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Volume-11,Issue-3,December-2017 Page 402 of 8Research Guru: Online Journal of Multidisciplinary Subjects (Peer Reviewed) सिकंदर पोरि युध :भारतीय इसतहाि मे सकतना सना ायक ? डॉ.दʩा . पटेल अापक सहायक,दडफ़ेɌ ːडीज (इदतहास) आट टस कॉलेज, वडाली जी- साबरकाठा ि: यह दसध यु यूनान के दसध सेनानायक दसक दर महान तथा भारतीय सेनानायक पोरस के .पू . झेलम नदी के दनकट लड़ा गया बचपन से ही यु-ेमी तथा दवʷ-दवजय बनने की बल इा रखनेवाला दसक दर अपने अदभमान के दलए दनकला तो उसे ास,अफगान,तुकी आददे शो को परादजत करने मे सफलता दमली इसी मे वह भारत की सीमा मे भी वेश कर दया सवटथम दसक दर ने तदशला के शासक आभी को यु दकए दबना ही आसमपटण करने के दलए मजबूर दकया; दजसमे उसे केवल सफलता दमली, बʋ आगे यु करने के दलए सहयोग भी ाɑ राजा आभी ने पोरस से बदला लेने के दलए दसक दर की हर सभव सहायता भी की इसका लाभ उठाते दसक दर ने पोरस को भी आसमपटण के दलए बा दकया; पर तु उसकी रगो मे राʼ -ेम एव बदलदान की भावना बह रही थी, अत: उसने दसक दर के आसमपटण के ˑाव को ठु कराते कहा, “मे सीमा पर अवʴ आऊँगा; पर तु शु का मुाबला करने हेतु ,दक उससे भेट अथवा आसमपटण करने हेतु" इस कार दोनो सेनानायको के यु की तैयारी शुऱ हो गई नदी के कारण कुछ समय तक दसक दर को यु का इतजार करना पड़ा; ोदक वह आक˝क आमण ारा शु को दव˝य मे डालकर सफलता ाɑ करना चाहता था अतत: दसक दर इसी नीदत (धोखे ) के आधार पर ईस यु मे दनणाटयक सफलता ाɑ कर सका

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  • Volume-11,Issue-3,December-2017

    Page 402 of 8Research Guru: Online Journal of Multidisciplinary Subjects (Peer Reviewed)

    सिकंदर – पोरि युध्ध :भारतीय इसतहाि मे सकतना सनर्ाायक ?

    डॉ.ददव्या ए. पटेल अध्यापक सहायक,दडफ़ेन्स स्टडीज (इदतहास) आटटस कॉलेज, वडाली जी- साबरकाांठा

    िार :

    यह प्रदसध्ध युद्ध यूनान के प्रदसध्ध सेनानायक दसकां दर महान तथा भारतीय सेनानायक पोरस के मध्य ३२६ ई.पू. झेलम नदी के दनकट लड़ा गया॰ बचपन से ही युद्ध-पे्रमी तथा दवश्व-दवजय बनने की प्रबल इच्छा रखनेवाला दसकां दर अपने अदभमान के दलए दनकला तो उसे फ्ाांस,अफगान,तुकी आदद देशो को परादजत करने मे सफलता दमली॰ इसी क्रम मे वह भारत की सीमा मे भी प्रवेश कर ददया॰

    सवटप्रथम दसकां दर ने तक्षदशला के शासक आांभी को युद्ध दकए दबना ही आत्मसमपटण करने के दलए मजबूर दकया; दजसमे उसे न केवल सफलता दमली, बल्कि आगे युद्ध करने के दलए सहयोग भी प्राप्त हुआ॰ राजा आांभी ने पोरस से बदला लेने के दलए दसकां दर की हर सांभव सहायता भी की॰ इसका लाभ उठाते हुए दसकां दर ने पोरस को भी आत्मसमपटण के दलए बाध्य दकया; परां तु उसकी रगो मे राष्ट्र -पे्रम एवां बदलदान की भावना बह रही थी, अत: उसने दसकां दर के आत्मसमपटण के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा, “मे सीमा पर अवश्य आऊँगा; परां तु शतु्र का मुऺाबला करने हेतु,न दक उससे भेट अथवा आत्मसमपटण करने हेतु॰"

    इस प्रकार दोनोां सेनानायकोां के मध्य युद्ध की तैयारी शुरू हो गई॰ नदी के कारण कुछ समय तक दसकां दर को युद्ध का इांतजार करना पड़ा; क्ोांदक वह आकल्किक आक्रमण द्वारा शतु्र को दविय मे डालकर सफलता प्राप्त करना चाहता था॰ अांतत: दसकां दर इसी नीदत (धोखे) के आधार पर ईस युद्ध मे दनणाटयक सफलता प्राप्त कर सका॰ १

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    सिकंदर के आक्रमर् पूर्ा भारत की स्थिसत :

    दसकां दर के आक्रमण के पूवट भारत की अवस्था बड़ी शोचनीय थी॰ यह सांग्राम उस समय हुआ जब समू्पणट उत्तरी भारत महाभारत युद्ध के बाद अनेक छोटे-छोटे राज्यो मे दवभक्त हो चुका था॰ इनमे से कुछ मे राजतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था एवां कुछ मे गणतांत्रात्मक शासन व्यवस्था दवधमान थी॰ धनधान्य की द्रदष्ट् से सभी राज्य समृद्ध थे, परां तु आपसी ईर्ष्ाट दे्रष के दशकार थे॰ उनमे आपस मे सांघषट चलता रहता था॰ यहा पर कोई एसी राजनीदतक शल्कक्त नही थी, जो दबखरे राज्यो के सूत्र मे दपरोकर दवदेशी आक्रमण का सामना कर सके॰ इसके दवपरीत उनमे आपसी शतु्रता इतनी तीव्र थी की वे एक दूसरे का दवनाश देखने के दलए सदैव उधत रहते थे॰ एसी ल्कस्थदत मे वे दमलजुल कर दवदेशी आक्रमण का सामना न कर सके॰ पररणाम स्वरूप बड़ी सरलता के साथ वे दवदेशी आक्रमणकारी के हाथोां परादजत हो गये॰ कुछ दवद्वानोां की यह भी मान्यता हे दक कुछ देशद्रोही व्यल्कक्तयो तथा राजाओ ने दसकां दर को भारत पर आक्रमण करने के दलए भी दनमांत्रण ददया॰ एसी दशा मे दसकां दर का काम और भी आसान हो गया एवां उसे पूरी सफलता भी दमली॰ २

    सिकंदर का जीर्न पररचय :

    दसकां दर यूनान देश के एक राज्य मकदूदनया के शासक दफदलप का पुत्र था॰ उसका जन्म ३५४ ई.पू. मे हुआ था॰ उसने यूनान के दाशटदनक अरसू्त से दशक्षा प्राप्त की थी॰ दसकां दर बचपन से ही महत्वाकाांक्षी था और दवश्व दवजय का स्वप्न देखता था॰ दफदलप की मृतु्य पर वह ३३६ ई.पू. मे मकदूदनया का शासक बना॰ शासक बनते ही उसने अपने स्वप्न को साकार करने हेतु दवजय यात्रा आरांभ कर दी॰ पहले उसने यूनान के अन्य नगर राज्योां को जीता॰ दफर उसने दमश्र पर अदधकार दकया॰ इसके पश्चात पदश्चमी एदशया को अपनी साम्राज्यवादी कु्षधा का ग्रास बनाया॰ ईरान की आांतररक दनबटलता से वह भली प्रकार पररदचत था॰ अत: उसने ३३० ई.पू. मे ईरानी शासक द्रारा तृतीय को युद्ध मे परादजत दकया और उसके साम्राज्य पर अदधकार कर दलया॰ इसके उपराांत उसने भारत दवजय करने की योजना बनाई॰ ३

    पोरि का जीर्न पररचय :

    पोरस प्राचीन भारत के एक राजा थे दजनका राज्य झेलम नदी से लेकर दचनाब नदी तक फैला हुआ था॰ राजा पोरस का समय ३४० ई.पू. से

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    ३१५ ई.पू. तक का माना जाता है॰ राजा पोरस इसदलए प्रदसद्ध है क्ोांदक इन्होने दसकां दर से एक युद्ध लड़ा था जो दक इदतहास मे काफ़ी प्रदसद्ध है॰ ईस युद्ध मे दसकां दर को पोरस से कड़ी टक्कर दमली थी, दजसके बाद उसके सैदनकोां के हौसले टूट गए और उन्होने पूरे भारत को जीतने का सपना छोड़ ददया॰

    पोरस को भारतीय इदतहासकार पुरू भी कहते है॰ यह भी माना जाता है प्राचीन सांसृ्कत ग्रांथ मुद्राराक्षस मे वदणटत राजा पवटतक कोई और नही ां बिी पोरस ही है॰

    झेलम और दचनाब के मध्यवती प्रदेश पर पोरस अथवा पुरू का राज्य था॰ इसमे आधुदनक गुजरात और शाहपुर (पांजाब) के दजले सल्किदलत थे॰ दसकां दर के समय भारत का यह शल्कक्तशाली राज्य था॰ तक्षदशला का शासक आांदभ पुरू से ईर्ष्ाट करता था॰ इसदलए आांदभ ने पुरू को नीचा ददखाने अथवा उसका मान मदटन करने के दलए एक राजदूत द्वारा दसकां दर को भारत पर आक्रमण करने का दनमांत्रण ददया था और उसे पोरस के दवरुध्ध सहायता देने का आश्वासन भी ददया था॰ डॉ. आर.के. मुकजी ने लीखा है की, “यह पहला अवसर था,जबदक दकसी भारतीय शासक ने देशद्रोही होने का पररचय ददया था॰”

    सिकंदर और पोरि की िैन्य शस्ि :

    दसकां दर और पोरस की सैन्य शल्कक्त के सांदभट मे दवद्वानो मे मतभेद है,परां तु इतना दनदश्चत है की दसकां दर की तुलना मे पोरस की सेना की शल्कक्त कम थी | सर डबलू्य टानट के अनुसार पोरस की सेना मे ४००० अश्वारोही, ३०० रथ,२०० हाथी और ३०,००० पैदल सैदनक थे |४ डॉ रमाशांकर दत्रपाठी ने अपनी पुस्तक (प्राचीन भारत का इदतहास) मे उले्लख दकया है दक पोरस के पास ५०,००० पैदल, ३००० घुड़सवार, १००० रथ और १३० गज सेना लेकर बढ़ा | अश्व सेना और पैदल सेना के सैदनको युद्ध करने के दलए हदथयार ,धनुषबाण एव भाला से सुसल्कित थे | दजसमे धनुर्ष्बाण वजन मे भारी होने के कारण जमीन पर दटकाकर तीर चलाया जाता था |

    दसकां दर की सैन्य शल्कक्त लगभग ३०,००० सैदनको की थी |५ दजसमे १५,००० पैदल सैदनको और बाकी के अश्व सैदनको थे | पैदल सैदनको

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    कवच युक्त तथा २१ फीट लांबा भाला रखते थे, इसके साथ ये सैदनको तलवार व ठाल का भी प्रयोग करते थे | दसकां दर महान की सेना मे युद्ध-तांत्र की भी व्यवस्था थी जो काफी दूर से शतु्र पर आक्रमण कर सकती थी |

    पोरस की सेना का सांगठन “ चतुरांग बल ”(पैदल,अश्वारोही,रथ और गज) पर हुआ था दजसमे रथोां का दवशेष महत्व था | और दसकां दर की सेना “ फैलेंक्स पध्धदत ”( पांल्कक्त बध्ध पैदल सेना की ठोस रचना फैलेंक्स कहलाती थी ) पर सांगदठत थी ,जो उसे अपने दपता दफदलप से दवरासत मे प्राप्त हुई थी |दजसमे पैदल सेना की सांख्या अदधक थी |

    सिकंदर महान द्वारा झेलम नदी पार करना :

    जब दसकां दर झेलम नदी के पदश्चमी तट पर आ पहुचा तब उसने पोरस को नदी के पूवी तट पर दवशाल सेना के साथ उसका इांतजार करता था | क्ोदक तक्षदशला से दसकां दर ने उसे सांदेश भेजा था की वह आत्म – समपटण कर उससे भेट करे | पोरस इसके उत्तर मे तैयार खड़ा था,परां तु युद्ध के दलए आत्म – समपटण के दलए नही | इन दोनोां दवराट सेनाओ के मध्य झेलम बड़ी ही तीव्र गदत से बह रही थी | दसकां दर ने नदी के तेज प्रवाह और पोरस की सेना को खड़ा देखकर तुरन्त नदी पार करना उदचत न समजा | लेदकन दूसरी तरफ दसकां दर के सामने बहुत बड़ी समस्या यह थी की यदी वषाट प्रारम्भ हो गई तो झेलम को पार करना दबलकुल असांभव ही हो जायेगा | काफी सोच दवचार के बाद उसने अपना दशदवर डाल ददया और पोरस को धोखा देने के दलए बाह्य रूप से एसा नाटक प्रसु्तत दकया मानो यह दशदवर बहुत ददनो तक पड़ा रहेगा | इसके साथ ही झेलम नदी को पार करने के दलए उदचत स्थान की खोज करता रहा | ६ आल्कखरकार दसकां दर को लगभग १६ मील दूर एक एसे स्थान की खोज की जहा पर नदी दछछली हो गई थी | सबसे बड़ी बात यह थी की इस स्थान के बारे मे पोरस को जानकारी नही थी |

    (एररयन के शब्दो मे आक्रामक ने “मागटचुराना” दनदश्चत दकया | ) दसकां दरने अपने ११०० चुने हुए सैदनको के साथ नदी के चढ़ाव की ओर बढ़ा और वहा रात के अने्धरे मे मूसलधार वषाट मे टूटे हुये स्थान पर चुपके से झेलम नदी को पार कर दलया | पार उतरने से पहले उसने अपने इरादे को

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    गुप्त रखने के दलए एक और युल्कक्त से काम दलया था | अपने सेनापदत के्रटरस की अधीनता मे उसने एक बड़ी सेना छोड़कर उसे नाच गान करने का दनदेश दे ददया था दजससे पोरस को दवश्वास बना रहे की आक्रमण वषाट मे नही होगा |७

    प्रारस्िक युध्ध :

    झेलम नदी पार करके दसकां दर घुड़सवार सैदनको को साथ रखकर नदी के तट पर आगे बढ़ने लगा | नदी मे आगे बढ़ते समय दसकां दरने एक भारतीय टुकड़ी को दनरीक्षण करते हुए देखा और उस टुकड़ी का सेनापदत पोरस का पूत्र था | उसके पास करीब १,००० सैदनक थे | पोरस का पूत्र रक्षणात्मक कायटवाही करे उससे पहेले दसकां दर ने आक्रमण करके उसे खत्म कर दीया | उसके साथ ४०० सैदनक भी खत्म हो गये ,बाकी सैदनको ने राजकुमार के मृतु्य का सांदेशा पोरस को दीया | इसदलए पोरस ने अपने कुछ सैदनको को पड़ाव की जगह पर छोड़ कर, बाकी सैदनको को उदचत क्रम मे रखकर दहड़ास्पस के मेदान मे दसकां दर का इांतजार करने लगा |

    युध्ध की शरूआत :

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    पोरस ने अपने सैन्य मे सबसे आगे गज सेना और रथ सेना को रखा था | दसकां दर यह योजना देखकर आश्चयट चदकत हुआ था, क्ोदक वो गज सेना की साहस और शल्कक्त को पहचानता नही था | जांगली जानवर और शल्कक्तशाली राजा का सामना करने के दलए आगे से हुमला करने की जगह बाजू की ओर से आक्रमण करने के दलए आदेश ददये | दसकां दर ने पूवट योजना के अनुसार पोरस की सेना पर तीव्र गदत से आक्रमण दकया ॰ पररणाम स्वरूप पोरस की दाये की ओर का अश्व सैन्य बाये की ओर मदद करने के दलए पहुचा | दसकां दर ने मौका देखकर अपने अश्व सैन्य को पोरस की सेना के पीछे के भाग से आक्रमण के आदेश ददये | यह अश्व दल धीरे-धीरे पोरस के अश्व सेना को खत्म करने लगा | पोरस के रथ वजन और कद मे ज्यादा होने से और ज्यादा बारीश की वजह से कीचड़ मे फस गए | इस तरह पोरस की सबसे आधारभूत सेना असफल हो गई | दसकां दर के पैदल सैदनको ने शतु्र सेना के हाथी की आांखे, महावत, हाथी की सूांढ इत्यादद को दनशाना बनाकर आक्रमण की शरूआत की | दसकां दर के प्रबल आक्रमण से पोरस के हाथी अपने ही सैदनको को रौदते हुये पीछे हटने लगे, दजसके कारण पैदल सैदनक अपनी वीरता का प्रदशटन नही कर पाये और खुदकोां बचाने के दलए युध्ध मैदान छोडकर भागने लगे | सैन्य मे हुई अव्यवस्था के कारण पोरस दसकां दर का सामना करने के दलए असमथट हो गया |

    युध्ध के अांदतम पड़ाव मे अगली योजना के अनुसार के्रटरस सेनापती की सेना ने पीछे के भाग से आक्रमण दकया | बुरी तरह से घायल हुये पोरस ने दसकां दर का सामना दकया, दकनु्त आल्कखरकार पोरस को बन्दी बनाकर दसकां दर के समक्ष प्रसु्तत दकया गया | दफर भी उसका उत्साह तदनक भी भांग नही हुआ | दसकां दर और पोरस के बीच इस समय जो वाताटलाप हुआ, वह अत्यांत रोचक है | दसकां दर ने पोरस की शूरवीरता की सराहना करते हुए उससे पूछा, “तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार दकया जाए ?” इस पर पोरस ने बड़ी वीरता तथा दनभीकता से उतर ददया – “ जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है |” पोरस के उतर से दसकां दर बहुत प्रभादवत हुआ और उसने न केवल उसका राज्य ही वादपस लौटा ददया, अदपतु उसको दसांध एवां झेलम के अन्य दवदजत राज्यो को सोपकर उसे अपना दमत्र बना दलया |

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    सिकंदर के आक्रमर् के प्रभार् :

    दसकां दर के आक्रमण के प्रभाव के सम्बन्ध मे इदतहासकारो मे काफी मतभेद है | कुछ दवध्वानोां का यह मानना है दक दसकां दर का आक्रमण एक आांधी के समान था, जो आया और चला गया | अत: उसके आक्रमण का भारत पर कोई स्थायी प्रभाव नही पड़ा | कुछ अन्य इदतहासकारो ने उसके आक्रमण की तुलना पानी के बुलबुले से ही है, जो दगरते ही दबखर जाता है | डॉ.वी.ए.ल्किथ भी इसी मत के समथटक है | उनके अनुसार, “ दसकां दर के अदभयान का भारतीय सांस्थाओ तथा दवचारधारा पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नही पड़ा | भारतीय कला, धमट, तथा समाज मे दकसी प्रकार का पररवतटन न हुआ | यहा तक दक भारतीयो ने युध्ध कौशल के बारे मे भी यूनादनयोां से सीखने मे रुदच न ली | उन्होने अपनी प्राचीन युध्ध प्रणाली को अपनाये रखा, जो रथो, हादथयो तथा दनम्न कोदट के पैदल सैदनको पर आधाररत थी |८

    क्या र्तामान िरहदे िुरसित है ?

    दसकां दर - पोरस युध्ध प्राचीन भारतीय इदतहास में काफी प्रभावक व् दनणाटयक रहा | दवदेशीयोां के भारत पे आक्रमण आज भी चल रहे है | दसकां दर - पोरस युध्ध जैसे दवदेशी युध्धो से आधुदनक युग में हुए भारत - पादकस्तान युध्ध और भारत - चीन युध्ध आधुदनक युग में दनणाटयक सादबत हुए है | हालाांदक भारतीय सेना ने अपने मजबूत सैन्य से आज भी देश की सरहदोां की सुरक्षा करने में अपनी पूरी जान लगा रखी है | वतटमान सरहदोां के प्रश्न ददन व ददन बढ़ते रहते है | वतटमान सरहदोां की रक्षा के मामले में दसकां दर - पोरस पे्ररणारूप बना रहेगा |

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    पादटीप :

    1. दमश्र , सुरेन्द्रकुमार , “सांसार के प्रदसध्ध युध्ध " ग्रांथ अकादमी , नई ददल्ली, पृ.३१

    2. नागोरी, एस.एल. और नागोरी जीतेश , “दवश्व के ऐदतहादसक युध्ध ”इना श्री पल्किशसट , जयपुर , १९९७ ,पृ. ७७-७८.

    3. दसांह, लल्लन जी, “युध्ध कला ” प्रकाश बुक दडपो, बरेली, प्रथम सांस्करण ,२००१ ,पृ.४.

    4. ऐलेकजैन्दर दी गे्रट, कैल्कम्बज ,१९५०.

    5. भारतीय ऐदतहादसक तै्रमादसक पदत्रका, कलकता. ददसम्बर. १९४९.

    6. डॉ. रमाशांकर दत्रपाठी, “प्राचीन भारत का इदतहास "

    7. 'भून' नामक स्थान पर नदी पार दकया जहा नदी की धारा दो भागोां में दवभक्त थी |

    8. वी.ए.ल्किथ. “द इन्डो - पादथटयन दायनेस्टीज .