mehakate phool

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अनुबम आमुख संसार कई कार के सबध होते ह। उनम कु छ सबंध लौिकक होते तो कु छ पारलौिकक, कु छ भौितक होते तो कु छ आयािमक। उनम सबसे िवलण, पिवऽ और सवȾपिर सबंध है गु-िशय सबध, यिक अय सभी सबध मनुय को सिदय से दःुख देनेवाले संसार-बंधन से मुƠ करने अम ह। एकमाऽ गु-िशय सबंध ही उसे संसार-बंधन से मुƠ कर सकता है। वामी िशवानंद सरःवती अपनी पुःतक 'गुभिƠयोग कहते - "गु-िशय का सबंध पिवऽ एवं जीवनपयत का है।" अथात ् जब तक िशय मुƠ नहीं हो जाता, नये -नये शरीर धारण कर जीवन जीता रहता है , तब तक गु उसका हाथ थामकर उसे मुिƠमाग पर आगे बढ़ाते रहते , बशतȶ िशय उनका हाथ थामे रहे , उह अपना जीवन गढ़ने सहयोग दे। ऐसे सदगुओं एवं सतिशय के मधुर जीवन-संग का रसाःवादन कर हम गुभिƠ के अमृत से अपने दय को पिरतृƯ एवं जीवन को रसमय बना सक , यही शुभ भावना मन सँजोये इस सिचऽ रंगीन पुःतक का संकलन िकया गया है। इसम िदये गये घिटत संग इस पिवऽतम सबंध के िविवध पहलुओं पर काश डालते ह। आशा है आप इसका लाभ उठाकर

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Page 1: Mehakate phool

अनबम

आमख ससार म कई कार क समबनध होत ह उनम कछ समबध लौिकक होत ह तो कछ

पारलौिकक कछ भौितक होत ह तो कछ आधयाितमक उनम सबस िवलकषण पिवऽ और सव पिर समबध ह गर-िशय समबनध कयोिक अनय सभी समबनध मनय को सिदयो स दःख दनवाल ससार-बधन स म करन म अकषम ह एकमाऽ गर-िशय समबध ही उस ससार-बधन स म कर सकता ह

ःवामी िशवानद सरःवती अपनी पःतक गरभि योग म कहत ह- गर-िशय का समबध पिवऽ एव जीवनपयरनत का ह अथारत जब तक िशय म नही हो जाता नय-नय शरीर धारण कर जीवन जीता रहता ह तब तक गर उसका हाथ थामकर उस मि मागर पर आग बढ़ात रहत ह बशत िशय उनका हाथ थाम रह उनह अपना जीवन गढ़न म सहयोग द

ऐस सदगरओ एव सतिशयो क मधर जीवन-सगो का रसाःवादन कर हम गरभि क अमत स अपन हदय को पिरत एव जीवन को रसमय बना सक यही शभ भावना मन म सजोय इस सिचऽ रगीन पःतक का सकलन िकया गया ह इसम िदय गय घिटत सग इस पिवऽतम समबध क िविवध पहलओ पर काश डालत ह आशा ह आप इसका लाभ उठाकर

अपन जीवन को मधमय आनदमय सख-शाितमय बनायग और दसरो को भी इसका लाभ उठान हत िरत करन का दवी कायर करग

िवनीत

ौी योग वदात सवा सिमित

सत ौी आसारामजी आौम अमदावाद

अनबम भगवान ौी कण और सदामा का गर-म 2

भगवान ौीराम की गरसवा 4

छऽपित िशवाजी महाराज की अनठी गर-सवा 5

बाबा फरीद की गरभि 9

राम का गर-समपरण 10

िमलारपा की आजञाकािरता 13

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा 17

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण 19

ःवामी िववकाननदजी की गरभि 20

भाई लहणा का अिडग िव ास 21

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा 24

अमीर खसरो की गरभि 25

आनद की अटट ौ ा 26

एकलवय की गर-दिकषणा 27

नाग महाशय का अदभत गर-म 28

आरणी की गरसवा 29

उपमनय की गर भि 30

गवर कम 32

सतिशय को सीख 34

भगवान ौी कण और सदामा का गर-म कस वध क बाद भगवान ौीकण तथा बलराम गरकल म िनवास करन की इचछा स

कायपगोऽी सानदीपिन मिन क पास गय जो च ाओ को सवरथा िनयिऽत रख हए थ गरजी तो उनह अतयत ःनह करत ही थ भगवान ौीकण और बलराम भी गरदव की उ म सवा कस

करनी चािहए इसका आदशर लोगो क सामन रखत हए बड़ी भि पवरक इ दव क समान उनकी सवा करन लग

गरवर सानदीपिन उनकी श भाव स य सवा स बहत सनन हए उनहोन दोनो भाइयो को छहो अगो र उपिनषदो सिहत समपणर वदो की िशकषा दी इनक अितिर मऽ और दवताओ क जञान क साथ धनवद मनःमित आिद धमरशा मीमासा आिद वदो का तातपयर बतलान वाल शा तकर िव ा (नयायशा ) आिद की भी िशकषा दी साथ ही सिनध िवमह यान आसन ध (दरगी नीित) और आौय ETH इन छः भदो स य राजनीित का भी अधययन कराया भगवान ौीकण और बलराम सारी िव ाओ क वतरक (आरमभ करन वाल) ह उस समय व कवल ौ मनय का-सा वयवहार करत हए अधययन कर रह थ उनहोन गरजी ारा सभी िव ाए कवल एक बार िसखान माऽ स ही सीख ली कवल च सठ िदन-रात म ही सयमिशरोमिण दोनो भाइयो न च सठो कलाओ का जञान ा कर िलया

ौीमदभागवत क दसव ःकनध क 80 व अधयाय म अपन सहपाठी सदामा स गर-मिहमा का वणरन करत हए भगवान ौीकण कहत ह-ा णिशरोमण कया आपको उस समय की बात याद ह जब हम दोनो एक साथ गरकल म िनवास करत थ सचमच गरकल म ही ि जाितयो को अपन जञातवय वःत का जञान होता ह िजसक ारा अजञानानधकार स पार हो जात ह

िमऽ इस ससार म शरीर का कारण जनमदाता िपता थम गर ह इसक बाद उपनयन सःकार करक सतकम की िशकषा दन वाला दसरा गर ह वह मर ही समान पजय ह तदननतर जञानोपदश दकर परमातमा को ा करानवाला गर तो मरा ःवरप ही ह वणारौिमयो म जो लोग अपन गरदव क उपदशानसार अनायास ही भवसागर पार कर लत ह व अपन ःवाथर और परमाथर क सचच जानकार ह

िय िमऽ म सबका आतमा ह सबक हदय म अनतयारमीरप स िवराजमान ह म गहःथ क धमर पचमहायजञ आिद स चारी क धमर उपनयन-वदाधययन आिद स वानःथी क धमर तपःया स और सब ओर स उपरत हो जाना ETH इस सनयासी क धमर स भी उतना सत नही होता िजतना गरदव की सवा-शौषा स सनत होता ह

न िजस समय हम लोग गरकल म िनवास कर रह थ उस समय की वह बात आपको याद ह कया जब एक िदन हम दोनो क हमारी गरमाता न धन (लकिड़या) लान क िलए जगल म भजा था उस समय हम लोग एक घोर जगल म गय थ और िबना ऋत क ही बड़ा भयकर आधी-पानी आ गया था आकाश म िबजली कड़कन लगी थी जब सयारःत हो गया तब चारो ओर अधरा-ही-अधरा फल गया था धरती पर इस कार पानी-ही-पानी हो गया िक कहा ग डा ह कहा िकनारा इसका पता ही नही चलता था वह वषार कया थी एक छोटा-मोटा लय ही था आधी क झटको और वषार की बौछारो स हम लोगो को बड़ी पीड़ा हई िदशा का

जञान न रहा हम लोग अतयनत आतर हो गय और एक दसर का हाथ पकड़कर जगल म इधर उधर भटकत रह

सय दय होत ही हमार गरदव सानदीपिन मिन हम लोगो को ढढत हए जगल म पहच और उनहोन दखा िक हम अतयनत आतर हो रह ह व कहन लगः आ यर ह आ यर ह पऽो तम लोगो न हमार िलए अतयनत क उठाया सभी ािणयो को अपना शरीर सबस अिधक िय होता ह परनत तम दोनो उसकी भी परवाह िकए िबना हमारी सवा म ही सलगन रह गर क ऋण स म होन क िलए सतिशयो का इतना ही कतरवय ह िक व िवश -भाव स अपना सब कछ और शरीर भी गरदव की सवा म समिपरत कर द ि ज-िशरोमिणयो म तम दोनो स अतयनत सनन ह तमहार सार मनोरथ सारी अिभलाषाए पणर हो और तम लोगो न मझस जो वदाधययन िकया ह वह तमह सवरदा कणठःथ रह तथा इस लोक और पर लोक म कही भी िनफल न हो

िय िमऽ िजस समय हम लोग गरकल म िनवास कर रह थ हमार जीवन म ऐसी अनको घटनाए घिटत हई थी इसम सनदह नही िक गरदव की कपा स ही मन य शाित का अिधकारी होता ह और पणरता को ा करता ह

भगवान िशवजी न भी कहा हः

धनया माता िपता धनयो गोऽ धनय कलोद भवः धनया च वसधा दिव यऽ ःयाद गरभ ता

िजसक अदर गरभि हो उसकी माता धनय ह उसका िपता धनय ह उसका वश धनय ह उसक वश म जनम लनवाल धनय ह समम धरती माता धनय ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

भगवान ौीराम की गरसवा मयारदापरषो म भगवान ौीराम अपन िशकषागर िव ािमऽजी क पास बहत सयम िवनय

और िववक स रहत थ गर की सवा म व सदव ततपर रहत थ उनकी सवा क िवषय म भ किव तलसीदासजी न िलखा हः

मिनबर सयन कीिनह तब जाई लग चरन चापन दोउ भाई िजनह क चरन सरोरह लागी करत िबिबध जप जोग िबरागी बार बार मिन अगया दीनही रघबर जाइ सयन तब कीनही

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 22523) गर त पिहलिह जगतपित जाग राम सजान

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 226)

सीता ःवयवर म जब सब राजा एक-एक करक धनष उठान का य कर रह थ तब ौीराम सयम स बठ ही रह जब गर िव ािमऽ की आजञा हई तभी व खड़ हए और उनह णाम करक धनष उठाया

सिन गर बचन चरन िसर नावा हरष िबषाद न कछ उर आवा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2534)

गरिह नाम मनिह मन कीनहा अित लावघव उठाइ धन लीनहा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2603)

ौी सदगरदव क आदर और सतकार म ौीराम िकतन िववकी और सचत थ इसका उदाहरण तब दखन को िमलता ह जब उनको राजयोिचत िशकषण दन क िलए उनक गर विस जी महाराज महल म आत ह सदगर क आगमन का समाचार िमलत ही ौीराम सीता जी सिहत दरवाज पर आकर गरदव का सममान करत ह-

गर आगमन सनत रघनाथा ार आइ पद नायउ माथा सादर अरघ दइ घर आन सोरह भाित पिज सनमान गह चरन िसय सिहत बहोरी बोल राम कमल कर जोरी

(ौीरामचिरतमानस अयोधयाकाडः 812) इसक उपरात ौीरामजी भि भावपवरक कहत ह- नाथ आप भल पधार आपक

आगमन स घर पिवऽ हआ परत होना तो यह चािहए था िक आप समाचार भज दत तो यह दास ःवय सवा म उपिःथत हो जाता

इस कार ऐसी िवन भि स ौीराम अपन गरदव को सत रखत थ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

छऽपित िशवाजी महाराज की अनठी गर-सवा भाई तझ नही लगता िक गरदव हम सबस जयादा िशवाजी को चाहत ह िशवाजी क

कारण हमार ित उनका यह पकषपात मर अतर म शल की नाई चभ रहा ह

समथर रामदास ःवामी का एक िशय दसर िशय स इस तरह की ग तग कर रहा था हा बध तरी बात शत-ितशत सही ह िशवाजी राजा ह छऽपित ह इसीिलए समथर हम सबस जयादा उन पर म बरसात ह इसम हमको कछ गलत नही लगना चािहए

िशय तो इस तरह की बात करक अपन-अपन काम म लग गय लिकन इन दोनो का यह वातारलाप अनायास ही समथर रामदास ःवामी क कानो म पड़ गया था समथर न सोचा िक उपदश स काम नही चलगा इनको योगसिहत समझाना पड़गा

एक िदन समथर न लीला की व िशयो को साथ लकर जगल म घमन गय चलत-चलत समथर पवरिनयोजन क अनसार राह भलकर घोर जगल म इधर-उधर भटकन लग सब जगल स बाहर िनकलन का राःता ढढ रह थ तभी अचानक समथर को उदर-शल उठा पीड़ा अस होन स उनहोन िशयो को आस-पास म कोई आौय-ःथान ढढन को कहा ढढन पर थोड़ी दरी पर एक गफा िमला गयी िशयो क कनधो क सहार चलत हए िकसी तरह समथर उस गफा तक पहच गय गफा म वश करत ही व जमीन पर लट गय एव पीड़ा स कराहन लग िशय उनकी पीड़ा िमटान का उपाय खोजन की उलझन म खोयी-सी िःथित म उनकी सवा-शौषा करन लग सभी न िमलकर गरदव स इस पीड़ा का इलाज पछा

समथर न कहाः इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत को िनमऽण दना अब उदर शल िमटान क िलए बाघनी का दध कहा स लाय और लाय कौन सब एक दसर का मह ताकत हए िसर पकड़कर बठ गय

उसी समय िशवाजी को अपन गरदव क दशरन करन की इचछा हई आौम पहचन पर उनह पता चला िक गरदव तो िशयो को साथ लकर बहत दर स जगल म गय ह गरदशरन क िलए िशवाजी का तड़प तीो हो उठी अततः िशवाजी न समथर क दशरन होन तक िबना अनन-जल क रहन का िन य िकया और उनकी तलाश म सिनको की एक टोली क साथ जगल की ओर चल पड़

खोजत-खोजत शाम हो गयी िकत उनह समथर क दशरन नही हए दखत-ही-दखत अधरा छा गया जगली जानवरो की डरावनी आवाज सनायी पड़न लगी िफर भी िशवाजी गरदव गरदव ऐसा पकारत हए आग बढ़त गय अब तो सिनक भी मन-ही-मन िखनन हो गय परत िशवाजी की गर-िमलन की वयाकलता क आग व कछ भी कहन की िहममत नही कर सक आिखर सिनक भी पीछ रह गय परत िशवा को इस बात की िचता नही थी उनह तो गरदशरन की तड़प थी घोड़ पर सवार िशवा म हाथ म मशाल िलय आग बढ़त ही रह

मधयरािऽ हो गयी कणपकष की अधरी रािऽ म जगली जानवरो क चलन िफरन की आवाज सनायी पड़न लगी इतन म िशवाजी न बाघ की दहाड़ सनी व रक गय कछ समय तक जगल म दहाड़ की ितधविन गजती रही और िफर सननाटा छा गया इतन म एक करण ःवर वन म गजाः अर भगवान ह रामरायाऽऽऽ मझ इस पीड़ा स बचाओ

यह कया यह तो गर समथर की वाणी ह िशवाजी आवाज तो पहचान गय परत सोच म पड़ गय िक समथर जस महापरष ऐसा करण बदन कस कर सकत ह व तो शरीर क समबनध स पार पहच हए समथर योगी ह

िशवाजी को सशय न घर िलया इतन म िफर उसी धविन का पनरावतरन हआ िशवाजी न धयानपवरक सना तो पता चला िक व िजस पहाड़ी क नीच ह उसी क िशखर स यह करण धविन आ रही ह पहाड़ी पर चढ़न क िलए कही स भी कोई राःता न िदखा िशवाजी घोड़ स

उतर और अपनी तलवार स कटीली झािड़यो को काटकर राःता बनात हए आिखर गफा तक पहच ही गय िशवाजी को अपनी आखो पर िव ास नही हआ जब उनहोन समथर की पीड़ा स कराहत और लोट-पोट होत दखा िशवा की आख आसओ स छलक उठी व मशाल को एक तरफ रखकर समथर क चरणो म िगर पड़ समथर क शरीर को सहलात हए िशवाजी न पछाः गरदव आपको यह कसी पीड़ा हो रही ह आप इस घन जगल म कस गरदव कपा करक बताइय

समथर कराहत हए बोलः िशवा त आ गया मर पट म जस शल चभ रह हो ऐसी अस वदना हो रही ह र

गरदव आपको तो धनवतिर महाराज भी हाजरा-हजर ह अतः आप इस उदर शल की औषिध तो जानत ही होग मझ औषिध का नाम किहय िशवा आकाश-पाताल एक करक भी वह औषिध ल आयगा

िशवा यह तो असाधय रोग ह इसकी कोई औषिध नही ह हा एक औषिध स राहत जरर िमल सकती ह लिकन जान द इस बीमारी का एक ही इलाज ह और वह भी अित दलरभ ह म उस दवा क िलए ही यहा आया था लिकन अब तो चला भी नही जाता ददर बढ़ता ही जा रहा ह

िशवा को अपन-आपस गलािन होन लगी िक गरदव लमब समय स ऐसी पीड़ा सहन कर रह ह और म राजमहल म बठा था िधककार ह मझ िधककार ह अब िशवा स रहा न गया उनहोन ढ़तापवरक कहाः नही गरदव िशवा आपकी यातना नही दख सकता आपको ःवःथ िकय िबना मरी अतरातमा शाित स नही बठगी मन म जरा भी सकोच रख िबना मझ इस रोग की औषिध क बार म बताय गरदव म लकर आता ह वह दवा

समथर न कहाः िशवा इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत का िनमऽण दना ह िशवा हम तो ठहर अरणयवासी आज यहा कल वहा होग कछ पता नही परत तम तो राजा हो लाख गय तो चलगा परत लाखो का रकषक िजनदा रहना चािहए

गरदव िजनकी कपा ि माऽ स हजारो िशवा तयार हो सकत ह ऐस समथर सदगर की सवा म एक िशवा की कबारनी हो भी जाय तो कोई बात नही मगलो क साथ लड़त-लड़त मौत क साथ सदव जझता आया ह गरसवा करत-करत मौत आ जायगी तो मतय भी महोतसव बन जायगी गरदव आपन ही तो िसखाया ह िक आतमा कभी मरती नही और न र दह को एक िदन जला ही दना ह ऐसी दह का मोह कसा गरदव म अभी बाघनी का दध लकर आता ह

कया होगा कस िमलगा अथवा ला सकगा या नही ETH ऐसा सोच िबना िशवाजी गर को णाम करक पास म पड़ा हआ कमडल लकर चल पड़ सतिशय की कसौटी करन क िलए

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 2: Mehakate phool

अपन जीवन को मधमय आनदमय सख-शाितमय बनायग और दसरो को भी इसका लाभ उठान हत िरत करन का दवी कायर करग

िवनीत

ौी योग वदात सवा सिमित

सत ौी आसारामजी आौम अमदावाद

अनबम भगवान ौी कण और सदामा का गर-म 2

भगवान ौीराम की गरसवा 4

छऽपित िशवाजी महाराज की अनठी गर-सवा 5

बाबा फरीद की गरभि 9

राम का गर-समपरण 10

िमलारपा की आजञाकािरता 13

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा 17

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण 19

ःवामी िववकाननदजी की गरभि 20

भाई लहणा का अिडग िव ास 21

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा 24

अमीर खसरो की गरभि 25

आनद की अटट ौ ा 26

एकलवय की गर-दिकषणा 27

नाग महाशय का अदभत गर-म 28

आरणी की गरसवा 29

उपमनय की गर भि 30

गवर कम 32

सतिशय को सीख 34

भगवान ौी कण और सदामा का गर-म कस वध क बाद भगवान ौीकण तथा बलराम गरकल म िनवास करन की इचछा स

कायपगोऽी सानदीपिन मिन क पास गय जो च ाओ को सवरथा िनयिऽत रख हए थ गरजी तो उनह अतयत ःनह करत ही थ भगवान ौीकण और बलराम भी गरदव की उ म सवा कस

करनी चािहए इसका आदशर लोगो क सामन रखत हए बड़ी भि पवरक इ दव क समान उनकी सवा करन लग

गरवर सानदीपिन उनकी श भाव स य सवा स बहत सनन हए उनहोन दोनो भाइयो को छहो अगो र उपिनषदो सिहत समपणर वदो की िशकषा दी इनक अितिर मऽ और दवताओ क जञान क साथ धनवद मनःमित आिद धमरशा मीमासा आिद वदो का तातपयर बतलान वाल शा तकर िव ा (नयायशा ) आिद की भी िशकषा दी साथ ही सिनध िवमह यान आसन ध (दरगी नीित) और आौय ETH इन छः भदो स य राजनीित का भी अधययन कराया भगवान ौीकण और बलराम सारी िव ाओ क वतरक (आरमभ करन वाल) ह उस समय व कवल ौ मनय का-सा वयवहार करत हए अधययन कर रह थ उनहोन गरजी ारा सभी िव ाए कवल एक बार िसखान माऽ स ही सीख ली कवल च सठ िदन-रात म ही सयमिशरोमिण दोनो भाइयो न च सठो कलाओ का जञान ा कर िलया

ौीमदभागवत क दसव ःकनध क 80 व अधयाय म अपन सहपाठी सदामा स गर-मिहमा का वणरन करत हए भगवान ौीकण कहत ह-ा णिशरोमण कया आपको उस समय की बात याद ह जब हम दोनो एक साथ गरकल म िनवास करत थ सचमच गरकल म ही ि जाितयो को अपन जञातवय वःत का जञान होता ह िजसक ारा अजञानानधकार स पार हो जात ह

िमऽ इस ससार म शरीर का कारण जनमदाता िपता थम गर ह इसक बाद उपनयन सःकार करक सतकम की िशकषा दन वाला दसरा गर ह वह मर ही समान पजय ह तदननतर जञानोपदश दकर परमातमा को ा करानवाला गर तो मरा ःवरप ही ह वणारौिमयो म जो लोग अपन गरदव क उपदशानसार अनायास ही भवसागर पार कर लत ह व अपन ःवाथर और परमाथर क सचच जानकार ह

िय िमऽ म सबका आतमा ह सबक हदय म अनतयारमीरप स िवराजमान ह म गहःथ क धमर पचमहायजञ आिद स चारी क धमर उपनयन-वदाधययन आिद स वानःथी क धमर तपःया स और सब ओर स उपरत हो जाना ETH इस सनयासी क धमर स भी उतना सत नही होता िजतना गरदव की सवा-शौषा स सनत होता ह

न िजस समय हम लोग गरकल म िनवास कर रह थ उस समय की वह बात आपको याद ह कया जब एक िदन हम दोनो क हमारी गरमाता न धन (लकिड़या) लान क िलए जगल म भजा था उस समय हम लोग एक घोर जगल म गय थ और िबना ऋत क ही बड़ा भयकर आधी-पानी आ गया था आकाश म िबजली कड़कन लगी थी जब सयारःत हो गया तब चारो ओर अधरा-ही-अधरा फल गया था धरती पर इस कार पानी-ही-पानी हो गया िक कहा ग डा ह कहा िकनारा इसका पता ही नही चलता था वह वषार कया थी एक छोटा-मोटा लय ही था आधी क झटको और वषार की बौछारो स हम लोगो को बड़ी पीड़ा हई िदशा का

जञान न रहा हम लोग अतयनत आतर हो गय और एक दसर का हाथ पकड़कर जगल म इधर उधर भटकत रह

सय दय होत ही हमार गरदव सानदीपिन मिन हम लोगो को ढढत हए जगल म पहच और उनहोन दखा िक हम अतयनत आतर हो रह ह व कहन लगः आ यर ह आ यर ह पऽो तम लोगो न हमार िलए अतयनत क उठाया सभी ािणयो को अपना शरीर सबस अिधक िय होता ह परनत तम दोनो उसकी भी परवाह िकए िबना हमारी सवा म ही सलगन रह गर क ऋण स म होन क िलए सतिशयो का इतना ही कतरवय ह िक व िवश -भाव स अपना सब कछ और शरीर भी गरदव की सवा म समिपरत कर द ि ज-िशरोमिणयो म तम दोनो स अतयनत सनन ह तमहार सार मनोरथ सारी अिभलाषाए पणर हो और तम लोगो न मझस जो वदाधययन िकया ह वह तमह सवरदा कणठःथ रह तथा इस लोक और पर लोक म कही भी िनफल न हो

िय िमऽ िजस समय हम लोग गरकल म िनवास कर रह थ हमार जीवन म ऐसी अनको घटनाए घिटत हई थी इसम सनदह नही िक गरदव की कपा स ही मन य शाित का अिधकारी होता ह और पणरता को ा करता ह

भगवान िशवजी न भी कहा हः

धनया माता िपता धनयो गोऽ धनय कलोद भवः धनया च वसधा दिव यऽ ःयाद गरभ ता

िजसक अदर गरभि हो उसकी माता धनय ह उसका िपता धनय ह उसका वश धनय ह उसक वश म जनम लनवाल धनय ह समम धरती माता धनय ह

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अनबम

भगवान ौीराम की गरसवा मयारदापरषो म भगवान ौीराम अपन िशकषागर िव ािमऽजी क पास बहत सयम िवनय

और िववक स रहत थ गर की सवा म व सदव ततपर रहत थ उनकी सवा क िवषय म भ किव तलसीदासजी न िलखा हः

मिनबर सयन कीिनह तब जाई लग चरन चापन दोउ भाई िजनह क चरन सरोरह लागी करत िबिबध जप जोग िबरागी बार बार मिन अगया दीनही रघबर जाइ सयन तब कीनही

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 22523) गर त पिहलिह जगतपित जाग राम सजान

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 226)

सीता ःवयवर म जब सब राजा एक-एक करक धनष उठान का य कर रह थ तब ौीराम सयम स बठ ही रह जब गर िव ािमऽ की आजञा हई तभी व खड़ हए और उनह णाम करक धनष उठाया

सिन गर बचन चरन िसर नावा हरष िबषाद न कछ उर आवा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2534)

गरिह नाम मनिह मन कीनहा अित लावघव उठाइ धन लीनहा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2603)

ौी सदगरदव क आदर और सतकार म ौीराम िकतन िववकी और सचत थ इसका उदाहरण तब दखन को िमलता ह जब उनको राजयोिचत िशकषण दन क िलए उनक गर विस जी महाराज महल म आत ह सदगर क आगमन का समाचार िमलत ही ौीराम सीता जी सिहत दरवाज पर आकर गरदव का सममान करत ह-

गर आगमन सनत रघनाथा ार आइ पद नायउ माथा सादर अरघ दइ घर आन सोरह भाित पिज सनमान गह चरन िसय सिहत बहोरी बोल राम कमल कर जोरी

(ौीरामचिरतमानस अयोधयाकाडः 812) इसक उपरात ौीरामजी भि भावपवरक कहत ह- नाथ आप भल पधार आपक

आगमन स घर पिवऽ हआ परत होना तो यह चािहए था िक आप समाचार भज दत तो यह दास ःवय सवा म उपिःथत हो जाता

इस कार ऐसी िवन भि स ौीराम अपन गरदव को सत रखत थ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

छऽपित िशवाजी महाराज की अनठी गर-सवा भाई तझ नही लगता िक गरदव हम सबस जयादा िशवाजी को चाहत ह िशवाजी क

कारण हमार ित उनका यह पकषपात मर अतर म शल की नाई चभ रहा ह

समथर रामदास ःवामी का एक िशय दसर िशय स इस तरह की ग तग कर रहा था हा बध तरी बात शत-ितशत सही ह िशवाजी राजा ह छऽपित ह इसीिलए समथर हम सबस जयादा उन पर म बरसात ह इसम हमको कछ गलत नही लगना चािहए

िशय तो इस तरह की बात करक अपन-अपन काम म लग गय लिकन इन दोनो का यह वातारलाप अनायास ही समथर रामदास ःवामी क कानो म पड़ गया था समथर न सोचा िक उपदश स काम नही चलगा इनको योगसिहत समझाना पड़गा

एक िदन समथर न लीला की व िशयो को साथ लकर जगल म घमन गय चलत-चलत समथर पवरिनयोजन क अनसार राह भलकर घोर जगल म इधर-उधर भटकन लग सब जगल स बाहर िनकलन का राःता ढढ रह थ तभी अचानक समथर को उदर-शल उठा पीड़ा अस होन स उनहोन िशयो को आस-पास म कोई आौय-ःथान ढढन को कहा ढढन पर थोड़ी दरी पर एक गफा िमला गयी िशयो क कनधो क सहार चलत हए िकसी तरह समथर उस गफा तक पहच गय गफा म वश करत ही व जमीन पर लट गय एव पीड़ा स कराहन लग िशय उनकी पीड़ा िमटान का उपाय खोजन की उलझन म खोयी-सी िःथित म उनकी सवा-शौषा करन लग सभी न िमलकर गरदव स इस पीड़ा का इलाज पछा

समथर न कहाः इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत को िनमऽण दना अब उदर शल िमटान क िलए बाघनी का दध कहा स लाय और लाय कौन सब एक दसर का मह ताकत हए िसर पकड़कर बठ गय

उसी समय िशवाजी को अपन गरदव क दशरन करन की इचछा हई आौम पहचन पर उनह पता चला िक गरदव तो िशयो को साथ लकर बहत दर स जगल म गय ह गरदशरन क िलए िशवाजी का तड़प तीो हो उठी अततः िशवाजी न समथर क दशरन होन तक िबना अनन-जल क रहन का िन य िकया और उनकी तलाश म सिनको की एक टोली क साथ जगल की ओर चल पड़

खोजत-खोजत शाम हो गयी िकत उनह समथर क दशरन नही हए दखत-ही-दखत अधरा छा गया जगली जानवरो की डरावनी आवाज सनायी पड़न लगी िफर भी िशवाजी गरदव गरदव ऐसा पकारत हए आग बढ़त गय अब तो सिनक भी मन-ही-मन िखनन हो गय परत िशवाजी की गर-िमलन की वयाकलता क आग व कछ भी कहन की िहममत नही कर सक आिखर सिनक भी पीछ रह गय परत िशवा को इस बात की िचता नही थी उनह तो गरदशरन की तड़प थी घोड़ पर सवार िशवा म हाथ म मशाल िलय आग बढ़त ही रह

मधयरािऽ हो गयी कणपकष की अधरी रािऽ म जगली जानवरो क चलन िफरन की आवाज सनायी पड़न लगी इतन म िशवाजी न बाघ की दहाड़ सनी व रक गय कछ समय तक जगल म दहाड़ की ितधविन गजती रही और िफर सननाटा छा गया इतन म एक करण ःवर वन म गजाः अर भगवान ह रामरायाऽऽऽ मझ इस पीड़ा स बचाओ

यह कया यह तो गर समथर की वाणी ह िशवाजी आवाज तो पहचान गय परत सोच म पड़ गय िक समथर जस महापरष ऐसा करण बदन कस कर सकत ह व तो शरीर क समबनध स पार पहच हए समथर योगी ह

िशवाजी को सशय न घर िलया इतन म िफर उसी धविन का पनरावतरन हआ िशवाजी न धयानपवरक सना तो पता चला िक व िजस पहाड़ी क नीच ह उसी क िशखर स यह करण धविन आ रही ह पहाड़ी पर चढ़न क िलए कही स भी कोई राःता न िदखा िशवाजी घोड़ स

उतर और अपनी तलवार स कटीली झािड़यो को काटकर राःता बनात हए आिखर गफा तक पहच ही गय िशवाजी को अपनी आखो पर िव ास नही हआ जब उनहोन समथर की पीड़ा स कराहत और लोट-पोट होत दखा िशवा की आख आसओ स छलक उठी व मशाल को एक तरफ रखकर समथर क चरणो म िगर पड़ समथर क शरीर को सहलात हए िशवाजी न पछाः गरदव आपको यह कसी पीड़ा हो रही ह आप इस घन जगल म कस गरदव कपा करक बताइय

समथर कराहत हए बोलः िशवा त आ गया मर पट म जस शल चभ रह हो ऐसी अस वदना हो रही ह र

गरदव आपको तो धनवतिर महाराज भी हाजरा-हजर ह अतः आप इस उदर शल की औषिध तो जानत ही होग मझ औषिध का नाम किहय िशवा आकाश-पाताल एक करक भी वह औषिध ल आयगा

िशवा यह तो असाधय रोग ह इसकी कोई औषिध नही ह हा एक औषिध स राहत जरर िमल सकती ह लिकन जान द इस बीमारी का एक ही इलाज ह और वह भी अित दलरभ ह म उस दवा क िलए ही यहा आया था लिकन अब तो चला भी नही जाता ददर बढ़ता ही जा रहा ह

िशवा को अपन-आपस गलािन होन लगी िक गरदव लमब समय स ऐसी पीड़ा सहन कर रह ह और म राजमहल म बठा था िधककार ह मझ िधककार ह अब िशवा स रहा न गया उनहोन ढ़तापवरक कहाः नही गरदव िशवा आपकी यातना नही दख सकता आपको ःवःथ िकय िबना मरी अतरातमा शाित स नही बठगी मन म जरा भी सकोच रख िबना मझ इस रोग की औषिध क बार म बताय गरदव म लकर आता ह वह दवा

समथर न कहाः िशवा इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत का िनमऽण दना ह िशवा हम तो ठहर अरणयवासी आज यहा कल वहा होग कछ पता नही परत तम तो राजा हो लाख गय तो चलगा परत लाखो का रकषक िजनदा रहना चािहए

गरदव िजनकी कपा ि माऽ स हजारो िशवा तयार हो सकत ह ऐस समथर सदगर की सवा म एक िशवा की कबारनी हो भी जाय तो कोई बात नही मगलो क साथ लड़त-लड़त मौत क साथ सदव जझता आया ह गरसवा करत-करत मौत आ जायगी तो मतय भी महोतसव बन जायगी गरदव आपन ही तो िसखाया ह िक आतमा कभी मरती नही और न र दह को एक िदन जला ही दना ह ऐसी दह का मोह कसा गरदव म अभी बाघनी का दध लकर आता ह

कया होगा कस िमलगा अथवा ला सकगा या नही ETH ऐसा सोच िबना िशवाजी गर को णाम करक पास म पड़ा हआ कमडल लकर चल पड़ सतिशय की कसौटी करन क िलए

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

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अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 3: Mehakate phool

करनी चािहए इसका आदशर लोगो क सामन रखत हए बड़ी भि पवरक इ दव क समान उनकी सवा करन लग

गरवर सानदीपिन उनकी श भाव स य सवा स बहत सनन हए उनहोन दोनो भाइयो को छहो अगो र उपिनषदो सिहत समपणर वदो की िशकषा दी इनक अितिर मऽ और दवताओ क जञान क साथ धनवद मनःमित आिद धमरशा मीमासा आिद वदो का तातपयर बतलान वाल शा तकर िव ा (नयायशा ) आिद की भी िशकषा दी साथ ही सिनध िवमह यान आसन ध (दरगी नीित) और आौय ETH इन छः भदो स य राजनीित का भी अधययन कराया भगवान ौीकण और बलराम सारी िव ाओ क वतरक (आरमभ करन वाल) ह उस समय व कवल ौ मनय का-सा वयवहार करत हए अधययन कर रह थ उनहोन गरजी ारा सभी िव ाए कवल एक बार िसखान माऽ स ही सीख ली कवल च सठ िदन-रात म ही सयमिशरोमिण दोनो भाइयो न च सठो कलाओ का जञान ा कर िलया

ौीमदभागवत क दसव ःकनध क 80 व अधयाय म अपन सहपाठी सदामा स गर-मिहमा का वणरन करत हए भगवान ौीकण कहत ह-ा णिशरोमण कया आपको उस समय की बात याद ह जब हम दोनो एक साथ गरकल म िनवास करत थ सचमच गरकल म ही ि जाितयो को अपन जञातवय वःत का जञान होता ह िजसक ारा अजञानानधकार स पार हो जात ह

िमऽ इस ससार म शरीर का कारण जनमदाता िपता थम गर ह इसक बाद उपनयन सःकार करक सतकम की िशकषा दन वाला दसरा गर ह वह मर ही समान पजय ह तदननतर जञानोपदश दकर परमातमा को ा करानवाला गर तो मरा ःवरप ही ह वणारौिमयो म जो लोग अपन गरदव क उपदशानसार अनायास ही भवसागर पार कर लत ह व अपन ःवाथर और परमाथर क सचच जानकार ह

िय िमऽ म सबका आतमा ह सबक हदय म अनतयारमीरप स िवराजमान ह म गहःथ क धमर पचमहायजञ आिद स चारी क धमर उपनयन-वदाधययन आिद स वानःथी क धमर तपःया स और सब ओर स उपरत हो जाना ETH इस सनयासी क धमर स भी उतना सत नही होता िजतना गरदव की सवा-शौषा स सनत होता ह

न िजस समय हम लोग गरकल म िनवास कर रह थ उस समय की वह बात आपको याद ह कया जब एक िदन हम दोनो क हमारी गरमाता न धन (लकिड़या) लान क िलए जगल म भजा था उस समय हम लोग एक घोर जगल म गय थ और िबना ऋत क ही बड़ा भयकर आधी-पानी आ गया था आकाश म िबजली कड़कन लगी थी जब सयारःत हो गया तब चारो ओर अधरा-ही-अधरा फल गया था धरती पर इस कार पानी-ही-पानी हो गया िक कहा ग डा ह कहा िकनारा इसका पता ही नही चलता था वह वषार कया थी एक छोटा-मोटा लय ही था आधी क झटको और वषार की बौछारो स हम लोगो को बड़ी पीड़ा हई िदशा का

जञान न रहा हम लोग अतयनत आतर हो गय और एक दसर का हाथ पकड़कर जगल म इधर उधर भटकत रह

सय दय होत ही हमार गरदव सानदीपिन मिन हम लोगो को ढढत हए जगल म पहच और उनहोन दखा िक हम अतयनत आतर हो रह ह व कहन लगः आ यर ह आ यर ह पऽो तम लोगो न हमार िलए अतयनत क उठाया सभी ािणयो को अपना शरीर सबस अिधक िय होता ह परनत तम दोनो उसकी भी परवाह िकए िबना हमारी सवा म ही सलगन रह गर क ऋण स म होन क िलए सतिशयो का इतना ही कतरवय ह िक व िवश -भाव स अपना सब कछ और शरीर भी गरदव की सवा म समिपरत कर द ि ज-िशरोमिणयो म तम दोनो स अतयनत सनन ह तमहार सार मनोरथ सारी अिभलाषाए पणर हो और तम लोगो न मझस जो वदाधययन िकया ह वह तमह सवरदा कणठःथ रह तथा इस लोक और पर लोक म कही भी िनफल न हो

िय िमऽ िजस समय हम लोग गरकल म िनवास कर रह थ हमार जीवन म ऐसी अनको घटनाए घिटत हई थी इसम सनदह नही िक गरदव की कपा स ही मन य शाित का अिधकारी होता ह और पणरता को ा करता ह

भगवान िशवजी न भी कहा हः

धनया माता िपता धनयो गोऽ धनय कलोद भवः धनया च वसधा दिव यऽ ःयाद गरभ ता

िजसक अदर गरभि हो उसकी माता धनय ह उसका िपता धनय ह उसका वश धनय ह उसक वश म जनम लनवाल धनय ह समम धरती माता धनय ह

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अनबम

भगवान ौीराम की गरसवा मयारदापरषो म भगवान ौीराम अपन िशकषागर िव ािमऽजी क पास बहत सयम िवनय

और िववक स रहत थ गर की सवा म व सदव ततपर रहत थ उनकी सवा क िवषय म भ किव तलसीदासजी न िलखा हः

मिनबर सयन कीिनह तब जाई लग चरन चापन दोउ भाई िजनह क चरन सरोरह लागी करत िबिबध जप जोग िबरागी बार बार मिन अगया दीनही रघबर जाइ सयन तब कीनही

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 22523) गर त पिहलिह जगतपित जाग राम सजान

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 226)

सीता ःवयवर म जब सब राजा एक-एक करक धनष उठान का य कर रह थ तब ौीराम सयम स बठ ही रह जब गर िव ािमऽ की आजञा हई तभी व खड़ हए और उनह णाम करक धनष उठाया

सिन गर बचन चरन िसर नावा हरष िबषाद न कछ उर आवा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2534)

गरिह नाम मनिह मन कीनहा अित लावघव उठाइ धन लीनहा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2603)

ौी सदगरदव क आदर और सतकार म ौीराम िकतन िववकी और सचत थ इसका उदाहरण तब दखन को िमलता ह जब उनको राजयोिचत िशकषण दन क िलए उनक गर विस जी महाराज महल म आत ह सदगर क आगमन का समाचार िमलत ही ौीराम सीता जी सिहत दरवाज पर आकर गरदव का सममान करत ह-

गर आगमन सनत रघनाथा ार आइ पद नायउ माथा सादर अरघ दइ घर आन सोरह भाित पिज सनमान गह चरन िसय सिहत बहोरी बोल राम कमल कर जोरी

(ौीरामचिरतमानस अयोधयाकाडः 812) इसक उपरात ौीरामजी भि भावपवरक कहत ह- नाथ आप भल पधार आपक

आगमन स घर पिवऽ हआ परत होना तो यह चािहए था िक आप समाचार भज दत तो यह दास ःवय सवा म उपिःथत हो जाता

इस कार ऐसी िवन भि स ौीराम अपन गरदव को सत रखत थ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

छऽपित िशवाजी महाराज की अनठी गर-सवा भाई तझ नही लगता िक गरदव हम सबस जयादा िशवाजी को चाहत ह िशवाजी क

कारण हमार ित उनका यह पकषपात मर अतर म शल की नाई चभ रहा ह

समथर रामदास ःवामी का एक िशय दसर िशय स इस तरह की ग तग कर रहा था हा बध तरी बात शत-ितशत सही ह िशवाजी राजा ह छऽपित ह इसीिलए समथर हम सबस जयादा उन पर म बरसात ह इसम हमको कछ गलत नही लगना चािहए

िशय तो इस तरह की बात करक अपन-अपन काम म लग गय लिकन इन दोनो का यह वातारलाप अनायास ही समथर रामदास ःवामी क कानो म पड़ गया था समथर न सोचा िक उपदश स काम नही चलगा इनको योगसिहत समझाना पड़गा

एक िदन समथर न लीला की व िशयो को साथ लकर जगल म घमन गय चलत-चलत समथर पवरिनयोजन क अनसार राह भलकर घोर जगल म इधर-उधर भटकन लग सब जगल स बाहर िनकलन का राःता ढढ रह थ तभी अचानक समथर को उदर-शल उठा पीड़ा अस होन स उनहोन िशयो को आस-पास म कोई आौय-ःथान ढढन को कहा ढढन पर थोड़ी दरी पर एक गफा िमला गयी िशयो क कनधो क सहार चलत हए िकसी तरह समथर उस गफा तक पहच गय गफा म वश करत ही व जमीन पर लट गय एव पीड़ा स कराहन लग िशय उनकी पीड़ा िमटान का उपाय खोजन की उलझन म खोयी-सी िःथित म उनकी सवा-शौषा करन लग सभी न िमलकर गरदव स इस पीड़ा का इलाज पछा

समथर न कहाः इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत को िनमऽण दना अब उदर शल िमटान क िलए बाघनी का दध कहा स लाय और लाय कौन सब एक दसर का मह ताकत हए िसर पकड़कर बठ गय

उसी समय िशवाजी को अपन गरदव क दशरन करन की इचछा हई आौम पहचन पर उनह पता चला िक गरदव तो िशयो को साथ लकर बहत दर स जगल म गय ह गरदशरन क िलए िशवाजी का तड़प तीो हो उठी अततः िशवाजी न समथर क दशरन होन तक िबना अनन-जल क रहन का िन य िकया और उनकी तलाश म सिनको की एक टोली क साथ जगल की ओर चल पड़

खोजत-खोजत शाम हो गयी िकत उनह समथर क दशरन नही हए दखत-ही-दखत अधरा छा गया जगली जानवरो की डरावनी आवाज सनायी पड़न लगी िफर भी िशवाजी गरदव गरदव ऐसा पकारत हए आग बढ़त गय अब तो सिनक भी मन-ही-मन िखनन हो गय परत िशवाजी की गर-िमलन की वयाकलता क आग व कछ भी कहन की िहममत नही कर सक आिखर सिनक भी पीछ रह गय परत िशवा को इस बात की िचता नही थी उनह तो गरदशरन की तड़प थी घोड़ पर सवार िशवा म हाथ म मशाल िलय आग बढ़त ही रह

मधयरािऽ हो गयी कणपकष की अधरी रािऽ म जगली जानवरो क चलन िफरन की आवाज सनायी पड़न लगी इतन म िशवाजी न बाघ की दहाड़ सनी व रक गय कछ समय तक जगल म दहाड़ की ितधविन गजती रही और िफर सननाटा छा गया इतन म एक करण ःवर वन म गजाः अर भगवान ह रामरायाऽऽऽ मझ इस पीड़ा स बचाओ

यह कया यह तो गर समथर की वाणी ह िशवाजी आवाज तो पहचान गय परत सोच म पड़ गय िक समथर जस महापरष ऐसा करण बदन कस कर सकत ह व तो शरीर क समबनध स पार पहच हए समथर योगी ह

िशवाजी को सशय न घर िलया इतन म िफर उसी धविन का पनरावतरन हआ िशवाजी न धयानपवरक सना तो पता चला िक व िजस पहाड़ी क नीच ह उसी क िशखर स यह करण धविन आ रही ह पहाड़ी पर चढ़न क िलए कही स भी कोई राःता न िदखा िशवाजी घोड़ स

उतर और अपनी तलवार स कटीली झािड़यो को काटकर राःता बनात हए आिखर गफा तक पहच ही गय िशवाजी को अपनी आखो पर िव ास नही हआ जब उनहोन समथर की पीड़ा स कराहत और लोट-पोट होत दखा िशवा की आख आसओ स छलक उठी व मशाल को एक तरफ रखकर समथर क चरणो म िगर पड़ समथर क शरीर को सहलात हए िशवाजी न पछाः गरदव आपको यह कसी पीड़ा हो रही ह आप इस घन जगल म कस गरदव कपा करक बताइय

समथर कराहत हए बोलः िशवा त आ गया मर पट म जस शल चभ रह हो ऐसी अस वदना हो रही ह र

गरदव आपको तो धनवतिर महाराज भी हाजरा-हजर ह अतः आप इस उदर शल की औषिध तो जानत ही होग मझ औषिध का नाम किहय िशवा आकाश-पाताल एक करक भी वह औषिध ल आयगा

िशवा यह तो असाधय रोग ह इसकी कोई औषिध नही ह हा एक औषिध स राहत जरर िमल सकती ह लिकन जान द इस बीमारी का एक ही इलाज ह और वह भी अित दलरभ ह म उस दवा क िलए ही यहा आया था लिकन अब तो चला भी नही जाता ददर बढ़ता ही जा रहा ह

िशवा को अपन-आपस गलािन होन लगी िक गरदव लमब समय स ऐसी पीड़ा सहन कर रह ह और म राजमहल म बठा था िधककार ह मझ िधककार ह अब िशवा स रहा न गया उनहोन ढ़तापवरक कहाः नही गरदव िशवा आपकी यातना नही दख सकता आपको ःवःथ िकय िबना मरी अतरातमा शाित स नही बठगी मन म जरा भी सकोच रख िबना मझ इस रोग की औषिध क बार म बताय गरदव म लकर आता ह वह दवा

समथर न कहाः िशवा इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत का िनमऽण दना ह िशवा हम तो ठहर अरणयवासी आज यहा कल वहा होग कछ पता नही परत तम तो राजा हो लाख गय तो चलगा परत लाखो का रकषक िजनदा रहना चािहए

गरदव िजनकी कपा ि माऽ स हजारो िशवा तयार हो सकत ह ऐस समथर सदगर की सवा म एक िशवा की कबारनी हो भी जाय तो कोई बात नही मगलो क साथ लड़त-लड़त मौत क साथ सदव जझता आया ह गरसवा करत-करत मौत आ जायगी तो मतय भी महोतसव बन जायगी गरदव आपन ही तो िसखाया ह िक आतमा कभी मरती नही और न र दह को एक िदन जला ही दना ह ऐसी दह का मोह कसा गरदव म अभी बाघनी का दध लकर आता ह

कया होगा कस िमलगा अथवा ला सकगा या नही ETH ऐसा सोच िबना िशवाजी गर को णाम करक पास म पड़ा हआ कमडल लकर चल पड़ सतिशय की कसौटी करन क िलए

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

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अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 4: Mehakate phool

जञान न रहा हम लोग अतयनत आतर हो गय और एक दसर का हाथ पकड़कर जगल म इधर उधर भटकत रह

सय दय होत ही हमार गरदव सानदीपिन मिन हम लोगो को ढढत हए जगल म पहच और उनहोन दखा िक हम अतयनत आतर हो रह ह व कहन लगः आ यर ह आ यर ह पऽो तम लोगो न हमार िलए अतयनत क उठाया सभी ािणयो को अपना शरीर सबस अिधक िय होता ह परनत तम दोनो उसकी भी परवाह िकए िबना हमारी सवा म ही सलगन रह गर क ऋण स म होन क िलए सतिशयो का इतना ही कतरवय ह िक व िवश -भाव स अपना सब कछ और शरीर भी गरदव की सवा म समिपरत कर द ि ज-िशरोमिणयो म तम दोनो स अतयनत सनन ह तमहार सार मनोरथ सारी अिभलाषाए पणर हो और तम लोगो न मझस जो वदाधययन िकया ह वह तमह सवरदा कणठःथ रह तथा इस लोक और पर लोक म कही भी िनफल न हो

िय िमऽ िजस समय हम लोग गरकल म िनवास कर रह थ हमार जीवन म ऐसी अनको घटनाए घिटत हई थी इसम सनदह नही िक गरदव की कपा स ही मन य शाित का अिधकारी होता ह और पणरता को ा करता ह

भगवान िशवजी न भी कहा हः

धनया माता िपता धनयो गोऽ धनय कलोद भवः धनया च वसधा दिव यऽ ःयाद गरभ ता

िजसक अदर गरभि हो उसकी माता धनय ह उसका िपता धनय ह उसका वश धनय ह उसक वश म जनम लनवाल धनय ह समम धरती माता धनय ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

भगवान ौीराम की गरसवा मयारदापरषो म भगवान ौीराम अपन िशकषागर िव ािमऽजी क पास बहत सयम िवनय

और िववक स रहत थ गर की सवा म व सदव ततपर रहत थ उनकी सवा क िवषय म भ किव तलसीदासजी न िलखा हः

मिनबर सयन कीिनह तब जाई लग चरन चापन दोउ भाई िजनह क चरन सरोरह लागी करत िबिबध जप जोग िबरागी बार बार मिन अगया दीनही रघबर जाइ सयन तब कीनही

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 22523) गर त पिहलिह जगतपित जाग राम सजान

(ौीरामचिरतमानस बालकाडः 226)

सीता ःवयवर म जब सब राजा एक-एक करक धनष उठान का य कर रह थ तब ौीराम सयम स बठ ही रह जब गर िव ािमऽ की आजञा हई तभी व खड़ हए और उनह णाम करक धनष उठाया

सिन गर बचन चरन िसर नावा हरष िबषाद न कछ उर आवा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2534)

गरिह नाम मनिह मन कीनहा अित लावघव उठाइ धन लीनहा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2603)

ौी सदगरदव क आदर और सतकार म ौीराम िकतन िववकी और सचत थ इसका उदाहरण तब दखन को िमलता ह जब उनको राजयोिचत िशकषण दन क िलए उनक गर विस जी महाराज महल म आत ह सदगर क आगमन का समाचार िमलत ही ौीराम सीता जी सिहत दरवाज पर आकर गरदव का सममान करत ह-

गर आगमन सनत रघनाथा ार आइ पद नायउ माथा सादर अरघ दइ घर आन सोरह भाित पिज सनमान गह चरन िसय सिहत बहोरी बोल राम कमल कर जोरी

(ौीरामचिरतमानस अयोधयाकाडः 812) इसक उपरात ौीरामजी भि भावपवरक कहत ह- नाथ आप भल पधार आपक

आगमन स घर पिवऽ हआ परत होना तो यह चािहए था िक आप समाचार भज दत तो यह दास ःवय सवा म उपिःथत हो जाता

इस कार ऐसी िवन भि स ौीराम अपन गरदव को सत रखत थ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

छऽपित िशवाजी महाराज की अनठी गर-सवा भाई तझ नही लगता िक गरदव हम सबस जयादा िशवाजी को चाहत ह िशवाजी क

कारण हमार ित उनका यह पकषपात मर अतर म शल की नाई चभ रहा ह

समथर रामदास ःवामी का एक िशय दसर िशय स इस तरह की ग तग कर रहा था हा बध तरी बात शत-ितशत सही ह िशवाजी राजा ह छऽपित ह इसीिलए समथर हम सबस जयादा उन पर म बरसात ह इसम हमको कछ गलत नही लगना चािहए

िशय तो इस तरह की बात करक अपन-अपन काम म लग गय लिकन इन दोनो का यह वातारलाप अनायास ही समथर रामदास ःवामी क कानो म पड़ गया था समथर न सोचा िक उपदश स काम नही चलगा इनको योगसिहत समझाना पड़गा

एक िदन समथर न लीला की व िशयो को साथ लकर जगल म घमन गय चलत-चलत समथर पवरिनयोजन क अनसार राह भलकर घोर जगल म इधर-उधर भटकन लग सब जगल स बाहर िनकलन का राःता ढढ रह थ तभी अचानक समथर को उदर-शल उठा पीड़ा अस होन स उनहोन िशयो को आस-पास म कोई आौय-ःथान ढढन को कहा ढढन पर थोड़ी दरी पर एक गफा िमला गयी िशयो क कनधो क सहार चलत हए िकसी तरह समथर उस गफा तक पहच गय गफा म वश करत ही व जमीन पर लट गय एव पीड़ा स कराहन लग िशय उनकी पीड़ा िमटान का उपाय खोजन की उलझन म खोयी-सी िःथित म उनकी सवा-शौषा करन लग सभी न िमलकर गरदव स इस पीड़ा का इलाज पछा

समथर न कहाः इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत को िनमऽण दना अब उदर शल िमटान क िलए बाघनी का दध कहा स लाय और लाय कौन सब एक दसर का मह ताकत हए िसर पकड़कर बठ गय

उसी समय िशवाजी को अपन गरदव क दशरन करन की इचछा हई आौम पहचन पर उनह पता चला िक गरदव तो िशयो को साथ लकर बहत दर स जगल म गय ह गरदशरन क िलए िशवाजी का तड़प तीो हो उठी अततः िशवाजी न समथर क दशरन होन तक िबना अनन-जल क रहन का िन य िकया और उनकी तलाश म सिनको की एक टोली क साथ जगल की ओर चल पड़

खोजत-खोजत शाम हो गयी िकत उनह समथर क दशरन नही हए दखत-ही-दखत अधरा छा गया जगली जानवरो की डरावनी आवाज सनायी पड़न लगी िफर भी िशवाजी गरदव गरदव ऐसा पकारत हए आग बढ़त गय अब तो सिनक भी मन-ही-मन िखनन हो गय परत िशवाजी की गर-िमलन की वयाकलता क आग व कछ भी कहन की िहममत नही कर सक आिखर सिनक भी पीछ रह गय परत िशवा को इस बात की िचता नही थी उनह तो गरदशरन की तड़प थी घोड़ पर सवार िशवा म हाथ म मशाल िलय आग बढ़त ही रह

मधयरािऽ हो गयी कणपकष की अधरी रािऽ म जगली जानवरो क चलन िफरन की आवाज सनायी पड़न लगी इतन म िशवाजी न बाघ की दहाड़ सनी व रक गय कछ समय तक जगल म दहाड़ की ितधविन गजती रही और िफर सननाटा छा गया इतन म एक करण ःवर वन म गजाः अर भगवान ह रामरायाऽऽऽ मझ इस पीड़ा स बचाओ

यह कया यह तो गर समथर की वाणी ह िशवाजी आवाज तो पहचान गय परत सोच म पड़ गय िक समथर जस महापरष ऐसा करण बदन कस कर सकत ह व तो शरीर क समबनध स पार पहच हए समथर योगी ह

िशवाजी को सशय न घर िलया इतन म िफर उसी धविन का पनरावतरन हआ िशवाजी न धयानपवरक सना तो पता चला िक व िजस पहाड़ी क नीच ह उसी क िशखर स यह करण धविन आ रही ह पहाड़ी पर चढ़न क िलए कही स भी कोई राःता न िदखा िशवाजी घोड़ स

उतर और अपनी तलवार स कटीली झािड़यो को काटकर राःता बनात हए आिखर गफा तक पहच ही गय िशवाजी को अपनी आखो पर िव ास नही हआ जब उनहोन समथर की पीड़ा स कराहत और लोट-पोट होत दखा िशवा की आख आसओ स छलक उठी व मशाल को एक तरफ रखकर समथर क चरणो म िगर पड़ समथर क शरीर को सहलात हए िशवाजी न पछाः गरदव आपको यह कसी पीड़ा हो रही ह आप इस घन जगल म कस गरदव कपा करक बताइय

समथर कराहत हए बोलः िशवा त आ गया मर पट म जस शल चभ रह हो ऐसी अस वदना हो रही ह र

गरदव आपको तो धनवतिर महाराज भी हाजरा-हजर ह अतः आप इस उदर शल की औषिध तो जानत ही होग मझ औषिध का नाम किहय िशवा आकाश-पाताल एक करक भी वह औषिध ल आयगा

िशवा यह तो असाधय रोग ह इसकी कोई औषिध नही ह हा एक औषिध स राहत जरर िमल सकती ह लिकन जान द इस बीमारी का एक ही इलाज ह और वह भी अित दलरभ ह म उस दवा क िलए ही यहा आया था लिकन अब तो चला भी नही जाता ददर बढ़ता ही जा रहा ह

िशवा को अपन-आपस गलािन होन लगी िक गरदव लमब समय स ऐसी पीड़ा सहन कर रह ह और म राजमहल म बठा था िधककार ह मझ िधककार ह अब िशवा स रहा न गया उनहोन ढ़तापवरक कहाः नही गरदव िशवा आपकी यातना नही दख सकता आपको ःवःथ िकय िबना मरी अतरातमा शाित स नही बठगी मन म जरा भी सकोच रख िबना मझ इस रोग की औषिध क बार म बताय गरदव म लकर आता ह वह दवा

समथर न कहाः िशवा इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत का िनमऽण दना ह िशवा हम तो ठहर अरणयवासी आज यहा कल वहा होग कछ पता नही परत तम तो राजा हो लाख गय तो चलगा परत लाखो का रकषक िजनदा रहना चािहए

गरदव िजनकी कपा ि माऽ स हजारो िशवा तयार हो सकत ह ऐस समथर सदगर की सवा म एक िशवा की कबारनी हो भी जाय तो कोई बात नही मगलो क साथ लड़त-लड़त मौत क साथ सदव जझता आया ह गरसवा करत-करत मौत आ जायगी तो मतय भी महोतसव बन जायगी गरदव आपन ही तो िसखाया ह िक आतमा कभी मरती नही और न र दह को एक िदन जला ही दना ह ऐसी दह का मोह कसा गरदव म अभी बाघनी का दध लकर आता ह

कया होगा कस िमलगा अथवा ला सकगा या नही ETH ऐसा सोच िबना िशवाजी गर को णाम करक पास म पड़ा हआ कमडल लकर चल पड़ सतिशय की कसौटी करन क िलए

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

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अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 5: Mehakate phool

सीता ःवयवर म जब सब राजा एक-एक करक धनष उठान का य कर रह थ तब ौीराम सयम स बठ ही रह जब गर िव ािमऽ की आजञा हई तभी व खड़ हए और उनह णाम करक धनष उठाया

सिन गर बचन चरन िसर नावा हरष िबषाद न कछ उर आवा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2534)

गरिह नाम मनिह मन कीनहा अित लावघव उठाइ धन लीनहा (ौीरामचिरतमानस बालकाडः 2603)

ौी सदगरदव क आदर और सतकार म ौीराम िकतन िववकी और सचत थ इसका उदाहरण तब दखन को िमलता ह जब उनको राजयोिचत िशकषण दन क िलए उनक गर विस जी महाराज महल म आत ह सदगर क आगमन का समाचार िमलत ही ौीराम सीता जी सिहत दरवाज पर आकर गरदव का सममान करत ह-

गर आगमन सनत रघनाथा ार आइ पद नायउ माथा सादर अरघ दइ घर आन सोरह भाित पिज सनमान गह चरन िसय सिहत बहोरी बोल राम कमल कर जोरी

(ौीरामचिरतमानस अयोधयाकाडः 812) इसक उपरात ौीरामजी भि भावपवरक कहत ह- नाथ आप भल पधार आपक

आगमन स घर पिवऽ हआ परत होना तो यह चािहए था िक आप समाचार भज दत तो यह दास ःवय सवा म उपिःथत हो जाता

इस कार ऐसी िवन भि स ौीराम अपन गरदव को सत रखत थ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

छऽपित िशवाजी महाराज की अनठी गर-सवा भाई तझ नही लगता िक गरदव हम सबस जयादा िशवाजी को चाहत ह िशवाजी क

कारण हमार ित उनका यह पकषपात मर अतर म शल की नाई चभ रहा ह

समथर रामदास ःवामी का एक िशय दसर िशय स इस तरह की ग तग कर रहा था हा बध तरी बात शत-ितशत सही ह िशवाजी राजा ह छऽपित ह इसीिलए समथर हम सबस जयादा उन पर म बरसात ह इसम हमको कछ गलत नही लगना चािहए

िशय तो इस तरह की बात करक अपन-अपन काम म लग गय लिकन इन दोनो का यह वातारलाप अनायास ही समथर रामदास ःवामी क कानो म पड़ गया था समथर न सोचा िक उपदश स काम नही चलगा इनको योगसिहत समझाना पड़गा

एक िदन समथर न लीला की व िशयो को साथ लकर जगल म घमन गय चलत-चलत समथर पवरिनयोजन क अनसार राह भलकर घोर जगल म इधर-उधर भटकन लग सब जगल स बाहर िनकलन का राःता ढढ रह थ तभी अचानक समथर को उदर-शल उठा पीड़ा अस होन स उनहोन िशयो को आस-पास म कोई आौय-ःथान ढढन को कहा ढढन पर थोड़ी दरी पर एक गफा िमला गयी िशयो क कनधो क सहार चलत हए िकसी तरह समथर उस गफा तक पहच गय गफा म वश करत ही व जमीन पर लट गय एव पीड़ा स कराहन लग िशय उनकी पीड़ा िमटान का उपाय खोजन की उलझन म खोयी-सी िःथित म उनकी सवा-शौषा करन लग सभी न िमलकर गरदव स इस पीड़ा का इलाज पछा

समथर न कहाः इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत को िनमऽण दना अब उदर शल िमटान क िलए बाघनी का दध कहा स लाय और लाय कौन सब एक दसर का मह ताकत हए िसर पकड़कर बठ गय

उसी समय िशवाजी को अपन गरदव क दशरन करन की इचछा हई आौम पहचन पर उनह पता चला िक गरदव तो िशयो को साथ लकर बहत दर स जगल म गय ह गरदशरन क िलए िशवाजी का तड़प तीो हो उठी अततः िशवाजी न समथर क दशरन होन तक िबना अनन-जल क रहन का िन य िकया और उनकी तलाश म सिनको की एक टोली क साथ जगल की ओर चल पड़

खोजत-खोजत शाम हो गयी िकत उनह समथर क दशरन नही हए दखत-ही-दखत अधरा छा गया जगली जानवरो की डरावनी आवाज सनायी पड़न लगी िफर भी िशवाजी गरदव गरदव ऐसा पकारत हए आग बढ़त गय अब तो सिनक भी मन-ही-मन िखनन हो गय परत िशवाजी की गर-िमलन की वयाकलता क आग व कछ भी कहन की िहममत नही कर सक आिखर सिनक भी पीछ रह गय परत िशवा को इस बात की िचता नही थी उनह तो गरदशरन की तड़प थी घोड़ पर सवार िशवा म हाथ म मशाल िलय आग बढ़त ही रह

मधयरािऽ हो गयी कणपकष की अधरी रािऽ म जगली जानवरो क चलन िफरन की आवाज सनायी पड़न लगी इतन म िशवाजी न बाघ की दहाड़ सनी व रक गय कछ समय तक जगल म दहाड़ की ितधविन गजती रही और िफर सननाटा छा गया इतन म एक करण ःवर वन म गजाः अर भगवान ह रामरायाऽऽऽ मझ इस पीड़ा स बचाओ

यह कया यह तो गर समथर की वाणी ह िशवाजी आवाज तो पहचान गय परत सोच म पड़ गय िक समथर जस महापरष ऐसा करण बदन कस कर सकत ह व तो शरीर क समबनध स पार पहच हए समथर योगी ह

िशवाजी को सशय न घर िलया इतन म िफर उसी धविन का पनरावतरन हआ िशवाजी न धयानपवरक सना तो पता चला िक व िजस पहाड़ी क नीच ह उसी क िशखर स यह करण धविन आ रही ह पहाड़ी पर चढ़न क िलए कही स भी कोई राःता न िदखा िशवाजी घोड़ स

उतर और अपनी तलवार स कटीली झािड़यो को काटकर राःता बनात हए आिखर गफा तक पहच ही गय िशवाजी को अपनी आखो पर िव ास नही हआ जब उनहोन समथर की पीड़ा स कराहत और लोट-पोट होत दखा िशवा की आख आसओ स छलक उठी व मशाल को एक तरफ रखकर समथर क चरणो म िगर पड़ समथर क शरीर को सहलात हए िशवाजी न पछाः गरदव आपको यह कसी पीड़ा हो रही ह आप इस घन जगल म कस गरदव कपा करक बताइय

समथर कराहत हए बोलः िशवा त आ गया मर पट म जस शल चभ रह हो ऐसी अस वदना हो रही ह र

गरदव आपको तो धनवतिर महाराज भी हाजरा-हजर ह अतः आप इस उदर शल की औषिध तो जानत ही होग मझ औषिध का नाम किहय िशवा आकाश-पाताल एक करक भी वह औषिध ल आयगा

िशवा यह तो असाधय रोग ह इसकी कोई औषिध नही ह हा एक औषिध स राहत जरर िमल सकती ह लिकन जान द इस बीमारी का एक ही इलाज ह और वह भी अित दलरभ ह म उस दवा क िलए ही यहा आया था लिकन अब तो चला भी नही जाता ददर बढ़ता ही जा रहा ह

िशवा को अपन-आपस गलािन होन लगी िक गरदव लमब समय स ऐसी पीड़ा सहन कर रह ह और म राजमहल म बठा था िधककार ह मझ िधककार ह अब िशवा स रहा न गया उनहोन ढ़तापवरक कहाः नही गरदव िशवा आपकी यातना नही दख सकता आपको ःवःथ िकय िबना मरी अतरातमा शाित स नही बठगी मन म जरा भी सकोच रख िबना मझ इस रोग की औषिध क बार म बताय गरदव म लकर आता ह वह दवा

समथर न कहाः िशवा इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत का िनमऽण दना ह िशवा हम तो ठहर अरणयवासी आज यहा कल वहा होग कछ पता नही परत तम तो राजा हो लाख गय तो चलगा परत लाखो का रकषक िजनदा रहना चािहए

गरदव िजनकी कपा ि माऽ स हजारो िशवा तयार हो सकत ह ऐस समथर सदगर की सवा म एक िशवा की कबारनी हो भी जाय तो कोई बात नही मगलो क साथ लड़त-लड़त मौत क साथ सदव जझता आया ह गरसवा करत-करत मौत आ जायगी तो मतय भी महोतसव बन जायगी गरदव आपन ही तो िसखाया ह िक आतमा कभी मरती नही और न र दह को एक िदन जला ही दना ह ऐसी दह का मोह कसा गरदव म अभी बाघनी का दध लकर आता ह

कया होगा कस िमलगा अथवा ला सकगा या नही ETH ऐसा सोच िबना िशवाजी गर को णाम करक पास म पड़ा हआ कमडल लकर चल पड़ सतिशय की कसौटी करन क िलए

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

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अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 6: Mehakate phool

एक िदन समथर न लीला की व िशयो को साथ लकर जगल म घमन गय चलत-चलत समथर पवरिनयोजन क अनसार राह भलकर घोर जगल म इधर-उधर भटकन लग सब जगल स बाहर िनकलन का राःता ढढ रह थ तभी अचानक समथर को उदर-शल उठा पीड़ा अस होन स उनहोन िशयो को आस-पास म कोई आौय-ःथान ढढन को कहा ढढन पर थोड़ी दरी पर एक गफा िमला गयी िशयो क कनधो क सहार चलत हए िकसी तरह समथर उस गफा तक पहच गय गफा म वश करत ही व जमीन पर लट गय एव पीड़ा स कराहन लग िशय उनकी पीड़ा िमटान का उपाय खोजन की उलझन म खोयी-सी िःथित म उनकी सवा-शौषा करन लग सभी न िमलकर गरदव स इस पीड़ा का इलाज पछा

समथर न कहाः इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत को िनमऽण दना अब उदर शल िमटान क िलए बाघनी का दध कहा स लाय और लाय कौन सब एक दसर का मह ताकत हए िसर पकड़कर बठ गय

उसी समय िशवाजी को अपन गरदव क दशरन करन की इचछा हई आौम पहचन पर उनह पता चला िक गरदव तो िशयो को साथ लकर बहत दर स जगल म गय ह गरदशरन क िलए िशवाजी का तड़प तीो हो उठी अततः िशवाजी न समथर क दशरन होन तक िबना अनन-जल क रहन का िन य िकया और उनकी तलाश म सिनको की एक टोली क साथ जगल की ओर चल पड़

खोजत-खोजत शाम हो गयी िकत उनह समथर क दशरन नही हए दखत-ही-दखत अधरा छा गया जगली जानवरो की डरावनी आवाज सनायी पड़न लगी िफर भी िशवाजी गरदव गरदव ऐसा पकारत हए आग बढ़त गय अब तो सिनक भी मन-ही-मन िखनन हो गय परत िशवाजी की गर-िमलन की वयाकलता क आग व कछ भी कहन की िहममत नही कर सक आिखर सिनक भी पीछ रह गय परत िशवा को इस बात की िचता नही थी उनह तो गरदशरन की तड़प थी घोड़ पर सवार िशवा म हाथ म मशाल िलय आग बढ़त ही रह

मधयरािऽ हो गयी कणपकष की अधरी रािऽ म जगली जानवरो क चलन िफरन की आवाज सनायी पड़न लगी इतन म िशवाजी न बाघ की दहाड़ सनी व रक गय कछ समय तक जगल म दहाड़ की ितधविन गजती रही और िफर सननाटा छा गया इतन म एक करण ःवर वन म गजाः अर भगवान ह रामरायाऽऽऽ मझ इस पीड़ा स बचाओ

यह कया यह तो गर समथर की वाणी ह िशवाजी आवाज तो पहचान गय परत सोच म पड़ गय िक समथर जस महापरष ऐसा करण बदन कस कर सकत ह व तो शरीर क समबनध स पार पहच हए समथर योगी ह

िशवाजी को सशय न घर िलया इतन म िफर उसी धविन का पनरावतरन हआ िशवाजी न धयानपवरक सना तो पता चला िक व िजस पहाड़ी क नीच ह उसी क िशखर स यह करण धविन आ रही ह पहाड़ी पर चढ़न क िलए कही स भी कोई राःता न िदखा िशवाजी घोड़ स

उतर और अपनी तलवार स कटीली झािड़यो को काटकर राःता बनात हए आिखर गफा तक पहच ही गय िशवाजी को अपनी आखो पर िव ास नही हआ जब उनहोन समथर की पीड़ा स कराहत और लोट-पोट होत दखा िशवा की आख आसओ स छलक उठी व मशाल को एक तरफ रखकर समथर क चरणो म िगर पड़ समथर क शरीर को सहलात हए िशवाजी न पछाः गरदव आपको यह कसी पीड़ा हो रही ह आप इस घन जगल म कस गरदव कपा करक बताइय

समथर कराहत हए बोलः िशवा त आ गया मर पट म जस शल चभ रह हो ऐसी अस वदना हो रही ह र

गरदव आपको तो धनवतिर महाराज भी हाजरा-हजर ह अतः आप इस उदर शल की औषिध तो जानत ही होग मझ औषिध का नाम किहय िशवा आकाश-पाताल एक करक भी वह औषिध ल आयगा

िशवा यह तो असाधय रोग ह इसकी कोई औषिध नही ह हा एक औषिध स राहत जरर िमल सकती ह लिकन जान द इस बीमारी का एक ही इलाज ह और वह भी अित दलरभ ह म उस दवा क िलए ही यहा आया था लिकन अब तो चला भी नही जाता ददर बढ़ता ही जा रहा ह

िशवा को अपन-आपस गलािन होन लगी िक गरदव लमब समय स ऐसी पीड़ा सहन कर रह ह और म राजमहल म बठा था िधककार ह मझ िधककार ह अब िशवा स रहा न गया उनहोन ढ़तापवरक कहाः नही गरदव िशवा आपकी यातना नही दख सकता आपको ःवःथ िकय िबना मरी अतरातमा शाित स नही बठगी मन म जरा भी सकोच रख िबना मझ इस रोग की औषिध क बार म बताय गरदव म लकर आता ह वह दवा

समथर न कहाः िशवा इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत का िनमऽण दना ह िशवा हम तो ठहर अरणयवासी आज यहा कल वहा होग कछ पता नही परत तम तो राजा हो लाख गय तो चलगा परत लाखो का रकषक िजनदा रहना चािहए

गरदव िजनकी कपा ि माऽ स हजारो िशवा तयार हो सकत ह ऐस समथर सदगर की सवा म एक िशवा की कबारनी हो भी जाय तो कोई बात नही मगलो क साथ लड़त-लड़त मौत क साथ सदव जझता आया ह गरसवा करत-करत मौत आ जायगी तो मतय भी महोतसव बन जायगी गरदव आपन ही तो िसखाया ह िक आतमा कभी मरती नही और न र दह को एक िदन जला ही दना ह ऐसी दह का मोह कसा गरदव म अभी बाघनी का दध लकर आता ह

कया होगा कस िमलगा अथवा ला सकगा या नही ETH ऐसा सोच िबना िशवाजी गर को णाम करक पास म पड़ा हआ कमडल लकर चल पड़ सतिशय की कसौटी करन क िलए

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 7: Mehakate phool

उतर और अपनी तलवार स कटीली झािड़यो को काटकर राःता बनात हए आिखर गफा तक पहच ही गय िशवाजी को अपनी आखो पर िव ास नही हआ जब उनहोन समथर की पीड़ा स कराहत और लोट-पोट होत दखा िशवा की आख आसओ स छलक उठी व मशाल को एक तरफ रखकर समथर क चरणो म िगर पड़ समथर क शरीर को सहलात हए िशवाजी न पछाः गरदव आपको यह कसी पीड़ा हो रही ह आप इस घन जगल म कस गरदव कपा करक बताइय

समथर कराहत हए बोलः िशवा त आ गया मर पट म जस शल चभ रह हो ऐसी अस वदना हो रही ह र

गरदव आपको तो धनवतिर महाराज भी हाजरा-हजर ह अतः आप इस उदर शल की औषिध तो जानत ही होग मझ औषिध का नाम किहय िशवा आकाश-पाताल एक करक भी वह औषिध ल आयगा

िशवा यह तो असाधय रोग ह इसकी कोई औषिध नही ह हा एक औषिध स राहत जरर िमल सकती ह लिकन जान द इस बीमारी का एक ही इलाज ह और वह भी अित दलरभ ह म उस दवा क िलए ही यहा आया था लिकन अब तो चला भी नही जाता ददर बढ़ता ही जा रहा ह

िशवा को अपन-आपस गलािन होन लगी िक गरदव लमब समय स ऐसी पीड़ा सहन कर रह ह और म राजमहल म बठा था िधककार ह मझ िधककार ह अब िशवा स रहा न गया उनहोन ढ़तापवरक कहाः नही गरदव िशवा आपकी यातना नही दख सकता आपको ःवःथ िकय िबना मरी अतरातमा शाित स नही बठगी मन म जरा भी सकोच रख िबना मझ इस रोग की औषिध क बार म बताय गरदव म लकर आता ह वह दवा

समथर न कहाः िशवा इस रोग की एक ही औषिध ह ETH बाघनी का दध लिकन उस लाना मान मौत का िनमऽण दना ह िशवा हम तो ठहर अरणयवासी आज यहा कल वहा होग कछ पता नही परत तम तो राजा हो लाख गय तो चलगा परत लाखो का रकषक िजनदा रहना चािहए

गरदव िजनकी कपा ि माऽ स हजारो िशवा तयार हो सकत ह ऐस समथर सदगर की सवा म एक िशवा की कबारनी हो भी जाय तो कोई बात नही मगलो क साथ लड़त-लड़त मौत क साथ सदव जझता आया ह गरसवा करत-करत मौत आ जायगी तो मतय भी महोतसव बन जायगी गरदव आपन ही तो िसखाया ह िक आतमा कभी मरती नही और न र दह को एक िदन जला ही दना ह ऐसी दह का मोह कसा गरदव म अभी बाघनी का दध लकर आता ह

कया होगा कस िमलगा अथवा ला सकगा या नही ETH ऐसा सोच िबना िशवाजी गर को णाम करक पास म पड़ा हआ कमडल लकर चल पड़ सतिशय की कसौटी करन क िलए

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

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अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 8: Mehakate phool

कित न भी मानो कमर कसी और आधी-तफान क साथ जोरदार बािरश शर हई बरसत पानी म िशवाजी ढ़ िव ास क साथ चल पड़ बाघनी को ढढन लिकन कया यह इतना आसान था मौत क पज म वश कर वहा स वापस आना कस सभव हो सकता ह परत िशवाजी को तो गरसवा की धन लगी थी उनह इन सब बातो स कया लना-दना ितकल सयोगो का सामना करत हए नरवीर िशवाजी आग बढ़ रह थ जगल म बहत दर जान पर िशवा को अधर म चमकती हई चार आख िदखी िशवा उनकी ओर आग बढ़न लग उनको अपना लआय िदख गया व समझ गय िक य बाघनी क बचच ह अतः बाघनी भी कही पास म ही होगी िशवाजी सनन थ मौत क पास जान म सनन एक सतिशय क िलए उसक सदगर की सननता स बड़ी चीज ससार म और कया हो सकती ह इसिलए िशवाजी सनन थ

िशवाजी क कदमो की आवाज सनकर बाघनी क बचचो न समझा िक उनकी मा ह परत िशवाजी को अपन बचचो क पास चपक-चपक जात दखकर पास म बठी बाघनी बोिधत हो उठी उसन िशवाजी पर छलाग लगायी परत कशल यो ा िशवाजी न अपन को बाघनी क पज स बचा िलया िफर भी उनकी गदरन पर बाघनी क दात अपना िनशान छोड़ चक थ पिरिःथितया िवपरीत थी बाघनी बोध स जल रही थी उसका रोम-रोम िशवा क र का यासा बना हआ था परत िशवा का िन य अटल था व अब भी हार मानन को तयार नही थ कयोिक समथर सदगर क सतिशय जो ठहर

िशवाजी बाघनी स ाथरना करन लग िक ह माता म तर बचचो का अथवा तरा कछ िबगाड़न नही आया ह मर गरदव को रह उदर-शल म तरा दध ही एकमाऽ इलाज ह मर िलए गरसवा स बढ़कर इस ससार म दसरी कोई वःत नही ह माता मझ मर सदगर की सवा करन द तरा दध दहन द पश भी म की भाषा समझत ह िशवाजी की ाथरना स एक महान आ यर घिटत हआ ETH िशवाजी क र की यासी बाघनी उनक आग गौमाता बन गयी िशवाजी न बाघनी क शरीर पर मपवरक हाथ फरा और अवसर पाकर व उसका दध िनकालन लग िशवाजी की मपवरक ाथरना का िकतना भाव दध लकर िशवा गफा म आय

समथर न कहाः आिखर त बाघनी का दध भी ल आया िशवा िजसका िशय गरसवा म अपन जीवन की बाजी लगा द ाणो को हथली पर रखकर मौत स जझ उसक गर को उदर-शल कस रह सकता ह मरा उदर-शल तो जब त बाघनी का दध लन गया तभी अपन-आप शात हो गया था िशवा त धनय ह धनय ह तरी गरभि तर जसा एकिन िशय पाकर म गौरव का अनभव करता ह ऐसा कहकर समथर न िशवाजी क ित ईयार रखनवाल उन दो िशयो क सामन अथरपणर ि स दखा गरदव िशवाजी को अिधक कयो चाहत ह ETH इसका रहःय उनको समझ म आ गया उनको इस बात की तीित करान क िलए ही गरदव न उदर-शल की लीला की थी इसका उनह जञान हो गया

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

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अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 9: Mehakate phool

अपन सदगर की सननता क िलए अपन ाणो तक बिलदान करन का सामथयर रखनवाल िशवाजी धनय ह धनय ह ऐस सतिशय जो सदगर क हदय म अपना ःथान बनाकर अमर पद ा कर लत ह धनय ह भारतमाता जहा ऐस सदगर और सतिशय पाय जात ह

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अनबम

बाबा फरीद की गरभि पािकःतान म बाबा फरीद नाम क एक फकीर हो गय व अननय गरभ थ गरजी की

सवा म ही उनका सारा समय वयतीत होता था एक बार उनक गर वाजा बहाउ ीन न उनको िकसी खास काम क िलए मलतान भजा उन िदनो वहा शमसतबरज क िशयो न गर क नाम का दरवाजा बनाया था और घोषणा की थी िक आज इस दरवाज स जो गजरगा वह जरर ःवगर म जायगा हजारो फकीरो न दरवाज स गजर रह थ न र शरीर क तयाग क बाद ःवगर म ःथान िमलगा ऐसी सबको आशा थी फरीद को भी उनक िमऽ फकीरो न दरवाज स गजरन क िलए खब समझाया परत फरीद तो उनको जस-तस समझा-पटाकर अपना काम परा करक िबना दरवाज स गजर ही अपन गरदव क चरणो म पहच गय सवारनतयारमी गरदव न उनस मलतान क समाचार पछ और कोई िवशष घटना हो तो बतान क िलए कहा फरीद न शाह शमसतबरज क दरवाज का वणरन करक सारी हकीकत सना दी गरदव बोलः म भी वही होता तो उस पिवऽ दरवाज स गजरता तम िकतन भागयशाली हो फरीद िक तमको उस पिवऽ दरवाज स गजरन का सअवसर ा हआ सदगर की लीला बड़ी अजीबो गरीब होती ह िशय को पता भी नही चलता और व उसकी कसौटी कर लत ह फरीद तो सतिशय थ उनको अपन गरदव क ित अननय भि थी गरदव क श द सनकर बोलः कपानाथ म तो उस दरवाज स नही गजरा म तो कवल आपक दरवाज स ही गजरगा एक बार मन आपकी शरण ल ली ह तो अब िकसी और की शरण मझ नही जाना ह

यह सनकर वाजा बहाउ ीन की आखो म म उमड़ आया िशय की ढ ौ ा और

अननय शरणागित दखकर उस उनहोन छाती स लगा िलया उनक हदय की गहराई स आशीवारद क श द िनकल पड़ः फरीद शमसतबरज का दरवाजा तो कवल एक ही िदन खला था परत तमहारा दरवाजा तो ऐसा खलगा िक उसम स जो हर गरवार को गजरगा वह सीधा ःवगर म जायगा

आज भी पि मी पािकःतान क पाक प टन कःब म बन हए बाबा फरीद क दरवाज म स हर गरवार क गजरकर हजारो याऽी अपन को धनयभागी मानत ह यह ह गरदव क ित

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 10: Mehakate phool

अननय िन ा की मिहमा धनयवाद ह बाबा फरीद जस सतिशयो को िजनहोन सदगर क हाथो म अपन जीवन की बागडोर हमशा क िलए स प दी और िनि त हो गय आतमसाकषातकार या त वबोध तब तक सभव नही जब तक व ा महापरष साधक क अनतःकरण का सचालन नही करत आतमव ा महापरष जब हमार अनतःकरण का सचालन करत ह तभी अनतःकरण परमातम-त व म िःथत हो सकता ह नही तो िकसी अवःथा म िकसी मानयता म िकसी वि म िकसी आदत म साधक रक जाता ह रोज आसन िकय ाणायाम िकय शरीर ःवःथ रहा सख-दःख क सग म चोट कम लगी घर म आसि कम हई पर वयि तव बना रहगा उसस आग जाना ह तो महापरषो क आग िबलकल मर जाना पड़गा व ा सदगर क हाथो म जब हमार म की लगाम आती ह तब आग की याऽा आती ह

सहजो कारज ससार को गर िबन होत नाही

हिर तो गर िबन कया िमल समझ ल मन माही ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

राम का गर-समपरण सत परम िहतकारी होत ह व जो कछ कह उसका पालन करन क िलए डट जाना

चािहए इसी म हमारा कलयाण िनिहत ह महापरष ह रामजी िऽभवन म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उललघन करक सखी रह सक ौी गरगीता म भगवान शकर कहत ह-

गरणा सदस ािप यद तनन लघयत कवरननाजञा िदवाराऽौ दासविननवसद गरौ गरओ की बात सचची हो या झठी परत उसका उललघन कभी नही करना चािहए रात

और िदन गरदव की आजञा का पालन करत हए उनक सािननधय म दास बनकर रहना चािहए गरदव की कही हई बात चाह झठी िदखती हो िफर भी िशय को सदह नही करना

चािहए कद पड़ना चािहए उनकी आजञा का पालन करन क िलए सौरा (गज) म राम नाम क महान गरभ िशय हो गय लालजी महाराज (सौरा क एक सत) क नाम उनका पऽ आता रहता था लालजी महाराज न ही राम क जीवन की यह घटना बतायी थी-

एक बार राम क गर न कहाः राम घोड़ागाड़ी ल आ भगत क घर भोजन करन जाना ह

राम घोड़ागाड़ी ल आया गर नाराज होकर बोलः अभी सबह क सात बज ह भोजन तो 11-12 बज होगा बवकफ कही का 12 बज भोजन करन जाना ह और गाड़ी अभी ल आया बचारा तागवाला तब तक बठा रहगा

राम गया तागवाल को छ टी दकर आ गया गर न पछाः कया िकया

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 11: Mehakate phool

तागा वापस कर िदया हाथ जोड़कर राम बोला गरजीः जब जाना ही था तो वापस कयो िकया जा ल आ

राम गया और तागवाल को बला लाया गरजी तागा आ गया

गरजीः अर तागा ल आया हम जाना तो बारह बज ह न पहल इतना समझाया अभी तक नही समझा भगवान को कया समझगा ताग की छोटी-सी बात को नही समझता राम को कया समझगा

तागा वापस कर िदया गया राम आया तो गर गरज उठ वापस कर िदया िफर समय पर िमल-न-िमल कया पता जा ल आ

नौ बार तागा गया और वापस आया राम यह नही कहता िक गर महाराज आपन ही तो कहा था वह सतपाऽ िशय जरा-भी िचढ़ता नही गरजी तो िचढ़न का वयविःथत सयोग खड़ा कर रह थ राम को गरजी क सामन िचढ़ना तो आता ही नही था कछ भी हो गरजी क आग वह मह िबगाड़ता ही नही था दसवी बार तागा ःवीकत हो गया तब तक बारह बज गय थ राम और गरजी भ क घर गय भोजन िकया भ था कछ साधन समपनन िवदाई क समय उसन गरजी क चरणो म व ािद रख और साथ म रमाल म सौ-सौ क दस नोट भी रख िदय और हाथ जोड़कर िवनता स ाथरना कीः गरजी कपा कर इतना ःवीकार कर ल इनकार न कर

िफर व ताग म बठकर वापस आन लग राःत म गरजी तागवाल स बातचीत करन लग तागवाल न कहाः

गरजी हजार रपय म यह घोड़ागाडी बनी ह तीन सौ का घोड़ा लाया ह और सात सौ की गाड़ी परत गजारा नही होता धनधा चलता नही बहत तागवाल हो गय ह

गरजीः हजार रपय म यह घोड़ागाड़ी बनी ह तो हजार रपय म बचकर और कोई काम कर

तागवालाः गरजी अब इसका हजार रपया कौन दगा गाड़ी नयी थी तब कोई हजार द भी दता परत अब थोड़ी-बहत चली ह हजार कहा िमलग

गरजी न उस सौ-सौ क दस नोट पकड़ा िदय और बोलः जा बटा और िकसी अचछ धनध म लग जा राम त चला तागा

राम यह नही कहता िक गरजी मझ नही आता मन तागा कभी नही चलाया गरजी कहत ह तो बठ गया कोचवान होकर

राःत म एक िवशाल वटवकष आया गरजी न उसक पास तागा रकवा िदया उस समय पककी सड़क नही थी दहाती वातावरण था गरजी सीध आौम म जानवाल नही थ सिरता क िकनार टहलकर िफर शाम को जाना था तागा रख िदया वटवकष की छाया म गरजी सो गय

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 12: Mehakate phool

सोय थ तब छाया थी समय बीता तो ताग पर धप आ गयी घोड़ा जोतन क डणड थोड़ तप गय थ गरजी उठ डणड को छकर दखा तो बोलः

अर राम इस बचारी गाड़ी को बखार आ गया ह गमर हो गयी ह जा पानी ल आ

राम न पानी लाकर गाड़ी पर छाट िदया गरजी न िफर गाड़ी की नाड़ी दखी और राम स पछाः

रामः हा

गरजीः तो यह गाड़ी मर गयी ठणडी हो गयी ह िबलकल

रामः जी गरजी

गरजीः मर हए आदमी का कया करत ह

रामः जला िदया जाता ह

गरजीः तो इसको भी जला दो इसकी अितम िबया कर दो

गाड़ी जला दी गयी राम घोड़ा ल आया अब घोड़ का कया करग राम न पछा गरजीः घोड़ को बच द और उन पसो स गाड़ी का बारहवा करक पस खतम कर द

घोड़ा बचकर गाड़ी का िबया-कमर करवाया िपणडदान िदया और बारह ा णो को भोजन कराया मतक आदमी क िलए जो कछ िकया जाता ह वह सब गाड़ी क िलए िकया गया

गरजी दखत ह िक राम क चहर पर अभी तक फिरयाद का कोई िच नही अपनी अकल का कोई दशरन नही राम की अदभत ौ ा-भि दखकर बोलः अचछा अब पदल जा और भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक आ

कहा सौरा (गज) और कहा काशी िव नाथ (उ)

राम गया पदल भगवान काशी िव नाथ क दशरन पदल करक लौट आया गरजी न पछाः काशी िव नाथ क दशरन िकय

रामः हा गरजी

गरजीः गगाजी म पानी िकतना था

रामः मर गरदव की आजञा थीः काशी िव नाथ क दशरन करक आ तो दशरन करक आ गया

गरजीः अर िफर गगा-िकनार नही गया और वहा मठ-मिदर िकतन थ

रामः मन तो एक ही मठ दखा ह ETH मर गरदव का

गरजी का हदय उमड़ पड़ा राम पर ई रीय कपा का पात बरस पड़ा गरजी न राम को छाती स लगा िलयाः चल आ जा त म ह म त ह अब अह कहा रहगा

ईशकपा िबन गर नही गर िबना नही जञान जञान िबना आतमा नही गाविह वद परान

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 13: Mehakate phool

राम का काम बन गया परम कलयाण उसी कषण हो गया राम अपन आननदःवरप आतमा म जग गया उस आतमसाकषातकार हो गया

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अनबम

िमलारपा की आजञाकािरता ित बत म करीब 850 वषर पहल एक बालक का जनम हआ उसका नाम रखा गया

िमलारपा जब वह सात वषर का था तब उसक िपता का दहात हो गया चाचा और बआ न उनकी सारी िमिलकयत हड़प ली अपनी छोटी बहन और माता सिहत िमलारपा को खब दःख सहन पड़ अपनी िमिलकयत पनः पान क िलए उसकी माता न कई य िकय लिकन चाचा और बआ न उसक सार य िनफल कर िदय वह ितलिमला उठी उसक मन स िकसी भी तरह स इस बात का रज नही जा रहा था

एक िदन की बात ह तब िमलारपा की उ करीब 15 वषर थी वह कोई गीत गनगनात हए घर लौटा गान की आवाज सनकर उसकी मा एक हाथ म लाठी और दसर हाथ म राख लकर बाहर आयी और िमलारपा क मह पर राख फ ककर लाठी स उस बरी तरह पीटत हए बोलीः कसा कपऽ जनमा ह त अपन बाप का नाम लजा िदया

उस पीटत-पीटत मा बहोश हो गयी होश आन पर उस फटकारत हए िमलारपा स बोलीः िधककार ह तझ द मनो स वर लना भलकर गाना सीखा सीखना हो तो कछ ऐसा सीख िजसस उनका वश ही खतम हो जाय

बस िमलारपा क हदय म चोट लग गयी घर छोड़कर उसन तऽिव ा िसखानवाल गर को खोज िनकाला और परी िन ा एव भाव स सवा करक उनको सनन िकया उनस द मनो को खतम करन एव िहमवषार करन की िव ा सीख ली इनका योग कर उसन अपन चाचा और बआ की खती एव उनक कटिमबयो को न कर डाला चाचा और बआ को उसन िजदा रखा तािक व तड़प-तड़पकर दःख भोगत हए मर यह दखकर लोग िमलारपा स खब भयभीत हो गय समय बीता िमलारपा क हदय की आग थोड़ी शात हई अब उसन बदला लन की वि पर प ाताप होन लगा ऐस म उसकी एक लामा (ित बत क बौ आचायर) क साथ भट हई उसन सलाह दीः तझ अगर िव ा ही सीखनी ह तो एकमाऽ योगिव ा ही सीख भारत स यह योगिव ा सीखकर आय हए एकमाऽ गर ह ETH मारपा

योगिव ा जानन वाल गर क बार म सनत ही उसका मन उनक दशरन क िलए अधीर हो गया िमलारपा म लगन तो थी ही साथ म ढ़ता भी थी और तऽिव ा सीखकर उसन गर क

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 14: Mehakate phool

ित िन ा भी सािबत कर िदखायी थी एक बार हाथ म िलया हआ काम परा करन म वह ढ़ िन यी था उसम भरपर आतमिव ास था वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को िमलन

राःता पछत-पछत िनराश हए िबना िमलारपा आग-ही-आग बढ़ता गया राःत म एक गाव क पास खत म उसन िकसी िकसान को दखा उसक पास जाकर मारपा क बार म पछा िकसान न कहाः मर बदल म त खती कर तो म तझ मारपा क पास ल जाऊगा

िमलारपा उतसाह स सहमत हो गया थोड़ िदनो क बाद िकसान न रहःयोदघाटन िकया िक वह खद ही मारपा ह िमलारपा न गरदव को भावपवरक णाम िकया और अपनी आपबीती कह सनायी उसन ःवय क ारा हए मानव-सहार की बात भी कही बदल की भावना स िकय हए पाप क बार म बताकर प ाताप िकया िमलारपा की िनखािलस ःवीकारोि स गर का मन सनन हआ लिकन उनहोन अपनी सननता को ग ही रखा अब िमलारपा की परीकषा शर हई गर क ित ौ ा िन ा एव ढ़ता की कसौिटया ारमभ ह गर मारपा िमलारपा क साथ खब कड़ा वयवहार करत जस उनम दया की एक बद भी न हो लिकन िमलारपा अपनी गरिन ा म पकका था वह गर क बताय तयक कायर को खब ततपरता एव िन ा स करन लगा

कछ महीन बीत िफर भी गर न िमलारपा को कछ जञान नही िदया िमलारपा न काफी नता स गरजी क समकष जञान क िलए ाथरना की गरजी भड़क उठः म अपना सवरःव दकर भारत स यह योगिव ा सीखकर आया ह यह तर जस द क िलए ह कया तन जो पाप िकय ह व जला द तो म तझ यह िव ा िसखाऊ जो खती तन न की ह वह उनको वापस द द िजनको तन मारा डाला ह उन सबको जीिवत कर द

यह सनकर िमलारपा खब रोया िफर भी वह िहममत नही हारा उसन गर की शरण नही छोड़ी

कछ समय और बीता मारपा न एक िदन िमलारपा स कहाः मर पऽ क िलए एक पवरमखी गोलाकार मकान बना द लिकन याद रखना उस बनान म तझ िकसी की मदद नही लनी ह मकान म लगन वाली लकड़ी भी तझ ही काटनी ह गढ़नी ह और मकान म लगानी ह

िमलारपा खश हो गया िक चलो गरजी की सवा करन का मौका तो िमल रहा ह न उसन बड़ उतसाह स कायर शर कर िदया वह ःवय ही लकिड़या काटता और उनह तथा पतथरो को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता वह ःवय ही दर स पानी भरकर लाता िकसी की भी मदद लन की मनाई थी न गर की आजञा पालन म वह पकका था मकान का आधा काम तो हो गया एक िदन गरजी मकान दखन आय व गःस म बोलः धत तर की ऐसा मकान नही चलगा तोड़ डाल इसको और याद रखना जो चीज जहा स लाया ह उस वही रखना

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 15: Mehakate phool

िमलारपा न िबना िकसी फिरयाद क गरजी की आजञा का पालन िकया फिरयाद का फ तक मह म नही आन िदया कायर परा िकया िफर गरजी न दसरी जगह बतात हए कहाः हा यह जगह ठीक ह यहा पि म की ओर ारवाला अधरचनिाकार मकान बना द

िमलारपा पनः काम म लग गया काफी महनत क बाद आधा मकान परा हआ तब गरजी िफर स फटकारत हए बोलः कसा भ ा लगता ह यह तोड़ डाल इस और एक-एक पतथर उसकी मल जगह पर वापस रख आ

िबलकल न िचढ़त हए उसन गर क श द झल िलय िमलारपा की गरभि गजब की थी

थोड़ िदन बाद गरजी न िफर स नयी जगह बतात हए हकम िकयाः यहा िऽकोणाकार मकान बना द

िमलारपा न पनः काम चाल कर िदया पतथर उठात-उठात उसकी पीठ एव कध िछल गय थ िफर भी उसन अपनी पीड़ा क बार म िकसी को भी नही बताया िऽकोणाकार मकान बधकर मकान बधकर परा होन आया तब गरजी न िफर स नाराजगी वय करत हए कहाः यह ठीक नही लग रहा इस तोड़ डाल और सभी पतथरो को उनकी मल जगह पर रख द

इस िःथित म भी िमलारपा क चहर पर असतोष की एक भी रखा नही िदखी गर क आदश को सनन िच स िशरोधायर कर उसन सभी पतथरो को अपनी-अपनी जगह वयविःथत रख िदया इस बार एक टकरी पर जगह बतात हए गर न कहाः यहा नौ खभ वाला चौरस मकान बना द

गरजी न तीन-तीन बार मकान बनवाकर तड़वा डाल थ िमलारपा क हाथ एव पीठ पर छाल पड़ गय थ शरीर की रग-रग म पीड़ा हो रही थी िफर भी िमलारपा गर स फिरयाद नही करता िक गरजी आपकी आजञा क मतािबक ही तो मकान बनाता ह िफर भी आप मकान पसद नही करत तड़वा डालत हो और िफर स दसरा बनान को कहत हो मरा पिरौम एव समय वयथर जा रहा ह

िमलारपा तो िफर स नय उतसाह क साथ काम म लग गया जब मकान आधा तयार हो गया तब मारपा न िफर स कहाः इसक पास म ही बारह खभ वाला दसरा मकान बनाओ कस भी करक बारह खभ वाला मकान भी परा होन को आया तब िमलारपा न गरजी स जञान क िलए ाथरना की गरजी न िमलारपा क िसर क बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारत हए यह कहकर िनकाल िदया िक म त म जञान लना ह

दयाल गरमाता (मारपा की प ी) स िमलारपा की यह हालत दखी नही गयी उसन मारपा स दया करन की िवनती की लिकन मारपा न कठोरता न छोड़ी इस तरह िमलारपा गरजी क तान भी सन लता व मार भी सह लता और अकल म रो लता लिकन उसकी जञानाि की िजजञासा क सामन य सब दःख कछ मायना नही रखत थ एक िदन तो उसक

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 16: Mehakate phool

गर न उस खब मारा अब िमलारपा क धयर का अत आ गया बारह-बारह साल तक अकल अपन हाथो स मकान बनाय िफर भी गरजी की ओर स कछ नही िमला अब िमलारपा थक गया और घर की िखड़की स कदकर बाहर भाग गया गरप ी यह सब दख रही थी उसका हदय कोमल था िमलारपा की सहनशि क कारण उसक ित उस सहानभित थी वह िमलारपा क पास गयी और उस समझाकर चोरी-िछप दसर गर क पास भज िदया साथ म बनावटी सदश-पऽ भी िलख िदया िक आनवाल यवक को जञान िदया जाय यह दसरा गर मारपा का ही िशय था उसन िमलारपा को एकात म साधना का मागर िसखाया िफर भी िमलारपा की गित नही हो पायी िमलारपा क नय गर को लगा िक जरर कही-न-कही गड़बड़ ह उसन िमलारपा को उसकी भतकाल की साधना एव अनय कोई गर िकय हो तो उनक बार म बतान को कहा िमलारपा न सब बात िनखािलसता स कह दी

नय गर न डाटत हए कहाः एक बात धयान म रख-गर एक ही होत ह और एक ही बार िकय जात ह यह कोई सासािरक सौदा नही ह िक एक जगह नही जचा तो चल दसरी जगह आधयाितमक मागर म इस तरह गर बदलनवाला धोबी क क की ना न तो घर का रहता ह न ही घाट का ऐसा करन स गरभि का घात होता ह िजसकी गरभि खिडत होती ह उस अपना लआय ा करन म बहत लमबा समय लग जाता ह तरी ामािणकता मझ जची चल हम दोनो चलत ह गर मारपा क पास और उनस माफी माग लत ह ऐसा कहकर दसर गर न अपनी सारी सपि अपन गर मारपा को अपरण करन क िलए साथ म ल ली िसफर एक लगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ िदया

दोनो पहच मारपा क पास िशय ारा अिपरत की हई सारी सपि मारपा न ःवीकार कर ली िफर पछाः वह लगड़ी बकरी कयो नही लाय तब वह िशय िफर स उतनी दरी तय करक वापस घर गया बकरी को कध पर उठाकर लाया और गरजी को अिपरत की यह दखकर गरजी बहत खश हए िमलारपा क सामन दखत हए बोलः िमलारपा मझ ऐसी गरभि चािहए मझ बकरी की जररत नही थी लिकन मझ तमह पाठ िसखाना था िमलारपा न भी अपन पास जो कछ था उस गरचरणो म अिपरत कर िदया िमलारपा क ारा अिपरत की हई चीज दखकर मारपा न कहाः य सब चीज तो मरी प ी की ह दसर की चीज त कस भट म द सकता ह ऐसा कहकर उनहोन िमलारपा को धमकाया

िमलारपा िफर स खब हताश हो गया उसन सोचा िक म कहा कचचा सािबत हो रहा ह जो मर गरजी मझ पर सनन नही होत उसन मन-ही-मन भगवान स ाथरना की और िन य िकया िक इस जीवन म गरजी सनन हो ऐसा नही लगता अतः इस जीवन का ही गरजी क चरणो म बिलदान कर दना चािहए ऐसा सोचकर जस ही वह गरजी क चरणो म ाणतयाग करन को उ त हआ तरत ही गर मारपा समझ गय हा अब चला तयार हआ ह

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 17: Mehakate phool

मारपा न खड़ होकर िमलारपा को गल लगा िलया मारपा की अमी ि िमलारपा पर बरसी यारभर ःवर म गरदव बोलः पऽ मन जो तरी स त कसौिटया ली उनक पीछ एक ही कारण था ETH तन आवश म आकर जो पाप िकय थ व सब मझ इसी जनम म भःमीभत करन थ तरी कई जनमो की साधना को मझ इसी जनम म फलीभत करना था तर गर को न तो तरी भट की आवयकता ह न मकान की तर कम की शि क िलए ही यह मकार बधवान की सवा खब मह वपणर थी ःवणर को श करन क िलए तपाना ही पड़ता ह न त मरा ही िशय ह मर यार िशय तरी कसौटी परी हई चल अब तरी साधना शर कर िमलारपा िदन-रात िसर पर दीया रखकर आसन जमाय धयान म बठता इस तरह गयारह महीन तक गर क सतत सािननधय म उसन साधना की सनन हए गर न दन म कछ बाकी न रखा िमलारपा को साधना क दौरान ऐस-ऐस अनभव हए जो उसक गर मारपा को भी नही हए थ िशय गर स सवाया िनकला अत म गर न उस िहमालय की गहन कदराओ म जाकर धयान-साधना करन को कहा

अपनी गरभि ढ़ता एव गर क आशीवारद स िमलारपा न ित बत म सबस बड़ योगी क रप म याित पायी बौ धमर की सभी शाखाय िमलारपा की मानती ह कहा जाता ह िक कई दवताओ न भी िमलारपा का िशयतव ःवीकार करक अपन को धनय माना ित बत म आज भी िमलारपा क भजन एव ःतोऽ घर-घर म गाय जात ह िमलारपा न सच ही कहा हः

गर ई रीय शि क मितरमत ःवरप होत ह उनम िशय क पापो को जलाकर भःम करन की कषमता होती ह

िशय की ढ़ता गरिन ा ततपरता एव समपरण की भावना उस अवय ही सतिशय बनाती ह इसका जवलत माण ह िमलारपा आज क कहलानवाल िशयो को ई राि क िलए योगिव ा सीखन क िलए आतमानभवी सतपरषो क चरणो म कसी ढ़ ौ ा रखनी चािहए इसकी समझ दत ह योगी िमलारपा

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अनबम

सत गोदवलकर महाराज की गरिन ा महारा म औरगाबाद स आग यहल गाव म सत तकाराम चतनय रहत थ िजनक लोग

म स तकामाई कहत थ व ई रीय स ा स जड़ हए बड़ उचचकोिट क सत थ 19 फरवरी 1854 को बधवार क िदन गोदवाल गाव म गणपित नामक एक बालक का जनम हआ जब वह 12 वषर का हआ तब तकामाई क ौीचरणो म आकर बोलाः बाबाजी मझ अपन पास रख लीिजय

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 18: Mehakate phool

तकामाई न कषणभर क िलए आख मदकर उसका भतकाल दख िलया िक यह कोई साधारण आतमा नही ह और बालक गणपित को अपन पास रख िलया तकामाई उस गण कहत थ वह उनकी रसोई की सवा करता परचपी करता झाड़ बहारी करता बाबा की सारी सवा-चाकरी बड़ी िनपणता स करता था बाबा उस ःनह भी करत िकत कही थोड़ी-सी गलती हो जाती तो धड़ाक स मार भी दत

महापरष बाहर स कठोर िदखत हए भी भीतर स हमार िहतषी होत ह व ही जानत ह 12 साल क उस बचच स जब गलती होती तो उसकी ऐसी घटाई-िपटाई होती िक दखन वाल बड़-बड़ लोग भी तौबा पकार जात लिकन गण न कभी गर ार छोड़न का सोचा तक नही उस पर गर का ःनह भीतर स बढ़ता गया एक बार तकामाई गण को लकर नदी म ःनान क िलए गय वहा नदी पर तीन माइया कपड़ धो रही थी उन माइयो क तीन छोट-छोट बचच आपस म खल रह थ तकामाई न कहाः गण ग डा खोद

एक अचछा-खासा ग ढा खदवा िलया िफर कहाः य जो बचच खल रह ह न उनह वहा ल जा और ग ढ म डाल द िफर ऊपर स जलदी-जलदी िम टी डाल क आसन जमाकर धयान करन लग

इस कार तकामाई न गण क ारा तीन मासम बचचो को ग ढ म गड़वा िदया और खद दर बठ गय गण बाल का टीला बनाकर धयान करन बठ गया कपड़ धोकर जब माइयो न अपन बचचो को खोजा तो उनह व न िमल तीनो माइया अपन बचचो को खोजत-खोजत परशान हो गयी गण को बठ दखकर व माइया उसस पछन लगी िक ए लड़क कया तन हमार बचचो को दखा ह

माइया पछ-पछ कर थक गयी लिकन गर-आजञापालन की मिहमा जानन वाला गण कस बोलता इतन म माइयो न दखा िक थोड़ी दरी पर परमहस सत तकामाई बठ ह व सब उनक पास गयी और बोली- बाबा हमार तीनो बचच नही िदख रह ह आपन कही दख ह

बाबाः वह जो लड़का आख मदकर बठा ह न उसको खब मारो-पीटो तमहार बट उसी क पास ह उसको बराबर मारो तब बोलगा

यह कौन कह रहा ह गर कह रह ह िकसक िलए आजञाकारी िशय क िलए हद हो गयी गर कमहार की तरह अदर हाथ रखत ह और बाहर स घटाई-िपटाई करत ह

गर कभार िशय कभ ह गिढ़ गिढ़ काढ़ खोट अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

माइयो न गण को खब मारा पीटा िकत उसन कछ न कहा ऐसा नही बोला िक मझको तो गर न कहा ह मार-मारकर उसको अधमरा कर िदया िकत गण कछ नही बोला आिखर तकामाई आय और बोलः अभी तक नही बोलता ह और मारो इसको इसी बदमाश न तमहार बचचो को पकड़कर ग ढ म डाल िदया ह ऊपर िम टी डालकर साध बनन का ढोग करता ह

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 19: Mehakate phool

माइयो न टीला खोदा तो तीनो बचचो की लाश िमली िफर तो माइयो का बोध अपन मासम बचचो तो मारकर ऊपर स िम टी डालकर कोई बठ जाय उस वयि को कौन-सी माई माफ करगी माइया पतथर ढढन लगी िक इसको तो टकड़-टकड़ कर दग

तकामाईः तमहार बचच मार िदय न

हा अब इसको हम िजदा न छोड़गी

अर दखो अचछी तरह स मर गय ह िक बहोश हो गय ह जरा िहलाओ तो सही

गाड़ हए बचच िजदा कस िमल सकत थ िकत महातमा न अपना सकलप चलाया यिद व सकलप चलाय मदार भी जीिवत हो जाय

तीनो बचच हसत-खलत खड़ हो गय अब व माइया अपन बचचो स िमलती िक गण को मारन जाती माइयो न अपन बचचो को गल लगाया और उन पर वारी-वारी जान लगी मल जसा माहौल बन गया तकामाई महाराज माइयो की नजर बचाकर अपन गण को लकर आौम म पहच गय िफर पछाः गण कसा रहा

गरकपा ह

गण क मन म यह नही आया िक गरजी न मर हाथ स तो बचच गड़वा िदय और िफर माइयो स कहा िक इस बदमाश छोर न तमहार बचचो को मार डाला ह इसको बराबर मारो तो बोलगा िफर भी म नही बोला

कसी-कसी आतमाए इस दश म हो गयी आग चलकर वही गण बड़ उचचकोिट क िस महातमा गोदवलकर महाराज हो गय उनका दहावसान 22 िदसमबर 1913 क िदन हआ अभी भी लोग उन महापरष क लीलाःथान पर आदर स जात ह

गरकपा िह कवल िशयःय पर मगलम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

सत ौी आसारामजी बाप का मधर सःमरण एक बार ननीताल म गरदव (ःवामी ौी लीलाशाहजी महाराज) क पास कछ लोग आय

व चाइना पीक (िहमालय पवरत का एक िस िशखर दखना चाहत थ गरदव न मझस कहाः य लोग चाइना पीक दखना चाहत ह सबह तम जरा इनक साथ जाकर िदखा क आना

मन कभी चाइना पीक दखा नही था परत गरजी न कहाः िदखा क आओ तो बात परी हो गयी

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 20: Mehakate phool

सबह अधर-अधर म म उन लोगो को ल गया हम जरा दो-तीन िकलोमीटर पहािड़यो पर चल और दखा िक वहा मौसम खराब ह जो लोग पहल दखन गय थ व भी लौटकर आ रह थ िजनको म िदखान ल गया था व बोलः मौसम खराब ह अब आग नही जाना ह

मन कहाः भ ो कस नही जाना ह बापजी न मझ आजञा दी ह िक भ ो को चाइना पीक िदखाक आओ तो म आपको उस दख िबना कस जान द

व बोलः हमको नही दखना ह मौसम खराब ह ओल पड़न की सभावना ह

मन कहाः सब ठीक हो जायगा लिकन थोड़ा चलन क बाद व िफर हतोतसािहत हो गय और वापस जान की बात करन लग यिद कहरा पड़ जाय या ओल पड़ जाय तो ऐसा कहकर आनाकानी करन लग ऐसा अनको बार हआ म उनको समझात-बझात आिखर गनतवय ःथान पर ल गया हम वहा पहच तो मौसम साफ हो गया और उनहोन चाइनाप दखा व बड़ी खशी स लौट और आकर गरजी को णाम िकया

गरजी बोलः चाइना पीक दख िलया

व बोलः साई हम दखन वाल नही थ मौसम खराब हो गया था परत आसाराम हम उतसािहत करत-करत ल गय और वहा पहच तो मौसम साफ हो गया

उनहोन सारी बात िवःतार स कह सनायी गरजी बोलः जो गर की आजञा ढ़ता स मानता ह कित उसक अनकल जो जाती ह मझ िकतना बड़ा आशीवारद िमल गया उनहोन तो चाइना पीक दखा लिकन मझ जो िमला वह म ही जानता ह आजञा सम नही सािहब सवा मन गरजी की बात काटी नही टाली नही बहाना नही बनाया हालािक व तो मना ही कर रह थ बड़ी किठन चढ़ाईवाला व घमावदार राःता ह चाइना पीक का और कब बािरश आ जाय कब आदमी को ठडी हवाओ का आधी-तफानो का मकाबला करना पड़ कोई पता नही िकत कई बार मौत का मकाबला करत आय ह तो यह कया होता ह कई बार तो मरक भी आय िफर इस बार गर की आजञा का पालन करत-करत मर भी जायग तो अमर हो जायग घाटा कया पड़ता ह

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अनबम

ःवामी िववकाननदजी की गरभि िव िव यात ःवामी िववकाननदजी अपना जीवन अपन गरदव ःवामी रामकण परमहस

को समिपरत कर चक थ ौी रामकण परमहस क शरीर-तयाग क िदनो म व अपन घर और कटमब की नाजक हालत की परवाह िकय िबना ःवय क भोजन की परवाह िकय िबना गरसवा म सतत हािजर रहत गल क क सर क कारण रामकण परमहस का शरीर अतयत रगण हो

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 21: Mehakate phool

गया था गल म स थक र कफ आिद िनकलता था इन सबकी सफाई व खब धयान स एव म स करत थ

एक बार िकसी िशय न ौी रामकण की सवा म लापरवाही िदखायी तथा घणा स नाक-भौह िसकोड़ी यह दखकर िववकाननद जी को गःसा आ गया उस गरभाई को पाठ पढ़ात हए और गरदव की तयक वःत क ित म दशारत हए व उनक िबःतर क पास रखी र कफ आिद स भी भरी थकदानी उठाकर परी पी गय

गर क ित ऐसी अननय भि और िन ा क ताप स ही व गर क शरीर की और उनक िदवयतम आदश को लोगो तक पहचान की उ म सवा कर सक गरदव को व समझ सक ःवय क अिःततव को गरदव क ःवरप म िवलीन कर सक समम िव म भारत क अमलय आधयाितमक खजान की महक फला सक

ःवामी िववकानद गरभि क िवषय म कहत ह- ःवानभित जञान की परम सीमा ह वह मनथो स नही ा हो सकती पथवी का पयरटन कर चाह आप सारी भिम पदाबात कर डाल िहमालय काकशस आलपस पवरत लाघ जाय समि म गोता लगाकर उसकी गहराई म बठ जाय ित बत दश दख ल या गोबी (अीका) का मरःथल छान डाल परत ःवानभव का यथाथर धमररहःय इन बातो स ौीगर क कपा-साद क िबना िऽकाल म भी जञात नही होगा इसिलए भगवान की कपा स जब ऐसा भागयोदय हो िक ौीगर दशरन द तब सवारनतःकरण स ौीगर की शरण लो उनह ऐसा समझो जस यही पर हो उनक बालक बनकर अननयभाव स उनकी सवा करो इसस आप धनय होग ऐस परम म और आदर क साथ जो ौीगर क शरणागत हए उनही को और कवल उनही को सिचचदाननद भ न सनन होकर अपनी परम भि दी ह और अधयातम क अलौिकक चमतकार िदखाय ह

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अनबम

भाई लहणा का अिडग िव ास खडरगाव (िज अमतसर पजाब) क लहणा चौधरी गर नानकदव क शरणागत हए गर

नानक उनह भाई लहणा कहत थ करतार म गर नानक दव न पशओ की दखभाल करन की सवा भाई लहणा को स प दी

वहा और भी कई िशय थ जो खती-बाड़ी व पशओ की दखरख करत थ एक बार लगातार कई िदनो तक वषार होती रही जब वषार बनद हई तो चारो ओर कीचड़ ह गया पशओ का चारा समा हो गया था लिकन कोई भी िशय चारा लान क िलए जान को तयार नही था कयोिक उस कीचड़ म कीचड़ स भरी घास लाना कोई आसान कायर न था भाई लहणा चारा लन चल

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 22: Mehakate phool

गय जब व चारा लकर लौट तो उनक कपड़ ही नही सारा शरीर भी कीचड़ स लथपथ था परत उनह इस बात का कोई दःख नही था कयोिक गरसवा को ही उनहोन अपना सवरःव बना िलया था

एक बार गर नानक न जानबझकर अपना कास का कटोरा कीचड़ क भर एक ग ढ म फ क िदया और अपन पऽो तथा िशयो को आदश िदया िक व कटोरा िनकाल लाय ग ढ म घटन स भी ऊपर तक कीचड़ भरा हआ था सब लोग कोई-न-कोई बहाना बनाकर िखसक गय भाई लहणा ततकाल ग ढ म उतर गय कटोरा िनकाल लाय उनह इस बात की र ीभर भी िचता नही हई िक कीचड़ उनक शरीर पर लग जायगा और उनक कपड़ कीचड़ स भर जायग उनक िलए तो गरदव का आदश ही सव पिर था

एक िदन कछ भ लगर (सामिहक भोजन) खतम हो जान क बाद डर पर पहच व बहत दर स चलकर आय थ उनह भख लगी थी गरनानक दव न अपन दोनो पऽो को सामन खड़ बबल क एक पड़ की ओर इशारा करत हए कहाः तम दोनो उस पड़ पर चढ़ जाओ और डािलयो को जोर-स िहलाओ इसस तरह-तरह की िमठाइया टपक गी व इन लोगो को िखला दना

गर नानक की बात सनकर उनक दोनो पऽ आ यर स उनका मह दखन लग पड़ स और वह भी बबल क पड़ स िमठाइया भला कस टपक सकती ह िपताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहत ह ऐसा सोचकर व दोनो चपक-स वहा स िखसक गय गर नानक न अपन अनय िशयो स भी यही कहा परत कोई तयार नही हआ सब िशय यही सोच रह थ िक गरदव उनह बवकफ बनाना चाहत ह

भाई लहणा को गर नानकदव म अगाध ौ ा थी अिडग िव ास था व उठ बबल क पड़ पर जा चढ़ और उसकी डािलया जोर-स िहलानी शर कर दी दसर ही पल काटो स भर बबल क पड़ स तरह-तरह की ःवािद िमठाइया टपकन लगी वहा उपिःथत लोगो की आख आ यर स फटी रह गयी भाई लहणा न पड़ स उतरकर िमठाइया इक ठी की और आय हए भ ो को िखला दी

पऽो न नानक जी की अवजञा की लिकन भाई लहणा क मन म ई ररप गरनानक क िकसी भी श द क ित अिव ास का नामोिनशान तक नही था भगवान ौीकण क पऽो न भी ौीकण की अवजञा की उनका फायदा नही उठाया चमचो क चककर म रह जबिक आज भी लाखो लोग ौीकण स फायदा उठा रह ह अितसािननधयात भवत अवजञा िजनह अित सािननधय िमलता ह व लाभ नही उठात कसा आ यर ह

गर नानक समािध लगाय अपनी ग ी पर बठ थ उनक सामन बठ अनक िशय उनक उपदश की तीकषा कर रह थ अचानक उनहोन आख खोली एक नजर सामन बठ िशयो पर डाली और िफर पास ही पड़ा डडा उठाकर िशयो पर टट पड़ जो भी सामन आया उस पर डड

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 23: Mehakate phool

बरसान लग उनकी रौि मितर और पागलो जसी अवःथा दखकर उनक दोनो पऽ तथा अनय िशय शीयता स भाग परत भाई लहणा वही खड़ रह एव गर नानक क डडो की मार बड़ शात भाव स सहन करत रह

गर नानक दव न भाई लहणा की अनक परीकषाए ली परत व सभी परीकषाओ म उ ीणर हए तब उनहोन सबस अिधक भीषण परीकषा लन का िन य कर िलया व कछ दर तक इसी तरह पागलो जसी हरकत करत रह और िफर जगल की चल िदय उनकी पागलो जसी हरकत दखकर बहत-स क उनक पीछ लग गय परत गरनानक अपन डड स उनह धमकात हए जगल की ओर बढ़त रह यह दखकर उनक कछ िशय और दोनो पऽ भी उनक पीछ-पीछ चल िदय उन िशयो म भाई लहणा भी शािमल थ चलत-चलत गर नानक मशान म पहच और कफन स ढक एक मद क पास जाकर रक गय व बड़ धयान स उस मद को दख ही रह थ िक उनक दोनो पऽ और िशय भी वहा पहच गय

तम लोग बहत दर स मर पीछ-पीछ आ रह हो दोपहर का व ह भोजन का समय हो चका ह तम लोगो को भख भी लगी होगी तमह आज बहत ही ःवािद चीज िखलाता ह यह कहकर गर नानक दव न मद की ओर इशारा िकया और अपन पऽो तथा िशयो की ओर दखत हए बोलः इस खाओ

यह बात सनकर सब लोग ःत ध रह गय िकतना िविचऽ और भयानक था गर का आदश उनक दोनो पऽो और िशयो न घणा स अपन मह फर िलए और वहा स िखसकन लग परत भाई लहणा आग बढ़ और पछाः गरदव इस मद को िकस ओर स खाना शर कर िसर की ओर स या परो की ओर स गर नानक न कहाः परो की ओर स खाना शर करो

जो आजञा कहकर भाई लहणा मद क परो क पास जा बठ उनक मन म न घणा थी न कोई परशानी ही उनहोन हाथ बढ़ाकर मद क ऊपर पड़ा कफन हटा िदया कफन क नीच कोई मदार नही था वह सफद चादर धरती पर इस तरह पड़ी थी जस उसस िकसी लाश को ढक िदया गया हो गर नानक दव क चहर पर करणाभरी मःकराहट िखल उठी उनकी आख ःनह स चमक उठी उन पर छाया हआ पागलपन जाता रहा और व सामानय िःथित म आ गय उनहोन आग बढ़कर भाई लहणा को अपनी बाहो म भर हदय स लगा िलया उनका हदय छलक पड़ा और व कपापणर ःवर म बोलः आज स तमहारा नाम भाई लहणा नही अगददव ह मन तमह अपन अग स लगा िलया ह अब तम मर ही ितरप हो

कस थ िशय िजनहोन गरओ का माहातमय जानकर समझा िक गरओ की कपा कस पचायी जाती ह और आज क

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अनबम

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 24: Mehakate phool

सत एकनाथजी की अननय गरिन ा सत एकनाथ दवगढ़ राजय क दीवान ौी जनादरन ःवामी क िशय थ 12 वषर की छोटी

उ म ही उनहोन ौीगरचरणो म अपना जीवन समिपरत कर िदया था व गरदव क कपड़ धोत पजा क िलए फल लात गरदव भोजन करत तब पखा झलत गरदव क नाम आय हए पऽ पढ़त और उनक सकत-अनसार उनका जवाब दत और गरपऽो की दखभाल करत ऐस एव अनय भी कई कार क छोट-मोट काम व गरचरणो म करत एक बार जनादरन ःवामी न एकनाथ जी को राजदरबार का िहसाब करन को कहा एकनाथ जी बिहया लकर िहसाब करन बठ गय दसर ही िदन ातः िहसाब-िकताब राजदरबार म बताना था सारा िदन िहसाब-िकताब िलखन व दखन बीत गया िहसाब म एक पाई (एक पराना िसकका जो पस का एक ितहाई होता था) की भल आ रही थी रात हई नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता भी नही चला िक रात शर हो गयी ह आधी रात बीत गयी िफर भी भल पकड़ म नही आयी लिकन व अपन काम म लग रह

ातः जलदी उठकर गरदव न दखा िक एकनाथ तो अभी भी िहसाब दख रह ह व आकर दीपक क आग चपचाप खड़ हो गय बिहयो पर थोड़ा अधरा छा गया िफर भी एकनाथ एकामिच स बिहया दखत रह व अपन काम म इतन मशगल थ िक अधर म भी उनह अकषर साफ िदख रह थ इतन म भल पकड़ म आ गयी व हषर स िचलला उठः िमल गयी िमल गयी

गरदव न पछाः कया िमल गयी बटी

एकनाथ जी च क गय ऊपर दखो तो गरदव सामन खड़ ह उठकर णाम िकया और बोलः गरदव एक पाई की भल पकड़ म नही आ रही थी अब वह िमल गयी

हजारो िहसाब म एक पाई की भल और उसको पकड़न क िलए रात भर जागरण गर की सवा म इतनी लगन इतनी ितितकषा और भि दखकर दीवान जनादरन ःवामी क हदय म गरकपा उछाल मारन लगी उनह जञानामत की वषार करन क योगय अिधकारी का उर-आगन (हदय) िमल गया सदगर की आधयाितमक वसीयत सभालनवाला सतिशय िमल गया उसक बाद एकनाथ जी क जीवन म जञान का सयर उदय हआ और उनक सािननधय म अनक साधको न अपनी आतमजयोित जगाकर धनयता का अनभव िकया साकषात गोदावरी माता भी अपन म लोगो ारा छोड़ गय पापो को धोन क िलए इन िन सत क सतसग म आती थी सत एक नाथ जी क एकनाथी भागवत को सनकर आज भी लोग त होत ह

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अनबम

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 25: Mehakate phool

अमीर खसरो की गरभि हजरत िनजाम ीन औिलया क हजारो िशय थ उनम स 22 ऐस समिपरत िशय थ जो

उनह खदा मानत थ अललाह का ःवरप मानत थ एक बार हजरत िनजाम ीन औिलया न उनकी परीकषा लनी चािहए व िशयो क साथ िदन भर िदलली क बाजार म घम रािऽ हई तो औिलया एक वया की कोठी पर गय वया उनह बड़ आदर स कोठी की ऊपरी मिजल पर ल गयी सभी िशय नीच इतजार करन लग िक गरजी अब नीच पधारग अब पधारग वया तो बड़ी सनन हो गयी िक मर ऐस कौन-स सौभागय ह जो य दरवश मर ार पर पधार उसन औिलया स कहाः म तो कताथर हो गयी जो आप मर ार पर पधार म आपकी कया िखदमत कर

औिलया न कहाः अपनी नौकरानी क ारा भोजन का थाल और शराब की बोतल म पानी इस ढग स मगवाना िक मर चलो को लग िक मन भोजन व शराब मगवायी ह वया को तो हकम का पालन करना था उसन अपन नौकरानी स कह िदया

थोड़ी दर बाद नौकरानी तदनरप आचरण करती हई भोजन का थाल और शराब की बोतल ल कर ऊपर जान लगी तब कछ िशयो को लगा िक अर हमन तो कछ और सोचा था िकत िनकला कछ और औिलया न तो शराब मगवायी ह ऐसा सोचकर कछ िशय भाग गय जयो-जयो रािऽ बढ़ती गयी तयो-तयो एक-एक करक िशय िखसकन लग ऐसा करत-करत सबह हो गयी िनजाम ीन औिलया नीच उतर दखा तो कवल अमीर खसरो ही खड़ थ अनजान होकर उनहोन पछाः सब कहा चल गय

अमीर खसरोः सब भाग गय

औिलयाः त कयो नही भागा तन दखा नही कया िक मन शराब की बोतल मगवायी और सारी रात वया क पास रहा

अमीर खसरोः मािलक भागता तो म भी िकत आपक कदमो क िसवाय और कहा भागता

िनजाम ीन औिलया की कपा बरस पड़ी और बोलः बस हो गया तरा काम परा

कसी अननय िन ा थी अमीर खसरो की

आज भी िनजाम ीन औिलया की मजार क पास ही उनक सतिशय अमीर खसरो की मजार उनकी गरिन ा गरभि की खबर द रही ह

सतगर दाता सबर क त िकिपरन कगाल गर-मिहमा जान नही फसयौ मोह क जाल

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अनबम

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 26: Mehakate phool

आनद की अटट ौ ा गर को कवल त व मानकर उनकी दह का अनादर करग तो हम िनगर रह जायग िजस

दह म वह त व कट होता ह वह दह भी िचनमय आनदःवरप हो जाती ह समथर रामदास का आनद नाम का एक िशय था व उसको बहत यार करत थ यह दखकर अनय िशयो को ईयार होन लगी व सोचतः हम भी िशय ह हम भी गरदव की सवा करत ह िफर भी गरदव हमस जयादा आननद को यार करत ह

ईयारल िशयो को सीख दन क िलए एक बार समथर रामदास न एक यि की अपन पर म एक कचचा आम बाधकर ऊपर कपड़ की प टी बाध दी िफर पीड़ा स िचललान लगः पर म फोड़ा िनकला ह बहत पीड़ा करता ह आह ऊह

कछ िदनो म आम पक गया और उसका पीला रस बहन लगा गरजी पीड़ा स जयादा कराहन लग उनहोन सब िशयो को बलाकर कहाः अब फोड़ा पक गया ह फट गया ह इसम स मवाद िनकल रहा ह म पीड़ा स मरा जा रहा ह कोई मरी सवा करो यह फोड़ा कोई अपन मह स चस ल तो पीड़ा िमट सकती ह

सब िशय एक-दसर का मह ताकन लग बहान बना-बनाकर सब एक-एक करक िखसकन लग िशय आनद को पता चला वह तरनत आया और गरदव क पर को अपना मह लगाकर फोड़ का मवाद चसन लगा गरदव का हदय भर आया व बोलः बस आनद बस मरी पीड़ा चली गयी

मगर आनद न कहाः गरजी ऐसा माल िमल रहा ह िफर छोड़ कस ईयार करन वाल िशयो क चहर फीक पड़ गय

बाहर स फोड़ा िदखत हए भी भीतर तो आम का रस था ऐस ही बाहर स अिःथ-मासमय िदखनवाल गरदव क शरीर म आतमा का रस टपकता ह महावीर ःवामी क समकष बठन वालो को पता था िक कया टपकता ह महावीर क सािननधय म बठन स सत कबीरजी क इदर-िगदर बठनवालो को पता था ौीकण क साथ खलन वाल गवालो और गोिपयो को पता था िक उनक सािननधय म कया बरसता ह

अभी तो िवजञान भी सािबत करता ह िक हर वयि क ःपदन (वायशन) उसक इदर-िगदर फल रहत ह लोभी और बोधी क इदर-िगदर राजसी-तामसी ःपदन फल रहत ह और सत-महापरषो क इदर-िगदर आनद-शाित क ःपदन फल रहत ह

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अनबम

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 27: Mehakate phool

एकलवय की गर-दिकषणा िवषादराज िहरणयधन का पऽ एकलवय एक िदन हिःतनापर आया और उसन उस समय

क धनिवर ा क सवरौ आचायर कौरव-पाणडवो क श -गर िोणाचायरजी क चरणो म दर स सा ाग णाम िकया अपनी वश-भषा स ही वह अपन वणर की पहचान द रहा था आचायर िोण न जब उसस आन का कारण पछा तब उसन ाथरनापवरक कहाः म आपक ौीचरणो क समीप रहकर धनिवर ा की िशकषा लन आया ह

आचायर सकोच म पड़ गय उस समय कौरव तथा पाणडव बालक थ और आचायर उनह िशकषा द रह थ एक भील बालक उनक साथ िशकषा पाय यह राजकमारो को ःवीकार नही होता और यह उनकी मयारदा क अनरप भी नही था अतएव उनहोन कहाः बटा एकलवय मझ दःख ह िक म िकसी ि जतर बालक को श -िशकषा नही द सकता

एकलवय न तो िोणाचायरजी को मन-ही-मन गर मान िलया था िजनह गर मान िलया उनकी िकसी भी बात को सनकर रोष या दोष ि करन की तो बात ही मन म कस आती एकलवय क मन म भी िनराशा नही हई उसन आचायर क सममख दणडवत णाम िकया और बोलाः भगवन मन तो आपको गरदव मान िलया ह मर िकसी काम स आपको सकोच हो यह म नही चाहता मझ कवल आपकी कपा चािहए

बालक एकलवय हिःतनापर स लौटकर घर नही गया वह वन म चला गया और वहा उसन गर िोणाचायर की िम टी की मितर बनायी वह गरदव की मितर को टकटकी लगाकर दखता ाथरना करता तथा आतमरप गर स रणा पाता और धनिवर ा क अ यास म लग जाता जञान क एकमाऽ दाता तो भगवान ही ह जहा अिवचल ौ ा और ढ़ िन य होता ह वहा सबक हदय म रहन वाल व ौीहिर गररप म या िबना बाहरी गर क भी जञान का काश कर दत ह महीन-पर-महीन बीतत गय एकलवय का अ यास अखणड चलता रहा और वह महान धनधरर हो गया

एक िदन समःत कौरव और पाणडव आचायर िोण की अनमित स रथो पर बठकर िहसक पशओ का िशकार खलन िनकल सयोगवश इनक साथ का एक क ा भटकता हआ एकलवय क पास पहच गया और काल रग क तथा िविचऽ वशधारी एकलवय को दखकर भ कन लगा एकलवय क कश बढ़ गय थ और उसक पास व क ःथान पर वयाय-चमर ही था वह उस समय अ यास कर रहा था क क भ कन स अ यास म बाधा पड़ती दख उसन सात बाण चलाकर क का मख बद कर िदया क ा भागता हआ राजकमारो क पास पहचा सबन बड़ आ यर स दखा िक बाणो स क को कही भी चोट नही लगी ह िकत व बाण आड़-ितरछ उसक मख म इस कार फस ह िक क ा भ क नही सकता िबना चोट पहचाय इस कार क क मख म बाण भर दना बाण चलान का बहत बड़ा कौशल ह

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

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अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 28: Mehakate phool

अजरन इस कौशल को दखकर बहत चिकत हए उनहोन लौटन पर सारी घटना गर िोणाचायरजी को सनायी और कहाः गरदव आपन वरदान िदया था िक आप मझ पथवी का सबस बड़ा धनधरर बना दग िकत इतना कौशल तो मझम भी नही ह

िोणाचायर जी न अजरन को साथ लकर उस बाण चलानवाल को वन म ढढना ारमभ िकया और ढढत-ढढत व एकलवय क आौम पर पहच गय आचायर को दखकर एकलवय उनक चरणो म िगर पड़ा

िोणाचायर न पछाः सौमय तमन धनिवर ा का इतना उ म जञान िकसस ा िकया ह

एकलवय न हाथ जोड़कर नतापवरक कहाः भगवन म तो आपक ौीचरणो का ही दास ह

उसन आचायर की िम टी की उस मितर की ओर सकत िकया िोणाचायर न कछ सोचकर कहाः भि मझ गरदिकषणा नही दोग

आजञा कर भगवन एकलवय न अतयिधक आननद का अनभव करत हए कहा िोणाचायर न कहाः मझ तमहार दािहन हाथ का अगठा चािहए

दािहन हाथ का अगठा न रह तो बाण चलाया ही कस जा सकता ह इतन िदनो की अिभलाषा इतना अिधक पिरौम इतना अ यास-सब वयथर हआ जा रहा था िकत एकलवय क मख पर खद की एक रखा तक नही आयी उस वीर गरभ बालक न बाय हाथ म छरा िलया और तरत अपन दािहन हाथ का अगठा काटकर अपन हाथ म उठाकर गरदव क सामन धर िदया

भर कणठ स िोणाचायर न कहाः पऽ सि म धनिवर ा क अनको महान जञाता हए ह और होग िकत म आशीवारद दता ह िक तमहार इस भवय तयाग और गरभि का सयश सदा अमर रहगा ऊची आतमाए सत और भ भी तमहारी गरभि का यशोगान करग

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

नाग महाशय का अदभत गर-म ःवामी रामकण परमहस क अननय िशय ौी दगारचरण नाग ससारी बातो म रिच नही

लात थ यिद कोई ऐसी बात शर करता तो व यि स उस िवषय को आधयाितमक चचार म बदल दत थ यिद उनको िकसी पर बोध आता तो उस व उनह जो भी वःत िमल जाती उसस अपन-आपको पीटन लगत और ःवय को सजा दत व न तो िकसी का िवरोध करत और न ही िननदा ही

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 29: Mehakate phool

एक बार अनजान म उनक ारा िकसी वयि क िलए िननदातमक श द िनकल गय जस ही व सावधान हए वस ही एक पतथर उठाकर अपन ही िसर पर जोर-जोर स तब तक मारत रह जब तक िक खन न बहन लगा इस घाव को ठीक होन म एक महीना लग गया

इस िविचऽ कायर को योगय ठहरात हए उनहोन कहाः द को सही सजा िमलनी ही चािहए

ःवामी रामकण को जब गल का क सर हो गया था तब नाग महाशय रामकणदव की पीड़ा को दख नही पात थ एक िदन जब नाग महाशय उनको णाम करन गय तब रामकणदव न कहाः

ओह तम आ गय दखो डॉकटर िवफल हो गय कया तम मरा इलाज कर सकत हो

दगारचरण एक कषण क िलए सोचन लग िफर रामकणदव क रोग क अपन शरीर पर लान क िलए मन ही मन सकलप िकया और बोलः जी गरदव आपका इलाज म जानता ह आपकी कपा स म अभी वह इलाज करता ह

लिकन जस ही व परमहसजी क िनकट पहच रामकण परमहस उनक इरादा जान गय उनहोन नाग महाशय को हाथ स धकका दकर दर कर िदया और कहाः हा म जानता ह िक तमम यह रोग िमटान की शि ह

ई र त गर म अिधक धार भि सजान िबन गरभि वीन ह लह न आतम जञान ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

आरणी की गरसवा ाचीन काल म आयोद धौमय नाम क एक ऋिष थ उनक सरमय पिवऽ आौम म बहत

िशय रहत थ उनम आरिण नाम का िशय बड़ा ही न सवाभावी और आजञापालक था एक बार खब वषार हई गर न आरणी को आौम क खतो की दखभाल क िलए भजा आरणी न खत जाकर दखा िक खत का सारा पानी तो सीमा तोड़कर बाहर िनकला जा रहा ह थोड़ी दर म तो पानी का वग सारी पाल तोड़ दगा और िम टी बह जायगी

आरणी न कमर कसी जहा स पानी िनकल रहा था वहा उसन िम टी डालना शर िकया परत पानी का वग सब िम टी बहा ल जाता आिखर आरणी पानी रोकन क िलए ःवय ही उस टटी हई सीमा म लट गया उसक शरीर क अवरोध क कारण बहता पानी तो रक गया परत इस तरह उस सारी रात ठड पानी म लट रहना पड़ा इस कार उसन खत की रकषा की

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 30: Mehakate phool

ातःकाल हआ आौम क सब िशय जब गरदव को णाम करन गय तब उनम आरणी िदखा नही गर िशयो को साथ लकर आरणी को ढढन खत की ओर गय और आवाज लगायीः

आरणी आरणी

आरणी न गर की आवाज सनी उसका शरीर तो ठड स िठठर गया था आवाज दब गयी थी िफर भी वह उठा और गरदव को णाण करक बोलाः कया आजञा ह गरदव

गर आयोद धौमय का हदय भर आया िशय की सवा दखकर उनका गरतव छलक उठा आरणी क अतर म शा ो का जञान अपन-आप कट होन लगा गर न उसका नाम उ ालक रखा धनय ह गरभ आरणी

त मझ उर आगन द द म अमत की वषार कर द ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

उपमनय की गर भि आयोद धौमय का दसरा एक िशय था ETH उपमनय गर न उस गाय चरान की सवा दी

उपमनय सारा िदन गाय चराता और शाम को गायो क साथ आौम पहच जाता उसका शरीर ह -प दखकर गर न एक िदन पछाः

बटा त रोज कया खाता ह

उपमनयः गरदव िभकषा म मझ जो िमलता ह वह खाता ह

गरः यह तो अधमर ह िभकषा गर को अपरण िकय िबना नही खानी चािहए

गर स कपट िमऽ स चोरी या होई िनधरन या होई कोढ़ी दसर िदन स उपमनय गायो को जगल म छोड़कर गाव स िभकषा मागकर ल आता और

गरदव क चरणो म अिपरत कर दता गरदव सारी िभकषा रख लत और उस कछ नही दत कछ िदन बाद उपमनय को वसा ही तनदरःत दखकर गर न पछा तो उसन बतायाः गरदव एक बार िभकषा मागकर आपक चरणो म अिपरत कर दता ह िफर दसरी बार मागकर ःवय खा लता ह

गरः तम ऐसा करक दसर िभकषाजीवी लोगो की जीिवका म बाधा डालत हो अतः लोभी हो तमह दबारा िभकषा नही लानी चािहए

गरदव की यह आजञा भी उपमनय न आदरपवरक ःवीकार की कछ िदन बाद िफर उपमनय को उसक िनवारह क बार म पछा तो वह बोलाः भ म गायो का दध पीकर िनवारह कर लता ह

गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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गरः यह तो अधमर ह गर की गायो का दध गर की आजञा क िबना पी लना तो चोरी हो गयी ऐसा मत करो

दध पीना बद होन क बाद भी उपमनय को वसा ही तनदरःत दखा तो िफर गर न उस बलाया पछन पर उपमनय बोलाः गाय का दध जब बछड़ पीत ह तब थोड़ा फन बाहर आता ह म उस ही चाटकर सतोष कर लता ह

गरः बटा तमको ऐसा करत दखकर तो बछड़ जयादा फन बाहर छोड़त होग और ःवय भख रह जात होग ऐसा करना तमहार िलय योगय नही ह

अब उपमनय क िलए भोजन क सब राःत बनद हो गय परत गर क ित उसक अहोभाव और ौ ा म लशमाऽ भी फकर नही पड़ा गर ारा स पी गयी सवा चाल रही बहत भख लगती तो वह कभी िकसी वकष या वनःपित क प चबा लता

एक बार कषधापीिड़त उपमनय भल स आक क प खा गया और अपनी आख खो बठा राःता न िदखन क कारण वह एक कए म िगर पड़ा

वळादिप कठोरािण मदिन कसमादिप िशय क कलयाण क िलए उसक जीवन को गढ़न क िलए बाहर स तो वळ स भी कठोर

िदखन वाल परत भीतर स फल स भी कोमल कपाल गरदव न जब गायो क पीछ उपमनय को लौटता हआ नही दखा तो उस ढढन क िलए ःवय जगल की ओर चल पड़ उपमनय बटा उपमनय की पकार जगल म गज उठी

(ह उपमनय त धनय ह हजारो भ पजा क समय िजनह पकारत हो व गर तझ पकार रह ह धनय ह तरी सवा )

गर क मख ारा अपन नाम का उचचार सनकर कए म स उपमनय न उ र िदया कए क पास आकर गर न सारी हकीकत जानी और आखो क उपचार क िलए अिभमनय को दवो क व अि नी कमारो की ःतित स अि नीकमार वहा तरत कट हए और उस आखो की दवा क रप म पआ खान को िदया उपमनय बोलाः

अब मझस गर की आजञा क िबना कछ भी नही खान जायगा

अि नीकमारः यह तो दवाई ह इस लन म कोई हजर नही ह तमहार गर की भी ऐसी ही अवःथा हई थी तब उनहोन भी खा िलया था

उपमनय न न भाव स कहाः मर गरदव कया करत ह यह मझ नही दखना ह मझ तो व जसा कहत ह तदनसार मानना ह

अि नीकमार सनन हए उनहोन उपमनय की आख ठीक कर दी उपमनय कए स बाहर आया और सब व ात कहकर गरदव क चरणो म िगर पड़ा गरदव का हदय भर आया और उनक मखारिवनद स अमत-वचनो क रप म आशीवारद िनकल पड़ः बटा त वद-वदाग का जञाता धमारवलबी और महान पिडत बनगा

हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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हआ भी ऐसा ही लाख-लाख वदन हो बाहर स कठोर िदखत हए भी अनदर स िशय का कलयाण करन वाला व ा सदगरओ को धनय ह ऐसी कठोर कसौटी म भी अिडग रहकर ितकार न करन वाल एव गर ारा िमलन वाल आधयाितमक अमत को पचाकर पार ही जान वाल उपमनय जस सतिशय

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अनबम

गवर कम ौीमद आ शकराचायरिवरिचतम

शरीर सरप तथा वा कलऽ यश ार िचऽ धन मरतलयम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम1 यिद शरीर रपवान हो प ी भी रपसी हो और सतकीितर चारो िदशाओ म िवःतिरत हो

मर पवरत क तलय अपार धन हो िकत गर क ौीचरणो म यिद मन आस न हो तो इन सारी उपलि धयो स कया लाभ

कलऽ धन पऽपौऽािद सव

गह बानधवाः सवरमति जातम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम2 सनदरी प ी धन पऽ-पौऽ घर एव ःवजन आिद ार ध स सवर सलभ हो िकत गर क

ौीचरणो म मन की आसि न हो तो इस ार ध-सख स कया लाभ

षडगािदवदो मख शा िव ा किवतवािद ग सप करोित मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम3 वद एव षटवदागािद शा िजनह कठःथ हो िजनम सनदर कावय-िनमारण की ितभा हो

िकत उसका मन यिद गर क ौीचरणो क ित आस न हो तो इन सदगणो स कया लाभ

िवदशष मानयः ःवदशष धनयः सदाचारव ष म ो न चानयः मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 33: Mehakate phool

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम4 िजनह िवदशो म समादर िमलता हो अपन दश म िजनका िनतय जय-जयकार स ःवागत

िकया जाता हो और जो सदाचार-पालन म भी अननय ःथान रखता हो यिद उसका भी मन गर क ौीचरणो क ित अनास हो तो इन सदगणो स कया लाभ

कषमामणडल भपभपालवनदः सदा सिवत यःय पादारिवनदम मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम5 िजन महानभाव क चरणकमल पथवीमणडल क राजा-महाराजाओ स िनतय पिजत रहा

करत हो िकत उनका मन यिद गर क ौी चरणो म आस न हो तो इस सदभागय स कया लाभ

यशो म गत िदकष दानतापात

जग ःत सव कर सतसादात मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम6 दानवि क ताप स िजनकी कीितर िदगिदगानतरो म वया हो अित उदार गर की सहज

कपा ि स िजनह ससार क सार सख-ऐ यर हःतगत हो िकत उनका मन यिद गर क ौीचरणो म आसि भाव न रखता हो तो इन सार ऐ य स कया लाभ

न भोग न योग न वा वािजराजौ न कानतासख नव िव ष िच म मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम7 िजनका मन भोग योग अ राजय धनोपभोग और ीसख स कभी िवचिलत न हआ

हो िफर भी गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाया हो तो इस मन की अटलता स कया लाभ

अरणय न वा ःवःय गह न काय

न दह मनो वतरत म तवनघय मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम8 िजनका मन वन या अपन िवशाल भवन म अपन कायर या शरीर म तथा अमलय भडार

म आस न हो पर गर क ौीचरणो म भी यिद वह मन आस न हो पाय तो उसकी सारी अनासि यो का कया लाभ

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 34: Mehakate phool

अनघयारिण र ािद म ािन समयक

समािलिगता कािमनी यािमनीष मन नन लगन गरोरियप

ततः िक ततः िक ततः िक ततः िकम9 अमलय मिण-म ािद र उपल ध हो रािऽ म समिलिगता िवलािसनी प ी भी ा हो

िफर भी मन गर क ौीचरणो क ित आस न बन पाय तो इन सार ऐ यर-भोगािद सखो स कया लाभ

गरोर क यः पठतपणयदही यितभरपितर चारी च गही लभत वािछताथर पद सजञ

गरोर वाकय मनो यःय लगनम10 जो यती राजा चारी एव गहःथ इस गर-अ क का पठन-पाठन करता ह और िजसका

मन गर क वचन म आस ह वह पणयशाली शरीरधारी अपन इिचछताथर एव पद इन दोनो को समा कर लता ह यह िनि त ह

ौी भरवी दवी भगवान भरव स कहती ह- गरभकतया य शबतवमभकतया शकरो भवत गरभ ः पर नािःत भि शा ष सवरतः

िजसक हदय म गरभि ह वह इनि-पद को ा होता ह अथारत उसक हदय म दवतव िखलता ह एव िजसकी गरचरणो म भि नही ह वह शकर (सअर) होता ह अथारत उसम असरतव कट होता ह समःत भि शा ो म यह कहा गया ह िक गरभि स ौ कछ भी नही ह

(रियामलम ndash 1243)

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सतिशय को सीख जगत म सवारिधक पाप काटन और आधयाितमक तौर पर ऊचा उठानवाला कोई साधन ह

तो वह ह जञानी महापरषो की डाट मार व उनक ममरभदी श द िशयो क िवशष पापो की सफाई क िलए अथवा उनह ऊचा उठान क िलए सदगर ारा दी जान वाली डाट-मार क पीछ िशय की गलती िनिम माऽ होती ह मल कारण तो सवरऽ वया गरत व ारा बनाया गया माहौल होता ह

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 35: Mehakate phool

जब भी िकसी िन सदगर ारा िकसी िशय को दी जान वाली डाट-मार अथवा ममरभदी श दो स िशय को मतयतलय क हो और सदगर का सािननधय छोड़कर घर भाग जान क िवचार आय तो उस भागना नही चािहए लिकन समझना चािहए िक इस मनःसताप स अपन कई जनमो क पाप भःम हो रह ह अनबम

सचच सदगर तो तमहार ःवरिचत सपनो की धिजजया उड़ा दग अपन ममरभदी श दो स तमहार अतःकरण को झकझोर दग वळ की तरह व िगरग तमहार ऊपर तमको नया रप दना ह नयी मितर बनाना ह नया जनम दना ह न व तरह-तरह की चोट पहचायग तमह तरह-तरह स काटग तभी तो तम पजनीय मितर बनोग अनयथा तो िनर पतथर रह जाओग तम पतथर न रह जाओ इसीिलए तो तमहार अहकार को तोड़ना ह ाितयो क जाल को काटना ह तमह नय जनम क िलए नौ माह क गभरवास और जनम लत समय होन वाली पीड़ा तो सहनी पड़गी न बीज स वकष बनन क िलए बीज क िपछल रप को तो सड़ना-गलना पड़गा न िशय क िलए सदगर की कपापणर िबया एक शलयिबया क समान ह सदगर क चरणो म रहना ह तो एक बात मत भलना ETH चोट लगगी छाती फट जायगी गर क श द-बाणो स खन भी बहगा घाव भी होग पीड़ा भी होगी उस पीड़ा स लाखो जनमो की पीड़ा िमटती ह पीड़ोद भवा िस यः िसि या पीड़ा स ा होती ह जो हमार आतमा क आतमा ह जो सब कछ ह उनही की ाि रप िसि िमलगी लिकन भया याद रखना अपन िबना िकसी ःवाथर क अपनी शलयिबया ारा कभी-कभी आत ह इस धरा पर उनही क ारा लोगो का कलयाण होता ह बड़ी भारी स या म कई जनमो क सिचत पणयो का उदय होन पर भागय स अगर इतन करणावान महापरष िमल जाय तो ह िमऽ ाण जाय तो जाय पर भागना मत

कबीरजी कहत ह- शीश िदए सदगर िमल तो भी सःता जान

अतः कायरता मत िदखाना भागना मत भगोड़ मत बनना अनयथा तो कया होगा िक पनः पनः आना पड़गा पछोगः कहा तो जवाब ह यही इसी धरा पर घोड़ा गधा क ा वकषािद बनकर पता नही कया-कया बनकर आना पड़गा अब तमही िनणरय कर लो

बहत-स साधको को सदगर क सािननधय म रहना तब तक अचछा लगता ह जब तक व म दत ह परत जब उनक उतथानाथर सदगर उनका ितरःकार करत ह फटकारत ह उनका दहाधयास तोड़न क िलए उनह िविभनन कसौिटयो म कसत ह तब साधक कहता ह म सदगर क सािननधय म रहना तो चाहता ह पर कया कर बड़ी परशानी ह इतना कठोर िनयऽण

भया घबरा मत एक तर िलए सदगर अपन िनयम नही बदलग उनह लाखो का कलयाण करना ह उनकी लड़ाई तर स नही तरी मिलन कलपनाओ स ह तर मन को तर

अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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अहकार को िमटाना ह तर मन क ऊपर गाज िगराना ह तभी तो त ःवरप म जागगा तर अह का अिःततव िमटगा तभी तो तरा कलयाण होगा

अभी तो मन तझ दगा द रहा ह मन क ारा मागी जान वाली यह ःवतऽता वाःतिवक ःवतऽता नही ह अिपत ःवचछाचार ह सचची ःवतऽता तो आतमजञान म ह आतमजञान क राःत जलदी आग बढ़ान क िलए ही सदगर साधक को कचन की तरह तपाना शर करत ह परत साधक म यिद िववक जागत न हो तो उसका मन उस ऐस ख ड म पटकता ह िक जहा स उठन म उस वष नही जनमो लग जात ह िफर तो वह घर का रहा न घाट का जयो धोबी का ान अनबम

याद रखो जब भी तमह सदगर की गढ़ाई का सामना करना पड़ अपनी िदनचयार को झाक लो अपनी गलितयो को िनहार लो िनि त ही तमस कोई गलती हई ह कोई पाप हआ ह आग-पीछ अथवा कोई पकड़ आ गयी ह तातकािलक गलती तो िनिम माऽ ह सदगर तो तमहार एक-एक पाप की सफाई करक तमह आग बढ़ाना चाहत ह सबक भागय म नही होती सदगर की गढ़ाई तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम भागयशाली हो िक सदगर न तमह गढ़न क योगय समझा ह तम अपनी सहनशि का पिरचय दत हए उनह सहयोग दो और जरा सोचो िक तमस उनह कछ पाना नही ह उनका िकसी कार का ःवाथर नही ह कवल एव कवल तमहार कलयाण क िलए ही व अपना भाव छोड़कर ऐसा बोधपणर बीभतस रप धारण करत ह अर रो ल एकानत म बठकर रो ल भया इतना जानकर भी सदगर क ित तमहार अतःकरण म ष उतपनन हो रहा ह तो फट नही जाती छाती तरी

वस ऑपरशन क समय सदगर इतनी माया फलाकर रखत ह िक गढ़ाई स उतपनन िवचारो का पोषण करन की िशय की औकात नही कयोिक अतर हाथ सहािर द बाहर मार चोट

िफर भी िच सदगर का अपमान करता ह अहकारवश जयादा हठ करता ह तो सदगर स दर हो सकता ह अतः ह साधक सावधान अनबम

दजरन की करणा बरी भलो साई का ऽास सरज जब गम कर तब बरसन की आस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भागवत म गर-मिहमा असङकलपाजजयत काम बोध कामिववजरनात अथारनथकषया लोभ भय त वावमशरनात

आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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आनवीिकषकया शोकमोहौ दमभ महदपासया

योगानतरायान मौनन िहसा काया नीहया कपया भतज दःख दव ज ात समािधना आतमज योगवीयण िनिा स विनषवया रजःतम स वन स व चोपशमन च

एतत सव गरौ भकतया परषो ञजसा जयत यःय साकषाद भगवित जञानदीपद गरौ मतयारस ीः ौत तःय सव कञजरशौचवत एष व भगवानसाकषात धानपरष रः

योग रिवरमगयािङयल को य मनयत नरम दविषर नारदजी धमरराज यिधि र स कहत ह- धमरराज सकलपो क पिरतयाग स काम

को कामनाओ क तयाग स बोध को ससारी लोग िजस अथर कहत ह उस अनथर समझकर लोभ को और त व क िवचार स भय को जीत लना चािहए

अधयातम-िव ा स शोक और मोह पर सतो की उपासना स दमभ पर मौन क ारा योग क िवघनो पर और शरीर-ाण आिद को िन करक िहसा पर िवजय ा करनी चािहए

आिधभौितक दःख को दया क ारा आिधदिवक वदना को समािध क ारा और आधयाितमक दःख को योगबल स एव िनिा को साि वक भोजन सग आिद क सवन स जीत लना चािहए

स वगण क ारा रजोगण एव तमोगण पर और उपरित क ारा स वगण पर िवजय ा करनी चािहए ौीगरदव की भि क ारा साधक इन सभी दोषो पर सगमता स िवजय ा कर सकता ह

हदयो म जञान का दीपक जलानवाल गरदव साकषात भगवान ही ह जो दबरि परष उनह मनय समझता ह उसका समःत शा -ौवण हाथी क ःनान क समान वयथर ह

बड़-बड़ योग र िजनक चरणकमलो का अनसधान करत रहत ह कित और परष क अधी र व ःवय भगवान ही गरदव क रप म कट ह इनह लोग म स मनय मानत ह अनबम

(ौीमद भागवतः 71522-27) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ