shri ram katha sunder kand

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Ĥभु Įी राम जी का आशीवा[द सब पर सदा बना रहे (S. Sood ) सुÛदर काÖड Įीजानकȧवãलभो वजयते Įीरामचǐरतमानस ~~~~~~~~ पÑचम सोपान सुÛदरकाÖड æलोक शाÛतं शाæवतमĤमेयमनघं Ǔनवा[णशािÛतĤदं ĦéमाशàभुफणीÛġसेåयमǓनशं वेदाÛतवेɮयं वभुम ् रामाÉयं जगदȣæवरं सुरगुǽं मायामनुçयं हǐरं वÛदेऽहं कǽणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणम ्।। 1।। नाÛया èपृहा रघुपते ǿदयेऽèमदȣये स×यं वदाम भवानखलाÛतरा×मा। भिÈतं ĤयÍछ रघुपुɨगव Ǔनभ[रां मे कामाǑददोषरǑहतं कु ǽ मानसं च।।2।। अतुलतबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृ शानुं £ाǓननामĒगÖयम ्। सकलगुणǓनधानं वानराणामधीशं रघुपǓतĤयभÈतं वातजातं नमाम।।3।। जामवंत के बचन सुहाए। सुǓन हनुमंत ǿदय अǓत भाए।। तब लग मोǑह पǐरखेहु तुàह भाई। सǑह दुख कं द मूल फल खाई।। जब लग आवɋ सीतǑह देखी। होइǑह काजु मोǑह हरष ǒबसेषी।। यह कǑह नाइ सबिÛह कहु ँ माथा। चलेउ हरष Ǒहयँ धǐर रघुनाथा।। संधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कू Ǒद चढ़ेउ ता ऊपर।। बार बार रघुबीर सँभारȣ। तरके उ पवनतनय बल भारȣ।। जेǑहं गǐर चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।। िजम अमोघ रघुपǓत कर बाना। एहȣ भाँǓत चलेउ हनुमाना।। जलǓनध रघुपǓत दूत ǒबचारȣ। तɇ मैनाक होǑह Įमहारȣ।।

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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं - रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।। मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।। रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।। त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।। (बा.35) वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है। श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे । मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन्द्रियग्राह्य है,

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  • 1. (S. Sood ) ~~~~~~~~ 1 2 3

2. (S. Sood )0- 1 ** 0- 2 ** 3. (S. Sood ) = 1 2 3 0- 3 ** 0- 4 ** 4. (S. Sood ) 0- 5 ** 0- 6 ** 0- 7 ** 5. (S. Sood ) 0- 8 ** 0- 9 ** 6. (S. Sood ) 0- 10 ** 0- 11 ** 7. (S. Sood )0- 12 0- 13 ** 0- 14 ** 8. (S. Sood ) 0- 15 ** 0- 16 ** 9. (S. Sood ) 0- 17 ** 0- 18 ** 0- 10. (S. Sood ) 19 ** 0- 20 ** 0- 21 ** 11. (S. Sood ) 0- 22 ** 0- 23 ** - 12. (S. Sood ) 24 0- 25 ** 0- 26 ** 13. (S. Sood ) 0- 27 ** 0- 28 ** 0- 29 ** 14. (S. Sood ) 0- 30 ** 0- 31 ** 15. (S. Sood )0- 32 ** 0- 33 ** 0- 34 ** 16. (S. Sood ) 0- 1 2 0- 35 ** 0 36 17. (S. Sood )** 0- 37 ** 0- 38 ** 18. (S. Sood ) 0- 39() 39() ** 0- 40 ** 0= 41 ** 19. (S. Sood ) 0= 42 ** 0= 43 ** 20. (S. Sood ) 0= 44 ** 0- 45 ** 0- 46 ** 21. (S. Sood ) 0 47 ** 0- 48 ** 22. (S. Sood )0- 49() 49() ** 0- 50 ** 0- 51 ** 23. (S. Sood ) 0- 52 ** 0 53 ** 0- 54 ** 24. (S. Sood ) 0 55 ** 0 56() 56() ** 25. (S. Sood ) 0- 57 ** 0- 58 ** 26. (S. Sood ) 0- 59 ** 0- 0- 60 , ~~~~~~~ ( ) **