हात्ा गांधी विचा का कलात्क प्रोग...

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Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 | www.shisrrj.com Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal © 2019 SHISRRJ | Volume 2 | Issue 2 | ISSN : 2581- 6306 143 महामा गािधी विचार का कलामक योग एिि समकालीन पररय मे ासिगगकता। डॉ. संदीप क मार मेघवाल (वतं कलाकार) पता- मु. पो.- गातोड़(जयसमंद), तहसील- सराड़ा, जला- उदयपुर, राजथान-313905 गािधी जी का जीिन सय, अहहिसा, सादगी और भाईचारे पर आध त था इसललए कला के सिबध म उनका विचार भी सादगी, सरलता, जीिितता और जनमानस से सहज ज डने की िया के अन ल था। िकला सयम ् लििम ् स िदरम ् म स दरम् के थान पर रखते थे। गािधी जी का िदे िी अपनाओि का नारा लसफ िदेसी उयोग े तक ही सीलमत नहीि है , यह िदे िी कला एिि सिक त को बढ़ािा देना भी है। लेकन साधारण तौर पर इस नारे को िदे िी उयोगो के बढ़ािे के सिदभफ से ही जोड़ा गया है। हमे गािधी विचार का ामीण विकास म कलामक योग क और भी यान आकवषफत करना चाहहए। महामा गािधी टोसटाय के कला सबधी विचार से िे सहमत थे उहने अपनी कला प तक हाहटन आई म कहा है क आजकल ऐसी कोई कला सची कला नहीि हो सकत, जो जनता के हाथ िारा त त की गयी हो। गााधी जी का कथन था क मिीनय ग की दौड़ म दय की सचाई को मेहनत के हाथ िारा कट करना ही असली कला है। चखाफ और खादी इस कला के तीक थे। (गच सिया-1) िदे िी ित ओि का योग उनकी टट म लोक जीिन और लोक कला को बढ़ािा देना था। यह मानना क कला और सिक त के त उनका कोई लगाि नहीि था, उगचत नहीि लगता। जब भारतीय प नजाफगरण म कला और सिक त के योगदान की लमका पर िाततनके तन के कला य िछा रामचरन ने अतब1924 म उनसे न कया तो उनका यह सटीक उर था, जससे कला के बारे म उनकी अिधारणा का पता चलता है। गााधी जी ने उर हदय' इस विषय पर मेरे बारे म बड़ी गलत हमी ह। म दािे के साथ कह सकता ह क मेरे जीिन म सचम च कला का अचेटसमािेि ह। म कला के बाहरी लकदक ऱप का नहीि आतररक सौदयफ का प जारी ह । म ऐसी मयिगीय कला और सिक त म हदलचपी नहीि रखता जो अिेजी भाषा और गच सिया-1

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    महात्मा गाांधी विचार का कलात्मक प्रयोग एिां समकालीन पररदृश्य मे प्रासांगगकता। डॉ. संदीप कुमार मेघवाल

    (स्वततं्र कलाकार) पता- मु. पो.- गातोड़(जयसमंद), तहसील- सराड़ा,

    जजला- उदयपुर, राजस्थान-313905

    गाांधी जी का जीिन सत्य, अहहांसा, सादगी और भाईचारे पर आधतृ था इसललए कला के सांबन्ध में उनका विचार भी सादगी, सरलता, जीिांतता और जनमानस से सहज जुडने की प्रक्रिया के अनुकूल था। िे कला सत्यम ्लििम ्सुांदरम ्में सुन्दरम ्के स्थान पर रखते थे। गाांधी जी का स्िदेिी अपनाओां का नारा लसर्फ स्िदेसी उद्योग क्षेत्र तक ही सीलमत नहीां है, यह स्िदेिी कला एिां सांस्कृतत को बढ़ािा देना भी है। लेक्रकन साधारण तौर पर इस नारे को स्िदेिी उद्योगो के बढ़ािे के सांदभफ से ही जोड़ा गया है। हमे गाांधी विचार का ग्रामीण विकास में कलात्मक प्रयोग क्रक और भी ध्यान आकवषफत करना चाहहए। महात्मा गाांधी टोल्सटाय के कला सम्बन्धी विचारों से िे सहमत थे उन्होंने अपनी कला पुस्तक हाहटन आई में कहा है क्रक आजकल ऐसी कोई कला सच्ची कला नहीां हो सकती, जो जनता के हाथों द्िारा प्रस्तुत की गयी हो। गााँधी जी का कथन था क्रक मिीनयुग की दौड़ में हृदय की सच्चाई को मेहनत के हाथों द्िारा प्रकट करना ही असली कला है। चखाफ और खादी इस कला के प्रतीक थे। (गचत्र सांख्या-1) स्िदेिी िस्तुओां का प्रयोग उनकी दृष्टट में लोक जीिन और लोक कला को बढ़ािा देना था। यह मानना क्रक कला और सांस्कृतत के प्रतत उनका कोई लगाि नहीां था, उगचत नहीां लगता। जब भारतीय पुनजाफगरण में कला और सांस्कृतत के योगदान की भूलमका पर िाष्न्ततनकेतन के कला युिा छात्र रामचन्रन ने अक्तबर 1924 में उनसे प्रश्न क्रकया तो उनका यह सटीक उत्तर था, ष्जससे कला के बारे में उनकी अिधारणा का पता चलता है। गााँधी जी ने उत्तर हदया क्रक ' इस विषय पर मेरे बारे में बड़ी गलत र्हमी हैं। मैं दािे के साथ कह सकता हूाँ क्रक मेरे जीिन में सचमुच कला का अचेटट समािेि हैं। मैं कला के बाहरी लकदक रूप का नहीां आन्तररक सौन्दयफ का पुजारी हूाँ। मैं ऐसी मध्यिगीय कला और सांस्कृतत में हदलचस्पी नहीां रखता जो अांगे्रजी भाषा और गचत्र सांख्या-1

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    पश्चात्य सभ्यता के अनुकरण के रूप में उत्पन्न हुई है। 'गााँधी जी गााँि के गरीबों तक कला और सांस्कृतत के प्रसार के पक्ष में थे इसललए आहदिासी कलात्मक उपकरणों में उनका गहरा लगाि था। उनका विचार था क्रक 'मेरी कल्पना में आदिफ गााँि में ग्राम कवि, दस्तकार िास्तलिल्पी भाषाविद िोधकताफ आहद सभी होंगे। िहााँ एक गााँि रांगिाला भी होगी जो साांस्कृततक गततविगधयों का केन्र बनेगी। भारतीय लोक कला के पनुरुत्थान एिां जनसामान्य की कला को बढ़ािा देने के पक्ष में गााँधीजी सदा रहे। झोपडड़यों में रहने िाले गााँधी अपने आश्रम की झोपडड़यों एिां कच्च ेघरौंदों को गोबर लमट्टी से ललपिा कर कलात्मक मण्डपों एिां गचत्रों से सुसष्जजत करिाते थे ष्जससे उनका लोक कला के प्रतत लगाि सहज

    प्रतीत होता है । इतना होने पर भी िे कला को गौण समझते हुए कहा करते थे क्रक

    'हमें चाहहए क्रक हम पहले जीिन की आिश्यक िस्तुएाँ जुटाकर जनसाधारण को उपलब्ध करािें और जीिन को अलांकृत करने िाली और िालीन बनान ेिाली चीजें पीछे स्ियां आ जायेंगी।1 गाांधी जी की स्िदेसी िोच के पररणाम मे जालमनी राय जैसे कई गचत्रकारों की पीढ़ी तैयार हुई। जालमनी राय को गाांधीजी ने िुद्ध स्िदेसी राटरिादी कलाकार की सांज्ञा दी गई क्यूांकी उनकी कृततयााँ िुद्ध रूप से लोक आहदम कला से प्रभावित थी। (गचत्र सांख्या-2) स्िागधनता सांग्राम के इस दौर मे कई

    कलाकार बड़चडकर अपना कलात्मक अिदान दे रहे थे। इसी प्रकार मूतत फकार

    गचत्र सांख्या-2

    गचत्र सांख्या-3

    गचत्र सांख्या-4

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    देिीप्रसाद राय चौधरी द्िारा तनलमफत 1982 मे ‘स्ितन्त्रता स्मारक’ नामक कास्य मे ढला लिल्प बनाया जो हदल्ली मे स्थावपत है। (गचत्र सांख्या-3) गाांधी विचार के अनुसार एसे विचार आहदम काल से एिां समकालीन पररदृश्य मे अभी भी जीिांत है। आहदिासी आज भी साधारण भौततक सुख सुविधाओां से दरू चुतनन्दा प्राप्त िस्तुओां का प्रयोग कर अपन े आिास को अलांकृत कर जीिन यापन करता है। यहााँ गाांधी विचार की प्रासांगगकता देखने को लमलती है।गाांधी जी का कला से लगाि प्रारम्भ से ही रहा है। इसी के पररणाम से भारतीय पुनरुत्थान कालीन कला आांदोलन से भागीदार कलाकारों से करीबी सम्बन्द रहे थे। भारतीय कला जब अपने अष्स्तत्ि को छोड़ देने के कगार पर थी, तब ई. िी. हैिेल ने सन ्1884 ई. में मरास कला विद्यालय के प्राचायफ पद पर रहकर सांबल प्रदान क्रकया और सांसार का ध्यान भारतीय कला और सांस्कृतत की ओर आकवषफत क्रकया। सन ्1896 ई. में ि े चने्नई कला विद्यालय से कलकत्ता आटफ स्कूल के वप्रांलसपल बने। भारतीय जीिन आदिफ से अजांता, राजपूत एिां मुगल िैली को आधार मानकर कलालभव्यष्क्त करने की सलाह दी।2 इसके पररणाम मे िाांतततनकेतन के कई कलाकारों ने ष्जसमे प्रमुख नांदलाल बॉस ने काांगे्रस के विलभन्न अगधिेिन मे मांचसजजा म ेकायफ क्रकया ष्जनके विषय भारतीय लोक आहदम कला का थे ष्जससे अगधिेिन मे आने िाले लोग इन गचत्र सांसार को स्िदेिी सांस्कृतत स ेप्रेम भाि का सांचरण हो सके।(गचत्र सांख्या-4) नांदलाल बॉस द्िारा गचत्रत्रत गाांधी जी का दाांडीमाचफ गचत्र बहुत प्रलसद्ध है (गचत्र सांख्या-5) स्िागधनता इततहास से ज्ञात होता है क्रक गाांधी एिां ग्रामीण आहदिासी भारत के मध्य विचारों का मजबूत साांस्कृततक सरोकार रहा है। क्रकसी भी बात को सहज ढांग से कहने या समझाने के ललए गचत्रों का प्रयोग क्रकया जाए, तो िह बात बहुत सरल तरीके से समझ आ जाती है। ऐसा कई विद्िान कहते है एिां करते है गचत्रों के प्रयोग हमे पौराणणक ग्रांथो एिां समकालीन साहहत्य में भी भरपूर देखने को लमलता रहा है। समकालीन पररदृश्य में महात्मा गाांधी एिां जनजातीय विकास में कला की बात करे तो गाांधी एक येसे आइकन रहे है ष्जनके गचत्रो का प्रयोग अगधकतर योजना से जोड़कर क्रकया जाता रहा है तनसांदेह गाांधी एक येसे हीरो हे ष्जनके कृततत्ि एिां व्यष्क्तत्ि से दरू देहाती जनजातत लोक में चीर पररगचत है। इसललए इनके गचत्रों का प्रयोग जन कल्याणकारी योजनाओां से अक्सर जोडकर जनप्रसार हेतु प्रयोग क्रकया जाता रहा है। जसेे रोजगार के ललए आत्मतनभफरता के ललए चरखे का प्रयोग, मनरेगा योजना, स्िच्छता अलभयान में गाांधी के चस्मे का लोगो प्रयोग आहद कई उदाहरण है।(गचत्र सांख्या-6)

    गचत्र सांख्या-5

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    गचत्रकला की आधतुनक प्रिवृत्तयों पर भारतीय जन जागरण एिां गााँधीिादी विचारधारा का पूणफ प्रभाि दिफनीय है । देि व्यापी राटरीय जागतृत ने सारे देि के कलाकारों में नई चतेना का उन्मेष भरा । इस दृष्टट से भारत में राटरीय और साांस्कृततक इततहास के अभ्युत्थान में कला का महत्त्िपूणफ योगदान रहा है । गााँधी जी द्िारा प्रदीप्त जन जागरण के इततहास का िलमक विकास उस समय की कला िैललयों में सहज ही रटटव्य है। आचायफ अिनीन्र नाथ ठाकुर ने गचत्रकला के ष्जस निोत्थान का उद्घोष क्रकया था, उसका सर्ल नेततृ्ि उनके लिटयों ने बड़ी सर्लता से क्रकया। सिफतोमुखी प्रततभा के धनी नन्दलाल बसु इस क्षेत्र में सबसे आगे थे। िे असली भारतीय गचत्रकार थे। भारतीय पौराणणक कथाओां एिां चररत्रों के साथ ही गााँधी जी के सत्याग्रह आन्दोलनों एिां राटरीय भािनाओां का अांकन उन्होने बड़ी सर्लता एिां सजीिता से क्रकया। उनका गााँधी जी की दाण्डी यात्रा नामक गचत्र, कला में अत्यगधक सराहनीय रहा। भारतीय आधतुनक गचत्रकला में 20िीां िती के प्रारम्भ से ही कलाकार गााँधी जी की विचारधारा से प्रभावित होने लगे थे। मिीन युग के विपरीत लघु उद्योग, चखाफ, खादी ग्रामीण जीिन की सादगी, हस्तकला तथा सत्य, अहहांसा आहद के पोषक गााँधी जी ने भारतीयों को सादा और सच्च ेजीिन का पाठ पढ़ाया। समकालीन दौर क्रक और ध्यान आकवषफत करें तो हाल ही में सरकार के स्िच्छता अलभयान की बात करे तो यह योजना जमीनी तौर पर लागू एिां जन प्रसार हेत ू गाांधी के चस्मे एिां गचत्र सांदेि माध्यम का प्रयोग पूरे देि में भरपूर क्रकया है।(गचत्र सांख्या-6) गाांधी के गचत्र िॉल पेंहटग करके नाना प्रकार के सांदेि देने का प्रयोग क्रकया जेसे गाांधी के गचत्र के साथ कचरा न रै्लाने का सांदेि

    ललखा हुआ है।(गचत्र सांख्या-8) गाांधी स्ियां कचरा उठाते हुये।(गचत्र सांख्या-7) देहातों में घरो की बड़ी - बड़ी दीिारों के पीछे भरपूर गचत्रण इन हदनों देखने को लमलते है। इस प्रकार के प्रयोग दरू देहाती जनजातत क्षेत्रो में बहुत हुए एिां इनका प्रभाि भी बहुत पड़ा है। लोग स्िच्छता के प्रतत जागरूक हुए है। कई गााँि में परेू के पूरे गली - गललयारे गचत्रत्रत क्रकए हुए लमलते है ष्जससे लोग ष्जधर भी देखे उधर गचत्र हदखाई पड़ ेतो आणखरी में िह गांदगी न रै्लाने का प्रण ले बैठता है। येसे कई कलात्मक प्रयोग जमीनी तौर पर कारगर सात्रबत हो रहे है।

    गचत्र सांख्या-6

    गचत्र सांख्या-7

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    भारतीय कला इततहास में जालमनी राय ऐसे ही कलाकार हैं, ष्जन्होने लोक जीिन के महत्त्ि को पहचाना और अपने लोक रांगों के माध्यम स े लोक जीिन स ेसम्बष्न्धत लोक िैली में अनेक गचत्र बनाए जो भारत में ही नहीां िरन ् विदेिों में भी अपनी जमीन से जुड़ े होने के कारण प्रलसद्ध हुए। आधतुनक गचत्रकला के क्षेत्र में उनका उपयुफक्त नि आन्दोलन इततहास की अविस्मरणीय घटना है। देि को िास्तविक

    लोक कलात्मक सांस्कृतत को जालमनी राय न ेकलात्मकता से अपनाया। तीन बहनें , सीता की अष्नन परीक्षा तथा अन्य धालमफक गचत्रों में लोक कला की सरलता और सच्चाई को अपना कर उन्होने कला जगत में अपना वििषे स्थान बनाया। गााँधी जी उनकी सरलता से अत्यगधक प्रभावित थे। स्िदेिी िस्त्रों को अपनाने के ललए गााँधी जी ने खादी को वििषे महत्त्ि हदया। खादी पर क्रकए जाने िाले छापे लोक कलात्मक रांगों एिां गचत्रों से अगधक सुसष्जजत होते हैं, ष्जसमें जालमनी राय की िैली का प्रभाि वििषे दिफनीय है।(गचत्र

    सांख्या-2) आधतुनक भारतीय गचत्रकला की आधतुनक

    भारत के स्िरूप में प्रततष्टठत करने का शे्रय एक ऐसे कलाकार को है, ष्जसने विदेिों में लिक्षा ग्रहण की क्रकन्तु उसने अपनी कला का आधार बनाया। भारतीय ग्रामीण जीिन को अमतृा िरेगगल के गचत्रों में भारतीय जन जीिन की गरीबी, असहायता, भोलापन आहद वििषे उल्लेखनीय है। उनके गचत्रों में दललत िगफ की भूख, प्यास और पीड़ा बोलती है। हहन्दी कथा साहहत्य में जो कायफ प्रेमचन्द ने क्रकया, कुछ िही कायफ गचत्रकला के क्षेत्र में अमतृा िरेगगल ने क्रकया। उनके गचत्रों में भारत की आत्मा बोलती है। (गचत्र सांख्या-9)

    गचत्र सांख्या-9

    गचत्र सांख्या-8

    गचत्र सांख्या-10

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    गााँधीजी का भारत उनके रांग और रेखाओां में साकार हो उठा है। मदर इष्ण्डया, लड़क्रकयााँ, िर िध ूका श्रृांगार, सांगीतकार, लभखमांगे जैसे गचत्र कला -जगत की थाती हैं । भारतीय आहदिासी कला को आधार बना कर आधतुनक बोध को अलभव्यक्त करने की िैली पष्श्चम की छाप कही जा सकती है, क्रकन्तु भारतीय गचत्रकारों ने आहदिासी कला की सहजता को निीन रूप देकर जहााँ आधतुनक पररिेि को उकेरने का प्रयत्न क्रकया है। बरीनारायण , रलसक रािल , आत्मेलकर आहद कलाकारों ने आहदिासी सांस्कृतत के प्रतीकों एिां कायफ कलापों को आधार बना कर अपनी गचत्रकला को व्यष्क्तत्ि प्रदान क्रकया। भील , कोल , मछुआरे आहद इन कलाकारों की गचत्रकला के आधार रहे हैं । भारतीय जन जीिन को गचत्रत्रत करने िाले गचत्रकार ग्रामीण जीिन से जुड़ ेहुए रहे हैं। ग्रामीण पररिेि, रहन -सहन, खेती -बाड़ी, सरल जीिन आहद का यथाथफ गचत्रण कर बहुत से कलाकारों ने आधतुनकता बोध की भाग दौड़ से अपने को बचाए रखा है। िैलोज मुखजी , नीरोद मजुमदार , पाररतोष सेन, बेन्रे, स्याबक्स चािड़ा, रामक्रकांकर, िाष्न्त दिे जैसे गचत्रकारों ने प्रेमचन्द के भारत को अांक्रकत कर भारतीय गचत्रकला की सही हदिा को प्रदीप्त क्रकया है । गाांधी जी विचारों का कलात्मक प्रयोग आजतक अनिरत चल रहा है। गाांधी विचार भारतीय ग्रामीण मे

    इतने घर क्रकए हुए है क्रक कोई भी आयोजन योजन इनके चीत्रों के साथ कहने का रेंड बन गया है। आज की समकालीन आहदिासी कला की बात करे तो उसमे भी गाांधी के व्यष्क्त गचत्र बनने लगे है जैसे (गचत्र सांख्या-10) ष्जसमें जो त्रबहार की मधबुनी पेंहटग मे गाांधी को बनाया है। िही गचत्र (सांख्या-11) मे िली आहदिासी कला मे गाांधी को चरखा कातते गचत्र बनाया है इससे ज्ञात होता है की गाांधी विचार आहदिालसयों मे क्रकस तरह घर क्रकया हुआ है। अन्य उदाहरण स्िछता अलभयान का है इस अलभयान के दरलमयान व्यापक स्तर पर स्िच्छता के ऊपर गचत्रकारी प्रततयोगगता भी आयोष्जत हुई ष्जसमें स्कूल लेिेल पर खेरिाड़ा के आहदिासी अञ्चल से कवपल मीणा की पेहटग ने प्रथम स्थान प्राप्त क्रकया ष्जस पर प्रधानमांत्री श्री नरेंर मोदी ने स्ियां पेहटका ट्िीट कर कवपल को बधाई दी जो अपने आप आहदिासी क्षेत्र में

    गाांधीिादी स्िच्छता अलभयान की समज गचत्र सांख्या-11

    गचत्र सांख्या-11

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    का पररचायक है। इस अलभयान में कई ग्राम पांचायत में िोल गचत्रण कायफ करिाने पर उनको अणखल भारतीय स्तर पर पुरस्कृत भी क्रकया गया।(गचत्र सांख्या-11)

    एक ओर राटरीय स्तर पर आहदिासी लोक कला में गाांधीिादी गचत्रों की बात करू तो परम्परा से हटकर निआग्रह में गाांधी के गचत्र उकेरे जाने लगे है जैसे त्रबहार की मधबुनी पेंहटग में गाांधी बनाए जाने लगे है जो कभी लोक कथाओां पर आधाररत गचत्रण हुआ करता था। तो मोलेला म्यूरल आटफ में भी गाांधी देखने को लमल जाते है तो महाराटर की िली पेंहटांग में गाांधी का सहज एिां सजृनात्मक प्रयोग आमजन में क्रकया गया है। इन तमाम बातों से यह कहा जा सकता है की महात्मा गाांधी के गचत्रों का प्रयोग जनजातत विकास कायफ में व्यापक गचरस्थाइ जगह बनाई हुई है विकास में एसे कलात्मक प्रयोग बहुत साथफक सात्रबत हुये हैं।

    उपसंहार- उपसांहार स्िरूप यह कहा जा सकता है क्रक गाांधी जी का योगदान प्रत्यक्ष एिां परोक्ष रूप से कला एिां साांस्कृततक क्षेत्र मे बहुत महत्िपूणफ है। कलाकार का सजृन समाज का प्रततत्रबांब होता इस बात की समझ गाांधीजी मे गहरी थी तभी उन्होने इस कलाकारों को अपने साथ रखा और विलभन्न काांगे्रस के अगधिेिनों, सामाष्जक आयोजनों मे अपने साथ रखा। कलाकारों के द्िारा गचत्र बनिाकर भारतीय मूल साांस्कृततक त्रबांबो को उकेरा। उनको ज्ञान था की आयोजन मे आया व्यष्क्त इन गचत्रों को देखर जयादा समय व्यतीत करेगा ओर अपनी सांस्कृतत पर गिफ महसूस करेगा एिां स्िदेिी का भाि उत्पन्न होगा। स्ितन्त्रता आांदोलन के समय से महात्मा गाांधी की स्िदेिी अपनाओां के प्रचार ने ही भारतीय कला मे लोकआहदम कला का बीजाांकुरण हो गया। उस जमाने के िाांतततनकेतन के कलाकारों मे नांदलाल बॉस का वििषे लगाि रहा। बॉि के साथ उनके विद्यागथफयो को भी सष्म्मललत क्रकया ष्जससे एक सकारात्मक पहल ने विस्ततृ रूप ललया जो बाद के कलाकारों मे भी पारांपररक रूप से सांचालन का होता रहा।

    गचत्र सांख्या-12

    गचत्र सांख्या-13

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    येसे गचत्रकार जो भारतीयता पहले है आधतुनकता बाद में इनमे जालमनी रॉय, अमतृा िरेगगल, जॉजफ क्रकट, िैलोज मुखजी, रामक्रकांकर, एम. एर्. हुसैन (गचत्र सांख्या-12), बेंरे, पररतोष सेन, रलसक रािल वििषे उल्लेखनीय है। इन परम्पराओां को आज के कलाकार भी तनभा रहे है। कई कलाकार गाांधी विचारों का गचत्रण करते है। जैसे श्याम िमाफ त्रबहार से (गचत्र सांख्या-14) िीरबाला भािसार, राजस्थान से जो रेत से गचत्र बनाते एिां आजीिन खादी िस्त्रों को ही पहना पूणफ रूप से गाांधी विचार के अनुनायी रहे है। (गचत्र सांख्या- 13)

    सरकारी योजनाओ का गाांधी जी नाम के साथ जोड़कर नाना प्रकार के सकारात्मक सांदेि हदया जाता है खासकर आहदिासी ग्रामीण अांचल मे इसका सर्ल प्रयोग गाांधी समय से आजतक चालयमान है। इन गचत्रो के माध्यम से जनजागतृत का प्रयोग भरपूर हो रहा है। यह कहना सटीक है क्रक आहदिासी जीिन मे सकारात्मक सांदेि हेतु गाांधी गचत्रण का बहुत बड़ा योगदान है।

    संदर्भ ग्रंथ-

    1. नीरज, जयलसांह, 1996 महात्मा गाांधी और कलात्मक सजृन, समकालीन कला, लललत कला अकादेमी क्रक पत्रत्रका 17(5): 32-36

    2. प्रताप, रीता, 2013, भारतीय गचत्रकला एिां मतूत फकला का इततहास: राजस्थान हहन्दी ग्रांथ अकादमी जयपरु, 317

    गचत्र सांख्या-14

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