

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६०

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६२

६३ 5४

= ६6६ 5७9

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55

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8 विषयानकरमणिका

डालि

विषयाः पषठानि | विषयाः पषठानि जनमलगनजञानम‌ ६६ | शकरिगरहयोगाः १२६ अषटोततरीदशाकरमः १० १ |तरिगरहयोगाः १२९ सरयदशाफलम‌ १०२ | चतररहयोगाः १३२ चनरदशाफलम‌ १०४ | पञचगरहयोगाः १३८ भोमदशाफलम‌ १०५ | षडगरहयोगाः १४१ बधदशाफलम‌ १०७ |नाभसयोगाः १४३ शनिदशाफलम‌ १५६ |नौकायोगः, कटयोग छतरयोगः १४३ बहसपति दशाफलम‌ १११ |कारमकयोग १४४ राहदशाफलम‌ ११२ | वजर-यव-पदमयोगाः १४४ शकरदशाफलम‌ ११४ |वापी-शकट-विहगयोगाः- १४५ विशोततरीदशाफलम‌ ११६ | चकरयोगः, जलधियोगः १४६ कतदशाफलम‌ ११६ | हल, शरदधाटकयोगाः १४६ अनयगरहमधय कतफलम‌ ११८ | यपयोगः, वाणयोगः १४७ राहदशामधय कतवनतरदशाफलम‌ ११६ |शकतियोगः १४७

मासदशाः १२० |दडयोगः,अरधचनदर,गदायोगाः १४२८ दिनदशाः १२१ | गोलयोगः, यगयोगः १४६ भोम दशा मधय णन- शलयोगः, कदारयोगः १४६

रनतदशाफलम‌ , १२१ |पाशयोगः, दामयोगः १५० कररगरहमधय पापगरहफलम‌ १२२ |वीणायोगः १५०

दशारिषटभगः १२२ |नल-मसल-रदखयोगाः १५० ` चारथः परिचछदः ८८ ८८ |मालायोगः-सरपयोगः १५१

रविदविरहयोगाः १२३ | वरषा-धानयादिविचारः १५१ चनदरदविगरहयोगाः १२४ |दशाभकतभोगयविचारः १५८३ भौमदिगरहयोगाः १२४ |परमोचसथगरहफलम‌ . १५४ बधदिगरहयोगाः १२९५ | षयादीना परमोवाशाः १९६ गरदगरहयोगाः १२६ दशानतर सारिणी १५७

18

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1

५५

८ ॐ गणशाय लयः ८८

लगनचददिका भकारीका-सालतिः

अथ परथमः परिचछदः [१] सादभललकरणर

नतवा गर गणश च वासदवः सता मद । अल करोमयह भाषाटीकया लगनचनदिकाम‌ ॥ तमिखरया जगदगरसत यो जीवयति भतल । त वनद परमाननद सरवसाकषिणमीशवरम‌ ।।

समपरण जगत‌ क साकषी ओर परमाननदसवरप सरय भगवान‌ की

म वनदना करता ह; कयोकि व ही इस अनधकाराचछनन जगत‌ क

पराणियो को जीवन दत ह। जथ किङकरः

तनधन च भराता च सहदयतरो रपरवध । मतयशच धरमः कमयिो वययो भावाः परकीरतिताः ।॥ १॥।

तन, धन, भराता, सहद‌, पतर, रिप, सतरी, मलय, धरम, करम, आय

ओर वयय- य करम स बारह भावो क नाम कह गय ह।।१॥

विषमोऽथ समः पसतरी कररः सौमयशच नामतः । चरः सथिरो दिसवभावो मषादया राशयः करमात‌ ।। २।।

मष, वष, मिथन, करक, सिह, कनया, तला, वशचिक, धन, मकर,

कमभ ओर मीन य बारहो राशिया करमशः विषम -सम, परषसतरी,

करर-सौमय ओर चर-सथिर दिसवभावसजञक ह ।।२।।

दशचिकय सयातततीय च सख सदम चतरथकम‌ । बनधसजञ च पाताल हिलक पञचम च धीः ।।३॥।

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स लगनचनदरिका

ततीय भाव की दशिकय, चतरथ भाव की सख, गह, बनध, पाताल तथा हिबक एव पञचम भाव की धी (बदधि) सजञा ह।। ३॥।

दयन दनमथासत च जामितर सपतम समतम‌ । दशम तवमबर मधय छिदर सयादषटम गहम‌ ।। ४।।

सपतम भाव को दन, यन असत ओर जामितर कहत ह । दशम भाव को अमबर तथा मधय कहत ह, अषटम भाव की छिदर सजञा ह।। ४।।

एकादश भवललाभः सरवतोभदरमव च। वययो रिषफ हादश च तरिकोण नवपञचम ।। ५।।

गयारहव भाव को लाभ ओर सरवतोभदर भी कहत ह । बारहव भावकी वयय ओर रिषफ सजञा ह, नवम ओर पञचम भाव की तरिकोण सजञा ह।५।

तरिषणडदशलाभाना भवदपचयाखयकम‌ । चतथषटमयोः सजञा चतरसर समता बधः ।।६।

तीसर, छठ, दशव ओर गयारहव सथानो को उपचय कहत ह । चतरथ ओर आव भाव की चतरसर सजञा ह।।६॥ कनदरचतषटयकणटकसजञाऽऽदयचतरथसपतदशमानाम‌ । परतः पणफरमापोकलिम च वदय यथाकरमतः ।।७।।

परथम, चतरथ, सपतम ओरदशम भाव की कनदर, चतषटय ओर कणटक सजञा ह। दवितीय, पञचम, अषटम ओर एकादश भाव को पणफर, ततीय, ष, नवम ओर दवादशभाव को आपोकलिम कहत ह ।।७।।

वगोततिमनवमाशाशचरादिष परथममधयानतयाः । होरा विषमऽकनदोः समराशौ चनदरसरययोः करमतः ।। ८।।

चर-सथिर, दिसवभाव राशियो का करम स परथम, पञचम ओर नवम नवाश वरगोततम होता ह। यथा चरसजञक राशियो का परथम, दविसवभावसजञक राशियो का पञचम ओर सथिरसजञक राशियो का नवम नवाश वरगोततम जान । विषम राशियो म १५ अश तक सरय

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+

न ~ भाषाटोका-सडिता ९७9

की होरा होती ह। तदननतर चनदर की होरा होती ह एव सम राशियो

म पहल १५ अश तक चनदरमा की पशचात‌ सरय की होरा समजञना ।। ८॥

सवगहाददादशभागदरषकाणाः परथमपञचनवमानाम‌।

मषादयाशचतवारः सधनविमकराः कषपाबला जञयाः।।६॥।

पषटोदयाः समताः पञचयातराया नव शोभनाः। सिहादया य च चतवारः कभो यगम दिवाबलाः।।१०॥।

शीरषोदयाशच मीनसत बली राजञौ तथा दिन।

कषीणचनदो रविरभोमः पापो राहः शनिः शिखी ।।१९॥

परतयक राशि म सवगह स बारह भाग दवादशाश होता ह, सभी

राशियो म तीन-तीन दरषकाण होत ह, उसम परथम दरषकाण उसी

राशि का, दवितीय उसस पञचम राशि का, ततीय नवम‌ राशि का

होता ह। मष स चार अरथात‌ मष, वष, मिथन, करक तथा धन

ओर मकर य ६ राशिया रातरि म बलवती होती ह । इनक अतिरिकत

सिह, कनया, तला, वशचिक, कमभ ओर उपरोकत रातरि-बलशाली

राशियो म मिथन को छोडकर बाकी सव राशिया पषठोदय मानी

गयी ह । उनका उदय पभाग स होता ह, अतः व यातरा म अशभ

होती ह। सिह आदि चार राशिया, कमभ ओर मिथन- य दिनबली

ओर शीरषोदय ह अरथात‌ मसतक स इनका उदय होता ह। इनम

तीन राशि दोनो समय बलवती रहती ह ।। ६-११॥

बधोऽपि तरयतः पापो होरा राशयरडमचयत । रवीनदभोमगरवो जशकरशनिराहवः ।१२।।

कषीणचनदरमा, सरय, मङगल, राह, शनि ओर कत- य पापगरह

ह। इनक साथ रहन पर बध भी पापगरह हो जाता ह। राशि

क अरधभाग को होरा कहत ह ।। १२

सवसमिनमितराणि चतवारि परसमिञछनरवः समताः।। १२॥ सरय, चनर, मगल, गर, बध, शकर, शनि ओर राह-य आपस म

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ल लगनचबदरिकाः

मितर ह। जर- सरय, चनदरमा ओर बहसपति मितर ह; किनत बध, शकर, शनि ओर राह यदि उनक साथ पड जाय तो शतर हो जात ह ।१२।

मष रविरवषि चनदरो मकर च महीसतः । कनयाया रोहिणीपतरो गरः करक इष भगः ।।१४।। शनिसतलायामचचशच मिथन सिहिकासतः । उचचातसपतमगा नीचा राशौ वाऽपि नवाशक ।।१५।। मष का सरय, वष का चनदरमा ओर मकर का मगल उचच होता

ह। कनया राशि का बध, करक का बहसपति, मीन का शकर, तला का शनि तथा मिथन का राह उचच होता ह। परतयक उचच राशि स सातवी राशि नीच होती ह। जठ- मष राशि का सरय उचच ह तो इसस सातवी राशि तला का सरय नीच होगा। राशि क उचच-नीच का करम नवाश म भी चलता ह।। १४-१५।।

अख य खडदयशयो गाः

अरथी भोगी धनी नता जायत मणडलाधिपः । नपतिशचकरवरती च रवयायरचगगरहिः ।। १।।

सरयादि गरहो स उचच रहन पर भी पराणी अरथी, भोगी ओर धनी आदि होता ह। जस- सरय उचच का हो तो धनी, चनदरमा उचच राशि काहोतो भोगी, मगल उचच राशिकाहो तो धनी, बध उचच राशिका

. हो तो नता, बहसपति उचच राशि का हो तो मणडलाधिपः, शकर उचच राशि का हो तो राजा ओर शनि उचच राशि का हो तो चकरवरती होता ह।१।

तरिभिः सवसथभवनमनतरी जिभिरचचरनराधिपः । तरिभिरनीचिभविदाससवरिभिरसतङतरजडः ।।२॥

यदि किसी की जनमकणडली म तीन गरह सवसथ अरथात‌ परण बली होकर विराजमान हो तो वह पराणी किसी राजा का मनतरी होता ह। यदि तीन नीच गरह पड हो तो दास ओर तीन असङखत गरह पड हो तो वह बालक मनद बदधि होता ह।।२॥

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भाषाटीका-सडिता =

उदितः सवगहसथशच मितरगह सथितोऽपि वा । मितरवरग मितरदषटः स गरहः सबलः समतः ।\३॥।

जो गरह उदित हो, अपन या अपन मितर क घर म सथित

हो तथा अपन मितर क षडवरग म हो या अपन मितरगरह स दषट

हो तो कह बलवान‌ माना जाता ह।।३॥

सवामिना बलिना दषटः सबलशच शभगरहः । न दषटो न यतः पापः स भावः सबलः समतः ।।४।।

जो भाव अपन बलवान‌ सवामी या बलवान‌ शभ गरह स दषट

ओर पापगरह स दषट ओर यकत नहो तो उस भाव को बलवान‌ कहत ह ।। ४।।

दशम बधसरयो च भौमराह च षगौ । राजयोगऽतर यो जातः स पमाननायको भवत‌ ।। ५।।

आदौ जीवः शनिशचानत गरहाः मधय निरतरम‌ । राजयोग विजानीयात‌ कटमबबलसयतः ।। ६।। जनमलगन स दशव बध, सरय तथा छठ सथान म मङगल ओर

राह हो तो यह राजयोग होता ह। इस योग म उतपनन परष मनषयो म

नायक होता ह अथवा सनापति होता द। गर स आरभ करक गस

जिस भाव म हो व स शनि तक मधय म यदि सभी गरह हो ओर दवितीयश बलवान‌ हो तो सामानयतः राजयोग होता ह ।। ५-६।।

सहजसथो यदा जीवो मतयसथान सथितः सितः । निरनतर गरहा मधय राजा भवति निशचितम‌ ।।७॥। ततीय म गर ओर आव भाव म शकर तथा शष गरह मधय

म हो तो मनषय निशचय राजा होता ह।।७॥

जीवो वष सधारसमिरमिथन मकर कजः । सिह भवति सोरिशच कनयाया बधभासकरो ।॥८॥।

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१० लगनचनदरिका

तलायामसराचारयो राजयोग भवदयम‌ । असमिनयोग समतपननो महाराजो भवननरः ।।६।।

यदि बहसपति वष म, चनदरमा मिथन म, मङगल मकर म, शनि सिह म, बध, सरय कनया म ओर शकर तलाराशि म हो तो इस परकार क योग म उतपनन बालक सारवभौम होता ह।। ८-६।।

अषटम दवादश वरष यदि जीवति मानवः। सारवभोमसतदा राजा जायत विशवपालकः ।। १०।। उपरयकत राजयोग म उतपनन बालक यदि आवा ओर बारहवा

वरष पार करक जी जाय तो समसत विशव का पालन करनवाला

सारवभौम राजा होता ह। भावारथ यह ह कि अषटम ओर दादश वरष उसक लिए अनिषटकारक ह ।। १०।।

एको जीवो यदा लगन सरव योगासतदा शभाः ।

दीरघजीवी महामानयो जायत नायको भटः । ११।। धनषयारशच शकरशच मीन जीवसतल बधः ।

नीचसथो शनिचनदरो च राजा सयादधनवजितः ॥। १२।। यदि कवल उचच का गर ही लगनम हो तो सभी योग शभ-

परद होतह। एस योग म उतपनन बालक दीघ, राजमानय ओर सनापति होता ह। मगल तथा शकर धन राशि पर, बहसपति मीन राशि पर, बध तला राशि पर, शनि तथा चनदरमा नीच राशि म सथित हो तो एस योग म उतपन जातक धनहीन राजा होता ह अथवा धनवान कलोतपनन भी निरधन हो जाता ह।।११-१२॥

दाता भोकता च विखयातो मानयो मडलनायकः । मीन शकरो बधशचानत धन राहसतनो रविः ॥ १३।। मीन राशि पर शकर, वयय भाव म बध, दवितीय भाव म राह,

लगन म सरय हो तो इस योग म उतपनन बालक दानी, भोगी, परसिदध

राजमानय. ओर भमि का सवामी होता ह।। १३॥

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भाषाटीका-सदिता १९१

सहज च भवदधोमो योग राजाऽतर जायत ।

सहज च यदा जीवो लाभसथान च चनदरमाः ।

स राजा राजयमधयसथो विखयातः कलदीपकः । १४।) जनमलगन स ततीय म गर ओर एकादश म चनदरमा हौ तो

रस योग म उतपनन बालक राजाओ क मधय म राजा ओर सममानित

होता ह तथा पथवी का सवामी होता ह।। १४॥

शभगरहाः शभकषतर भवनति यदि कनदरगाः ।

तदा शभानि करमाणि करोतयव हि बालकः ।॥१५॥।

यदि शभगरह सभी शभगरो की राशि म होकर कनरो मबठहो

तो इस योग म उतपनन बालक शभकरम म निरत रहता ह।। १५।।

उचसथानगताः सौमयाः कनदरष च भवनति चत‌ ।

धव राजय भवततसय सववशाना च पोषकः ।१६।। जिसक सभी सौमय गरह उचचसथान म रहत हए कनर म पड जारय तो

वह निशचय ही राजा ओर अपन वशका पालन करनवाला होताह।१६।

धन वयय तथा लगन सपतम च यदा गरहाः ।

छतरयोगसतदा जञयो नराणा नायको भवत‌ ।। १७)

जिसक समपरण गरह दितीय, दवादश, लगन तथा सपतम सथान‌ म पड

हो तो छतरयोग होता ह, इस योग का बालक सनापति होता ह। १७।

स-सरया वा स-चनदरा वा यतर कतर चतररहाः ।

मालानामकयोगोऽय राजयदो धनदो भवत‌ ॥॥१८।

सरय अथवा चनदरमा क साथ चार गरह जिस किसी भी सथान म पड

हए हो तो मालायोग होता ह। यह योग राजय तथा धनदायक ह।१८।

सवकषतरसथो यदा जीवो बधः सौरिः सवराशिगः ।

अनन जातसय दीरघायः समपदशच भवनति हि ।।१६।।

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१२ लगनचनदिका

मीन बहसपतिः शकरशचदरमाशच यदा भवत‌ । ततर जातसय राजय सयात‌ पतनी च बहपतरिणी ॥२०॥ जनमकणडली म बहसपति धन, मीन म बठा हो ओर बध मिथन

या कनया म तथा शनि मकर या कमभ म हो तो इस योग म उतपनन बालक दीघय ओर धनवान‌ होता ह। यदि बहसपति, शकर ओर चनदरमा मीन राशि म बठ हो तो इस योग म उतपनन बालक राजा होता ह ओर उसकी पतनी बह पतरवती होती ह।।१६-२०॥

पञचमसथो यदा जीवो दशमसथशच चनदरमाः । स पजयशच महाबदधिसतपसवी च जितनदरियः ॥२१॥ सिह जीवसतलाकीट कोदडमकरष च । गरहा यदा तदा जातो दशभोगी भवननरः ॥ २२॥ जनम-लगन स पाचव भाव म गर हो ओर दशम भाव म चनदरमा

हो तो इस परकार क योग म उतपनन बालक राजा तथा बडा बदधिमान‌ ओर जितदधिय होता ह। यदि बहसपति सिह राशि पर ओर अनय सभी गरह तला, वशचिक, धन तथा मकर राशि पर हो तो बालक दश को भोगनवाला ओर पथवीपति होता ह।।२१-२२॥

तलाकोदडमीनसथो लगनगः सयाचछनशवरः । करोति नपतरजनम तवनयराशो त निरधनः॥२३॥ यदि शनशचर तला, धन, मीन राशि का होकर लगन म विदयमान

हो तो बालक राजा होता ह। यदि शनि किसी दसरी राशि पर हो तो बालक धनहीन होता ह।। २३।।

विदयासथान यदा सोमयः करमसथान च चनदरमाः । धरमसथान यदा सौमयो योग राजाऽतर जायत ॥ २४॥ यदि बध पञचम भाव म, चदरमा दशम भाव म तथा शभगरह नवम

म सथित. हो तो एस योग म उतपनन बालक राजा क समान यशसवी

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भाषाटीका-सदिता १३

होता ह यदि इनही राशियो पर उचच क तथा सवगहो क होकर गरह हो तो यह योग परण फलदायक होता ह।।२४॥

मकर कारमक मीन वष च मिथन करिय । गरहासतदाऽज विखयातो राजा भवति मानवः ॥ २५॥

बधभारगवजीवारकियकतो राहशचतषटय । करोति धनमारोगय पतर मानाधिक गहम‌ ॥ २६॥ यदि सभी गरह मकर, धन, मीन, मिथन तथा मष राशि पर

हो तो बालक विशषतः विखयात‌ राजा होता ह। यदि बध, शकर, बहसपति ओर शनि स यकत राह कनर म हो तो उसका उततम

फल ह। एस योग म उतपनन बालक धनवान‌, सवसथ, पतरवान‌, ससममानित होता ह।।२५-२६॥

चतरथभवन शकरो गरशनदरो धरासतः । रविसौरियताः सनति राजा भवति निशितम‌ ॥ २७॥ अषटम च वयय कररो मधयगौ कररसोमयको । राजयोगऽतर यो जातशचतवारिशतस जीवति ॥२८॥ यदि शकर, वहसपति, चनदरमा ओर मगल- य गरह सरय तथा

शानि स यकत होकर चतरथ भाव म बठ हो तो बालक अवशय राजा होता ह। जिसक आयव ओर बारव भाव म करर गरह बठ हो तथा नवम, दशम, एकादश म शभगरह तथा पापगरह दोनो बठ हो तो वह राजा होता ह ओर मधय म कोई भी करर ओर सौमय गरह बठ हो तो उसकी आय ४० वरष की होती ह।। २७-२८॥।

लगन सौरिसतथा चनदरसतिकोण जीवभासकरौ । करमसथान भवदधौमो योग राजाऽतर जायत ॥ २६॥ नवम च यदा सरयः सवगहसथो भवदयदा । तसय जीवति न भराता सयादकोऽपि नपः समः ॥३०॥

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१४ ए लगनचनदरिका

यदि लगन म शति तथा चनदरमा, तरिकोण म बरहसपति तथा सरय हो एव दशम भाव म मगल बठादहो तो इस योग म उतपनन बालक राजा होता ह। यदि सरय नवम भाव म अपन घरकाहो तो जातक का भराता मर जाता ह ओर अकला रहता हआ भी वह राजा क समान होता ह।।२६-३०॥

दितरितरयसत षण करमणयपि यदा गरहाः । राजयोग विजानीयाजजातसततर नपो भवत‌ ॥३१॥ लगन कररो वयय कररो धन कररो यदा भवत‌ । सपतम भवन कररः परिवारकषयकरः ॥३२॥ जनमलगन स दसर, तीसर, चौथ, पाचव, छठ तथा दशव घर

म गरह बठ हो तो उस राजयोग कहना चादिए। इस योग म उतपनन बालक राजा होता ह। यदि लगन म रर, वयय भाव मकरर,धन भाव

` म करर एव सपतम भाव म भी करर परह होतो इस योग म उतपनन बालक अपन समपरण परिवार का नाशकारक होता ह।।३१-३२।।

लगन कररो वयय सोमयो धन कररशच जायत । राजयोगऽतर यो जातो दरिदरो धनवरजितः ॥३३॥ चाप सौरिशच चनदरशच मष जीवो यदा भवत‌ । दशम राहशकरौ च राजयोग नपो भवत‌ ॥ ३४॥ लगन म करर, वययभाव म शभगरह, दसर घर मकरर गरह हो

तो इस राजयोग म उतपनन बालक राजकल का होत हए भी ददर ओर धनहीन होता ह। धन राशि का शनि ओर चनदरमा हो, मष राशि का बहसपति, दशव भाव म राह तथा शकर हो तो इस योग म जनम लनवाला बालक राजा होता ह।।३२३-३४।।

सिह.जीवोऽथ कनयाया भारगवो मिथन शनिः । सवकषतर हिलक भोमः स पमातरायको भवत‌ ॥ २३५॥

व ।

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भाषाटोका-सदिता १५८

सिह राशि का बहसपति, कनया राशि का शकर, मिथन राशि का

शनि ओर अपन कषतर का होकर चौथ घर म मगल हो तो इस योग

म उतपनन बालक सनापति या मखिया होता ह।।३५॥

शनिचनदरौ च कनयाया सिह जीवो घट तमः ।

मकर च कजसततर जातः सयाददिशवपालकः । ३६॥।

शकरो जीवो रविरभौमशचाप मकरकमभयोः । मीन च वतसर विश जातः सयात‌ सरवकरमकत‌ । ३७॥। कनया राशि क शनि ओर चनरमा हो, सिह राशि म बहसपति,

कमभ पर राह एव मकर राशि पर मगल हो तो जनम लनवाला

बालक चकरवरती राजा होता ह। शकर, बहसपति, सरय ओर मगल

य गरह करम स धन, मकर, कमभ, मीन इन राशियो पर हो तो बालक

बीस वरष का होकर सब काम करन लायक होता ह।। ३६-३७॥।

चतरष कनदरसथानष सौमयपापगरहसथितिः ।

चतःसागरयोगोऽय राजयदो धनदो भवत‌ ॥ ३८॥। कनर (१-४-७- १०) सथानो म शभ ओर पापगरह हौ तो चतससागर

योग होता ह। यह योग राजय ओर धन को दनवाला ह।।३८॥

करकलगन जीवयकत लाभ चनदरजञभारगवाः ।

मष भानौ च यो जातः स राजा विशवपालकः ॥ ३६॥

करमसथान यदा जीवो बधः शकरसतथा शशी ।

सरवकरमाणि सिगछयनति राजमानयो भवननरः ॥ ४०॥

वहसपति स यकत करक लगन हो, गयारहव घर म चनदरमा, बध

तथा शकर हो, मष का सरय हो तो जनम लनवाला बालक विशवपालक

राजा या महान‌ समराट होता ह। वहसपति, बध, शकर ओर चनदरमा

चारो गरह दशम भाव म बठ हो तो जनम लनवाला बालक सब कारयो

को सिदध करनवाला ओर राजाओ म मानय होता ह।।३६-४०॥

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१६ लगनचनदरिका

` षरऽषटम पञचम च नवम दादश तथा।

सोगयकरगरहयोगि राजमानयः सकषटकः ।॥ ४१॥ जनम-लगन स करमशः छठ, आव, नव, बारव घर म शभ

गरह ओर करर गरह दोनो हो तो वह राजाओ म पजित होत हए

भी उसका जीवन कषटदायक वयतीत होता ह।। ४१।।

पञचम च यदा षषठ चाऽषटम नवम करमात‌ ।

भोमराहसितारकाः सयजतिऽतर कलदीपकः ॥४२॥। , पाचव, छट, आव ओर नव गह म करम स मगल, राह, शकर, सरय

हो तो जनम लनवाला बालक अपन वश म परतिशत योता ह ।।४२॥

लगन सोरिसतथा चनदरशवाषटम भारगव यदा । जायत च तदा राजा मानी पतनीरतः सदा ॥४३॥। लगन म शनि ओर चनदरमा तथा आठव शकर हो तो जनम लन वाला

बालक राजा, मानी ओर सदा अपनी सरी म निरत रहता ह।४३।

मिथनसथो यदा राहः सिहसथो भमिननदनः । अतर जातः पितररवय परापनोति सकल नपः ॥४४॥ मिथन का राह तथा सिह का मगल हो तो जनम लनवाला

मनषय अपन पिता की समपरण सपतति को परापत करता ह ।। ४४॥।

चापा शशिना यकतो यदि सरयः परजायत । लगन च सबलो मदो मकर च कजो भवत‌ ॥ ४५॥ अतर योग समतयननो महाराजो भवननरः । दरादव नमनतयसय परतपशवरण नपाः ॥४६॥ जिसक जनम-समय म धन राशि क अरधभाग म चनदरमा सरय स यकत

हो ओर बलवान शनि लमन म बठा हो एव मकर राशि का मगल हो तो इस योग म जनम लनवाला बालक चकरवरती होता ह। इसक परताप स

अनय राजा लोग दर स ही इसक चरणो म परणाम करत ह। ४५-४६।

नक

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आषाटोका-सडिला ९९७

` उचिलाषी सविता तरिकौणसथो यदा भवत‌ ।

अपि नीचकत जातो राजा सयादधनपरितः ॥४७॥ उचचाभिलाषी सरय तरिकोण (५।६) सथान म सथित हो तो नीच

कल म जनम लनवाला बालक भी धनवान‌ राजा होता ह।। ४६७।।

एकादश यदा सरव गरहाः सयरदशमऽपि वा ।

विलगन सममख वाऽपि कारकाः परिकीरतिताः ॥४८॥

उतपननः कारक योग नीचोऽपि नपता बरजत‌ ।

राजवशसमतपननो राजा ततर न सशयः ॥४६॥।

गयारहव अथवा दशव घर अथवा लगन म ही या लगन क

सममख सातव घर म सब गरह कारक कहलात ट। इस कारक याग

म उतपनन बालक कगाल होता हआ भी धनवान‌ होता ह ओर

राजकल का बालक तो अवशय ही राजा होता ह।। ४८-४६॥।

लगनतशवानयतो वापि करमण पतिता गरहाः)

एकावली समाखयाता महाराजो भवननरः ॥५०॥

धनसथान यदा शकरो दशम च वहसपतिः ।

षषट च सिहिका पतरो राजा भवति विकरमी ॥ ५१।।

लगन स अथवा अनय घर स करमशः सव गरह निरनतर पडत गय

हो अरथात‌ बीचम कोई घर खाली न हो तो एकावली नामक योग होता

ह। इस एकावली नामक योग म जनमलन वाला बालक राजा होता ह।

दवितीय भाव म शकर, दशव घर म वहसपति, छठ षर‌ म राहहोतो

जनम तन वाला बालक अपन पराकरम स राजा होता ह।। ५०-५१॥

; चतरगरहा एकगताः पापाः सौमया भवनति चत‌ ।

भरातधीवरगलगनारथ राजयोगो भवदयम‌ ॥ ५२॥

तरिकोण सपतम लगन भवनति च यदा गरहाः ।

हसयोग विजानीयातसववशसयातर पालकः ॥ ५३।।

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ध लगनचनदिका

पाप अथवा शभ चार गरह (३,५,६,१ २) इन घरोमस

किसी एक घर म इकर होकर बठ ो तो इस योग म उतपनन

मनषय सामानयतः राजा होता ह। तरिकोण (५।६) म या सातव

या लगन म सब गरह हो तो हस नामक योग होता ह। इसम

जनम लनवाला अपन वशजो का पालक होता ह।। ५२-५३॥।

सरवगरहरयदा चनदरो विनाऽलि च निरीकषितः ।

वदधऽषटम च जामितर स दीघरयरधराधिपः ॥५४॥

वशचिक राशि को छोडकर अनय किसी राशि म चनदरमा छठ,

आसव ओर सातव घर म सथित होकर सब गरहो दारा दखा जाता

हो तो जनम तनवाला दीरघाय तथा पथवीपति होता ह।। ५४।।

षषठऽषटम दवादश च दवितीय च यदा गरहाः ।

सिहासनाखययोगऽसमिन‌ राजसिहासन वसत‌ ॥ ५५॥।

लगन शकरबधौ न सतः कनदर नासति बहसपतिः ।

दशमऽङखारको नासति स जातः कि करिषयति ॥५६॥

जनमलगन स चट, आर, बारहव तथा दसर घर म ही सब गरह हो

तो सिहासन योग होता ह। एस योग म जनम लनवाला मनषय राज

गही पर बठता ह अथवा धनिका होता ह। जनम-लगन म शकर ओर

बध न हो; तथा कद म वहसपति न हो, दशव घरम मगल न हो तो

वह नर जनम लकर ही कया करगा? अरथात‌ दददर होता ह। ५५-५६।

अषटमसथा यदा करराः सौमया लगन सथिता गरहाः ।

धवजयोगऽर यो जातः स पमाननायको भवत‌ ॥ ५७॥

आसव घर म पाप गरह हो ओर शभगरह जनम लगन म सथित

हो तो धवज नामक योग होता ह। इस योग म जनम लनवाला

मनषय अधिपति होता द।।५७॥

षषठसथान यदा पापाः कनदरसथान शभगरहाः ।

सरवसिदिभविततसय राजमानयो भवननरः ॥ ५८ तर -

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भाषाटोका-सहिता ९६

जनमलगन स चछ चर म पापगरह ओर कनर म शभगरट हो तो उसका सब काम समपनन हो ओर वह राजा स मानय हो।।५८॥।

मषलगन यदा भानशवतरथ च वहसपतिः ।

दशम च कजो जातो विशचसयाधिपतिरभवत‌ ॥ ५६॥

मष लगन म जनम हो ओर उसी म रवि हो, चौथ वहसपति

ओर दशव मगल हो तो बालक विशवपति राजा हो।।५६॥

लगन सौरिसतथा चनदरसतरिकोण जीवभासकरौ ।

करमसथान भवदधौमो राजयोगोऽभिधीयत ॥। ६५०॥

जनमलगन म शनि ओर चनदरमा हो, तरिकोण (५-६) म वहसपति,

सरय हो, दशव घर म मगल हो तो राजयोग कहलाता ह ।। ६०।।

कनदर सवोचचसथित सौमय राजलकषमीपतिरभवत‌ ।

कनदर पाप सवोचचससथ राजा सयादधनवजितः ।॥ ६१॥

उचचराशि क शभगरह कनर म हो तो राजय या लकषमी का मालिक

होता ह। उचचराशि क पापगरह कनर म वठ हो तो राजा (धनहीन)

हो, उसक पास दरवय न रह।। ६१॥

बली सौमयगरहो लगन कनदरसथो यदि वीकषत ।

तदा निहनतयरिषटानि तमः सरयोदय यथा ॥६२।। बलवान‌ शभगरह कनर म बठकर लगन को दखत हो तो सपरण

अनिषटो का नाश करत ह, जस सरयोदय स अनधकार दर होता ह।६२।

बनधया नारी पमानवधयो मतयो सवभवभानजौ ।

मतयसथाः सयरयदा पापा मतय दात गतासतदा ॥६३॥

आघव घर म राह ओर शनि हो तो सतरी बनधया हो ओर परष

नपसक होता ह ओर आव घर म अनय गरह हो तो मतय हो || ६३॥

अगर जात रविरहनयात‌ पष जात शनशचरः ।

जात जात कजो हनयातसहजसथानससथितः ॥६४॥

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लगनचनदरिका

तीसर घर म सरय हो तो बड भाई को ` ककच उसरयह ती बड भाई को मार, शनिहोतो कर

भाई को मार, मगल हो तो जनम हए सब भाइयो को मार।।६४।।

चतःकनदरगताः सौमयाः पापा दादशषषठगाः । भवतस राजविखयातो लबधचछतरो विभषितः ॥६५॥ चारो कनदर-सथानो म शभगरह हो, पापगरह बारहव ओर च

धरम हो तो विखयात छतरपति राजा होता ह।।६५।।

लगना पञचमसथान यदा रयवहसपती । तदा विदयाधनः परणो जायत जातकोततमः ॥ ६६॥। लगन म पचव घर म सरय ओर बहसपति ह तो विदया ओर

धनो म परिपरण उततम मनषय होता ह।।६६॥

एकोऽपि यदि कनदरसथो बधो जीवो बली भगः । जायतऽतर तदा बालो धनाढयो वदपारगः ॥ ६७॥ वध, वहसपति अथवा वली शकर इनम स एक भी कनर म हो

त जनम लन वाला वालक धनाढय ओर वदपाटी होता ह ।।६७॥।

दितरिसोमयाः खगा नीचा वययभावऽथवा पनः । भवनति धनिनः षठ निधन चव भिकषकाः ॥ ६८।। दो या तीन शभगरह नीच राशि क हो, अथवा बारहव घर

म सथित हो तो धनी भी भिकषक (भिखारी) हो जाता ह।।६८॥

, नीचसथितो जनमनि यो गरहः सयाततदराशिनाथोऽथ तदचचनाथः। भवलतिकोण यदि कनरवरती राजा भवदधारमिकचकरवरती ।६६।

जनम-समय म जो गरह नीच राशि का हो, उस गरह क नीच

राशि का सवामी यदि तरिकोण (५-६) म अथवा कनदर म बठा

हो तो वह नर धारमिक ओर चकरवरती राजा होता ।। ६६॥।

षठ करर नरो जातः शचपकषविमरदकः। षषठ सौमय सदा रोगी षषठ चनदरसत मतयदः ॥॥७०॥।

ट ७

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भाषाटोका-सदहिता २१

लगनातततीयभवन यदि चनदरसतो भवत‌ । दौ पतरौ कनयकासतिसरो जायनत नातर सशयः ॥७१।।

जिसक छठ घर म करर गरह हो वह नर शतर को नषट करनवाला

हो, छ घर म शभगरह हो तो सदा रोगी रह, छट घर म चनदरमा

ठो तो मतय को परा हो। लगन स तीसर बध वठा हो तो उस मनषय

क दो पतर ओर तीन कनयाय हो, इसम सनदह नही ह ।।७०-७१।।

लगनातततीयभवन बली वाचसपतिरयदा ।

पञचयतरासतदा तसय जायनत मानवसय व ।॥७२॥

लगनातततीयभवन शनिचनदरौ यदा सथितो ।

शयामवरणसतदा बालो भरातहीनशच जायत ॥७३॥ लगन स तीसर घर म बली वहसपति हो तो उस मनषय क पोच

पतर होत द । लगन स तीसर घर म शनि ओर चनदरमा हो तो वह

बालक शयामवरण का ओर भाई स रहित होता ह।।७२-७३।।

लगनातततीयभवन बली शकरो यदा भवत‌ ।

कनयादय तरयः पतरा जायनत तसय निशचितम‌ ॥७४॥।

लगनातततीयभवन राहयकतो यदा शशी ।

भरातहीनो भवदबालो लकषमीवानपि जायत ॥७५॥

लगन स तीसर घर म बली शकर हो तो दो कनयाय ओर तीन पतर

हो, यह निशचय जानो। लगन स तीसर घर म राहयकत चनदरमा होतो

वह बालक भाई स रहित ओर लकषमीवान‌ होता ह ।। ७४-७५॥

लगनातततीयभवन पञचम वा धरासतः ।

भरियत पतरदःखन नारी वा परषोऽपि वा ॥७६॥।

लगनातसपतमगहसथो बली शकरो यदा भवत‌ ।

कनयादय तरयः पतरा धनवनतो भवनति हि ॥७७॥

लगन स तीसर या पाचव मगल हो तो वह (सवी या परष) पतर

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ट इड‌ ___ __ _ लगन न -----उ---- लगनचनदरिका

क दःख स मर। लगन स सातव घर म बली शकर बठाहो तौ

दो कनयाय होगी, तीन पतर होग ओर धनवान‌ होगा ।। ७६-७७।।

सिहलगन यदा शकरो शनिरवाऽपि वयवसथितः ।

ततर जातसय बालसय नतरनाशः परजायत ॥७८॥।

सिह लगन. हो ओर वहौ शकर अथवा शनि बठा हो तो जनम

तनवाल बालक क नतर नषट होत ह ।।७८॥

रयोऽषटम रिपौ चनदरो धन भोमो वयय शनिः ।

गरहदोषण नतराणामनधता जनयतयमी ॥ ७६।

सरय आयव, छठ घर म चनदरमा, दसर घर म मगल ओर बारहव

चर म शनि हो तो गरहो क दोष स वह नर अनधा होता ह।।७६।

शभवरगोततमि जनम_ वययसथान च सदगरह }

अशनयष च कनदरष कारकाखयगरहष _ च ॥८०॥ शभ वरगोततम लगन म जनम हो, बारहव घर म शभ गरह हो,

अशनय कनर अरथात‌ कदरसथान गरहो स भर हो ओर कारक गरह

हो तो यह राजयोग होता ह।। ८०॥

सरय कनदर राजसवी वशयवततिरनिशाकर ।

शसतरततिः कज शरो बध चाधयापको भवत‌ ॥८१॥।

सवानषानरतो नितय दिवयबदधिरनरो गरौ ।

शकर विदयारथसमपननो नीचसवी शनशवर ॥॥८२॥ कर म सरय हो तो राजसवी (मनतरी) हो, चनर कर महोतो

वशय की वतति कर, मगल हो तो शरवीर शसतरवतति करन वाला

हो ओर बध हो तो बालक पढानवाला हो। बसपति हो तो धरम , यजञादि करनवाला, दिवय बदधि समपनन हो, शकर हो तो विदया ओर लकषमीयकत हो ओर शनि हो तो नीच की सवा कर‌।।८१-८२ ॥।

करमसथान च लगन वा भोमशकरबधरयतः ।

यदि राहभविततसय कषण वदधिः कषण कषयः ॥८२।।

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भाषाटीका-सदिता २३

होराया दवादश राशौ सथितो यदि दिवाकरः ।

करोति -दकषिण काण वामनतर च चनदरमाः ।॥ ८४॥ दसव घर या लगन म मगल, शकर, बध इनस यकत राह हो तो वह

नर कषण म बढ ओर कषण म घट अरथात‌ दःखी -सखी रहता ह। जनम -

कडली म बारहवी राशि (लगन स बारह घर) म सरय हो तो दाहिनी

ओख स काना हो, चनदरमा हो तो बाई आख स काना हो। ८३-८४।

भोमकषतर यदा जीवो जीवकषतर च भसतः।

दवादश वतसर मतयरबालकसय न सशयः ॥८५॥

मगल क कषतर म बहसपति हो ओर वहसपति क तर म मङगल हो

तो उस बालक की मतय निशचय बारहव वरष म हो।। ८५॥।

धनसथान यदा भौमः शनशवरसमनवितः। `

सहज च भवदराहरभाता तसय न जीवति | ८६

चतरथ च यदा राहः ष चनदरोऽषटमऽपि वा ।

सदयः एव भवनमतयः शकरो यदि रकषति ॥ ८७।॥

शनशचर स यकत मगल दसर घर म हो तथा तीसर घर म राह हो

तो उसक भाई नही जीत ह । चौथ राह हो, रट आठव चनदरमा होतो

शीघर ही भतय हो; यदि शिवजी रकषा कर तो भी न बच।।८६-८७॥।

अषटमसथो निशानाथः कनदर पापन सयतः ।

चतरथ च यदा राषरवषमक स जीवति ॥८८॥

यदि चनदरमा आयव घर म हो ओर पापगरह कनर म हौ तथा

चौथ घर म राहहो तो एक वरष भी नही जीता ह।। ८८॥।

पाताल चामबर पापो दवादश च यदा सथितः ।

पितर मातर हनति दशाद‌ दशातर बरजत‌ ॥। ८६॥।

चौथ घर, दसव घर ओर बार घर म पापगरह सथित हो तो

उसक माता-पिता नषट होव या दश स कही विदश म जाव] ८६।।

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४. लगनचनदिका

पञचमसथो निशानाथसतिकोण च बहसपतिः । ` दशम च महीसनः परमायः स जीवति ॥६०॥ पाचव घर म चनरमा हो, तरिकोण (६-५) म बहसपति हो,

दशव घर म मगल हो तो वह दीरघ आयवाला होता ह।।६०॥। धनसथान यदा शकरः कररगरहसमनवितः । न. पशयति निजकषतरमलपपतरसतदा भवत‌ ।। ६१।। धनसथान यदा कररः सहज सपतम तथा । पचम भवन जीवो नीचजातसतदा भवत‌ ।।६२॥। दसर घर म पापगरह स यकत शकर हो ओर अपन घर को

नही दखता हो तो अलप पतरवाला होता ह। दसर घर म रर गरह हो, तीसर सातव म भी करर गरह हो तथा पाचव म बहसपति हो तो उस नीच क वीरय स उतपनन हआ कहना चादिए।। ६१-६२।।

नवम पचमसथान चतरथ च यदा गरहाः । आदो जातशच नषटः सयातपशचारातः स जीवति ।।६३।। विवाहितायामनयसयामकः पतरो भवततदा । विखयातो भवन तयागी स दीघयरमहामतिः ॥॥६४।। नव, पोचव, चौथ करर गरह हो तो पहल जनम लन वाला मर

ओर जो पीछ जनम, वह जीवित रह। इस योग म विवाहिता वा अनयसतरीस जो एक ही पतर पदा होतो ससार म विखयात, दानी, दीरघ आयवाला ओर महामतिमान‌ होता द।।६३-६४॥

लगन धन वयय कररो यदा मतयौ च जायत । विषठया मारगबधोऽसय दादशाषटमवासर ॥। ६५।। ष च भवन भौमः सपतम सिहिकासतः । अषटम च यदा सोरिरभरया तसय न जीवति ॥ ६६।। लगन १, दसर २, आघव ८, बारहव १२ म पापगरह हो तो विषठा

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भाषाटोका-सदहिता २५८

बद हौकर बार या आयव दिन मतय हो जाव। ङ जकर बरखक या आरय दिन मतय हो जाव । चठ षर म मगल,

सातम राह हो, आठव शनि हो तो उसकी सरी नही जीव।६५-६६।

तिथिपानत दिनात च लगनसयात च भातक ।

चराश च यदा जातः सोऽनयजातः शिशभवित‌ ।\६७॥। तिथि का अनत, दिन का अनत, लगन का अनत ओर नकषतर

क अनत म तथा चर नवाशक म जनम लन वाल बालक को (पिता

क बिना) अनय स उतपनन हआ जान ।।६७॥

सवकषतरसथो यदा भौमः करमसथान निरीकषत ।

बधभारगवसयकतः सवलपकरमफलपरदः ।\€८।)

रिपसथान यदा चदरो लगनसथान शनशचरः ।

कजशच सपतमसथान पिता तसय न जीवति । ६६)

मगल अपन घर म बठकर दसव घर को दखता हो तथा बध शकर स

यकत हो तो सवलप करमफल दनवाला होता ह। छठ घर म चनदरमा, लगन

म शनि, मगल सातव हो तो उसका पिता नही जीता ह ।६८- ६६।

एकादश यदा कररः पचम चदरभागवौ ।

परथम कनयकाजनम माता तसय सकषटका |} १००।॥

` सहजसथो यदा राहरधनसथान वहसपतिः ।

बधन च समायकतसतसय वधतरय भवत‌ १०१

गयारहव करर गरह, पच चनदर ओर शकर हो तो उस नर क पहल

कनया जनम ओर उसकी माता कषटयकत रह। तीसर घर म राह हो,

दसर वहसपति बध स यकतहो तो उसक तीन भाई हो ।१००-१०१।

चाप सरयः शनिः कमभ मष भवति चनदरमाः।

मकर च यदा शकरो भकत नव पितरधनम‌ ॥।१०२॥।

धन का सरय हो, शनि कमभ का हो, मष का चनदरमा, मकर

काशकरहो तो पिता क धन कौ नही भोग।। १०२॥

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२६ लगनचनदरिका

करराशतरष कनदरष तथा कररो धनऽपि वा । दारिकरययोग जानीयातसववशसय कषयकरः ।। १०३।। लगनसथान यदा जीवो धनसथान शनशचरः । राहशच सहजसथान माता तसय न जीवति ॥। १०४॥।

चारो कनदर तथा दसर घर म भी करर गरह हो तो यह दारिदरय योग वश को नषट करनवाला होता ह। लगन म बहसपति हो, दसरघर म शनि हो,राह तीसर घरम हो तो उसकी माता नही जीव। १०३- १०४।

सपतम भवन भोमशचाषटम भागो यदा । नवम भवन सरयः सवतपायसतसय जायत ।। १०५।। राहजीवौ रिपकषतर लगन वाऽथ चतरथगौ । तरयोविश तदा वरष पतरसतात विनाशयत‌।। १०६॥।

सातव घरम मगल, आयव म शकर ओर नव घर म सरय हो तो उस नर की सवलप आय होती ह। राह ओर बहसपति छठ घरम, लगन अथवा चौथ घर म हो तो तडसव वरष वह पतर पिता को नषट कर।१०५- १०६।

बालसय जनमकाल चदषटमसथः शनशचरः । बालकशच भवतकषटी मास मतयरन सशयः. १०७।। रररदषटो जनमलगनातषण वाः चाषटम बधः । चतथबदि भवनमतयः शकरो यदि रकषति ।।१०८।।

बालक क जनम-समय म आठव घर म शनि हो तो बालक कषठी होकर एक ही महीन म मर, इसम सनदह नही । जनमलगन स छठ या आयव घरम बध हो ओर कररगरह दवारा दखा जाता हो तो चाह शिवजी भी रकषा कर, तो भी चौय वरषम उसकी मतय हो जाती ह।१०७-१०८। अषटमसथो यदा भोमसतिकोण नीचगो रविः । स शीघरमवजातः सयादधिकषाजीवी च दःखितः ॥ १०६।।

क 2 ~ ।

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भाषाटीका-सदहिता २७

आरव घर म मगल हो, तरिकोण (५, €) म नीच का जसत चर मगल ल, तरिकोण (५, €) म नीच का सरय हो

तो वह शीघर ही दःखी हो ओर भिकषास आजीविका कर।। १.०६॥।

सिह भोमसतल सोरिः कनयाया च यदा सितः । मिथन च यदा राहरजननी तसय नशयति ॥॥११०।। सिह का मगल हो, तला का शनि हो, कनया का शकर ओर

मिथन का राह हो तो उसकी माता नही जीव।। ११०।।

लगन कररः सवभवन कररः पातालगो यदा ।

दशम भवन कररः कषट जीवति बालकः ॥ १११।। जिसक करर गरह अपनी राशि क होकर लगन म सथित हो एव चौथ

ओर दशव घर म करर गरह हो तो वह बालक कषट स जीता ह।। १११॥।

अषटम च निशानाथः कन कररो यदा भवत‌।

चतरथ च यदा राहरवरषमक स जीवति ।\ ११२)

शभगरहावलोकशच यदि जीवति जातकः ।

स च दषटसवभावः सयात‌ कररकरमकरोऽपि च ।।११२।।

आसव घरम चनरमा व कनर म कररगरह हो चौथ राह हो तो वह बालक

एक वरष तक जीता ह,यदि शभ गरहो की दषटि हो तो वह बालक जीता

ह,परनत दषट सवभाववाला व‌ करर करम करनवाला होता ह ।११२- ११२।

लगन चनदरो धन शकरो वयय च बधभासकरौ 1

राहशच पञचम बालः स भवदधरबधकत‌ ।\ ११४॥।

लगन म चनदरमा हो, दसर घर म शकर हो, बारव बध ओर

सरय हो, पच घर म राह हो तो वह बालक हिसा ओर बनधन

करम करनवाला होता ह।। ११४॥।

सपतम भवन भानः करमसथो भमिननदनः।

राहातय च व तसय पिता कषटन जीवति ।। ११५।।.

सातव घर म सरय हो, दशव घर म मगल हो, राह बार

चर महो तो उसका पिता कषट स जीता ह।। ११५

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२८ लगनचनदरिका

समर वयय च सहज मधय कररा यदा गरहाः । तदा जातसय बालसय शरीर कषटमादिशत‌ ।। ११६।। साता, बारहवा, तीसरा, दशा इन घरो म करर गरह हो

तो जनम लन वाल बालक क शरीर म कषट होता ह।। ११६॥। कनयाया च यदा राः शकरो भोमः शनिसतथा । जायत ततर जातसय कबरादधिक धनम‌ ।। ११७।। कनया राशि पर राह, शकर, मगल, शनि य गरह हो तो जनम लन

वाला मनषय कबर स भी अधिक लकषमीवान‌ होता ह।। ११७॥। धन 1 : सौरिः ५ यदा सथिताः । तसय पितरि जायत ।। ११८॥।

दसर घर म राह, बध, शकर, मगल, शनि, सरय य गरह बठ हो तो उस नरका जनम होन स पहल पिता मर, पीछ माता भी मर जाय। ११८।

रविराह सोरिसोमयजीवा लगनऽथ पञचम । अतर योग च यो जातो जातमातर स नशयति ॥ ११६।। सरय, राह, शनि, बध, बरहसपति य लगन म अथवा पाचव

हो तो इस योग म जनम लन वाला उसी समय मर जाय।। ११६॥ जीवारकराहभोमाशच चतवारः कररवरगगाः । सपतम च गह शकरो दह कषट सदा भवत‌ ।। १२०।। बहसपति, सरय, राह, मगल य चार गरह रर गरह क षडवरग म परापत

हो, सातव घर म शकर हो तो उसक शरीर म सदा कषट रह।। १२०॥ ररलगन यदा जातसततसवामी कररसयतः । आमवातो भवततसय शरीर कषटमादिशत‌ ।। १२१।। करर लगन म जनम हो ओर उस लगन का सवामी दरर गरहो क साथ

बठा हो तो उसक शरीर म आमवात रोग समबनधी कषट रह।। १२१।। गहयसथान यदा भौमो राहः सौरिसमनवितः । नपपीडा भवततसय सवासन नव तिषठति ॥ १२२।।

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भाषाटीका-सडिता स

सहज सहजाधीशो लगन पतर धनऽपि वा । जायत च यदा बालो यदि जातो न जीवति |) १२३।। सपतम घर म मगल, राह ओर शनि य सब बठ हो तो उस बालक

को राजा की ओर स दःख मिल ओर अपन आसन पर कभी नही बठ।

तीसर घर का सवामी तीसर, लगन म, पाच या दसर घरम हो तो

उस समय जनम लन वाला बालक नही जीता ह।। १२२-१२३॥

कनयाया मिथन राहः कनदर षषठ वयय यदा । तरिकोण च यदा जातो दाता भोकता निरामयः ।। १२४॥।

चतरथ राहसौरारकाः षण चनदरो बधः कजः । भारगवशचातर यो जातः स गहसय कषयकरः ॥ १२५

कनया अथवा मिथन राशि का राह कनर म या छठ, बार

चर म हो अथवा तरिकोण म हो तो जनम लनवाला नर दाता,

भोगी ओर नीरोग रहता ह। चौय घर म राह, शनि ओर सरय

हो, चट घर म चनदरमा, मङगल, बध ओर शकर हो तो इस योग

म जनम लन वाला नर अपन घर का नाश करता ह।। १२४- १२५॥

एकः पापोऽषटमसथान शतकषतर यदा भवत‌ ।

पापन वीकषितो वषनमारयतयव बालकम‌ ।। १२६।।

भोमभासकरमदाशच शचकषतरऽषटम यदा ।

शिवन रकषितोऽपयव वरषमातर न जीवति ।। १२७॥। यदि एक भी पापगरह अपन शतरक सथान म होकर अषटम सथान

म सित हो ओर उसको पापगरह दखत हो तो जनम लन वाल

बालक को एक वरष म मार डाल। जिस बरालक क मगल, सरय,

शनि य शतर क घर म होकर आव घर म हो तो शिवजी स

रकषित किया हआ भी वह एक वरष तक नही जीव।। १२६- १२७॥।

वकरीशनिभोमगह कनदर षषठऽषटमऽपि वा । कजन बलिना दषटो हनति वरषदय शिशम‌ ॥॥१२८॥।

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2३० लगनचनदिका

वकरी शनि मगल क घर का होकर कनर, पनी जतत सनल क चर का हौकर कनर, छट अथवा आवव

घर म हो ओर बलि मङकल दवारा दखा जाता -हो तो जनम लन ,

वात बालक को दो वरष म मार दव।॥। १२८।।

राहौ वष तरिभिरदषट कतदट चतषटय । दषट च गरशकराभया दीरघकाल स जीवति ।।१२६॥। वष राशि का राह तीन गरहो स दषट हो अथवा वहसपति अथवा |

शकर स दखा जाता ठो तो वह नर दीरघकाल तक जीता ह ।। १२६॥।

चनरमगलसयोगो जनमकाल यदा भवत‌ । तसय जातसय गह त लकषमीरनव विमञचति ।। १३०।।

जिसक जनम-काल म चनदरमा ओर मगल का सयोग हो, उस

बालक क घर का लकषमी कभी तयाग नही करती।। १३०।।

मारयतिषोडशाहाचछनशवरःपापवीकषितः कनदर । षडभिमसिरभोमो वरषदवा रविसतमारयति ।। १३१

पापगरह स दखा जाता शनि कनदर-सथान म बठा हो तो सोलह

दिनि म मार दव, मगल हो तो छः महीनो म मार ओर यदि

सरय हो तो एक वरष म मार द १३१॥

षषठाषटमगतशचनदरः सदयो मरणाय पापसदषटः । अषटाभिः शभदषटो वरधरमिशरसतदरददन ।।१३२।। छठ या आवव घर म बठा हआ चनदरमा पापगरह स दखा जाता

होतो शीघर ही मार दव, शभ गरहो स दखा गया हो तो आयव वरष

म, शभाऽशभ गरहो स दखा गया हो तो चौथ वरष म मतय कर।१३२।

शकलपकष निशाया च कषण जातो दिवा यदा । षषछाषटमगतशनरो न शिश हति तातवत‌ ।॥१३३॥। शकल पकष म रातरि म ओर कषणपकष म दिन म जनम हो

ओर चनदरमा छठ तथा आघव घर म बठा हञा हो तो पिता की

तरह बालक की रकषा कर।। १३३॥

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भाषाटीका-सहिता २१

शनिराहकलरयकतः सपतम नवम शशी । सपतम दिवस हनति मास वा सपतम शिशम‌।। १३४॥। सपतम सथान या नवम सथान म शनि, राह, मगल स यकत चनदरमा

हो तो बालक सातव दिन अथवा सातव महीन म मर जाय।१३४।

पतर कलतर लगन च वयय पापयतः शशी । शिश हनति न दषटद‌ बालकादधिः शभगरहः ।१३५।। चनदरः पापसमायकतशचदरो वा पापमधयगः । चनदरातसपतमगः पापसतदा मातरवधो भवत‌ ।। १३६) पौचव, सातव, लगन म तथा बारहव म पापगरह स यकत चनदरमा

हो ओर बलवान‌ शभगरहो स नही दखा जाता हो तो बालक को

मार दता ह। चनदरमा, पापगरहो क सग म हो अथवा पापगरो

क मधय म हो अथवा चनदरमा स सातव घर म पापगरह हो तो

उसकी माता नषट हो जाय।। १३५-१३६।।

लगनसथशच यदा भानः पञचमसथो निशाकरः । अषटमसथा यदा पापासतदा जातो न जीवति ।। १३७।। सरय लगन म बठा हो, चनदरमा पचव घर म ओर आव घर

म अनय पापगरह हो तो जनमा हआ बालक नही जीव।। १३७॥।

लगन पापन सयकत लगन वा पापमधयगम‌ । लगनातसपतमगाः पापासतदा मातवधो भवत‌ । १३८।।

सरयः पापन सयकतः सरयो वा पापमधयगः । सरयतसपतमगः पापसतदा पितवधो भवत‌ ॥१३६। पापगरह स यकत लगन हो अथवा पापगरह क बीच म लगन आ

गया हो या लगन स सातव घर म पापगरह हो तो माता की मतय हो।

सरय पापगरह स यकत हो अथवा पापगरहो क मधय म हो, सरय स सातव

घर म पापगरह हो तो पिता की मतय हो।। १३८-१३६॥

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लगनचनदरिका २ ` ररत यदा जातो लगनशोऽसतगतो भवत‌। `

अपकरमा तदा जातः सपतवरषाणि जीवति ।। १४०।। ¦ कररगरह क कषतर (लगन) म जनम हो ओर लगनश असत हो रहा हो

तो वह अनिषट करमोवाला तथा सात वरष की आयवाला हो ।। १४०॥।

अषटम च यदा सौरिरजनमसथान च चनदरमाः । मदागनयदररोगी च गातरहीनशच जायत । १४१।। आव घर म शनि ओर जनमलगन म चनरमा हो तो वह नर

मदागनि उदर रोग वाला ओर हीन शरीर वाला होता ह।।१४१॥।

शनिकषतर यदा भानभनकषतर यदा शनिः । दवादश वतसर मतयसतसय जातसय . जायत ।। १४२॥। शनि क कषतर म सरय ओर सरय ककषतरम शनि हो तो बारहव

वरष म उस जनम लन वाल की मतय होती ह।।१४२॥ बधभोमौ यदा लगन षटसथान च तिषठतः । तसकरो घोरकरमा च हसतपादौ विनशयतः ।। १४२॥। बध तथा मगल लगनमयाचठहो तो बालक चोर तथा

घोर करम करनवाला हो, उसक हाथ-पर भी नषट हो जारय ।। १४२॥। षषठऽषटम च मरतो च शचकषतर यदा बधः । चतरवष भवनमतयबलिकसय न सशयः ।।१४४।। छठ तथा आव घर म या लगन म सथित बध शतर क घरम हो तो

चौथ वरष म उस बालक की मतय होती ह, इसम सनदह नही ।१४४। अषटमसथो यदा राहः कनदरसथान च चनदरमाः । सदय एव भवनमतयबलिकसय न सशयः ॥१४५।। आवव घर म राह हो, कनर म चनदरमा हो तो उस बालक

. की मतय शीघर ही होती ह, इसम सनदह नही।। १४५।। सपतम भवन राहः शतकषतर यदा भवत‌ । परापत च षोडश वरण तसय मतयरन सशयः ।।१४६।।

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भाषाटोका-सदिता २३

जिसक राह शतर क घरका होकर सातव हो तो सोलहव वरष म ह हो, इसम सनदह नही ह ।। १४६॥

ध यदा चनदरः पापः सयादषटम गह । एकमास भवनमतयरबलकसय च निशचितम‌ ।। १४७॥। बारहव घर म चनदरमा हो, पापगरह आव घरम हो तो एक

ही महीन म उस बालक की मतय हो जाती ह।। १४७॥।

जनमसथान यदा राहः षषठसथान च चनदरमाः । अपसमारी तदा बालो जायत नातर सशयः ।। १४८॥। जनम-लगन म राहो, छठ घर म चनदरमा हो तो वह बालक

निशचय ही मगी रोग वाला हो।।१४८॥।

भागविण यतशचदरः षषाषटमगतो यदा । मदारनयदररोगी च हीनागोऽपि परजायत ।। १४६।। शकर स यकत चनदरमा छठ या सातव घर म हो तो बालक मदाननि,

उदर-रोग तथा हीन अग वाला होता ह।। १४६॥।

लगन वयय च पाताल जामितर चाषटम कज । सरिय हरति भरता च पति भारया विनाशयत‌ ।। १५०।।

1 षषठऽषटम यदा चनदरो बधयकतसत तिति । विषदोषण बालसय तदा मतयशच जायत ।। १५१।। लगन म, बारहव, चौथ, सातव तथा आयव घर म मगल हो

तो वह परष अपनी सवरी को नषट कर, यही योग सतरी का होतो वह अपन पति को नषट कर। बध स यकत चनदरमा छठ या सातव हो तो उस बालक की मतय विष-दोष स हो।। १५०-१५१॥।

भानना सयतशचदरः षषठाषटमगतो यदा । राजदोषण मतयरवा सिहदोषण वा भवत‌।। १५२॥

सरय स यकत चनदरमा छठ अथवा आवव घर म हो तो राज-दोष स अथवा सिह दोष स (राजा या शर क दवारा) मतय हो ॥ १५२॥।

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= लगनचनदरिका

एकोऽपि यदिमरतौ ` ल यदिमरती सयानमकाल दिवाकरः । ` सथानहीनो भवद‌ बालः शोकसनतापपीडितः ।।१५३॥ ¦

अकला सरय जनम-लगन म पडा हो तो वह बालक सथानहीन

हो ओर शोक-सनताप स पीडित रह।। १५३॥

दशमसथो यदा भोमः शकषतरसथितो भवत‌ । भरियत तसय बालसय पिता शीघर न सशयः ।। १५४॥। जिसक शतर-कषतर म होकर मगल दशम सथान म हो तो उस

बालक का पिता शीघर ही मर, इसम सनदह नही ह।। १५४।।

लगनऽषटम यदा राहशवदरयकतः सथितो भवत‌ । दशाह जायत तसय बालसय मरण धरवम‌ ।। १५५॥। लगन म अथवा आव चनदरमा स यकत राह हो तो दस दिन

क भीतर उस बालक की मतय हो।|१५५॥।

लगन जीवो ,धन मनदो रविभोमबधासतथा । विवाहसमय तसय मरियत निशचित पिता ॥ १५६॥ लगन म बहसपति, दसर घर म शनि, सरय, मगल तथा बध हो

तो बालक क विवाह-समय म पिता मर।। १५६।।

शनशवरसतलाकमभमकर यदि जायत । लगनऽषटम ततीय वा तदारिषट न जायत ।। १५७।। तला, कमभ, मकर इन राशियो पर, लगन म वा आठव अथवा

तीसर घर म शनि हो तो रोग (अरिषट) नही हो।। १५७॥ मीनलगन जीवशकरौ मषऽरको मकर कजः । दासवशऽपि जातोऽसौ राजा छतरधरो भवत‌ ।। १५८॥

मीन लगन म गर व शकर हो,मष राशि का सरय ओर मकर का मगल हो तो दास~वशम त आ 4 षय भी छतरधारी राजा होता ह ।१५८।

लगनाचच च व सरयपतर तथाऽषटम । एकादश भागवि च मासमक न जीवति ।। १५६॥

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भाषाटोका-सदिता [3

लगन स नवम घर म सरय हो, शनि आव हो, गयारहव घर म शकर हो तो वह बालक एक महीन भी नी जीव।। १५६॥

धन गरः सहिकयो भोमः शकरशच सपतम । अषटम रविचनदरौ च मलचछः सयादयोवन हि सः ॥१६०॥। धन राशि पर बहसपति हो ओर राह, मगल, शकर य सातव

घर म हो, आयव घर म सरय-चनदरमा हो तो जनम लन वाला नर यवा अवसथा म मलचछ (विजातीय) हो जाय।। १६०॥

नवम दशम चनदरः सपतम च यदा सितः। पाप पातालससथ च वशचछदकरो नरः 1 १६१।। नव या दसव घरम चनदरमा हो, सातव घरम शकर हो, पापगरह चौथ

घरम हो तो जनम लनवाला नर वशको नषट करनवाला होता ह ।१६१।

भरातसथान यदाजीवो लाभसथान यदा शशी । स लोक गहमधयसथो जायत कलदीपकः ।। १६२।। तीसर घर म गर हो, गयारहव घर म चनदरमा हो तो वह नर घर

म सथित होता हआ कल का दीपक होकर लोक म परसिदध हो ।। १६२॥।

सिहलगन यदा भोमः पञचम च निशाकरः! वययसथान यदा राहः स जातो कलदीपकः ।। १६३।। सिह लगन म मगल हो, पौचव घर म चनदरमा ओर बारहव

घर म राह हो तो वह कल म दीपकरप हो।। १६३

एकः पापो यदा लगन पापशचको रसातल । जायत हि सखी बालः स जातः कलदीपकः । १६४।। यदि एक पापगरह लगन म बठा हो ओर एक पापगरह चतरथ महो तो

वह बालक अपन कल म दीपकरप हो ओर सदा सखी रह।।१६४॥

लगन वा सपतम भोमः पञचम च दिवाकरः । जीवदरणयमधयऽपि विखयातः स न सशयः ।। १६५।।

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हि लगनचनदरिका |

¬ न जा सात घर म मगल हो ओर पच घर म सरय हयो तो वह वन म पडा रह तो भी अचछी तरह जीव ओर विखयात

(परसिदध) हो। इसम सनदह नटी ह।। १६५॥।

भौमकषतर यदा जातो मरतौ कररगरहो भवत‌ । वरषमधय भवनमतयरबालकसय न सशयः ।। १६६॥। कषीणचनदरो दादशसथो दःखदः पापवीकषितः । करोति विपल कलशमषटमसथो यदा शनिः ।। १६७॥ मगल क कषतर म जनम हो, लगन म करर गरह हो तो वह बालक एक

वरष क भीतर मर, इसम सनदह नही । कषीण चनदरमा बरव घर म हो ओर यदि पापगरहो स दखा गया हो तो दःखमय हो तथा साथ ही आठव घर म शनि बठा हो तो बहत कलश कर।। १६६- १६७॥

दादश च यदा चनदरः षषट पापगरहो भवत‌ । अलयायशच सदा रोगी जायत जातको धरवम‌ ।।१६८॥ बारहव घर म चनदरमा हो, छट घर म पापगरह हो तो वह

बालक अलप आयवाला हो ओर सदा रोगी रह।। १६८॥।

दशम भवन राहः पितरमातरोः परपीडकः । दवादश वतसर तसय बालसय मरण धरवम‌ ॥ १६६॥

दशव घर म राह हो तो माता-पिता को पीडा द ओर बारहव वरष म निशचय करक उस बालक की मतय हो जाय।। १६६॥

शनिकषतर यदा भानभनकषतर शनशचरः । विशतो वतसर मतयबलकसय न सशयः ॥ १७०॥।

शनि ककषतरम सरय हो ओरसरयककषतरम शनि हो तो उस बालक की मतय बीस वरष म होती ह, यह निशचय जानो || १७०॥।

रिपसथान यदा पापो वययसथान च चनदरमाः । चतरथ मङगलो यसय माता तसय न जीवति ।। १७१।।

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भाषाटीका-सदिता २९9

चतरथ मातहा पापो दशम पितहा भवत‌ । सपतम भवन पापो पितरमारोरविनाशकः ।१७२।।

, छठ घर म पापगरह हो, बार घर म चनदरमा हो, चौथ घर म

मगल हो तो उसकी माता नही जीव। चौथ घर म पापगरह हो तो

माता को नषट कर। दशव घर म पापगरह हो तो पिता को नषट कर ~~ ~=

दवादश रिपभाव वा यदा कररा वयवसथिताः । तदा मातभय विदयाचतथ दशम पितः ।।१७३।।

बारहव तथा छठ घर म करर गरह हो तो माता नट हो, चौथ

या दशव घर म पापगरह दहो तो पिता नषट हो| १७३॥

उचचो वा यदि वा नीचः सपतमसथो यदा रविः ।

तदा जातो निहतयाश मातर नाऽतर सशयः ।।१७४॥। उचच राशि का अथवा नीच का सरय सातव घर म हो तो जनम

लनवाला बालक माता को नषट कर, इसम सदह नही ह ॥१७४॥

नागगोसिदधजातीष कषमाऽखधिनतरनखा धतिः । कमाशिदिकरषवजादयश तलयादशच विधो वयसः ।।१७५।। यह परव योग माता को कब नषट कर यह कहत ह-चनदरमा, मष

आदि जिस नवाश म हो, तो करम स ८-€-२४-२२-५-१-४-२-

२०-१८-२१-१० इन वरषो म मतय हो । जस मष कनवाशमहोतो

८ वरष म, वष क ६ वरष म, इसी परकार सब जगह जानना ।। १७९ ॥।

लगन शनिरयदा भोमो राहः सरयशच ससथितः । सनतापो रकतदोषोऽथ सरवसोमयषवरोगकत‌ ।॥१७६।। लगन म शनि, मगल, राह, सरय बठ हो तो सताप तथा रकत

दोष रह, सब शभगरह हो तो आरोगय रह ।। १७६॥

कनदर शभो यदकोऽपि बली विशवरकाशकः । सरव दोषाः कषय यानति दीघयशच भवननरः ।१७७॥

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मा लगनचनदरिका

अरक; कनद यदा चनदरो मितराश गरवीकषितः ।

विततवान‌ जञानसमपननो जायत हि तदा नरः ।१७८॥ कनदर म यदि एक भी शभगरह हो तो बली, विशव का परकाशक,

दीरघ आय वाला मनषय हो ओर सब दोष नषट हो जाय । सरय कनर म, चनदरमा मितर गरह क नवाश म हो तथा चनदरमा को बहसपति दखत हो तो वह मनषय धनी तथा जञानसयकत होता ह।।१७७- १७८॥

अयः सरीससकनी द भाञदय शयया कनदर च सोमया यदि पषठभाजः |

पापाः कलत च मनषयराशौ । राजञी भवतसतरी बहकोषयकता

नितय परशाता च सपतरिणी च ।।१।। जिस सवरी क कनर म पषोदयसजञक राशि क शभगरह हो ओर

पापगरह मनषय राशि क होकर सातव घर म हो तो वह बहत खजान वाली रानी ओर नितय शातसवरप पतरोवाली होती ह।। १॥ बध विलगन यदि तगससथ लाभसथितो दवपरोहितशच । नरनरपतनी वनितापरसग तदा परसिदधा भवतीह भमौ ।।२।।

उचच का बध लगन म हो, बरहसपति गयारहव घर म हो तो वह सतरी राजा की रानी हो ओर सारी पथवी पर विखयात हो ।। २

एकोऽपि जीवो रसवरगशदधः कन यदा चनदरनिरीकितशच ।

राजञी भवत‌ सतरी सधना सयतरा रपानविता पीननितमबविमबा।।३।।

अकला बहसपति षडवरग शदध (बली होकर) कनर म हो, एव चनदरमा दवारा दखा जाता हो तो वह सतरी धनाढय, रानी, पतरवती, रपवती ओर सथल नितमबो वाली हो।।३।।

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भाषाटीका-सडिता 2३८

कि वि क र =

जीवन दषट परिपदिहा ।

विदयाधरी चातर भवत‌ परधाना राजञी गतारिरबहपतरपोता ।\४।।

करक लगन हो, सातव सरय हो ओर बहसपति स दखा जाता

हो तो परिपरण उततम शरीरवाली, विदयाधरी, बहत पतर-पौतरो वाली

ओर परधान रानी हो।।४॥।

षडवरगशदधसतिभिरव राजञी चतरभिरशशच तथकपतनी ।

पञचादिभिरदिवयविमानभाजा तरलोसयनाथपमदा तदा सयात‌ ।५।।

षडवरग म शदध तीन गरहो क होन स रानी हो ओर चार अथवा

पाच गरहो क रहन पर दिवय (विमान) सवारी म बठनवाली

तरलोकयपति राजा की रानी हो।।५॥

लाभसथितः शीतकरो भगशच कलतरगः चनदरसतन यकतः ।

जीवन दषटो भवतीह राजञी खयाता धराया सकलः सतता च ।।६॥।

गयारहव घर म चनदरमा हो, बधयकत शकर सातव घर म हौ तथा

वसपति स दखा जाता हो तो पथवी पर‌ सबस सततय रानी हो ।। ६।।

सरीपसयोः फल तलय जातक किनत सपतम ।

सोभागय चनदरलगनाभया वपराकतिरचयत ।\७॥।

लगन च सपतम पाप सपतम वतसर पतिः ।

भरियत चाषटम वरष चनदरो षषठऽषटम यदा ।।८॥

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त 89 लगनचनदरिका

सातव घर क गरह स खी परषौ का फल समान ह चनरमा सः र लगन स सौभागय ओर शरीर की आकरति कहनी चादिए। लगन म या सातव सथान म पापगरह हो तो सातव वरष म पति मर ओर छठ ओर आठव घर म चनदरमा हो तो आठव वरष म पति मर।। ७-८।।

य मतापतया मतगरभा च मगल । गरहो नन न सतरियाः शोभनो मतः ।। ६॥।

एकः पतरो भवदराजा पचमसथो यदा रविः । मगल च यः पतराः गरौ पञच परकीरतिताः ॥१०।। बहसपति ओर शकर आठव घर म हो तो उसकी सतान नही जीव,

आवव घर म मगल हो तो गरभ नट हो। कहन का तातपरय यह ह दि सतरी क जनम-समय आठव घर म रहनवाला कोई गरह शभदायी नही होता। पाचव घर म सरय हो तो एक ही पतर हो, किनत वह राजा हो। मगल हो तो तीन पतर हो, वहसपति हो तो पाच पतर हो ।।६- १०॥

पचमसथ निशानाय सतरियाः कनयादवय भवत‌ । बध कनयाशचतसरशच शकर सपत च कनयकाः ।। ११।। षडव कनया जायत धरमसथान यदा सितः । सपतम चदयदा राहः सतरियाः पतरसतदा भवत‌ ।।१२।। पाचव चनदरमा हो तो सीकोदो कनयारण हो, बध हो तो चार

कनया ओर शकर हो तो सात कनया हो। यदि नवम घर म शकर हो तो छः कनया हो, सातव घर म राह हो तो पतर हो।।११-१२॥ सरपा भागवि लगन साहकारा धरासत । बध वकरा गरौ शदधा शनो दारिकरयदरभगा ।१३।। शकर लग म हो तो सरी सनदर तथा रपवती हो, मगल होतो अहकारयकत सवभाववाली हो, बध हो तो कटिला, बहसपति हो तो शदधा ओर शनि हो तो दरिदरा तथा दरभगा हो।। १३॥

पापयोरनतर लगन चनदर वा यदि कनयका । जायत च तदा हति पितरशवशरयोः कलम‌ ।।१४॥।

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भाषाटोका-सदिता ४१

पापगरहौ क मधय म लगन हौ अथवा चनदरमा हो तो जनम लन वाली

कनया पिता ओर ससराल क कल को नषट कर दती ह।। १४॥।

दवादश चाषटम भौम करर ततरव ससथित । लगन च सिहिकापतर रडा भवति कनयका ।\१५।।

वारव या आवव घर म मगल हो ओर वर ही करर गरह वठा

हो ओर लगन म राह हो तो वह कनया रोड हो| १९५॥।

सपतम भागवि जाता कलदोषकरी भवत‌ ।

करकराशिसथित भोम सवर भवति वशमस ।\१६।। सातव शकर हो तो जनम लन वाली कनया कल को दोष लगान वाली

हो ओर कक राशि पर मगल बठा हो तो वयभिचारिणी हो ।।१६॥

लगनातसपतमगः पापशचनदरातसपतमगोऽपि वा ।

सदयो निहति दमपतयोरक नासतयतर सशयः ।\१७।। लसन स सातव घर म ओर चनदरमा स भी सातव घर म यदि

एक भी पापगरह हो तो सरी -परष इन दोनो म निःसनदह एक की

मतय हो, इसम सनदह नही ह ।। १७॥

लगन वयय चतरथ च पञचम सपतम गरहाः । पतिवशया भवननारी नारीवशयो भवतपतिः ॥ १८।।

लगन म, बारव, चौथ, पचव तथा सातव सथान म कोई भी गरह

होतो सरी पतिक वश म रह ओर पति सतरी क वश म रह।। १८॥

अथ तछकणलय‌ महोदयमी मनसवी च तजसवी बहकारयकत‌ ।

नानादशरसाभिनञो वसनतरवभवो नरः १।।

बहारमभो जितकरोधः कषधालः कामको नरः ।

दीरघः शरो बदधिमाशच गरपम जातः सदा शचिः ।।२।। वसनत ऋत म जनम लन वाला मनषय महा उदयमी, बदधिमान‌,

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७२ लगनचनदरिका

तजस बहत कारय करतवाला ओर अनक दशो क वयवहार को जाननवाला होता ह। रीषम ऋत म जनम तो वह बहत कारयो का

आरमभकरता, करोधहीन, भखवाला, कामी, लमबा, शरवीर ओर

बदधिमान‌ तथा सदा पवितर रहता ह॥। १-२॥।

गणवान‌ भोगयकतशच राजपजयो जितनदियः।

कशलो सतयवादी च वरषाकाल भवननरः ।३।। गणवान‌, भोग स यकत, राजपजय, जितनदधिय, कशल, सतयवादी

मनषय वरषा ऋत म जनम लन वाला होता ह।।२।।

बाणिजयकषिवततिशच धनधानयसमदधिमान‌ ।

तजसवी बहमानयशच शरजरातो भवननरः ।।४॥। वणिज तथा खती करन वाला, धन -धानय की समदधिवाला, तजसवी,

बहत मानय नर शरद‌ ऋत म जनम लन वाला होता ह।। ४।।

बहवीरयो नीतिविजञो गरामयकतः सदोदयमी ।

हसवपादगलो भीरहमनत जायत नरः ॥।५॥।

बहत बलवान‌, नीति जाननवाला गरामयकत,सदा उदयमी, छोट चरोवाला,

छोरी ओरीवावाला ओरडरपोक नर हमनत ऋत म जनम लन स होता ह।५।

रपयौवनसमपननो दीरघसतरो मदोतकटः ।

षधायकतो कामकशच शिशिररतभवो नरः ।\६॥

शिशिर ऋत म जनम लन वाला नर रप-योवन स सयकत, दीरघसतरी

(दरी म काम करनवाला), मदोतकट, कषधायकत ओर कामी होता ह।६। अथ पदरफलस‌

परणचनदरनिभः शरीमानदयमी बहशासतरवित‌ ।

कशलो जञानसमपननः शकलपकषभवो नरः ।॥१॥। शकलपकष म जनम लन वाला नर परण चनदरमा क समान कातिवाला,

शरीमान‌, उदयमी, बहत शासतरो को जाननवाला, कशल ओर जञान

स यकत होता द।। १॥

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भाषाटीका-सदिता ४३

निषटरो दरमखो मरखः सीदषी च जनोडडितः।

जायत च परपरषयः कषणपकषभवो नरः ।\२॥।

कषणपकष म जनम लन वाला कठोर, रमख, मरख, सरी स वर करन

वाला जनोस तयागा हमा ओर पराय की सवा करनवाला होता ह।२।

अथ कारकलस‌

मिषटाननभोगी मानी च करोधी च रतिलालसः ।

पितताधिको रववरि धनकामी भवननरः ।\१।।

भोगी कामी शासतरवतता गणी मानी जितनदरियः ।

विदयाधिकः शीलयकतो जायत चनदरवासर ।\ २।।

रविवार को जनम हो तो मिषटानन खानवाला, मानी, करोधी, मथन

की लालसा तथा अधिक पिततवाला हो ओर धन की कामना बनी

रह। सोमवार म जनम तो भोगी, कामी, शासतरवतता, गणी, मानी,

जितदधिय, अधिक विदयावान‌ ओर शीलयकत होता ह।। १-२।।

मरखपरियो धनी कररः शरतिसमतिविनिनदकः ।

नासतिको वदहीनशच भौम भोगी भवननरः ।\२।।

मगलवार को जनम तो मरवा का परिय, धनी, करोधी, शरति-समति

की निदा करनवाला, नासतिक, वदहीन तथा भोगी होता ह।।३।।

दयालशच बहशरतः ।

भयानको योगयकतो जायत बधवासर ।॥४।

वदवतता चागनिहोतरी पतरपौतरधनानवितः \

परजानवितः पणवितता गरवार भवननरः ।\५।।

बधवार को जनम तो वदशासतर की तरिया स यकत, दयाल,

बहभरत, डरपोक ओर योगयकत हो। वद को जाननवाला, अननि-

होतरी, पतर-पौतर धनादिक स यकत, परजा स यकत, परण विदवान‌ एसा

नर बहसपतिवार को जनम लन स होता ह।। ४-५।।

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४४ लगनचनदरिका

अरथी भोगी धनी शरः कपालरबहसवकः। = दवजञोऽपिशचतिजञशच जनः शकरदिन भवत‌ ।।६।। परयोजन करनवाला, भोगी, धनी, शरवीर, कपाल, बहत भतयो

वाला, दवजञ ओर वदवतता नर शकरवार म जनम लन स होताह।६। नीचसकतः कतघनशच कटिलो बधपीडकः । कतकारयहरो रोगी जायत शनिवासर ।\७।। लगनादपचयसथानसथित वारगरह सति । उकत फल भवचछरषठ विपरीतमतोऽनयथा ।।८।।

जो शनिवार म जनम वह नीच जनो म आसकत, कतघन, कटिल, बनधजनो को पीडा दनवाला ओर किय हए कारय को नषट करन वाला तथा रोगी होता ह। जिस वार म जनम हो वह गरह-लगन स उपचय (३-११-१०-६) इन घरो म सथित हो तो कहा हआ फल शर जान, नही तो विपरीत फल होता ह।।७-८।।

सजथ 4 &

विपदः परथम मास दातरिश च तरयोदश । षषठोऽपि च ततः सरय जातो जीवति षषटिकम‌ ।। १।।

जिसका रविवार को जनम हो तो उस पिल महीन म पीडा हो ओर बततीसव तरह, छव इन वषमि पीडा हो तथा वह ६०वरषतक जीव।१।

एकादशऽषटम मास चनदर पीडा च षोडश । सपतविशतिम वरष चतरशीतिसथितो मतिः ।२॥। सोमवार को जनम तो गयारहव तथा आव महीन या सोल

ओर सतताइसव वरषम पीडा हो ओर चौरासी वरष की अवसथा हो । २। दाचिश च दितीय च वरष पीडा च मगल । चतःसपततिवरषाणि सदा रोगी स जीवति ।।३॥।

मगलवार क दिन जनम हो तो दसर ओर वततीसव वरष म पीडा हो। बालक सदा रोगी रह ओर चौहततर (७४) वरष तक जीव।। ३॥।

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भाषाटीका-सडिता ४५

बधवारऽषटम मास पीडा वरष तथाऽषटम । परण चतःषषटिवरष ततो मतयरभविषयति ।।४॥।

बधवार को जनम हो तो आठव महीन तथा आयव वरष म पीडा हो, फिर चौसठ वरष पर हो ल तब मतय हो।। ४॥

गरौ च सपतम मास षोडश च तरयोदश । पीडा ततशचतरयकताशीतिवरषाणि जीवति ।।५।।

बहसपतिवार को जनम हो तो सातव महीन तथा सोलहव ओर

तरहव महीन म पीडा हो। फिर वह ८४ वरष तक जीव।। ५॥।

शकरवार च जातसय दहो रोगविवरजितः । षषटिवरषऽथ सपरण भरियत मानवो धवम‌ ।।६।।

शकरवार म जनम हो तो दह म कषट न हो ओर साठ वरष पर होन पर वह मतय को परापत हो।।६॥।

शनो च परथम मास पीडाऽषटादशवतसर । दढदहसतदा जातः शतवरषाणि जीवति ।७।

शनिवार को जनम हो तो पहिल महीन ओर अटारव वरष

म पीडा हो ओर दढ शरीर रह तथा सौ वरष तक जीता हि| ७।। अथ तिगथिकलस‌

ररसगी धनरहीनः कलसतापकारकः । वयसनासकतचिततशच परतिपततिथिजो नरः ।।१।।

परदाररतो नितय सतयशौचविवरजितः। तसकरः सनहहीनशच दितीयाया भवननरः ।\२॥

सरवदा दषटो क ससरग म रहनवाला, धन स रहित, अपन कल को

सताप तथा दरयसनो म आसकत एसा मनषय परतिपदा म उतपनन होन

वाला होता ह। दवितीया म जनम लनवाला मनषय नितय पराई सतरी म

रमण करनवाला, सतय -शौचरहित, सनहहीन, चोर होता ह।१-२।

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7 लगनचनदरिका

अचतनोऽतिविकलो निरदरवयो विकलः सदा । परदषरतो नितय ततीयासभवो नरः ।।३॥ महाभोगी च दाता च सितरसतहविचकषणः । धन -सतानसयकतशचतरथया यदि जायत ।।४॥।

ततीया म जनम तो बदधिरहित, अति विकल, धनरहित, निषफल ओर | नितय अनय जनो स दवष करता ह । चतरथी म जनम लनवाला महाभोगी, दानी, मितरसनही, निपण ओर धन -सतान स यकत होता ह।३-४।

वयवहारी गणगराही पितरमातरोशच रकषकः । दाता भोकता तनपरीतिः पञचमीसमभवो नरः ।।५॥। पचमी म जनम तो वयवहारी, गणगराही, माता-पिता का रकषक,

दाता; भोकता ओर सषषम परीतिवाला होता ह।। ५॥।

नानादशाभिगामी च सदा कलहकारकः । नितय जठरवोषी च षषटीजातो भवननरः ।\६।। षी तिथि म जनम तो अनक दशो म विचरनवाला, सदा कलह

` करनवाला ओर नितय उदर-रोगी रहता ह।।६॥ अलपतोषी च तजसवी सोभागयगणसनदरः । पतरवान‌ धनसमपननः सपतमीसभवो नरः ।। ७।। सपतमी को जनम तो अलप सतोषवाला, तजसवी, सौभागय गण स

सनदर, पतरवान‌ ओर धन स भरपर होता ह।।७॥ धरमिषछः सतयवादी च दाता भोकता च वतसलः । गणजञः सरवकारयजञो योऽषटमीसभवो नरः ।।८॥। जो मनषय अषटमी को जनम वह धरमि, सतयवादी, दानी, भोगी,

सबका परिय, गणजञ ओर सब कारय को जाननवाला होता ह।। ८॥ दवताराधकः पतरी धनी सतरीमगनमानसः । शासतराभयासरतो नितय नवमया यदि जायत ।\ ६।।

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भाषाटीका-सदिता ४७

दशमया धरमकरमजञो दवसवी च जापकः । गणी धनी वदविजञो बधविपरपरियो जनः ।॥१०।।

नवमी को जनम लन वाला मनषय दवता की आराधना करन वाला, पतरवान‌, धनी, सतरी म आसकत मनवाला हो ओर शासतर क अभयास म सदा सलगन रह। दशमी को जनम लन वाला धरम-करम को जाननवाला,

दवताओ की सवा करनवाला, जापक, गणी, धनी, वद को जानन

वाला,बनधनन ओर बराहमण लोगो का परिय होता ह।।६- १०॥

एकादशया नरनदरसय गहगामी शचिरभवत‌ । धरमजञशच विवकी च गरशशरषको गणी ।।११।।

एकादशी को जनम तो राजा क घर म जानवाला, पवितर, धरमजञ,

विवकी, गर की सवा करनवाला ओर गणी होता ह।। ११॥

चपलशचञचलजञानः सदा कषीणसवरपधक‌ । दशभरमणशीलशच दवादशीजातको भवत‌ ।। १२।।

दवादशी तिथि को जनम तो चपल, चचल, जञानवाला, सदा कषीण

सवरपवाला, ओर विदश म भरमण करनवाला होता ह।। १२॥।

महासिदधो महापराजञः शासतराभयासी जितनदियः। परकारयरतो नितय तरयोदशया यदा भवत‌ ।१३॥। धनाढयो धरमशीलशच शरः सदवाकयपालकः । राजमानयो यशसवी च चतरदशया यदा भवत‌ ।॥१४।। तरयोदशी तिथि म जनम तो महासिदध, महापराजञ, शासतर का अभयास

करन वाला, जितदधिय, नितय पराय कारय म रत रहनवाला होता ह।

चतरदशी को जनम तो लकषमीयकत, बदधियकत, -धमलमा, शरवीर, शर

वचन को पालनवाला, राजमानय ओर यशसवी होता ह।। १३-१४॥

शरीयतो मतियकतशच महाभाजनलालसः । उजजवलः परदारष विरतः परणिमाभवः ।। १५।।

परणिमा को जनम तो लकषमीयकतः, बदधियकत,महान‌,भोजन की लालसा

वाला,अनय सरियो स रमण करनवाला ओर तजसवी होता ह॥१५॥

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8८ लगनचनदरिका

` चिरारभः परदषी वकरो मरखः पराकरमी। `` गढमतरी च सजञानी हयमावासयाभवो नरः|! १६।।

अमावसया को जनम तो सथिर काम‌ का आरमभ करनवाला, पटरषी, । = मरख, पराकरमी, गढमतरी ओर समयक‌ जञानी होता ह।१६॥ |

तिथौ सोमयविदधाया च शभ फलम‌ । | अनिषट पापविदधाया तिथौ भवति निशितम‌ ।।१७॥।

निरवदधा तथा शभ तिथि स विदध तिथि म जनम तो शभ फल हो ओर यदि पापविदधा तिथि म जनम तो अनिषट (बरा फल) हो , एसा निशचय जानो ।। १७॥ |

गथ ननदगदिलिरशिकलस‌ ननदातिथो नरो जातो महामानी च कोविदः । दवताभकतिनिशच जञानी च परियवतसलः ।। १।। ननदातिथि को जनम लन वाला नर महामानी, पणडित, दवता की

भकति म ततपर, जञानी ओर परियजनो का हित करनवाला हो।।१॥ भदरातिथो बनधमानयो राजसवी धनानवितः ।

ससारभयभीतशच परमारथमतिरनरः ।॥॥२।॥ भदरा तिथि म जनम तो बधओ स मानय, राजसवी, धनाढय, ससार '

स डरन वाला ओर परमारथ म बदधि रखनवाला होता ह।। २॥ जयातिथौ राजपजयः पतरपौतरादिसयतः । शरः _शातशच दीघायरमहाविजञशच जायत ।। ३॥ जया तिथि म जनम लनवाला राजपजय, पतर-पोतरादिको स सयकत,

शरवीर, शात, दीरघ अवसथावाला ओर महाविदवान‌ होता ह।। ३।। रिकतातिथौ विततहीनः परमादी गरनिनदकः। ` शासवरजञमतिहता च कामकशच नरो भवत‌ ।। ४।। रिकत तिथि म जनम तो धनहीन, परमादी, गरनिदक, शासर

की बदधि को नषट करनवाला ओर कामी जन हो| ४॥

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भाषाटीका-सदहिता €

पणातिथौ धनः परणो वदशापरारथतततववित‌ । सतयवादी शदधचता जातो भवति मानवः ।। ५॥

परणा तिथि को जनम तो धन स पररण, वद-शासतर क तततव को जाननवाला, सतयवादी ओर शदध चिततवाला होता ह।। ५॥।

सकथ जनयनदछककलस‌ सरपः सभगो दकषः सथलकायो महाधनी । अशचिनीसमभवो लोक जायत जनवललभः ।। १।।

अशरिनी नकषतर म जनम तन वाला बालक सरप, सभोगी, सथल शरीरवाला, महाधनी ओर सब लोगो का परिय हो।। १॥

अरोगी सतयवादी च सपराणशच दटवरतः । भरणया जायत लोक स सखी मतिमानपि ।।२।।

भरणी नकषतर म जनम लन वाला बालक रोगरहित, सतयवादी, पराणो-सहित दढ नियमवाला, सखी ओर बदधिमान‌ होता ह।।२॥।

कपणः पापकरमा च कषधालरनितयपीडितः । अकरम करत नितय कततिकासभवो नरः ।।३।।

कततिका म जनम लन वाला मनषय कपण, पापी, भकवड, नितय पीडित ओर बर काम करनवाला होता ह।।३॥।

धनी कतजञो मधावी नपमानयः परियवदः । सतयवादी सरपशच रोहिणीजो भवननरः ।। ४।।

रोहिणी नकषतर म जनम लनवाला नर धनी, कतजञ, मधावी, राजा स मानय, परिय बोलनवाला, सतयवादी ओर सरपवान‌ होता ह।।६।।

चपलशचतरो धीरः कररकमपयिकरमकत‌ । अहकारी परदषी मग भवति मानवः ।\ ५॥।

मगशिरा म जनम लन वाला वयकति चपल, चतर, धीर, करर, बर काम करन वाला, अहकारी ओर दषी होता ह।। ५॥ छ

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५ लगनचनदरिका = ज य (=-= -------

कतघनो गरवितो हीनो नरः पापरतः शठः । आदरनिकषतरसजातो धनधानयविवरजितः ।। ६।।

आरदरा म जनम तन वाला कतजञ, अभिमानी, हीन, पापरत, ` मरख ओर धन -धानय-रहित होता ह।। ६।।

शानतः सखी च भोगी च सभगो जनवललभः । यतनमितरादिभिरयकतो जायत च पनरवसौ ।। ७।। पनरवस म जनम लन वाला शानत, सखी, भोगी, पशवरयवान‌,

जनो का परिय ओर पतर-मितरादिको स यकत होता ह।।७। दवधरमरतो नितय बदधियकतो धनपरियः । पयकष जायत लोक शातातमा सभगः सखी ।।८॥

पषय नकषतर म जनम लनवाला मनषय दवकरमम नितय ततपर, बदधि- यकत,धनपरिय, शानत चिततवाला, सनदर षवरयवान‌ ओर सखी होता ह ।८।

सरवभकषः कतातशच कतघनो वञचकः खलः । आशलषाया नरो जातो भरषटकरमा च जायत ।। ६।।

आशलषा नकषतर म जनम लनवाला सब कछ खानवाला, कतानत (दषट सवभाववाला) कतघन, ठग, दषट ओर भरषट करम करनवाला होता ह ।६।

कलयाण परथम पाद दवितीय च धनकषयः । मातः पीडा ततीय च पितः सारप चतरथक ।। १०।।

आएलषा नकषतर क परथम चरण म जनम तो कलयाण, दवितीय महो तो धन की हानि, ततीय चरणमहो तो माता को पीडा द ओर चौथ चरण म जनम तो पिता को नषट कर १०॥

बहभतयो धनी भोगी पितभकतो महोदयमी । चमनाथो राजसवी मघाया जायत नरः ॥॥ ११॥।

मघा नकषतर म जनम तो बहत भतयोवाला, धनी, भोगी, पिता का भकत, महा उदयमी, सनापति ओर राजसवी होता ह।। ११।।

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भाषाटोका-सदिता ५८९ ` विदयागोधनसयकतौ गमभीरः परमदाय {` गमभीरः परमदापियः ।

परवाफालगनिजातसत सखी पडितपजितः ।। १२॥ रवाफालगनी म जनम तो विदया ओर गौ समबनधी धन स यकत, गभीर, सतरियो का परिय, सखी तथा पडित जनो स पजित हो ।।१२॥ दाता शरो मदरवकता धरवदारथपणडितः । उततराफालगनीजातो महायोदधा जनपरियः ॥। १३।।

उततराफालगनी म जनम तो दाता, शरवीर, सरल, उततम बोलन वाला,धनष-विदयाम निपण,महायोदधा ओर सब जनो को परिय हो । १३। असतयवचनो दषटः सरापी बनधवरजितः । हसतो जातो भवचचौरो जायत परदारकः ॥ १४।।

हसत नकषतर म जनम लनवाला असतयवादी, दषट, मदिरा पीनवाला, बधहीन, चोर ओर पराई सतरी स रमण करन वाला होता ह। १६।

पतरदारयतसतषटो धनधानयसमनवितः । दववराहमणभकतशच चितराया जायत नरः ॥ १५।।

चितरा म जनम लन वाला पतर-सरी स सयकत, परस, धन - धानय स यकत, दवता ओर बराहमणो का भकत होता ह।। १५॥

कोविदो धारमिकोऽतपारथः कपणः परियवललभः । सखी सवदवभकतशच सवातीजातो भवननरः । १६॥।

सवाती नकषतर म जनम लनवाला नर पडित, धारमिक, सवलप धनवाला, कपण, सतियोका परिय, सखी ओर अपन इषटदव का भकत होता ह ।१६।

अतिलबधोऽतिपापी च निषटरः कलहपरियः । विशाखाया नरो जातो वशयाजनरतो भवत‌ । १७।। विशाखा नकषतर म जनम लन वाला नर अतिलोभी, पापी, कठोर,

कलह करनवाला ओर वशया स रमण करनवाला होता ह।। १७॥ परषारथा परवासी च बनधकारय सदोदयमी । अनराधाभवो लोकः सदा हषटशच जायत ।। १८॥।

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ए, ५८२ । लगनचनदरिका |

` वरषारथी, परदश म रहनवाला, भाङयो क काम म सदा उदन । सदा परसनन, एसा नर अनराधा नकषतर म जनम लन वाला होता ह। १८। ।

बहमितरः परधानशच विदयारथी च विचकषणः । | जयषठाजातो धरमरतो जायत शदरपनितः ।। १६॥ सथिरभोगी च मानी च धनवाशच सखी भवत‌ । ततीयपाद तरय च मलादऽरथ परितयजत‌ ।।२०॥। बहत मितरोवाला, मखयजन, विदया का परयोजन वाला, पडित, धरम

म ततपर ओर शदरजनो स पजित, एसा नर जयषठा नकषतर म जनम लन ' वाला होता ह। सथिर, भोगी, मानी, धनवान‌, सखी एसा नर मल ¦ नकषतर क तीसर चरण म या चौथ चरण म जनम लन वाला होता ह। मल क पवर म उतपनन बालक को तयाग दना चादिए।। १६-२०॥

आदयपाद पितः पीडा मल मातरदितीयक । ततीय धनहानिशच चतरथ सरवदा सखम‌ ।।२१।। मल क परथम चरण म जनम तो पिता को पीडा हो, दसर

म जनम तो माता को पीडा हो, तीसर म जनम तो धन की हानि हो ओर चौथ म सब परकार का सख हो।।२१।

दषटमातरोपकारी च भागयवाशच जनपरियः । | परवाषाढ नरो जातः सकलारथविचकषणः ।।२२।।

पवषिाढा म जनम लनवाला नर दखन -मातर स उपकार करनवाला, भागयवान‌, सब जनो का परिय ओर सब काम म चतर होता ह।।२२॥

बहमितरो महाकायो धारमिको विनयी सखी । उततराषाढसभतः शरशच विजयी रण ।॥। २३॥ उततराषाढाम जनम लनवाला नर बहत मितरोवाला, विशाल शरीर |

वाला धारमिक, विनयी, सखी, शरवीर ओर रण म विजयी होव। २३। कतजञो विनयी दाता. सदा रोगविवरजितः । शरीमाशच बहसतानः शरवण जायत नरः ॥२४।।

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भाषाटोका-सदहिता ८३

शरवण म जनम लन वाला कतजञ, विनयी, दानी, सदा रोग स वरजित, लकषमीवान‌ ओर बहत सनतानवाला होता ह।।२४।

गीतपरियो बनधमानयो हमरलनरलकतः। धनिषठाया नरो जातशचकः शतपतिरभवत‌ ।।२५।।

धनिषठा म जनम लन वाला गीतो का परिय, वधजनो स मानय, सवरण रतनो स विभषित तथा अवला ही सकडो का पति होता ह ।२५।

कपणो धनपरणशच परदारोपसवकः । भानवः शतताराया विदशगमन रतः । २६।।

एतभिषा म जनम लन वाला नर कपण, धन स परण, पराईसतरी स रमण करन ओर विदश म गमन करनवाला होता ह।।२६॥।

वकता सखी परजायकतो बहनिदरो निररथकः । परवाभादरपदाजातो नरो भवति दःखितः ।। २७॥। गौरः समसतधरमजञः शबरघाती च पामरः । उततराभादरनकषतरजातः साहसिको भवत‌ ।।२८।।

पवाभिादरपद नकषतर म जनम लनवाला नर अचछी परकार स वात करन- वाला. सखी सतानस यकत,बहत नीदवाला निररथक रहनवाला ओर दःखित होता ह। उततराभादरपद नकषतर म जनम लनवाला गौरवरण, सब धरम को

जाननवालो,शतनाशक तचछ ओर हठ करनवाला होता ह।२७-२८।

सम शचिरदकषः साधः शरो विचकषणः । लोक धनधानयरलकतः ।॥।२६।।

रवती नकषतर म जनम लनवाला नर सपरण (उततम) अगोवाला,पविवर,

चतर,साधजन,शरवीर, पडित तथा धन‌ -धानय स विभषित होता ह।२६।

निरवध सौमयसयकत नकषतर शोभन फलम‌ । विपरीतफल तसम सवध कररपीडित ॥३०॥। वधरहित अथवा शभगरह सयकत नकषतर म जनम तो शभ फल

हो, जो वधसदित ओर करर गरह स पीडित नकषतर हो तो विपरीत (अशभ) फल होता ह।। ३०॥

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५४ लगनचनदरिका

अथ योगफलम‌ विषकभजातो मनजो रपवान‌ गणवान‌ भवत‌ ।

नानालकारसपरणो महाबदधिविशारदः ।। १॥। विषमभ योग म जनम लन वाला मनषय रपवान‌, गणवान‌, अनक

परकार क आभषण स यकत ओर महाबदधिमान‌ पडित होता ह ।।१॥। परीतियोग समतयननो योषिता वललभो भवत‌ । तततवजञशच महोतसाही सवारथी नितय कतोदयमः ।\२॥। परीतियोग म जनम तो सियो का परिय, तततवजञ, महाउतसाही

ओर नितयपरति सवारथ म उदयत रहन वाला होता ह।।२॥ आयषमाननामनियोग च जातो मानीधनी कविः । दीरघायः सतवसपतनो यदध चापयपराजितः ।।३॥। सौभागय यः समतपननो राजमनतरी च जायत । निपणः सरवकारयष वनिताना च वललभः ।\४।।

आयषयमान‌ योग म जनम तो वह मानी, धनी, कवि, दीरघ आयवाला, पराकरमी ओर यदध र शरवीर होता ह। सौभागय योगम जनम लनवाला राजाका मतरी,सब कायाम निपण ओर सतरियका परिय होता ह।३-४।

शोभन शोभनो बालो बहपतरकलतरवान‌ । आतरः सरवकारयष यदधभमो सदोतसकः ।।५।।

शोभन योग म जनमनवाला बालक सनदर, बहत पतर तथा सतरी स यकत, सब कामा म आतर ओर यदधभमि म उतसाहवाला हो ।। ५॥।

` अतिगणड च यो जातो मातहता भवचच सः । गणडानतष च जातसत कलहता परकीरतितः ।।६।।

अतिगड योग म जनमनवाला अपनी माता को नषट कर ओर जो इस अतिगड योग क अनत की घटियो म जनम तो समपरण कल नषट कर।६।

सकरमणि च यो जातः सकरमा जायत नरः । सरवः परीतः सशीलशच रोगी भोगी गणाधिकः ।॥७।।

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- ~

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भाषाटीका-सडिता (3

सकरमा योगम जनम लनवाला नर सनदर करम कर, सवस परसनन रह, ¦ सनदर सवभाववाला, सनही, भोगी ओर अधिक गणवाला होता ह । ७।

धतियोग च धतिमान‌कीरतिपषटिधनानवितः । भागयवान‌ गणसपननो विदयावान‌ रपवान‌ भवत‌ ।।८॥। धति योग म जनम लनवाला धतिमान‌, कीरति, पषटि ओर धन स

यकत, भागयवान‌, गण-सपनन, विदयावान‌ ओर रपवान‌ होता ह।।८।

शल शलवयथायकतो धारमिकः शासतरपारगः । विदयारथकशलो यजवा जायत मनजः सदा ।।६।। गणड गणडवयथायकतो बहकलशो महाशिरः । हसवकायो महासथलो बहभोगी ददवरतः ।॥१०।।

शल योग म जनम तो शल रोग की पीडा स यकत, धारमिक,

शासर को जाननवाला, विदया क परयोजन म निपण ओर सदा यजञ

करनवाला होता ह। गणड योग म जनम तो गणडमाला रोग की पीडा

स यकत, बहत कलशवाला, बडा शिरवाला, छोटा शरीरवाला,

महासथल, बहत भोगी ओर दढवरती होता ह ।। ६ - १०॥।

वदधियोग च दीरघायः सरवषा परियदरशनः । सरपो बहपचरशच कलावान‌ सकलतरवान‌ ।। ११।।

वदधि योग म जनम तो वह दीरघ आयवाला,सवको परियदरशन, सरप-

वान‌, बहत पतरोवाला, कलावान‌ ओर सनदर सवरीवाला होता ह।११।

धवयोगऽतिशकतशच सथिरकरमा सदा नरः ।

धनवानतिभोकता च सतववानपि जायत ।। १२॥। धरव योग म जनम तो वह अतयनत समरथ‌, सथिर करम करनवाला,

धनवान‌, अतयनत भोगी ओर पराकरमी होता ह।। १२॥

वयाघातयोग जातसत सरवजञः सरवपजितः । सरवकरमकरो लोक विखयातः सरवकरमस ।। १२।।

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वा लगनचनदरिका

दरात यौग न जनम तो वह बालक सरवजञ, सरव पजित, लोक म

सब काम करनवाला ओर सब कामो म परसिदध हो ।। १३॥।

हरषण जायत लोक महाभोगी नपपरियः ।

हषटः सदा धनरयकतो वदशासरविशारदः ।। १४।।

हरषण योग म जनम तो लोक म महाभोगी, राजा का परिय, हषट,

सदा धनयकत ओर वद-शासर को जाननवाला होता ह।। १४॥

वजरयोग वञरमषटिः सरवविदयास पारगः ।

धनधानयसमायकतो मनजो वजरविकरमः ।। १५।। वजर योग म जनय तो वजरक समान मषिवाला,सब विदयाओ को जानन

वाला.धन -धानय स यकत ओर वज क समान पराकरमी हो ।।१५॥।

सिदधियोग समतपननः सरवसिदधियतो भवत‌ । दाता भोकता सखी कानतः शोकी रोगी च मानवः ।।१६॥

सिदधि योग म जनम तो वह सब कामो की सिदधि वाला, दाता,

भोकता, सखी, रपवान‌, शोकी ओर रोगी होता ह।। १६॥।

वयतीपात च सजातो महाकषटन जीवति । जीवचधागययोगन स भवदततमो नणाम‌ ।। १७ योग वरीयसि भवो वरिषटो जायत नरः ।' शितपकावयकलाभिजञो गीतनतयादिकोविदः ।। १८।।

वयतीपात योग म जनय तो वह महाकषट स जीव, जो भागय क योगस जीव भी तो मनषयो म शरख हो। वरीयान‌ योग म जनम तो वह अतयत शर, शितप आदि कला ओर गीत, नतय आदि को जाननवाला होता ह।। १७-१८॥।

परिघ च नरो जातः सवकलोञनतिकारकः । शासतरविजञः कविवगमी दाता भोकता पियवदः | १६।। परिष योग म जनम लन वाला मनषय अपन कल की उननति

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भाषाटीका-सडिता ९८७

कर ओर शासतर को जाननवाला, कवि, सनदर वाणीवाला, दाता, भोगी ओर परिय बोलनवाला होता ह।।१६।।

शिवयोग नरो जातः सरवकलयाणकारकः । महादवसमो लोक महाबदधिरवरपरदः ।। २०।। शिव योग म जनम तो वह नर सबका कलयाण करनवाला, लोक

म महादव क समान, महा बदधिवाला ओर वरदानी होता ह ।। २०॥।

सिदधियोग सिदधिदाता मनतरसिदधिपरवरतकः । दिवयनारीसमतशच सरवसमपदयतो भवत‌ ।।२१।। साधय मानसिकासिदधिरयशोऽशषः सखागमः । दीरघसतरः परसिदधिशच जायत सरवसममतः । २२।। सिदधि योग म सिदधिदाता, मनतरसिदध का परवरतक, दिवयसतरी

स यकत ओर सपरण सपतति स यकत होता ह। साधय योग म जनमा

मन म कारय सिदधिवाला, यशवाला, सखी, दीरघसतरी (दरी म काम

करनवाला), विखयात ओर सबका मानय होता ह ।।२१-२२॥

शभ शभशतकतो धनवानपि जायत । विजञानशासतरसमपननो दाता बराहमणपजकः ।। २३॥। शभ योग म जनम तो सकडो शभ करमो स यकत, धनवान‌, विजञान

शासर स समपनन, दाता ` ओर बराहमणो का पनक होता ह।। २३।।

शकत सरवकलायकतः सरवरथजञानवान‌ भवत‌ । कवचित‌ परतापी शरशच धनी सरवजनपरियः । २४॥। शकल योग म जनम तो वह कलाओ स यकत, सब परयोजन क

जञानवाला, परतापी, शरवीर, धनी ओर सब जनो का परिय हो ।।२४॥

बरहमयोग महाविदवान‌ वदशासतरपरायणः ।

बरहजञानरतो नितय सरवकारयष कोविदः ॥२५॥ बरहम योग म जनमा महाविदवान‌, वदशासतर का जाननवाला, हमशा

बरहमजञान म रत ओर सब कामा म चतर होता ह।।२५।।

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५८ लगनचनदिका

` र भषकल जातो राना भवति विशरतः। ` अतयायशच सखी भोगी गणवानपि जायत । २६॥।

रनदर योग म जनम लन वाला नर राजा क कल म विखयात राजा, अलप आय वाला, सखी, भोगी ओर गणवान‌ होता ह।।२६॥।

वधतो जायत मरतयो निरतसाही बभकषितः । करवाणोऽपि जनः परीति परयातयपरियता नरः ।। २७।। वधति योग म जनम तो वह नर उतसाहरहित, बभकषित (कगाल)

ओर परीति करता हआ भी निरादत होता ह।। २७॥।।

अथ करणकफलस बवाखय करण जातो मानी धरमरतः सदा । शभमगलकरमा च सथिरकरमा च जायत ।। १।। बालव करण जातो दवतीरथादिसवकः । विदयावान‌ सोखयसमपसनो राजमानयशच जायत ।।२।। बव करण म जनम लन वाला मानी, सदा धरमरत, शभकरम

करन वाला ओर सथिर करमवाला होता ह। बालव करण म जनम लन वाला दवता, तीरथादिको की सवा करनवाला, विदयावान‌, सख स यकत ओर राजा स मानय हो।। १-२॥

कोलव च नरो जातः परीतिः सरवजनः सह । सगतिरमितरवरगशच मानवशवापि मितरता ।।३।।

कौलव करण म जनम लन वाला नर सब जनो क सग परीति रख, मितरजनो की सगति ओर सब मनषयो स मितरता कर।। ३॥

ततिल करण जातः सोभागयगणसयतः । सनहः सरवजनः सारद विचितराणि गहाणि च ।४।। ततिल करण म जनम तो सौभागय गण स यकत, सब जनो क साथ

सनह रखनवाला ओर विचितर घरो की पराति करन वाला हो।। ४।

५५

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भाषाटीका-सडिता 3

गराखय कषिकरमा च गहकारयपरायणः । यदसत काकषित तचच लभयतऽतर महोदयमः ।। ५।।

गर करण म जनम तो वह खती करनवाला तथा घर क काम म निपण हो ओर वह जिस वसत की अभिलाषा कर उसी को अपन उदयम स परापत कर ल।।५॥।

वणिज करण जातो वाणिजयनव जीवति । वाकषित लभत लोक दशातरगमाऽऽगमः ।\६।।

वणिज करण म जनम तो वणिज की आजीविका कर ओर दशानतर

म गमन करक अपन मनचाह काम को सिदध कर।। ६।।

विषटयाखय करणजातो हयशभारमभशीलवान‌ । कशलो विषकारयष परघातरतः सदा ।}७॥ विषटि करण म जनम तो वह अशभ कारय का आरमभ कर, विष

क कामो म निपण हो ओर सदा पराया घात करन म रत रह ।।७॥।

शकनौ जनम यसयाऽभतपौषटिकादिकरियाकती । ओषधादिष दकषशच भिषगवततिशच जायत ।।८।। शकनी करण म जनम तो वह पषटिकारक करिया करनवाला, ओषधि

आदिको म चतर ओर वदय की आजीविका करनवाला होता ह।। ८॥।

करण च चतषपाद दवदिजरतः सदा ।

गोकरमा गोपरभलकि चतषपादचिकितसकः ।।६।। नागाखय करण जातः सथावरपरीतिकारकः ।

करत दारण करम दरभगो लोललोचनः ।॥ १०॥। चतषपद करण म जनम तो वह सदा दवता-बराहमणोम भकति रकव,

ससारम गोओका काम, गौओ का सवामी तथा चौपायो का इलाज कर

वाला होता ह। नाग करण म जनम तो वह सथावर (वकष आदि) स परीति

रकव दारण काम कर,अभागा तथा चचल नतरोवाला हो ।€- १०।

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० लगनचनदरिका

किसतघन करण जातः ` करत करण जातः शभकरमरतो नरः। ` तषटि पषटि च मागलय सिदधि च लभत सदा ।११।।

कितषन करण म जनम तो वह सदा शभ करम म लगा र ओर तषटि, पषटि, मागलय इतयादि सिदधयो को परापत कर।। ११॥।

अथ मकादिरगिकलस‌

लोलनतरः सदा रोगी धरमरथकतनिशचयः । पथजङगः कतजञशच विकरानतो राजपजितः । १ कामिनीहदयाननदो दाता भीतो जलादपि। चणडकरमा मदशवानत मषराशो भवननरः ।।२।। जिसका जनम मष राशि क चनदरमा म हो तो वह चचल नतरवाला,

सदा रोगी, धरम ओर अरथ (धन) का निशचय करनवाला, सथल जोष वाला, किय हए कारय को जाननवाला ओर बलवान‌ तथा राजाओ स पजित एव कामिनी क हदय को आननद दनवाला, दाता, जल स भय रखनवाला, घोर करम करनवाला ओर अनतम कोमल होता ह।१-२।

भोगी दाता शचिरदकषो महागरवो महाबलः । धनी विलासी तजसवी समितरशच वष भवत‌ ।।३।। जिसका वष राशि क चनदरमा म जनम हो, वह मनषय भोगी,

दाता, पवितर, दकष, महाभिमानी, महाबलवान‌, धनी, विलासी, तजसवी ओर अचछ मितरवाला होता ह।।३॥ `

मिषटवाकयो लोलदषटिरदयालरमथनपरियः । गानधरववित‌ कणठरोगी कीरतिभागी धनी गणी ।।४।। गोरो दीरघः पटरवकता मधावी च ददतरतः। समरथा हयतिवादी च जायत मिथन नरः ॥॥५।।

जिसका मिथन राशि क चनदरमा म जनम हो,वह मीठी वाणी बोलन वाला, चचल दषिवाला, दयाल, मथनपरिय, गानवाला,कणठरोगी, यश का भागी,धनी, गणी, गौरवरण (रग) वाला,लबा,पट‌,वाचाल, बदधिमान‌, सतय परतिजञावाला, समरथ ओर बहत विवाद करनवाला होता ह।४-५।

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भाषाटोका-सडिता <१

कारयकारी धनी शरो धरमिषठो गरवतसलः । शिरोरोगी महाबदधि कशादगः कतविततमः ।६।। परवासशीलःकोपानधो बालय दःखी समितरकः । अनासकतो गह वकता कककराशौ भवननरः ।॥७।।

जिसका कक राशि क चनदरमा म जनम हो वह कारय करनवाला, धनी,

पराकरमी धरमि गरपरिय, शिर का रोगी,महाबदधिमान‌, दरबल शरीर

वाला, अचछा जाननवाला,परदशी करोध स अधा, बालय अवसथाम दःखी

अचछ मितरवाला.घरम अनासकत व बहत बोलनवाला होता ह।६-७।

कषमायकतसतरपायकतो मदयमासरतः. सदा ।

दशभरमणशीलशच शीतभीतः समितरकः ।\ ८॥।

विनयी. शीघरकोपशच जननीजनवललभः ।

वयसनी परकटो लोक सिह राशौ नरो भवत‌ ।। ६॥। जिसका सिहराशि क चदरमा म जनम हो वह मनषय कषमायकत, ला,

यकत, सदा मदय-मास म परीति रखनवाला, दश म भरमण करनवाला, जाड

स भय रखनवाला, सनदर मितरवाला, विनयी, शीघर कोप करनवाला, माता

ओर सवजनो को परिय, वयसनी ओर ससार म विखयात होता ह।। ८-६।।

विलासी सजनाहवादी शभलकषणपरितः ।

दाता दकषः कविरबदधो वदमारगपरायणः ।\१०।।

सरवलोकपियो नावयगानधरववयसन रतः ।

परवासशीलः सतरीदःखी कनयाजातो भवदररः ।।११।।

जिसका कनया राशि क चनदरमा म जनम हो वह विलासी, सजनो को

परसनन करनवाला, सनदर लकषणो स यकत, दाता, दकष, कवि, वदध,वद-

मारग परायण, सब लोगो का परिय, नाच-गान म रत (परीति करन

वाला), परदशम परम करनवाला ओर सतरीस दःखी होता ह।१०- ११

सवसथानरोषणो दःखी पटभाषी कपानवितः ।

चञचलाकषः बलकषमीको गहमधयऽतिविकरमी ।१२।।

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६२ लगनचनदरिका

वाणिजयदकषो दवाना पजको मितरवतसलः । परवासी सहदामिणसतल जातो भवननरः ।।१३॥।

जिस मनषय का तला राशि क चनदरमा म जनम हो वह घर म करोधी, दःखी, बात करन म चतर, कपाल, चचल नतरवाला, लकषमीवान‌, घर म विशष बली, वयापार म निपण, दवपनक, मितर को मानन वाला, परदशी ओर मितरो का अतयनत परिय होता ह।। १२-१२३॥

बालपरवासी कररातमा शरः पिङगललोचनः । परदाररतो मानी निषटरः सवजन जन । १४॥। साहसपरापतलकषमीको जननयामपि दषटधीः । धरतशचोरः कलारमभी वशचिक जायत नरः ।। १५।।

जिसका जनम वशचिक राशि क चनदरमा म हो, वह मनषय बालय अवसथा म परदशी, करर परकतिवाला, पराकरमी, पील नतरवाला, पराई सरियो म आसकत, मानी, अपन जनो म निषटर, साहस स लकषमी परापत करनवाला, माता म भी दषट मतिवाला, धरत, चोर ओर कलाओ का आरमभ करनवाला होता ह।। १४-१५।।

शरः समधिया यकतः साचचिको जनननदनः । शितपविजञानसमपननोधनालयो दिवयभारयकः | १६।। मानी चरितरसमपसनो ललिताकषरभाषकः । तजसवी सथलदहशच धनरजातः कलानतकः ।।१७।।

जिसका जनम धनराशि क चनदरमा म हो वह मनषय पराकरमी, सम बदधिवाला, सालिक,मनषयोको सख दनवाला, कारीगरी को जाननवाला, धन स यकत,मन हरनवाला,सनदर अकषरोका कहनवाला वकता, तजसवी, मोट शरीरवाला ओर कल का नाश करनवाला होता ह।१६-१७।

कल शरषठो वशः सवरीणा पणडितः पारिवारिकः । गीतजञो लालसी गहयः पतराढयो मातवतसलः ।।१८।।

4

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~ धनी तयागी सभतयशच दयालरबहबानधवः । परिचिनतितसोखयशच मकर जायत नरः । १६॥। जिसका मकर राशि म जनम हो वह अपन कल म शर, सवियो क

वश म रहनवाला, पणडित, परिवारवाला, गान म चतर, लालसी,बहत

पतरो स यकत, माता का पयारा, धनी, दानी, सनदर, सवकवाला, दयाल,

बहत भायोवाला ओर सखकी चिनता करनवाला होता ह । १८- १६।

दाताऽलसः कतजञशच गजवाजिधनशवरः ।

शभदषटिः सदा सौमयो मानविदयाकतोदयमः ।।२०।।

पणयाढयः सनहहीनशच धनी भोगी सवशकतितः । शालरककषिनिरभीतः कमभ जातो भवननरः ॥।२१॥ जिस मनषय का कमभ राशि म जनम हो वह दानी, आलसी,

कतजञ, हाथी, घोडा ओर धन का मालिक, शभ दषटिवाला, सदा

सनदर सवभाववाला, अभिमानी, विदया म उदयम करनवाला, पणय

स यकत, परम स रदित, धनी, अपनी शकति क अनसार भोगी, शालर

पकषी क समान ककषिवाला ओर भयरदित होता ह।। २०-२१॥

गमभीरचषटितः शरः पटरवागमी नरोततमः ।

कोपनः कपणो जञानी कलशरषठ कलपरियः ।।२२।।

नितयसवी शीघरकामी गानधरवकशलः शभः ।

मीनराशौ समतपननो जायत बनधवतसलः ॥ २३।। जिस मनषय का मीन राशि म जनम हो.कह गमभीर चषटावाला,

वीर, परवीण, मीठी वाणी बोलनवाला, मनषयो म शर, करोधी,

कपण, जञानी, कल म भर, कलपरिय, सदा सवा करनवाला, जलदी

चलनवाला, गान म निपण, अचछ सवभाव वाला ओर अपन बनधजनो

का परिय होता ह॥२२-२३॥ ।

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< लगनचनदरिका

` जयसवणयकादिरगशिकलस‌ मष दीनो वष मानी पटबदधिशच मनमथ । कररः करक धतिः सिह कनयाया बहमायिता ।। १।। जक सरीतवमलौ मानी चाप पापाशयो नरः । मखरो मकर कमभ चतरः सथिरधीडषि ।। २।। जिसका मष राशि म जनम हो वह दीन, वष म अभिमानी,

मिथन म पट बदधिवाला, करक म करर, सिह म धरयवाला, कनया म बहत माया करनवाला, तला म सियो क समान परकतिवाला, वशचिक म मानी, धन म पापी, मकर म मखर (अगरसर), कमभ म चतर ओर मीन म सथिर बदधिवाला होता ह।। १-२॥

अथ मकादितगनोतयलकलस‌ मषलगन समतपनशचणडो मानी सधीः शभः । करोधी च जनहनता च विकरमी परवतसलः ।। १।।

मष लगन म जनम लनवाला कठोर, अभिमानी, पडित, करोधी, जनहनता, पराकरमी ओर अनय जनो म सनह करनवाला होता ह । १।

वषलगनभवो बालो गरभकतः परियमबदः । गणी कती धनी लबधः शरः सरवजनपरियः ।\२।।

वष लगन म जनम लनवाला बालक गर का भकत, परिय बोलन वाला, गणी, पडित, लोभी, शरवीर ओर सरवजन परिय होता ह।२।

मिथनोदयजातसत मानी सवजनवतसलः । तयागी भोगी धनी कामी दीरधसतरोऽरिमरदनः | ३।।

मिथन लगन म जनम लनवाला अभिमानी, सवजन का हित करन वाला,तयागी,भोगी,धनी, कामी दीरघसतरी ओर शतरनाशक होता ह ।३।

करकलगन समतयननो भोगी धरमो जनपरियः । मिषटाननपानभोगी च सोभागयः सवजनपरियः ।।४।।

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भाषाटोका-सडिता ५

सिहलगनोदय जातो भोगी शतरविमरदकः । सवतलपोदरोऽलपपतरशच सोतसाही रणविकरमः ।।५।।

करक लगन म जनम लनवाला भोगी, धरमी, सरवजनपरिय, मीठा अनन पान करनवाला, रशरयवान‌ ओर सवजनपरिय होता ह। सिह लगन म जनम लनवाला भोगी, शतरओ को नषट करनवाला, सवतप उदरवाला, थोड पतरोवाला, उतसाहवाला ओर रण म पराकरमी होता ह । ४-५।

कनयालगनभवो बालो नानाशासतरविशारदः । सौभागयगणसपननो. सनदरः सरतपरियः ।।६। तलालगनोदय जातः सधीः सतकरमजीवनः । विदानसरवकलाभिजञो धनाढयो जनपजितः ।। ७॥

कनया लगनम जनम लनवाला बालक अनक शासतरो को जाननवाला, सोभागय गण स सपनन, सनदर ओर मथनपरिय होता ह। तला लगनम जनम तो पडित, भरष काम की आजीविकावाला, विदवान‌, सरव कलाओ को जाननवाला, धनाढय ओर अनय जनो स पजित हो ।। ६-७॥।

वशचिकोदयजो बालः शौरयवानतिधषटधीः । विजञानजञानसपननः सखी सविगरहः सधीः ।।८॥।

वशचिक लमनम जनम लनवाला बालक शरवीर, उदणड बदधिवाला, विजञान ओर जञानस सयकत, सखी, सनदर शरीरवाला ओर पडित होता ह । ८।

धनरलगनोदय जातो नीतिमानगणवानसधीः । कलमधय परधानशच पराजञः सरवसय पोषकः | €।।

धन लगन म जनम तो नीतिमान‌, गणी, पणडित, कल क मधय म परधान, बदधिमान‌ ओर सव जनो का पोषक हो।।६॥

मकरोदयजो बालो नीचकरमा बहपरजः । लबधः सवसथोऽलसो दीनः सवकारयष कतोदयमः ।१०।।

मकर लगनम जनम लन वाला बालक नीच करम कर, बहत सनतान हा, लोभी,

सवसथ,आलसी,दीन ओर अपन कारय म उदयम करनवाला होता ह। १

८२

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त लगनचनदरिका

कमभलगनोदय जातशचलचिततोऽतिसौहदः। जातशचलचिततोऽतिसौहदः । परदाररतो नितय मढकायो महासखी ॥११॥ ` मीनलगनोदधवो बालो रतन काञचनपरितः । अतयकामोऽतिरकतशच दीरघकालविचितकः ॥१२॥

कमभ लगन म जनम तो चञचल चिततवाला, अतयनत परिय, नितय पराई सतरीम रत, कोमल शरीरवाला ओर महासखी होता ह । मीनलगन म जनमनवाला बालक रल -सवरण स भरपर, अलप कामना वाला,अतयनत सनही ओर दीरघकाल की बात का चिनतन करनवाला हो।११-१२।

अथ जनमरशिनकमणशणकलम‌ पिशनशचपलो दषटः पापकरमा निराकतिः । परषा वयसन सकतशोरशच परथमाशक ।। १।।

जनम-राशि क परथम नवाशक म जनम तो चगली करनवाला, चञचल बदधिवाला, दषट, पापकरम करनवाला, बरी आकरतिवाला ओर अनय जनो क वयसन म आसकत तथा चोर हो।। १।।

उतयननविभवो भोकता सगरामविगतसपहः । गधरवपमदासकतो दवितीयाश नरो भवत‌ ।॥।२।।

दसर नवाशक म जनम तो एशरयवान‌, भोगी, यदध की इचछा- रहित, गायन करनवाला ओर सवरी म आसकत हो।।२॥

धरमिछः सततवयाधिः सरवसारजञ एव च । सरवजञो दवताभकतसततीयाश च जायत ।।३।।

तीसर नवाशक म जनम लन वाला नर धरमिषठ, निरनतर वयाधि- वाला, समपरण सार को जाननवाला, सरवजञ ओर दवता का भकत हो।३।

चतथशिऽभिजातसत दीकषितो गरभकतिमान‌ । यककिचिद‌ भमिग वसत ततसरव लभत च सः ।॥४।। चौथ नवाशक म जनम तो. वह दीकषित (यजञादिकारक) गर की

भकतिवाला ओर भमि म गड हए धन को परापत करनवाला हो।। ४॥।

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भाषाटीका-सदहिता € ७

सरवलकषणसपननो राजा भवति विशरतः । दीघयरबहपतरशच जायत पञचमाशक ।।५।। सरीनिजितः शभरहीनो बहभाषी नपसकः । अरथधवसः परमादी च षषठाश जायत नरः ।।६।।

पच नवाशक म जनम तो वह दीरघ आयवाला, बहत पतरोवाला सब लकषणो स समपनन तथा परसिदध राजा होता ह। छट नवाशकम जनम तो वह सतरीक वश म रहनवाला, शभ कामो स रहित, वहत बोलन वाला, नपसक, दरवय को नषट करनवाला ओर परमादी होता ह ।५-६।

विकरातो मतिमाजछरः सगरामषवपराजितः । महोतसाही च सतोषी जायत सपतमाशक ।।७।।

सातव नवाशक म जनम लव तो वह बलवान‌, बदधिमान‌, शरवीर, यदध म जीतनवाला, महा उतसाही ओर सनतोषी होता ह।। ७॥।

कतघनो मतसरी कररः कलशभोकता बहतपरजः । फलकालपरितयागी जायत चाषटमाशक ।।८।। करियास कशलो दकषः सपरतापी नितदधियः । भतयशचावषटितो नितय जायत नवरमऽशक ।।€।।

आव नवाशक म जनम तो वह कतघन, ईषयलि, पापी, कलशभोगी, बहत सनतानवाला, फल (कारयसिदधि क) काल को तयागनवाला होता ह। जो जनम-राशि क नव नवाशक म उतपनन हो तो वह करियाओ म कशल, चतर, सनदर, परतापी, जितनधिय ओर भतयो (नौकरो) वाला हो।।८-६।।

अथ गणकलस‌ सनदरो दानशीलशच मतिमान‌ सबलः सदा । अलतपभोगी महापराजञो नरो दवगणोदधवः।। १।।

दवगण म उतपनन होनवाला नर सनदर, दानी, बदधिमान‌, सदा बलवान‌, अलप भोगी ओर महापडित होता ह।। १॥

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<= लगनचनदरिका

` मानी धनी विशालाकषो लकयवधी धनरधरः । गोरः पौरजनाहलादि नरो मरतयगणोदधवः ।।२॥ उनमादी भीषणाकारः सरवदा कलिवललभः । नरो दःखी सदा जातः परमही राकषस गण ।\३॥

मनषयगण म उतपनन होनवाला नर मानी, धनी, विशालनतरो वाला, लकषय (निशाना) बधनवाला, धनरधरी, गौरवरण ओर परजनो को आननद दनवाला होता ह। राकषसगण म जनमन वाला नर उनमादी, भयकर, सदा कलह करनवाला, दःखी ओर परमह रोग वाला होता ह।।२-३।।

अथः गाणडयोगाः आदो मलमघाशिनया तिसः सयरगणडनाडिकाः । जयषठाशलषारवतीनामनत पच च नाडिकाः | १।। मल, मघा, अशविनी इन तीन नकषतरो क आदि की तीन-तीन

घटी गणडात ह ओर जयषटा, आशलषा, रवती इन तीन नकषतरो क अनतय की पोच घटी गणडात ह।। १।

. अथ गणडशयानतिः सनधयारातरिदिवाभाग गणडयोग धव शिशः । आतमान मातर तात विनिहनति यथाकरमम‌ ।।२।। यातराया सयाचचौरभय विवाह मतयरव च । जननीपितरो हनति वदतयव बहसपतिः ।।३।। गणडयोग म उतपनन बालक यदि सधयाकाल, रातरि तथा दिन म

जनम ल तो करम स अपनी माता तथा पिता का नाश कर अरथात‌ यदि सायकाल को गणडयोग म बालक पदा हो तो अपन शरीर को, रातरिम पदा हो तो माता को, दिन म पदा हो तो पिता को नाश करता ह। इस गणड योग म यातरा करन स चोर का भय हो, विवाह म मतय हो ओर एस ही बहसपति कहत ह कि माता-पिता का नाश कर।। २-३॥

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भाषाटीका-सदिता | ६ €

गणडऽरिषट चदन च कषट गोरोचन तथा । घतन मिभरित कतवा चतरभिः कलशसततः ।।४॥। सहसरशीषमिनतरण बालक सनापयदबधः । पितरयकत दिवाजात मातयकत च रातरिजम‌ ।।५॥। सनापयपिितरमातरभया सनधययोरभयोरपि । कासयपातर धतः परण ददयादरणडोपशातय ।।६।। कषणा धन सवरण च गरहजापय च कारयत‌ । आशलषाया च मलऽपि *' शातिरव विधीयत ।।७।। यदि गणडयोग म बालक उतपनन हो अथवा यातरा आदि कर तो

उसकी शाति यह ह कि अरिषट (नीम), चनदन, कट, गोरोचन इनम

घत मिलाकर चार कलशो म रकख। फिर पणडित बालक को 'सहसर-

शीरषा परषः' इतयादि वदिक मनतरो स सनान कराव। यदि तीन दिन

म बालक पदा हआ हो तो पिता सहित, रातरि म हो तो माता-समत

सनान कराव ओर यदि दोनो सधया (परातः-साय) म उतपनन हो तो

माता-पिता दोनो क सहित बालक को सनान कराव ओर गणड की

शाति क निमितत घत स परण कसयपातर का दान कर। कषणा गौ ओर

सवरण दान कर ओर गरह का जप कराव। इसी परकार आशलषा तथा

मल नकषतर म उतपनन हए बालक की भी शाति कटी ह ।। ४-७॥

अथ रवयादीना सकरगतकलम‌ महाधनी महोगरशच तदगसथ भासकर नरः । सभषणो महाभोगी धनी तदध निशाकर ।। १॥। उचच भोम सपतरशच तजसवी गरवितो नरः । मधावी दढवाकयशच बलाढयशच बध भवत‌ ।॥२॥)

जिसक सरय उचच का हो वह मनषय महाधनी तथा महा उगर हो ओर

शलादिनिसतरलारिपरिकारोहरतजितासणौ -धिविफधाराटीकाया गिलोकयः/

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=© लगनचनदरिका

चनदरमा उचका हो तो सनदर आभषणोवाला,भोगी तथा धनी त ङ सनदर आभषणोवाला,भोगी तथा धनी हौ | मन उचचका हो तो सनदर पतरोवाला,तजसवी ओर अभिमानी हो। बध उ ¦ का हो तो बदधिमान‌, दढ वाकयवाला ओर बलाढय होता ह।१- २।

राजपजयशच विखयातो विदरानारयो गरौ नरः । सवोचच शकर विलासी च हासयगीतादिसयतः ।।३॥ सवोचचग रविपतर च चकरवरती धनी भवत‌ । राजलबधनियोगशच राहः शनिसमो मतः ।॥४॥ `

बहसपति उचच का हो तो राजपजय, विखयात, विदवान‌ ओर शरषटजन हो। शकर उचच का हो तो विलास (भोग) हासय तथा गीत आदिक म लगा रहता ह। शनि उचच का हो तो चकरवरती राजा, धनी या राजास लबध अधिकारवाला हो,राहका फल शनिक समान ही होता ह।३-४।

जथ सरलकरिकोणगातगरहकलस‌ धनी सखी कारयविजञो रवौ मलतरिकोणग । चनदर धनी सभोकता च भोम शरोऽदयः खलः ।। १।।

सरय मलतरिकोण म हो तो धनी, सखी ओर कारय को जाननवाला हो। चनदरमा मलतरिकोण म हो तो धनी ओर भोगी हो। मगल हो तो शरवीर, निरदयी तथा दषट हो।। १॥

बध तरिकोण विजञशच विनोदी विजयी नरः । गरौ रामपरादीना मठसय च पतिरभवत‌ ।।२॥

बध मलतरिकोण म हो तो पडित, आननदयकत ओर विजयी मनषय हो। बहसपति हो तो गराम, पर ओर मठ आदि का अधिपति हो। २॥

शकर तरिकोण सजञशचसखयकतो महततमः । मद नरो धनः परणो महाशरः कलधरः ।।३।।

- धराः ॥ मलतरिकोणानिरविगलोभोमनञजयशकरसोरीणाम‌।। ४।।

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भाषाटीका-सदहिता ,७ १

शकर तरिकोण म हो तो पडित, सखयकत, महान‌ ओर उततम जन हो। शनि मलतरिकोण म हो तो धनो स परिपरण, महा शरवीर ओर कल‌ को बढानवाला होता ह । सिह, वष, मष, कनया, धन, तला, कमभ राशि म सरय, चनदर, मगल, बध, बहसपति, शकर तथा शनि इन गरहो की यथाकरम स मलतरिकोण राशि कठलाती ह।। ३-४॥

अथा सवगहसथगरलकलम‌ सवगहसथ रवौ लोक महोगरशच महोदयमी । चनदर धरमरतः साधरमनसवी रपवानपि ।। १।।

सरय अपन घर म बठा हो तो लोक म वह उगर ओर महाउदयमी हो। चनदरमा हो तो धरम म रत, साध, मनसवी तथा रपवान‌ हो ।। १।।

सवगहसथ कज मललो धनवानपराजितः बध नानाकलाभिजञः पडितो धनवाञनरः ।।२।। धनी कावयशरतिजञशच सचषटः सवगह गरौ । सफीतः कषीबलः शकर शनौ मानयः खलो नरः ।\३।। मगल अपन घर म हो तो मलल, धनवान‌ ओर अपराजित (नही

हारनवाला) हो। बध हो तो अनक कला जाननवाला, धनवान‌ तथा पणडित हो। वहसपति अपन घर म हो तो धनी, कवि, वदवतता ओर सनदर चषटावाला हो । शकर हो तो उजजवल सवरपवाला, कषीवल (खती करनवाला) हो। शनि हो तो मानय तथा दषटजन होता ह ।। २-३॥

अथ गिकगहसथगहफलम‌ सरय मितरगह खयातः शरजञः सथिरसोहदः। चनदर नरो भागययकतशचतरो धनवानपि ।।१॥

सरय मितरक घर म हो तो परसिदध शासवजञ ओर सथिर मितरवाला

हो। चनदरमा हो तो भागययकत, चतर तथा धनवान‌ हो।। १।।

भोम शसतरोपजीवी च बध रपधनागवितः । गरौ भितरगह पजयः सता सतकरमसयतः ।।२॥।

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७२ लगनचनदरिका

शकर मितरगह लोक धनी वधजनपरियः। ` शनौ पराचरभोगी च ककरमनिरतो नरः ।।३।।

मगल हो तो शसतर की आजीविका वाला, बध हो तो रप धन स यकत, बहसपति मितर क घरम हो तो शरखजनो का पजय ओर शभकरम करनवाला हो। शकर मितरक घरमहो तो लोक म धनी तथा बनध का परिय हो,शनि मितर क घरम हो तो पराय अनन का भोजन करनवाला ओर ककरमी हो।। २-३।।

` अथः शकरगढसथगडकलस‌ सरय रिपगह निःसवो विषयः पीडितो नरः । चनदर हदयरोगी च भौम जायाजडोऽधनः ॥। १॥। बध रिपगह मरखो वागधनी दःखपीडितः । जीवऽरिभ नरः कलीबो नापतवततिरबभकषितः ।। २॥। सरय शतर क घरम हो तो दरिदर ओर विषयो स पीडितजन

हो। चनदरमा हो तो हदय म रोगवाला ओर मगल हो तो मरख सरीवाला तथा निरधन हो। बध शतर क घर म हो तो मरख, बातो स टी धनवाला ओर दःखी हो। बहसपति शतर क घर म हो तो नपसक, आजीविका स हीन ओर बभकषित हो।। १-२॥

शकर शतगह भतयः कबदधरदःखितो नरः । शनौ वयाधयरथशोकन सतपतो मलिनो भवत‌ ।। २।। शकर शत क घर म हो तो भतय, कबदधि तथा दःखी हो। शनि

हो तो बीमारी ओर धन क शोक स दःखी तथा मलिन हो।। ३।। सथा नीचगरढसथगहकलस

नीच सरय भवतरषयो बधभिरवरजितो नरः । चनदर रोगी सवलपपणयो दरभगो नीचराशिग ।। १।।

सरय नीचका हो तो सवा करनवाला ओर भाइयोस तयागा हआ रह। चनदरमा नीच राशिका हो तो रोगी, सवलप पणयवाला ओर कगाल हो।१।

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भाषाटोका-सदिता ५७३

नीच भौम भवननीचः कससितो वयसनातरः । बध शचदरो बधवरी गरौ दीनो मलानवितः ।।२।। शकर नीच नषटदारः सवततरः शीलवरजितः । शनो काणो दरिदरशच गताचारोऽतिगरहितः ।\३।।

मगल नीच का हो तो नीच, कतसित तथा वयसनी हो। बध हो तो तचछ ओर बनधजनो स वर करनवाला हो। बहसपति हो तो सदा दीन ओर मलिन रह। शकर नीच का हो तो उसकी सतरी मर ओर वह शीलरहित होकर सवतनतर विचर। शनि नीच काहो तो

काना, दरखर, आचार रहित तथा अतयनत निनदित हो ।।२-३॥ इति परथमः परिचछदः //? ॥/

गथ दवितीय परिचछदः ८८२८८ तज लगनदिदगदशणभ7कसथरगकिकलस‌

लगन सरयऽतितीरशच चचलातमा समरातरः । नतररोगी पीडितागो जायत चारणाकतिः ।\ १।।

सरय धन विवादी च बहशतशच निरधनः ।

परापवादी सरयशच कतघनशच नरो भवत‌ ।\२।। लगन म सरय हो तो अतयनत तज सवभाववाला, चञचल मनवाला,

कामदव स पीडित, नतररोगी, पीडित शरीरवाला ओर लाल रगकी

आकरतिवाला होता ह । दसर घरम सरय हो तो विवादी, बहत शतरओ -

वाला निरधन,ओरोस विवाद करनवाला ओर कतघन होता ह ।१-२।

ततीयग दिवानाथ परसिदधो रोगवरजितः ।

भपतिशच दयालशच सशीलः स भवननरः ।॥३।

सरय चतरथ दरबदधिः कशागः सखवजितः ।

अपरभावो निषठरशच दषटसगी भवननरः ।।४।।

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७४ लगनचनदरिका

तीसर घर म सरय हो तो परसिदध, रोगरहितः, राजा, दयाल ता सः सवभाववाला होता ह। चौथ घर म सरय हो तो दषट बदधिवाला, कशाग, सखरहित, परभावरदित, कठोर तथा दषटजनोकी सगति म रह।३-४।

पञचमऽरक कोपयकतो करपः शीलवरजितः । कसगलबधवततिशच गतमासशच जायत ।।५॥। षण सरय गतारिशच खयातमानः सखी शचिः । शरोऽनरागी भपालसममतशच भवननरः ।।६।।

हि

पाचव घर म सरय हो तो करोधयकत, करप, शीलरहित ओर ` दरबल होता ह। छठ घर म सरय हो तो शतरहित, विखयात, सखी, पवितर, शरवीर, अनरागी ओर राजा का मानय होता ह।।५-६।

सपतमऽक कदारशच दषटपरीतोऽलपपतरकः । गहयरोगी सपापशच जातको हि परजायत ।\७।। अषटमसथ दिवानाथ कतघनो हीनमानसः । शबजदगधो वथागामी बनधहीनशच जायत ।।८।।

सातव घर म सरय हो तो कससित सरीवाला, दषट स परीति करन वाला, अलप पतरवाला, गदा क रोगवाला ओर पापी होता ह।। ७॥ आठव घर म सरय हो तो कतघन, हीन मनवाला, शतरओ दवारा दगध किया हआ, वथा गमन करनवाला ओर बधओ स हीन होता ह।।८॥।

नवमसथ रवौ जातः क करमी भागयवरजितः। विदयाविवकहीनशच कशीलशच परजायत ।। ६।। दशमऽक बनधहीनः ककरमा शीलवरजितः । सरीचञचलो हीनतजा हीनकोशशच जायत ।। ९०।।

नव म सरय हो तो ककरमी, भागयहीन, विदया-विवकहीन ओर दषट सवभाववाला हो। दशव घर म सरय हो तो बनधओ स हीन, ककरमी, शीलरदित, सरियो म चचल, तजहीन ओर दरवयहीन होता ह ६-१०।

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भाषाटीका-सदिता ५७५

लाभ सरय समतपननो नानालाभसमनवितः । साचविको धारमिको मानी रपवानपि जायत ।। ११॥।

गयारहव घर म सरय हो तो जनम लन वाला बालक अनक लाभ

स सयकत' सतवगणी, धारमिक, मानी ओर रपवान‌ होता ह।।११॥

वयय सरय नरो रोगी सततवहीनो वथाटनः । असदययी पतरदारभकतिहीनशच जायत ।।१२।।

बारहव घर म सरय हो तो रोगी, बलहीन, वथा गमन करन- वाला, वथा खरच करनवाला ओर भकतिहीन होता ह।। १२॥

अथ लरनाादिदरि7ददयभ7कसथचनदफलम‌

लगन चनदर जडः शदधः परसननो धनपरितः । सरीवललभो धारमिकशच कतघनशच नरो भवत‌ ।। १॥।

लगन म चनदरमा हो तो जड, शदध, परसनन, धन स परण, सतरी का

पयारा, धारमिक ओर कतघन होता ह।।१।।

धन चनदर धनः परणो नपपजयो गणानवितः । शासतरानरागी सभगो जनपरीतिशच जायत ।॥२।।

धन सथान म चनदरमा हो तो धन स परिपरण, राजा स पजय, गण-

यकत, शासतरानरागी ओर सनदर जनो स परीति करनवाला हो| २॥

ततीयसथ निशानाथ धनविदयादिभिरयतः ।

कफाधिकः कायकशच वशमखयोऽपि जायत ।।२।। तीसर घर म चनदरमा हो तो धन ओर विदयादि स यकत, अधिक

कफवाला, कामी ओर वश म मखय होता ह ।।३॥

चतरथसथ निशानाथ पतरदारसमनवितः ।

धनी सखी यशसवी च विदयावानपि स समतः ।।४।। चौय घर म चनदरमा हो तो पराणी पतर ओर सतरी स यकत. होकर

धनी, सखी, यशसवी तथा विदयावान‌ होता ह।।४।।

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९७६ लगनचनदरिका

सत चनर सताढयशच रोगी कामी भयानकः । = कतरिमः पौरषरयकतो विनयी च भवगनरः ।।५।। षठ चनदर विततहीनो मदकायोऽतिलालसः । मनदागनिसतीकषणदषटिशच पापवदधिभविननरः ।।६।

पोचव घर म चनदरमा हो तो पतरयकत, रोगी, कामी, भयानक, कतरिम परषारथो स यकत ओर विनयवाला मनषय होता ह। छठ घर म चनदरमा हो तो धनहीन, कोमल शरीरवाला, अतयनत लालची, मनदागनिवाला, तीकषण दषटिवाला ओर पापबदधिवाला हो।। ५-६॥

चनदर च सपतम जातो दःखी कषठी च वञचकः । कपणो बहवरी च जायत परदारिकः ।७।।

सातव घर म चनदरमा हो तो दःखी, कषठ रोगी, ठग, कपण, बहत शतरओवाला ओर पराई सतरी स रमण करनवाला हो।।७॥

अषटम तारकानाथ दीनोऽलपायः सकषटकः । परगलभशच कशागशच पापबदधिभविननरः ।॥८।।

आयव घर म चनदरमा हो तो दीन (गरीब), अलप आयवाला, दःखी, परगलभ (ढीठ), दबला ओर पाप बदधिवाला हो।|८।।

धरम चनदर चारकातिः सवधरमनिरतः सदा । वीतरोगः सता शलाघयः पापहीनशच जायत ।। ६।।

नव घर म चनदरमा हो तो उततम कानतिवाला, सदा अपन धरम म रत, रोगरहित, शररजनो स शलाधय ओर पापहीन होता ड।। €।

करमसथान सधारशमौ बहभागयो महाधनी । मनसवी च मनोजञशच राजमानयशच जायत ।। १०॥। लाभ चनदर लाभयकतः परगलभः सभगो नरः । समारगगामीलजालः परतापी भागयवान‌ भवत‌ ।। ११।। वयय चनदर पापबदधिरबहभकषी पराजितः । कलाधमो मदयपशच विकारी जातको भवत‌ ।। १२।।

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भाषाटीका-सदिता ७७

दशव घर म चनदरमा हो तो बहत भागयवाला, महाधनी, मनसवी,

मनोहर तथा राजमानय हो ! गयारहव घर म चनदरमा हो तो लाभ

यकत, परगलभ (टीट), एशरयवान‌, समारगगामी, लजरावाला, परतापी

ओर भागयवान‌ होता ह। बारदव घर म चनदरमा हो तो पाप

बदधिवाला, बहत खानवाला, हारनवाला, कल म अधम, मदिरा

पीनवाला ओर विकारवान‌ होता ह।। १०-१२॥।

अयः लगनादिवदशयभ7कलशकरजणफलम‌ भौम लगन करपशच रोगी बनधविवजितः । असतयवादी निररवयो जायत परदारिकः ।। १।। धन कज धनरहीनः करियाहीनशच जायत । दीरघसतरी सतयवादी पतरवानपि मानवः ।।२॥।

मगल लगन म हो तो करप, रोगी, बधहीन, नठ बोलनवाला, निरधन

ओर अनय सरी स रमण करनवाला हो । धनसथान म मगल हो तो धन -

हीन करियाहीन, दीरधसतरी,सतय बोलनवाला ओर पतरवान‌ हो ।१-२।

ततीयग कज जातः परतापी शीलसयतः ।

रण शरो राजमानयो भविखयातशच जायत ।\३॥। चतरथ भसत कषणः पितताधिकयोऽरिनिरजितः ।

` वथाटनो हीनपतरो_ महाकामी च जायत ।४।। तीसर घर म मगल हो तो परतापी, शीलयकत, यदध म शर, वीर,

राजमानय ओर पथवीपर विखयात होता ह। चौथ घर म मगल

हो तो काल वरणवाला, अधिक पिततवाला, शतरओ स हारा हआ,

वथा गमन करनवाला, पतरहीन ओर महाकामी होता ह।।३-४।।

पञचमसथ धरासनौ कसतानः सदारजः ।

बनधवरग विरकतशच नरो बदधिविवरजितः।॥।५॥।

घ भौम शतहीनो नानारथः परिपरितः।

सरीलालसः पषटदहः शभचिततशच जायत ।।६।।

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७ लगनचनदिका

रपौचत घर म मगल हौ तौ दषट सनतानवाला, सदा रोगी बनधज दषट सनतानवाला, सदा रोगी, बनधजन स विरकत तथा बदधिरहित होता ह। छठ घर म मगल हो तो शतर रहित, अनक धनो स परिपरित, सतरी की लालसावाला, पषट शरीरवाला ओर शभ चिततवाला होता ह।। ५-६।।

सपतम भमिपतर च रधिराकतोऽपि कोपवान‌ । नीचसवी वञचकशच निरगणोऽपि भवननरः ।।७।।

मगल सातव घर म हो तो मनषय रधिर स भरा हआ, करोधी, नीच जनो की सवा करनवाला, ठग ओर निरगण होता ह।।७॥

अषटम मगल कषटी सवलपायः शबरपीडितः । अलपदरवयः सरोगशच निरगणोऽपि हि जायत ।।८।।

आव घर म मगल हो तो कषटी, सवलप आयवाला, शतर स पीडित, अलप दरवय -वाला, रोगी ओर निरगण होता ह।। ८।।

धरमसथ धरणीपतर ककरमा गतपोरषः । नीचानरागी कररशच सकषशच परजायत ।। € ।।

नव घर म मगल हो तो ककरमी, परषारथ-रहित, नीच जनो का सनही, करर ओर कषट सहित रहता ह।।६॥।

करमभाव महीपतर शभकरमा शभानवितः । सपतरी सयातसखी शरो गरविषठोऽपि भवननरः ।। १०।। दसव घर म मगल हो तो शभ करमवाला, आननदयकत, सनदर

पतरोवाला, सखी, शरवीर ओर अभिमानी हो।। १०।। लाभ भोम भरिलाभौ नानापकवाननभकषकः । नजरोगी भषमानयो दवदविजरतो नरः । ११।।

गयारहव घर म मगल हो तो बहत लाभ हो, अनक परकार क पकवाननो का भकषण कर, तथा नतर-रोगी, राजमानय, दवता ओर बराहमण की भकतिवाला हो।।११॥

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भाषाटोका-सदिता ~

असदययी वयय भौम नासतिको निषटरः शठः । बहवरी विदश च सदा गचछति मानवः ॥।१२॥

बारहव घर म मगल हो तो बर काम म दरवय खरच करनवाला, नासतिक,कटठोर, मरख, बहतोका वरी ओर सदा परदश गमन कर ।१२।

अथः लगनरदिदरदसणभकलथकगकषकलम‌

लगन बध च गीतजञो निषपापो भपपजितः । रपजञानयशोयकतः परगलभो मानवो भवत‌ ।। १।।

लगन म बध हो तो गायक विदया जाननवाला, पाप-रहित, राजा

स पजित, रपवान‌ ओर यश स यकत ओर परगलभ होता ह ।। १।।

धनभाव चनदरपतर धनधानयादिपरितः। शभकरमा सखी नितय राजपजयशच जायत ।\२।।

दसर घर म बध हो तो धन-धानय स भरपर, शभ करम करन-

वाला, नितय सखी ओर राज-पजय होता ह।।२॥

ततीयसथ बध जातः परशसतो बनधमानितः । धरमधवजी यशसवी च गरदवारचको भवत‌ ।।३।।

तीसर घर म बध हो तो शरटजन, बनधओ स मानय, धरम

की, धवजा रप, यशसवी, गर ओर दवता का पजक हो।।३॥

चतरथ चनदरतर च बहभतययशोऽनवितः। पटवाकयो भागययकतः सतयवादी च जायत ॥४।।

चौथ घर म बध हो तो बहत भतयोवाला, यश यकत, अचछा

बोलनवाला, भागय यकत तथा सतय बोलनवाला हो ।। ४॥।

पञचम रोहिणीपतर पतरपोतरसमनवितः ।

सबदधिः सततवसमपननः सखी भवति मानवः ।९।॥। पोचरव घर म बध हो तो पतर-पौतरादिको स यकत, सनदर

बदधिवाला, बलयकत ओर सखी मनषय हो॥। ५।।.

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षषठ बध नशसशच विरोधी सरवबनधष । ईपयाधिकः कामपरो विदवानपि भवननरः ।।६।। सपतमसथ सोमयतर रपविदयाधिको नरः । सशीलः कामशासतरजञो नारीमानयशच जायत ।। ७।॥

छठ घर म बध हो तो जनम लनवाला बालक करर, सव बनधओ का विरोधी, अधिक ईषयवाला, काम म ततपर ओर विदवान‌ हो । सातव घरम बध हो तो अधिक रप ओर अधिक विदयावाला, सनदर बलवाला, कामशासतर को जाननवाला तथा सरियो स मानय होता ह।६-७।

बधऽषटम कतघनशच कबदधिः परदारिकः । कामातरोऽसतयवादी रोगयकतो .भवखचरः ।।८॥

आव घर म बध हो तो कतघन, वबदधि, पराई सतरी स रमण करनवाला, कामातर, असतय बोलनवाला ओर रोगी होता ह।८।

धरम बध धारमिकशच कपारामादिकारकः । सतयवादी च दातशच जायत पितवतसलः ।। ६॥। दशमसथ बधजातो धनधानययशोऽनवितः । बहभागयशच विजयी कानतियकतशच मानवः ।। १०।।

नव सथान म बधहो तो धारमिक, वापी ओर बाग आदि का बनानवाला, सतय _बोलनवाला, दानत (जितनधिय) ओर पिता का परिय होता ह। दसव घर म बध हो तो मनषय धन-धानय ओर यश स म भागयवान‌, विजयी ओर कानतियकत होता ह। ६-१०।

बध नितयलाभो नीरोगशच सदा सखी । जनानरागवततिशच कीरतिमानपि जायत ।॥। ११॥

गयारहव घर म बध हो तो नितय लाभवान‌, रोगरहित ओर सदा सखी रह, मनषयो म सह रकव ओर कीरतिमान‌ हो ।।११॥।

बध वयय वययी लोक रोगी बनधसमनवितः। पापासकतः पराधीनः परपकषी च जायत ॥॥ १२।।

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भाषाटोका-सदिता ८९

बारहव घर म बध हो तो ससार म दरवय खरच करन वाला, रोगी, बनधजनो स यकत हो, पाप म आसकत रह, पराधीन ओर शत का पकष गरहण करनवाला हो।। १२॥

अथा लरनदिवणदसयशकलथयरकलम‌ लगन गरौ सशीलशच परगलभो रपवानपि । नपाभीषटशच नीरोगो जञानी सौमयशच जायत ।। १॥।

लगन म बहसपति हो तो सनदर शीलवाला, ढीठ, रपवान‌, ` राजा स मानय, रोगरहित, जञानी ओर सौमय जन होता ह।। १॥

धन जीवो धनी लोकः कतजञो बनधसयतः । गजाशवमहिषीयकतः कातिमानपि जायत ।\२॥। जीव तरतीय तजसवी करमदकषो जितनदरियः । मितरापतसखसपचनसतीरथयातरापरियो भवत‌ ।\३।।

दसर घर म बहसपति हो तो धनी, कतजञ, बनधजनो स यकत, हाथी-घोड ओर भस स यकत तथा कानतिमान‌ होता ह। तीसर घर म बहसपति हो तो तजसवी, काम म चतर, जितदधिय, मितर स परापत सख स समपनन ओर तीरथयातरा म परीतिवाला होता ह।।२-३॥

सख जीव सखी. लोक सभगो राजपजितः । विजितारिः कलाधयकषो गरभकतशच जायत ।।४। सत जीव सतरयकतो धारमिकः पणडितः सखी । शभचता दयायकतो विनयी च भवननरः ।।५।।

चौथ घर म बहसपति हो तो ससार म सखी, फशरयवान‌, राजास मानय, शतरओ को जीतनवाला, कल का पति ओर गर कीभकतिवाला

होता ह, पाच घरम बहसपति हो तो पतरादिक स यकत,धारमिक, । पणडित,सखी,शदध चिततवाला,दयायकत ओर विनयी होताह। ४-५।

षषठ गरौ विषनयकतो बहशबशच निषटरः । उदवगी मतिहीनशच कामको जायत नरः ।॥६।।

&

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= लगनचनदरिका

च घर म च घर म बहसपति हौ तो विषनयकत, बहत शतरमओास हो तो विषनयकत, बहत शतरओवाला कठोर, उदवगी, बदधिहीन ओर कामी होता ह।।६।। |

सपतमसथ सराचारय कामचिततो महाबलः । धनी दाता परगलभशच चितरकरमा परजायत | ७।॥

सातव घर म बहसपति हो तो कामी, महाबली, धनी, दानी, परगलभ (ढीठ) ओर विचितर करम करनवाला होता ह।।७॥

जीवऽषटम सदा रोगी कपणः शोकसयतः । बहवरी ककरमा च करपशच भवननरः ।।८॥ धरम जीव धरमकरता साधसगी च शासतरवित‌ । विनयी तीरथसवी च बरहमजञशच स जायत ।।६।

आठव घर म बहसपति हो तो सदा रोगी, कपण, शोक सयकत, बहतो का वरी ओर करप होव। नव घर म बहसपति हो तो साधओ का सगी, शासरको जाननवाला, विनयी, तीरथसवी व बरहमवतता होता ह।८-६।

करमभावगत जीव पणयकीरतिसखानवितः । राजतलयः सरपशच दयालजायत नरः ।।१०॥

दसव घर म बहसपति हो तो पणय, कीरति, सख-इनस यकत, राजा क समान सनदर रपवाला ओर दयाल होता ह।। १०॥

लाभ गरौ विवकी सयादधसतयशचादिधनरयतः । अलोलपः सरपशच गणवानपि जायत ॥ ११।।

गयारहव घर म बहसपति हो तो जञानी, हाथी-घोड आदि स यकत, वषणा स रहित, सनदर रपवाला ओर गणवान‌ हो ।।११॥।

वयय बरहसयतो रोगी वयसनी परधरमकत‌ । बनधवरी नीचसवी गरदषी च जायत ॥ १२।।

बारह घर म बरहसपति हो तो रोगी, वयसनी हो, सदा पराय धरम को मान, बनधओ स वर कर, नीच-सवी ओर गर का दषी हो । १२।

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भाषाटोका-सदिता ८३

सगथ लरन7दिदगदडणशणकसथटयकरफलस‌ लगन शकर सशीलशच वततिमानपि सनदरः । शचिरविदान‌ मनोजञशच धारमिकशच भवननरः ।।१।।

लगन म शकर हो तो सनदर शील सवभाववाला, अचछी वततिवाला, सनदर, पवितर, विदवान‌, मनोहर ओर धारमिक होता ह।। १॥

धन शकर धनी विदरानबनधमानयो नपारचितः । यशसवी गरभकतशच कतजञशच भवननरः ।।२।।

दसर घर म शकर हो तो धनी, विदवान‌ वधओ स मानय,राजा स पजित, यशसवी, गर का भकत ओर कतजञ हो।।२।।

भागवि सहज जातो धनधानयसतानवितः । नीरोगी राजमानयशच परतापी च परजायत ।1३1।

तीसर घर म शकर हो तो धन-धानय ओर पतर स यकत, रोग-

रहित, राजमानय ओर परतापी होता ह।।३॥

सख शकर सखी विजञो बहभारयो धनानवितः । गरामाधिपो यशसवी सयादिवकी च भवननरः ।।४।।

चौथ घर म शकर हो तो सखी, पणडित, बहत सिरयोवाला, धन

स यकत, गराम का अधिपति, यशसवी ओर विवकी हो।।४।

सत शकर समदधशच सरपोऽपि सदा नरः । पतरकनयापौतरयतः सभगोऽपि भवननरः ॥५।।

पचव घर म शकर हो तो समदधिवान‌, सनदर रपवान‌ ओर पतर-

पौतरादिको स यकत तथा बहत पशवरयवान‌ हो| ५॥।

षठ शकरो भवदमभी जाङयहानिभयानवितः । दःसङगी कलही तातदवषी चव सदा नरः ।।६॥।

छठ घर म शकर हो तो पाखडी, मरख, निरभय, दषट जनो की

सगतिवाला, कलहकारी ओर पिता स वर करनवाला हो।। ६॥

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८४ लगनचददरिका

सपतम भगपतर सयादधनी दिवयागनायतः । नीरोगः सखसमपननो बहभागयशच जायत ।।७॥।

सातव घर म शकर हो तो धनी, दिवय सतरी स सयकत, रोगरहित, । सखसपनन तथा बहत भागयवान‌ हो || ७।॥

अषटमसथ दतयपजय सरोगः कलहपरियः वथाटनो कारयहीनो जनाना च परियो मतः ।।८॥

आखव घर म शकर हो तो रोगी, कलह म परीति करनवाला, वथा . गमनशील, कारयहीन ओर सब जनो का परिय हो| ८॥

धरम शकर धरमपरणो जञानवदधः सखी धनी । नरनरमानयो विजयी नराणा च परियः सदा ।।€।।

नव घर म शकर हो तो धरम स परिपरण, जञान म बढा हआ, सखी, धनी, राजा स मानय, विजयी ओर मनषयो को सदा परिय रह।। ६॥

करमसथित भगोः पतर सकरमा निधिरतनवान‌ । राजसवी धारमिकशच जायत दयितापरियः ।।१०।।

दसव घर म शकर हो तो सनदर करम करनवाला, खजाना तथा रतनोवाला, राजसवी, धारमिक ओर सरी का परिय हो।|१०॥

लाभ शकर सदा लाभो यशःसतयगणानवितः । धनी भोगी करियाशदधो जायत मानवोततमः ।।११।।

गयारहव घर म शकर हो तो सदा लाभ हो, यश, रतन ओर गण स यकत धनी, भोगी, शदध करियावाला ओर उततम मनषय हो ।। ११

वयय शकर वययाढयशच गरमितरविरोधवान‌ । मिथयावादी बनधवरग गणहीनोऽपि जायत ।। १२।।

बारहव घर म शकर हो तो खरचीला, गर, मितर स विरोध करन- वाला, चलठ बोलनवाला ओर बनधजनो म गणदीन हो ।\१२॥।

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भाषाटीका-सदिता ८५८

गथा लगनारदिवमदलयभ7कतथटयनिकलस‌ लगन शनौ सदा रोगी करपः कपणो नरः । कशीलः पापबदधिशच जडशच भवति धवम‌ ।। १।।

यदि लगन म शनि हो तो सदा रोगी, करप, कपण, कशील, पाप बदधिवाला ओर मरख हो।१।

धन मनद धनरहीनो वातपिततकफातरः । दहासथिपिततरोगशच गणः सवलपोऽपि जायत ।।२।।

दसर घर म शनि हो तो धनहीन, वात-पितत-कफ स पीडित,

दह म असथि-रोगी, पितत-रोगी ओर सवतपगणी होता ह।।२॥।

छायातमज ततीयसथ परसननो गणवतसलः । शबमरदी नणा मानयो धनी शरशच जायत ।।३।।

तीसर घर म शनि हो तो परसनन, शतरओ का नाशक, मनषयो

का मानय, धनी ओर शरवीर हो।।३॥

सख मनद सचरहानो हतारथो बानधवरनरः । गणसवभावो दःसङगी कजनशच न सशयः ।४।।

चौथ घर म शनि हो तो सखहीन, बनधजनो स अपहत धन

वाला अरथात‌ उसक भाई धन को हर ल, गणी सवभाववाला ओर

दटजनो क सगवाला हो।।४॥

पतर मनद पतरहीनः करियाकीरतिविवरजितः । हीनकोशो विरपशच मानवो भवति धवम‌ ।\५।।

शबरभावसथित मनद शवहीनो महाधनी ।

पशपतरयशोयकतो निरोगी जायत नरः ॥॥६।। पौच घर म शनि हो तो पतरहीन, करिया -कीरतिहीन, दरवयहीन

ओर बर रपवाला हो । छठ घर म शनि हो तो शतरहीन, महाधनी,

पश, पतर तथा यशयकत ओर रोगरहित हो ।। ५-६॥।

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( लगनचनदरिकाः

बलतरसथ मितरपतर सकलतरो रजानवितः ।

बहशबरविवरणशच कशशच मलिनो भवत‌ ।॥॥७।॥ , सातव घर म शनि हो तो सतरी सहित रोगी रह, उसक बहत ।

शतर रह, वह बरा वरण, दरबल ओर मलीन _हो।।७॥

रोधातरोऽषटम मनद दरिदरो बहरोगवान‌ । मिथयाविवादकरता सयादवातरोगी भवननरः ।।८॥

आसव शनि हो तो करोधातर, दरि, बहत रोगवाला, ठ

विवाद करन वाला ओर वातरोगी हो।। ८

धरत मनद धरमहीनो विवकी च रिपोरवशः ।

नशसो जायत लोक परदाररतः सदा ।।€॥ नव घर म शनि हो तो धरमहीन, जञानी, शतर क वशीभत,

करर ओर पराई सतरी स सरवदा रमण करनवाला हो।। € ॥।

करमभाव सरयपतर ककरमा धनवरजितः । दयासतयगणरहीनशचचलोऽपि भवतसदा ।।१०।।

दसव घर म शनि हो तो ककरमी, धनहीन, दया, सतय ओर

गणहीन हो तथा चचल रह।। १०॥

छायातमज त लाभसथ सरवविदयाविशारदः । खरोषटमहिषः परणो राजमानयोऽशचिभवित‌ ।।११।।

गयारहव घर म शनि हो तो सब विदयाओ म निपण, गध, ऊट, भस इतयादि स परण, राजा का मानय ओर अपवितर रह।।११॥

असदयी वयय मनद कतघनो विततवरजितः । बनधवरी कवषः सयाचचचलशच सदा नरः ।।१२॥

बारहव घर म शनि हो तो वथा खरच कर, कतघन, धनहीन, बनधओ का वरी, कवशधारी व सरवदा चञचल रह। राह-कत का

फल भी शनि क समान ही होता ह।। १२।।

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भाषाटीका-सडिला |

अथ ततीयपरि चछदः ।। ३।। ततव नरचकरस‌

लिखितवा नरचकर च सरयो यतर वयवसथितः। तननकषतरादिक कतवा तय ददयाञच मसतक ।। १।। वदन च तरय ददयादकक सकनधयोरदयोः । बाहदयय तथकक पाणयोरककमव च ।।२।।

मनषय क आकार का चकर लिखकर जहा सरय सथित हो- उस

नकषतर को आदि म रखकर तीन नकषतर मसतक पर धर। तीन नकषतर

मख पर धर, दोनो कनधो पर एक-एक नकषतर, दोनो भजाओ पर एक-

एक नकषतर ओर दोनो हाथो म एक-एक नकषतर धर ।। १-२॥

कषादि हदय पच नाभो सयादकमव हि ।

ऋकष ` गहय भवदकमकक जाननोरदयोः । ३।।

नकषतराणि षडनयानि निदधयातपादयोरबधः ।

रयनकषतरतो जनमनकषतरावधि गणयत |) ४।।

हदय पर पच नकषतर, नाभि पर एक ही नकषतर धर'गदा पर एक

२ नकषतर धर, दोनो घटनो पर एक-एक धर। फिर बाकी छः नकषतरो को परो

` स धर द ओर पीछ सरय क नकषतर स जनम क नकषतर तक गिन। ३-४।

| अथः रकिचकरम‌

मसतकसथ च नकषतर पदटवधी भवननरः ।

मख मिषटाननभोकता सयातसकनधभ गजवाहनः ।। १।।

मसतक पर सथित नकषतर म हो तो पटवधी (चपरास बोधन

„ आदि राजसवा म नियकत), मख म आव तौ मिषठानन भोजन कर,

। दोनो कनधो पर आव तौ हाथी की सवारी कर।।१॥

वाहोरम बलवानमरतयः पाणिभ तसकरो भवत‌ ।

हदय चशवरो जातो नाभौ सवलपन तोषितः ।२।।

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ऋ लगनचनदरिका ।

भजा पर नकषतर हो तो मनषय बलवान‌ हो, हाथो पर नकषतर हो तो चोरी कर, हदय पर हो तो एशरयवान‌ हो ओर नाभि पर हो तो थोडी वसत स सनतषट हो जाय।। २॥

गहयभ परदारः सयाजनानभ परदशगः । पापसथित सवनकषतर निरधनोऽलपायरव च ।३॥

गदा पर नकषतर आव तो पराई सतरीस रमण कर, घटनो पर ¦ नकषतर हो तो परदश गमन कर। यदि जनम नकषतर परो पर सथित हो तो निरधन ओर अलप आयवाला हो।।३॥ ^

अथ चनदरचकरस जनमराशशच नकषतराननकषतरवरतमानकम‌ । गणयदगणकः परागयशचनरसयव शभाऽशभम‌ ।। १।। षडासय पषठक षटक कर षटक तरय गद । तरय पाद तरय कणठ दातवय गणकोततमः ।।२॥

जनम-राशि क नकषतर स वरतमान नकषतर तक बदधिमान‌ जयोतिषी गिन फिर चनदरमा का शभाशभ फल कट।। १।। छः नकषतर मख पर धर, छः पीठ पर धर; गदा पर तीन धर, परो पर तीन धर ओर कणठ पर तीन धर। उततम जयोतिषी इस परकार नकषतर सथापित कर।। २॥

मख हानिशच विजञया धनहानिशच पषछक । हसत राजभय जञय राजमान च गहयक ।।२३।। सथानभरषटो भवतपाद कठ सरवसख भवत‌ । जनमनकषतरशचनदरनननतरसय फल करमात‌ ।। ४।।

मख क नकषतरो म हानि हो, पीठ क नकषतरो म धन की हानि हो हाथक नकषतरो म राजा स भय हो, गदाक नकषतरो म राजास मान मिल। परो म हो तो सथान स भरट हो, कणठ पर सब सखदायी कह। इस परकार जनम नकषतर क करम स चनदर नकषतर का फल कहा गया ह।। ३-४।

रषः

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भाषाटोका-सदिता =£

अथः भोौगचकरम‌

यसमिनकष भवदधौमसतदादि गरीणि मसतक ।

तरय नतर रय मोलो चतषक बाहयगमक ।। १।। जिस नकषतर पर मगल हो, उसस आदि लकर तीन नकषतर

मसतक पर धर, फिर तीन नतर पर ओर तीन ललाट पर धर,

चार नकषतर दोनो भजाओ पर धर।।१।।

कठ द हदय पञच जय गह शरतिः पदोः ।

मख रोगी धन नतर यशो मोलौ धन हदिः।।२॥

कटपर दो नकषतर धर, हदय पर पच नकषतर धर, गदा पर तीन

नकषतर धर, परो पर चार नकषतर धर। मख पर हो तो रोग हो,

नतरो म धन हो, ससतक पर यश ओर हदय पर धन हो| २।।

कठ टिकता रतिरगहयो पाद दशानतर बरजत‌ ।

वामबाहौ भवदरोगो दकषिण गणको भवत‌ ।। ३॥)

कठ पर पड तो हिचकी रोग ओर गदा पर हो तो अरचि

रोग, परो महो तो विदश म गमन कर, बायी भजा पर हो

तो सोग हो ओर यदि दाहिनी भना पर हो तो जयोतिषी हो।।३॥।

अथ ककधषचकरम‌

बधो यतर भवदकष तदादौ विलिखतरमात‌ ।

मख जञानाय पच सनतर राजयाय पञच च ।\ १।॥

पच कठ सखाय सयरहदि जञानाय पच च ।

कषयाय पादयोः पच कर च जञानद यम‌ ।।२॥।

जिस नकषतर पर बध हो तो उसको करम‌ स लिख-उसम मख

पर पच नकषतर जञानदायक ह ओर नतर पर पच नकषतर राजय दन-

वाल होत ह। कणठ पर पाच नकषतर सखदायी होत ह, हदय पर

पौच नकषतर जञानदायी होत ह, फिर परो पर पाच नकषतर नाश

करनवाल, हाथो पर दो नकषतर जञानदायी होत ह ।। १-२))

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० लगनचनदरिका 9 = 1

एक गहयसथनकषतर कषयद परिकीरतितम‌ । बधभाजनमभ यावदबधचकर विचारयत‌ ।।३॥

गदा पर एक नकषतर नाश करनवाला होता ह। इस परकार क नकषतर स जनम नकषतर तक बधचकर का विचार कर।।३॥

अथ गरचकरम‌

मौलौ चतवारि राजय यगपरिगणित सकधयगम च लकषमी - रक कठ विभतिरमदनहरिमित वकषसि परीतिलाभः। षडभिः पीडारियगम जलधिपरिमित वामबाहौ च मतय - दगयगम बरीणि ददरनपतिसमसख वाकपतशचकरमतत‌।१।

मसतक पर चार नकषतर राजयदायी ह । चार नकषतर दोनो कधो पर लकषमी दनवाल ह। एक नकषतर कठ पर एशरय दनवाला ह। पाच नकषतर हदयम धर, व परीति दनवाल ह । छः नकषतर दोनो परो पर धर, वपीडा करनवाल होत ह। फिर चार नकषतर जो बायी भजा पर ह, व मतय दनवाल ह। दोनो नतरो पर जो तीन नकषतर ह, व राजा क समान सख दनवाल. ह । यह बहसपति चकर का शभाशभ फल कहा गया ह।। १।।

जथ शकरचकरस‌ मोलो पच दय वकतर चतषक हदय सवभात‌ । सपत बाहयसतर गहय द जानवोरजलधिः पद ।। १।। सख हदि तथा मोलौ गहयभ मरण धवम‌ । मख सभोजन बाहौ मतयजनपदोरवयथा ।।२।।

शकर क नकषतर स पाच नकषतर मसतक पर धर, दो मख पर धर, चार नकषतर हदय पर धर, सात नकषतर भजा पर धर, तीन नकषतर गदा पर फिर चार नकषतर परो पर धर।।१।॥ हदय पर तथा मसतक पर जनम नकषतर आव तो सख हो, गदा पर हो तो मतय हो, मख पर सनदर भोजन मिल, भजा पर मतय ओर परो पर पड तो पीडा हो ।।२॥

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)

भाषाटीका-सदहिता €१

अथ शनिचकस‌

यसमिञछनिशवरति वकतरगत तकष

चतवारि दकषिणकरऽडपरियग भषटकम‌ ।

चतवारि वामकरगानयदर च पच मरधनि रय नयनयोरदितय गद च ।।१॥

जिस नकषतर पर शनि हो, वह नकषतर मख पर धर। फिर उसस आग

क चार नकषतर नरचकर म दाहिन हाथ पर धर, दोनो चरणो पर छः

नकषतर धर, चार नकषतर बाय हाथ पर धर, उदर पर पच रक, मसतक

पर तीन, नतरो पर दो नकषतर धर ओर गदा पर भी दोही नकषतर धर। १।

मखसथित भानसतऽतिपीडा लकषमीरयशोदकिणहसतससथ।

पाददवय निषफलता च वाम कर च यदध तनसशयशच ।२।

शनि मख पर सथित हो तो अतयनत पीडा हो, दाहिन हाथ पर

हो तो लकषमी ओर यश परापत हो, दोनो पर पर निषफलता ओर

बय हाथ पर हो तो यदध म शरीर-नाश का सनदह ह।। २।

हचरथो मसतक राजय नतरयोः परम सखम‌ ।

गद च पराणसदहः शनिचकर विनिरदिशत‌ ॥\३।।

हदय पर दरवय परापि, मसतक पर राजय परापि, नतर पर परम सख

ओर गदा पर पराणो का सदह हो, एसा शनिचकर का फल कट । २

मखानचरति गहय च गहयादायाति मसतक ।

मसतकाललोचन याति लोचनादहदय वरजत‌ ।।४।

हदयादवामहसत च वामहसतातपददययम‌ ।

पादानच दकषिण हसत शनिचारोऽयमचयत ।\५।।

(क लोगो का एसा भी मत ह कि) शनशचर मख स गदा पर,

गदा स मसतक पर आता ह, मसतक स नतरो पर आता ह, नतरो स हदय

पर आता ह। हदय स वाय हाथ पर, बाय हाथ स दोनो परो पर

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<€ लगनचनदरिका

ओर च स दाहिन हाथ पर आता ह। एसा यह शनिचार उच अथति शनि का चलना कहा जाता ह।। ४-५॥

अथ रटकचकरम‌ यसमिनकष भवदराहसतदादो सपत पादयोः । दकषिण च कर पच शिरसि तरीणि दापयत‌ ।। १॥

जिस नकषतर पर राह हो-उसस सात नकषतर परो पर धर, फिर पचि नकषतर दाहिन हाथ पर धर, तीन नकषतर सिर पर धर।।१॥

नकषतर द हदि नयसय मख चक नियोजयत‌ । पञच वामकर ददयाननाभो चक नियोजयत‌ ।।२॥

दो नकषतर हदय पर धर, एक मख पर धर, पाच बाय हाथ पर धर ओर एक नकषतर नाभि पर धर।।२॥

गहयदश तरय ददयाराहचकरमिद समतम‌ ।।३।। तीन नकषतर गदा पर धर, यही राहचकर कहलाता ।। ३॥। पादयोरधनहानिः सयातसनतापो दकषिण कर । मसतक च भय शतरोरहदय दरजनपरियः ।।४।। मख दरजनसहारो मतयवामिकर भवत‌ । नाभिग सरवनाशाय गहय पराणविनाशनम‌ ।।५।।

परो पर जनम नकषतर आव तो धन की हानि हो, दाहिन हाथ पर हो तो सनताप हो, मसतक पर हो तो शतर स भय हो ओर हदय पर हो तो दरजनो स मितरता हो। मख पर आव तो दटजनो का नाश हो, बाय हाथ पर हो तो मतय हो, नाभि पर हो तो सरव वसत का नाश हो, गदा पर जनम नकषतर अव तो पराणो का नाश हो।। ४-५।।

अयः कठचकरसः यसमिचरकष भवतकतसतदादौ त फल वदत‌ । नतर द रोगशोकाय मख लाभाय पञच च |! १।।

४) |

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=

भाषाटीका-सडिता €

जिस नकषतर पर कत हो उसका इस तरह फल त तस पर ऊत ल उसका इस तरह फल कट -जस पहल

दो नकषतर नतर पर रोग ओर शोक को दनवाल ओर भजा पर

क पोच नकषतर लाभ दन वाल होत ह।।१॥

राजयपरद जय मोलो नकषतर परिकीरतितम‌ ।

चतषक दकषिण हसत नकषतर च यशःपरदम‌ ।।२।।

वामहसत चतषक च भयरोगकर सदा ।

एक नाभौ च नाशाय गहय द मतयकारक ॥॥३।।

फिर तीन नकषतर मसतक पर राजय दनवाल कह ह ओर चार

नकषतर दाहिन हाथ पर यश दनवाल कह गय ह । वाय हाथ पर चार

नकषतर सदा भय ओर रोग करनवाल ह, एक नकषतर नाभि पर नाश

करन वाला ह, गदा पर दो नकषतर मलय करनवाल ह ।।२-३।।

ऋशनाणि पादयोः षटक धननाशकराणि व ।

कतचकरसय माहातमय दहसथ जञायत बधः ।\४॥।

चरो पर छः नकषतर धन का नाश करनवाल होत ह । इस परकार

पणडित जनो न कत नराकारचकर का शभाशभ फल कहा ह 11 ४॥

अथः सवीचकतस‌

मोलौ जय मख सपत सतनयोरषटभानि च

हदि तय तरय नाभौ तरय गहय च विनयसत‌ ।\१।।

सरय नकषतर स मसतक पर‌ तीन, मख पर सात, सतनो पर आढ,

हदय पर तीन, नाभि पर तीन ओर गदा पर तीन ही नकषतर धर। १।

मोलौ सतापकतसरयो मख मिषटाननदो भवत‌ ।

सतनयोः कामदः परोकतो हदय सखदः सतरिय: ।)२॥

मसतक पर जनम नकषतर पड तो सरय सनताप करनवाला हो,

मख पर मिखानन भोजन द, सतनो पर कामना द ओर हदय पर

हो तो सरी को सख दनवाला हो।।२।।

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=: लगनचनदरिका

नाभौ पतिसख दतत गहय कामपरदः सदा । रयडिभाखयचकर त सवरीणा परोकत विशषतः ।।३।।

नाभि पर हो तो पति को सख द ओर गदा पर हो तो काम-

परद हो। इस परकार यह सरयडमभाखय चकर सरियो को विशष

फलदायक कहा गया ह।।३॥ जथ सयकगलएनल चकरम‌

ह (९२ ९८९ ८.९९ १० १५ =

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। ५

ऊरधवसतिससतिशलागरारासतिखसथितः सथिताः । द द ५ कोणयोशच शरदयगम तथकया ।। १।।

धो भाननकषतरमालिखत‌ । अनयानयभिजिता सारध विलिखदडमसतक ।। २ ऊपर की तीन रखा तरिशल क अगरभाग आकारवाली खीच,

| तीन रखा तिरी खीच, दो-दो रवा कोणो म खीच ओर एक- | एक रखा स दो शरध बनाव। मधय म तरिशल क दड क नीच सरय | क नकषतर को लिख। फिर अनय अभिजित‌ सहित सब नकषतरो को =

‌ करम स इन रखाओ क मसतक पर रख।।१-२।।

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भाषाटीका-सडिता <€

अधःसथितसतिनकषचररदगवधबधनम‌ । रखाषटक भवललाभ ऋकषटक तथा `पनः ।।३।।

नीच सथित तीन नकषतरो म जनम का नकषतर आव तो उदवग, भय । तथा बधन हो। रवाषटक अरथात‌ चारो कोणो की ८ रखा म हो तो लाभ । हो, छः नकषतरो म अरथात‌ तिरी रखाओ म हो तो लाभ हो।॥।३॥

शरददय रोगभगो मतयः शलतरय सफटम‌ । विवाद विगरह यदध रोगातत गमन तथा ।।४।। सरयकालानल चकर कथित गणकोततमः।

| रध क दोनो नकषतरो म रोग दर हो, वरिशलागर की रखाओ म अवशय मतय हो। विवाद, विगरह, यदध, रोग-पीडा, गमन इनम

यह सरयकालानलचकर विचारना पडितजनो न कहा ह।। ४॥। (4

॥ चकर वयोमाकार ॥ : | चतरदिकष तरिशलानि मधयभिननानि ।\ १॥।

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लगनचनदिका र

पडितो को चाहिए कि आकाश क आकार क चकर की चारौ दिशाओ म मधय स भिनन-भिनन तरिशल निकाल ।। १॥।

परव तरिशलमधयसथ चदरभ च लिखद‌ बधः । अनयानयभिजिता सारध नकषतराणि लिखतरमात‌ ।।२।। नामभ च सथित यतर ततर जञय शभाऽशभम‌ । तरिशलष भवनमतयरमधयम बहिरषटक ।।३॥

परव दिशा म तरिशल क मधय म चनदर नकषतर लिख कर करम स अभिजित‌ सहित अनय नकषतरो को लिख । जिस दिशाम नाम का नकषतर आव उसका शभाशभ फल कह। यदि तरिशलो क मधय म नकषतर आव तो मतय हो ओर बाहर क आठ नकषतरो म आव तो मधयम फल कह ॥२-३।।

लाभ कषम जय परजञा चनदर गभषटिक वदत‌ । शल मधय च गरभ च फल जञय दिधा बधः ।।४।। लाभाऽलाभो सख दःख जय चव पराजयः । चदरकालानल चकर नितयमव विचारयत‌ ।।९।।

चनरगरभ क भीतर क ८ नकषतर आव तो लाभ, कषम, जय ओर बदधि बढ ओर शल क मधय तथा गरभ म आय हए नकषतरो स दो परकार का फल जान। लाभ अलाभ, सख -दःख, जय-पराजय, यह चनदरकालानल चकर म नितय विचारना चादहिए।।४-५।।

जथ यमदषटाचकरम‌ नवोरधवगानि धिषणयानि नव तिरयगगतानि च । अधोगतानि धिषणयानि नव चव लिखदबधः ।। १॥। चतनडिीकत वध सवयकरकषतरयः सफटम‌ । सपकिारसय चकरसय कालचकर परयाजत ।।२॥

नौ नकषतर ऊपर, नौ तिरछ, नौ अधोगत लिख। चार नाडी म वध किया जाना चादिए। फिर बायी ओर स तीन लिख, इस परकार सपकारचकर तथा कालचकर बन जाता ह।। १-२॥

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भाषाटोका-सहिता €

मख मधय जय धिषणय सथित कालमख विदः । धिषणयदय च कोणसथ कालदषटरदय मतम‌ ।।३।। दिनरषमादितः कतवा जनमरकष यतर ससथितम‌ । मखदटरागत मतयः शभमनयतर ससथित ।\४।।

मख म तीन नकषतर रख, वही कालमख मानना चादिए। दो नकषतर कोणो म धर, य दो कालदषटरा नकषतर कह जात ह । दिन क नकषतरस लकर जनम-नकषतर तक गिन। यदि मख अथवा दषरा म जनम-नकषतर पड तो मतय हो ओर अनय जगह पड तो शभजान।।३-४।।

जवरित नषटदषटर च विवाद विगरह रण। मखदषटरगत नाम यसय तसय महदधयम‌ | ५।।

जवर का आना, ऊच स गिरना, चोट लगना, विवाद तथा यदध म जिनका नकषतर मख वा दषटरा म आ जाव,उस महान‌ भय होता ह।।५।।

अय कधकलम‌ रवरवधो मनसतापो दरवयहानिरधरासत ।।१।। रोगपीडाकरो मनदो राहकत‌ च मतयदो । गरोरवध भवललाभो रतिलाभशच भागवि ।॥२॥

परवोकत वध चकर म सरयकावधहो तो मन म सनताप ओर मगल कावधहो तो दरवय की हानि हो।|१।। शनि क वधम रोग

तथा पीडा हो, राह-कत का वध हो तो मतय हो, बरहसपति का वध होतो लाभ ओर शकरकावधहो तो सभोग की परापति हो।।२॥

सरीलाभशनदरवध च सख च बधवधतः। जनमराशशच वध च फलमततपकीरतितम‌ । ३)।

चनदरमा का वधहोतोसरीकालाभहो, बधकावधहो तो

सख, जनम राशि क वध स यह फल कहा ह।। ३।। ५७

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| ` मया

लगनचनदरिका

अथ दरगचकरम‌ दरगकार लिखचचकर रखातरयसमनवितम‌ । ईशान रामनकषतर दतवा चाभिजिता सह ।। १॥। चतषक च चतषक च कोणष सकलष च । मधय मधय सगरह च ददयादिजञसतरय जयम‌ ।।२।।

दगकिार अरथात‌ किल क सदश चकर लिख। तीन रखा (चकर)- ऊपर बनाव फिर गोव क नकषतर को ईशान कोण म धर क अभिजित‌ सहित सब नकषतरो को धर। सब कोणो म चार-चार ओर मधय म तीन-तीन नकषतर गरहो सहित धर।। १-२।

धनिषटा शरवण मनराध

रगमधय सथित सरय जलशोषः परजायत । चनदर भगः कज दाहो बध बदधियतो नपः ।।३॥

रग क मधय म सरय आ जाव तो (किला म) जल का शष हो जाय, चनदरमा हो ध दरग भग हो, मगल हो तो दरग जल जाय, बध दरग क मधय म हो तो राजा बदधियकत होता ह।। ३।।

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भाषाटीका-सदिता =

बहसपतौ दरगमधय सभिकष परचर भवत‌ । चलचिततो नपः शकर भदभदधौ शनशवर । राहकतो दरगमधय विषदगधो भवचरपः ॥४॥।

बहसपति दरग म हो तो सभिकष यानी अनन-पानादि भरपर रह, शकर हो तो राजा का चितत चलायमान हो, शनि हो तो किला टट-फट जाव, राह-कत दरग क मधय म आव तो वह राजा विष स दगध हो।। ४॥

सरयः शनशवरो भोमो राहः कतरयदा सथितः । एत गरहा दरगमधय दरगभगः परजायत | ५।। गरः शकरो बधशचदरो दरगमधय यदा सथिताः । तदा दरगो न भजयत महनदरणापि भदितः ।\६॥।

सरय, शनि, मगल, राह-कत य पापगरह दरग म सथित हो तो दरग भग हो, किला टट, बहसपति, शकरवध, चनदरमा य गरह दरग क वीच म आव तो वह दरग इनदर का तोडा हजा भी नही टट।। ५-६।।

सथ रवय7दरिनण सधयमचरः मास शकरबधादितयाः सपाददिदिन शशी । भोमसतिपकष जीवोऽनद सारधवरषदरय शनिः । राहः कतः सदा भकत सारधमक त वतसरम‌ ।। १।।

शकर, बध ओर सरय य एक महीन तक एक राशि पर ठहरत ह। चनदरमा सवा दो (२।) दिन तक, मगल उढ महीन तक, बहसपति एक वरष, शनि इई वरष तक ओर राह-कत डढ वरष तक ठहरत ह।। १॥

अथ जनमलगनजलानस‌ः न पशयति शशी लगन लगनसवामी .न पशयति। न पशयति यदा सरयः सोऽनयजातसतदो चयत ।।१।। सतपतिरसतगतो वा पापयतः पापमधयगो वा सयात‌। सनततिवाधा करत कनदर वा पापसयत चनदर।।२।।

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~ = "क

त - लगनचनदरिका

जमा लसन कौन दवता हो ओर लगन का सवामी भी लगनको

न दखता हो, सरय भी लगन को न दखता हो तो वह बालक अनयसर |

उतपनन हआ जानना चादिए। पोचव घर का पति असत हो अथवा

पापगरह स यकत या पापगरह क मधय मआरहाहो ओर चनदरमा |

पापगरह स यकत हो तो उस नर को सनतान की बाधा रह ।। १-२॥

उदयादया गता नाङयसतासामरधन सखयया ।

रयकषदिदधवदकषतन लगनसय निरणयः ।।३॥ उदय स आदि लकर गत घटियो को (इषट को) आधी कर उस `

सखया तक सरय क नकषतर स गिन। जितनी सखया नकषतर कीहो,

उसी लगन का नकषतर जानो (यह सथलमत माना जाता ह)।।३॥

तिसरो मीन च मष च चतसरो वषकमभयोः ।

मिथन मकर पञच पञच चाप च कट ।।४॥। मीन ओर मष लगन म तीन सरी, वष-कमभ म चार सरी,

मिथन-मकर म पाच सतरी ओर धन-करक म पोच सतरी कट ।। ४॥

सतिकाया सवियो जञयाः पञच कनया तलऽपि च । योषितोऽनयष लगनष तिखः परोकता मनीषिभिः ।\५॥।

लगन तदीशपारशव वा यावतशच खयायिनः । धनगा वययगाशचव तावतयः सतिकाः समताः ।॥६।। .

, कनया-तला म पाच सरी सतिका क पास ओर इनस अनय

लगन हो तो पडित तीन ही सतरी कह । लमन म अथवा लगन कसवामी

क पास जितन गरह हो, अथवा धन सथान म या बारहव सथानम

जितन गरह हो, उतनी ही सतरी सतिका क समीप कह ।। ५-६॥

चनदरलगना तरसथरवा गरहसतलयाशच सतिका । यथा राहसतथा शयया मगलः कषतरभगदः ।।७।।

रविसथान भवदीपः शनौ लोह निगदयत ।

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भाषाटीका-सडिता १०१

मषादिदवादशरकषष चिरावततिकरमण त। पवदिक गहदवार जनमकालननिगदयत ।। ८॥।

अथवा चनदरमा क ओर लगन क मधय म जितन गरह हो उतनी ही सतरी

कहना, जिस (दिशा) म राह हो वा शयया बताव, जिस घर म मगल

हो उस नालचछदन का सथान कट। सरय क सथान म दीपक ओर शनिक

सथान म लोहा कहना। मष आदि राशियो की (लगन की) तीन आवतति

करमशः करन स जनमकाल स परव आदि घर का दवार कह ।७-८।

अथाऽषटोततरिकसशाकरसः चतवारि भानि पापष शभष तरीणि योजयत‌ । आदरदिमगयपरयनत लिखदभिजिता सह ।\१॥।

पापगरहो क चार नकषतर, शभगरहो क तीन नकषतर जान। ओरदरा

स मगशिरा परयनत अभिजित‌ सहित सब नकषतर धर॥। १॥।

षडादितय च वरषाणि चनदर पञचदशव त । मङकखल चाषटवरषाणि बध सपतदशव त ।॥२॥।

शनो च दशवरषाणि जीव चकोनविशतिः । राहौ दवादशवरषाणि भागवि चकविशतिः ।।३॥। परमायःपरमाणन गणयद‌ गतनाडिकाः । नकषतरसय हरदधाग नवतयापत विशोधयत‌ ।।४।।

अषटोततरी दशा म सरय की दशा € वरष, चनदरमा की १५ वरष,

मङखल की ८ वरष, बध की १७ वरष, शनशचर की १० वरष, बहसपति

की १६ वरष, राह की १२ वरष ओर शकर की दशा २१ वरषकी होती

ह (सबकी दशा क वरष १०८ होत द। गत नाडी को परमाय परमाण

स गणो। फिर नकषतर का भाग दव, शष को ६० स गणा करक फिर

भाग दव। यह भकत-भोगय दशा निकालन का करम ह।। २-४।।

आदरचितषकमादितय चनदर जञय मघातरयम‌ । भोम हसतचतषकसयादनराधातरिक बध ।\८।।

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१०२. लगनचनदरिका

पषाचतषक मनद च धनिषातरितय गरौ । ` | राहौ चोततरचतवारि कततिकातरितय भगौ ।।६।।

जिसका आरदरा स चार नकषतरो म जनम हो तो सरय की दशा मघा स ३ नकषतरो तक चनदरमा की दशा, हसत स ४ नकषतरो म मगल की दशा, अनराधा स ३ नकषतरो म बध की दशा, परवाषाढ स ४ नकतो म वहसपति की दशा, उततरा भादरपद स ४ नकषतरो म राहकी दशा ओर कततिका स ३ नकषतर शकर की दशा होती ह।। ५-६॥

दशा दशाहता कारया भागो ननदरविधीयत । अनतरदशय तसयव परथम जञायत दशा ।।७।।

जिस गरह की अनतरदशा जाननी हो उस गरह की जितनी वरष की दशा हो उसको उसी क वरष परमाण अङ स गण, उसम ई का भाग दन स लबध मासादि अनतरदशा जान। जिसकी दशा रहती ह उसी की पहिल अनतरदशा होती ह।। ७॥

छरयदशाकलस‌ः उदविगनचितत सवजनसय पीडा शरीररोगी सवजनरवियोगी । निपीडितो राजजनः परवासी नरोऽशवधाती च रवरदशायाम‌।।१।।

सरय की दशा म चितत उदविगन रह। सवजन को पीडा, शरीर म रोग, बनधजन म वियोग, राजदतो स पीडित, परदश म रहन वाला ओर घोडो स घात होव।। १॥

` सरयसयानतगति सरय लाभो राजकलोडधवः । | चिततपीडा वययोऽथानिा विपरयोगशच बनधभिः ॥॥२॥

` शतनाशोऽरथलाभशच चिनतानाशः सखागमः । सयसयानतरति चनदर वयाधिनाशशच जायत ।।३।।

, _ यदि सरय की दशा म ही अनतरदशा (मान मासादि ४।०।०।० ) हो तो लाभ, चितत म पीडा, दरवय का खरच तथा बनधओ स वियोग हो। यदि सरय की दशा म चनदरमा की अनतरदशा (मान मासादि

स „ ॐ.

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भाषाटीका-सडिता €

(१०।०।०।०) हो तो शर का नाश, धन का लाभ, चिनता का

नाश तथा वयाधि का नाश होता ह।।२-३॥

मणिरमकता काचन च जयो यदध सख तथा । परापयत भपतमनि सरयसयानतरति कज ।।४।। विलाससखदारिकरय जायत रोगसमभवः । पामाविचरचिकादीनि सरयसयानतगति बध ।\५॥।

यदि सरय की दशा म मङखल की अनतरदशा (मान मासादि

५।१०।०।०) हो तो मणि, सोना, यदध म जय ओर राजाओ

म सतकार मिल।।४।। यदि सरय की दशा म बध की अनतरदशा

बध (मान मासादि ११।१०।०।०)हो तो विलास -सख,रोग की

उतपतति, दाद ओर विचरचिकादि रोग होत ह।। ५।।

राजभीतिः शचभीतिः कलहो दःखमव च । जायत धननाशशच रयसयानतरगति शनौ ।\६।। निषपापो वयसनरहीनो नीरोगो धनवानपि । परापरोति पदवी गवी सरयसयानतगति गरौ ।\७॥।

यदि सरय की. दशा म शनि की अनतरदशा (मान मासादि

६।२०।९।०) हो तो राज-भय, शतर-भय, कलह, दःख ओर

धन का नाश हो। यदि सरय की दशा म गर की अनतरदशा. (मान

मासादि १२।२०।०।०) हो तो पाप स हीन, वयसन स हीन,

रोगरदित ओर धनी होव।। ६-७॥। वयसन विततनाशशच शका चाऽथ पराजयः ॥

रयसयानतगत राहो दयत बनधजनः कलिः ।\८॥। जवररोगः शिरोरोगो नानापीडा कलवर ।

कवापि बनधजनः कलशः सरयसयानतगति सित ।।६।॥ यदि सरय की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि

८।०।०।०) हो तो धन-नाश, शका, पराजय, जजा खलनवाला

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१०४. लगनचनदरिका

ओर बनधजनो स कलह करनवाला हो || ८।। यदि सरय की दशा म शकर की अनतरदशा (मान मासादि १४।०।०।०) हो तो जवररोग, शिरोरोग, शरीर म अनक परकार की पीडा ओर कभी-कभी बनधजनो स दःख हो।।६।॥

अथ चनददशणफलम‌

गजाशवरतनानि महापरतापो मिषटाननपान विविध सख च। अरोगता सरवजनानरागो भवदशाया शशिनो नरसय ।।१॥

चनदरमा की दशा म मनषय को हाथी, घोडा,रल, महापरताप, मिषटातन-

पान, अनक परकार क सख, आरोगयता ओर सबस परम हो ।।१॥। शोभनसवीसमायोगो वसतराभरणसमपदः । शभकनयासमतयततिशवनर चनदरानतर गत ।।२॥।

यदि चनदरमा की दशा म चनरमा की अनतरदशा (मान मासादि २५।०।०।०) हो तो सनदर सतरी स सयोग, वसतर, आभरण (गहन), सपदा ओर सनदर कनया की उतपतति हो।।२॥

असकपिततरजा पीडा वदधिचोरादयपदरवाः । कलहः सतरीजनः सारदद चनदरसयानतगति कज ।।३॥ सख सरवतर लाभ च गजवाजिधनादिकम‌ । गो -महिषयादिक यचच चनदरसयानतगति बध ।।४।। यदि चनरमा की दशा म मङखल की अनतरदशा (मान मासादि

१२३।१०।०।०) हो तो रकत -पितत रोग स पीडा, अगनि, चौर आदि स उपदरव ओर सतरियो स कलह हो। यदि चनदरमा की दशा म बध की अनतरदशा (मान मासादि २८।१०।०।०) हो तो सब जगह सख तथा लाभ हो। घोडा, धन, गाय, भस आदि की परापि हो ।।३-४॥

उदवगो विततनाशशच शोकः शतरदयाददधयम‌ । कलहो बनधवरगण ` चनदरसयानतरगत शनो ।।५।।

= ~ ~ णह

|

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भाषाटोका-सहिता ६ © <

धनधरमादिसमपततिः वसतरालकारभषणम‌ । सरवतर लभत लाभ चनदरसयातगति गरौ ।।६॥।

यदि चनदरमा की दशा म शनि की अनतरदशा (मान मासादि १६।

२०।०।०) हो तो उदवग, धन का नाश, शतर क उदय स भय ओर

भादयो स कलह हो। चनदरमा की दशा म यदि वहसपति की अनतरदशा

(मान मासादि ३१।२०।०।०} हो तो धन, धरमादि समपतति हो तथा

वसतर, अलकार, भषण मिल ओर सव जगह स लाभ हो ।।५-६।।

रिपरोगाऽगनिभीतिशच बनधनाशो धनकषयः । चनदरसयातरगति राहौ भवददगचिनतना ।\७।।

यदि चनदरमा की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि

२०।०।०।०) हो तो शतर, रोग, अगनि का भय ओर बनधओ का

नाश, धन का कषय, उदवग तथा चिनता हो ।।७॥।

उततमसतरीजनरयोगो दिवयकनयासमददवः । धरमयकतधनपरापिशचनदरसयानतरगति सित ।।८॥ लाभो राजकलभयशच वयाधिनाशो रिपकषयः । जायत सखभशवरयचनदरसयानतरगत रवौ ।।६।।

यदि चनदरमा की दशा म शकर की अनतरदशा (मान मासादि ३५।०।

०।०) हो तो सनदर सतरी स सयोग, सनदर कनया की उतपतति ओर

धरमयकत धन की परापि हो ।। ८।। यदि चनदरमा की दशा म सरयकी

अनतरदशा (मान-मासादि १०।०।०।०) हो तो राजा क कल स लाभ,

वयाधि का नाश, शतर का नाश, सख ओर धन की परापि हो।। ६॥

अथ शौयदशणफलम‌ शसतराभिघातो नपतशच पीडा चौरागनिरोगाशच धनसय हानिः।

कारययाभिघातशच नरसय दनय भवदशाया धरणीसतसय ।१। मङल की दशा हो तो शसतर स चोट लग, राजा स पीडा, चोर, अगनि

तथा रोग स पीडा, धन की हानि, कारय का नाश ओर दीनता हो।१।

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` "कमत

सक

१०६ लगनचनदरिका ~ वा `

शभिः सह सममरदो बनधभिः सह विगरहः । सीसगो रकतपिततादधीरभोमसयानतगति कज ।।२॥

यदि मङकल की दशा म मङगल की ही अनतरदशा (मान मासादि ७।३।२०।०) हो तो शतरओ स यकत, बनधओ स विगरह, सवरी स सग ओर रकत-पिकत स भय हो।।२॥

शबरचौरनपादिभयो महाभीतिः परजायत । महाजवरकता पीडा भोमसयानतगति बध ।।३।।

यदि मगल की दशा म बध की अनतरदशा (मान मासादि १५। ३। २०।०) हो तो शतर, चोर ओर राजा आदि स विशष भय हो| ३

धनकषय महादःख जायतऽतर निरनतरम‌ । भोमसयानतगति मनद नरसय विपदः सदा ।४।॥।

यदि मगल की दशा म शनि की अनतरदशा (मान मासादि ८।२६।४०।० ) हो तो नाश,निरनतर महादःख ओर सदा मनषय को विपतति रह।४।

दवबराहमणपजनम‌ । भोमसयानतगति जीव मपाककिचिदधय वदत‌ ।।५।।

मगल की दशा म बहसपति की अनतरदशा (मान मासादि १६।२६।४०।०) हो तो धन लाभ, तीरथ-लाभ, दवता-बराहमण की

पजा करनवाला ओर राजा स कछ भय न पाव, एसा कह।। ९।। शसतरचौरागनिभीतिशच कषिसतरीधनपीडनम‌ । भोमसयानतगति राहौ यतर ततर भय वदत‌ ।॥६।।

यदि मगल की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि १०।२०।०।१०) हो तो शखर, चोर, अगनि-भय, खती, सतरी, धन की पीडा ओर जहा तह स भय हो ६॥

वयाधयः शबरभीतिशच धनकषय उपदरवः । विदशगमन नणा भोमसयानतगति सित ।।७॥।

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, भाषाटोका-सदिता १०५७

आरोगय सरवतोभदर राजपकष जयोतसवः । जायतऽतर धनपराधिरभोमसयानतरगत रवौ ।।८॥।

यदि मगल की दशा म शकर की अनतरदशा (मान मासादि २८।२०।०।०) हो तो वयाधि, शतर स भय, धन-नाश, उपदरव तथा

मनषयो का परदश-गमन हो। यदि मदखल की दशा म सरय की अनतरदशा (मान मासादि ५।१०।०।०) हो तो आरोगय, सबस कशल,

राजपकष म जय तथा उतसव ओर धन की परापति हो।।७-८।

नानावततिसमतयननो मणिमकतासखानवितः । जायत मनजो नितय चनदर भौमानतर गत ।।६।।

यदि मङगल की दशा म चनदरमा की अनतरदशा (मान-मासादि

१३।१०।०।०) हो तो नाना परकार की वतति स उतपनन मणि, मकता ओर सख स यकत मनषय हो ।। ६॥।

अथ ककषदशयाकलम‌

नानाविधररथशतः समतो दिवयागनाकलियतो विलासी । सरवरथिसिदधिरबहमानितोऽतर भवदशाया मनजो बधसय ।१

बध की दशा हो तो मनषय अनक परकार क सकडो दरवयो स यकत, सनदर सतरी स विहार करनवाला, विलासी तथा सरव अरथकी

सिदधिवाला ओर बहत पजय होता ह।।१॥। बदधिधरमानरागशच मितरबनधसमागमः । शतरदधवा दहपीडा बधसयानतरगत बध ।\२॥

यदि बध की दशा म बध की ही अनतरदशा (मान मासादि ३२।३।२०।०) हो तो बदधिमान‌, धमतरागी, मितर तथा बनधओ

स समागम, शतर की उतपतति ओर शरीर की पीडा हो।।२॥

अकसमाचछनसयोगो हयकसमादरथसगरहः । सपरकोऽगनिगरादीना बधसयानतरगत शनौ ।।३।।

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१०८ लगनचनदरिका

यदि बध की दशा म शनि की अनतरदशा (मान मासादि १८।२६।४०।०) हो तो अकसमात‌ शतर स सयोग ओर अकसमात‌ दरवय का सगरह तथा विष (जहर) ओर अमनि का समपरक हो।।३।।

सवणदिधातलाभशच शरीरारोगयमव च । समपततिधरमलाभशच बधसयानतरगति गरौ ।४।।

यदि बध की दशा म बरहसपति की अनतरदशा (मान मासादि ३६।२६।४०।०) हो तो सवरण आदि धात का लाभ ओर शरीर आरोगय, सपतति तथा धन का लाभ हो।।४।।

परचणडोतसाहसततव च नानाकारयरणोदयमः । बधसयानतगति राहौ धनधमदिभोगयक‌ ।।५।।

यदि बध की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि २२।२०।०।०) हो तो अतयनत पराकरम हो, अनक करम तथा रण म उदयम करनवाला एव धन ओर धरम स यकत हो| ५॥।

गरदवारचन परीतिजञनिधरमरतिसतथा । वसतरालङकरणरयकत बधसयानतगति सित ।६।।

यदि बध की दशा म शकर की अनतरदशा (मान मासादि २६।२०।०।०) हो तो गर ओर दवताओ क पजन म परीति, जञान तथा धरम म परीति ओर वसर तथा अलकारो स विभषित हो| ६।।

वयाधिशचरभयरमकतः पतरधरमधनागमः । जायत राजमानयशच बधसयानतगति रवौ ।।७।।

यदि बध की दशा म सरय की अनतरदशा (मान मासादि ११।१०।०।०) हो तो रोग, शतर ओर भय स छट। पतर, धरम तथा धन का आगम हो ओर राजाओ म पजय हो।।७।।

कषयरोगोऽतर कषठ च नानापीडा कलवर । बधसयानतति सोम गलरोगशच जायत ।।८॥।

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भाषाटीका-सडिता अन

शिरोरोगी गणडरोगी नानाकलशरनिपीडितः । यमभीतिशचोरभीतिरबधसयानतरगत कज ।।६।। यदि बध की दशा म चनदरमा की अनतरदशा (मान मासादि २८।

१०। ०।०} हो तो सिर का रोग, कषरोग, अनक परकार की दह-पीडा

ओर गलरोग हो। यदि बध की दशा म मङगल की अनतरदशा (मान मासादि (१५।३।२०।०) हो तो सिर का रोगी, गडरोगी, अनक

परकार क रोगो स पीडित तथा यम ओर चोरो स भय हो।।८-६। ~ अथ शनिदशयफलर‌

मिथयापवादो विमखोऽतर बनधो - वधशच बनधोशच निराशिता च।

कारयाणि शनयानि धनसय हानिः कलशा भवनतयव शनरदशायाम‌ ।। १॥

शनि की दशा म ठा कलक, बनध स विमख, बनधओ स

निराशता, कारयशनय, धन की हानि ओर कलश हो ।। १।।

शरीर जायत पीडा पतरदार विगरहः । विदशगमन हानिः शनरनतरगत शनौ ।।२।। दवगोबराहमणाचारययपतरमितरधनागमः । परापनोति गरसममान शनरनतगति गरौ ।।३।।

यदि शनि की दशा म शनि की ही अनतरदशा (मान मासादि ११।३।२०।०) हो तो शरीर म पीडा, पतर तथा सतरी स बिगाड

ओर विदश गमन तथा हानि हो। यदि शनशचर की दशा म बहसपति की अनतरदशा (मान मासादि २१।३।२०।०) हो तो दवता, गो,

बराहमण, आचारय, पतर, मितर ओर धन का आगम हो।।२-३॥

जवरातिसारपीडा च शतभीतिरधनकषयः । शनरनतगति राहौ शसतरघातशच जायत ।\४।।

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० लगनचददरिका ध |

जायाधनसतरकत जायतऽतर जयानवितः ।

आयरारोमयमशवय शनरनतगत सित ।।५।। | यदि शनि की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि

१३।१०।०।०) हो तो जवर तथा अतिसार की पीडा हो, शतर स |

भय, धन-नाश ओर शसतर स घात हो। यदि शनि की दशा म शकर |

की अनतरदशा (मान मासादि २३।१०।०।० ) हो तो वह मनषय सरी,

धन स यकत, जयस सयकत, आय, आरोगय तथा एशरयवान‌ हो ।४-५।

तरमितरकलतराणा हानिशवारथसय जायत। शनरनतगति भानो जीवितसयापि सशयः।।६।। गोमहिषयादिलाभाः सयः सवरीलाभो विजयः सखम‌। जायत कनयकापतय शनरनतरगत विधौ ।\७।। यदि. शनि की दशा म सरय की अनतरदशा (मान मासादि

६।२०।०।०) हो तो पतर, मितर, सतरी, धन की हानि ओर जीन

म भी सदह हो। यदि शनि की दशा म चनदरमा की अनतरदशा (मान मासादि १६।२०।०।०) हो तो गौ, भस आदि का लाभ, सरी- लाभ, विजय-सख ओर अधिक कनया उतपनन हो ।। ६-७।।

दशतयागो धनतयागः शतरवयाधिसमागमः । शनरनतगति भोम जायतऽतर महददरयम‌ ।। ८।।

यदि शनि की दशा म मगल की अनतरदशा (मान मासादि ८।२६।४०।०) हो तो दश-तयाग, धन-तयाग, शतर, वयाधि का आगम ओर महाभय हो।। ८।।

धनपरापिशच बनधभयः सोभागय विजय सखम‌ । सभाया मानयता विदयाचछनरनतगति बध ।।६।।

यदि शनि की दशा म बध की अनतरदशा (मान मासादि १८।२६।४०।०) हो तो भादयो स धन का लाभ, सौभागय, विजय, सख ओर सभा म सतकार हो।।६।

१९१

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भाषाटोका-सहिता ११९९१

जथ कहसयालिदलण7कलम‌ |

धरमरथिकाभः परिपरितोऽतर राजपरतापरविनयः समतः) | धनी जयी दारसतादियकतो गरोरदशाया च नरो निरोगी ।।१॥।

बहसपति की दशा म धरम, अरथ, काम स परिपरण, राजय, परताप

ओर नमरता स यकत ओर नीरोग शरीर हो।।१।।

पतरोतयततिरधनोतपततिः सरवरतनपरिगरहः । जायत रतनलाभशच गरोरनतगति गरौ ।\२।।

यदि गर की दशा म गर की अनतरदशा (मान मासादि

४०।३।२०।०) हो तो पतर की उतपतति, धन की उतपतति, सब

परकार क रतनो का सगरह ओर रतनो का लाभ हो।।२॥

विसफोटकादिमोहशच शोको रोगो धनकषयः । गरोरनतगति राहौ रिपणा च भय भवत‌ ।\३।।

यदि वहसपति की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि

२५।१०।०।०) हो तो विसफोट (शीतला) आदि रोग तथा मोह,

शोक, रोग, धन का नाश ओर शतरओ का भय हो।।३॥

कलहो मानसी पीडा विततनाशो महदभयम‌ । जायत सतरीवियोगशच गरोरनतगति . सित ।।४।।

यदि गर की दशा म शकर की अनतरदशा (मान मासादि

४४।१०।०।०) हो तो कलह, मानसिक चिनता, दरवय -नाश,

महाभय ओर सतरी स वियोग हो।४।। शतरनाशो जयो नितय नपपजा महतसखम‌ । परचणडः सह सदशच गरोरनतरति रवौ ।।५॥।

यदि गर की दशा म सरय की अनतरदशा (मान मासादि

१२।२०।०।०) हो तो शतर का नाश, नितय जय, राजाओ म

सममान, बहत सख ओर करर मनषयो क साथ मिलाप हो ।। ५।।

ऋकारा

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ॐ ॐः लगनचनदरिका

बहसवीसङगमः कषीणः शत पीडाविवजितः । गरोरनतगति चनदर कनयाजनम च जायत ।६।।

यदि गर की दशा म चनदरमा की अनतरदशा (मान मासादि ३१।२०।०।०) हो तो बहत सरियो क सग स कषीण, शतरओ की पीडा स रहित ओर कनया का जनम हो।।६।।

रिपनाशो धनपरापतिः सरवकारयसमागमः । सख सौभागयमारोगय गरोरनतगति कज ।।७।।

यदि बहसपति की दशा म मगल की अनतरदशा (मान मासादि १६।२६।४०।०) हो तो शतर का नाश, धन का लाभ, सरवकारयो का समागम, सख-सौभागय ओर आरोगय हो।।७॥

बदधिविजञानकोशलय धनबनधसमागमः । गरदवागनिभकतिशच गरोरनतगति बध ।।८॥

यदि बहसपति की दशा म बध की अनतरदशा (मान मासादि ३८।२६।४०।०) हो तो बदधि ओर जञान म निपण, धन, बनधजनो

का समागम, गर. दवता तथा अगनि म शरदधा हो।।८।।

वशयासरीचतमदशच धनधानयादिसशयः । जायत लपतधममाऽतर गरोरनतगति शनौ ।॥६।।

यदि बहसपति की दशा म शनि की अनतरदशा (मान मासादि २१।३।२०।०) हो तो वशया, सरी, जआ, मदिरा आदि स धन- धानय ओर धरम का नाश हो || ६॥

अथ रटदकदशाकलस‌ जञानसय हानिरगमन विदश धरमसय हानिरविविधाशच रोगाः। सरवतर शनय तनसशयशच राहोरदशाया नियत नरसय ।।१॥ राहकी' दशा म जञान की हानि ,विदश यातरा,धरम की हानि,अनक

परकार क रोग,सबजगह कारय की हानि ओर जीवन म भी सनदह हो ।१।

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भाषाटोका-सदिता | ११९३

दिजनदः सह ससरगः सतरीलाभो धनसचयः । राहोरनतगति राहौ कलहो बनधभिः सह ।२।। धरमिषठः सतयवादी च धनी रोगविवजितः । जायत राजमानयशच राहोरनतरगत सित ।।३।।

यदि राह की दशा म राह की ही अनतरदशा (मान मासादि १६।०।०।०)} हो तो शर बराहमणो क साथ ससरग, सतरीका लाभ, धन का सचय ओर बनधजनो स कलह हो । यदि राह की दशा म शकर की अनतरदशा (मान मासादि २८।०।०।०) हो तो धरमवान‌, सतयवादी, धनी, रोगरहित तथा राजा स पजनीय हो।।२-३॥

पतरदःख महाभीतिरधननाशो विचिनतना । अगनिचोरभय कवापि राहोरनतगति रवौ ।।४।। सतरीनाशो धननाशशच कलहो बानधवः सह । राहोरनतगति चनदर जायत च महाभयम‌ ।।५।।

यदि राह की दशा म सरय की अनतरदशा (मान मासादि ८।०।०।०) हो तो पतर का दःख, महाभय, धननाश, विशष चिनता, कही-कही अमनि ओर चोर का भय हो। यदि राह की दशा म चनदरमा की अनतरदशा ( मान मासादि २०।०।०।०}होतोसरी ओर धन का नाश, बनधओ स कलह ओर महाभय हो ।। ४-५॥

विषशसतरागनिचोरभयो भय परापनोति दारणम‌ । राहोरनतगति भौम जीवितसयापि सशयः ।६।।

यदि राह की दशा म मगल की अनतरदशा (मान मासादि , १०।२०।०।०) हो तो विष, शसतर, अगनि ओर चोरो स कठिन

भय हो तथा जीन म भी सशय रह।।६॥ सहदनधजनरयोगो धनधानयसमागमः । न कशचिजरायत कलशो राहोरनतरगति बध ।॥७॥।

„---------- ~ 2 क 3

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4

ध = लगनचददरिका'

यदि राह की दशा म बध की अनतरदशा (मान मासादि

२२।२०।०।०) हो तो मितर तथा बनधजनो स सग, धन-धानय का |

सब परकार स आगम ओर किसी परकार का दःख न हो।।७॥

सवदशसय परितयागः कटमबससह सङगमः ।

भतयारथयोसतथा नाशो राहोरनतगति शनौ ।।८॥। यदि राह की दशा म शनि की अनतरदशा (मान मासादि

१३।१०।०।०) हो तो अपन दश का परितयाग, कटमबी क साथ मल तथा सवक ओर धन का नाश हो| ८॥

रोगहानिः सखी नितय दवबराहमणपजनम‌ । धनधानयसमदधिशच राहोरनतगति गरौ ।।६॥।

यदि राह की दशा म बहसपति की अनतरदशा (मान मासादि २५।१०।०।०) हो तो रोग की हानि, नितय ही सख, दव -बराहमणो

की पजा करनवाला ओर धन-धानय की समदधिवाला हो ।। ६॥ अथः शकरदसाकलम‌

नपनरमानयोधनलाभपरणो हसतयशवयकतः परमदानरकतः। मनतरपरयोग निपणशच शासतर कवरदशाया कशली मनषयः।। १।।

शकर की दशा म मनषय राजाओ का मानय, धन क लाभ स परण, हाथी, घोडो स यकत सतरी म परीति करनवाला, मतर क परयोग तथा शासतर म निपण ओर कशल हो।। १॥

मानवदधिः सतोतपततिरधनधानयागम सखम‌ । सवणमबिरादिलाभशच सितसयानतगति सित ।।२।।

यदि शकर की दशा म शकर की ही अनतरदशा (मान मासादि ४६।०।०।०) हो तो मान की वदधि, पतर की उतपतति, धन ओर धानय का आगम, सख, सवरण तथा वसतरादिको का लाभ हो ।।२॥

शतरनाशो जयो नितय नपाललाभो महतसखम‌ । परचणडः सह ससरगः शकरसयानतरगति रवौ ।।३।।

"क

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भाषाटोका-सडिता ११९५

यदि शकर की दशा म सरय की अनतरदशा (मान मासादि १४।०। ०।०) हो तो शतरओ का नाश, नितय ही विजय, राजाओ स लाभ

। ओर बहत सखवाला तथा परचणड मनषयो क साथ समागम हो ।३।

गरदवागनिभकतिशच दःख मधय सख तथा । शकरसयानतरगत चदर शतरमितरसमागमः ।।४॥।

यदि शकर की दशा म चनदरमा की अनतरदशा (मान मासादि

। ३५।०।०।०) हो तो गर, दवता ओर अनि म भकति, दःख ` ओर सखयकत, शतर तथा मितर स समागम हो।।४।।

सगराम च रिप जितवा धन कीरतिशच लभयत । आरोगय सखमशचरयशकरसयानतगति कज ।।५।।

यदि शकर की दशा म मङगल की अनतरदशा (मान मासादि

२८।२०।०1०) हो तो सगराम म शतरओ को जीत कर धन ओर

कीरति की पराति, आरोगय, सख तथा रषवरय की पराति हो।।५॥

नखरोगः शिरोरोगो दःखमामाशयोदधवम‌ । शरीर जायत पीडा शकरसयानतरगत बध ।।६।।

यदि शकर की दशा म बध की अनतरदशा (मान मासादि

३६।२०।०।०) हो तो नखो म रोग, सिर म रोग, आमाशय म

उतपनन दःख ओर शरीर म पीडा हो ।।६॥।

दषटसतरीभिशच ससरगः सख चारथसमागमः । शबरनाशः सहललाभः शकरसयानतगति शनौ ।७।।

यदि शकर की दशा म शनि की अनतरदशा (मान मासादि

२३।१०।०।०) हो तो दषट सतरी क साथ ससरग हो, सख तथा

धन का समागम, शतर का नाण ओर मितर का समागम हो।।७॥।

धनधानयसमदधिशच नानाधरमसमनवितः । शरणीपरभतवमापनोति शकरसयानतगति गरौ ।॥८॥।

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लगनचनदरिका

` र विषादो दख च सददगो महाभयम‌ । ` शकरसयानतरति राहौ कदाचितसखमापनयात‌ ।।€॥

यदि शकर की दशा म वहसपति की अनतरदशा (मान मासादि।

४६।१०।०।० हो, तो धन -धानय की समदधि, नाना परकार क धरम

स यकत ओर बहत जनो का मालिक हो । यदि शकर की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि २८।०।०।०) हो तो वर, विषाद, | दःख, सदा उदवग, महाभय ओर कभी-कभी सख परापत हो।। ८-६॥

जथ कदमिततरीदशतकलम‌ | षडादितय दशनदौ च सपतवरषाणि मङगल । अषटादशसमा राहौ षोडशव बहसपतौ ।। १॥। एकोनविशतिरमनद बध सपतदशव च । सपतवरषाणि कतौ च विशतिभगवि तथा ।।२।।

सरय का ६ वरष, चनरमा का १० वरष, मगल का ७ वरष, राह *का १८ वरष, बहसपति का १६ वरष, शनि का १६ वरष, बधका १७ वरष, कत का ७ वरष ओर शकर का २० वरष विशोततरी दशा का परमाण ह। इस परकार जान।। १-२॥ ।

कततिकामवधि कतवा भरणी चाधिगणयत । कततिकादि तरिरावततया सयदिगणयतरमात‌ ।। ३

कततिका स भरणी तक गिन, कततिका स तीन आवतति सरयादि गरहो की दशा करम स होती ह। जस-जिसका कततिका नकषतर का जनम हो उसकी सरय की दशा ओर जिसका जनम नकषतर रोहिणी होगा उसकी चनदरमा की दशा ह। इसी परकार सब जान।।३। ;

अथः कवदशयणफलस‌ लकषमीविनाशो वनिताविपततिः शरीरपीडा नपमानभगः। परियः कटमबशच भवदियोगः कतोरदशाया सतत च तापः।।१॥

११६ |

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भाषाटोका-सडिता' १९७

पतरनाशोऽरथनाशशच दषटनारीजनः कलिः ।

कतोरतगति कतौ राजभीः शचरविगरहः ।। २।।

कत की दशा म लकषमी का नाश, सतरी को विपतति, शरीर-

पीडा, राजाओ म मानभग, अपन परियजनो तथा कटभबियो स

वियोग ओर सदा ताप हो।।१।। यदि कत की दशा म कत की

ही अनतरदशा (मान-मासादि ४।२७।०।०) होतो पतर का नाण,

दषट सतरीजनो स कलह, राजभय ओर शतर स विगरह हो।।२।।

चतरियसतयागोऽगनिदाहशच कनयाजनमतथा जवरः ।

करतोरनतगति शकर मितरः सह कलिभवित‌ ।।३।।

यदि कत की दशा म शकर की अनतरदशा (मान मासादि

१४६।०।०।०)होतोसरीका तयाग, अगमनि-दाह, कनया का जनम

तथा जवर ओर मितरो स कलह हो।।३॥

अगनिदाहो जवरो रोगो विदशगमन तथा ।

कतोरनतगति सरयय कषयरोगशच जायत ।\४।।

यदि कत की दशा म सरय की अनतरदशा (मान मासादि ४।६। ०।

. ०) हो तो अननि-दाह, जवर, रोग, विदशगमन, कषय रोग हो ।। ४॥।

अरथलाभोऽरथहानिशच सख दःख कवचित‌ कवचित‌ ।

कतोरनतगति चनदर सरीलाभशचापि जायत ॥।५।।

यदि कत की दशा म चनदरमा की अनतरदशा (मान मासादि

७।०।०।०) हो तो कभी अरथ का लाभ ओर कभी दरवय की हानि,

कभी सख, कभी दःख ओर सतरी का लाभ हो| ५॥।

गोतरज सह सवादो वदधिचौरभय तथा ।

शरीर जायत पीडा कतोरनतरगति कज ।।६।।

चोरभीतिरदहभङगः कमितरः सह सगतिः ।

कशोरनतगति राहौ कलहः शतरभिः सह ।।७॥।

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११८ लगनचनदरिका |

` दि कत की दशा म मगल की अनतरदशा (मान मासा ४।२७।०।०) हो तो भादयो क साथ जञगडा, अगि ओर चोरका। भय तथा शरीर म पीडा हो। यदि कत की दशा म राह की अनतरदशा (मान मासादि १२।१८।०।०) हो तो चोरो का भय, शरीर- | भग, दषट मितरो क साथ सग ओर शतरओ स कलह हो।॥।६-७॥

राजमानयजनिरयोगो दिजनदशच धनागमः । भमिलाभः पतरलाभः कतोरनतरगत गरौ ।।८॥ वातपिततकता पीडा सवजनः सह विगरहः । विदशगमन चापि कतोरनतगति शनौ ।।६।।

यदि कत की दशा म बहसपति की अनतरदशा (मान मासादि ११।६।०।०) हो तो राजाओ स पजित जनो स योग (मल) बराहमणो स धन का आगम, भमि ओर पतर का लाभ हो। यदिकत की दशाम शनि की अनतरदशा (मान मासादि १३।६।०।०) हो तो वात-पितत स पीडा,अपन इषट-मितरो स कलह ओर विदशगमन भी हो ॥ ८-६।

सहदबनधसमायोगो भनिमितत च विगरहः । दहपीडा भवननितय कतोरनतरगति बध ॥१०॥।

यदिकत की दशा म बध की अनतरदशा (मान मासादि ११।२७।०।०) हो तो मितर तथा बनधओ स सग, भमि क लिए विगरह ओर नितय शरीर म पीडा हो| १०॥

अथानयगरहमधय कवरकलस‌ दशतयागो बनधनाशो धननाशः सतकषयः । रयसयानतति कतो दःखमव हि परापयत ।।१॥

दशतयागो बनधनाशो धननाशः सतकषयः" † चनदरसयानतगति कतौ सरवतरवाशभ भवत‌ ।। २ विषशसतरागनिचोरभयो जायतऽतर महाभयम‌ । भोमसयानतगति कतौ कलशभागी सदा नरः ।॥३॥

----------- ~ ~

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भाषाटोका-सडिता ९९८

यदि सरयकी दशा मकत की अनतरदशा (मान रहि सलक ज कत की अनतवशा (मान मासादि ४।६।

०।०) हो तो दश-तयाग, बनधञओ का नाश, धन तथा पतर का विनाश

ओर दःख परापत हो। यदि चनदरमा की दशा म कत की अनतरदशा

(मान मासादि ७।०।०।०) हो तो दश-तयाग, बनध, पतर, धन का

नाश ओर सरवतर अशभ हो। यदि मगल क अनतरगत कत (मान

मासादि ४।२७।०।०)} हो तो विष, शसतर, अगनि, चोर आदिको

स महाभय हो ओर मनषय सदव कलशभागी र।।१-२-२।।

अथ रादा सधय कतवनतरदश7कलस‌

जवरागनिरिपशसरभयो मतयरायाति सरवदा।

राहोरनतरगत कतौ शभ कवापि न लभयत ।\ १।।

यदि राह की दशा म कत की अनतरदशा (मान मासादि

१२।१८।०।०)} हो तो जवर, अगि, शत तथा शसतरो स मतय-

भय हो ओर शभ कभी भी न परापत हो।।१।।

पतरबनधकतोदगो निजसथानविवरजितः ।

गरोरनतगति कतौ परिभरमति मानवः ।॥२॥।

रकतपिततकता पीडा कलहः सवजनः सह ।

शनरनतरगत कतौ घोरदःखपरदरशनम‌ । ३)।

जिस मनषय क वहसपति की दशा म कत की अनतरदशा (मान

मासादि १०।६।०।०) हो तो वह पतर तथा बनधओ स उदविगन,

अपन सथान स रहित होकर भरमण कर । यदि शनि की दशा म कत

की अनतरदशा (मान मासादि ३।६।०।०) हो तो रकत - पितत स

पीडा, बनधजनो स कलह ओर भयानक दःख दखना पड।। २-३।।

दःखशोकाकलो नितय शरीर कलशसयतः ।

बधसयानतरति कतौ भवतयव न सशयः ।\४।।

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भन क िः

॥ ~ ~ लगनचनदरिका

यदि बध की दशा म कत की अनतरदशा (मान मासादि ११।२७।०।०) हो तो नितय दःख तथा शोक स वयाकलता ओर

` शरीर म कलश रह, इसम सनदह नही ह ।।४।।

यह गरहो क बीच कत की अनतरदशा का फल ह। इस गरनथ म

पहल अषटोततरी दशा तथा अनतरदशा का फल दरशया गया ह। उसी

फलादश स विशोततरी का भी फल जान। भद कवल यही ह कि विशोततरी

यस. च. म.रा. वर. श. ब. क. श. इस परकार का करम ह, फलादश

म जहौ विचारना या लिखना हो व इसी करम स विचारन तथा लिखन

स सपषट रप स परदरशित होगा।

जनमलगन समारभय गतवरषाणि योजयत‌ ।

दवादशष च भागष गरहवचय शभाऽशभम‌ ।।५॥ जनम-लगन म गतवरष को जोड, उसम १२ का भाग द, शष

क अनसार गरहो का शभ-अशभ जो फल हो, वह कह ।।५।।

अथ मालक विशतिवसिराः सरयय पञचाशचच निशाकर । सपतविशतिरदगार २७ सपतपञचाश५७दिनदज ।।१।। तरयसवरशचच मनद सयसतिषषटि६रशच बहसपत । विशतिः २० सहिकय च कतावपि च विशतिः ।॥२॥ सपतभि७ररभगपतर च जञया मासदशा बधः। नामराशि समारभय सकरमावधि गणयत ।। ३ रय म २० दिन‌, चनरमा म ५० दिन, मगल म २७ दिन,

बध म ५७ दिन, शनि म ३३ दिन, बहसपति म ६३ दिन, राह , तथा कत म २० दिन तथा शकर म ७० दिन, नाम राशि स सकरानति तक गिन। यह दशा पडितो स जानन योगय ह। पहल सरय की फिर चनदरमा की परवोकत परकार स दशा जान।। १-३॥

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भाषाटीका-सदिता १२१

अथः दिनदलयाः

तिथिरवार च नकषतर नामाकषरसमनवितम‌ ।

नवभिशच हरदधाग शषाः दिनदशोचयत ।। १।।

तिथि, वार, नकषतर ओर नाम क अकषर की सखया को जोडकर नौ

का भाग द, एष अदधः स विशोततरी करम स दिन काफल कह ।। १।।

अनय

चतरादरदिगणा मासा गताभिसतिथिभिरयताः ।

नवभिशच हरदधाग शष दिनफल समतम‌ ।। १।।

समपततिः कलहो लोकराननदः कालकणटकः ।

धरमसतपशच विजयो रविवारातरमातफलम‌ ।\ २।।

चतर आदि गत मास को दना कर ओर बीती हई तिथि म जोड कर

६काभागदनस शष अकस दिन काफल कह। १ शोष स सरयवार-

सपतति मिल, २ शष स चनदरवार-लोक न कलह हो, ३ शष स मगल-

वार-आननद हो, ४ शष स बधवार-कालकटक हो, ५ शष स गरवार -

धरम हो,६ शष स शकरवार-तप कर, ७ रोष स शनिवार -विजय हो,

शष स राह,€ शष स कत जान, इन दोनो का सामानय फल ह।१-२।

ररगरहदशाया च कररसयानतरदशा यदा ।

शतयोग भवनमतयमितरयोग च सशयः ।॥ २॥

यदि करर गरहो की दशा म करर गरहो की अनतरदशा हो तो शतर

योग म मतय हो ओर मितरयोग म मलय होन म सशय रह ।।३।।

अथभौमदशागधय शनरनतवशाफलम‌

मगलसय दशाया च शनरनतरदशा यदा ।

मियतऽतर चिरजीवी का कथा सवलपजीविनाम‌।। १)

यदि मगल की दशा मशनि की अनतरदशा हो तो बहत काल जीन-

वाला भी मर ओर सवलपायवालो की कया बात ह (अरथात‌ जब दीरघाय-

वाला मनषय शीघर मरगा तो थोडी आयवाल क मरन म कया सदह ह)।१।

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१२२ , `लगनचनदरिका

अख करगरहसधय पायगरठकलम‌ कररराशौ सथितः पापः षषठ वा निधनऽपि वा । सितन रविणा दषटः सवपाक मतयदो गरहः ।।१।।

यदि करर गरह की दशा म पापगरह छठव, आठव सथान म शकर तथा सरय स दखा जाता हो तो वह गरह अपन पाक (दशा) म मतय को दनवाला होता ह।। १।

लगनसयाधिपतः शचरलगनसयानतरदशागमः । करोतयकसमानमरण सतयाचारयण भाषितम‌ ।।२।।

यदि लगन क सवामी शतर लगन म सथित हो ओर उसकी अनतरदशा हो तो अकसमात‌ मरण करता ह, यह सतयाचारयजी न कहा ह।।२।।

कि अख दशरिटशःः

दशाया बलवान‌ खटः शभवा सनिरीकषितः । सोमयाधिमितरवरगसथोऽरिषटभदखो भवततदा ।। १।।

यदि दशा म बलवान‌ गरह हो या शभगरहो स दखा जाता हो अथवा सौमय गरह अधिमितर क वरग मसथित हो तो उसकी दशा म अरिषट का भग हो।।१।। ~

मल दशाधिनाथसय वाचसपतिदशा यदा । बली शभोऽथ विजञयोऽरिषटभगसतदा भवत‌ ।॥२।॥

मल दशानाथ की"दशा म यदि बहसपति की दशा हो तो शभगरह की दशा होन स.बलवती दशा जान, उसस अरिषट भग होता ह॥। २।।

शभगरहो गरहरयोगि विजयी यदि जायत । दशाया न भवतकट सवोचचादिष च ससथितः ॥॥३॥।

यदि शभगरह गरहो क योग म विजयी हो ओर अपन उञचादि वरग म सथित हो तो वह अपनी दशा म कषट न होन द।।३॥।

डति दरतीकः ररिचछकः ८८२८८

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भाषाटीका-सदिता १२३

आथ चतरथ परिचछदः ।॥ ८।। रविदिगरहयोराः

सवरीजितः कटधरमा च दरविनीतो दयाददः ।

विकरमी लघचताशच सरयचनरसमागम ।।१। जिसकी जनम पतरी म सरय चनदरमा का योग हो तो वह सतरीजित‌,

जठा, नीतिरहित, दयावान‌, पराकरमी ओर हतक जी वाला हो ।।१।।

मिथयावादी च मरखशच वधनिषो बली नरः

तजसवी पापचिततशच सरयभौमसमागम ।\२।

विदरानरथी राजमानयः सवाशीलः परियवदः ।

यशसवी चासथिरदरवयः सरयसौमयसमागम ।।३।)

यदि सरय मगल का योग हो तो जटा, मरख, हिसक, तजसवी ओर

पापी होता ह। सरय बध का योग हो तो विदवान‌, मतलबी, राजमानय, सवा

करनवाला, परियवादी,यशसवी ओर असथिर धनवाला होताह।२-३।

नपमानयो धरमनिषठो मितरवानरथवानपि ।

उपाधयायोऽतिविखयातो सरयजीवसमागम ।४।।

सरय वहसपति का योग हो तो राजा स मानय, धमतमिा, मितरवान‌,

धनवरान‌, उपाधयाय (अधयापक) ओर अतिशय विखयात होता ह।।४।।

शसतरपरहारी बनधशच रदजञो नतरदरबल‌ः ।

सतरीसगलबधदरवयशच शकतोऽरकभगसगम ।\५।।

विदरानातमकरियानिषठो गणजञो वदधचषितः ।

परनषटसतदारशच सरयमनदसमागम ।\६।।

सरय शकरका समागम हो तो शसत-परहार करन बोधन ओर रग जानन

वाला, दरबल नतर तथा सवी स दरवय परापत करन म समरथ होता ह । यदि

सरय शनिका समागम हो तो विदवान‌,आतमकरियाम निखावान‌"गणजञ,

वदधजनोकी चषटाकरनवाला ओर सतरी -पतर स रहित होता ह। ५-६।

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१२४ लगनचनदरिका

अथ चनदरदगरहयोगाः

मचरमधातशिलपी च धनी शरो रण भवत‌ । रकतपीडातरो नितय चनदरभोमसमागम।। १।।

चनर-मगल का योग हो तो मततिका, चरम तथा धात की कारीगरीम निपण, धनी, रण म शर ओर नितय रकतकी पीडा स वयाकल रह ।।१॥

सवरीसमतः सरपशच कावयऽतिनिपणो भवत‌ । धनी गणी हासयवकतरशवदरसोमयसमागम ।। २।।

चनदरमा-बध का समागम हो तो सतरी का आदरणीय, सनदर रप, कविता म अतयनत निपण, धनी, गणी ओर हसमख होता ह।। २।।

दवदविजाचसिकतशच बधमानकरो धनी । दढपीतिः सशीलशच चनदरजीवसमागम ।।३।।

चनदर-गर का समागम हो तो दवता-बराहमणो की पजा म ततपर, बनधओ का सममान करनवाला, धनी, दढ परीति ओर सनदर सवभाववाला होता ह।।२३॥

कशली विकरयादौ च वदधिजञः कलहपरियः । मालयवसतरादिसयकतः शशिभारगवसगम ।।४।। गजाशवपालो दःशीलो वदधसतरीरमणो नरः । वशयाधनोऽनपतयशच चदरमदसमागम ।।५।।

चनदर-शकर का योग हो तो विकरय आदि म चतर, वदधि जाननवाला, कलह करनवाला ओर माला-वसतरादिको स यकत हौता ह। चनदर-शनि का योग हो तो गज, अशव आदि का पालक, दषट सवभाव, वदध सतरी स रमण करनवाला, वशया को ही धन समजञनवाला ओर सनतानरहित होता ह।। ४-५।।

अथः भो मादिगरहयोगाः सतरीदरभगः करयभीतिः सवरणलोहपरकारकः । निरधनो विधवाभरता भपतरबधसयतो ।। १।।

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भाषाटीका-सदहिता १२५

मगल-बध का योग हो तो दरभगा ` पनतय कन ल लत दघगा सवी का पति, खरीद का

वयवहार करनवाला, सवरण तथा लौह की कारीगरी करनवाला,

निरधन ओर विधवा क साथ सभोग करनवाला होता ह।। १॥

मधावी शिलपशासरजञः शरतिजञो वाणविशारदः ।

अशवपरियः परधानशच भोमजीवसमागम ।\२।।

मगल-गर का सयोग हो तो बदधिमान‌, शितप-शासरजञ,

वदजञानी, बोलन म चतर ओर घोडो को रखनवाला होता ह।।२।।

गणपरधानो निपणो चतऽनतरतः शठः । ई

परदाररतो मानयो भोमशकरसमागम ।।३।।

वागमीनदरजालदकषशच विधरमा कलहपरियः ।

विषमदयपरपचाढयो भोममदसमागम ।\४॥)

मगल-शकर का सयोग हो तो गणी, निपण, जआ-जठ म रत,

मरख, पर सतरी म रत ओर मानय होता ह। मगल-शनि का योग

हो तो वाणी म चतर, इनदरजाल विदया का जञाता, धरमरहित, कलह-

परिय, विष तथा मदिरा का परपच रखनवाला होता ह।। ३-४॥

अय कधादिरहकोगाः

रययकतः पडितशच सखी भवति मानवः ।

नतय वादय च कशलो बधजीवसमागम ।\१।।

धनी सवाकयो वदजञो गीत हासय च लालसः ।

नयजञो बहशितपजञो बधशकरसमागम ।॥२॥

, बध-बहसपति का योग हो तो धरय-यकत, पडित, सखी ओर

नतय -वादय म चतर होता ह। बध शकर कायोग होतो धनी, सनदर

बोलनवाला, वदवतता, गीत-हासय म रचि रखनवाला, नीतिजञ ओर

शिलप शासर को भलीरभाति जाननवाला होता ह।। १-२॥

ऋणी गमनशीलशच निरपायोऽतिनिषटरः ।

शभवाकयः कावयदकषो बधमदसमागम ।।३।

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` नन

१२८ लगनचनदरिका ॐ

बध-शनि का योग हो तो ऋणी, गमन करनवाला, उपायरहित, अतयनत कठोर, शभभाषी ओर कावय म निपण होता ह।।३। व 0

धरमसथितः विदयाजीवी च जायत । दिवयदारो बहधनो गरभारगवसगम ।। १।। वततितिदधिशच शरशच यशसवी नगराधिपः। शरणीसनागराममखयो गरमदानवय नरः ।।२।।

गर-शकर का योग हो तो धरम म दढ सथिति, परमाणविद‌, विदया स आजीविका करनवाला, दिवय सतरीवाला ओर बहत धनवाला होता ह। गर ओर शनि क योग म जनमा हआ बालक उपजीविका म सिदध, शर, कीरतिमान‌, नगर का सवामी, समह, सना तथा गराम म मखय माना जाता ह।। १-२॥

गय शटिगडयगतः

दारदारणदकषशच कषारामलादिकशिलपवित‌ । मललः पशपतिरमनदशवकषः शनिसितानवय ।। १।।

शकर. ओर शनि क योग म उतपनन बालक काणो की चीर- फाड करन म कशल, खटट पदारथ-निमाण की कला जानन- वाला, मलल ओर गाय, भसो का मालिक होता ह।।१॥।

खा शिगलयगः भानभोमबधयगि खयातः साहसिको नरः । निषटरो गतलजरशच धनसतरीपतरपीडितः ।। १।। सरयभोमजयसयोग परचडः सतयभाषणः । राजमतरी च मखयशच वाकय च निपणो भवत‌ ।।२।।

सरय, मगल ओर बध इनक योग म जो परष जनम लता ह -वह विखयात, साहसी, निरदय, निरलजञ तथा धन, सरी ओर पतर स पीडित रहता ह। सरय,मगल ओर गर इनका योग हो तो परचड, सतय बोलन वाला,राजा का मतरी, मखय जन ओर वचनम निपण होता ह।१-२]

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. भाषाटोका-सदिला १२७

सरयरशकरसयोग सभगो भजन रतः ।

कलीनो वतसलो लोक विषयासकतमानसः ।। ३।।

सरय, मगल ओर शकर का योग हो तो सनदर, एशरयवान‌, भजन

करन म रत, कलीन, दयावान‌ ओर विषयासकत मनवाला होता ह ।३।

सरयरशनिसयोग मरखो गोधनवरजितः ।

रोगारतः सवजनरहीनो विकलः कलहाकलः ।।४॥।

रयसौमयजयसयोगो नतररोगी महाधनः ।

शसरशिलपकलाभिजञो लिपिकरता भवननरः ।\५।।

सरय, मगल, शनि का योग हो तो मरख, धनहीन, रोग स पीडित,

सवजनो स हीन, विकल ओर कलह करनवाला होता ह। सरय, बध,

शकर का योग हो तो नतररोगी, महाधनी, शसतर-विदया की कारीगरी

भी जानन ओर लिखन का काम करनवाला होता ह।। ४-५।।

यजञशकरसयोग गरवरग. समावतः ।

अभिशसतो दिशो याति सतरीहतोसतपतमानसः ।।६।।

रयजञशनिभियगि दराचारः पराजितः ।

बनधभिशच परितयकतो विदषी जायत नरः ।)७))

सरय, बध, शकर का योग हो तो गरजनो क काम म लगा हज,

उततम, शर मारग म चलनवाला ओर सरी क वासत सतपत मनवाला

होता ह । सरय बध.शनि का योग हो तो दराचारी,पराजित होन वाला,

बनधओ स तयागा हआ ओर विदवष करनवाला होता ह।। ६-७॥

सरयजयशकरसयोग राजमनतरी च निरधनः।

दषटचकषभवितकररः पराजञशच परकरमकत‌ ।\ ८॥

सरय, गर, शकर का योग हो तो राजा का मनतरी, निरधन, बर नतर

वाला, करर, पणडित ओर पराया काम करनवाला होता ह।।८॥

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९२८ । लगनचनदरिका |

रयजयशनिभियगि पतरमितरकलतरवान‌ । निरभयो नपनिषडशच दषयो बनधजनसय च ।।६।।

सरय, गर, शनि का योग हो तो पतर-मितर-सतरीवाला, निरभय, राजा म निायकत रह ओर बधजन स वर कर।।६।।

सरशकरारकिसयोग कलामानविवजितः । कटी शनरजयोदविगनो दराचारी भवननरः । १०॥।

सरय, शकर, शनि का योग हो तो कला ओर मान स रहित, कटी, शतर को जीतनवाला, उदविगन ओर दराचारी मनषय होता ह ।।१०॥

चनदरारबधसयोग तवनाचारी च पापकत‌ । आजीविकाहतो लोक बनधहीनशच जायत ।। ११।।

चदर, मगल ओर बध का योग हो तो आचाररहित, पापी, ससार म जीविकाहीन ओर बधहीन होता ह।।११।।

चनदरभोमजयसयोग सतरीलोलो वरणसयतः । कातशच समतः सतरीणा चनदरतलयमखो भवत‌ ।। १२।। चनदरारभगसयोग दःशीलायाः पतिः सतः । सदा भरमणशीलशच शीतभीतोऽपि जायत ।। १३।।

चनदर, मगल ओर बहसपति कायोगहोतोसतरीक लिए चचल रहनवाला, तरण स सयकत, मनोहर सरिय का माना हआ ओर चदरमा क समान मखवाला होता ह। चनदरमा, मगल ओर शकर का योग हो तो दषट सवभाववाली सरीका पति ओरणसीहीसरीका पतर हो, सदा भरमणशील ओर शीत स डरता रह।। १२- १२॥

चनदरारशनिभियगि बालय च मतमातकः । षदरशच लोकविदिषटो विषमो जायत नरः ॥ १४।। चनदरजञजीवः सयोग यशसवी धनवानपि । पतरमितरादिसयकतो वागमी खयातशच कीरतिमान‌ ॥ १५।।

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भाषाटीका-सदिता १२६

चनदरमा, मगल ओर शनि का योग ततत कर ति का सौग जञ तौ बालक की वातय

अवसथा म माता मर, तचछ जन हो, लोगो स वर कर ओर विषम

तथा कटिल नर हो। चनदर, बध ओर गर का योग हो तौ पणसवी,

धनवान‌, पतर -मितरादिको स यकत, अचछी तरह बोलन वाला.

विखयात ओर कीरतिमान‌ होता ह।। १४-१५॥।

चनदजञभागवियगि विदया सयतो नरः।

सयो धनातिलोभी च नीचाचारशच जायत ।

चनदर, बध ओर शकर का योग हो तो विदान‌, ईयाट

का अतयनत लोभी ओर नीच आचरण करनवाला होता

चनदरजञशनिभियोगि पराजञो भपतिपनितः

अलयञचो विपलागशच वागमी भवति मानवः

चनदर, बध ओर शनि का योग हो तो पडित,राजा स पजिः

ऊचा, भारी शरीर वाला ओर चतराई स बोलनवाला होता

चनरजयशकरसयोग साधवीपतरशच पडितः ।

साधः सरवकलाभिजञः सभगो जायत नरः ।। १८॥)

चनरजयशनिभियगि नीरोगः सतरीरतो नरः ।

शासरारथविजञो नीतिजञो गरामपततनपालकः ।। १६॥।

चनर वहसपति ओर शकर का योग हो तो उततम सतरी का पतर, पडित,

साधजन,सब कलाओको जाननवाला, सनदर ओर ठषवरयवान‌ होता ह।

चनदर, गर ओर शनिका योग हो तो रोगरदित, सतरीम रत, शासतरारथ

को जाननवाला, गराम ओर नगर का पालक होता ह।।१८-१६॥

चनदशकरारकिभिरयोगि लिपिकरता च वदवित‌ ।

परोहितकलोतपततिभवित‌ = पसतकवाचकः । २०॥

भओमजञजीवः सयोग सकविरयवतीपतिः ।

परोपकारकततीकषण गाधरवकशलो नरः ।।२१।।

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लगनचनदरिका --------------------

-- न १२०

करनवाला, वदो का जाता, परोहित -कल म उतपनन ओर पसतक बोचन

वाला होता ह।।२०। मगल, बध ओर बहसपति का योग हो तो

सनदर, कवि, सनदरी सतरी का पति, दसर का उपकार करनवाला, तीकषण बदधि ओर गानधरव विदया म निपण होता ह।। २१।।

भोमनञभगभिरयोग विकलागशच चञचलः । अकलीनः सदोतसाही तपतशच मखरो नरः ॥२२॥

मगल, बध ओर शकर का योग हो तो विकल अग.चचल सवभाव,

तचछ कलम उतपनन, सदा उतसाही ओर अभिमानी मनषय होता ह।२२।

कजजञशनिभियगि परवासी नतरोगवान‌ । परषयो वदनरोगी च हासयलबधो भवननरः ।।२३।। मगल, बध ओर शनि का योग हो तो परदश म रहनवाला, नतर

रोगी, सवक, मख का रोगी ओर हासय का लोभी होता ह।।२३॥

कजजयभगभियोगि दिवयनारीयतः _ सखी । सवनिनदकरो लोक जायत नपतिपरियः ।। २४। भोमजीवारकिभियागि कषतागो राजसमतः । नीचाचारो निरघणशच भवममितररविगरहितः ॥।२५॥। मगल, बहसपति ओर शकर का योग हो तो दिवय सतरी स यकत,

सखी, लोक म सब आननदो को भोगनवाला ओर राजा का परिय

होता ह। मगल, बहसपति ओर शनि का योग हो तो कषत अगवाला, राजा का परिय, नीच आचरणवाला, दयारहित ओर मितरननो स निददित होता ह।। २४-२५।।

भोमशकरारकिसयोग दःशीलायाः पतिः सतः । परवासशीलो दःखी च जायत जातकः सदा । २६।।

बधजयभगसयोग सतनरबपपजितः । कषतारिरदरघकीरतिशच सतयवादी भवननरः ।। २७।।

चनदर, शकर ओर शनि का योग ही तो लिखन का काम `

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भाषाटोका-सदिता ९३१

मगल, शकर ओर शनि का योग हो तो दषट सवभाववाली सवरी

का पति ओरणसीही सतरी का पतर, परदश म रहनवाला ओर

सदा दःखी होता ह।।२६॥ बध, बहसपति ओर शकर का योग

हो तो सनदर शरीर, राजा स पजित, शतरओ को नषट करनवाला,

बडी कीरतिवाला ओर सतयवादी होता ह।। २७॥।

बधजीवारकिसयोग सदारो बहभोगवान‌ ।

धनशरययतः परायः सखधरययतो भवत‌ ॥॥२८।।

बधशकरारकिभियोगि मखरः परदारगः ।

असगतयकलाभिजञः सवदशनिरतो जनः |) २६) बध, गर ओर शनि का योग हो तो सनदर सतरीवाला, वहत

भोगी, धन ओर एशवरय स यकत, विशष करक सख ओर धरय स

यकत होता ह। बध, शकर ओर शनि का योग हो तो वाचाल, पराई

सरी स रमण करनवाला, सतसगरहित, कलाओ स अनभिजञ ओर

सदा अपन दश म रहन वाला हो॥।२८-२६॥

गरशारकिभिरयोगि राजा भवतिकीतिमान‌ ।

नीचवशऽपि सभतः शीलयकतो नपोततमः ।।३०।।

परायः परयत चदर मातनशो रवौ पितः ।

शभगरहः शभ वाचय भिभररमिशर फल भवत‌ ।।२१।। बहसपति, शकर ओर शनि का योग हो तो कीरतिमान‌, नीच वश

म उतपनन, शीलयकत ओर उततम राजा होता ह। पापगरहो स यकत

चनदरमा माता को ओर सरय पिता को मार डालता ह । शभगरह होतो

शभ फल ओर मिशरगर हो तो मिशर फल होता ह।।३०-३१॥

शभारयो गरहा यकताः करवनति सखिन नरम‌ ।

पापासतरयो दःखित च दरविनीत विगरहितम‌ ।॥३२।

तीन शभगरह एकतर हो तो मनषय को सखी करत ह। तीन

पाप-गरह मनषय को दःखी, दरविनीत ओर निदित करत ह।। ३२

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0 0 लगनचनदरिका ।

अथ चरहयोराः |

अरकनदकजसौमयाना योग लिपिकरो भवत‌ ।

तसकरो मखरो वागमी मायाया कशलो भिषक‌ ।॥१।॥

रयनकजजीवाना सयोग निपणो धनी । | तजसवी गतशोकशच नीतिजञशच भवननरः ।।२।॥ सरय, चनदरमा, मगल ओर बध का योग हो तो बालक लखक, चोर,

महफट, यकति स बोलनवाला, मायावी ओर‌ वयक जाननवाला होता | ह। सरय, चनदर, मगल ओर वहसपति का योग हो तो निपण, धनी,

तजसवी, शोकरदित ओर नीति को जाननवाला होता ह।।१-२॥

रवीनदभोमशकराणा योग विदयारथसगरही । सखी पतरी कलतरी च वागवततिरमनजो भवत‌ ।। ३॥। अरकिनदकजमदाना योग मरखशच निरधनः । हसवो विषमदहशच भिकषावततिभविननरः ।॥४।।

सरय, चनर, मगल ओर शकर का योग हो तो विदया ओर‌ अरथ को गरहण करनवाला, सखी, पतरवान‌, शरीयत‌ ओर वाणी स

आजीविका करनवाला होता ह। सरय, चनदरमा, मगल ओर शनि

का योग हो तो मरख, निरधन, छोटा, विषम शरीर ओर भिकषा

की वतति करनवाला होता ह।।३-४।। अरकनदबधजीवाना योग शिलपकरो धनी । सोवरणिकः पलताकषशच रोगहीनशच जायत । ५।।

सरय, चनरमा, बध ओर बहसपति का योग हो तो शितप अत‌ कारीगरी करनवाला, धनवान‌, सवरण का वयवहार करन वाला, गडी हई ओखोवाला ओर रोगहीन होता ह।।५॥

रविचनदरजञशकराणा सयोग सभगो नरः । हरसवशच राजमानयशच वागमी च विकलो नरः ।\६।।

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भषाटोका-सदिता १२३

रविचदरजञमदाना योग भिशषाशनो नरः।

वियकतः पितमातभया विकलाकषशच निरधनः ।)७॥

सरय, चनदर, बध ओर शकर का योग हो तो सनदर, दशरयवान‌, छोटा,

राजमानय, यकति स बोलनवाला ओर विकल होता ह। सरय, चनदर, बध

ओर शनि का योग हो तो भिकषाका अनन खानवाला, माता-पिता स

अलग रहनवाला, निरधन ओर विकल नतरोवाला होता ह।६-७।

रयचनजयशकराणा समबनध राजपजितः ।

जलारणयमगसवामी नरः सयािपणः सखी ।।८॥

सरय, चनदर, गर ओर शकर का समनवय हो तो राजा स पजित,

जल, वन ओर मग का सवामी, निपण ओर सखी होता ह।।८॥

सरयचनदरजयमदाना मानयशच वनितापरियः ।

बहविततसतसतीकषणः समाकषशच परजायत ।। ६।)

सरय, चनदर, शकर ओर शनि का योग दहो तो मानय, सतरी को परिय,

बहत धन, पतरोवाला, तीण ओर समान नतरवाला होता ह ।। ६€।॥

रवीदभगमदाना योग चातयतदरबलः ।

वनितासदशाचारो भीररगरसरो_ नरः ॥१०।।

अरकभोमबधजयाना योग सतरकरो नरः ।

परदाररतः शरो दःखी चकरधरो भवत‌ । ११)

सरय, चनदर, शकर ओर शनि का योग हो तो अतयनत दरबल,

सरी क समान आचरण करनवाला, इरपोक ओर आग चलनवाला

होता ह। सरय, मगल, बध ओर गर इनका योग हो तो सत का

काम करन वाला, परसतरी स रमण करनवाला, शरवीर, दखी ओर

चकरधारी होता द।। १०- ११।।

† सयोग पारदारिकः)

निरव दरजनशचौरो दिषमागो जनो भवत‌ ॥ १२)

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१३४ 0 का लगनचनदरिका

सरय, चनर, मगल ओर शकर इनका योग हो तो पराई सतरी रखन- वाला, निरलज, दरजन, चोर ओर विषम शरीरवाला होता ह ।।१२॥

रविभौमबधारकणा योग योदधा कविरजनः । मतरी च भपतिसतीकषणो नीचाचारशच जायत ।। १३।। सरय, मगल, बध ओर शनि इनका योग हो तो योदधा, कवि,

मतरी, सनापति, तीकषण तथा नीच आचरणवाला होता ह।।१३॥

रविभोमजयशकराणा योग पजयो धनी जनः । शभगो नपमानयशच खयातो भवति नीतिभाक‌ ।। १४।। सरय, मगल, गर ओर शकर इनका योग हो तो पजय, धनी, सनदर,

दशवरयवाला,राजा स मानय, विखयात ओर नीति जाननवाला होता ह । १४।

रविभोमजयमदाना सयोग गणनायकः । सोनमादो नपमानयशच सिदधारथो जायत नरः ।। १५॥। सरय, मगल, बहसपति ओर शनि इनका सयोग हो तो गणो म

नायक, बहत आदमियो म परधान, उनमादी, राजा स मानय ओर परयोजन सिदध करनवाला होता ह।। १५॥।

रविभोमसितारकीणा सयोग जायत नरः । लोकदवषटा समाकषशच नीचाचारो जडाकतिः ॥॥ १६।। रविजञजीवशकराणा योग बहमतिरनरः । धनी सखी च सिदधारथः परगलभशच परजायत ।१७।। सरय, मगल, शकर ओर शनि इनका योग हो तो लोगो स वर करन-

वाला, समान नतरोवाला, नीच आचरण तथा जड आकारवाला होता ह । सरय, बध, बरहसपति ओर शकर का योग हो तो बहत बदधिमान‌, धनी, सखी रह ओर परयोजन को सिदध कर तथा परगलभ हो || १६-१७॥।

सरयजञगरमदाना सयोग जायत नरः| भरातरमानकलही मानी कलीबाचारी निरदयमः ।। १८।।

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भाषाटीका-सदिता १३५

सरय, बध, गर ओर शनि य एक - क उख सर ऊर शनि ओ ठक राशि पर ल तो बनधवाला, बनधवाला,

कलह करनवाला, नपसक क समान आचरणयकत ओर निरदयोगी

होता ह।। १८।।,

रविजञभगमदाना योग भितरयतः शचिः।

मखरः सभगः पराजञो जायत च सखी नरः ।। १६)

रविजयभगमदाना सयोग लोभमानवान‌ ।

कवि; कारकनाथशच राजपरीतो भवननरः ।॥२०॥।

सरय, बध ओर शकर, शनि का योग हो तो मितर स मिलाप

हो, पवितर रह, वाचाल, सनदर, दशवरयवाला ओर पडित तथा सखी

होता ह। सरय, बहसपति, शकर ओर शनि इनका योग हो तो लोभी,

मानी, कवि, कारीगरजनो का अधिपति ओर राजा स परीति

रखनवाला होता ह।। १६-२०।।

चनदरारबधजीवाना योग शासतरविचकषणः ।

नरनदरसय कपापातर महाबदिरनरो भवत‌ । २१)

चनदर, मगल, बध ओर वहसपति का योग हो तो शासतर म निपण,

राजा की दया का पातर ओर महाबदधिमान‌ होता ह ।।२१।।

चनदरभोमजञशकराणामनवय बनधकीपतिः \

निदरालः कलही नीचो बनधदषी नरो भवत‌ ॥॥२२॥।

चनदर, मगल, बध ओर शकर का योग हो तो वनधयासी का

पति, बहत निदरावाला, कलह करनवाला, नीच ओर बनधओ स

दष करनवाला होता ह।।२२।।

चदरभोमजञमदाना योग शरकलोदधवः

च दिमातपितको जनः । २२॥

चनर, मगल, शकर ओर शनि का योग हो तो शरवीर कल म उतपनन,

पतर -मितर-सियो स यकत ओर दो माता-पितावाला हो।॥२३॥ `

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१३६ लगनचनदरिका

चनदरारगरशकराणा योग साहसिको नरः । विकलाङखो धनी पतरी मानी पराजञोऽपि जायत ।।२४।।

चनदर, मगल गर तथा शकर इनका योग हो तो हटी, विकलाग, धनी, पतरवान‌, अभिमानी तथा पडित परकति का मनषय होता ह ।।२४॥

चनदरारजीवमदाना सयोग बधिरोऽधनः । सोनमादः सथिरवाकयशच शरो विजञो भवननरः ।।२५।। चनदर, मगल, बहसपति ओर शनि इनका मल हो तो बहिरा, कगाल,

उनमाद-रोगी,सथिर बोलनवाला, शर-वीर तथा विदवान‌ होता ह।२५। चनदरारभगमदाना मिलन ` कलटापतिः । सोदगः सरपतलयाकषः परगलभो जायत नरः ।।२६॥। चनदर, मगल, शकर ओर शनि इनका योग हो तो कलटा सतरी का पति,

उदरगवान‌, सरप क समान नतरोवाला ओर पाखणडी होता ह।। २६॥ चदर-जञ-जीव-शकराणा सयोग सभगो धनी । दिमातरपितरकः पराजञो गतारिजयत नरः ।॥ २७।। चनदर, शकर, बध तथा बहसपति इनका योग हो तो सनदर,

एशवरयवान‌, धनी तथा दो माता ओर दो पितावाला, पडित तथा शतनरहित होता ह।। २७॥

चदरजञगरमदाना योग बधपरियः कविः । तजसवी राजमतरी च यशोधरमयतो नरः ॥२८॥।

चनदर, बध, बहसपति ओर शनि इनका योग हो तो बनधजन का परिय,कवि,तजसवी, राजा का मतरी, यश ओर धरमयकत होता ह।२८।

इनदजञभगमदाना योग मातरा विवरजितः । तवगदोषी सभगी दःखी बहभारयो भवननरः ॥ २६।।

चनदर, बध, शकर ओर शनि का योग हो तो माता स रहित, तवचा का रोगी, एशचरयवान‌, दःखी तथा बहत सियोवाला होता ह।। २६॥

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=

भाषाटीका-सडिता १३७

चदरजयसितसौ रीणामनवय छजयकनतकीसीणामनकय = पारदारिकः। `

पराजञो निररवयवधशच सथलभारयो भवनररः ।॥३०॥)

भौमजञगरशकराणा योग सतरीकलहपरियः ।

धनी सशीलो नीरोगी लोकपजयो भवननरः ।॥३१।।

चनदर, बहसपति, शकर ओर शनि कायोग दहो तो पराई सतरी

स रमण करन वाला, पणडित, दरवयहीन, करई भादयो स यकत तथा

मोरी सतरीवाला होता ह। मगल, बहसपति, बध तथा शकर इनका

योग हो तो सतरी स कलह करन वाला, धनी, सनदर सवभाववाला,

सगरहित ओर लोक म पजय नर होता ह।।३०-३१॥।

भोमनञगरसोरीणा योग शरशच निरधनः ।

सतयशौचयतो विदरानवादी वागमी नरो भवत‌ ।\३९।।

भोमनजञभगमदाना सारमयरचिरभवत‌ ।

मललोऽनयपषटो योदधा च दढाङगो जायत नरः ॥।३३))

मगल बध, गर ओर शनि का योग हो तो शर-वीर, निरधन, सतय

शोच स यकत, विदधान‌, वाद करनवाला ओर यकति स बोलनवाला मनषय

होता ह । मगल, बध, शकर ओर शनि का योग हो तो कतता सरीखी रचि

यकत,मलल,अनय स पषट, योदधा ओर दढ अगवाला होता ह।२२-३३।

भोमजयभगमदाना मिलन साहसभरियः ।

धनी सतजाः सरीलोलः कितवो जायत नरः ।। ३४॥।

मगल, बहसपति, शकर तथा शनि इनका योग हो तो हटी,

धनी, तजसवी, चय म चचल ओर धरत होता ह।।२४॥

बधजयभगमदाना योग कामातरो नरः ।

विधयभतयो मधावी तीतरः शासतरतो भवत‌ ।।३५॥

बध, बहसपति, शकर तथा शनि का योग हो तो कामी, भतयो स ,

सवा करानवाला, बदधिमान‌, तीण परकति, शासतर म रत होता ह।३९।

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लगनचनदिका

अथ पञचगरहयोगाः बहपरपञचो दःखी च जायाविरहतोऽपि सः । सयधिरजीवपरयनतरनरः सयातपचभिगरिः ।। १।।

सरय, चनदर, मगल, बध तथा बहसपति इनका योग हो तो बहत मायावी, दःवी तथा सतरी क वियोगवाला होता ह।।१।।

गतसतयो बनधहीनः परकरमकरो नरः । कलीबसय च सखा सरयशचनदरारबधभागविः ।।२॥

सरय, चनदर, मगल, बध तथा शकर य गरह हो तो सतयहीन, बनध- हीन, पराय करम को करनवाला ओर हिजडो का सखा होता ह।।२।।

अलपायरविकलचरशच दःखी सतविवरजितः । रवीनदभोमजञारकणिा योग बनधनभागपि ।।३।। जातयनधो बहदःखी च पितरमातरविवरजितः । गानपरीतो नरो भानचनदरारगरभागविः ।।४।।

सरय, चनदर, मगल, बध ओर शनि म गरह एक जगह हो तो अलप आय वाला, सवरीरहित, दःखी, पतररहित ओर बनधन का भागी होता ह सरय, चनदर, मगल, गर तथा शकर य गरह एकतर हो तो जाति स अनधा, बहत दःखी,पिता-मातास वरजित ओर गानम परीतिवाला होता ह।३-४।

परदरवयहरो योदधा परतापकरः खलः । समरथो जायत सरयचनदरारगरसोरिभिः ॥।५।। मानाचारधनरहीनः परदाररतो नरः। एकसथजयत भानशवनदरारभगसोरिभिः ।॥६।।

सरय, चनदर, मगल, बहसपति ओर शनि इनका योग हो तो पराया दरवय दठनवाला, योदधा लोगो को सताप दनवाला, दषट तथा समरथ होता ह। सरय, चनदर, मगल, शकर तथा शनि इनका योग हो तो मान, आचार तथा धन स हीन हो ओर पराई सतरी स भोग कर।।५-६।

१३२३८

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भाषाटोका-सडिता १२६

राजमनतरी भरिविततो यतरजञो दडनायकः ।

खयातो जनो यशसवी च रवीदजञजयभागविः ।७। `

पराननभोजी सोनमादः परियतपतशच वचकः ।

उगरो भीररनरः सरयचनदरजगरसोरिभिः ।॥८।। सरय, चनर, बध, वहसपति तथा शकर य एक जगह होतो राजाका

मनतरी, बहत धनवाला, यनतर जाननवाला, दणड दन का अधिकारी,

विखयात ओर यशसवी होता ह । सरय, चनदर, बध, गर तथा शनि य एक

जगह सथित हो तो पराय अनन का भोजन करनवाला, उनमादी, परिय-

जनो को दःख दनवाला, ठग, भयानक तथा डरपोक होता ह।७-८।

धनपतरसचरहीनो मतयतसाही च लोमशः ।

दीरघो भवति सयनदबधशकरशनशचरः ।।€।। सरय चनदरबध.शकर ओर शनि य एक जगह सथित हो तो धन, पतर ओर

सख स हीन, मतय म उतसाहवाला ओर अधिक रोमोवाला होता ह ।€।

इनदरनालरतो वागमी चलचिततोऽङधनापरियः ।

परायशः शतरभिरभातो रवीदीजयसितासितः ।।१०।। सरय, चनदर, बहसपति, शकर ओर शनि य एक जगह सथितहोतो

इनदरजाल (बाजीगरी विदया) म निपण, यकति स बोलनवाला, सरियो

का परिय ओर परायः अपन शतरओ स डरनवाला होता ह।।१०॥।

सफीतो बहहयः कामी नरोऽशोकशच भपतिः ।

सरयारजञजयशकराणा योग भपतिवललभः ।।११।।

भिकषाभोगी च रोगी च नितयोदमी मलीमसः ।

जीरणो नरो भानभोमजञजीवशनिभिभवित‌ ।॥। १२॥।

सरय, मगल, बध, बहसपति तथा शकर य एक जगह हो तो

समदधिमान‌ बहत अशवोवाला, कामी, शोकरहित, सनापति ओर

राजा का परिय होता ह। सरय, मगल, बध, बहसपति ओर शनि

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९४० _ = ----------------- ©

उदविगन, मलिन तथा जीरण होता ह।।११-१२॥।

वयाधिभिः शतरभिरगरसतः सथानभरषटो बभकषितः ।

नरः सयादिकलः सरयकजजञभगसोरिभिः ।। १३।।

विजञो विचारवाशचव धातयतररसायन ।

नरः परसिदधो रवयारगरशकरारकिभिरयतः ।।१४।। सरय, मगल, बध, शकर ओर शनि य एक साथ हो तो सदा वयाधि

ओर शतरओ स पीडा हो, सथानस भरषट हो, भखो मर ओर सदा विकल

रह। सरय मगल गर शकर ओर शनि य एक जगह हो तो पडित,धात-

यनतर तथा रसायनम विचारवान‌ ओर परसिदध मनषय होता ह ।१३-१४।

मितरपरियः शासतरवतता धारमिको गरसमतः । दयालः सरयसोमयजयभगपरशनशवरः ।। १५।।

सरय, बध, बहसपति, शकर ओर शनि इनका योग हो तो मितरो का परिय,

शासतरवतता, धारमिक, गर का सलाहकार ओर दयाल होता ह।१५।

साधः कलमषहीनशच धनविदयासखानवितः । बहमितरो नरशनदरभोमजञगरभारगवः ।। १६।।

जिसक चनदर, मगल, बध, बहसपति ओर शकर य एक जगह

हो तो वह साध, पापहीन, धन, विदया तथा सख स यकत ओर

बहतर मितरोवाला होता ह।१६।। परादनपाचको निःसवो मलिनसतिमिरामयी । नरो भवति चदरारजीवशकरशनशवरः ।। १५७।।

बहमितरारिपकषशच दःशीलः परपीडकः । मानी नरशवनदरभोमबधशकरशनशवरः ।। १८।।

चनदर, मगल.गरशकर ओर शनि इन गरहो का योग हो तो परानन-

पाचक (रसोडइया),दचदि,मलिन ओर तिमिर रोगी होता ह । चनदर,मगल,

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आषाटोका-सदिला १४१

बध.शकर ओर शनि य गरह एक जगह हो तो बहत मितर तथा त य जर सति र गरह एक जगह हौ तौ बहत मितर तथा शतरओ

वाला, दषट सवभाव,परपीडक ओर अभिमानी होता ह।१७- १८।

राजमतरी राजतलयो लोकपजयो गणाधिपः ।

चनदरजञगरशकरारकियोग जातो भवननरः ।॥१६।।

अशोकसतामसो निःसवः सोनमादो राजवललभः ।

निदरातरो भोमवधजीवशकरशनशवरः ।। २०।। चनदर, बध, गर, शकर ओर शनि एक जगह हो तो राजा का

मतरी, राजा क समान माननीय, लोकपजय ओर अनक मनषयो का

सवामी होता ह। मगल, बध, गर, शकर ओर शनि इनका योग

हो तो शोकरहित, तामसी (करोधी), दसि, उनमादी, राजा का परिय

ओर निदरा क वश-म होनवाला मनषय होता ह।।१६-२०॥

अथ कगलयोगाः

विदयाधरमधनरयकतो बहभाषी च भागयवान‌ । सययिः शकरपरयनतरलाभो भवति षडगरहः ।। १।।

सरय, चनर, मगल, बध, गर ओर शकर म एक जगह हो तो बालक

विदया ओर धनस यकत, बहत बोलनवाला तथा भागयवान‌ होता ह।१।

` परकारयरतोदाता शदधातमा चञचलाकतिः ।

षडभिगरिरविना शकर रमत विजन जनः ।।२।। शकर को छोडकर, सरय, चनर, मगल, बध, बहसपति ओर शनि

य. छः गरह यदि एकतर हो तो पराय काम म रत, दानी, शदध

आतमा ओर चञचल आकारवाला होता ह। २॥

सशयी सभगो मानी खयातो यदधऽरिमरदकः ।

विना जीव गरहः षडभिरवनादौ रमत जनः ।३॥।

सरय, चनदर, मगल, बध, शकर तथा शनि य छः गरह एक जगह

हो तो सशय यकत मनवाला, सनदर, दशवरयवान‌, मानी, विखयात,

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- 22

१४२ लगनचनदरिका

यदध म शतरओ को परासत करनवाला ओर वन आदि म विचरन का परमी होता ह।।३।।

अरथपरियो रणोतसाही पिशनः करोधलो भवान‌ । अरवनदभोमशकराजयमनदशच सभगो नरः ।।४।।

सरय, चनदर, मगल, गर, शकर, शनि य गरह एक जगह हो तो धन का परमी, यदध म उतसाही, चगलखोर, करोधी, लोभी, सनदर ओर रशवरयवान‌ होता ह।। ४॥

कलवरहीनो निररवयो राजमतरी कषमायतः। रवीनदबधजीवासफजिनमनदः सभगो नरः ।।५।।

सरय, चनदर, बध, गर, शकर ओर शनि य एक जगह हो तो सतरी ओर दरवय स हीन, राजा का मनतरी तथा कषमाशील होता ह।।५॥

धनदारसतरहीनसतीरथगामी वनाशचितः। सयरिजञजयशकरारकपतररयोगि भवननरः ।।६।।

सरय, मगल, बध, गर, शकर ओर शनि य एक जगह हो तो धन, सरी ओर पतर स हीन, तीरथयातरी ओर वनवासी होता ह।।६॥।

धनी पतरी शचिरमनतरी बहभारयो नपपरियः । विना सरयगरहः षडभिः परतापी जायत नरः ।।७।।

चनर, मगल, बध, गर, शकर ओर शनि य छः गरह एक जगह हो तो धनी, पतरवान‌, पवितर, मतरी, बहत सियोवाला, राजा का परिय ओर परतापी होता ह।।७।।

परायो दरो मरखशच षडभिरवा पञचभिरगरहः । अनयोनयदरशनाततषा फलमततपरकीरतितम‌ ।। ८।।

छः या पाच गरह एक जगह हो तो जातक ददर ओर मरख होता ह, परसपर दषटि समबनध होन स ही यह फल कहा गया ह।। ८॥

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{

~ भ ६.८

छ ५ ५

भाषाटोका-सदिता १४३

अथ नाभसयोगाः नौकायोगः-

लगनातसपतमपरयनतगरः सरवः शभाऽशभः । करमण ससिितः परोकतो योगो नौकाभिधो बधः ।। १॥ अनयोपजीवविभवो वहवायः खयातकीरतिमान‌ । कपणो मलिनो लबधो नौयोग चञचलो नरः ।॥२।। यदि लमन स सातव घर तक करमशः शभाऽशभ गरह निरनतर

सित हो तो उस नौका योग कग। नौकायोग म जनम लन-

वाला मनषय पराधीन वतति, धनी, विखयात, बहत आयवाला,

कीरतिशाली, कपण, मलिन, ५ चञचल होता ह।। १-२।। कटयोग-

चततकरमपयनतः करमण _ पतितरगरः ।

विखयातः कटनामाऽसौ योगः भकतो मनीषिभिः ।।३॥।। यदि चौथ घर स दशव घर तक करमशः निरनतर गरह पड हो

तो उस पडितजन कटयोग कहत ह ।।३॥।

मिथयावादी शठः कररः कितवो बधपालकः ।

निषकिचनः शलवासी कटयोगभवो नरः ।।४।। कटयोग म उतपनन मनषय मिथया विवादी, जठ, करर, धरत,

बनधओ का पालक, दरवयहीन ओर परवतवासी होता ह।।४॥। छचयराः -

सपतमाललगनपरयनतः खटः सरवः शभाऽशभः। कषतरयोगः समाखयातो बरहमरदरादिभिः सरः ।\५॥

परकषटधीरदयालशच ` दीरघायः सवजनाभनयः ।

वयसि परथमऽनतय च सखी कषतरियो नरः ।।६।।

यदि सातव घर स लगनपरयनत शभाऽशभ गरह पड हो तो बरहमा

शिव, आदि दवता उस छतरयोग कहत ह । इस योग म जनम लनवाला

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९४४ लगनचनदरिका

सतषय उततम बदधियकत, दयाल, दीरघाय, सवजनो का आशरय ओर पहली तथा पिछली अवसथा म छतरधारी राजा होता ह| ५-६॥ ।

कककर | दशमाञच चतथनतिरगगननदरः शभाऽशभः । गतरयोगः कारमकाखयः खयातोऽसौ पडितोततमः ।।७।। यदि दशव घर स चौथ घर तक करमशः शभाऽशभ गरह पड |

हो तो उततम पडितो न इस कारमकयोग कहा ह।। ७।। वयोमधय भागयहीनो गतिपालो वन रतः । मिथयावादी च चौरशच कारमक जायत नरः ।८।॥

कारमकयोग म जनम लनवाला मनषय जल का रकषक, वनवासी, अवसथा क मधय म भागयहीन, ञठा ओर चोर होता ह।। ८॥

ककर-रक-फकदयोयाः-- लगनासतयोगरहिः सौमयः पापशच सखकरमगः । वजरः सयादिपरीतसथरयवः पदम च मिशरितः ।।६।।

यदि लगन ओर सातत घर म शभगरह हो, चौथ, दशव घर म पापगरह बठ हो तौ वजरयोग कहा जाता ह। यदि इसस विपरीत ` गरहो की सथिति हो तो यवयोग होता ह। यदि इन चारो घरो म णशभाऽशभ मिशरित गरह पड हो तो पदमयोग होता ह।। ६॥

सखी च सभगः शरो मधय भागयन वरजितः । निःसनहशच विरदधशच वजयोग खलो नरः ।। १०॥।

वजनयोग म जनम लनवाला मनषय सखी, सनदर, णशरयवान‌, शरवीर, मधय अवसथाम भागयहीन, रकष सवभाव ओर विरद परकतिका होता ह। १०।

दाता च सथिरचिततशच वरतादिनियमरयतः। मधय सखारथपणयाढयो यवयोग जनो भवत‌ । ११।। . यवयोग म जनम लनवाला मनषय दानी, सथिर चितत, वरत नियमो `

स यकत, मधय अवसथा म सखी, धनी ओर पणयातमा होता ह।।११॥। . ५;

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भाषाटीका-सदिता ९६४९

सथिरायरदीरघकीरतिशच काताशभशतरयतः । भयो गणमपररकतः पञचयाग जनो भवत‌ ॥ १२।। पदमयोग म जनम पानवाला मनषय सथिर आय, दीरघ कीरति,

। सकडो सरियो ओर गणमद स यकत होता ह।। १२॥। क7यगि- शकट -गकिदगयोगतः-

कनदराददहितीयगः सरदवपी वापि ततीयगः । शकट वाऽसतलगनसथरविहगः सखकरमगः ।।१२॥।

यदि कनदर स दसर घर म अरथात‌ चारो पणफर म सव गरह

सथित हो या ततीय कनदर अरथात‌ चारो आपोकलिम म सब गरह सथित

हो तो वापी- योग होता ह, सातव घर ओर लगन म सव गरह

यित हो तो शकट योग होता ह, चौथ तथा दशव घरम सव गरह

हो तो विहङकयोग होता ह।।१३॥।

निपणो निधिकारयष सथिररवयः सचरयतः ।

परहषटमखनतरशच तपतो वापया नरः सदा ।॥१४॥।

मरखः कभारयो रोगारतः शकटयरापतजीविकः ।

~ निःसवो बनधविहीनशच शकट जायत नरः ।॥१५॥।

॥. वापीयोग म जनम पानवाला मनषय सब कामो म निपण,

सथिर दरवयवाला, सखी, अतिशय परसनन मख ओर नतरवाला हो ओर

सदा परसनन रह | १४।। यदि शकटयोग म जनम हो तो मरख, दषट

सरीवाला, रोग स पीडित, शकट (बलगाडी) स जीविका करनवाला,

दरिदर तथा बनधहीन होता ह।।१५॥

भरमणऽतिरचिरहषटः सरतपरापतजीविकः ।

१ , + , निकषटः कलहपीतो विहग मानवो भवत‌ ।१६।।

# विहग यौग म जनम पानवाला मनषय भरमण स परम रखनवाला,

` मथन करक जीविका चलानवाला, निकषट ओर कलही होता ह ॥१६॥

९५ [===

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१४६ लगनचनदरिका चछयग--

अथदिकानतरसथशच गरहरजलधिरचयत । लगनादकातरसथशच चकरसरवगरहः समतम‌ ।। १७॥।

यदि दसर घर म एक अनतर करक सब गरह (अरथात‌ २।४।६। ८।१०।१२) सथानो म सथित हो तो जलधियोग होता ह ओर यदि लगन स एकानतर सथानो (अरथात‌ १।३।५।७।६।११) म सब गरह सथित हो तो चकरयोग होता ह।। १७॥।

जललधियोगा -

वहरथरतनसमपननः पतरी भोगी जनपरियः । सशीलः सथिरचितरशच जलधौ जायत नरः ॥१८।। परणतारोषभपालाः सतसवितपदाबजः । चकरयोग समतपननो महाराजो भवननरः ।। १६।।

जलधियोग म जनम पानवाला मनषय बहतर दरवय तथा रतन -स यकत, पतरवान‌, भोगी, सबका परिय, सशील ओर सथिरचितत होता ह। चकरयोग म जनम पानवाल मनषय को सब राजा परणाम करत ह, बड लोग भी उसक चरण-कमल की सवा करत ह, वह एसा उततम राजा होता ह।। १८- १६॥

डलटः @दगगटकरोया--

धनसथान तरिकोण च गरहः सरवरहल समतम‌ । लगनरिकोणगः खटः भशरदगाटकमदाहतम‌ ।। २०।। वहवाशी च दरिदरी च करषको बधवरजितः । सोदगो दःखितः परषयो हलयोगभवो नरः ॥२१॥

यदि दसर, नव ओर पाचव घर म सब गरह हो तो वह हलयोग होता ह। यदि लगन ओर नव घर म सब गरह सथित हो तो शरङगाटक योग होता ह। इस हलयोग म जनम पानवाला मनषय बहत भोजन करनवाला, दणद, किसान, बधजनो स रहित, उतावला, दःखित ओर आजञाकारी सवक होता ह।।२१।।

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भाषाटीका-सदिता १९४७

हासयवकतरः शभाचारो नपभीतः कलहपरियः । धनाढयो यवतितरषयो योग शरगाटक नरः ।।२२।। लगनमारभय कनदरभयो चतरगहगतगिः । यष-वाणौ शकति-दडौ चतवारोऽमी समता बधः ।२३॥।

शरङखाटक योग म जनम लनवाला मनषय हसमख, शभ आचरण

करनवाला, राजा स भयभीत, गडाल, धनाढय ओर यवती सवरी

का गलाम होता ह। लगन स लकर (चारो) कदो स चारघरम अरथात‌

(१।२।३।४ म, ४।५।६।७ म, ७।८।६।१ ०, १०।११।

१२। म) सब गरह सथित हो तो पडित जनो न यथाकरम स यप,

बाण, शकति ओर दड य चार योग कह ह । जर- लगन, दसर,

तीसर ओर चौथ घर म सब गरह हो तो यप योग होता ह। इसी

तरह बाण आदि योगो को भी जानना चादिए‌।। २२-२३॥ ययोर -

आतमरकषारतसतयागी सखसतयतरतरयतः ।

विशिषटो मतरवादी च यपयोग नरो भवत‌ ।। २४।। यपयोग म जनम पानवाला मनषय अपनी रकषा म ततपर, तयागी,

सखी सतय ओर नियम स यकत, शरजन ओर मतरवादी होता ह।२४। वणयगा--

शरकरता दसयसवी मासादो मगबधकः ।

हिसकः शिलपकारी च शरयोगोदधवो भवत‌ ।।२५॥।

शर (बाण) योगम जनम पानवालाबाण बनानवाला,चोरो का साथी,

मास भकषणकारीमगोको बधनवाला,टिसक ओर शितपी होता ह ।२५। गतयगः -

चिरायरयदकषशच सभगः. ससथिरोऽलसः ।

नीचो दःखी दरिदरशच शकतियोग भवननरः ॥। २६। शकतियोग म जनम पानवाला मनषय दीरघाय, यदध म चतर, सदर, `

रशरयवान‌, ससथिर, आलसी, नीच, दःखी ओर दसद होता ह।२६।

गा

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९४८ लगनचनदिका

दडयोगा--

` निःसवो नयटसतसतरीको बधबाहयः सनिरघणः। नीचगरषयो दःखितशच दडयोग भवननरः ।।२७॥ दडयोग म जो मनषय जनम वह ददर, पतरहीन, सतरीहीन, बध-

हीन, दयाल, नीचो का आजञाकारी ओर दःखित होता ह।। २७॥ अरदचिनदः गदयर -

कनरादिभिननसथानभयः सपतकऋकषगतगरहिः । अरधचदर गदा परोकता कनदरातपावदयसथितः ।२८।। यदि कनदर स भिनन सथानो स लकर सात राशि तक करमशः

गरह पड हो तो अरध चनदरयोग होता ह। यह योग आठ परकारका होता ह, जत- दवितीय स अषटम तक एक, ततीय स नवम तक | दवितीय, पचम स एकादश तक ततीय इतयादि एस ही छ, आवा, नवा, एकादश ओर दवादश सथानो स जान। यदि कनदर सथानो क दोनो ओर सथित सातो गरह पड हो तो गदायोग होता ह।।२८।।

बली राजपरियः कातो हमरतनरलकतः । अरधचदर चमनाथः सभगो जायत नरः ॥ २६।।

अरध चनदरयोग म जनम पानवाला मनषय बली, राजाका परिय, सवरण - रतन स भषित, सना का पति, सनदर ओर दशवरयवान‌ होता ह ।२६।

शसतर योग परवीणशच सदयो यकतारथततपरः । यजवा धनी सपरसननो गदायोगोदधवो नरः| ३०॥।

गदायोग म जनम लनवाला नर शासतर ओर योग परवीण, शीघर ही योगय करम म ततपर यजञ करनवाला,धनी, सनदर ओर परसनन होता ह।३०।

एकादिभिः सथितः सरवगरहिरगोलो यगः करमात‌ । शलकदारपाशाशच दामिनी वीणया सह ॥३१।। यदि एक स सात राशियो तक सव गरह पडहोतो करम स

गोल, यग, शल, कदार, पाश, दामिनी ओर वीणा योग होत ह।

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| भाषाटीका-सदिता १४.८६

अरथात‌ जिस किसी एक सथान म साता गरह पडहोतो गोल, दो सथानो म जहा - तहा सब गरह हो तो यग, तीन सथानो म शल, चार सथानो म कदार, पाच सथानो म पाण, छः म दामिनी ओर सात सथौनो म सातो गरह पड हो तो वह वीणायोग होता ह।।३१॥

गल यगाः -

विदयाहीनो धनरहीनो मानहीनोऽतिदःखितः। गोलयोग समतपननो मलिनो जायत नरः ।।३२। गोलयोग म जनम पानवाला मनषय विदयाहीन, धनहीन, मान-

हीन, दःखित तथा मलिन होता ह॥ ३२॥ यरगयराः =

पाखडभागयो निरदरवयः पतरमातविवरजितः । यगयोग धरमहीनो लोकनिदयोऽपि जायत ॥३३।। यगयोग म जनम पानवाला पाखणडी, धनहीन, पतर ओर माता

स हीन, धरमहीन तथा लोक म निनदित होता ह।।३३॥। शलयः -

तीकषणोऽलसो निरधनशच हिसरः शरो बहिषकतः। सगरामलबधशबदशच शलयोग जनो भवत‌ ।३४।। शलयोग म जनम पानवाला मनषय हिसक, आलसी, तीकषण

परकति, निरधन, शरवीर, समाज स बहिषकत, यदध म परापत शबद

अरथात‌ खिताब पानवाला होता ह।। ३४॥ कदारयगः-

कषौ रतः सतयवादी सवबाहविहितोदयः। धनी सखी चञचलातमा कदारोतथो नरो भवत‌ | ३८।। कदारयोग म उतपनन मनषय खती करनवाला, सतयवादी, अपनी

भजा क बल स कमान वाला, धनी, सखी ओर चचल सवभाव

वाला होता ह।३५॥

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९५०. लगनचनदिका यसयोरः

कारय दकषः परपची च बहभाषी च बनधभाक‌ । विशीलो बहलकषमीकः पाश भतययतो भवत‌ ।।३६।। पाशयोग म उतपनन मनषय कारय म चतर, मायावी, बहत बोलन -

वाला, शीलरहित, बहत धनी ओर सवको स यकत होता ह ।३६॥ दयसयगः -

उपकारी धनी मढः पशपतरसमदधिमान‌ । दामयोगभवो लोक रलरभवति परितः ॥ ३७।। दामयोग म उतपनन मनषय उपकारी, धनी, मढ, पश-पतरादि

को की समदधि स यकत तथा रतनो स विभषित होता ह। ३७॥ किययगः-

नतयगीतपरियो नता बहभतयो धनी सखी । कारयष निपणो लोक वीणायोग च जायत ।।३८।। वीणायोग म उतपनन पराणी नतय-गीत का परमी, नायक, बहत

भतयोवाला, धनी, सखी ओर सभी कारयो म निपण होता ह।३८॥

दविसवभाव सथिर खटरशचरशच सकलः सथितः । नलोऽथ मसलो रजरयोगाः परोकताः परातनः ।।३६।।

दविसवभाव, सथिर या चर राशियो पर यदि सब गरहो की यिति होतो करम स परातन पडित न उस नल, मसल, रजज अरथात‌ दविसवभाव राशि म सव गरह सथित हो तो नल, सथिर म मसल ओर चर म रज कहाहि।२६।

नल-अललः- रजछयोगः-

नयनातिरिकतदहशच निपणो धनसचयी । बनधपरियः सरपशच नलयोग भवननरः ।।४०।। राजमानयो धनरयकतः खयातः पतरी नपपरियः । मसल सथिरचिततशच करमोदयकतशच जायत ।।४१।। नलयोग म जनम पानवाला नर हीन अगवाला, निपण, धन-

सगरही, बनधओ का परिय ओर सरपवान‌ होता ह। मसलयोग म उतपनन

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भाषाटीका-सडिता १९८१

मनषय राजा स मान पानवाला, धनी, पतरवान‌,राजा काः परिय, सथिर चिततवाला ओर कारय म उदयोग करन वाला होता ह।। ४०-४१॥

परदश दरवयभागी सरपो दानततपरः । कररः खलसवभावशच रञजयोग जनो भवत‌ ।।४२।

रजयोग म जायमान मनषय परदश म दरवय परापत करनवाला, रपवान‌, दान म ततपर, करर ओर दषट सवभाव का होता ह ।।४२॥

स7लगयोग-- सयग -

कनदरसथानष सरवष शभः सरवशच ससथितः । मालायोगः सरवपपः सरपयोगः परकीरतितः ।४३।। वसतरवाहनभोगाचरयकतः कातासहसपियः । मालायोग समतपननः सखी भवति सरवदा ।॥४४॥

यदि सव शभगरह कनदर सथानो म ही सथित हो तो मालायोग होता

ह, यदि इसी परकार कनदर म सब पापगरह पड हो तो सरपयोग होता

ह। मालायोग म उतपनन मनषय वसतर, वाहन, धन तथा भोग स यकत,

सरी ओर मितरजनो का परिय ओर सदा सखी रह।। ४३-४४।।

कररो निःसवो दःखितशच परानन निरतः सदा । दीनशच विषमो लोक सरपयोग परजायत ।।४५॥। सरपयोग म उतपनन मनषय करर, दरि, दःखित, पराय अनन का

भोजन करनवाला, दीन ओर कटिल होता ह॥४५॥ अख करक-धानयगदितकिचछरः

शाक वहधिगण कतवा मनिभिरभागमाहरत‌ । शष नतरगण कतवा पच पच नियोजयत‌ ।१।।

लबध वहधिगण कतवा धानयादिः सपतमागतः ।

शनय पञचव विजञयाः सरवमव निरपयत‌ ।॥२।।

वरषा धानय तरण शीतमषणो वायशच वदधयः । कषयशच विगरहशचव जञयमव करमण च ।।३॥।

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< २ लगनचनदरिका

वरतमान शक का तीन स गणा कर, उसम. सात का भाग जो बाकी हो, दगना करक पच-पाच मिला द। लबध अङको तिगना कर फिर सात का भाग द, जो बाकी रह उसम पाच मिलाव।

इसी परकार करता रह। यदि शनय बच तो उस पाच ही जान। फिर करम स वरषा, धानय, तण, शीत, तज (अगनि), वाय, वदधि, कषय तथा विगरह इनको जान।।१-३॥

उदाहरण- शाक १८१५८ ड इसको लीन स गणा किया तो ८४४५ दधए। इसम सात का भाग दिया तो ७८७५७ लबध हा। बाकी € बच; इसको दना किया लो १२ दहजा। इसम पाच मिलाय तो १५७ दएट। जिसका तातपरय निकला कि इस साल म १५७ विशवा वरषा ह। उधर लबध ७.७७ हभए ह । इनको तिगना कर सात का भागद, बाकी रह म रपोच मिला क धानय लबध को इसी तरह तिगना करक सात का भाग दकर शष म पोच जोडकर तरणादि का विचार कर।। ९-३।।

शाक शकरगण कतवा भागो वदरविधीयत । शष मघा भवनतीह चावरतादया यथाकरमम‌ ।। ४।। आवतत चितिता वषटिः समावरत सशोभना । पषकर दषकरा वषटदरणो वरषति सरवदा ॥ ५॥। वरतमान शाक को चौदह स गणा कर चार का भाग द, जो बाकी

रह उसस करमशः आवरत आदि मघ जान। अरथात‌ एक बच तो आवरत मष म सोची हरई वरषा हो, समावरत मष म शभ वरषा हो, पषकर म वरषा दरलभ हो ओर दरोण मघ म सदा वरषा होती रह।।४-५। दशाभिरदिवसमसिो मासचतषकण लभयत दिवसः । । दिवसदयन घटिका घटिकायगमन पलमकम‌ ।। ६॥ वाको दशभिरगणयो भानना तरिशताऽपि च। षषटिभिशच हरदधाग दशा सरयादितो भवत‌ ।।७॥। दश दिन स एक मास, चार महीनो स एक दिन, दो दिन स एक घटी

ओर दो घटी स एक पल उपलबध होता ह। (यह किसी दसर गरनथ

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भाषाटीका-सदिता १५८३

कना शलौक यरा आ पडा ह । कयोकि इसका --- सजपा कलोकि इसका परवापर समबनध मालम न समबनध मालम नही

पडता)। ६। धवाक को दश स गणा कर, फिर बारह स गणा करक तीन

स गण, फिर साठ स भाग द। तदननतर सरयादिक की दशा जान। ७।

आदितयालतिगणो राहः सरयचदरयतो गरः ।

आदितयाददिगण भौम मलयितवा शनिभवित‌ ।\ ८}

चदरभोमो बधो जञयः कतशच मगलो यथा ।

चदरमा दविगणः शकरो दशाचकरमदाहतम‌ ।\ € }।

सरय स तीगनी राह की दशा होती ह । सरय ओर चनदरमा स यकत गर

की दशा, सरय स दनी ओर मगल स यकत शनि की दशा होती ह।

चनदरमा ओर मगल की दशा मिलन स बध की दशा, मगल क समान कत

की दशा ओर चनदरमा स दन समय तक शकर की दशा होती ह।८-६।

अयः दसथाशचछशोयविचणरः

भयातघटयो गणिताःसववरषरापता भभोगः शरदोऽवशिषटम‌।

हनयातत सरयण तथव मास तथा खरामण दिनानि शषात‌ १।

निस नकषतर म जनम हो, उसक परव नकषतर की घयियो को साठ

० मनयन कर उसम इषट काल को जोड द, यही भयात ह। फिर

जनम नकषतर की घटियो को परव ६० म नयन किय घटी म जोड द, वही

भ-भोग होगा। अब भयात को नकषतरपति क वरष स गणा द, फिर

भ-भोग घटी स उसम भाग द। जो अङक आवि, उस ही वरष जान।

रोष को बारह स गणा कर मास जान। उसस भी शष बच, उस तीस

स गणा कर भ-भोग का भाग दकर दिन जान ।। १॥।

तथव षटया ६०घटिकाः पलानि विशोधयदायषि ततर शषम‌ ।

आयरदशाभिशच दशाहताचदनतदशा सयादशभिशच भागः) २।

जो बाकी रह, उसका साठ स गणा करक भ-भोग की घटियो का

भाग द। जो लबध हो, उस घटी जान । पीछ साठ स गणा करक भाग

द, जो पल लबध हो, उस घटी जान कर भोगय दशा जान। भोगय

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१९५८४ लगनचनदरिका

दशा स जिसकी अनतरदशा दखनी हो, उस गरह की दशा कन न~ को गणा कर । दश का भाग द, उसस लबध को मासादिक जानना चाहिए।। २॥ 1

अथ परमोकसथगडकलस‌ परणो धनः परिजनः सतदारकोश-

शवणडपरतापनिकररविजितारिपकषः । कोपाकलो निजजनः परिपरणमान-

सतगसथित दिनकर भवतीह लोक ।। १।। | यदि सरय परम उचच का हो तो मनषय धन, परिजन, पतर, सवरी,

कोश इनस परिपरण हो। उसका परचणड परताप बढ, वह शतरओ को जीत ओर करोधयकत तथा अपन जनो स परिपरण रह।। १॥

दाता भोकता परचरयवतीनायको विशववध-

पतरः पोतररहयगजरथः विलासी चनदर तग भवति मनजो : परसननः ।।२॥ यदि चनरमा परम उचच काहो तो दानी, भोगी, बहत-सी सवियो का पति, विशव का बनध, अनक करीडाओ म लगी हई बदधिवाला, चञचल सवभाव, पतर, पौतर, घोडा, हाथी तथा रथ स

ता विलासी, लोगो म मानय तथा परसनन रहता ह।। २॥।

धनधानयपरणः । रकताधिको रणधरास परः परयातो

तगसथित कषितिसत मनजः परतापी ।। ३।। यदि मगल परम उचच का हो तो वह अपन. परचणड परताप स सब राजाओ को वश म करनवाला, शख -परहार म निपण, धन- धानय स परिपरण, अधिक रकतवाला, रणभमि म आग रहनवाला तथा परतापी मनषय होता ह।। ३॥

1 |

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आभषाटोका-सदिता - १५५

अधयापकः --उयासकः शभमतिरनपतिपरानी = `

लोकोततरातिविभवो गणवानदारः ।

सतकीरतिमान‌ सतनयो निरजः सभितर-

सतग बध भवति सरवजनोपकारी ।\ ४)

भमणडलीपतिरदारमतिशच दाता

बरहमातमबोधविमलो बहपतरपोतरः ।

तीरथानरागहदयो दददहबनध -

सतग गरौ नरपतिरधनवानदारः ।\ ९॥।

जिसक बध परम उचच का हो वह अधयापक, शभ बदधिवाला,

राजा का मनतरी बहत धनी, गणवान‌, उदार, शर, कीरतिमान‌, सनदर

पतरो -वाला.रोगरहित, उततम मितरोवाला ओर सब जनो का उपकारी

होता ह। जिसक बहसपति उचच का हो वह राजाओ म शिरोमणि,

दानी, उदार बदधि, बरहमातमबोध स विमल, बहत पतर-पौतरोवाला,

तीरथो म अनरागयकत हदयवाला, दढ शरीर, बनधयकत, उदार ओर

धनवान‌ राजा होता ह।।४-५।।

दशाधिपो दढमतिः सतनः समनतरी

योदधा ४ ॥

चौरादिशासनपरः सकविः सडधि-

सतग कवौ कलपतिरमनजोऽतिहषटः ।) ६।।

यदि शकर उतचकाहो तो अनक दशो का अधिपति, दद‌ बदधि,

सनदर शरीर, समनतरी, योदधा, समसत जनो का पालन करन स लबध

करतिवाला, चोर आदिको को दणड दन म निपण, सनदर कवि,

सबदधि यकत कल का पति तथा अतिशय परसनन मनषय होता ह।।६।

आसागर कषितिपतिरदददहबनधो

हिसारतो रणभवि परथितपरभावः ।

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१५६ लगनचनदरिका'

हसतयशचरतलमणिभिः परिपरणगहः |

सयतमिज भवति तदधगत मनषयः ।। ७।। शनि यदि परम उचच काहो तो पथवी का राजा,

दढ शरीर, बनध यकत, हिसा म रत, रण-भमि म विखयात, हसती, अशव, रतन तथा मणि इनस भरपर धर वाला होता ह।।७।।

भवति धरणिपालो नीचजातिः परतापी हयगजधनयकतो जातिवरग विरकतः ।

कटिलमतिरनीतिरभरिभाडारयकत - सतमसि मिथनससथ जायत मानवनदर: ।। ८।।

यदि राह मिथन का हो तो नीच जाति, किनत परतापी राजा होता. ह। घोड, हाथी, धन स यकत ओर जाति क लोगो स विरकत रहता ह । वह कटिल बदधि, नीतिहीन, बहत धनी तथा राजा होता ह ।।८॥

अयः रवयादीनः फरसोचाःणयः

दशाशऽरकः शशी वयश भोमोऽषटाविशक तथा । बधः पचदशाश च पचमाश बहसपतिः ।। १॥। सपतविशाशक शकरो विशतयश शनशचरः । सहिकयशच विशाश परमोचच परकीरतितम‌ ।। २।। सरय का दश अश, चनरमा का ३ अश.मगल का अदाईस अश,बधका

पददरह अश, बहसपति का ५ अश, शकर का सतताईस अश, शनि का बीस अश ओर राह का भी २० ही अश तक परमोचच कहलाता ह। १-२।

इति भाषारथसयकता जयोतिष लगनचदधिका । वासदवन सशोधय परारथाय परिषकता ।। शराकषिनखतलयऽबद वकरम फालगन सित । पञचमया भगज शमभकषया परणता गता ।।

इरि राजलथामणडलानतगल- विताऊ ~रामानिकारी-शतागरमलषातमन- दवकाचतयानि-शीवाददवकरता लगचननिका भावाटीका लमाषता/

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आषाटीका-सदिता १५८९७

दडणनलर ल

मधयवा | काशी स | रणड

अकषाशाः | पलभाः | सदशानतर दशानतर | अनतर

नलर नल [अक जय -वत | क । मिन ५।५८ | ०।१४प. | १।२२ष.

-३१ अजमर २६।२७

अमरावती २०।५६ ०।५२प.

अमतसर ३१।३७ १।२१‌

अमठी २६।७ ०।१२प.

अयोधया २६।४८ ०।८प.

अलवर २७।३४ १।५प.

अलीगट‌ २७।५४ ०।४६प.

अलमोडा २६।३६ ०। रकष.

अहमद नगर १६।६ १।२२प.

अहमदावाद २३।१ १।४४प.

आगरा २७।२ ०।&€प.

आजमगढ २६४ १।१९१य‌. | ०।२प-

आब २६।३६ ०।३दप. | १।४२प.

इनदोर २२।४४ ०।३ प. | १1१२.

इटावा २६।५२ ०।३प. | ०।२३प.

उञजयिनी, २३।१० ०।० १।६प.

उदयपर २४।३५ ०।२४प. | १।३२प.

ऊटकमड (उटी) | ११।२४ ०।६य‌. | १।२३प.

कटक २०।२८ १।३प‌. | ०।२६प.

कपरथला ३१।२३ ०।७प. | १।९१द‌

कलकतता २२।३२ २।२य‌. | ०।५८यप‌

काची ६।२६ ०।१७ब. | ०।५२.

काठमाड‌, नपाल | २७।४५ १। ०।२२‌.

कानपर २६।२८ ०।४२प‌. | ०।२७प.

काशी (वाराणसी) | २५।१८ १।६प‌. | ०।०

करभतर २६।५५ ०० १।६ प.

कोचीन ६।५८ १।७प.

कोटा (राजसथान) | २५।१० १।१९प.

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लगनचनदिका १९८८

दशणनतर सारिषणी मधयरखा |. काशी स | दणड

| र सदशानतर| दशानतर | अनतर

नगर-नाम | अश-कला | अ. वयग. | घटी-पल | घटी-पल | मिनट कोलहापर १६।४२ | ३।३६ | ०।१प. | १।२७प. | -३३ गया २४।४६ | ५३।३ | १।२६१‌. | ०।२०प‌. | +१० गाजीपर २५।३५ | ५।४९ | १।९१५प‌ | ०।६ प. | +४ गोरखपर २६।४५ | ६।३ १।१२प‌. | ०।३ प. | +३ गवालियर २६।१२ | ५।५४ | ०।२‌. | ०।४षप. | -१७ चितरकट २५।१२ | ५।३६ | ०।४यय‌. | ०।२९प. | -७ चनपर (विहार) |२५।२ | ५।३६ | १।१४ष‌. | ०।५य‌. | +४ छपरा (बिहार) | २५।४७ | ५।४८ | १।२६‌. | ०।१७य‌.| ~+

जगननाथपरी १६।१८ | ४।१६ | १।३७य‌. | ०।२पप. | +१३ जबलपर ¦ २३।१० | ५।८ | १।३६प‌. | ०।३०प. | -१०

, | जमम (काशमीर) | २३।४४ | ७।४३ | ०।१२प. | ९।२१प. | -३१ जयपर‌ ` २६।५९५ | ६।६ | ०।२१. | १।११ष१. | -२७ जामनगर २२।२७ | ४।५७ | १।०प. | २।६प. | -५० जनागढ,गनरात | २१।३१ | ४।४४ | ०।५६प. | २।५प. | -४

जोधपर ८६।२८ | ५।५६ | ०।३०प. | १।२६प. | -३८ जौनपर २५।४५ | ५।४७ | १।६य‌. | ०।३प. ० शसी २५८।२७ | ५।४३ | ०।२५१‌. | ०।४४प. | -१६

२५।३२ | ५।४४ | १।२१‌. | ०।१२प‌. | +७ गम‌ ८।२६ | १।४७ . | ०।६य‌. | १।०प. | -२२

दरभगा २६।१० | ५।५४ | १।३पप. | ०।२६‌. | +१४ दहली -नरईदिलली | २८।३६ | ६।३३ | ५। यप. 0 व दारिका २२।१४ | ४।५४ | १११. | २।२०प. | -५४ धौलपर २६।४२ | ६।२ | ०।१यय‌ | ०।११प. | -श८ नागपर २१।६ ४।३६ | ०।३१प‌. | ०।३८८प. | - १३ नाथदरारा २४।५२ | ५।३४ | ०।२२प. | १।३१प. | -३४ नासिक २०।० | ४।२२ | ०।२रप. | १।३२प. | -३५

तामत २४।२८ | ८।२८ | ०।१२प. | १।२१प. | -३० ननीताल २६।२३ । ६।४५ | ०।३६प. | ०।३४प. | -१२

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भाषाटोीका-सदिता १०८६

दडयनतर 3

परतापगढ परयाग फरखाबाद वडौदा

वरदवान (वरधमान) बलरामपर वहराडच वोदा

भावनगर भोपाल मथरा मदरास (चननई) मिरज मिरजापर

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"न

9 लगनचनदरिका

दशणनतर सगरण मधयरखा | काशी स | रणड

अकषाशाः | पलभाः |सदशानतर | अनतर

| नगर-नाम |अश-कला | अ.-वयग. | घटी-पल , परी पल | मिनट

मर २५।२३ १।४४प‌. | ०।३५‌. | +१६ मसर १२।१८ ०।५य‌. | १।३प. | -२३

रतलाम २३।२१ ०।१०प. | १।९६प. | -३°

रतनागिरि १७।८ ०।२षप. | १।३७प. | -३७ ०।१५२३प. | २।२प. | -४७ ०।३२प‌. | ०।३७प. | -१३ ०।९६‌. | ०।१३प. | -३ ०।९५२प‌. | ०।१७प. | -५ ०।४६‌. | ०।२०प. | -९ १।२७य‌. | ०। पप‌. | +£ १।१३य‌. | ०।४प‌. | +

राजकोट २२।१६

रामशवरम‌ ६।१८ रायपर २१।१५ रीवा २४।३१ लखनऊ २६।५५ लोहरदगा -राची | २३।२७ विजयनगरम‌ १८।७ शिमला ३१।९६ ०।११प. | ०।५८प. | -२१

शरीरगपटन १२।२६ ०।६प‌. | १।३प. | -२३

सागर २३।५० ०।२६य‌. | ०।४३प. | -१५

सिरोज २४।६ ०।६ प. | ०।५८३प. | -१६

सिहोर २३।१२ ०।१०प. | ०।५८६प. | -२२ सरत २१।१२ ०।३२प. | ९।४१प. | -३८ शोलापर १७।४० ०।२प. । १।११प. | -२९ हरदा २२।२ ०।११प‌. | ०।९यप. | -२१ हरिदवार २६।५८ ०।२‌. | ०।४८प. | -१७ हदरावाद, दकषिण | १७।२३ ०।२४प‌. | ०।४८प. | -१६

नः क क डत क क भः

1 ~= कलकतता कितिरक~-

जयोतिष रवकाशन [ठाकर भरसाद लकसलर चक, वाराणसी - २२१०० ९| १६ ज. महातमा गाधी रोड

ककलकनता-,७० = ० ०७

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। मिमासा ` अवकहडा चकर भाषा टीका

. | शकल यनद सहिता गलज | रामायण मधयम भाषा-टीका २५८०)- रामायण रगीन भाषा-टीका १६ ०)- | हनमानजयोतिष भाषा टीका | शरी मदभागवतरहसय डोगर जी २२०)- | हनमान लागरलसतोतर भा.टी. भर

` [दगरचिन-पदधति भाषा-टीका १००} मनरसागर भा. टी. साजिलद - ७०)- रामलीला दरपण नाटक १२०)- राधशयाम रामायण बरली सध) दरगासपतशती शिवदतती टीका -३०)- बगलामखी रहसय, बगलोपासन ३०}- भगसहिताफलितसरवागड दरशन १३०} ५

“ |बहद‌ पाराशरहोराशासतरभा.टी. २००)- ५

` | बहजजातक भाषा टीका ' २००)- | गायतरी रहसयम‌ भाषा टीका १० मानसागरी भा. टी. सलिजद १००}- | लकषमी रहसयम‌ भाषा टीका ५

सामदरिक रहसय भाषा टीका ५०)- हन ट‌ रहसयम‌ भाषा टीका ५०}

भावकतहल भाषा टीका ६०}- | गणश रहसयम‌ भाषा टीका ५०}

महरतचिनतामणि भाषा टीका ५०} | लकषमी नारायण हदयसतोतर १] जातक दीपिका भाषा टीका ६०}- | विषण सहसरनाम सचितर मल १२}

जीन भविषय दरपण भा.टी. ६ करमविपाक भावा टीका ६०)- शिवसवरोदय भाषा टीका २ हनमानजयोतिष भाषा टीका १२ वाशिषटी हवन पदधति भा. टी. १६} बहदसतरोरतनाकर ५०१ सतोतर ८०}- राम रहसय भाषा टीका ` शिवरहसयम‌ भाषा टीका

गहरतन भषण भाषा टीका ५०)- | गोपाल खहसरनाम सचितर मल १२}-

बहजयोतिषसार भाषा टीका ६०)- | आदितय हदय सतोतर भा. टी. भरौ यजञ रहसय भाषा टीका १००)- | सकटा सतति भाषा टीका १२}

. |वरषकतय परथम भाग भा. टी. १३० | चालीसा पाठ सगरह बडा , ११

वरषकतय दवितीय भाग भा. टी. £2)- | हनमान चालीसा ७)-

विवाह पदधति शिवदतती भा. टी. २०) | दरगा चालीसा भाषा टीका ७)-

भगसहिता (अगरजी म) - २००}- | शिव चालीसा भाषा टीका ७)- | लगनचनदरिका भाषा टीका . ४०}- | एकादशी महातमय भाषा २०- (गहरतन भषण भाषा टीका = ५०)- | परत मजरी भाषा टीका रधौ =

, | सहस नामावली 24 मल का परतयकरत 12/ ~. | दरग, सरय, कषण, राम‌, दवी, सरसवती, अनपरणा, गायतरी, गोपाल, बलभदर, ललिता, शशरवर,

| यमना, हनमत‌, काली, लमी, गणश, तारा, सीता, राधा, शिव, गगा, विषण, भरव

यर बट \/.?>.> दधारा मगान का पताः

{~ जयोतिष परकाशनः || उअवछर परसाद बरकसलर | चौक, . वाराणसी -२२१००१ | १६€-ज, महातमा गाधी रोड ._ फोन : ३२८०४०२ ^ . -कलकनता ~ ७००००७9