shirdi shri sai baba ji - real story 016

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Page 1: Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 016
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एक समय साईं बाबा ने लगभग दो सप्ताह से खाना-पीना छोड़ दिदया था| लोग उनसे कारण पूछते तो वह केवल अपनी दायें हाथ की तर्ज$नी अंगुली उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें फैलाकर आकाश की ओर देखने लगते थे| लोग उनके इस संकेत का अथ$ समझने की कोशिशश करते लकेिकन इसका अथ$ उनकी समझ में नहीं आता था|

बस कभी-कभी उनके कांपते होठों से इतना ही किनकलता - "महाकाल का मुख अब खुल चुका है| सब कुछ उसके मुख में समा र्जायेगा| कोई भी नहीं बचेगा| एक-एक करके सब चल ेर्जायेंगे|"

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साईं बाबा के मुख से किनकलते इन शब्दों को सुनकर लोग मारे भय के बुरी तरह से कांप उठते| वे बाबा से पूछत,े लकेिकन वह मौन हो र्जाते| उनकी कांपती हुई अंगुली आकाश की ओर उठती और वह लंबी सांस लेकर फटी-फटी आँखों से आकाश की ओर बस देखते रह र्जाया करते थे| गांव का वातावरण सहमासहमा-सा रहने लगा था| प्रत्येक बृहस्पकितवार को साईं बाबा की शोभायात्रा बड़ी धूमधाम से किनकलती थी, लेकिकन न र्जाने क्यों लोगों के मन किकसी अकिनष्ट की आशंका से आशंकिकत हो उठे थे|

बाबा की इन बातों को सुनकर यदिद किकसी को सबसे ज्यादा खुशी हुई तो वह पंकिEतर्जी थे| वह इस बात को अच्छी तरह से र्जानते थे किक साईं बाबा र्जो कुछ भी कहते हैं, वह सच ही होता है|

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उनकी भकिवष्यवाणी झूठी नहीं हो सकती| भकिवष्य में होने वाली घटनाओं को वे शायद पहले ही र्जान लेते थे| अकाल, बाढ़, महामारी ऐसी दैवी आपदाए ंहैं, र्जो गांव-के गांव पूरी तरह से बबा$द करके रख देती है|

इनका कोई इलार्ज नहीं है| गांव के सब लोग गांव छोड़कर चले र्जाते हैं| शायद ऐसा ही कोई संकट शिशरEी में आने वाला है| पंकिEतर्जी यह सोच-सोचकर मन में बहुत खुश थे किक यदिद महामारी फैली तो लोग उनके पास ही अपना इलार्ज करान ेके शिलए आयेंगे, जिर्जससे उनको अच्छी-खासी कमाई होगी, र्जबकिक सारा गांव अकिनष्ठ की आशंका चिचंताग्रस्त था|

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वर्षाा$ ऋत ुसमाप्त हो चुकी थी| बाढ़ आन ेकी कोई संभावना न थी| अच्छी बारिरश होने के कारण खेतों में फसलें भी अच्छी हुई थीं| अकाल पड़ने की भी संभावना नहीं थी| यदिद कोई आपदा आ सकती थी, तो वह थी महामारी| यदिद महामारी फैली तो पंकिEतर्जी का भाग्य खुल र्जाएगा| र्जब से साईं बाबा शिशरEी में आए थे, पंकिEतर्जी की आमदनी तो खत्म-सी ही हो गयी थी| साईं बाबा की धूनी की भभूती असाध्य से असाध्य रोगों का समूल ही नाश कर देती थी| इसी वर्जह से पंकिEतर्जी के पास रोकिगयों ने आना किबल्कुल ही बंद-सा कर दिदया था|

किफर मंदिदर में भी पूर्जा करने वालों की संख्या भी दिदन-प्रकितदिदन कम होती चली र्जा रही थी| केवल पांच-सात ही लोग ही ऐस ेबचे थे, र्जो पूर्जा करने के शिलए सुबह-शाम मंदिदर आया करते थे| इसके अलावा शाम के समय प्रसाद के लालच में कुछ बच्चे भी मंदिदर में इकटे्ठ हो र्जाया करते थे|

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इस तरह मंदिदर से होने वाली आमदनी भी नाममात्र की ही रह गयी थी| पुरोकिहताई का धंधा भी बस ले-देकर ही चल रहा था|

साईं बाबा के प्रवचनों को सुनकर लोगों में कथा सुनने की रुशिच भी र्जाती रही| वर्षाा$ भी समय पर होती थी| इसशिलए समय पर वर्षाा$ कराने के बहाने से प्रत्येक वर्षा$ होने वाला यज्ञ भी होना अब बंद हो गया था| भूत-पे्रत, ब्रह्मराक्षस तो रै्जसे बाबा के गांव में कदम रखते ही गांव से पलायन कर गये था| गांव में अब किकसी भी तरह का उत्पात नहीं होता था| प्रत्येक घर में सुख-शांकित बा बसेरा था ! आपस के लड़ाई-झगडे़ भी अब होने बंद हो चुके थे| पंकिEतर्जी को रै्जसे कुछ काम ही नहीं मिमल रहा था| वह सारे दिदन अपने घर में बेकार ही पडे़ रहते थे|

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घर में पडे़-पडे़ पंकिEतर्जी बहुत दु:खी हो गये थे| उनके सामने रोर्जी-रोटी की समस्या खड़ी होने लगी थी|

साईं बाबा बराबर चिचंता में Eूबे रहते थे| एकटक आकाश की ओर देखते रहते थे, किकसी से कुछ भी न बोलते थे| तभी आस-पास के बीस कोस के इलाके में हैरे्ज की महामारी फैलने की खबर से शिशरEी गांव में कोहराम मच गया| हैरे्ज की महामारी से लोग मरने लगे|

पहले कुछ उल्टिल्टयां होतीं, दस्त होते और लोग मौत के मुंह में समा र्जाते|र्जब तक लोग रोग को समझ पाते, रोगी किबना दवा-दारू के ही भगवान के पास पहुंच र्जाता था|

पंकिEतर्जी की सारी भाग-दौड़ व्यथ$ चली र्जाती थी|

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आस-पास के गांवों में हैर्जा फैलने की खबर सुनकर शिशरEी के लोग भी अत्यंत चिचंकितत हो उठे|

वह सब इकट्ठा होकर साईं बाबा के पास पहुंचे|

"बाबा...बाबा ! आस-पास के गांवों में हैर्जा तेर्जी से पैर पसारता र्जा रहा है| अब तो वह हमारे गांव की सीमा की ओर भी बढ़ता आ रहा है| कहीं ऐसा न हो किक हमारा गांव भी इस महामारी की लपेट में आ र्जाए|" शिशष्यों ने Eरते-Eरते साईं बाबा से कहा|

साईं बाबा कई सप्ताह से मौन थे| उन्होंने खाना-पीना छोड़ रखा था| सारे शिशष्य और वाईर्जा माँ उनसे मिमन्नतें करके हार गये थे, लेकिकन न तो बाबा ने खाना ही खाया और न ही किकसी से कोई बातचीत ही की थी|

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लोगों की इस पुकार को सुनकर साईं बाबा ने एक गहरी ठंEी सांस छोड़ी और किफर आकाश की ओर पूव$वत् की भांकित देखने लगे| मस्जिस्र्जद में उपस्जिkत लोग भी उन लोगों के साथ साईं बाबा के चेहरे को देखने लगे किक शायद बाबा इस महामारी से बचने का कोई उपाय बतायेंगे|

साईं बाबा का चेहरा एकदम गंभीर पड़ गया| चिचंता की लकीर उनके सलोने मुख पर स्पष्ट रूप से नर्जर आ रही थीं| ऐसा लगता था किक रै्जसे बाबा स्वयं किकसी गहरी चिचंता में हैं| कुछ कर पाने में स्वयं को असमथ$ पा रहे हैं| अचानक साईं बाबा ने अपनी आँखें मूंद लीं और बोले - "तुम लोग कल सुबह आना| मैं सब बताऊंगा|" कहकर बाबा शांत हो गये| सब लोग बाबा की बात सुनकर चुपचाप उठकर अपने-अपने घरों को चले गए|

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अगल ेदिदन पौ फटते ही सब लोग द्वारिरकामाई मस्जिस्र्जद र्जा पहुंचे| देखा मस्जिस्र्जद के दालान में बैठे हुए साईं बाबा चक्की में र्जौ पीस रहे थे और र्जौ का आटा चक्की के चोरों तरफ फैला हुआ था|

सब लोग चुपचाप खडे़ साईं बाबा को र्जौ किपसते हुए देखते रहे| लकेिकन साईं बाबा पूरी लगन के साथ र्जौ पीसे र्जा रहे थे| किकसी की किहम्मत न हो रही थी किक वह उनसे कुछ पूछने का साहस रु्जटा सकें |

कुछ देर बाद एक भक्त से साहस रु्जटाया और आगे बढ़कर पूछा - "बाबा ! आप यह क्या कर रहे हैं ?“

"महामारी को भगाने की दवा बना रहा हूं|“

"यह दवा है ?"

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बाबा न ेकहा - "हां, यह दवा ही है| इस आटे को एक कपडे़ में भरकर ले र्जाओ और गांव की सीमा में चारों ओर र्जहां-र्जहां तक महामारी फैली हो इस दवा को शिछड़क आओ| परमात्मा ने चाहा तो इस गांव की सीमा में हरेै्ज की महामारी प्रवेश न कर पायेगी|“

तब शिशष्यों ने एक झोली में सारा आटा भर शिलया और साईं बाबा की र्जय-र्जयकार करते हुए गांव की सीमा की ओर चल पडे़| दोपहर तक गांव के चारों ओर सीमा पर आटे से लकीर-सी बना दी गयी| इस प्रकार साईं बाबा द्वारा पीस ेगये आटे से सारा गांव बांध दिदया गया|

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साईं बाबा की इस बात पर पंकिEतर्जी को किवश्वास न हो पा रहा था किक हैर्जे र्जैसी महामारी का प्रकोप इस तरह से रुक सकता ह|ै हैर्जे का प्रकोप आस-पास के गांवों में बड़ी तरे्जी के साथ बढ़ता र्जा रहा था| दस-पांच आदमी रोर्जाना मौत के मुंह के समात ेचले र्जा रहे थे| चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था|साईं बाबा की इस अनोखी दवा का समाचार आस-पास के गांवों तक भी पहंुच गया| लोग दवा मांगने के शिलए द्वारिरकामाई मस्जिस्र्जद आन ेलगे|

"बाबा, हमारे गांव में भी हैर्जा फैला ह|ै हमारे ऊपर दया करके हमें भी दवा देने की कृपा करें|"

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और भी लोग साईं बाबा के पास पहंुचकर बडे़ ही दयनीय स्वर में कहन ेलगे - "हमें भी दवा दे दो बाबा ! हम पर भी अपनी दया करो| हमारा तो सारा गांव श्मशान बन गया है|“

"अरे, तुम लोग इतना परेशान क्यों हो रहे हो ? जिर्जतनी दवा है, आपस में बांटकर ले र्जाओ और गांव के प्रत्येक घर में शिछड़क दो| र्जो बीमार होगा ठीक हो र्जाएगा और यह महामारी तुम्हारे गांव से भी भाग र्जायेगी|" बाबा ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा|

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आस-पास के गांवों के लोग बाकी बची हुई दवा को बांटकर ले गए| साईं बाबा की चक्की की घर$-घर$ की आवार्ज किफर मस्जिस्र्जद के गुम्बदों और मीनारों को गुंर्जायमान करन ेलगी| दूर-दूर के गांवों में पहुंच र्जाती, वहां हैरे्ज की बीमारी का नामोकिनशान ही मिमट र्जाता| बीमार इस तरह से उठकर खडे़ हो र्जात,े मानो वह बीमार पडे़ ही नहीं हों| दवा एकदम रामबाण के समान अपना काम कर रही थी| महामारी गध ेके सींग की तरह गायब होती र्जा रही थी|

साईं बाबा की दवा की कृपा से सैंकड़ों घर उर्जड़ने से बच गय|े हर तरफ बस साईं बाबा की र्जय-र्जयकार के स्वर ही सुनाई पड़ रहे थे|

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साईं बाबा की कृपा से सबसे अमिधक नुकसान यदिद किकसी का हुआ तो वह थे पंकिEतर्जी ! उनको कोई भी नहीं पूछ रहा था| महामारी फैली पर उनके दवाखाने में एक भी आदमी दवा लेने तक न आया| पंकिEतर्जी साईं बाबा से बड़ी बुरी तरह से र्जल-ेभुने बैठे थे| साईं बाबा उन्हें गांव में ऐसे खटक रहे थे रै्जसे आँख में कितनका|

पंकिEतर्जी दिदन-रात इसी चिचंता में घुले र्जा रहे थे किक किकस तरह से साईं बाबा को नीचा दिदखाकर, यहां शिशरEी से किनकाल भगाया र्जाये| वह अपने मन में बराबर उनके शिलए नयी-नयी योर्जनाए ंबना रहे थे, पर उनकी सारी योर्जनाए ंअमल में लान ेपर असफल होकर रह र्जाती थीं|