yog marg prakashika

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Page 1: Yog Marg Prakashika

(स 11800

{18 0001८ 15 *21128016 911

07 1० ०6 155६0

0 9 1116 [णप

एश0ा ऽवत एलऽ90ाा

Page 2: Yog Marg Prakashika

॥ शरीः ॥

शरीमत रामादजाय नमः

शरीमहानतयगठदासननिमित-

यागमागयरकाशकाकत अरथात‌

यागरहसयगरनथ । भाषारीकासषमव । ~

,\{ गिरपरसालिषशोधषित. ५ ` -<भ

^} ^ जिसको

“ खमराज शरीछषणद‌ासन

वब निन “शशरविदकटशवर)› ( सटीम‌ > यनवाखयरम

सदविवकर मसिदधकिषा 1

--~>*< ~

माघ खदत‌ १९६१, शक १८२६.

यनबदरणादि सवोधिकाद "रवदधटर' मसोयकषन

सवाधीन रकखाद ष!

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-ॐ०७।

Page 3: Yog Marg Prakashika

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इस सषारविप मौकषक दत नर उपाय ह परच समसत सधिता मक योगाभयास कयोकि विना चिततकी एकायता य कोई सधन -रीरदः नकष सो चिततफी एकामरता विना यौगाभयासक नरी दम सो वातत गीताजीम कशह “चचषट दि मनः कषण ममापि वलवदढम‌” अथ-द शरीकषण हीकति निशरय करक मन अरयत चचर वा वलवानह तीस कारण मनक निरोध करनम कवर एक योगी शरषठतर उपाय ह जनय नही सो वाती योगसररम कथन की ह"योगथिततवततिनिरोधः'' चिततकी वततिरयोका निरोप होना यदी सखय योगका रकषण तथा नरीकरषण भगवानय मीताम सञजनक परति कहा ३““तपसविभयोऽधिको योगी ानिभयोऽपि मतोऽधिकः ॥ कभिमयशचाधिको योगीतसमाचोगी मवाञन''अरय-ह जयन तपसवीत वा जञानीत षा कममति योगाभयासी सवधदीशरषठद तद योग कर, योगक सदश अनय नह । इति इसस योग सदव सवन करन योगय ह बहमा पिषण महशादिक जो बड वद महाएरप ह वा जनय सहषि रोग सौ सव कवल योगक दवण सिदधिद मपतदय ह सौ घातावद‌

` शाख वा एराणोमि असिदध ह हम कतक वरणन कर । अव आजकल परायः मनषय कवक नाकपर दाय छदनकोदी योग वा माणायाम समकषत द इसत जप तप आसन पराणायाम सिदधि कहि मातत हौ जोर जाहमण- तव दननियतव हीना तो वहतदी शशक. द इसी रद नासतिक रोग असिदध तथा पोप पत मिय वचन कहत £ यदि जान तो मतयकष सिधि दवारा उनक खस तोड जाप अपन कताथ समजञ ओर यौगकति मय ती बहत परव उन सरबका सार सार शरीमनमहाराजाधराज शरीसवाई मरदरतापरिह बहादर दीकम गदकी अजञालकतार शरीमतपरमहत,परिना- जकाचाय शरी १०८ नहरतददासतजी वा शरीमनमहत कदातवयय शरी १०८ सवामी अयोषयादासजीकी दिषषादसतार योगकषिया सीखकर‌ यह यौग भय शरीमतपरमहस शरीमदान‌ छगलदासजीन बनाकर मकत किया भाषातवाद सदित जी इसम शरख वा बशदधि हौ सो सव सननन जनोक निमदन द कि कपाकर सधार दव, । आपका-कपापातन शरीमतपरमरदस शचीयत जगरदास सथान टीकमगडजगरनिवास वाग मदिर.

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॥ शरीः ॥

शरीमत रामानजाय नम & ‡ £ च यगमामपरकयकालर

अथात‌ योगरहसय गरनथ ।

भाषाटमिसमत । ~-">--रठ५ल

~

ऊॐतततदरहषण नमः ।

सचचिदानदरपाय रामायाधिषटफरमण॥ ससारधवातनाशाय राघवाय नमोनमः ॥१॥ ॐ तत‌ क तोन सत‌ क सो जा अविनाशी वरहम ह

ताक अथ नमसकार करद सचिदति । सत‌ चित‌ आनद सतर कद जो तीनकारकिपि एकरस‌ वततमान द चितर क जो साकषात‌ जञानसवरप आनद जो सखसवरप एवभत जो उचिषठकम शरीरामचदरतिनक अथ नमसकार ह फरि कस ह ससारको जो मायामोददपी अधकार ताक नाशकता ह ॥ १ ॥

रामारजाय शताय यसत परमातमन ॥ साः गशवराय शषाय भयोभयो नमामयहम‌ ॥ २॥

१ नमोनम. इति याठः साधः ।

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(६) ˆ योगरहसय |

रामाबज जो साकषात‌ शपभगवान‌ शतिसवहप पर मातमा योगशवर अथात‌ योग जो - बरया तक परपराक आचायय तिनक अथ वारवार नमसकार कयो॥२॥ `

परणमथ सवामिन दव शरणय दीनवतस- लम‌ ॥ यकषणा हिताथाय योगमागऽ- भिधीयत ॥ ३॥ फर अपन जो गर सवामी शरणय दीन वतसल

अथोत‌ दीन‌जनोफ दितकारक तिना मणामकरिक घष जो मोकषकी इचछा करनहार जन तिनक हितकर अथ योगको जो माग अथात‌ आसनपराणायामाि जो राजजोग सो वणन करोह ॥ ३॥

ससाराणवमभरना जञान नोक हि कथित ॥ योगिना सखभ ततर ददम विपयपि णाम‌ ॥४॥

= - ससारपी सखवक विप म अथात‌ इवनवार जो मचपय तिनक एक जञानी नोकारप उपाय द सो जञान योगीजरनोकरिक योगदारा शीधही भातत हयद विषयषी अथोच‌ विषयी जीव करक दभ ह सो वाता बहमान- भ

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भापादीकासमत। ` (७)

दजीन योगकलपहमधम कथन करीर ॥ यथाजञान वदतीद विमोकषकारण तनायत नष विलोकचतसा ॥ रसय न योगन विना परणशयति तसमाततदथ हि यतत साघकः ॥ १ ॥अथ-ययपि बरहमजञानी मोकषकी परातिका कारण ह तथापि चिततकी एकायता इयषिना सो जञान नही सभद सो चिततकी एकागरता विनायोगाभयासक नही हवह तास सदव योग साधकररपको करना उचि-

-तद ॥ 9 ॥

ञानाहत न खतिरसयाययोगन विना नहि ॥ स च योगः एरा परोकतो हनयासदिव सि दशयात ॥ ५॥ ।

जञानत रहित मोकष नही अरथात‌ नितय नमिततिक जो करम सो कवल जञानहीक अवातर ह सो वाता शरीमद‌ शकराचाययन वदीतिसारविप कथन करी ह ॥ यथा- नितयनमिततिकपरायञिततोपासनावछठनिनातःकरणङदधिः ॥ नितय नमिततिकपरायसितत उपासना इनक अनषठान कर‌- नत मन उदधि चितत अरकारखपी जो अतःकरण सो शष परातत दोवह ॥ मोकष कवर जञानदी दवारा परापत दसो जञान दिनायोयाभयास नदी सभव कादत किः, चिनततकी वततिया वहत चचर ई ताति उदकी एकायता नी होवद यथपि

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(<) योगरहसय ।

जपतपादिशभकमकरिक उदधिकी णएकारता होवद तथापि जिसपरकार यीगाभयासस बदधि शदधिताद पराप दोवद तसी अनय उपायोकरिक नदी कत करि जप‌ तप‌ उपवास, उपातनादिक कमपस योगाभयासका अधिक फल द सो वातौ अथवणवद‌ उपनिषद कदी यथा-कषणमकमासथाय करतशतसय फरमवापरोति ॥ अथ-एककषणमार भी समाधिम सथित योगी सो यजञको फर परातत दद तथा अचिसहिताम कथनकषि- य ॥ यथ[--योगाससपरापयत जञान योगो धरमसय रकष- णम‌ ॥ योगः पर तपो जञयः तसमाचकतससमभयसत‌ ॥१॥ न‌ च तीतरण तपसा न सवाधयायन चजयया ॥ गरत गत दविनाः शकताः योगातसपराठवति याम‌ ॥ २ ॥ अरथ- योगत जानकी परति दव द योगी धमपापतिका रकषण तथा योगदी घर तप ह तात सवदादी योगसाधन करना चादिय । तथा योगभयासकि जो गति परात हवह सो तीतर तप जप वा वदपाट वा यजञादि शभकमक करन नही सो वाता याजञवलकयसहिताविय कथन करीर ॥ यथा-इसयाचारदमारिसातपसवाधयायकममणाम‌ ॥ अ त -परमो धम यथगनातमदशनम‌ ॥ १ ॥ अरथ- पना आचर‌ ददियोका दमन तप वा वदाषययनादि सव-

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भापारीकासमव । (९)

करमति जो योगाभयापत करिक आतमाका साकषातकारक- रनासो परम धम ॥ तथा दकचसमरती-खसवध हि तदर सी इमारीखख यथा॥ अयोगी नव जानाति जायघो हि यथा घटम‌ ॥ 9 ॥ अरथ-जत योवनअवसथाकी सरी पतिसभोगजनय सखकर आपद अचमव करर तम नरहमानदसखकर सवय योगीदी अदभव करतह अनय नदी जस जनमाधपरपङर घटक सवषपका वोघ नरी तसदी अयोगी उस‌ बरहमको नही जानत तथा साखयसम कपिलाचायथनमी काह ॥ यथा-नोपदशशरवणपि कतकतयता परामशाहत विरोचनवत‌ ॥ अरथिना योगाभयास कवल वदतिवणमाचसदी कतकतयता नदी जस दतयकि पाति विरोचनङक बहमास उपदशशरवण दोन- परमी जञानकी पराति नदी होतीभह तथा अतिरभभी कादि ) यथा-भथ तदशनठपायो योगः ॥ अरथ-तिस आसमक साकषातकरणम एफ योगदी उपाय द ॥ तथा कममषराणम महादवजीन कदाई ॥ यथा-योगाचिदद- ति किमव पाषयजरम‌ १ सनन जायत जञान लानाति- बणमचछति ॥ १ ॥अरभ-रयम योगरपाभरिकरिक सम- सतपारपाका नाश करिक अतःकरणङचदधिदारा सवचछ जञान भरापतदोवर जञान रापत भय कवलयपद अरथात‌ मोकषपद भाप

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(१०) । योगरहसय }

दोद ॥ तथा-शिवसदिताम शिवजीनभी काद ॥ यथा-ञरोकय सवशाघराणि उविचाय पनः पनः ॥ इदमव समतपनन योगशासर पर मतम‌॥ ३ ॥ अरथ-शरीम- दवजी कदतर करि, द परिय भन सशाखको दखि वा विचार करि वारवार यह निशचित किया कफ एक योग शाघर परमम इसक समान कोई अनय मत नी ॥ तथा गोरषसहिताम काद ! यथा-एतदविषकतसोपान- मततकारसय वचनम‌ ॥ यावत मनो मोगादासकत पर- मातमनि ॥ १ ॥ अर‌-जव योगाभयास मन विषयति दटिजाता तव ईशवरम परापत दोवर तव‌ म जराकोभी जीतकरि कालक खली वचना करद तिसस अवय सकतिका सोपान यदी कमप द इसकारण योग सव सव वद वा मदातमाओका मत ह करिसीन खडन नही किया तिस योग परम सवनीय ह सो यग परवकालस परसिदध

विण द कवल अभयासमाभरतदी सिदध दोमह ॥ ५ ॥ [3 6, = [> [नल‌ शबरदिसवगलोकष एदरागहादिष ॥ विर

कतसय योगसय सिदधिभवति नानयथा ॥ ६ ॥ , ददपदको जापि खोक क जो दवलोक , तथान दारा गदादिविप जो परप विरकत द तिस परपकोरी ' समयक भकार योगकी सिदधि दवर अनय ।

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भाषारीकासषमत । (१३)

वातता योगसतरम कथनकरी द ।॥ यथा-विरकतसथव ततसिदधिः ।। अरथ-विरकतरपदीको तिस परमतमाकी

~,

शराति दोवद ॥ &॥

परशतचिनततसय नितदरियसय यणाषतसया- यरसविनशच ॥ नन मवोगसमसतसिदधि- नानयतरासकननसय कसम ॥७॥

छ जितदरी विदवान‌ सब परकारस यरसषी वन क निय करक तिस परपदीको योगकी सपण सिदधि परापत होवह इतर जो विपयादिकोमि आसकत तिनको नही 9

एकति विजन दश शोभित वहपादपः ॥ कययोयोगमट धीमान सरवतो भयवनजजि- म‌॥<.॥

एकात जो विजन दश अथच‌ वहतस मयरयोकरिफ रहित दश ओर वकषादिकनकारक शोभायमान ताषिष योगमठ अथतच‌ करी वा राषठ वना ओर दनम नट‌

वनापि कदत कि अननादिकोकवासत आनजानपडगा आशरम मरासक नजदीक होना चादिय सो वातता मनसम- तिम कथन करीर यथा-पराममतराथमाथमत‌ 11 अरथ-

१ आसमतात‌ शरसवितसव ! २ एकाकीतिषाठः-पाघः ।

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(१२) योगरहसप

अनिमितत भामक नजीक आशरम कर जाम कोई सिह वयाघर सप वाय इतयादिकाका भय न होव पसा सदर सवचछ आशरम बनाव ॥ ८ ॥

सवधरमनिरतः . शतः सरवशौचसमनवितः॥ वषयकतकममसयतता भागसकदपवाजितः॥९॥

अपन आशरमक धमव निरत‌ शात अथौत‌ नरहरि चलायमान बदधि क परमी हो जाकी सपण शोचकरिक यकत विधिपवक कमरसयकत मोगादिकोकी इचछाकरिक रदित ॥ ९॥

यमशनियमयकतः सतयधरमपरायणः ॥ सशामन मठ यागा यागाभयास समाच‌- रत‌ ॥१०॥ यमनियमसयकत सतयधम जो आतमनिङपण अथ

वदातशरवणादि ताशि परायण सो सदर मठक त योगी जो ह सो योगाभयास कर ॥ १०॥

॥ अथ योगभदनिषटपणम‌ |॥

मअयोगो यशचापि हठयोगसतयव‌ च ॥ . साजयोगोपि व त चतदधौ सपरकी- तितः॥ ११॥ न

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भाषाटीकासमत । (१३) भ 1 अब आग चासिरकारक मद वणन करर पथम म

योग‌ १ तथा लययोग २ इटयोग ३ तथा राजयोग ४ इन भदनस चारिपरकारका योग परवोचारमयोनि कथन फियाह सो वाततौ सचरीपटलक विव कथनकरी ॥।यथा- मजो हय लयो राजयोगोय भभिकाकरमात‌ ॥ १॥ ॥ अथ-मतरयोग हठयोग लययोग राजयोग इसतरह चारिमरकारकी योगममिका ह तहा परथम मरयोग बणन करयरौ ॥ १३ ॥

॥ तरयोगनिपणम‌ ॥

शासनिषकासकाल हि हकार परिकीरतयत ॥ पनः परबशकार च सकारः परोचयत घधः॥ १२॥ जव शास बाहर निषकासद परापत हो अथात‌ वार

निकर तव हकार शबद‌ उचारण कर ओर जव फरि भीतरको जाव तव सकार उचारण कर सोई वातता अननय- जीन कथन करी ॥ यथा ~ जव शासा बाहर‌ ङआव 1 तव हकारशबद‌ उपजाव ॥ जव चासा मीतर‌ सचर तव सकार शाबदहि स 9२] परातसतथाय मधावी सकटपवधिपवकस‌ ॥ शर पदशतो योगी मनयोग समाचरत‌ ४१३॥

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(१४) योगरहसव ।

उदिमान‌ भरातःकाल उटिकरिक गरक उपदश विधिवक सकलप‌ कारक मजयोग जो ह ताको समयक‌ परकार आचरण कर ॥ १३॥

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एव करमण कतवयमहोरामविसमरत‌॥ सोदमातमति विजञाय न किचिदपि चित यत‌ ॥ १५॥ एव कद यदीपरकार राननिदिवसिष जप कर अथौत

समरण करतारद अभयास नदी छोड सो वातौ सचरीप- टलबिप कथन करीद ॥ यथा - “ वठत चालत डोरत बोरतः शासा शबद हदयम खोकत‌” इसपरकार सदव अभयास करना योगय दोहा-जो परो सतयरमिर, जञान कति सव दय ॥ भवसागर जीवको! पार गवि सोय ॥ दस रस इस मनका सवदादी जप करह परत जानत नही सो यरषसदवारा जानना सपशनानाडीविप हसहसक उकटा- स सोद सोह जप दोवह तिसका नाम‌ मरयोगह जव सोद नाम सो परमातमा भ ह दसी जान तव को वित- वन नही रह ॥ १४ ॥ +^

गणश च. विधि पिण शव जीव तय शि $ [स‌ धव‌ च ॥सवामन सचचिदानद करमाककरष च तयत‌ ॥ १५ क

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भापायकासतमत । (१५) `

जपको विधान करर गणशचति। गणशतरघा षिषण शिव जीव‌ (गर) ओर सचिदारनदतरहम कमत चकरनविपि चितवन अथोत‌ धयान करना चादिय सो धयान वणन क आग चकरको विधान कद ॥ १९५ ॥

_ ॥ अथ चकराणि ॥

मलाधार मणशोसति सवाधिषठान परजापतिः ॥ मरार तथा तणरनाहत तथा शवः॥१६॥

चकर नाम तथा दवता अयपिषटाता-कदर परथम आधार चकर ह नाम जाको ताविप गणशदव विराजमान द ॥ 9 ॥ दसरा सवाधिषठान नाम चकर ताविष चतयखतरहमा विराज- मान द तथव तीसर मणिपर नाम चरविप साकषात‌ विषण विराजमान द चौथ सनाईतचकराविप शिव विरज मानद॥ १६॥

कठकप वसननीव आजञाचकर ततो यरः॥ ततथ सचिदानदः शय वयोशरि हि तिषठ ति५१७॥ पौचवा विषदधनाम चकर तथा कटकपभी नामधय ई,

ताविप जीव तिषठद रषवा जाजञाचकर तारि यर ततःक ताक अनत सचिदानद साकषात‌ सवत पर जो आकाश ताक विप विराजमान ह 1 १७ ॥

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(१६) गोग । ॥ अथ धयानसवरपमाह‌ ॥ ~

भर चतदलोपित वसाताकषरसशरय ॥ च तभनयदारग भय ॥ १८॥ अव वयानका सवहप वणन करद किः मक जो

आधारचकर तविप चतदखयकत कमर चारिभकषर वका

सत लकर सकारपयत बय प स‌इनकरिक शोभायमान तस चतर चारिथजनकरिक उदार ह अग जाक पणीजो चदर तकसोशोभायमान सवरप इसपरकारका

धयान‌ कर ॥ १८ ॥ सोदमसमीति विजञाय गणश शकतिसयतम‌ ॥ दवितीय पडदखयत पडकषरसमनवित ॥१९॥ शकति जो दवी ताक सदित जो गणशसोभ ह

इसभकार जपधयान परथमचकरम करन योगय ह दवितीय क दसरा चकर अथोत‌ कमल द सो पद‌ दल क दरो - करक तथा पदर अकषर वकार ठकरि लकारतक व भ स य रक इन‌ अकषरोस यकत ३ ॥ १९॥

चतखख चतवाह सपरसनन छचिसमितम‌ ॥ क दव धातार शकतिसयत-

१ धयायदितिरषः । २ धयायदितिगतनानवय‌ः !

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भाषायीकासमव । (१७)

चतयख कर चारिडख चारिवाइ सपरसनन शचिसमित करमद धारनकर दव धाद शकति जो सावितरी दनी ताकरिक सहित शोभायमान द ॥ २०॥

सोदमातमति विजञाय तदधयान हि जगतम- भरम‌ ॥२१॥

सो आतमा मद अथोत‌ सो वरहमा म ह इसपरकार अभद चितवनकरना सोह षयानषप र ॥ २१ ॥

मणरर‌ दशदर कद मधयातसञतयत ॥

दादशायखछनाटसमिचकताम कशराऽनवि- त ॥२२॥

मणिपरकनाम जो चतथ कमर ह सो दश दलकरिक तथा दशसकषराकारक यकत डडटणत यथद‌ धनप

फ इनकरिक यकत कदमधयत सखतथित अथात‌ उतपनन दवादशायल ह नार जाकी रकतया कशरानवित द ताक

विप ॥\२२॥

वासदव जगचोनि पदयपतरानभकषणम‌ ॥ चत- भनयदाराग शखचकरगद‌थरतम‌ ॥ २३१ वासदवभगवान‌ जगदोनि पदययतरनिमकषण चतज

उदार अग हद रखचकरगदाकोा चारण करर ॥ २२ ॥

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(१८) योगरदसय ।

नरोतपरदलामास रमया परिसवित‌-

म‌ ॥ परभामिभीसयदरप भकतानामभय करम‌ ॥ २९॥

नीरोतपर जो नीकम ताक दरकी नाई आभास क शोभा द जिनकी, रमा जो लकमी ह तिनकरिक सवित ह भरमाजञो काति ताकरिक कामान ह सवरप जिनको अततः ज ह तिनको अभय अयौत‌ मोष दनवाल ॥२९॥

मनसालोवय दवश सवदववर हरिम‌ ॥ सोहमसमीति त मतवा यानयोगविदो विदः ॥ २४५ ॥ ॥

ह दवश विषण ई सव ञ दव तिनकिप ह तिनदीको मनकरिक चितमनकर सो विषणम मानि योगीजन धयान क ॥ २५ ॥ अतः पर हानाहत पद दरादशपतरक ॥ वयाघर- चचमावरयर‌ शशव परयद‌शनम‌ ॥ २६॥

अतः क मणिषरकत पर जो अनाहतचकर पञच ह सो दवादशपजकारक शोभायमान दवादशअकषरोकरिक यकत द ताविप वयाथचमामबर धारण कर शशी जो चदमा

क ३ ताक नया ई परियदशन जाक ॥ २६॥

प बर महा पसा

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भापारीकसमव । ` (१९)

पदमासनसमासीन दवश गिरिजायवम‌ ॥ ज- गतसहारकतारमनतबरपारषम‌ ॥ २७॥

पदमासनकारिक विराजमान दवश गिरिजायकत जगतस हार करनवार अनत ह बर पौरष जिनको ॥ २७॥

अहमवति या बदधिः सा धयानष सम ततः ॥ २८ ॥ ( | एवम‌त जो शिव सोभ ह इसपरकार जो बदिसो

धयानक विप समत द ॥ २८ ॥

विशद पोडशदल पोडशाकषरसयत ॥ जगतकारणकततार जीवातमान सनातनम‌ ॥ २९ ॥ साहमातमत याद‌: साधया

मष समततः ॥ ३० ॥

विङशदधनाम जा चकर अयात‌ पञच षाडशपन तया पोड- ४

शअकषरोकरिक सयकत तावपि जगत कारणको कतो जीवातमा सनातब‌ ॥ २९॥ सो अतमा ह याउदधि षयानक विपि समत ॥ ३०॥

शचवामधयऽतरातमान यर परमभासवरः

य‌ ॥ अहमवति त मतवा हसमितयकषरद‌- यम‌ ॥ ३१ १ -

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(२०) । योगरहसय ।

आकञाचकर शवनक मधयविप अतरातमा कर वयापत द एव भत जो गर. परमभासवर परकाशमान सोम ई पषा त क दोन यर द दस य दो अकषर ताकविप द ॥ ३१ ॥

अतः पर निन नितय विष वयोमकवड- टम‌ ॥ एक जयोतिमय शातमनतमचछ वियमर‌ \२३२॥

अतःपर यात पर निज क निजसय नितय कर सवदा एकरस विजदध आकाशकीनार टट एक जयोति- मय शात अनत क नीद अत जाको अचल विभ क ददीपयमान ॥ ३२ ॥

सग सवकततारममतिमनमनययम‌ ॥ अह‌ मव पर बरहम सिदानदलकषणम‌ ॥ ३३ ॥ सवग अयात‌ सवीतययामी सवकतता ` अथोत‌ उदव

सथिति सहारकततौ, अमत अथात‌ नरी ह तादश भति अज क जनमरदित अवयय नाशरहित एवभत जो परतरहम ह सो एष कद नियकारक सचिदानदरकषण भ द ॥ ३३॥

पदरशत च गणशाय‌ पदटसदसर च बरहमण पदसदस च परभव पटसहस शिवाय

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भाषाटौकासमत । ` (२३)

नध ॥. २९ ॥ जीवातमन सहसर च सह सवामिन तथा ॥ पपमातमन सहशच च जप चितय समपयत‌ ॥ २५ ॥ पट‌शत अत‌ छ सौ ६०० गणशजीक अथ तथा

छ हजार &००० बरहमाजीक अथ तथा छ हजार ॐ ०० ओषिषणभगवानक अथ तथा छ हजार &००० शिवजीक अथ पनः ॥ ३९ ॥ एकसदसर १००० जीवामाक अथ तथव एक सदख १००० सवामीज शरीगरजी तिनक अथ तथा एक हजार १००० परमातमा जो बरहम ह तिनक .अरथ जप .नितयपरिति समपण करना चादिय ॥ ३५॥

एकरविशतिसाहस षट‌शताधिकमव च ॥ साधकसय भवचितय जपसखया हि मो- कषदा ॥ ३६ ॥ । इकीसदजार छ! सौ २१६०० इस साधकपरषकी

जपसखया नितयरी दव ह सो सखया मोकषक दनवाली होषद ॥ २६ ॥

खदा सोह सषराया भासत दहि सवभा- वतः ॥ सरवकरमाणि सतयकता जीवनम- कती भवततदा \ ३७ ॥

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(२२) योगरहसय ।

यदा क जिसकारम इस साधकपरपक सवभावतरी सोर शबद‌ यना चहमनादीविप उतपचच दोव द उसकाल- परी सव कमनको तयागकार जीवनमकत होव ह अरथात‌ ददाधयासररित रोवद ॥ ३७ ॥ 1

नशचधान तषा निदरा शीतोषण नतः च 1 न मतयरनातकः दधो वाधत त च योगिनम‌ ॥ ३८॥

नकषधानपिपासरान निदरातथा न शीत उषणन‌ मतय न अतक जो काल भगवान तिस योगीको कोई वाधक नदी अरथात‌ कोई वाधा नही करद ॥ ३८ ॥

यन द पर बहम सोह तरदयति मनयत‌ ॥ कि चितयति निशचितो निविकारोऽतिनि- मरः ॥ ३९ ॥ जापरपकरिक पर बरहम अथोत‌ परमातमा दषट ह

सो बरहम ह या बदधिविप सथित ह फिचितयति सो चमी वितमन‌ नही करद अरथात‌ निशित ह निविकारी अतयत निमक द ३९ ॥

यदजञानाजगननात सदा सतयन‌ भासत ॥ सोद बरहति विजञाय न काकषति न शोचति ॥४०॥

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भाषादीकासमव ! (२३)

निस‌ अजञानकरिक जगव उतयतन ह सो जगत‌ सवदा सतयकरिक नाशमान ह सो बरहमभ दर एवभत जञानी न काकषति न शोचति" न कोई वाचछा न शोच कर॥ ४० ॥

तदा वदधो यदा जीव फिचिदरानछति शोचति ॥ तदा मोकषो यदा चिततन शोचति न वानछति ॥ &१ ॥

तिसकालविय दी जीव वदध द जिसका कछभी वाछा वा शोच द तदा क तिसकारविषही मोकष द यदा जिकालम चिततावष शोच वा वाछा छ नही ह ॥४१॥

मजयोगो मया चोकतः गरकतशच सनिभिः, परा ॥ यमसयच फठ‌ कत बरहमतलय पर

कीरतितम‌ ॥ ४२ ॥ मजरयोग जो ३ सो दमकारफ कडा जो कि परवकारविप

सनीननभी कदाद सो इस मजयोगक फलक कडा वणन करः यह साकषात‌ बरहमवलय ह ॥ ९२ ॥

इति शरीयोगमारमभरकाशिकाया मतरयोगवरणन नाम परथमोपदशः । १ ॥!

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(२४) योगरहसप ।

॥ भथ छपपोगः ॥

दषटिः सथिरा यसय विनव ददयाद वायः सथिरो यसय विना निरोधात‌ ॥ चितत सथिर यसय विनावटवात‌ स एव योगीस

` गः स सवयः ॥ 9 ॥

अव कययोगक रकषण कद विनादी नासिकाका अन‌- भाग दखनस‌ जाकी दष सथिर ह विनादी पराणायामोक वाघ सथिर ह, विनादी अवरवक अथोत‌ पटचकरक धयान कर विनाही जिस परपका चितत सथिर सोह योगी धी यक वा सवनीय ह ॥ १॥ |

, अथासन दद वदय सदा विधाय शाभ- नम‌॥ समातसकषमतर नाद सषसराया परामशत‌ ॥२॥ रययोगकासाधन कह जथ क जा मयो अन-

तर आसन जो सिदधाततन तथा पदमासन ह तादि दढ वाधि- फार शभवी जो सचरीदरा ई सो धारनकरि सपतच। बरहम लाडीविप समत सपन जो नाद तादि भरवण कर ॥२॥

चिणीति परथम नाद चिचिणीति दवितीय- क ॥ वटानादसततीय च शखनादशच-

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भाषारीकासमत । (२५)

तथक ॥३॥ तत पचमक नद प ता परचकषत ॥ वशीवासतथा चानयो मदगसतदनतरम‌ ॥ ७ ॥ भरीनादसतथा ततर दशमऽञरसमो भवत‌ ॥ नवम च परि- तयजय दशम यः समभयसत ॥ ५॥ भितवा सवणि करमाणि चिदानदायत ततः ॥ £ ॥

ता नादक पितमनविप परथम चिणी ठसा शवद दोह दस चिचिणी तीसर घटा चौथ शखनाद ॥ ३॥ पाचव वीणा छठवा तार कथन‌ कसय तथा सातवा वशीवा

-मरदग तक अनतर ह ॥ 9 ॥ तज नवमा मरीशनद तथ दशम अघर क मधसतमान शबद‌ होवह नवम जो भरी ताहि परितयजय अरथात अभयासकरि दशम जो नाद‌ ताहि अभयास कर ॥ ९ ॥ सो सपरण कमरथि ताहि मदनकरि

बरहमानदक‌ परापत दोवह ॥ & ॥ , 1 अय‌ नादसय फटम‌ ॥

चिचिणी परथम दह दवितीय गजभननम‌ ॥ ततीय खदन याति चतरथ कपत शिरः॥ ७॥

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(२६) योगरहसय ॥

पचम खयत ताटशमत दिलयरपिणम‌ ॥ भकतकासत तथा प .बदधोपि तरणो भवत‌ ॥ ८ ॥

, अव नादक फलकः वणन‌ कद परथम‌ ददविष- चिचिणी दविह तथा द गारखकी नया मातहोव तीसर सवदर परात होव तथा चतय नादि शिरकपन होवह ॥७ ॥ पचमनादविय ताद सह अथात‌ तीटविप चदरमा तति अगरत दिवय सवह षषट नादविप वा अमतकर पान करि वदधपरपमी तरण होजातार ॥ ८ ॥

सपतम चासति विजञान परावाचाषम तथा॥ नवम योगिनो दह पणयो गधो भवद‌ ध- वम‌ ॥९ ॥ दशम‌ महय सपरापय नवाण मधिगचछति ॥ १० ॥

सम नादविप‌ विजञान अथाद‌ भरोकङता हवह तथा आढ परावाचा अरात‌ पडपकषियोकी मापा जानिवक समथ दवर नवयोगाभयासीकी दहविप पणयगध अथोत‌ अनछी उगष उतपनन दोनद ॥ दशम अमदपदक पाहो . कर मोकष परारोव ह ॥ ९ ॥ १० ॥

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भाषारीकासमव । (२७ )

सद। नाद‌ाचसधानालकषायत पपिसच-

याः ॥ निरनन विरीयत निधथित चितत- मारतो ॥ १३ ॥ सदा सदय नादक अटपधानत पापनक सह नाशषर

परतत होय निरण चतनयविप निचधयदी चितत ओर वाय लीन दोय ह ॥ ११॥

यथा निरिधनो दीपो सवयमवोपशामयः- वि ॥ बथा इततिकषयाितत सवयमवोपशा- मयति ॥ १२॥ जिसपरकार निरिघन अथौत‌ तरवाति विना दीपक

आपी आप शात हव तसही गणदोपरप‌ “बतति कषय - दोनत चितत आपदी आप शाता भरापत होय ॥ १२॥

निरतरकरताभयासादयामा विगवकलमषः॥ स-

वददादिः विसमतय तदभिननः सवयगतः॥१२॥ निरतर शध चितत होक जो योगी नादका अचसधान

करगा वह दहादिकरमस रदित आतमास अभिनन रोजायगा अथौत‌ आतमसवहप होजायगा ॥ १६३ ॥

यः करोति सदानयास यपताचारण मान- व: ॥ स व बहमविीन सयात‌ पापकमर- तो यदि॥१४॥

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(२८) योमरहसय !

जो मनषय गताचारकरिक शसका अभयास करगा वद यदि.पापकमरतमी रोव ती उषी मोकष होवह ॥ १९ ॥

- वदध त नादवधन मनः सयजय चापट- म‌॥ परयाति सतर सथय छिञचपकषः खग यथा ॥ १४ 1 | नादपी वधनकरिक वधो भयो मन अपनी चचलता

छोडिदहद जानि सो निचवयकारि सथिरता पवि ह ज पषदीन पकषी आपरी सथिर हवि ह ॥.१५॥

मकरद पिनभरगो गध न‌ तयजत यथा॥ शबदासकत तथा चतत विषयान हि का-

कषति ॥ १६॥ जस भमर पषपरसको पानकरत इए भधको नकष

छोड ह तसदी नाद आसकत चितत विपयनको नदी काकषा कर ॥ १६॥ ध

नरपन चससपशन‌ गध न च वरमम‌॥ नातमान नवापर‌ वापि यामा यकतः समा- धिना १७

न रप न सपश नगरषद नरसह न अपनीवा पराई आतमा द कवर योगी समाधिकररिक सकतर ॥१७॥

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भाषारीकामत । ` (२९)

अभदयः सरवशखाणामशकयः सरवहि नाम‌ ॥ परनषटशासनिशवासो योमी सकतः समाधिना ॥ १८ ॥

सशघलनकररिक अमय अरथात‌ वधय नरीह सपण भराणनिक ररक अशस अथात‌ पराकमत राहत ह परकप‌

कारक नषट ह धाषानशवाकत जाकापता योगी समाधि-

करिक मोकषरप ह ॥ १८ ॥

गोपनीय परयतनन सयः मरतयपकारकः ॥ निवाणदायको छोक योगोऽय मम वह भः॥ १९॥

यह जो ठययोग ह सो परयतकरिक गोपनीयद निनधयकिकि चिततबततियोको नाशकारक द लोकविष मोकषको दनवारो ह इसह खययोग इमको अतयत परिर ॥३९॥ ॥

सययोगऽयमितयकतः सयो व मोकषदो च- णाम‌ ॥ यो योमऽसमिनसमारटः परषः काटवचकः ॥ २०॥

› ठकययोगनाम जो "योग हमन काद सो निशवयकरि

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(३०) ` योगरहसय ।

मतषयोको शीघरी मोकषदाता ह इस योगविष समाहढ-

रप काररवचक अथौत‌ कारकी रवचनकरयवाय दीय

ह॥२०॥ ,

इति भरीपोगमारमभकाशिकाया ठययोगवणन

नाम‌ दविवीयोपदशः ॥ २ ॥

) अथ हठपोगवणनम‌ ॥

जगसतरदगाटकसततमाशय यमादिसजञ अनिवययसषितम‌ ॥ समासतसतसय फल च छकषण बदामि बदषिमताचरोधतः॥१॥

9

अब‌ हठयोग कथन‌ करह जिस हठयोग वा राजयोगकी परपरति यम नियम आन पराणायाम परतयाहार धारणा धयान समाधि इसमदस ऋपिरोगनि गान करह तथा याजञवलकयादिकरिक सषित द ता योगक समासफलदर वा रकषणक बदधकपिअरयात‌ याजञवसयवशिटादिकफोक मतक अनसार वणन करोर ॥ 3 ॥

भतयादारासनधयानपराणायामासतथव‌ च ॥ धारणाऽथ समाधि हठयोगति मदयत ॥२॥

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भाषारी कामत । (८३१)

आसन पराणायाम परतयाहार धारणा धयान समाधि इसपरकार षडग रवयोगकयिय कथन कर तथा अषटागभी द ॥२॥ |

यम‌ नियमभचव‌ पराणायामशचतथकम‌ ॥ तताय चासचन परव परतयाहारसत पचम

, म॥३॥ धारणाथ‌ समाधिशच तवषक , सौखयदायकम‌ ॥ ततव दशधागानि यभ-

सय नियमसय च । ७॥ यम‌ नियम आसन पराणायाम परतयाहार धारणा धयान

समाधि इसपरकार अषटागभी सौखयदायक दहवयोग ह तहादीकविय यम वा नियमक दश दश परकार अग वणन करर ॥ ३ ॥ ७॥

॥ भथ यमलकचणम‌ ॥

सतयमाजवमासतयमाहसा च सताश-

नम‌ 1 कषमा दया धतिः शौच बरहमचरय परिगरहः ।। ५ एत चखनिभिः पवः क- थतासत यमा दश 1 &॥ यम‌ निरपण करद सतय आजव असतय अरहिसा

मिताशन कषमा दया धतिः शोच बरहनचययधारण इनक- , रकि पकालविष यम कडा ॥ ५॥ ६ ॥

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(३२) योगरहसप 1

॥ अथ नियपटशषणम‌ ॥

जपसतपो दानमथागमतिसतथासतिकः- तव बतमीशवरारचनम‌॥ तथाितोषो मति- रपयपतरपा बधरत नियमाः समीरि ताः॥ ७1 र ॥ भथ आसनान ॥

तथा नियमलकषण कह जपः तप, दानः वदातशरवण आसतिकय) अरत, ईशवरपजनः यथालामसतोष, मतिः

भय लना बध क यगवतता तिनन य दश नियम कथन‌ कर तथा यमनियमक -फलगर योगसतरम कथनकर “ सतयपरतिषठाया करियाफलाशचयतवम‌” विरकारपयत सतयघाकय पालनकरनस तिपतपरषका वाकय ससयदी- दवि 1 `जिसकाककिि असतययततकी दढता होव तो सवदिशाति मणिषकत‌- फलादि आनिकर परातदवि“अरिसापरतिषठाया ततसतनिधो वरतयागःःचिरकालपययत अदिसातरतपारनकरनत दी तिसपरपक समीपवरतयागकर नदधलसप मगि आनद‌- परव विचरतरःधरहचययभतिषठाया वीयराभःरहमचय इततक सथिर दोनत जो जप तप वरतादिकडपकरिया सो सव वीयवती दती तथा आप सिदधभया परप अनय

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भाषाटीकासमत । (३३)

साधरकोको कषानोपदश दव «“ सतोषावततमषठस- छामः" चिरकाल सतोष धारणकरनत अदततम सखका साम दवर ॥ ७॥

॥ भयासनानि ॥

सिदध च पदय च सिहासन च भदरासन ` कमभमयरपीठम‌ ॥ एतानि सरवाणि भया-

पानि सरवष यखयानि विवरणितानि ॥८॥ आग दढयोगका चरतीय अग जो आसनदहसो वरणन

करर सिदधासन, पदयासन, सिहासन भदरासन, कमोसनः मयरासन जो ई सो सपरण जो राजस तामसधमस वात- पिततकफादिकोकी बाधा ताहि दरिकयिविवार द तथा सपण योगमनादि तिनकविष यदी आसन ससयह वस आसन तौ बहत ह सो वातता मोरकषशतकविष कथन- करीर ॥ यथा-आसनानि च तारवति यावतयो जीवजातयः ॥ एतपामसिलानमदानविजानाति महशवरः॥ १ ॥ अरथ-आसन तदतिक जातक जीवजाति द इनक सपरण भदनको कवर शिवजीदी जानतद यात सखय सखय आसन करद. तथा साधनाशसख जानखनो ॥ < ॥ ,

1:

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(३४) योगरहसय ।

चतराशीतिषीटष चतषक योगिनो मतम‌।।

सिदध पदय तथा भदर सिहासनमितीरितम‌॥९॥

चौरासी आसन शरीशिवजीन सखय वणन कर तिनम चारि आसन योगीजनक समत ई सिदधासन १ पदचा- सन २ भदरासन २ सिहासन सोई वाततो योगपरदीपि- कावि कथनकरीर ॥ यथा-चतराशीतयासनानि रिवन कथितानि च ॥ तभयशचतषकमादाय सारभत अरवी- मयदम‌॥ १ ॥ अरथ-चौरासी आसन शिवजीन परवका- कालम कथन कर तिनम चारि आसन सारभत अरण करि करद “सिदध पदर तथा सिह भदरवति चतषटयम‌ सिदधासन पदमासन सिहासन भदरासन य चारि आपन यखय ह साधनाश यरषठखत जानलनो ॥ ९ ॥

योनिमल वामपाद दकषपाद तथोपरि ॥ सवरद खषटिः पवनानयाए सथय रत‌ ॥ १०१ एततसिदासन पराहः कचि ` दासन विदः ॥ सिदधासनमिद घर प- जत योगिपगवः ॥ ११ ॥

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भाषारीकासतमव 1 (६५)

योनिसथान क सिग ओर गदक मधय अरथात‌ छित नीच ओर यदात उव जो योनिसथान ३, ताविप वाम- पाद‌ अथौत‌ वामपादको रगाव तिस बामपादक उपर दकषिणचरण सथापित करक दोनो भक मधयम हि सथा- पितकर पवनका अभयास कर ॥१०॥ इसको सिदधलोग सिदधापतन फथन करर ओर को$ कोर वजापतन तथा सकतासनभी कत ह यद जो सिदधासन ह सो सपरण आपसनकषिप रषठ द ओर सपरण योगीजनकरिक परजित‌ अथौत‌ अभयास करयो जाई द ॥ ११॥

॥ भथ परासतम‌ ॥

उवरि सससथापय शभ पादतल उभ॥ ऋयकायः समासीन इति पदमासन भ- वत‌ ॥ १२॥

दोनो जघानक उपर दोनो पाव धारनकारिक ऋ कर सीधाशरीरस तठिजाव इसपरकार पदमासन कहतर॥१२॥

।} भय कङरापननठकषणम‌ ॥

पदयासनसम वधवा जानोरनयतर करौ ॥ उतथापय वासनादषव कर तदद ह धः॥१३॥

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(३६) योगरहसय 1

ङकटासनवधसथो वायसाधनमाचरत‌ ॥ निदति सकठानरोगानधकार यथा र विः ॥ १४॥ परवोकत जो पदमासन ताहि समान वाधिकरि दोनो

हाथ जाननक भीतर करक आसत उपर उद अथात‌ पधवी छोडद आसन वाधिरद इसको इकटासन कद ६,१३ कट आसन बाधिकरि जो परप वायका साधन कर सो सपण रोगनङक दरि करर जस रय अधकारक नाशक- ह ॥ १९॥

॥ अथ भदरासषनरकषणम‌ 1

सीवनया दकषिण भग दकषगलफ त धार- यत‌ ॥ वामभाग वामगटफमिति भदरा- सन भवत‌ ॥\ १८९ ॥

सीवनीक दकषिणभागविप दकषिणयरफ अरथात‌ दारि पावकरा टकना सथापित करि वामभाग वामगरफ अथात‌ वामपावका सकना धारण कर इसको भदरासन कटर ॥ १५. ॥

,,„ ॥ अप तिहापतनठनषणम‌ ॥ यद निरधय पादाभया हसती जानवोसत धार‌ यत‌। खल विदय नासागर निरकिसमाः

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भाषारीकातमव 1 (३७)

रितः।१६।छततसिदासन परोकत योगशा विशारदः !॥ १७॥ गदा जोह तादि दोनो पावनकरिक रोक दोनो दाथ

धटवनपर धर ओर सख फलाय नासिकाक अमभागङ अचछीतरदस दख ॥ १६॥ इसको योगशाघषवार सिशसन कथन‌ कर यद वहतदी अचछ आसन द ॥ १७॥

. , ॥ भय कमसिनलकषणम‌ ॥

पदमासन सम सथापय जनवोरभयतर करो ॥ ताभया शिरः समाकषय एव कमासन भवत‌ ॥ १८।करमा यथा निजसथान अग सकोचयदवम‌ ॥ तदरतसकोचयचोगी कममासनमतातर ॥ १९ ॥ पदमासनसमान सथापितिकार धटवनक अनतर जी

हात तिनकरिक अपना जो शिर तादि अदणकर सो ङ‌ मौसन दोष ६ ।१८॥ जस कमम अपन सथानविष अपन अगका सकोचन कर तिसमरकार योगी अपन अगका "सकोचन कर यह मरतातरकषि कमौसन दोह ॥ १९ ॥

1॥ अथ मयरासनलकषणम‌ ॥

हसतो धरामभिसपरय नाभिपारध तथोपरि , दडवख समासीनो मयर च परकीरततम‌॥२०॥

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(३८ ) योगररसय‌ ।

दोना हाथ" पथवीम धारिकार तिसक टिदनीन‌क उपर नाभिपाशव अरथात‌ पट धारिकारि दडवत‌ अथात‌ सीधा शरीरकार सथित रव इसको मथरासन कद जो जटरागनिको वदधनकरद ॥ २० ॥

,॥ अथ शवासनरकषणम‌ ॥

मतवचछयनौमो शरम जति शवासन‌॥ एतत‌ सखकर नितय शरमायवि न चाभय- सत‌ ॥२१॥ मतककी तरद पथवीम शयनकरना इसको शवासन

कर यर.जो आसन सो खखकारक ह जव भरम न हो तव इसका अभयास नदी करना चाधि ओर आसनोक लकषण वा साधनाशयरघखत जानिवक योगय द ॥ २१॥

अनटसतवसपसथबलकषयोऽनिलनिरोध पटतवमनरभिता॥ पवनमथरतापयपनायत सथिरमतरिह पीठनयात‌ किक ॥ २२॥ चिरकारक उभयाषकरनम भिसकरविप‌ आसनः का जय रह तिकारषिप अनरपतव किय योगाभयाः

सध मदाविपरङप जो आलसय ताकी निघात दोच द ओर‌ उपसयवरकषय करिय सिगदरियक वरकाभी कषय शवद अनिर ज पराणवाय द तिसक निरोधक

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भाषाटीकासमत । ` (३९)

सामथय दवि तथा अनरमिता कदिय कषषापिपासाः शीत‌, उषण, राग) दवष य पर‌ उभमिया द सो विनाशक परापत हविह पवनमथरता किय भराणवायकी गतिमी मद मद दवह कस कि कोड भरमम तथा गमनम जसी शीभता तसी वखनसमयम नदी होती तरत सथिरमति जो साध‌- करप बो आसनक जय दनितदी सपरण सिदधिको पात दवद ॥२२॥ _ । ।

अथ नादाससधानवायवनयासपरायणः ॥

बरहमचारी जितकरौधी तयागी योगरतः सदा . ॥ २३ ॥ मिताहारी भवतसिदधो घबदादषव न सशयः ॥ २०५ ॥ भ

अथ जाक अनतर नादक अबसघानकिव पवनक अभयासविप परायण बरहमचारी जितकरोधी तयागी ककषा

रहित योगका परमी निरतर ॥ २२३ ॥ _ भमाणङा भोजन कर इस परकार एकवपत उपर सिदध दोषद सशय नही द ॥२४॥ अग पराणायामक निमितत परथम करिया निरपणकरर)) = ,

1 जथ करियानिरपणम‌ गतपातिषरि 4

जाटक नौकिक नतिधोतिदतिरतथव च । कपालमातिरविखयाता पट‌ कमाण परचकषत ॥ २८५ ॥

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(४०) ` योगरहसय ।

अटक 9 नौलि २ नति २ धीति 9 वरित 4 आर कपारभाति दय पम महातमाभनि कर इनक शरीरकी कलि रोव \\ २५ ॥

` ॥ चारकटकषणम‌ ॥ ॥

समीपमपि दरसथ सषम रकयविलो- कयथत‌ ॥ अशरसपातन यावतताबनयदरा समाचरत‌ ॥ २६॥ समीप व‌ दर जो ङ सकषम लकषय उपतको इकटक जव

तक अशपात‌ र न होव. तवतक दख इसकमको योगीजन घाटककम कर यह सपण रोग नतक विनाशकर ॥२५॥

।1 नोरिलकषणम‌ ॥

यथा नदीना बहतोदवगादावततव शरद‌- र परचाटयत ॥ मदाभिसदीपनका सदव हटकरिया मखयतमा च नौः ॥ २७॥ जस नदीनम बहत जक वगत भमर उतपनन होवद

तसरी वड वगकारफ उदर वाम दकषिण मवि यद करिया सदव काल मदाक वढावनवारी द यइ सपण दटयोगिष नोरिकमम घय द ॥ २७॥

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भाष(रीकासमत‌ । (५४१)

यावर परापयत नोठिः सदवानददायिनी।। तावकरियाया पटकमम निषफट नवका- रयत ॥ २८ ॥ सदव कार आनदक दनवारी जवतक नौरिकरिया न

करना हो तवतक ओर सपण पद‌ कमम अथोत‌ करिया भाप निषफल ह नही करना चासय कादत कि इसविना कोई ठीक नरह दवद ॥ २८॥

॥ नतिरकषणम‌ ॥

सत वितसतिमातर त ससनिर गरथिवननितम‌॥। गरपदिषटमारगणनासारपर परवशयत‌ ॥ २९॥ सखाचनिषकासय चापिनति सिदधाः परचकषत ॥ निहति मासतकानयोगार‌ दिवयदषटिकरी सदा ।॥ ३० ॥

अचछासतर वितसतिमाज अथिरहित मोमम भिगोह सक वताय मामकरिफ नासिकाम परवशकर फिर यखस वाहर निकारि इसकरियाको सिदधलाग नति कठतद सो करिया मसतकक रोगको दरिकरनवारी ह ओर नजनक दिवयहरि करनवारीद ॥ २९॥ ३० ॥

१ मसतकभवान‌ ।

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(४२) , योमरहसय 1

॥ भथधोतिकषणम‌ ॥

सकषमवखर समानीय दसतविशपरमाणतः॥ चतरयलविसतार गरसडषणन बारिणा२१॥) परामयितवा जटनव वश निषकासय- चछनः॥ यकतयकतच गरहीयात‌ यकत यकत पनसतयजत‌ ॥३२॥ अनयसदभजनादषव भोजनति न चाभयसत‌॥ वासकासादका रागाः कफवातसयदधवाः। २२३॥ इपलदा

तषा चछ शरमदाहलवरामयाःकममणा- नन शदधन कषीयत सकला मटाः॥ ३७ ॥ अचछा सकषम कद मदीन वचच वीस दाथ लामा चारअ-

गर चोडा पगडीक सो टक दण करक उषणजरत धीर धीर निगट ॥३१॥ ओर नोलिकममकारक उदरम माव फर धीर धीर वाहर निकाल यकति यकतिसो ती हण कर ओर यकति यकतिसो फोर छोड इसपरकार धौतीकरम होवद ॥ ३२ ॥ ओर भोजनस पिर इसका अधयास‌ कर भोजनकार नही शवास कास आदिस कफ वातत उतपनन ज रोग \३२॥ बा कषठ एीदा तषा मचछौ भरम दाह जवर आमय ओर सपण ज मर त यह घोतिकममक नाश परात दवर ॥ ३९६ ॥

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भाषारीकासमव । (४३)

॥ भथ बसतिरकषणम‌ ॥

नाभिमातर नक सथितवा यदनाचयनल म‌॥ पनः परचालन कयौत‌ वसतिरदो षवि नाशनी ॥ ३४५ ॥ अशषदोषामयशोपिणी या मदािसदीपनिका सदष ॥ आरोगयता विडनयपरदायिनी चसतिकरिया योगमत परासदधा ॥ ३६ ॥

नाभिमा जरक विष सथित होकर गदाक आङकचन कारक जलदर आकषण कर फरि परवकत जलकरिक भमण कराय परितयाग कर यद वसतिकमम सपण दोषक नाशक- रनवारो ह ॥ ३५॥ सपण दोपत उतपतनमयो जो आमय अथौत‌ आमाशय ताक शोषण करनबारी ओर मदाथिको वढावनवारी ओर आयोगयताको दववारी विदको जयकी दनवारी रसी वसति करिया योगमतम धसिदध ३ ॥ ३६ ॥

॥ भथ कपाटरमातरखकषणमर‌ ॥

रचक परक चव दत परकरचको कपाल भातिविशयाता खहकरसय चममवत‌ ॥ ३७॥ मदाथिदीपनी चव कफदोष विशोपणी ।॥ ३८ ॥

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(४४) ` योगरहसय ।

रचक ओर परक शीभकरिक किरि परकरचक कपा- रभाति द नाम‌ जाको जत खदारकी नीत बारवार वाय अव जाविह तिसपरकारदी कपा मातिकरिया रवद ॥ ॥ ३७॥ सो कसी. कि मदाभिक वटावनवारी सपरण कफक दोप नाशकरह ॥ ३८ ॥

॥ अथ गजकणीकरिपारकषणम‌ ॥

अपानशरढसतथापय यतत ततपरितयनत‌॥ ॥ २९॥ गजकरणी समाखयाता वया नाडया भदधवम‌ ॥ ४० ॥ अपाना जो अघोगतिवाय ह तादि उपर कठना- खीच जो कछ शकत अथौत‌ खहा मी पदाथ खाया

इवा ३ ताहि परितयजत‌ नाम बादर निकालदय इसको कपिराचाययादिन गजकरणीकरियाकददि इसकरिया कमपति सपरण नाडी वशीभत दव यद पटकमम करक परथचट ह परत पटकमभरीक अतगत को मानद ॥ ३९॥ ४० ॥

पटकममपरभविण कीयत सकला मलाः॥ महर ततो वायरनायासन गचछति ॥ ४१ ॥ गदयहहयतर दिवय घटशोधन- कारकय‌ ॥ _सामानयमानषसयव न दय यसय कसयचित‌ 1 ५२ ॥

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भाषदीकासमत । (४५)

इस पटकमक परभावकरिक सपण मनका नाश हर तदनतर वाय अनायास विना मकरक बहमर जो ' सषजजामामताविप गमनकरद ॥ ४१ ॥ य पदर‌ कम रदयत “ गहय द ओर दिनय ह घट जो शरीर ताक शोधनकारकरद य किकी सामानयमतषयको न दना उचित ह ॥ ४२ ॥

॥ भय समापिवरणनम‌ ॥

6 साघय विविधविचरिवितरकवाद रपि भः ॥ तसमातत तसयव हि कवट जयः पराणो हि वियत न चानयक- भित‌ ॥ ४३॥ नानापरकारक विचार तथा शाचनाथोदि तथा वदति

कथन करना इकरक मनसाधय नदी दोवह तिसक जय करनम अथौत‌ वश करनम कवर एक पराणवायदी समरथ ह अनय कोई उपाय नदी ॥ यथा-भदारिकत ॥ भोगा व

चदिताभरपटलीरीरनाइिवदधयरम‌ ॥ लालय त योग धययसमाधिसिदधिठकभ बद विधतत थाः ॥ १ ॥ अथ‌-विसवत भषम‌ चमक- तीह विलीसमानददधारिरयो का मोग चचल ह वायस

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(४६) योगहसय ।

छिनन भितर मधजरक समान आचभी नाशमान द ओर योवनकषा उमगभी सथिर नरदी ह तति ह पडिती एषा समकषिकार समाधिकी सिदध. सरभजो योग तिस बदधि धारण फरो ॥ ४३ ॥

॥ अथ समाधिकारः ॥

एकशवासमयी माता पराणायाम निगदयत ॥ अधम दवादश परोकता मधयम दविणाः समताः ॥ ७४ ॥ उततम तरियणा मनाः पराणायाम परचकषत ॥ पराणायामदधिषटकन भरतयादार उदाहतः ॥ ४५ ॥ परतयहार षटकन धारणा परिकीतिता ॥ भवदी- शवरसातिषय धयान दवादश धारणाः ॥ धयान दवादशक यतसयातसा समाधिवि- धीयत \ ४६ ॥

सोदतपरपकी एकशवासक‌ एकमातर पराणायाम थन‌ करद सो पराणायाम १२ माति अधम ओर २९ स मधयम ।॥४९॥ ओर छततीस २६ स उततम भराणा- | यापर दोवद ओर १२ पराणाथाभम 9 परतयाहार दयता ॥ ४९ ॥ ओर १२ परतयाहारम धारणाः तथा १२

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भाषारीकासमत । (४५)

धारणापस १ षयान ओर १२ धयान एक समापि वह अपय आनददववारी द सो वारता गीताजीमि करीर ॥ यथाय रषवा चापर लाभ मनयत नाधिक ततः ॥ अरथ-निससमाधिङक परापत हो धरष ओर राम अपिक नक मान इसपमाधिषठखङ भ कदा वणन कर इसरद तौ कोई महातमा समयक परकार वणन नदी करिस- कत जो करता वदी जानता अनय नरही सो वाता दकषसमर- तिम करदीर॥यथा-सवसवघ दितदरत घीकमारीसखख यथा अयोगी नव जानाति जायधो हि यथा घटम‌ ॥ १ ॥

थ-सोई उसतरघन समय परकार ानह जस यौवन अवसथाकी खी पतिसमोगजनय खखढ आपद अवभव कर तस अयागी उस बरहमदः नरी जानसकत जस जनमा- धपरपदर चरक सवरपका वोध परतीत नरी दोता॥दोहा- अजञानीको जगलटौगजञानवानङक फन ॥अघको जिमि अध- अह दगवारको चन ॥ ४६ ॥

५ थम भयाम 4

अथासन दटीभत सशोभनमठ यदा ॥ गर नतवा शिव चव पराणायामसततो- भयसत‌ ॥ ४७ ॥

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(४८) , योगरहसय 1

शराणायामनिरपण कथन कर सदर जो मठ ता आसन वाधिकरि अपन गर वा योगाचायय शिव तिनदि परणाम फर अनतर शिकषापरवक पराणायाम कर ॥ ४७ ॥

समकायः पराञजरशच परणमय च यदव

सधीः ॥ दकष वाम च वितश कषरपाछामि का पनः \ ४८ ॥ समकाय दाथ जोडिकर गर जो ह वा वाम दकषिण

वितनिश गणश वा कषपार तथा जगनमाता पथवी परणाम कर ॥ ४८ ॥

पराणायामशरीरसय वायोसतदरनिरोधन- म‌ ॥ आचारयाणा त कषाचिदचकपर कङभकः ॥ ७९. ॥ अव पराणायामको लकषण करद ह शरीरक भीतर भरहए

वायक निरोध पराणायाम कद ह तथा कोर आवारय रचक एरक छभक इनक पराणायाम करर ॥ ७९॥

रचकदरचकनधकः परकातपरको मतः ॥ स दितः कवलशचति ऊभकोपि दविषा भवत‌ ॥ ५० ॥

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भाषारीकापतमव । (४९)

रचक कममकरिक रवकपवक पराणायामः परक कमम- करिक परकपक पराणायाम सहितकभक तथा कवल कभक इसपरकार ङमककमी दो मद द ॥ ५०॥

रचकात‌ परकाचव सहितः कभकः समरतः॥ आभया विरहितः कभः कवटसयोपजा- यत ॥ ५१ ॥ रचक वा परक कमकरिक जो पराणायाम सो सहित

कभक जानिय रचक वा परक इन करिक रदित जो ऊभक कवलङक परात करर अथात‌ यदरीसो कवलकमक क

द 1 ५१ ॥ ॥ अथ कगकाषटमदाः ॥

उजनाया शता भख सककर मदना

तथा ॥ छबवनी मरतिका चत रामरीतयषट- नामकाः ॥ २ ॥ अव अपरकारक कमकभद‌ वणनकर द उजजायी,

शीतरी; मखा, सीतकरी, भदनी, वनी, सरधिका, आमरी स अनामक छभककरियाक अभद ॥ ५५२ ॥

{1 उजायारकषणम‌ ॥

वायमाकषय नाड नया पररयडदर‌ इतम‌ ॥।

अतयतकमक कता सचनत शन

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(५० ) योगरहसय ।

शनः ।॥ ५३॥ गटषछददराद‌ रागान‌

वातपिततकफोदधवाचौउलनायी मिका दरो च कभकम निहति हि ॥ ९ ॥ वाय जो ह तारि दोनो नाडिनकरिक शीषतास उद‌-

रकी पण कर अयत कभक अथीत‌ बडी दरतक कमक कर फिर शनः शनः रचक कर यह उजजायी कभक द।५२॥ यह उनायी मक तथा मखिका छमक य दोनो हम तथा पीर ओर बात पितोदधव उदक ज रोग द तिनक निवय इनन करत द ॥ ५8 ॥

॥ अथ शतिलछालकषणम‌ ॥

काकचचवा पिविदरायमकदश विचकषणः ॥ इशत भरसय त यम अबद न सश- य‌; प षषष‌

एक सथानक विप विचकषण जो योगी सो जिहाको काकचचकी नाई करिक वायको पान कर यह शीतली छभक द यति यगी एक वपत ऊरव ईशतवको परापत हव द याम कोद सशय न ॥ «५ ॥

1 अय‌ भततकखठशचणप‌ ॥

चमपवदोदकारसय वाय गन परयत‌॥प- नरविसचयततदवत‌ परयख तथाविधि ॥५५६॥

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भापारीकासमत । (५१)

रोरकारक चममकीनाह वगकरिक वायको परण कर फिर तिखी तरद छोड फिर परथमवत‌ परण कर ॥ ५६ ॥

अपरयददर पनधात‌ कमक कारयद‌बधः।॥

सातकरतयषणसमय‌ शतदा च तद‌ वहि ॥७ ॥ मघिका सवदा पजया वरहमरधविभदनी ॥ ५८ ॥ पीछ उदरको परण कर परातः उध भकको कर सो

सिका ३ सीतकरी ओर शीतटी कभक उषणसमयम । करीजाय द ॥ ५५७ ॥ तरहमरधकर भदन कखिििवारी जो

भसतिका सो सवदा नाम सव समयम पजय ह अथात‌ सव समयम करी जवि ह ॥ ५५८ ॥

जहया वकायमाकषय मक कार‌

तसधाः ॥ कभारयता यथाशकतया मराणन‌ सचयत‌ ॥ ९ ॥ जिहाकरिक वायको खीचकर इदधिमान योगी भक

को कर यथाशकति भक करिकि नासिकति रचन कर अथात‌ वायक छोड ॥ ५९ ॥

1 अथ सीकतकरीरकषणम‌ ॥

रपलावणयसपचच योगी भवति तट ॥ न निदरानधा तसय योगिनो बाधत गरशस‌ ॥ ६० ॥

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(५२) योगरहसय ।

यह‌ सीकरी छभक करत रप लवणय कि सपर योगी भतल विप दह ताको निदरा वा कषषाकी- वाधा नही रोव द ॥ ६० ॥

॥ अथ भदनीरकषणम‌ ॥

आकशपादपमयत कभक रोचयत‌ खगम‌॥ ससयनाडया समाहतय बहिःसथ पवन सधीः ॥ ६१ ॥ बदधिमानयोगी सयनाडी करिक वादिरक वायका

शीश पादपययत ईभकरपी जो पकषी ताहि रोचयत नाम धारणकर ॥ ६१ ॥

यद‌ शरमो भवद ततो चदरण रचनम‌॥ अरमशीतदरी पता नररािषिवदधनी ॥६२॥

_ ददमजो भम होयतो चदरनाडीकरक वह बायको सचन करिय सो भदनी भक द यह शरम ओर शीतक इरनकखिवारी ओर जठराभरिको वटाबनवारी परपनक दत जाननी ॥ ६२ ॥

1 भय परावनीटकषणम‌ ॥

उदवाररपिण आणपरयडदर परति॥तद‌ा जल पयगधि हि तिषठत पदयपतरवत‌ ॥ ६३ ॥

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भषादीकासमत । (५३)

उदरारहपी भाण जो पवन‌ तादि उदरम परित कर तो अगाध जो जल‌ ताक वपि निञयकरिक पदमपतरकी नाई सथित हव याको छावनी कर ह ॥ ६२ ॥- । ॥ अथ मचछिकाठकषणम‌ ।

भाणमाकषय‌ नाडया सथापयचछघक हाद ॥ मरिकाकभकय त मनोगरचछा सखपरदा ॥ &९.॥ “ नाडीनकरिक भराणवायको आकषणकरिक चिदकको इदयक ऊपर सथापित कर यई मरखछिका ऊभक मनको

भरचछितकखिवारी ओर सखपरदा नाम सखकी दष- वारी ह ॥ ६९ ॥

। ॥ अथ भामरीरकषणम‌ ॥

परक. शगवञनाद भखानाद विरचन ॥ . आनदो जायत चाच योगिनः कामर-

पिणः ॥ ६५ ॥ परकक विप भगनाद ओर विरचनक‌ विप भगीनाद‌

कामरपी योगीको आनद जब उतपनन कर तव भामरी कमक दीवद॥ 4 ॥ _ कामचारितवमीशतव खचरतव परयतनतः ॥ अनन विधिना योगी ठभत वाञछित फटम‌ ॥ ६६ ॥

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(५६ ) योगरहसय 1

गरहण कषमः ॥ ७२ उतकषटा खचर

मदरा अवसथाया मनोनमनी ॥ भक कवलः परषठ धनयः पणयशच मोकषदः ॥ ७३॥ जा नाडीत रचन कर ताकारकदी परक कर अर

अतियोधत धारण कर फरि अनयनाडीत रचन कर वगत नरी कर जा कालविप योगीकी नाडीशयदि अचछीतर स रवद ताकारविपदी योगी पराणसगरहणकारिवम समथ होवह ॥ ७२ ॥ जिसपरकारस सपरण सदरानविष खचरी रषठ द, अवसथानम मनोनमनी ओषठ ह तिसपर कार सपण ऊभक सयथ मदनादिकनम कवर कक षठ, सो कभक घदरा घनयह, तथा पणयह ओर मोकषक दनवारी ह ॥ ७३ ॥

एव कमण पणमास कवल परामयाचछभम‌॥ क भक कवट परपत उपतिषठति सिद यः ॥५७४॥ पव करहए परकार रचक परकः कभक कमकरिक पर-

मासवि आपदी आप कवलङमक भाप दोक ॥ ७४॥ ॥ भथ कवठकमकठशचणम‌ ॥

रचनादरचकशचव परकात‌ परको भवत‌ ॥ आभया विरहितः कभः कवलशचति कथय

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भाषाटीकासमत । (५७)

त ॥७५॥ ऊभितयकाकषर मानन परवदति मनीपिणः॥ ताठचय तथा कचिनमातरा-

सजञा परचकषत ॥ ७६ \ कवलकमकक लकषण करद कि रचक करनत रचक

पराणायाम ओर परक करनस पररकपराणायाम रोह पवक. वा परक इन‌ करिक रदित जो कभक सो कवल कभक कविर सो जवतक कवलङकमक परापत न हो वतक रचकपवक तथा परकपरवकरी अभयास करना चाहिय सो अभयास‌ माघराक समरणपवक करना योगय ॥ ७4. ॥ माता कद ओ यदी एक परणवको योगीजन मानासजञा कथन करद तथा कोह आचासय तीनताखको

र ॥ ७६ ॥ नच दवादशक मरा मधयमो दरयणा- सतथाउततमो तरयणा माचा पराणायाम निगदयत ।। ७७ }। कनिषह जायत‌ सवद‌ मधयम‌ कपत शिरः " उततम चासति

` चतथन‌ चरमानदसतथव च ॥ ७८ ॥ सा पराणायाम बारहमानाको कनि तथा चविसमा-

जाका मधयम व छततीसमाजाको उततम दविह ॥ ७७ ॥ कनठ पराणायामतिप पसीना उतपतच होवह तथा मधयमम

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(५४) योगरहसय ।

[^ याकरिक कामचार ओर ईशत तथा सचरत ओर वाितफल परयतनपवक योगीको परापत द ॥ ६8 ॥

इदानी कथयिषयामि _ खकतसयायभ परयस‌ ॥ यछनधवा ठभत साकत पापय

कतोऽपि मानवः ॥ ६७ ॥

इसकारविष सकतपरप ज द तिनका जो परिय अभव तिसका वणन‌ क द जिसको परापतरोकरि पापकत मद पयभी सकतको परापत दोताह ॥ ६७ ॥

वणःसमतव दहनपरदीतिः नाद‌सफरतव वदन सकातिः) परशातचितततवजिरतदरिय- तवमतानि सबोणि ततो भवति ॥ ६८ ॥ शरीरकी समता अथोत‌ कशता सथलताति राहत जठ

राथिकी परदीति, नादका सफटमाव अथीत‌ परकाशरोन यखकविप सकाति परशानताचत होना वाभितदियरः य सपर वायक सानत परात सवि र \ ६८ ॥

चदनाडया समाकषय वदिसथ पवन शमः ॥ ऊभयिता यथाशकति रविणा रययतततः ॥ ६९ ॥ भयः सयण

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भाषादीकामत । (५५)

चाकषय परयददर तथा ॥ विधिना भक कतवा ततशचदण रचयत‌ ॥ ७० ॥ पराणायाम कदिकरि मलशोधक पराणायाम वणन कर

चदरनाडी जो वामनाडी ह ताकारक वायक समयकतगरकार आकरषण कर फरि यथाशकति ऊभक कर ततः ताक अन- तर सय जो दकषिणनाडी ह ताकारक रचन कर ॥ ६९॥ भयः कह फरि सय जो पिगला नाडी ह ताकारक वायत उदर पण कर फर विधिपवक अरथात‌ उबयान जाखरघर मरवध _इनकारक कमककारि फरि इडानाडीकरिकि रचन कर ॥ ७० ॥

इञया परथदराय यथाशकतया त ऊभ- यत‌ ॥ ततसतयागः पगलया शनरव न

` वगतः ५७१॥ इडा जो वामनाडी ताकरिक वायको परणकरिक

यथाशकति कमक कर फरि पिगला जो दकषिण नादी ताकरकर शनः शनः सयजत‌ वगकारिक नरी छड वगस छोडनम वहानि होवद ।॥ ७३ ॥

यदा नाडी विषदधा सयानमलाः अ परयाति च ॥ तदव जायत योगी पराणस-

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(५६) योगरहसय 1

रण कषमः ॥७२\ उतकषटा खचरी सदरा अवसथाया मनोनमनी ॥ कभकः कवलः भरषठ घनयः पणयन मोकषदः ॥ ७३ ॥

जा नाडीत रचन कर ताकरकदी परक कर ओर सतिरोधत धारण कर कारि अनयनादीत रचन कर वगत न कर जा कारषिद योगीकी नाडी अचछीतरः हस दोह ताकारषिपदी योगी भराणसयदणकररिवरम समथ होव ॥ ७२ ॥ जिसशरकारस सषरण सदरानविष खचरी भरषठ ह, अवसथानम मनोनमनी शरषठ ३ तिसर कार सण छभक सय भदनादिकनम कवर कभक भष, सो कभक घदरा घनयहः तथा पणय ह ओर मकषफ दनवारी द ॥ ७३ ॥

एव करमण पणमास कवल मामयाचछभस‌ छभक कवल परपत उपतिएठति सिदधयः ॥७९॥ प कदडय‌ गकार रचक परक, छमक कमकरिक पट‌-

मासय आपदी आप कवलभक परापत होवह ॥ ७४ ॥ ॥ अथ कवलकमकलकषणम‌ ॥

रचनादरचकभव परकात‌ परको भवत‌ ॥ आभयो विरहितः कभः कवलशचति कथय‌

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भाषारोकरासमव । (५७ )

त ॥ ७५1 मितयकाकषर माचा परवदति मनीपिणः॥ ताखरय तथा कचिनमाा-

सजञा परचकषत ॥ ७६ ॥ ०

कवलकभकक लकषण करद कि रचक करनस रचक भराणायाम ओर परक करनद पररकपराणायाम रोह रचक वा परक इन करिक रहित जो भक सो कवर- कमक कहावह सो जवतक कवलकभक परापत न दो तवतक रचकपवक तथा परकपरवकदी अभयास करना चादि सो अनयास माक समरणपरवक करना योगय # ७५ ॥ माजा क ओ यरी एक परणवको योगीजन मानारसजञा कथन‌ करद तथा क आचासथ तीनतालको भी करदह ॥ ७६ ॥

नीचो दवादशक मातरा मधयमो दविखणा- सतथाउततमो तिखणा मातराः पराणायाम विगदयत 11 ७७1 कमि जायत सवदः

मधयम कपत शिरः 1" उततम चासति चोतथान शरमानदसतथव‌ च ॥ ७८ ॥ _ _ सो राणायाम वारदमाजाको कनिषठ तथा चौवीसमा-

चराको मधयम व छततीसमाचाको उततम‌ दोह ॥ ७७ ॥ क

कलिषट पराणायामविच पसीना उतपत दवर तथा मधयम

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(५८ ) सोगरहसप 1

शिर कपिर ओर उततमम आसन भमिस थोड[ पः ६ तथा मरतकम धम वा चिततो आनद परात होषह ॥५५॥

परतःकाठ च मधयदि सायकाल च कमकान‌ ॥ कयौदव चतरवार तथव चा- दराधक ॥७९ ॥ यदा सजायत सवदः मरदन कारयतसधाः ॥ ददता ठता चव तन गातरसय जायत ॥ ८० ॥ रतःकाख असणोदयत छकोर सरयोदयपययत‌ मघयः

हकारम तथा सायकार ओर अदधरान इन चर समय विप छभकभाणायाम करना योमय द॥ ७९ ॥ कनिषठभर णायामिप जो पसीना उतपतन होव ह ताकरिक शरीरको मदन कर तास गातरकी दढता वा रघता परात दोव द <°

वरजय चाथ अवकषयामि योगि विकर परम‌॥ यसय सवनमातरण योगो नशयति यगनाम‌ \॥ ८१ ॥ कदमढ ङवण रशच

तीकषण सापपतम‌ ॥ परातःसनान जन दवष मोह च पराणिपीडनम‌ ॥ <२॥ अव जाक अनतर‌ वजनीय‌ वणन कर द जाक सवन-

मावस योगीनको योग नषट होव द ॥ ८१ ॥ कडअमन

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भाषारीकासमव । (५९ )

इमली इतयादि अति खवण कखो तीकषण सरसो एराना धत परापतकाल सरान करना मदषयसि वरभाव रखना वा किसीस मोद करना वा दसा करना ॥ ८२ ॥

सबन पथि अयिखीवहारप भिया- परियम‌ ॥ अतीव भोजन तयाजय योमिभि- सतचवदाशामः॥<३॥ मागका चलना आका सवन ओर चीका सवन

करना परिय तथा अपरिय वहत वोखना अतयत अधिक आदार करना ततवदरी योगीको अवय इतनी वसत तयागना योमय द ॥ ८२ ॥

अथापायस परवहयाम कलिपर यागसय

सदय ॥ ससनमध मघराहार‌ मषटा

तखवाजतम‌ ॥ < ॥ चत‌ कर मधयत

गवय धातोशच पोषणम‌ ॥ मनोभिलषित योगय तामबल चण बाजतम‌ ॥<८५॥ वद‌[- सथमण रितयणलतलणदटवनयप‌ ॥ नामस कीतन विषणौरनियमानि समाचरत ॥<८६॥ धतिः कषमा दया शोच खासनगध सषमवख कस‌ ॥ इतयतानि सदा योगी नियमानि समाचरत‌ ॥ ८७ ॥

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(६०) योगरहसय ॥

, अव‌ योगक शी सिदधिक अथ 8 क सथिकषन सर ऋ कोमल अशन जो नह पसा आहार कर मिषटा तकर रदित अथात‌ तरक न होय ॥ ८8.॥ ची दष मधकत अथात‌ मषरक सहित चावरको भात‌ गवय नन तथा अनय पथय‌ घात पोपनकरनवारो पदाथ रचिषवक योगय तथा - णव तामबर ॥ << ॥ वदानतशरवण‌ नितय एकातगरहसवन ईशवरनामसकीतन इसपरकार नमस रद॥ ८६॥ धय कषमा दया शोच ससषिगध अथौत‌ अचछा सप क योडासा वघ धारणकर इतन कद जो नियम सो सदव कोठ योगी. नक आचारण करन योगय द ॥ ८७ ॥

सदया यकतऽपि नानयसः अधितऽपि न चाभयसत‌ ॥. अनिठऽकमरवश च

. भोकतवय सवसोखयदम‌ ॥ << ॥ वायो परविषट शशनि शयन साधकोततमः ॥ .अयकतानयासयोगन सबरोगससदधषः ॥ ८९ ॥ खयकतानयासयोगन सवरो- गकषयो भवत ॥ तसमायकतन करतवय साधकन समासतः ॥ ९० ॥

"1 सदय क मोजन करिक तरत तथा जव शचधित हो तव कदापि अभयास न करना चाहिय जिर

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भाषाटीकासमत । (६१)

समय अनिर जो बथ अक जो दकषिण इवासम परवश कर तिससमय सपण खखक दववास भोजन‌ कर ॥८८॥

जिससमय वाय शशि जो वामहवासा तिसम परविषट

हो तिपतसमयरी साधकको शयन करना. चादिय अयकत योगाभयास करि सपण रोग उपप दव द ॥ ८९ ॥

तथा यकनयोगाभयास कएनत सश रोरगोका नाश हविह तसमातकद तति साधककारक यकतिष समयङ‌ परकार योग कततवय द ॥ ९० ॥

इतथ मासय कयादनारसयो दिनदिन ॥ तसय नाडी विशदिससयाचोगिनसततव दाशनः ॥९१॥

त पवोकत साधन रचक परक ङभक अनाकसय

क आङपरहित होकर तीन मदीना अभयास कर तिस तवद योगीकी नाडी विशषकरिक शि रोवह ॥ ९१ ॥

दहसय कातिरजठरानरोननतिः सखशकति- बोधो मनस योगयता ॥ नादसफटतव सयन सनिमभर दतानि चिहनि ततो

भवनति "\ ९२५

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(८६५२) योगरदसय ।

अव नाडीक शदधिताक लकषण वणन कर नादी रिक अनतर ददकी काति = दीपनशरति कडली ह ताको बोघ उतथान होर मनसः योगयता कर मनको आरभवयि विशव परपत रवह नादकी परगटता निमभ नतर ततः क नाडीशचदधित इतन चिहन अवदय २

दावह ॥ ९२ ॥

उदयानजारघरमरलवधरनिदरतायासरा गनायाम‌॥ परतयङघखन परविशन‌ सपरा गमागम सचति गधवाहः ॥ ९३ ॥ उबयान जारधर मलवध मदरनकरकि उरगागना जो

सरपिणी ह सो निदराजोडि पवक खल करिफ सषशरा जो रहननाडी ताम भरवश करि गमन‌ आगमनजो वायम सो परितयाग करि समाधिसथ दव ह ॥ ९३ ॥

पराणाभयास करभणव वलिकिानितय यद‌ ॥ तदा सयातसकला सिदधिरयोगिन‌- सततवदशिनः ॥९४॥ सषमदषटिः खचरतव दिवयकायसतथव‌ च ॥ दरशतिः सतय- वाकय परकायपरवशनम‌ _॥ ४ ॥ अदशय कामचारिव सरवतः॥

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भाषादीकासिमत । (८६३)

भनदधीययवती यता यरवकसयदधवा ॥ अनयथा फरदीना सयाचिवीपयापयतिदः- खद‌ ॥ ९द‌ ॥

करम करिक पराणायामक अभयासविम जिसकाल पराण- वाय तीन घडी सथिर दोष ह तिसकारकिपि सपण योग- सिदधि परापत हव ह ततवदरशीपरपको ॥ ९९ ॥ सषषमटाधि खचरतव क आकाशकिपि गमन दिवयशरीर परशरीर विष परवश करना ॥९५॥ अरशय क अतदटौनत कामचारी क इचछापरवक विचारना इतनी सपरण सिदधिया दह गसक यखकारिक जो विया परापत हवह वा यपतह सो

` विदयादी मोकष वा सिदधिी करनवारी रोवह नही तौ फलदीन निरवीय अतिदःखदनवारी हरवह ॥ ९६ ॥

पवनाभयासन योमी वटावसथा यदा बजत ॥

तदा ससासवकरोऽसमि‌ यतरासति तनन परायात‌ ॥ ९७ ५

जिसकारविष वटावसयाको भापतदी-

वद पाक 9 पस ससारवन कसी कोर वसत नशी

जो रापतन दो "९ ॥

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(६४) योगरहसथ 1

पराणापानौ नादविदर जीवातमपरमा- तमनो ॥ एकतर रत यसमात‌ तसमादर वट उचयत ॥ ९८ ॥

भराण ओर अपान नादविद जीवातमा ओर‌ परमातमा . यात एकसथानकी घटना सो घटावसथारकषण रवद।॥९८॥

याममातर यदा धत शकतिससयादरायसा- धन ॥ परतयादारसतदा परोकतः साधकसय महातमनः॥ ९९॥ एकपरदरपरमयत वायसाघनविष शकति होय जिसकाल-

विप तिससमयदी मदातमा साधकपरषका परतयाहार दोव ह सो वातो अनयरथमी छिखा इ-पराणायामदविषरकन परतयादारउदाहतः॥परतयादारदविषरकन धारणा परिकीरतिता 1 १॥मवदीशवरसगतय धयान दवादश धारणा धयानदरादशक यतसयात‌ समाधिससाऽभिधीयत ॥ २ ॥ अरथ-वारह पराणायाम ककि १ एक परतयादार दव ओर वारद भरतया दारस एक धारणा ओर बारह धारणात धयान १ एक , तथा वार धयान दोनसऽसमाधि दवि द तथा परतयाहार वन कर द ॥ ९९ ॥ .

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भाषायकासमच 1 (६५)

॥ अथ भरतयाहाखणनम‌ ॥

रप रस तथा सपश शम वा यदि वा- भम‌ । सवमातमति विजञाय परतयाहरिति योगवित‌ १०० ॥ सधमथवा गध मषयामधय तथव च ॥ सवमातमति त मतवा परतयादरति योगवित‌ ।। १०१॥ रपदिविपयाः पच मनशचवाति चचलम‌ ॥ सवमातमति विजञाय परतयाहरति योगवित‌ \ १०२ ॥ ददवियाणा विचरता विपयष सवमावतः ॥ वलादाकरषण तषा परतयाहारः सख उचचयत ॥ १०३1

रष‌ रख सपश अचछा तया इरा सो सबको. अपनी

आतमा मान योगवत मतयादार कर ३॥१००॥ सगचतथा

दरमच पकत तथा अपक सरवको सपनी आतमा मानि परतया

सवद यो रिद ॥ १०१ ॥ सद अथौत‌ योगवतत परतयादारक९ घ

9

समदि पच रप रस गव सपरी शबद ओर चचक

मन सव अपनी अपनी आतमा जानि योगवितता परतयाहार

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(६६) योगसय 9 भ.

कर ॥ १०२.॥ सपण ईदी सवभातदी विषयक विप विच रत तिनको बरत आहरण करना अधौत विषयत दटा- ना परतयाहार होवहद ॥ १०२ ॥

तपरबहधिः मनसः परसननता सखरसादो- पि हि दनयसकषयः। दत परवशशच.तथव सयम जितदवियसयह किोपजायत।।१ ०४॥ तयाह जिसकालवि ददरियनित दोवद तिस-

कारविपश सपण सिदधि परापत दोष तपःपरबदधिः कषय तपकी वदधि दवद कात कि, ददरिथभित परष दीको तपकी सिदधि होवद सो वातौ अनयसमतिम कथन करी द यथा-पनसशदरियाणा च निगरह परम तपः ॥ तनायः सवधरमनयः स घमः पर उचयत॥अरथ-मन ओर ईतरीनकी जो सपसवविषरयोस निगरह करना परम तप ह ओर सोई सव सघमीस अष चरमद तथा मनसःपरसननता कटिय मनदक रसततता परत दोष द ओ सरसाद‌ अथात‌ सपरण दवता उसक उपर परसादक परसत हव ह दनयसकषय जितदरीपरपकी दीनताकाभी अमाव दव ह कात कि अजित परपहो सवदा खीएरादिकोक पोषण _करनक निमितत याचना कर ह सो वातो भागवतम कदीद यथा-

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भापाटीकासमत । (६७)

-जिदधोपसथादिकापणयादरहपालयत जनः॥ यह परप सवदा जिहवा ओर उपसथादि ईदियोक विषयम रोटधप भया वा- नकीनाह ड ह तथा मतदरिशतकम मी कडार ॥ यथा को ददीति वदतसवदगधजटरसयाथ मनसवीजनः ॥ बदधिमा- च परषकोहभी अपन एक उदरक वासत याचा कर अरथात‌ कोई नदी “दत भवशशचतयव सयम 'दरियोक जय होनस- साधक परपको योगका जो सखय साधन धारणाधयानस- माधिरप सो शीघर भातत होव ह यः सपणवाततो जितिदरी पषको निनवय करिक परापत होव ह ॥ १०४ ॥

॥ अथधारणारकषणम‌ ॥

भमिरापसतथा तजो वायराकाश व कमात‌॥ एतष पचभतष धारणा पच कारयत‌ १०९९

पथी 9 जल २ अथि २ वाय © आकाश 4 इनपाच तोम पा धारणा दोवद सो कर इसपरकार

माताम जय दोनस योगी अमरभा-

वक पराततदोव द तवा व करी ३ प रत हः

कथन त तसय न वियत॥ १॥ 6

जो मधावी योगी रष पवोकतमकारस पि महानताक

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(६८) योगरहसय ।

धारणाका अभयास करता ह सो पाचमहामरतोकी जय दोनत सो बरहमाक चङ जआनसभी तिसकी मत नी होव ह ॥ १०५ ॥

॥ अथ घयानम |}

वपण वशवानर दव भासकरच तथा !शवस‌॥

परम परषादनय सगणधयानरचयत १०६ विषणभगवोन‌ वशवानर जो अगि भासकरन सथय

तथा शिवजी परम परष इसको सगण धयान वणन कर ह ॥ १०६॥

अतः पर पर बरहम अनतवलपोरषम‌ ॥ सरवा धार‌ जगदरपमवयकत परषाततमम‌ ॥१०७॥ सरवकारणकनतारनियण यणसयतस‌ ॥ सोह बरहमत वजञाय नरण पारचवकषत ॥ १०८ ॥

अतःपरकदिय सगणधयानत पर पनन अनतह वरपो रप जाको सको आधार जगतसवप‌ अवययनाम नाश- रादित परषोततम ॥१०७॥ सपण कारणक करनवार निण ओर गणन करिक सयकत सो बरहम द पसा जानि निर धयान‌ कह ई ॥ १०८ ॥

॥ अय वितणषयान‌म‌ ॥,

इतपञचषटदरपत नारायणमज विभम‌ ॥

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भाषाटीकासमत ` (६९)

तरभनमदाराग पदमपञनिभकषणम‌ ॥ ॥ १०९ ॥ नलतलदलामास शखच-

कगदायतम‌ । शरावतसवकषस शरीश शश कोटसमपरभम‌॥ ११० ॥ मनसाटोकय दवशसयण धयानञचयत ॥ परभाभिभा- सयटरप वासदव सनातनम‌ ॥१११॥

हदयपदय अषटदल कारक शकत ता पदयविष नारायण साकषात‌ अज क जनमकारिकरदित विथ कर सम चारिभजान करक यकत उदार ह अग जिनको कमक पचसदश द दकषण नच जिनक ॥१०९॥ नीर जो कमक ताकसी ह शरीरकी शोमा जिनकी शख कर गदाको घा- रण करनवार शरीवतस ह वकषपक विप जिनक लमीजीक

दश अथात‌ सवामी,कोरिचदमासमान परभा जाकी॥११०॥ वतनक ईश जो विथ द तिनका मनकरिक धयान करना

सोई सरणधयान दव ह परभा जो कति ह ताकारिक ददी पथमान बासदव जो सनातन विषण साह . परम‌

धयान ह ॥ १११ ॥ ॥ अयातनिधयानम‌ ॥

हतसरोरदमघय त तथवाणदट खत ॥ वरशवानर महावहनि ञवखत सवतोयखम‌

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(७० ~ योगरहसय ।

॥ ११२ .॥ परभाभिभासयटरप पीता सवकारणम‌ ॥ सोहमातमति त जञातवा धयान योगविदो विदः ॥ ११३ ॥ तसदी हदयकमलकि वानर जो महावहि द सो

कसा ह कि; सषतरफस जवलरदाद खखारविद जाको भरमाकरिक भासमान ह सवरप जाको पीतवण सपण जगतकषा कारण अथात‌ उतपततिसथितिलयका कारण ह सो अभिरप आतमा जानकरि योगीजन अयिधयान कर ॥ ११२ ॥ ११३॥

1 अथ सषयधयानम‌ ॥

अथवा मडट ततर भासकरसय महातमनः पञयासनलसथत दव नमट पवकपमम‌

॥ ११९ ॥ भासयत जगतसव खएटसथ-

तयतकारणम‌ ॥ साहमातमात तद यारन वदरादधः पारकाततय ॥ ११५ ॥

अथवा तादी कमलक भासकर जो थीमययनारायण तिनका जो मडल इसोदख सो सययनारायण कस ह पदमासनसय द निमक पावकी सदश द तज जिनको सपरण जगतको भरकाश करनदार छक सथिति

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भाषारीकासषमत! (७१)

उतपतति तथा अतक करनवार एवभत जो आसयनारायण सा आतमा म द इसको मरयधयान क ह ११४॥११५॥

॥ अथ शिवधयानम‌ ॥ =, 0 = (~ ^ ५.३ ॐ भवोमधय शिव धयायदधारपसरवकारणम‌॥

शबटसफलकरसकशसमया परिसतम‌

॥११६॥ वयाघरचममवरधर शशीव परिय दशनय‌ ॥ पदयासनासथत दव चतरयजच

सदाविभय‌ ॥ ११७॥ भक मधयकमरविप माहप अथात‌ ददीपयमान सव-

जगतका कारण शदध जो सफटिकमणि ह ताक सदश उमादवीकरिक सावत।। १ १ दा(वयागरचममामबरका धारण

कर चदमाकी ना परियदशन पदमासनकरिक विराजमान एवमत जो दव ताह चततमन कर‌ सा शवधयान अतयत

उततम ह ॥ ११७॥

शरधयानादपर नितय सोममडरमधयमम‌ ॥

सवातमान मडलकाकार‌ वितयच वचः

कवणः ॥ अहमव पर‌ बहम सिदानदटल-

कषणम‌ ॥ ११८ ॥

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(७२) मोगरहसय ।

भधयानत पर अपर नितयदी चदरमडविप अपनी जो

आतमा चदरमडलाकार ई सो विचकषण वितमन‌ करवद पर‌ बरहम सचिदानदलकषण म ह यदी परकारधयान द॥ ११८ ॥

एव धयानामरत पीतवा मतय जयत योम वित‌ ॥ वतसरानयकत एवासो जीवनपि न जीवति ॥ ११९1 यहीपरकार धयानरप अमत अथात‌ तिसतधयानस

पतित जो अभत सो पानकार मतयको जीत एकसवतस- रविष मोकष दविह जीवितमी नरौ जीवता अरथात‌ जीवितदी मोकषह ॥ ११९ ॥

धयानानयपि वहनयाहरयोगिनो सनि पगवाः ॥ . मखयानयतानि ` चतभयो नानय भपि विदयत ॥ १२०॥ एतदया- नसय मादातमयमपियिसततवदशिभिः ॥ शलष बहधा परकत पर ततव सभा- पितम‌ ॥ १२१ |

पतरकररवष‌ सनिनम शरषठ जो योगीजन हसा वहतस

गरकार धयान‌ वणन कर ह तथापि सरवोतकषट यदी धयान मखय द उनत अनय ससारम कोई नरी ई ॥ १२० ॥

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मापाकासमत। (७३)

ईतनदी धयानका माहातमय तचछतता ऋषपिनन शाशचनक विष बहतस परकारकरि काह सोई परमत भन वणन कियाह ॥ १२१॥

अथवा यादशा बदधा राम कषण तथा

शव।कतवयामात तददयानया मतिःसा

मतभवत‌ ॥ १२२॥ याद शलसम पाप

विसताण याजनान‌ षहब‌ ॥ ततसव धयान-

योगन कषणनव विनदयात ॥ १२३॥

अथवा जिस परकार राम कषण तथा शिव इनक षि बदधि दोय सोह धयान करना योगय ह कित कि जिपष परकार मति दव सोह फलीमत दव ह ॥ १२२ ॥ जो ढि पवतक समान वडा मारी विसतीण हत योजनप- यत पापरो तोमी धयानयोगक एक कषणमातर साधन करिक नाश परापत होव ह ॥ १२२॥

अथ वधतरयचरपणम‌ ॥

पदमासन सम चदधा सथापयचछबक हदि । जारधरामम वध समतयमातगनाशनम‌ ॥ १२४ ॥ पादमटन वामन योनिसपी-

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(७४ ) योगरहसय ।

डयत बछात‌।। अपानमरसतथापय मल- वध परशसयत ॥ १२५ ॥ उदधान सत यसमादविशरात महाखगः ॥। उडयान त मिम वध सरवदःखहर दणाम‌ ॥ १२६ ॥

यदरा दशपरकार पवौचारयोनि कथन कराह तिनरमत

खय २ वणन करौ द पदमासन जो सव सखक दववास

आसन ३ ताहि वाधिकरि गोदी ददयम कगाव यह

जारघरवघ नाम मदरा हव ह सो कसी र यतयरप

मातगजो हाथी ताकनाश करनदारी द ॥ १२४ ॥

वामपादकी एडी करिक खिग ओर गरदा दोनाक मधयम जो योनिषथान ह ताहि वलकरिक सपीडन कर अथातर

दाविकरि सथितहो ओर अपान जो नीचक गमन करिः ववारो वाय तादि उपर उटवि इस यदराको मलरवध करत ह ॥ १२५ ॥ महाखग जो पराण अपान वासो ` जति उदधीन नाम ह सो पथिममाम जो सपभरा नाडी ताम कया जाय अनयतर कदा विशराम‌न पाव .सपण दःसाकर

नाश करनदारो तिसको उबयान वघ कहत द ॥ १२६ ॥

वधतरयण पवन रयाति गगन खयम‌ ॥ ततो म जायत सतयलरा रोगादिक तथा ॥ १२७॥

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भाषाटीकासमत । (७५)

इस परकार जो यह वषतरय‌ अथात‌ तीन वध द तिन‌ करिक पबन गगन जो बरमरधह ताविप यद परातत रोर

= ०२४ तात मतय तथा इटापा आदि रोग नदी दोव ई ॥ १२७॥

॥ अथ सचशमदराखकषणम‌ ॥

` एक सषटिमय दवमका शदरा च खचरी ॥ कभकः कवलः शरषटः धनयः पणयशच मोकषदः ॥ १२८ ॥ गसवाकयाछभत जिहला सदय धिपथगामिनीम‌ ॥ मवोरतमता दीषटसदरा भवति खचरी॥ १२९ ॥

जिम‌ परकार सषटिहप एक. परमशवर दव द तसही सव सदरनविप एक खचरी यदरा ह तथा सव कभकनविप एक कवलदकभकयदरा भरषट ह सो धनय तथा पणय तथा मोकषकी दनदारी द ॥-१२८ ॥ गरक वाकयत परापत हत जो जिया निपथ जो तरहमरध ह तकि विय शी. गमन करनहारी तथा शकरीक अतगत जो दि सो खचरी सदरा दव द ॥ १२९ ॥ चदरातसारः परवति दयमत दिवयरपिणः ॥ खचयी सदवित यन मतय जयति रठीटखया

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(७६) यागरहसय 1

॥ १३० ॥ उरनिहठः सथिर भतवा कषणारधमपि तिषठति ॥षिपषिचयत सव वयोधिमतयनरादिमिः ॥१३१॥ नरगो मरण तसय नवाठसय परजायत ॥ कधा मचछ तषा नव मदरा यो वपतिखचरी२१३२॥ चरमा जो सार दिधयषटप अमतको परसव दवद

सो जिस साधक परपन सचरीदरा करिक ढकदीनो अथात‌ पान करिीनोद जान सो परप ठीराकरि दी परसयको जीतववारो होव ह ॥ १३० ॥ उपर ह जिहा लान पएवभत जो परप यदि एक कषणमाजभी सथत दोष ती सपरण सप विनद आदिक तिनक विपकरिक दजो परप खचरीघदरा मरछीभरकार जानि तङ नरोयन मतय न आलसय न कषधा पिपा मचछ होव ह ओर कोह परकरी वाधा नदी हव ३॥ १३१ ॥ १३२॥

वटीपरितवपघनी खदरय खचरी सदा ॥ न तसय कषत रविदसदरा यो वतति खच- रम‌॥१३३॥

रटीपछित जो दटापकी दका नम ता षन वा

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भापाटकासमत । (७७)

यह सचरी सदरा सदव नाशकरनवारी ह जो परष खचरी यदरा जान ताको विड जो कामदव सो कोह कालविष . पतित नकी होव ह ॥ १२३॥ चालनादोहनीचव चछदनाच तथवच ॥ यावत‌ ` सपशातनरमधय सचय सदधा तदा ॥१३९४॥ `

परथम एक चोखा ओर मरीन वसर तासो जिहाङ पकाड कर चारन कर अथौत‌ दोनो तरफ पनः गक थन सहश दोहन कर पनः छदन कर फार तीकषण शबलस जिहयाक नीचकी नसकक छदन कर सो जवतक निहा वदिकरि वादिर भ$टीपयथत न पच तवतक अमयास‌ कर जव पव जाय तपर सचरी सिदधि होय ह कढ वाता गरवाकयस समञचटना ॥३२४॥

जायत परियतरोक वदना नातर कारणम‌॥

तसमादति परयतनन विढधारणमाचर- त‌॥ १३५ ॥ मरण रविदपतन जीवन विदधारणमा शिवा वडरजः शकतः शारा

सयमयसवथा ॥ उभयोभलन कासय खशरीर परवशयत‌ ॥ १२६ ॥ जनम मरण लोकषिष कव विद करिकदी रोध

र ककसी कारण नी तात सवका अतियन

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(७८) यगरहसय }

विदको चारण कर ॥ १३५ ॥ विदका पतन होनारी जीवका मरण होवह तथा विडक धारण करनादी जीवन रोव ई शिवषप विड रजप शकत सो शशिमययमय अथात‌ चदरमारप विड‌ मययरप रज दव ३ सो दोना को समलन कार अपन शरीरविष परवश कर सोरी निशचय करिक मोकषको दववारो दोवह ॥ १२६ ॥ हकारः शकरः बराकतएकारः शकतराशवरा ॥ उभायोभलन यसमिन‌ हठयोगो निगदयत १३७ तथा दयोग लकषण कथन कर द, कि इकार कण

शिव ठकार करक इशवरी पारवती दोनोनको समरन जक विष दो सोई दवयोग दव ह ॥ १३७ ॥

॥ अप‌ वजाटमदरानिरषणम‌ ॥

आद‌ रनः धिय योनयाः यतननविधिव- तपधीः ॥ आकषय टिगनादठन सवशरीर परवशयत‌ ॥ १३८ ॥ ` वाचठति चदरी- ययमदधमाकषय रकषयत‌।कषणमा योनि तो यो टछिगना निवारयत‌ ॥ १३९ ॥ एन‌चच चालन सयततिसया यनया शन शनः ॥ १६० ॥

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माषारीकासमत । (७९) ५, श,

वोरीयदरा साधन कद आदिक विप विधिपरवक सरीकी योनीत रजक किगनालकरिक आकषय नाम. सचकरिफ अपन शरीरविप परवश कर॥१२८॥ कदा वव अपना वीयय चलायमान दोय तो ऊपरक सचकरि रकषण कर अथात‌ गिरन न पवि गिरा हव तो सषणमातर ङग योनित वादिर निकारलय ॥ १३९॥ फिरि कछ दर

पीछ तिस योनिम शनः शनः कह धीर धीर चारन

कर ॥ १४० ॥

गरपदशता यागा बरदाकषय तदरजः ॥

उभयोमठन कतवा सवशरर परवशयत‌ ॥ ` ॥१९१॥ अननव वधानन‌ [सदा भवत‌

भत ॥ वजरोलयनयासयामोय भागय- कतपि मोकषदः ॥ १४२॥ अय त शकरो

योगो धौराणा ततद‌ शिनाम ॥ मापनाय

` गरयतरन न दयो यसय कसयाचत‌ ॥ १४३ ॥

गरक उपदशत योमी बरत तोन जो रज तादि आक- पण कर दोन‌ जो रजरविड‌ ६ तिनको एकतर करिक अपन शरीरविय परश कर ॥ १४१॥ यदी विधान करक

"यासी भतरतिप सिद दोह वयोरीक अभयासक- गसि जो योग भोगयकत आिनाम निशचय मकषको दववाय

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(८०) योगरहसय ।

ह \ १४२ ॥ यह योग साकषात‌ शिवजीन कथनकरयोह सो योग धीर तथा ततद परषनक वासति नह तो विशषकरिक सामानयमनषयनको नही दना चाहिय ॥ १४२ ॥ ।

सदजोलयमरोटी च वभरोी मदतो भवत‌॥ योगशासराच सारण उभञपनगदयत १९५४

.. सदजोली अमरोरी य जो दो खदरा त बनरोीक भद ह योगशाक अबसास उभअपि कद दो निशय- कारक निगयत नाम‌ वणन कर द ॥ १४९ ॥

॥ अथ सहनोटीमदरालकषणम‌ ॥

दवाचरति चदरीयय सपरापत योनिमडल ॥ उभयोः शपण यन स योगी सिदधिभाजनम‌ ॥ १६५ ॥ सहजोलीति सदरय जञातवया योगिभिः सदा यन फन परकारण विदधा- रणमाचरत‌ ॥ १५६ ॥ जो कदाचित‌ सथानत वीय चकिजिव ओर चरीकी

योनिमडलम परापत होजव तौ ङिगकरिक दोनोको शोप- णक जाकी करिया इसपरकार द कि परवम सीसकी शलाका १९ चौदह अग बनाय वह नितय ङगम चालनकर जव

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भाषाीकासमव ! (८१) १२ वारह अग परवश होनकगिजाय तव चादी शाका सचछिदर वनवावि ताको परवशकर ओर र, रिक वायसचार कर किर तिस छिगनालकरिक जठ तथा दध‌ आकषण कर तदनतर रजको ओर वीयको आकषण कर सो योगी सपणसिदधीनको पान द ॥ १४९ ॥ इसम‌- कार इस अदाका नाम सहजोली द सो खदा योगीजन जनि द जिसाकिसीपरकार करि विड जो कामदव तिसका धा- रण करना ॥ १४६ ॥

॥ अथ अमरोखीमदराठशषणम ॥ सवमतरोतसगसमय खया धारा परितयनत‌॥ वलादाकषयनमधया धाराममतरपिणीम‌ ॥ 1 १७७. ॥ सतोक सतोक .तयजतपशचादप‌- दिषटगरशिकषया ॥.एव योगविधानन विहगी- चछति सडट ॥. १४< ॥ पणमासमभयस- चितय साधकः सयतदरियः ॥ शतागनाऽपि भोगप विदसतसय न शभयति ॥ १९९ ॥ विदसिदिभकतसय जितशवाससय योगिनः॥ वहना क परलपन दपतिति सि दयः ॥ १ पि -॥ ससारिणा विभ टाना मायामो ॥ विदददाति

४,

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(८२) योगरहसय 1

सवषा सखदःखणदारधीः ॥ १४५१. ॥ अय त शकरो योगो योगिना चातमदशिनाम ॥ रागगरसतमदषयाणा न त वषपयशाषि-

नाम‌ ॥ १८५२ ॥

निजमोतसगषयम सखयघाराको तयाग करिदव फरि वरकरिक अमरतदपिणी जो मधयधारा ताको आक-

` पण कर ॥ १४७ ॥ यरपदिषट शिकषाकरिक ताहि धीर धीर कछ थोडी थोडी तयाग कर यातरकार‌ योगविधान करिक विद जो द सो मडलक विप परापत होव ३ ॥१४८॥ ईदरियनको जीताछियो ह जान एस जो साधक सो नितय ही कमपरवक परकार छ महीनापयथत अभयासतकरतोसौ सरीक साथ भोगकरनपरभी ताको विद कषोभित नही होव ह ॥ १४९ ॥ यह जो जितशवास योगी जाकी विदसिदधि होयगई ताको वहत पराप कारक कया सपरण जो सिदि यह निखयकीरक समीपम सथित रव ॥ १५० ॥ ससा- सीज मवषय‌ मायाकररक मोदित द चितत जिन तिनको उदारधी विद जो काम‌ ह सो खखटःखको परापत कर 1 १५१॥ यह‌ जो अगमरोरीयोग सो साकषात‌ शरीशिवजी- न परकाशित कियोद सो कवर आतमदा योगीजनकि वासत सखपरातकरद रागकारक यसत ज मदपय तिनको नदी कस ह व मषय अथात‌ षिपययकत ह ॥ १५२ ॥

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भाषादीकासमव । (८३)

अमरोरीतविय रोकता महासिदधिपरदायिका॥ वदघारणरकषाथ सदरानव च यादशी॥१५३॥ यह महासिदधिकी दववारी अमरोली खरा कदी जक

सहश अनय सदवा विदधारणकी रकषक अथ एव नाम निशचय करिक नही ह अथात‌ सवदा इस समान को अनय नही योग जप तप सवका सल यहद ॥ १५३ ॥ .

गहयहयतमो छक न भतो न भविषयति॥ ईशतव यतपरसादन इरछभ परापयत भवि ॥ १८५४ ॥ इस विदरकषारप योगक समान अनय कह जप तप

भकति योग नी ससारम यइ योग यपत यपत द, अथात दरकको दना उचित नरी इस रविदरकषारप योगभरसादस इस ससारविप जो दलम हशतव ह सो परापत होता ३ इसम सशय नदी ॥ 9५8 ॥ __.

1 अथ राकचाठनीमदरारकषणम‌ ॥ ४

अपानवायमाकषय चालयतछडलीटटाम‌ ॥ निदर विहाय भजगी सवयम बनतख- ल ॥ १५ ॥ रपदशत नितय श- किचाठनमाचरत‌ ॥ आयरदधिभवततसय सिदधो भवति भतठ ॥१५६॥ पणमासम-

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(८४) योगरहसप

भयसदयोमी परतयह यरशिकषया ॥ बहना कि पररपिन सकतो भवति वध- नात‌ ॥ १५७ 1 अपानवाय जो गदादवारा नीचगमन कर तादि ऊप-

रको सचिकार खट जो कडी अथोत‌ सात रपर दकारि पण निदराक विपि जो होरदी ताहि चालयत अथात‌ चरत सो निदरा ओोड आपी उदध जो तरहमरभसथान‌ ताम निशवयकरि गमन करद ॥१५८५॥ ज] परष गरक उपदश नितयदी शकतिचालन यदराभयास‌ करर ता परषकी आय बदधि निशवयकरिक होती ह ओर सपरण अणिमादिक सिदधिया परापत दोकर पथवीविष सिदधरपदोता ह ॥१५६॥ जो परष इस सदराअभयासको छ महीना यरकी शिषषापवक निशिदिन करद तादग वहत पराप करनस कया सव सिदधि परापत श ससारषप वधनस छरारिजविह ॥ १५७ ॥ त ॥ अय वपरतकरणीमदरारकषणप‌ ॥

अधःशिसथोपादमभयसचच दिनदिन ॥ सदर वपरीतारवया जठरायिषिवदधनी ॥ १४५८ .॥ नितयमनयासयकतसयातया- दारो वहरोचयत ॥ सकषमाहारो यदि भवदपिरददति निथितम॥१यस।तसमाद-

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मापादीकासमत । (८५)

तिपरयतनन‌ साधयत योगिना सद‌ा ॥ व- छित पिति चषषणमासो न दयत॥१६०॥ जधः क नीच शिर उच पाव कर अथात‌ पथनी-

म मसतक रखकारि अतरिषषम पाव कर इसतरह दिनि भति अभयास कर याको विपरीतकरणी नाम‌ ३ सो सदरा जररािङक अतयत उदि करद ॥ १५८ ॥ जो एर या यदराको नितय अभयास कर तिस साधकपरपद वत आहार करना योगय ह जो कदाचित‌ आहर कम कर

जटठरायि शरीरदर शीघदी भसम करगा ॥ १९५९ ॥ तात अतिपरयततकरिफ यह खदरा योगीकरिक साधनीय दोवद जो इसखदराका अभयास नितय कर ताक वली प- ङित‌ चम कश छ मदीनाम नाश हव ह अथोत‌ तरणकस ह तथा जयाका अभाव होव ॥ १६० ॥ . याममाञ यद करतसमरथः सयादिनोदिन॥

तदव ऊरत योगी काटसय सखवचनम‌ ॥ ॥१६१ ॥ गारपरसादादटमत मदरय पाप नाशनी ॥ गोपनीया विशषण न दया यसय कसयचित‌ ॥ १६२ ॥ अभयासक साधन जो नितयपरति एकमरहर कयि

कगिजाय सो तदीपमयतत कालक यखकी वचना करर ॥ १६१ ॥ यद सदरा कवल गरकी परसतात सिदध दद

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(८६ ) योगरहसय 1

य यदरा पापको नाश किवार ह यह विरपकरि गोप नीय ह अथौत‌ अनधिकारीक दना योगय नई ॥१६२॥

] अथ समाधिनिरपणम‌ ॥

धययसरपोपगता यदा सधादठदसमतय

चातमानमथाबतिएत ॥ यागा वदनाखः

ठकममरबधनयागसय तचाएटकमगमाः

रितम‌ ॥ १६२३॥ जिसकालवि सधी क सदरखदधिमान जो साधक य पययदसत जो परमातमा ह तासवहपक‌ भरात

अपनी जो दह तथा आतमाका परथकभाव ताहि भलि करि सथित हह सो योगी कसो ह कि)सपण जनमतिरक सचित तथा वतमान आगामि तिनकरिक दरि जवि सो योगका! अएम‌ अग जो समाधि सो दोव ॥ १६२ ॥

सरितपती यथा चापः कपरमनिल यथा॥ सिक छवण यदरतसमाधिः पराणसय मात‌॥१६४॥ घत घत यथा किपत वही व- हिरवापितः॥ तथा भवति चकतव जीवा- तमपरमातमनोः॥१६पयीञचछयः सवश- सखाणामवरघयः सवदाहनाम‌ ॥ अशकया

षगधरवयौगी सकतससमाधिना ॥१६६॥

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मापाटीकासमव । (<७ )

जिसपरकार सरितपति जो सदर ताविष आप जो जल ओर अभिम कपर जलम खवण एकषप दवर तसदी पराणसयम अथात‌ पराणवायक सयम क निरोध कर- नस समाधि दव ॥ १६९ ॥ जिसतरह धघीक विपि घी ` अगनिक विष अगनि छोड तदी परकार जीवातमा ओर पर- मातमा एकता परापत होव ॥ १६५ ॥ समाधिकरिक सकतरप जो योगी सो सपएण शच ज दथियार तिनत अचछय अरथात‌ छदो नदी जावह ओर सवदही जो जीवा- तमा द तिनकरिक अवधय ह तथा यकष गधवोदिक जो द तनक अशकय अरथात‌ पकडिनदीसक भावाथ यह ह कि सव वधनत यकत द ॥ १६९ ॥

भितवा सवणि पदयानि ऊडटी वायना हता ॥ सखता बरहमाववर‌ गतवा सखमवा- रयात‌ ॥ १६७ ग

कारम वाय जो उचयान जालधर मलवध खवर इनक नत वायकारक पीडित जो डरी सो सपण पञच

कार सखपवक वरहमरध जा च ताङ‌ परापत हकार

तिनको रथा रहनानदको परापत होवद ॥ १९७ ॥ भततयातमका खमा दका पनजञनातम- कापरा ॥ धयानातपका तताय च समा- पिवणयतबधः ॥ १६८ ॥

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(८८) योगरहसय 1

अव समाधिभद‌ वणन करद दधिमास‌ करक समाधि तीन परकार वणन करीजाविर एक शम सवषपकह कपाः चषपा भकतयातमका अथौत‌ सभकता भकतिकरिक यकत

` उपासना धयानपवक तथा अपरा कर दसी जञानातमका अथोत‌ निरोणधयान परवक 1 वतीया कर तीसरी पराणाया- मकरिकि सो धयानातमका द ॥ ३६८॥

सनयमयादरयगराम‌ धयायदरषण सनातः नमर‌ ॥ चतर‌ चाप चिससरतय समाधि

ससाभिधीयत ॥ १६९ ॥ समाधि पराणायामदवारा तथा कवर परमपवक ददि

यनको रोकिकारि सनातन जो विषणपरमातमा द तिनि धयायत‌ नाम षयानकर सो जा कार धयान करत करत धातार जो ईशवर ह तादि विसमरण दोजाव सा कर सो समायिलकषण रोवह ॥ १६९॥

याद दद‌ एथङतय वयतत वशरमय तिषएति॥ तदव त सखी शतो समाधि सोऽपि गचछति ॥ १७० ॥ पव भकतिसमाधि निरपणकार जञानसमाधि वणन

करद जा कारम ददक परथकटमानिकार चिततम विशराम पाकर सथित हो ताकारषिष सखी ओर शात समाधिप

दङक चहर ॥ १७० ॥

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भाषाटीकासमत । (८९)

ना विपरादिको वरणो नाशरमी नजितदियः ॥ असगो निविकारोऽह विशवसाकषी सदा विभः ॥ ५७१ ॥ नाद कततान वा भोकता ` सपरकाशो निरजनः ॥ अयमवन म वधः समाधिमयगचछति ॥ १७२ ॥ विपरकर आदि लकरि कोई वण नदी न‌ कोई आशरमी

अरथत बरहमचारी गहसय वानपरसथ सनयासी तथा जितदरी अजितदरी नदी ह, असग निविकार विशवसाकषी सव फदव- ययमान भ ह ॥ १७१॥ न ८ कतत समपरकाश निरजनभ दीह ५ कोह वधन नदीहसो समाधि परापत होष द ॥ १७२ ॥

अहो निरजनः शतो वोधोह परकतः परः ॥ इति मता यदा जञानी समाधिम‌चग‌- चछति ॥ १७३ ॥ वदधो वदधाभिमानी.यो सकतो सकताभमानयपि ॥ वहन -च कि भकतन समति चागचछति ॥ १५७ ॥ अदा निरजन शात रकतित पर वोधहप भ दी हौ इष

रकार मानिकरि जञानी शीधरदी समाधि परातत हव ह । ॥ १७द॥ ज परप अपनी इचछाकरिक वदध ह सो वद

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(९०) योगसय 1

होयद जो अपनी इचछक अभिमानत कत द सो अकत द वहत कथनकरनप कया ह यह जीव अपन सतक अनसार गमन कर ॥ १७४ ॥

समकष ससार अभशचरपि दशयत ॥ मकषमामनराककषा वरल ह‌ महयशय 1} १७ ॥ इस ससारम मोकषकी तथा मोगकी इचछावाल जन

वडत ह तथा मोकष वा भोगकी इचछा रहित को महाशय , विरखारी रोह ॥ १७० ॥

सरतयसौ नव यदा कथचिदभयासतो धारणधयानतरयः ॥ तदव तनानि फटान‌ सयमऽविरोधसरखयोभत नजि-

तासः ॥ १७६ ॥ समाधिधारणा धयान खयमकन सयमः ॥ जतशवाससय यकत-

सय पातत सदयः ॥ १७७ ॥

पसन परणायाम सदरादिकनकारक जीतलियो द पराणवाय जन सो जाकारकविप धारणा षयान` समा- पिक अभयासत कोई सपय सविति नदी दव ह तदी समय सथमक जा जो फर आनदक दववार सो सपण आमकर परात दवर ॥ १७६ ॥ सयमलकषण करदह जिस

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भाषाटीकासमत । (९५१)

कालम धारणा धयान समाधि एकच अरथात‌ एकपदाथम आरढ दो ह सोई सयमलकषण होव अ धारणा धयान समाधि इन तीनोका एक होना सयमह सो वाततौ योगत कथन करी ह, यथा “यमक सयमः तथा अयमतरग परवभयः” जितशवासपरषदर सपण सिदि भरात होती ॥ १७७॥

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जितदरयमचषयसय‌ _ सट भरामाति

निधितम‌ ॥ नवाजितदरियसयव वदवा द‌रतसय च ॥ १७८ ॥ ।

जतदरी मलय सिदधिकर नशय पवद तथा अनितर विदानभी दोय तो मी नी पहच ॥ १७८ ॥

अतीतानागत जञान परिणामशच सयमात‌ ॥ कमनाधया भवत‌ सथर मरदान सषट- दशन‌ ॥ १७९ ॥ अतीत जो काल परम दोचका अनागत जो जो आनि.

वाला द इनविष सयमकरनस सवकरममोका जञान होव किम कोन था कयाकरता रहा ओर आग कया होगा छरः हया जो नाडी ताविप सयमकरनस सथिरता परात दोवह अरथात‌ कोईभी दिला नर सकता मदधाकविप सयमकरनस सण सिदधीनक दशन तथा वाताङाम दवद ॥ १७९॥

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(५२ ) योगरहसय 1 4 ३ $ © # क

जञान समसतजगता सयम‌ सयरभडठ ॥

सचकानयासयततन परविशतयपरा परम‌

॥ १८० ॥ समानवायवा जवलनदान गमन गतिः ॥ लावणय च वट रप यरमिसतसमिस‌ ससयम ॥ १८१ ॥ सक- विपि सयमकरनस सण जगत‌ तथा तीनो

रोकका जञान होय रचक भराणायामक अभयास सयम‌- । क अथोतत‌ पराई द परवश रोनकी शाति दवह ॥ १८० ॥ समाननामकरिक जो वण ताम सयमकरनस जवलन अथोत‌ जकतदएकी नह परतीति होव इचछो तो जकभी जाव इसीको योगामि कदतर उदानवायकविष सयमकरनस गमन विप गति अथो जक न डब कक नरग मोर आकाशम भी गमन‌ की राकति रो जिस निस‌ पदाथक विप सयम कर सोह पदाथरप सवय आप होवह कामदवविप रप तथा ओ दमान भीमादिकनविप वल सण सोई रप परापत दव सो दातो अमतविद उपनिपतविप कथन करी ह ॥१८१॥

इति शरीयोगमारमराशिकाया इवयोगवणन नाम‌

ततीयोपदशः ॥ ३ ॥

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भाषादीकासषमत । (९३)

॥ अथ राजयोगवणनम‌ ॥

मनो खयो .हठपायो राजयोगाय कटपत ॥ यो य योग विजानाति चततमः सवयोगिनाम‌ ॥ १ ॥ वननासन सथितो योभी स विधाय शमीम‌ ॥ शरणया- दकषिण रत सषमातसकषमतर धवनिम‌ ॥२॥ इसक अनतर राजयोग वणन करद कि सपण मरयोगः

रययोगः, दठयोग इनक क उपाय‌ अथात‌ साधन र सो कवल राजयोगक अथ होरवह जो योगी राजयोगक अचछी तरहत जानि सो सपण योगिनक विप उततम ह॥ १ ॥ वनरासन जो सिदधासन तारि बधिकरि शभिवीघदा जो खचरीखदरा तादि धारणकरिक दकषिणशरो जो दकषिण कण ताम सकषमत सम धवनि दोव तादि रवण कर ॥२॥ आभा परथमावसथा वटाऽवसथा दविती यिका ॥ ततीया परिचया च निषपातत- आ चतरथिका ॥ ३ ॥ चतषटय सवयोग महासिदिमरदायकम‌ ॥ कथित कसस मरथः सयानमहासिद सवितम‌ ॥ ४॥. तदा परथम आरमभा ३ दसरी चरा २ तीसरी परिचया ३

चह निषपात £ यह जो अवसथाचएटय ह सो मान‌

Page 95: Yog Marg Prakashika

(९४ ) योगरहसय ।

सिदधि जो अणिमा महिमा आदिरकारि तिनकर दववा- र ताक वणन करिषम कोन समथ ह सो महासिद जो कपिलाचाययद आदिरकरि शरीशिवजी तथा मचछदना- थादिक तिनन सवन कयो द ॥ ९ ॥

बरहमशरथयदा भदाऽनाहतः शरयत धवारनः॥

दिवयदहशच तजखी हयानद परम जत‌ ॥५॥ सपरणहदयः शनयः आसभासामर-

कातता ॥ वरतायवववननाद जञाना द‌

वसमो भवत‌ ॥ ६ ॥ विषणगरथिरयदा सद परमानदसचक ॥ ७॥ जिषठकारविष बहमरयिका भदन तथा अनाहत जो

धवनि ह सो जिस यागीकरिक सनीजाय सो दिवयदह तथा तजवान‌ परम आनदको परापत दोवद ॥ ५ ॥ सपरण हदय आनदकारिक चनय दव जाधिप सो आरभ अवसथा कावर ॥ ६॥ जा कालम विपरथिको भदन रवर ताकतमय चटकसता शबद‌ दोवह ता नाद अवण करत जञानी दवता समान‌ खवर सो नाद‌ परम अगनदक दववोय द \ ७ ॥

रदररथ यदा भिततवा खखाधिशति मार‌- तः॥ सवदःखजरावयाधिषचधानिदरा कि नदरयात ॥< नपपतता वणसदशो नादगथ

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भाषाीकासमत 1 (९५)

परमो महाचधयदा सजायत ततर योगी- शवरसमसतदा ५.९1 सषटिसहारकततासौ सतय सतय न सशयः ॥राजयोगपरभावण न किचिदभ जगत‌ ॥१०॥ भिससमय‌ ररथि जो द ताहि भदन‌कार वाय सपर

वक तरदरभरको पराहोष तासमय सपण दःख राग दवष- दकिन करिफ उतपतति तथा जरा जो इटापा तथा वयाधि आर कथा निदर इतयादि इन सको नाशमावि परापत दीव द॥ ८ ॥ बोध तहा निषपतति अवसथाकिम वणसदश जो परममहान‌ नाद सो परापत हो वाही समय योगी इशर- रक सहश अथात‌ रचना करनम तथा लयकरनम समरथ हो ॥ ९] षटक सहार तथा उतपतन करिविम अरथात‌ रनि- वम कोई योगी समथ हद यद सतय ह सतय याम कोई सशय नही राजयोगक, परभावकरिक, ससारम किचित‌ मातर इललम‌ नही अथात‌ कोई पदाथकी पराति इलरभ नदी आपदीत सपण पदाथ सिदिताक भरात दो ॥ ३० ॥

राजयोगसय माहातमय को वा, शकरोति वरणितम‌ ॥ योगसयासय च कततार विजञ यासत महशधराः ॥ ११॥

इस राजयोगका मासय को कहन नही सकजो योगाभयासी इसको जानत तथा करत महशर अरथात‌ हला विपण महशक समान समञचना चाहिय ॥ १३ ॥

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(९६) योगरहसय ।

एव नानाविधा माग रानयोगपथा- यत ॥ करियत राजयोगन‌ काटसय- सखवचनम‌ ॥१९ ॥ राजयोगमनानतः कवल हठधममिण‌ः ॥ तपामभयासिना मनय शरमो हि फवट फट‌ ॥ १३॥ नानापरकार ज सपण माग अथात‌ मोकषक मागत

सब राजयोगक अरथ दरव काल जो ह ताक सखकी वचना कवर राजयोगरी करिक रोद ॥ १२॥ जो परष राजयोग जो कवर निशवयतादि नही जानत कवल जप- तपादिक इटममी द तिन अभयासीनक कव धमदी फ‌ पराोगा ॥ ३६ ॥

कचिदान परशसति कचिदधमम तथापर ॥ कचिदगदरसथकममीणि कचिदरागयसतत- मम‌॥ १४ ॥ उभरिदोनादिक कचित‌ तपः शोच १ ॥ एव वदति सनयो सषठ सिषय ॥ ५५ १ कोर कोर दानकी भशसा करत ततदी कोई कममी

परशषा करत को गहसय कमम अचछ मानत कोई वरागयको उततम कदत ॥ १४ ॥ फोर अविहोनारिकि

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भाषारीक समत । (९७)

ज यञादिभकममकि तथा कोह तप शोच कषमा आम वदर अचछा कहत यदी परकार यनिजनोनि मोकषक अथ वत उपाय कर ॥ १९५ ॥

एव विादकतणा मत वकत न शकयत ॥ इद मक मया पराकत यगशारसल सवभावः तः ॥ १६॥ भततियोगोऽथवा जञान. तपः शोचादिक तथा।न जञायतऽसमिन‌ ससार एथगगयोगता ॥ 9७ ॥

तथापि इनम जो वादविवादक करवार ह तिनक मत वणन कथविद हम समथ नदी हम तो अपन अनभव

` एक योगशाघदी परम मत मानत सो वरणन करौ द ३६॥ भकतियोग जञान तप शोचादिक जो दसो इष ससारक विप कोई अषटागयोगत वाहिर नदी सो वाता वणनकरह कि भगवानकी जो नवधा मकति द यथा““धरीमदधागवत-अवण कीततन विषणोः समरण पादसवनम‌ ॥ अचन वदन दासय सखयमातमनिवदनम‌॥।१॥''अरथ-रथाशचवणकरना१नामस कीरतन २ समरण ३ चरणसवा ¢ पजन करना 4 वदना करना & दसयपन ७ सखयभाव < आतमनिवदन ९ अथात‌ आतमसमपणकरना सो इस नियमक अगाविप अतभाव द तथा समाधी योगस पतजलिनि काह “८ ईशवरमणिधा- नादवा" कि ईर पमपवक परणिधान अथात‌ पजन सो

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(९८ ) योगरहसथ । ८ = €~ {{ ~

समाधि दोह तथा नारारयणतीथन" परमभकतियोगसतई- रचरणारविदयः परमपरबाहो अविचछननससमाधिः ' अथ हवर चरणारिदविप परमपराई जो र सो समाधि तव परमभकतियोग होवह तति सवकाल समाधि तीनपरकार वणन करिचकह जञानसमापि १ भकतिसमायि २ तथा कमम समाधि ३ यादीको धयानपतमाधि वणनकद अथात‌ योगस समाधिहोवह विना इसक अनयपरकार नकष ॥3७)॥

चिततसथय सथिरो वायसत विडः सथिरो भवत‌ ॥ जायत सहनावसथा यमिना मोः कषदायिनी ॥ १८ ॥ यावचच गचछदनिर- सतदातमक तावनन विडः सथिरता परपदयत॥ तावनन धयान न च रागरसकषयसतावनन जञान रभत विरागवान‌ ॥ १९ ॥ जिकालम चितत सथिर दोवह तब चिततक सथिर

दोनस वायभी सथिर दोयद वाय सथिर रोन सहजावसथा अथात‌. समाधि जो दस पराप दोव सो समाधि योगीज- नकि मोकषकी दनवारीह॥१८॥ नवतक अनिल जो वा सो बरह जो ह तारको परपत न दौ तवतक को उपा- यस विड सथिरता परापत नरी होता जवतक विट‌ सथिर नदी होता तवतक रागधयान तथा राग जो शीतोषणादि-

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भापारीकापतमत । (९९)

कोकी वाधा तिसका सकषय नदी रोता ओर जवतक शीतषणादिकोकी वधा रहती तवतक जञानी पराति नरी यदयपि वरागयवानभी दो तोभी कया ॥ १९॥ नसति योगसमा विया न नादसदशो ठयः मननमरना हयवसथाह यथा सदरघ शमः वी॥२०॥ । योगविदयाक समान कोई विय] इस सषार नही

नारक सहश कोई लय‌ नरी अवसथाम मनोनमनीक समान‌ कोद अवसया नरी तसदी शाभवीखदरक समान कोह सदा नह ॥ २०॥ न

योगाऽवसनधानसमाविपतर योगशवराणा दि वततमान‌॥ आनदणण वचसाहयगमय जानात‌ तत‌ शरारनाथ एकः ।॥ २१ ॥ . योगका जो, अनसधान समापिका परह सो

योगशवर जो पण .योग कनत ह तिनक हदयम‌ वतमान कर परापत हो रहा ह आनद कि पण दि क निनधयकरि वाणीति अगमय‌ उसको कवर एक गरनाथरी जानत द दोहा-अजञानीको जगलो, जञानवानफो एन । अधको जिमि अघगद हगवारको चन ॥२१॥ ,

रपलवणयसपनना यथा खी परप पिना ॥ तथा योगन रहितो ` हञानरतोऽपि वा॥२३॥

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(१००) योगरहसय ।

जस हप ओर छवणयता करि यकत जोखी सो परषविना वयथ हती ह तसदी योगाभयास करिफ रहित मनषय बरहमञानीभी दोय तोमी वयथ दोवह ॥ २२ ॥

इति ीयोगमरमभकाशिकाया राजयोग वणन माम‌ चतथापदशः ॥ ४॥

ि ॥ अथ पराणायाम‌करम‌ निरपयत ॥ अथानयासकरम वकषय योगिना सिदिदा- यकम‌। परातःकछठ सयतथाय परणमयसव शन सधीः ॥ १॥ विधिवचछोचादिक कतवा एकति च मठ विशत‌ ॥ सकमरपर मठ रमय परातदवापयासन‌ शरद॥२॥थ- र ससमरतय हदय विदचश सवहदवताम‌ ॥

तततसखकटपक कतवा पराणायामनततवाऽ

भयसत‌ अव पराणायामका कम‌ निषपण कर ह जाक अनतर

अथोत‌ चार परकार योगक अनतर पराणायाम अभयास- करमजोहसो करी सो करम योमीनकर सिदधिदायक द कि, परातःकार अरणोदयस ठकरि सयौदयपरयथत हष ह ताम उिरि अपन यर जो आचायय ओर मदातमा तिनि परणाम करिक ॥ ३ ॥ विधिपवक शौचारिक जो करिया तादि कारक एकरातसथानशपि जो मठ तम परम

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| भाषादीकासमत । (१०१)

कर सो मठ सकषम अरथाव‌ णसा दवार ओर रमणी- क हो तम गदक कोमर आपन विष ॥ २॥ ओर यर जो ह तथा गणश दव जो ह तथा इषयव जो ह तिनदी हदय विष समरण करि तकि अनतर सकलप उचारण करिक पराणायाम अभयास कर ॥ ३॥

सदर च विपरीताखया ईभकातपवमभय- सत‌ ॥ कभक दशकतवयाः पच वा दिनिदिन ॥४॥ ओर जो विपरीत करणीखरा ह तारि कमकत पवरी

करन योगय ह भकत पात‌ योगय नदी भक अभया कालक परथम दशङखभक करना योगय ह फिर दिनि दिनि विष पाच पाच दि करना योगय ॥ ९॥ _

सदितमभयसतावत‌ यावलछभ न कवल „५5 ` म ॥ कषलानतर चव. ङययादश री व शतः, ॥ ८५ ॥ अभयास सकट कर क

दीशवरापणमादतः ॥ मधय च तथी भयास कतवा भोजनमाचरत‌ ॥६॥ “कम रच परक करक यक जो सदितङकभक जवतक कवर

कभक भरात न दोय तव तक सहितङमकका अभयास कर ओर जवतककवलछमफ सिदहोजाय तवतक दश वा वीस

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(१०२) योगरहसय ।

सित कभक कर ॥ ५॥ अभयास सपरण ईद आदर वक अपण कर इसी भकार मधयाहनकाल ६.॥ अभया कर ओर अभयास करक फिर भजन कर ॥ £ ॥

कवीत भानन पथयमपथय न कदाचन‌ ॥

भोजनातर‌ कचचचछयन ससयदाय- कम‌ ॥ ७ ॥ साय सपयावाष कतवा

योग परववदाचरत‌ ॥ अदधरतर हटाभयास अदधाचयदि धीमतः 1 ८ ॥ भोजन पथयकर अपथय कद समय न कर सो पथया-

पथय विचार परषदी कटिक मोजन करिक सोखयदा- यक जो शयन ह सो थोडासा कर ॥ ७ ॥ सायकाल- विप सधयावदन करिफ जस परवकारविष कहि आय तसरी फिर अभयास कर ओर धीमान‌ जो साधकषस‌- पकी अदधा होय तो अदरा समय इठ अभयास कर इस परकार योगाभयास कम‌ द सो जानना ॥ < ॥

॥ अथ छयपरपसय वधानम‌ ॥

शदधातरप सवदहसय‌ परातावरव वलकरयत‌॥ भमो ददवातथा ख च परतीकोपासना चरत‌ ॥ ९1 योगी समभयसषितय खपरतीक यथारिघ ॥ वन विजञायत सव ठलभिालाभा मामव ॥१०॥

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भाषाटीकासमत । (१०३)

दढ आतप जो सतरचछ घम वा सवचछ चादनी षो तव -अपनी दहका जो परतिविव अथात छया ताहि विलोकयत‌ क दख गरदनविप इस परकार परथिवी दखि आकाशम दख तो जषर छायापरष दशन रोगा इसम सशय नकष दसी परतीकडपासना कर इसको परतीक उपासना कत ह ॥ ९॥ अपना जो सवपरतीक अत‌ छायापरप दशन सो योगी नितयदी दखनका अभयास कर तिपत छायापरष दशनत सप टाम हानि होनी अनहानी सपण माटम दोजाती ह ॥ १० ॥

शिरि तथा कपसतदा मतयभवषवम‌ ॥ यदा न दरयत बाहशरतरदानिसव जायत ॥ ११ ॥ समसतान च. हवगान

खपरतीकन परयति॥ ततसव च विजानी- याततसय हानिरन सशयः ॥ १२॥ जो छायापरपका शिर न दिखाय तथा कापा दीस

, तो अबहय सतय होती ह ओर जो दकषिण यजा न दि खायतो वषकी दानि होयवाम यजान दिखायतो सखरीकी दानि दोय ॥१३॥ समसतजो सपरण अग छायापरपक र तिन जो न दिखाय तो जानना चादिय कि तिसी अगकी दानि होगी इसम सशव नदी ॥ १२॥

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(१०४) ` योगषहस ।

यःकरोति सदनयास यकताचरण‌ मायप ॥ ईशतव नातर सदहः पणमासन च लभयत‌ ॥ १३ ॥ विवाह गमन‌ चव कलि वमरण तथाणयवरयमव कततवय याग भिसतदपासनम‌ ॥ १४ ॥ जो साधक सदवक छयापरप‌ दशनका अभयास

करता द उह छ महीनो हशर अथात‌ मददिवक सदश समथ दोजायगा ॥ ३३ ॥ विवाहकाल तथा यााकाल तथा मरणकाल इन कालनम‌ योगीनकरिक तौन उपा- सना अवशय कतवय र इसस सववाता परवपर जानी जाती द॥ १४॥

सकलयोगरदसयमितीरित यगलदासज- नन समाशवतः ॥ पठति यशसमाचरतीदह व पतति जात स नो हि भवाणव ॥ १५५॥ सपण जो योग शाघलङन रहसय अथात‌ साररसो समास

पवक समयक‌ परकारस यगलदास जो ह तिन ककि वणन कनया ₹ ताह जो मचघय‌ पठ वा साचरण करगा सो

भवाणव जो सपारसागर ह ताम पतित नदा दगा इसम‌

सशय नरहा ॥ १९५ ॥ इति भाणायामकरमः ॥ समाकतोऽय नथः !

› समरज शरीरपणदापतः “शरीवङकट.धर ? सथम‌ मष-ववई. “ ।