ramcharit ayodhya 1

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ोक ययाके च ििभाित भूधरसुता देिापगा मतके भाले बालििधुगगले च गरलं ययोरिस ालराट्। सोऽयं भूितििभूषणः सुरिरः सिागिधपः सिगदा शिगः सिगगतः िशिः शिशिनभः ीशकरः पातु माम् ॥१॥ सतां या न गतािभषेकततथा न मले िनिासदुःखतः। मुखाबुजी रघुनदनय मे सदातु सा मजुलमंगलदा ॥२॥ नीलाबुजयामलकोमलागं सीतासमारोिपतिामभागम्। पाणौ महासायकचारचापं नमािम रामं रघुिंशनाथम् ॥३॥ दो0-ीगुर चरन सरोज रज िनज मनु मुकु र सुधार। बरनईँ रघुबर िबमल जसु जो दायकु फल चार।। चौ0-जब त रामु यािह घर अए। िनत नि मंगल मोद बधाए।। भुिन चाररदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषिह सुख बारी।। १ ।। रिध िसिध संपित नद सुहाइ। ईमिग ऄिध ऄंबुिध कहँ अइ।। मिनगन पुर नर नार सुजाती। सुिच ऄमोल सुंदर सब भाँती।। २ ।। किह न जाआ कछु नगर िबभूती। जनु एतिनऄ िबरंिच करतूती।। सब िबिध सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु िनहारी।। ३।। मुददत मातु सब सख सहेली। फिलत िबलोदक मनोरथ बेली।। राम ऱपु गुनसीलु सुभाउ। मुददत होआ देिख सुिन राउ।। ४।। दो0-सब क ईर ऄिभलाषु ऄस कहह मनाआ महेसु। अप ऄछत जुबराज पद रामिह देई नरेसु।।१।।

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MANAS YUVA

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Page 1: Ramcharit Ayodhya 1

श्लोक

यस्याङ्के च ििभाित भूधरसुता देिापगा मस्तके

भाले बालििधुगगले च गरलं यस्योरिस व्यालराट्।

सोऽयं भूितििभूषणः सुरिरः सिागिधपः सिगदा

शिगः सिगगतः िशिः शिशिनभः श्रीशङ्करः पातु माम् ॥१॥

प्रसन्नतां या न गतािभषेकतस्तथा न मम्ले िनिासदःुखतः।

मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा ॥२॥

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोिपतिामभागम्।

पाणौ महासायकचारुचापं नमािम रामं रघुिंशनाथम् ॥३॥

दो0-श्रीगुरु चरन सरोज रज िनज मनु मुकुरु सुधारर।

बरनईँ रघुबर िबमल जसु जो दायकु फल चारर।।

चौ0-जब तें रामु ब्यािह घर अए। िनत नि मंगल मोद बधाए।।

भुिन चाररदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषिह सुख बारी।। १ ।।

ररिध िसिध संपित नदीं सुहाइ। ईमिग ऄिध ऄंबुिध कह ँअइ।।

मिनगन पुर नर नारर सुजाती। सुिच ऄमोल सुंदर सब भाँती।। २ ।।

किह न जाआ कछु नगर िबभूती। जनु एतिनऄ िबरंिच करतूती।।

सब िबिध सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंद ुिनहारी।। ३।।

मुददत मातु सब सखीं सहलेी। फिलत िबलोदक मनोरथ बेली।।

राम रूपु गुनसीलु सुभाउ। प्रमुददत होआ दिेख सुिन राउ।। ४।।

दो0-सब कें ईर ऄिभलाषु ऄस कहहह मनाआ महसेु।

अप ऄछत जुबराज पद रामिह दईे नरेसु।।१।।

Page 2: Ramcharit Ayodhya 1

चौ0-एक समय सब सिहत समाजा। राजसभाँ रघुराजु िबराजा।।

सकल सुकृत मूरित नरनाहू। राम सुजसु सुिन ऄितिह ईछाहू।। १।।

नृप सब रहहह कृपा ऄिभलाषें। लोकप करहह प्रीित रुख राखें।।

ितभुिन तीिन काल जग माहीं। भूरर भाग दसरथ सम नाहीं।। २।।

मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु किहज थोर सबु तासू।।

रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु िबलोदक मुकुट सम कीन्हा।।३।।

श्रिन समीप भए िसत केसा। मनह ँजरठपनु ऄस ईपदसेा।।

नृप जुबराज राम कह ँदहेू। जीिन जनम लाह दकन लेहू।।४।।

दो0-यह िबचारु ईर अिन नृप सुददनु सुऄिसरु पाआ।

प्रेम पुलदक तन मुददत मन गुरिह सुनायई जाआ।।२ ।।

चौ0-कहआ भुअलु सुिनऄ मुिननायक। भए राम सब िबिध सब लायक।।

सेिक सिचि सकल पुरबासी। जे हमारे ऄरर िमत्र ईदासी।। १ ।।

सबिह रामु िप्रय जेिह िबिध मोही। प्रभु ऄसीस जनु तनु धरर सोही।।

िबप्र सिहत पररिार गोसाईं। करहह छोह सब रौररिह नाइ।।२ ।।

जे गुर चरन रेनु िसर धरहीं। ते जनु सकल िबभि बस करहीं।।

मोिह सम यह ऄनुभयई न दजूें। सबु पायईँ रज पाििन पूजें।।३।।

ऄब ऄिभलाषु एकु मन मोरें। पूजिह नाथ ऄनुग्रह तोरें।।

मुिन प्रसन्न लिख सहज सनेहू। कहईे नरेस रजायसु दहेू।।४।।

दो0-राजन राईर नामु जसु सब ऄिभमत दातार।

फल ऄनुगामी मिहप मिन मन ऄिभलाषु तुम्हार।।३।।

चौ0-सब िबिध गुरु प्रसन्न िजयँ जानी। बोलेई राई रहिँस मृद ुबानी।।

नाथ रामु कररऄहह जुबराजू। किहऄ कृपा करर कररऄ समाजू।। १ ।।

मोिह ऄछत यह होआ ईछाहू। लहहह लोग सब लोचन लाहू।।

प्रभु प्रसाद िसि सबआ िनबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं।।२ ।।

पुिन न सोच तनु रहई दक जाउ। जेहह न होआ पाछें पिछताउ।।

सुिन मुिन दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए।।३।।

Page 3: Ramcharit Ayodhya 1

सुनु नृप जासु िबमुख पिछताहीं। जासु भजन िबनु जरिन न जाहीं।।

भयई तुम्हार तनय सोआ स्िामी। रामु पुनीत प्रेम ऄनुगामी।।<४।।

दो0-बेिग िबलंबु न कररऄ नृप सािजऄ सबुआ समाजु।

सुददन सुमंगलु तबहह जब रामु होहह जुबराजु।।४।।

चौ0-मुददत मिहपित मंददर अए। सेिक सिचि सुमंत्रु बोलाए।।

किह जयजीि सीस ितन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए। १।।

जौं पाँचिह मत लागै नीका। करह हरिष िहयँ रामिह टीका।।२।।

मंत्री मुददत सुनत िप्रय बानी।ऄिभमत िबरिँ परेई जनु पानी।।

ििनती सिचि करिह कर जोरी।िजऄह जगतपित बररस करोरी।।३।।

जग मंगल भल काजु िबचारा। बेिगऄ नाथ न लाआऄ बारा।।

नृपिह मोद ुसुिन सिचि सुभाषा।बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा।।४।।

दो0-कहईे भूप मुिनराज कर जोआ जोआ अयसु होआ।

राम राज ऄिभषेक िहत बेिग करह सोआ सोआ।।5।।

चौ0-हरिष मुनीस कहईे मृद ुबानी। अनह सकल सुतीरथ पानी।।

औषध मूल फूल फल पाना। कह ेनाम गिन मंगल नाना।। १ ।।

चामर चरम बसन बह भाँती। रोम पाट पट ऄगिनत जाती।।

मिनगन मंगल बस्तु ऄनेका। जो जग जोगु भूप ऄिभषेका।।२ ।।

बेद िबददत किह सकल िबधाना। कहईे रचह पुर िबिबध िबताना।।

सफल रसाल पूगफल केरा। रोपह बीिथन्ह पुर चह ँफेरा।।३।।

रचह मंजु मिन चौकें चारू। कहह बनािन बेिग बजारू।।

पूजह गनपित गुर कुलदिेा। सब िबिध करह भूिमसुर सेिा।।४।।

दो0-ध्िज पताक तोरन कलस सजह तुरग रथ नाग।

िसर धरर मुिनबर बचन सबु िनज िनज काजहह लाग।।6।।

चौ0-जो मुनीस जेिह अयसु दीन्हा। सो तेहह काजु प्रथम जनु कीन्हा।।

िबप्र साधु सुर पूजत राजा। करत राम िहत मंगल काजा।। १।।

सुनत राम ऄिभषेक सुहािा। बाज गहागह ऄिध बधािा।।

Page 4: Ramcharit Ayodhya 1

राम सीय तन सगुन जनाए। फरकहह मंगल ऄंग सुहाए।।२।।

पुलदक सप्रेम परसपर कहहीं। भरत अगमनु सूचक ऄहहीं।।

भए बहत ददन ऄित ऄिसेरी। सगुन प्रतीित भेंट िप्रय केरी।।३।।

भरत सररस िप्रय को जग माहीं। आहआ सगुन फलु दसूर नाहीं।।

रामिह बंधु सोच ददन राती। ऄंडिन्ह कमठ ह्रदई जेिह भाँती।।४।।

दो0-एिह ऄिसर मंगलु परम सुिन रहसँेई रिनिासु।

सोभत लिख िबधु बढ़त जनु बाररिध बीिच िबलासु।।7।।

चौ0-प्रथम जाआ िजन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरर ितन्ह पाए।।

प्रेम पुलदक तन मन ऄनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं।। १।।

चौकें चारु सुिमत्राँ पुरी। मिनमय िबिबध भाँित ऄित रुरी।।

अनँद मगन राम महतारी। ददए दान बह िबप्र हकँारी।।२।।

पूजीं ग्रामदिेब सुर नागा। कहईे बहोरर दने बिलभागा।।

जेिह िबिध होआ राम कल्यानू। दहे दया करर सो बरदानू।।३।।

गािहह मंगल कोदकलबयनीं। िबधुबदनीं मृगसािकनयनीं।।४।।

दो0-राम राज ऄिभषेकु सुिन िहयँ हरषे नर नारर।

लगे सुमंगल सजन सब िबिध ऄनुकूल िबचारर।।8।।

चौ0-तब नरनाह ँबिसषु्ठ बोलाए। रामधाम िसख दने पठाए।।

गुर अगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार अआ पद नायई माथा।। १।।

सादर ऄरघ दआे घर अने। सोरह भाँित पूिज सनमाने।।

गह ेचरन िसय सिहत बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी।।२।।

सेिक सदन स्िािम अगमनू। मंगल मूल ऄमंगल दमनू।।

तदिप ईिचत जनु बोिल सप्रीती। पठआऄ काज नाथ ऄिस नीती।।३।।

प्रभुता तिज प्रभु कीन्ह सनेहू। भयई पुनीत अजु यह गेहू।।

अयसु होआ सो करौं गोसाइ। सेिक लहआ स्िािम सेिकाइ।।४।।

दो0-सुिन सनेह साने बचन मुिन रघुबरिह प्रसंस।

राम कस न तुम्ह कहह ऄस हसं बंस ऄितंस।।9।।

Page 5: Ramcharit Ayodhya 1

चौ0-बरिन राम गुन सीलु सुभाउ। बोले प्रेम पुलदक मुिनराउ।।

भूप सजेई ऄिभषेक समाजू। चाहत दने तुम्हिह जुबराजू।। १।।

राम करह सब संजम अजू। जौं िबिध कुसल िनबाह ैकाजू।।

गुरु िसख दआे राय पहह गयई। राम हृदयँ ऄस िबसमई भयउ।।२।।

जनमे एक संग सब भाइ। भोजन सयन केिल लररकाइ।।

करनबेध ईपबीत िबअहा। संग संग सब भए ईछाहा।।३।।

िबमल बंस यह ऄनुिचत एकू। बंधु िबहाआ बड़ेिह ऄिभषेकू।।

प्रभु सप्रेम पिछतािन सुहाइ। हरई भगत मन कै कुरटलाइ।।४।।

दो0-तेिह ऄिसर अए लखन मगन प्रेम अनंद।

सनमाने िप्रय बचन किह रघुकुल कैरि चंद।।10।।

चौ0-बाजहह बाजने िबिबध िबधाना। पुर प्रमोद ुनहह जाआ बखाना।।

भरत अगमनु सकल मनािहह। अिह ँबेिग नयन फलु पािहह।। १।।

हाट बाट घर गलीं ऄथाइ। कहहह परसपर लोग लोगाइ।।

कािल लगन भिल केितक बारा। पूिजिह िबिध ऄिभलाषु हमारा।।२।।

कनक हसघासन सीय समेता। बैठहह रामु होआ िचत चेता।।

सकल कहहह कब होआिह काली।िबघन मनािहह दिे कुचाली।।३।।

ितन्हिह सोहाआ न ऄिध बधािा।चोरिह चंददिन राित न भािा।।

सारद बोिल िबनय सुर करहीं।बारहह बार पाय लै परहीं।।४।।

दो0-िबपित हमारर िबलोदक बिड़ मातु कररऄ सोआ अजु।

रामु जाहह बन राजु तिज होआ सकल सुरकाजु।।11।।

चौ0-सुिन सुर िबनय ठादढ़ पिछताती। भआईँ सरोज िबिपन िहमराती।।

दिेख दिे पुिन कहहह िनहोरी। मातु तोिह नहह थोररई खोरी।।

िबसमय हरष रिहत रघुराउ। तुम्ह जानह सब राम प्रभाउ।।

जीि करम बस सुख दखु भागी। जाआऄ ऄिध दिे िहत लागी।।

बार बार गिह चरन सँकोचौ। चली िबचारर िबबुध मित पोची।।

उँच िनिासु नीिच करतूती। दिेख न सकहह पराआ िबभूती।।

अिगल काजु िबचारर बहोरी। करहहह चाह कुसल किब मोरी।।

Page 6: Ramcharit Ayodhya 1

हरिष हृदयँ दसरथ पुर अइ। जनु ग्रह दसा दसुह दखुदाइ।।

दो0-नामु मंथरा मंदमित चेरी कैकेआ केरर।

ऄजस पेटारी तािह करर गइ िगरा मित फेरर।।१२।।

चौ0-दीख मंथरा नगरु बनािा। मंजुल मंगल बाज बधािा।। पूछेिस लोगन्ह काह ईछाहू। राम

ितलकु सुिन भा ईर दाहू।।

करआ िबचारु कुबुिि कुजाती। होआ ऄकाजु कििन िबिध राती।।

देिख लािग मधु कुरटल दकराती। िजिम गिँ तकआ लेईँ केिह भाँती।।

भरत मातु पहह गआ िबलखानी। का ऄनमिन हिस कह हँिस रानी।।

उतरु देआ न लेआ ईसासू। नारर चररत करर ढारआ अँसू।।

हँिस कह रािन गालु बड़ तोरें। दीन्ह लखन िसख ऄस मन मोरें।।

तबहँ न बोल चेरर बिड़ पािपिन। छाड़आ स्िास कारर जनु साँिपिन।।

दो0-सभय रािन कह कहिस दकन कुसल रामु मिहपालु।

लखनु भरतु ररपुदमनु सुिन भा कुबरी ईर सालु।।13।।

चौ0-कत िसख देआ हमिह कोई माइ। गालु करब केिह कर बलु पाइ।।

रामिह छािड़ कुसल केिह अजू। जेिह जनेसु देआ जुबराजू।।<b> भयई कौिसलिह िबिध ऄित दािहन।

देखत गरब रहत ईर नािहन।।

देखेह कस न जाआ सब सोभा। जो ऄिलोदक मोर मनु छोभा।।

पूतु िबदेस न सोचु तुम्हारें। जानित हह बस नाह हमारें।।

नीद बहत िप्रय सेज तुराइ। लखह न भूप कपट चतुराइ।।

सुिन िप्रय बचन मिलन मनु जानी। झुकी रािन ऄब रह ऄरगानी।।

पुिन ऄस कबहँ कहिस घरफोरी। तब धरर जीभ कढ़ािईँ तोरी।।

दो0-काने खोरे कूबरे कुरटल कुचाली जािन।

ितय िबसेिष पुिन चेरर किह भरतमातु मुसुकािन।।14।।

चौ0-िप्रयबाददिन िसख दीिन्हईँ तोही। सपनेहँ तो पर कोपु न मोही।।

सुददनु सुमंगल दायकु सोइ। तोर कहा फुर जेिह ददन होइ।।

जेठ स्िािम सेिक लघु भाइ। यह ददनकर कुल रीित सुहाइ।।

राम ितलकु जौं साँचेहँ काली। देईँ मागु मन भाित अली।।

Page 7: Ramcharit Ayodhya 1

कौसल्या सम सब महतारी। रामिह सहज सुभायँ िपअरी।।

मो पर करहह सनेह िबसेषी। मैं करर प्रीित परीछा देखी।।

जौं िबिध जनमु देआ करर छोहू। होहँ राम िसय पूत पुतोहू।।

प्रान तें ऄिधक रामु िप्रय मोरें। ितन्ह कें ितलक छोभु कस तोरें।।

दो0-भरत सपथ तोिह सत्य कह पररहरर कपट दरुाई।

हरष समय िबसमई करिस कारन मोिह सुनाई।।15।।

चौ0-एकहह बार अस सब पूजी। ऄब कछु कहब जीभ करर दजूी।।

फोरै जोगु कपारु ऄभागा। भलेई कहत दखु रईरेिह लागा।।

कहहह झूरठ फुरर बात बनाइ। ते िप्रय तुम्हिह करुआ मैं माइ।।

हमहँ कहिब ऄब ठकुरसोहाती। नाहह त मौन रहब ददनु राती।।

करर कुरूप िबिध परबस कीन्हा। बिा सो लुिनऄ लिहऄ जो दीन्हा।।

कोई नृप होई हमिह का हानी। चेरर छािड़ ऄब होब दक रानी।।

जारै जोगु सुभाई हमारा। ऄनभल देिख न जाआ तुम्हारा।।

तातें कछुक बात ऄनुसारी। छिमऄ देिब बिड़ चूक हमारी।।

दो0-गूढ़ कपट िप्रय बचन सुिन तीय ऄधरबुिध रािन।

सुरमाया बस बैररिनिह सुह्द जािन पितअिन।।16।।

चौ0-सादर पुिन पुिन पूँछित ओही। सबरी गान मृगी जनु मोही।।

तिस मित दफरी ऄहआ जिस भाबी। रहसी चेरर घात जनु फाबी।।

तुम्ह पूँछह मैं कहत डेराउँ। धरेई मोर घरफोरी नाउँ।।

सिज प्रतीित बहिबिध गदढ़ छोली। ऄिध साढ़साती तब बोली।।

िप्रय िसय रामु कहा तुम्ह रानी। रामिह तुम्ह िप्रय सो फुरर बानी।।

रहा प्रथम ऄब ते ददन बीते। समई दफरें ररपु होहह हपरीते।।

भानु कमल कुल पोषिनहारा। िबनु जल जारर करआ सोआ छारा।।

जरर तुम्हारर चह सिित ईखारी। रँूधह करर ईपाई बर बारी।।

दो0-तुम्हिह न सोचु सोहाग बल िनज बस जानह राई।

मन मलीन मुह मीठ नृप राईर सरल सुभाई।।17।।

Page 8: Ramcharit Ayodhya 1

चौ0-चतुर गँभीर राम महतारी। बीचु पाआ िनज बात सँिारी।।

पठए भरतु भूप निनऄईरें। राम मातु मत जानि रईरें।।

सेिहह सकल सिित मोिह नीकें । गरिबत भरत मातु बल पी कें ।।

सालु तुम्हार कौिसलिह माइ। कपट चतुर नहह होआ जनाइ।।

राजिह तुम्ह पर प्रेमु िबसेषी। सिित सुभाई सकआ नहह देखी।।

रची प्रंपचु भूपिह ऄपनाइ। राम ितलक िहत लगन धराइ।।

यह कुल ईिचत राम कहँ टीका। सबिह सोहाआ मोिह सुरठ नीका।।

अिगिल बात समुिझ डरु मोही। देई दैई दफरर सो फलु ओही।।

दो0-रिच पिच कोरटक कुरटलपन कीन्हेिस कपट प्रबोधु।।

किहिस कथा सत सिित कै जेिह िबिध बाढ़ िबरोधु।।18।।

चौ0-भािी बस प्रतीित ईर अइ। पूँछ रािन पुिन सपथ देिाइ।।

का पूछहँ तुम्ह ऄबहँ न जाना। िनज िहत ऄनिहत पसु पिहचाना।।

भयई पाखु ददन सजत समाजू। तुम्ह पाइ सुिध मोिह सन अजू।।

खाआऄ पिहररऄ राज तुम्हारें। सत्य कहें नहह दोषु हमारें।।

जौं ऄसत्य कछु कहब बनाइ। तौ िबिध देआिह हमिह सजाइ।।

रामिह ितलक कािल जौं भयउ।þ तुम्ह कहँ िबपित बीजु िबिध बयउ।।

रेख खँचाआ कहईँ बलु भाषी। भािमिन भआह दधू कआ माखी।।

जौं सुत सिहत करह सेिकाइ। तौ घर रहह न अन ईपाइ।।

दो0-कद्ूँ िबनतिह दीन्ह दखुु तुम्हिह कौिसलाँ देब।

भरतु बंददगृह सेआहहह लखनु राम के नेब।।19।।

चौ0-कैकयसुता सुनत कटु बानी। किह न सकआ कछु सहिम सुखानी।।

तन पसेई कदली िजिम काँपी। कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी।।

किह किह कोरटक कपट कहानी। धीरजु धरह प्रबोिधिस रानी।।

दफरा करमु िप्रय लािग कुचाली। बदकिह सराहआ मािन मराली।।

सुनु मंथरा बात फुरर तोरी। दिहिन अँिख िनत फरकआ मोरी।।

ददन प्रित देखईँ राित कुसपने। कहईँ न तोिह मोह बस ऄपने।।

काह करौ सिख सूध सुभाउ। दािहन बाम न जानईँ काउ।।

Page 9: Ramcharit Ayodhya 1

दो0-ऄपने चलत न अजु लिग ऄनभल काहक कीन्ह।

केहह ऄघ एकिह बार मोिह दैऄँ दसुह दखुु दीन्ह।।20।।

चौ0-नैहर जनमु भरब बरु जाआ। िजऄत न करिब सिित सेिकाइ।।

ऄरर बस दैई िजअित जाही। मरनु नीक तेिह जीिन चाही।।

दीन बचन कह बहिबिध रानी। सुिन कुबरीं ितयमाया ठानी।।

ऄस कस कहह मािन मन उना। सुखु सोहागु तुम्ह कहँ ददन दनूा।।

जेहह राईर ऄित ऄनभल ताका। सोआ पाआिह यह फलु पररपाका।।

जब तें कुमत सुना मैं स्िािमिन। भूख न बासर नींद न जािमिन।।

पूँछेई गुिनन्ह रेख ितन्ह खाँची। भरत भुअल होहह यह साँची।।

भािमिन करह त कहौं ईपाउ। है तुम्हरीं सेिा बस राउ।।

दो0-परईँ कूप तुऄ बचन पर सकईँ पूत पित त्यािग।

कहिस मोर दखुु देिख बड़ कस न करब िहत लािग।।21।।

कुबरीं करर कबुली कैकेइ। कपट छुरी ईर पाहन टेइ।।

लखआ न रािन िनकट दखुु कैं से। चरआ हररत ितन बिलपसु जैसें।।

सुनत बात मृद ुऄंत कठोरी। देित मनहँ मधु माहर घोरी।।

कहआ चेरर सुिध ऄहआ दक नाही। स्िािमिन किहह कथा मोिह पाहीं।।

दआु बरदान भूप सन थाती। मागह अजु जुड़ािह छाती।।

सुतिह राजु रामिह बनिासू। देह लेह सब सिित हलासु।।

भूपित राम सपथ जब करइ। तब मागेह जेहह बचनु न टरइ।।

होआ ऄकाजु अजु िनिस बीतें। बचनु मोर िप्रय मानेह जी तें।।

दो0-बड़ कुघातु करर पातदकिन कहेिस कोपगृहँ जाह।

काजु सँिारेह सजग सबु सहसा जिन पितअह।।22।।

चौ0-कुबररिह रािन प्रानिप्रय जानी। बार बार बिड़ बुिि बखानी।।

तोिह सम िहत न मोर संसारा। बहे जात कआ भआिस ऄधारा।।

जौं िबिध पुरब मनोरथु काली। करौं तोिह चख पूतरर अली।।

बहिबिध चेररिह अदरु देइ। कोपभिन गििन कैकेइ।।

िबपित बीजु बरषा ररतु चेरी। भुआँ भआ कुमित कैकेइ केरी।।

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पाआ कपट जलु ऄंकुर जामा। बर दोई दल दखु फल पररनामा।।

कोप समाजु सािज सबु सोइ। राजु करत िनज कुमित िबगोइ।।

राईर नगर कोलाहलु होइ। यह कुचािल कछु जान न कोइ।।

दो0-प्रमुददत पुर नर नारर। सब सजहह सुमंगलचार।

एक प्रिबसहह एक िनगगमहह भीर भूप दरबार।।23।।

बाल सखा सुन िहयँ हरषाहीं। िमिल दस पाँच राम पहह जाहीं।।

प्रभु अदरहह प्रेमु पिहचानी। पूँछहह कुसल खेम मृद ुबानी।।

दफरहह भिन िप्रय अयसु पाइ। करत परसपर राम बड़ाइ।।

को रघुबीर सररस संसारा। सीलु सनेह िनबाहिनहारा।

जेंिह जेंिह जोिन करम बस भ्रमहीं। तहँ तहँ इसु देई यह हमहीं।।

सेिक हम स्िामी िसयनाहू। होई नात यह ओर िनबाहू।।

ऄस ऄिभलाषु नगर सब काहू। कैकयसुता ह्दयँ ऄित दाहू।।

को न कुसंगित पाआ नसाइ। रहआ न नीच मतें चतुराइ।।

दो0-साँस समय सानंद नृपु गयई कैकेइ गेहँ।

गिनु िनठुरता िनकट दकय जनु धरर देह सनेहँ।।24।।

कोपभिन सुिन सकुचेई राई। भय बस ऄगहड़ परआ न पाउ।।

सुरपित बसआ बाहँबल जाके। नरपित सकल रहहह रुख ताकें ।।

सो सुिन ितय ररस गयई सुखाइ। देखह काम प्रताप बड़ाइ।।

सूल कुिलस ऄिस ऄँगििनहारे। ते रितनाथ सुमन सर मारे।।

सभय नरेसु िप्रया पहह गयउ। देिख दसा दखुु दारुन भयउ।।

भूिम सयन पटु मोट पुराना। ददए डारर तन भूषण नाना।।

कुमितिह किस कुबेषता फाबी। ऄन ऄिहिातु सूच जनु भाबी।।

जाआ िनकट नृपु कह मृद ुबानी। प्रानिप्रया केिह हेतु ररसानी।।

छं0-केिह हेतु रािन ररसािन परसत पािन पितिह नेिारइ।

मानहँ सरोष भुऄंग भािमिन िबषम भाँित िनहारइ।।

दोई बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखइ।

तुलसी नृपित भितब्यता बस काम कौतुक लेखइ।।

Page 11: Ramcharit Ayodhya 1

सो0-बार बार कह राई सुमुिख सुलोिचिन िपकबचिन।

कारन मोिह सुनाई गजगािमिन िनज कोप कर।।25।।

ऄनिहत तोर िप्रया केआँ कीन्हा। केिह दआु िसर केिह जमु चह लीन्हा।।

कह केिह रंकिह करौ नरेसू। कह केिह नृपिह िनकासौं देसू।।

सकईँ तोर ऄरर ऄमरई मारी। काह कीट बपुरे नर नारी।।

जानिस मोर सुभाई बरोरू। मनु ति अनन चंद चकोरू।।

िप्रया प्रान सुत सरबसु मोरें। पररजन प्रजा सकल बस तोरें।।

जौं कछु कहौ कपटु करर तोही। भािमिन राम सपथ सत मोही।।

िबहिस मागु मनभािित बाता। भूषन सजिह मनोहर गाता।।

घरी कुघरी समुिझ िजयँ देखू। बेिग िप्रया पररहरिह कुबेषू।।

दो0-यह सुिन मन गुिन सपथ बिड़ िबहिस ईठी मितमंद।

भूषन सजित िबलोदक मृगु मनहँ दकराितिन फंद।।26।।

पुिन कह राई सुह्रद िजयँ जानी। प्रेम पुलदक मृद ुमंजुल बानी।।

भािमिन भयई तोर मनभािा। घर घर नगर ऄनंद बधािा।।

रामिह देईँ कािल जुबराजू। सजिह सुलोचिन मंगल साजू।।

दलदक ईठेई सुिन ह्रदई कठोरू। जनु छुआ गयई पाक बरतोरू।।

ऐिसई पीर िबहिस तेिह गोइ। चोर नारर िजिम प्रगरट न रोइ।।

लखहह न भूप कपट चतुराइ। कोरट कुरटल मिन गुरू पढ़ाइ।।

जद्यिप नीित िनपुन नरनाहू। नाररचररत जलिनिध ऄिगाहू।।

कपट सनेह बढ़ाआ बहोरी। बोली िबहिस नयन मुह मोरी।।

दो0-मागु मागु पै कहह िपय कबहँ न देह न लेह।

देन कहेह बरदान दआु तेई पाित संदेह।।27।।

जानेईँ मरमु राई हँिस कहइ। तुम्हिह कोहाब परम िप्रय ऄहइ।।

थाित रािख न मािगह काउ। िबसरर गयई मोिह भोर सुभाउ।।

झूठेहँ हमिह दोषु जिन देहू। दआु कै चारर मािग मकु लेहू।।

रघुकुल रीित सदा चिल अइ। प्रान जाहँ बरु बचनु न जाइ।।

नहह ऄसत्य सम पातक पुंजा। िगरर सम होहह दक कोरटक गुंजा।।

सत्यमूल सब सुकृत सुहाए। बेद पुरान िबददत मनु गाए।।

Page 12: Ramcharit Ayodhya 1

तेिह पर राम सपथ करर अइ। सुकृत सनेह ऄििध रघुराइ।।

बात दढृ़ाआ कुमित हँिस बोली। कुमत कुिबहग कुलह जनु खोली।।

दो0-भूप मनोरथ सुभग बनु सुख सुिबहंग समाजु।

िभल्लिन िजिम छाड़न चहित बचनु भयंकरु बाजु।।28।।

मासपारायण, तेरहिाँ ििश्राम

सुनह प्रानिप्रय भाित जी का। देह एक बर भरतिह टीका।।

मागईँ दसूर बर कर जोरी। पुरिह नाथ मनोरथ मोरी।।

तापस बेष िबसेिष ईदासी। चौदह बररस रामु बनबासी।।

सुिन मृद ुबचन भूप िहयँ सोकू। सिस कर छुऄत िबकल िजिम कोकू।।

गयई सहिम नहह कछु किह अिा। जनु सचान बन झपटेई लािा।।

िबबरन भयई िनपट नरपालू। दािमिन हनेई मनहँ तरु तालू।।

माथे हाथ मूदद दोई लोचन। तनु धरर सोचु लाग जनु सोचन।।

मोर मनोरथु सुरतरु फूला। फरत कररिन िजिम हतेई समूला।।

ऄिध ईजारर कीिन्ह कैकेईं। दीन्हिस ऄचल िबपित कै नेईं।।

दो0-किनें ऄिसर का भयई गयईँ नारर िबस्िास।

जोग िसिि फल समय िजिम जितिह ऄिबद्या नास।।29।।

एिह िबिध राई मनहह मन झाँखा। देिख कुभाँित कुमित मन माखा।।

भरतु दक राईर पूत न होहीं। अनेह मोल बेसािह दक मोही।।

जो सुिन सरु ऄस लाग तुम्हारें। काहे न बोलह बचनु सँभारे।।

देह ईतरु ऄनु करह दक नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं।।

देन कहेह ऄब जिन बरु देहू। तजहँ सत्य जग ऄपजसु लेहू।।

सत्य सरािह कहेह बरु देना। जानेह लेआिह मािग चबेना।।

िसिब दधीिच बिल जो कछु भाषा। तनु धनु तजेई बचन पनु राखा।।

ऄित कटु बचन कहित कैकेइ। मानहँ लोन जरे पर देइ।।

दो0-धरम धुरंधर धीर धरर नयन ईघारे रायँ।

िसरु धुिन लीिन्ह ईसास ऄिस मारेिस मोिह कुठायँ।।30।।

Page 13: Ramcharit Ayodhya 1

अगें दीिख जरत ररस भारी। मनहँ रोष तरिारर ईघारी।।

मूरठ कुबुिि धार िनठुराइ। धरी कूबरीं सान बनाइ।।

लखी महीप कराल कठोरा। सत्य दक जीिनु लेआिह मोरा।।

बोले राई करठन करर छाती। बानी सिबनय तासु सोहाती।।

िप्रया बचन कस कहिस कुभाँती। भीर प्रतीित प्रीित करर हाँती।।

मोरें भरतु रामु दआु अँखी। सत्य कहईँ करर संकरू साखी।।

ऄििस दतूु मैं पठआब प्राता। ऐहहह बेिग सुनत दोई भ्राता।।

सुददन सोिध सबु साजु सजाइ। देईँ भरत कहँ राजु बजाइ।।

दो0- लोभु न रामिह राजु कर बहत भरत पर प्रीित।

मैं बड़ छोट िबचारर िजयँ करत रहेईँ नृपनीित।।31।।

राम सपथ सत कहईँ सुभाउ। राममातु कछु कहेई न काउ।।

मैं सबु कीन्ह तोिह िबनु पूँछें। तेिह तें परेई मनोरथु छूछें।।

ररस पररहरू ऄब मंगल साजू। कछु ददन गएँ भरत जुबराजू।।

एकिह बात मोिह दखुु लागा। बर दसूर ऄसमंजस मागा।।

ऄजहँ हृदय जरत तेिह अँचा। ररस पररहास दक साँचेहँ साँचा।।

कह तिज रोषु राम ऄपराधू। सबु कोई कहआ रामु सुरठ साधू।।

तुहूँ सराहिस करिस सनेहू। ऄब सुिन मोिह भयई संदेहू।।

जासु सुभाई ऄररिह ऄनुकूला। सो दकिम कररिह मातु प्रितकूला।।

दो0- िप्रया हास ररस पररहरिह मागु िबचारर िबबेकु।

जेहह देखाँ ऄब नयन भरर भरत राज ऄिभषेकु।।32।।

िजऐ मीन बरू बारर िबहीना। मिन िबनु फिनकु िजऐ दखु दीना।।

कहईँ सुभाई न छलु मन माहीं। जीिनु मोर राम िबनु नाहीं।।

समुिझ देखु िजयँ िप्रया प्रबीना। जीिनु राम दरस अधीना।।

सुिन म्रद ुबचन कुमित ऄित जरइ। मनहँ ऄनल अहित घृत परइ।।

कहआ करह दकन कोरट ईपाया। आहाँ न लािगिह राईरर माया।।

देह दक लेह ऄजसु करर नाहीं। मोिह न बहत प्रपंच सोहाहीं।

रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भिल सब पिहचाने।।

जस कौिसलाँ मोर भल ताका। तस फलु ईन्हिह देईँ करर साका।।

Page 14: Ramcharit Ayodhya 1

दो0-होत प्रात मुिनबेष धरर जौं न रामु बन जाहह।

मोर मरनु राईर ऄजस नृप समुिझऄ मन माहह।।33।।

ऄस किह कुरटल भइ ईरठ ठाढ़ी। मानहँ रोष तरंिगिन बाढ़ी।।

पाप पहार प्रगट भआ सोइ। भरी क्रोध जल जाआ न जोइ।।

दोई बर कूल करठन हठ धारा। भिँर कूबरी बचन प्रचारा।।

ढाहत भूपरूप तरु मूला। चली िबपित बाररिध ऄनुकूला।।

लखी नरेस बात फुरर साँची। ितय िमस मीचु सीस पर नाची।।

गिह पद िबनय कीन्ह बैठारी। जिन ददनकर कुल होिस कुठारी।।

मागु माथ ऄबहीं देईँ तोही। राम िबरहँ जिन मारिस मोही।।

राखु राम कहँ जेिह तेिह भाँती। नाहह त जररिह जनम भरर छाती।।

दो0-देखी ब्यािध ऄसाध नृपु परेई धरिन धुिन माथ।

कहत परम अरत बचन राम राम रघुनाथ।।34।।

ब्याकुल राई िसिथल सब गाता। कररिन कलपतरु मनहँ िनपाता।।

कंठु सूख मुख अि न बानी। जनु पाठीनु दीन िबनु पानी।।

पुिन कह कटु कठोर कैकेइ। मनहँ घाय महँ माहर देइ।।

जौं ऄंतहँ ऄस करतबु रहेउ। मागु मागु तुम्ह केहह बल कहेउ।।

दआु दक होआ एक समय भुअला। हँसब ठठाआ फुलाईब गाला।।

दािन कहाईब ऄरु कृपनाइ। होआ दक खेम कुसल रौताइ।।

छाड़ह बचनु दक धीरजु धरहू। जिन ऄबला िजिम करुना करहू।।

तनु ितय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहँ तृन सम बरनी।।

दो0-मरम बचन सुिन राई कह कह कछु दोषु न तोर।

लागेई तोिह िपसाच िजिम कालु कहाित मोर।।35।।û

चहत न भरत भूपतिह भोरें। िबिध बस कुमित बसी िजय तोरें।।

सो सबु मोर पाप पररनामू। भयई कुठाहर जेहह िबिध बामू।।

सुबस बिसिह दफरर ऄिध सुहाइ। सब गुन धाम राम प्रभुताइ।।

कररहहह भाआ सकल सेिकाइ। होआिह ितहँ पुर राम बड़ाइ।।

तोर कलंकु मोर पिछताउ। मुएहँ न िमटिह न जाआिह काउ।।

ऄब तोिह नीक लाग करु सोइ। लोचन ओट बैठु मुह गोइ।।

Page 15: Ramcharit Ayodhya 1

जब लिग िजऔं कहईँ कर जोरी। तब लिग जिन कछु कहिस बहोरी।।

दफरर पिछतैहिस ऄंत ऄभागी। मारिस गाआ नहारु लागी।।

दो0-परेई राई किह कोरट िबिध काहे करिस िनदानु।

कपट सयािन न कहित कछु जागित मनहँ मसानु।।36।।

राम राम रट िबकल भुअलू। जनु िबनु पंख िबहंग बेहालू।।

हृदयँ मनाि भोरु जिन होइ। रामिह जाआ कहै जिन कोइ।।

ईदई करह जिन रिब रघुकुल गुर। ऄिध िबलोदक सूल होआिह ईर।।

भूप प्रीित कैकआ करठनाइ। ईभय ऄििध िबिध रची बनाइ।।

िबलपत नृपिह भयई िभनुसारा। बीना बेनु संख धुिन द्वारा।।

पढ़हह भाट गुन गािहह गायक। सुनत नृपिह जनु लागहह सायक।।

मंगल सकल सोहाहह न कैसें। सहगािमिनिह िबभूषन जैसें।।

तेहह िनिस नीद परी निह काहू। राम दरस लालसा ईछाहू।।

दो0-द्वार भीर सेिक सिचि कहहह ईददत रिब देिख।

जागेई ऄजहँ न ऄिधपित कारनु किनु िबसेिष।।37।।

पिछले पहर भूपु िनत जागा। अजु हमिह बड़ ऄचरजु लागा।।

जाह सुमंत्र जगािह जाइ। कीिजऄ काजु रजायसु पाइ।।

गए सुमंत्रु तब राईर माही। देिख भयािन जात डेराहीं।।

धाआ खाआ जनु जाआ न हेरा। मानहँ िबपित िबषाद बसेरा।।

पूछें कोई न उतरु देइ। गए जेंहह भिन भूप कैकैइ।।

किह जयजीि बैठ िसरु नाइ। दैिख भूप गित गयई सुखाइ।।

सोच िबकल िबबरन मिह परेउ। मानहँ कमल मूलु पररहरेउ।।

सिचई सभीत सकआ नहह पूँछी। बोली ऄसुभ भरी सुभ छूछी।।

दो0-परी न राजिह नीद िनिस हेतु जान जगदीसु।

रामु रामु ररट भोरु दकय कहआ न मरमु महीसु।।38।।

अनह रामिह बेिग बोलाइ। समाचार तब पूँछेह अइ।।

चलेई सुमंत्र राय रूख जानी। लखी कुचािल कीिन्ह कछु रानी।।

सोच िबकल मग परआ न पाउ। रामिह बोिल किहिह का राउ।।

ईर धरर धीरजु गयई दअुरें। पूछँहह सकल देिख मनु मारें।।

Page 16: Ramcharit Ayodhya 1

समाधानु करर सो सबही का। गयई जहाँ ददनकर कुल टीका।।

रामु सुमंत्रिह अित देखा। अदरु कीन्ह िपता सम लेखा।।

िनरिख बदनु किह भूप रजाइ। रघुकुलदीपिह चलेई लेिाइ।।

रामु कुभाँित सिचि सँग जाहीं। देिख लोग जहँ तहँ िबलखाहीं।।

दो0-जाआ दीख रघुबंसमिन नरपित िनपट कुसाजु।।

सहिम परेई लिख हसिघिनिह मनहँ बृि गजराजु।।39।।

सूखहह ऄधर जरआ सबु ऄंगू। मनहँ दीन मिनहीन भुऄंगू।।

सरुष समीप दीिख कैकेइ। मानहँ मीचु घरी गिन लेइ।।

करुनामय मृद ुराम सुभाउ। प्रथम दीख दखुु सुना न काउ।।

तदिप धीर धरर समई िबचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी।।

मोिह कह मातु तात दखु कारन। कररऄ जतन जेहह होआ िनिारन।।

सुनह राम सबु कारन एहू। राजिह तुम पर बहत सनेहू।।

देन कहेिन्ह मोिह दआु बरदाना। मागेईँ जो कछु मोिह सोहाना।

सो सुिन भयई भूप ईर सोचू। छािड़ न सकहह तुम्हार सँकोचू।।

दो0-सुत सनेह आत बचनु ईत संकट परेई नरेसु।

सकह न अयसु धरह िसर मेटह करठन कलेसु।।40।।

िनधरक बैरठ कहआ कटु बानी। सुनत करठनता ऄित ऄकुलानी।।

जीभ कमान बचन सर नाना। मनहँ मिहप मृद ुलच्छ समाना।।

जनु कठोरपनु धरें सरीरू। िसखआ धनुषिबद्या बर बीरू।।

सब प्रसंगु रघुपितिह सुनाइ। बैरठ मनहँ तनु धरर िनठुराइ।।

मन मुसकाआ भानुकुल भानु। रामु सहज अनंद िनधानू।।

बोले बचन िबगत सब दषून। मृद ुमंजुल जनु बाग िबभूषन।।

सुनु जननी सोआ सुतु बड़भागी। जो िपतु मातु बचन ऄनुरागी।।

तनय मातु िपतु तोषिनहारा। दलुगभ जनिन सकल संसारा।।

दो0-मुिनगन िमलनु िबसेिष बन सबिह भाँित िहत मोर।

तेिह महँ िपतु अयसु बहरर संमत जननी तोर।।41।।

भरत प्रानिप्रय पािहह राजू। िबिध सब िबिध मोिह सनमुख अजु।

जों न जाईँ बन ऐसेह काजा। प्रथम गिनऄ मोिह मूढ़ समाजा।।

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सेिहह ऄरँडु कलपतरु त्यागी। पररहरर ऄमृत लेहह िबषु मागी।।

तेई न पाआ ऄस समई चुकाहीं। देखु िबचारर मातु मन माहीं।।

ऄंब एक दखुु मोिह िबसेषी। िनपट िबकल नरनायकु देखी।।

थोररहह बात िपतिह दखु भारी। होित प्रतीित न मोिह महतारी।।

राई धीर गुन ईदिध ऄगाधू। भा मोिह ते कछु बड़ ऄपराधू।।

जातें मोिह न कहत कछु राउ। मोरर सपथ तोिह कह सितभाउ।।

दो0-सहज सरल रघुबर बचन कुमित कुरटल करर जान।

चलआ जोंक जल बक्रगित जद्यिप सिललु समान।।42।।

रहसी रािन राम रुख पाइ। बोली कपट सनेह जनाइ।।

सपथ तुम्हार भरत कै अना। हेतु न दसूर मै कछु जाना।।

तुम्ह ऄपराध जोगु नहह ताता। जननी जनक बंधु सुखदाता।।

राम सत्य सबु जो कछु कहहू। तुम्ह िपतु मातु बचन रत ऄहहू।।

िपतिह बुझाआ कहह बिल सोइ। चौथेंपन जेहह ऄजसु न होइ।।

तुम्ह सम सुऄन सुकृत जेहह दीन्हे। ईिचत न तासु िनरादरु कीन्हे।।

लागहह कुमुख बचन सुभ कैसे। मगहँ गयाददक तीरथ जैसे।।

रामिह मातु बचन सब भाए। िजिम सुरसरर गत सिलल सुहाए।।

दो0-गआ मुरुछा रामिह सुिमरर नृप दफरर करिट लीन्ह।

सिचि राम अगमन किह िबनय समय सम कीन्ह।।43।।

ऄििनप ऄकिन रामु पगु धारे। धरर धीरजु तब नयन ईघारे।।

सिचिँ सँभारर राई बैठारे। चरन परत नृप रामु िनहारे।।

िलए सनेह िबकल ईर लाइ। गै मिन मनहँ फिनक दफरर पाइ।।

रामिह िचतआ रहेई नरनाहू। चला िबलोचन बारर प्रबाहू।।

सोक िबबस कछु कहै न पारा। हृदयँ लगाित बारहह बारा।।

िबिधिह मनाि राई मन माहीं। जेहह रघुनाथ न कानन जाहीं।।

सुिमरर महेसिह कहआ िनहोरी। िबनती सुनह सदािसि मोरी।।

असुतोष तुम्ह ऄिढर दानी। अरित हरह दीन जनु जानी।।

दो0-तुम्ह प्रेरक सब के हृदयँ सो मित रामिह देह।

बचनु मोर तिज रहिह घर पररहरर सीलु सनेह।।44।।

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ऄजसु होई जग सुजसु नसाउ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाउ।।

सब दखु दसुह सहािह मोही। लोचन ओट रामु जिन होंही।।

ऄस मन गुनआ राई नहह बोला। पीपर पात सररस मनु डोला।।

रघुपित िपतिह प्रेमबस जानी। पुिन कछु किहिह मातु ऄनुमानी।।

देस काल ऄिसर ऄनुसारी। बोले बचन िबनीत िबचारी।।

तात कहईँ कछु करईँ दढठाइ। ऄनुिचतु छमब जािन लररकाइ।।

ऄित लघु बात लािग दखुु पािा। काहँ न मोिह किह प्रथम जनािा।।

देिख गोसाआँिह पूँिछईँ माता। सुिन प्रसंगु भए सीतल गाता।।

दो0-मंगल समय सनेह बस सोच पररहररऄ तात।

अयसु देआऄ हरिष िहयँ किह पुलके प्रभु गात।।45।।

धन्य जनमु जगतीतल तासू। िपतिह प्रमोद ुचररत सुिन जासू।।

चारर पदारथ करतल ताकें । िप्रय िपतु मातु प्रान सम जाकें ।।

अयसु पािल जनम फलु पाइ। ऐहईँ बेिगहह होई रजाइ।।

िबदा मातु सन अिईँ मागी। चिलहईँ बनिह बहरर पग लागी।।

ऄस किह राम गिनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु ईतरु न दीन्हा।।

नगर ब्यािप गआ बात सुतीछी। छुऄत चढ़ी जनु सब तन बीछी।।

सुिन भए िबकल सकल नर नारी। बेिल िबटप िजिम देिख दिारी।।

जो जहँ सुनआ धुनआ िसरु सोइ। बड़ िबषाद ुनहह धीरजु होइ।।

दो0-मुख सुखाहह लोचन स्त्रििह सोकु न हृदयँ समाआ।

मनहँ ०करुन रस कटकइ ईतरी ऄिध बजाआ।।46।।

िमलेिह माझ िबिध बात बेगारी। जहँ तहँ देहह कैकेआिह गारी।।

एिह पािपिनिह बूिझ का परेउ। छाआ भिन पर पािकु धरेउ।।

िनज कर नयन कादढ़ चह दीखा। डारर सुधा िबषु चाहत चीखा।।

कुरटल कठोर कुबुिि ऄभागी। भआ रघुबंस बेनु बन अगी।।

पालि बैरठ पेड़़ु एहह काटा। सुख महँ सोक ठाटु धरर ठाटा।।

सदा रामु एिह प्रान समाना। कारन किन कुरटलपनु ठाना।।

सत्य कहहह किब नारर सुभाउ। सब िबिध ऄगह ऄगाध दरुाउ।।

िनज प्रितहबबु बरुकु गिह जाइ। जािन न जाआ नारर गित भाइ।।

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दो0-काह न पािकु जारर सक का न समुद् समाआ।

का न करै ऄबला प्रबल केिह जग कालु न खाआ।।47।।

का सुनाआ िबिध काह सुनािा। का देखाआ चह काह देखािा।।

एक कहहह भल भूप न कीन्हा। बरु िबचारर नहह कुमितिह दीन्हा।।

जो हरठ भयई सकल दखु भाजनु। ऄबला िबबस ग्यानु गुनु गा जनु।।

एक धरम परिमित पिहचाने। नृपिह दोसु नहह देहह सयाने।।

िसिब दधीिच हररचंद कहानी। एक एक सन कहहह बखानी।।

एक भरत कर संमत कहहीं। एक ईदास भायँ सुिन रहहीं।।

कान मूदद कर रद गिह जीहा। एक कहहह यह बात ऄलीहा।।

सुकृत जाहह ऄस कहत तुम्हारे। रामु भरत कहँ प्रानिपअरे।।

दो0-चंद ुचिै बरु ऄनल कन सुधा होआ िबषतूल।

सपनेहँ कबहँ न करहह दकछु भरतु राम प्रितकूल।।48।।

एक िबधातहह दषूनु देंहीं। सुधा देखाआ दीन्ह िबषु जेहीं।।

खरभरु नगर सोचु सब काहू। दसुह दाह ईर िमटा ईछाहू।।

िबप्रबधू कुलमान्य जठेरी। जे िप्रय परम कैकेइ केरी।।

लगीं देन िसख सीलु सराही। बचन बानसम लागहह ताही।।

भरतु न मोिह िप्रय राम समाना। सदा कहह यह सबु जगु जाना।।

करह राम पर सहज सनेहू। केहह ऄपराध अजु बनु देहू।।

कबहँ न दकयह सिित अरेसू। प्रीित प्रतीित जान सबु देसू।।

कौसल्याँ ऄब काह िबगारा। तुम्ह जेिह लािग बज्र पुर पारा।।

दो0-सीय दक िपय सँगु पररहररिह लखनु दक रिहहहह धाम।

राजु दक भूँजब भरत पुर नृपु दक िजआिह िबनु राम।।49।।

ऄस िबचारर ईर छाड़ह कोहू। सोक कलंक कोरठ जिन होहू।।

भरतिह ऄििस देह जुबराजू। कानन काह राम कर काजू।।

नािहन रामु राज के भूखे। धरम धुरीन िबषय रस रूखे।।

गुर गृह बसहँ रामु तिज गेहू। नृप सन ऄस बरु दसूर लेहू।।

जौं नहह लिगहह कहें हमारे। नहह लािगिह कछु हाथ तुम्हारे।।

जौं पररहास कीिन्ह कछु होइ। तौ किह प्रगट जनािह सोइ।।

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राम सररस सुत कानन जोगू। काह किहिह सुिन तुम्ह कहँ लोगू।।

ईठह बेिग सोआ करह ईपाइ। जेिह िबिध सोकु कलंकु नसाइ।।

छं0-जेिह भाँित सोकु कलंकु जाआ ईपाय करर कुल पालही।

हरठ फेरु रामिह जात बन जिन बात दसूरर चालही।।

िजिम भानु िबनु ददनु प्रान िबनु तनु चंद िबनु िजिम जािमनी।

ितिम ऄिध तुलसीदास प्रभु िबनु समुिझ धौं िजयँ भािमनी।।

सो0-सिखन्ह िसखािनु दीन्ह सुनत मधुर पररनाम िहत।

तेआँ कछु कान न कीन्ह कुरटल प्रबोधी कूबरी।।50।।