sample copy. not for distribution - educreation.in · कहावनााँ, कविता...
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RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001
Website: www.educreation.in __________________________________________________
© Copyright, 2018, Savitri Kashinath Iyer
All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.
ISBN: 978-1-5457-1840-7
Price: ` 145.00
The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.
Printed in India
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ABOUT AUTHOR _____________________________________________
Savitri Iyer was born in
Patna (Bihar). Being the eldest and responsible
daughter of Late Shri. T. Subramanian, she completed her post graduation from
Benaras Hindu University in the year 1958.
As a child, she was a tomboy and a precocious reader as well. After completing M A she was married to Mr.Kashinath Iyer.
She moved to Bokaro Steel City and lead a normal homemaker’s life. But her flair for
reading did not stop. As her husband was Manager in Bank of India, Savitri used to issue books from the Bank library and
devoted her leisure time in reading. Soon her husband got posted to Nagpur and the
journey of life took a twist. She lost her husband at a very early age. Both daughters were quite young. She had to take care of
her daughters and also her ailing in laws. Time started flying. Her in laws passed
away. Daughters settled down. But her flair for reading did not stop. She also begun to pen down her thoughts in the form of
poetries and stories. She also loves travelling and has covered every part of India. She
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also has a passion for singing and art and
practices ‘Alpana’(artistic designs on floor made out of wet rice flour using ring finger.)
Savitri is a brave women who lives her life in her own terms and conditions. She is a
strong source of inspiration for every women. This book is a tribute to her by her daughters and grand daughters which
intends to show gratitude and admiration.
We wish her best of luck to continue
writing with the same spirit.
For acknowledging her work you can reach her – [email protected]
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लेखिका का पररचय _____________________________________________
मैं श्रीमती सावित्री ऐय्यर वििाह के बाद
गृहणी थी। पररिार अच्छी तरह संभालती
थी। विमे्मदारी के बोझ के तले मेरे अन्दर
छुपे लेखिका को बहार आने का मौका नही ं
वमला। वििाह के २२ िर्ष गृहणी ही रही।
दो पुवत्रयााँ, पवत, सास , ससुर इनकी सेिा में,
घरेलू कायष में ही समय व्यतीत होता गया।
अचानक मेरे पवत का से हो गया।
मेरे आाँिो ंतले अाँधेरा छा गया। क्या करें , कैसे करें कुछ समझ में
नही ंआ रहा था।
मेरे पवत बैंक ऑफ़ इंवडया में मैनेजर थे। बैंक में पत्नी को
- । मेरे भाई,
बहन, ररशे्तदारो ं ने मुझे बैंक में कायष करने की सलाह दी। मुझे
डर लग रहा था । कुछ भी नही ंआता था। विर भी वहम्मत करके
डू्यटी करने चली थी। प्रारम्भ में बहुत गलवतयााँ होती थी। बाद में
दो तीन महीनें में थोड़ा काम सीि गयी। बचे्च बड़े हो गए। दोनो ं
बेवटयो ंका वििाह संपन्न हो गया। सास ससुर भी स्वगष िासी हो
गए।
तब मैंने अपने समय सदुपयोग करने के वलए वलिना
प्रारम्भ कर वदया। बैंक के मैगिीन में वलिकर भेजती रही,
प्रकावित होता रहा। इससे प्रोत्साहन वमला और मैं वलिती गयी।
विर मैंने सभी लेि का संकलन करके एक प्रकािन से प्रकावित
करने का विचार वकया और पुस्तक का नाम मैंने आकांक्षा रिने
की ठान ली। बेवटयो ं ने मेरे सभी लेि, कविता और कहावनयो ं
प्रकावित करने का वनणषय वलया। इस प्रयास में दोनो ंसिल हुए।
मुझे देिी देिताओ ंकी वििध अल्पनाएाँ भी बनाने का िौक है ।
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िो भी सभी समाचार पत्र में प्रकावित होते हैं। इस प्रकार ७५ िर्ष
की आयु में भी मैं वलिती हाँ और अल्पना भी बनाती हाँ।
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ABOUT BOOK _____________________________________________
An emotional and touching novel which
highlights the various shades of life and relationships in the form of poetries and
short stories. The poems and stories reflect admiration, adoration, aesthetic appearance, anxiety, envy, fear, sadness, interest and
joy. Readers can easily associate their thoughts with essence found in the book. It
has a beautiful pain which describes about changing relations, escapism, love, happiness, changing times. On the other side
it shows the strength of women and power of Goddess, where in both have the vigor of
expression. The necklace of poetries and stories can be regarded as embodying or affording force of firmness. It also to some
extent has a quality of humour.
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आभार प्रदिषन _____________________________________________
कोई भी कायष सम्पन करने में कई लोगो ंका सहयोग आिश्यक
होता है. अकेले कोई भी कायषक्रम सम्पन्न करना मुखिल है॰
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ॰ मेरी समू्पणष रचनायें
पड़ी हुई थी.ं मेरी दोनो ं बेवटयो ं ने इने्ह प्रकावित करने की
वजमे्मदारी उठाई॰ दोनो ंबेवटयो ंने प्रोत्साहन वदया और उसके
प्रकािन हेतु आवथषक और िारीररक रूप से भी पूरा सहयोग
वदया॰ अचे्छ प्रकािन िालो ंसे संपकष वकया बहुत दौड़ धूप वकया..
इन सब में ईश्वर का भी बहुत बड़ा हाथ है. उनके आिीिाषद से
मुझे वलिने का विचार आया और अपने कविताएाँ , लेि और
कहावनयो की रचना की. ईश्वरीय िखि से ही मेरे दोनो ं बेवटयो ं
(भिानी और संध्या) के मन में इन रचनाओ ंको प्रकावित करने
का विचार आया॰ इसवलए मैं प्रभु के समक्ष िीि झुकाती हाँ और
उनसे आिीिाषद लेती हाँ॰ मैं प्रभु का आभार मानती हाँ की उन्होनें
मुझे अनमोल दो रत्न जैसे प्यार करने िाली बेवटयां प्रदान की॰ मेरी
तीनो ंपोवतयो ं
(अिंवतका, अपरावजता और आकांक्षा) ने मुझे बहुत
प्रोत्साहन वदया॰ अपनी दोनो ंबेवटयो ंका आभार मानती हाँ, वजनके
अथक प्रयास से ये कवठन काम संपन्न हुआ॰ सबको धन्यिाद्॰
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एक पररचय _____________________________________________
मेरी मााँ श्रीमती सावित्री कािीनाथ अय्यर का
जन्म वबहार की राजधानी पटना में ३०
ऑक्ओबेर १९४३ में हुआ था॰ प्रारंवभक
विक्षा पटना में ही हुआ॰ प्रारम्भ से ही मेरी
मााँ की अवधक रुवच सावहत्य तरि ॰
१० िी उत्तीणष होने के बाद मेरे नाना का
बनारस तबादला हो गया॰ बनारस में ही
आगे की विक्षा संपन्न हुई॰ बनारस वहन्दू विश्व विद्यालय में मेरी मााँ
सभी लेिन प्रवतयोवगताओ ंमें भाग लेती थी॰ कई बार पुरस्कार
भी वमला॰
स्नातक होने के बाद, कविता, लेि, और कहावनयााँ पत्र
पवत्रकाओ ं में भेजती रहती थी॰ धीरे धीरे वहंदी पवत्रकाओ ं में
प्रकावित भी होने लगे. इसी बीच इनका एक बड़े पररिार में
वििाह संपन्न हुआ. घर में मेरे दादा, दादी, पर दादी सब रहते थे॰
घर गृहस्ती में उलझकर उनकी प्रवतभा लुप्त हो गयी थी. बचे्च हो
जाने की िजह से लेिन में ज्यादा ध्यान नही ंदे सकी॰
विर हम सब बचे्च जब बड़े हो गए तब मेरी मााँ ने अपनी
इस कला को विखित वकया॰ उनकी कई रचनाये पत्र -
पवत्रकाओ ं में प्रकावित होने लगी॰ कई पाठको ं ने फ़ोन पर
भी की॰ इसीसे मााँ की लेिन कौिल को प्रोत्साहन भी
वमला॰
मेरी मााँ को संगीत सुनने का, यात्रा करने का और संूदर
अल्पना वनकलने का भी िौक है॰ िो श्री राम कृष्णा परमहंस
और स्वामी वििेकानंद को अपना गुरु मानती है.
इस प्रकार मेरी मााँ की रचनाओ ं को पुस्तक के रूप में
प्रकावित करने का वनश्चय वकया..
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कुछ देर रुकने के बाद
विर से चल पड़ना दोस्त,
हर ठोकर के बाद
साँभालने में िक़्त लगता है।।
जो तूने कहा,
कर वदिायेगा, रि यकीन
गरजे जब बादल
तो बरसने में िक़्त लगता है।।
बस अब समय आ गया है। उन्होनें इतने साल जो तपस्या
वकया उनका उन्हें िल वमलने का। मााँ को वसिष तीन िौक है।
घूमने का, गाने सुनने का (िो मोहम्मद रफ़ी के वकसी भी गाने को
उसके िुरू की धुन सुनकर पहचान सकती है) और तीसरा
वलिने का। हम बेवटयो ंका यह फ़िष बनता है की उनके जीिन में
यह सब इच्छाऐ ं पूरी करें। भगिान् हमारी यही प्राथषना है की िो
अपनी बाकी विन्दगी इसी तरह िुि रहे। अंत में मैं सभी लोगो ं
से यही कहना चाहती हाँ ," की मेरे साथ रहती है मााँ, कवहये की
मााँ के साथ हम रहते हैं।"
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अिंवतका मूवतष
मेरे वदल को बहाने िाली मेरी नानी
अपनी कविताओ ंसे मन को छूने िाली,
अनोिे रुवचकर लेि वलिने िाली,
हमको प्यार करने नानी ।।
अपरावजता मूवतष
मेरी प्यारी प्यारी नानी
सुन्दर कविता वलिने िाली
अचे्छ अचे्छ लेि वलिने िाली
मनोरम कहानी वलिने िाली ।।
आकांक्षा स्वामीनाथन
मुझे सुन्दर मनोरम कविता सुनाने िाली
अथषपूणष उपयोगी लेि वलिने िाली
वदल को बहाने िाली कहानी वलिने िाली
अपनी हर रचना से वदल जीतने िाली
मेरी प्यारी प्यारी नानी ।।
- Grand Daughters
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हर मनुष्य का कोई न कोई लक्ष्य होता है, कोई न कोई आकांिा
होती है॰ वजतने महापुरुर् हुए हैं, उन्हें भी वकसी न वकसी से पे्ररणा
वमली होगी॰ स्वामी वििेकान्द को श्रीरामकृष्ण परमहंस से पे्ररणा
वमली और िो काली मााँ के भि हो गए॰ उन्होनें पूरे विश्वमें वहन्दू
धमष के महत्व का प्रचार वकया॰
मेरे भी जीिन में इस पुस्तक को वलिने में मेरी बेटी भिानी ही
मेरी पे्ररणा थी॰ िह अिर कहानी, लेि, वलिकर पवत्रकाओ ंमें
भेजती रहती थी, उसकी अवधकतर रचनाएाँ प्रकावित हो जाया
करती थी. मुझे भी वलिनेका िौक था. मैंने बहुत सालो ंसे कई
कहावनयााँ, कवितायेाँ, लेि वलिे हैं और मेरे कािी सारी रचनाएाँ
समाचार पत्र और पवत्रकाओ ंमें भी प्रकावित भी हुई हैं और मैंने
घर में एक बड़े पैमानेपर मेरे लेि संजोकर रिे थे. मेरी रचनाएाँ
प्रकावित होने के बाद अनेक पाठको ं ने बधाई भी दी॰ लोगो ं
प्रिंसा और सराहना सुनकर और भी अच्छा वलिने की पे्ररणा
वमली और मैंने वलिना जारी रिा मेरी पे्ररणा स्तोत्र मेरी बेटी
भिानी बनी उसका मैं आभार मानती हाँ, पर अब जो रचनाएाँ
आपको भेज रही हाँ, िे सब मेरी वपटारा में से हैं जो अप्रकावित
है ाँ॰
- पे्ररणा
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