शिवतांडव स्त्रोत का हिंदी अनुवाद

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भगवान शंकर जी का शिव तांडव स्तोत्र हिंदी में

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शि�वतां��डव स्त्रोतां का� हिं �दी� अनु�व�दी

सघन जटा�मं�डलरूपी वनस� प्रवहि�त �� र� गं�गं�जल की� धा�र�एँ� जिजन शि�वज की� पीहिवत्र की� ठ की� प्रक्षा�शिलत कीरत (धा�त ) �", जिजनकी� गंल� मं# ल�बे�-ल�बे�, हिवकीर�ल सपी% की� मं�ल�एँ� स&��भि(त �", ज� डमंरू की� डमं-डमं बेज�कीर प्रचं�ड त��डव न*त्य कीर र�� �"-व� शि�वज मं�र� कील्य�ण कीर#. ||१||जटा�ओं की� गं�न कीटा�व1 मं# (टाकीकीर अहित व�गं स� हिवल�सपी3व4की भ्रमंण कीरत हुई दे�वनदे9 गं�गं�ज की� ल�र# जिजन शि�वज की� मंस्तकी पीर ल�र� र� �", जिजनकी� मंस्तकी मं# अग्नि<न की� प्रचं�ड ज्व�ल�य# धाधाकी-धाधाकीकीर प्रज्वशिलत �� र� �", ऐस� बे�ल-चंन्द्रमं� स� हिव(3हिAत मंस्तकीव�ल� शि�वज मं# मं�र� अन&र�गं प्रहितपील बेढ़त� र��. ||२|| पीव4तर�ज-स&त� पी�व4त की� हिवल�समंय रमंण य कीटा�क्षा1 स� पीरमं�नजिन्देत (शि�व), जिजनकी� की* पी�दृष्टिF स� (क्तजन1 की� बेड़ी स� बेड़ी हिवपीभिIय�� दूर �� ज�त �", दिदे��एँ� � जिजनकी� वस्त्र �", उन शि�वज की� आर�धान� मं# मं�र� शिचंI कीबे आन�दिदेत ��गं�?. ||३||जटा�ओं स� शिलपीटा� हिवAधार1 की� फण की� मंभिणय1 की� पी ल� प्रकी��मं�डल की� की� सर-सदृश्य की��हित (प्रकी��) स� चंमंकीत� दिदे��रूपी वधा&ओं की� मं&खमं�डल की� ��(� हिनरखकीर मंतव�ल� हुएँ स�गंर की� तर� मंदे��धा गंज�स&र की� चंरमंरूपी वस्त्र स� स&��भि(त, जगंरक्षाकी शि�वज मं# रमंकीर मं�र� मंन की� अद्भुSत आन�दे (स&ख) प्र�प्त ��. ||४||अपीन� हिव��ल मंस्तकी की� प्रचं�ड अग्नि<न की� ज्व�ल� स� की�मंदे�व की� (स्मंकीर इं�द्र आदिदे दे�वत�ओं की� गंव4 चं3र कीरन�व�ल�, अमं*त-हिकीरणमंय चंन्द्र-की��हित तथा� गं�गं�ज स� स&��भि(त जटा�व�ल� नरमं&�डधा�र त�जस्व शि�वज �मं# अक्षाय स�पीभिI प्रदे�न कीर#. ||५||इं�द्र आदिदे समंस्त दे�वत�ओं की� � � पीर स&सज्जिZत पी&ष्पी1 की� धा3शिल (पीर�गं) स� धा3सरिरत पी�दे-पी*ष्ठव�ल� सपी4र�ज1 की� मं�ल�ओं स� अल�की* त जटा�व�ल� (गंव�न चंन्द्र��खर �मं# शिचंरकी�ल तकी स्था�ई र�न�व�ल सम्पदे� प्रदे�न कीर#. ||६||अपीन� मंस्तकी की� धाकी-धाकी कीरत जलत हुई प्रचं�ड ज्व�ल� स� की�मंदे�व की� (स्मं कीरन�व�ल�, पीव4तर�जस&त� (पी�व4त ) की� स्तन की� अग्र (�गं पीर हिवहिवधा शिचंत्रकी�र कीरन� मं# अहितप्रव ण हित्रल�चंन मं# मं�र प्र त अटाल ��. ||७|| नय मं�घ घटा�ओं स� पीरिरपी3ण4 अमं�वस्य� की� र�हित्र की� सघन अन्धकी�र की� तर� अहित श्य�मंल की� ठव�ल�, दे�वनदे9 गं�गं� की� धा�रण कीरन�व�ल� शि�वज �मं# सबे प्रकी�र की� स�पीभिI दे#. ||८||ग्निखल� हुएँ न लकीमंल की� स&�देर श्य�मं-प्र(� स� हिव(3हिAत की� ठ की� ��(� स� उद्भु�शिसत कीन्ध1व�ल�, गंज, अन्धकी, की�मंदे�व तथा� हित्रपी&र�स&र की� हिवन��की, स�स�र की� दुख1 की� ष्टिमंटा�न�व�ल�, देक्षा की� यज्ञ की� हिवध्व�स कीरन�व�ल� श्री शि�वज की� मं" (जन कीरत� हूँ�. ||९||नF न ��न�व�ल , सबेकी� कील्य�ण कीरन�व�ल , समंस्त कील�रूपी कीशिलय1 स� हिन:स*त, रस की� रस�स्व�देन कीरन� मं# भ्रमंर रूपी, की�मंदे�व की� (स्मं कीरन�व�ल�, हित्रपी&र न�मंकी र�क्षास की� वधा कीरन�व�ल�, स�स�र की� समंस्त दु:ख1 की� �त�4, प्रज�पीहित देक्षा की� यज्ञ की� ध्व�स कीरन�व�ल�, गंज�स&र व अ�धाकी�स&र की� मं�रन�व�ल�, यमंर�ज की� ( यमंर�ज शि�वज की� मं" (जन कीरत� हूँ�. ||१०||अत्य�त व�गंपी3व4की भ्रमंण कीरत� हुएँ सपी% की� फ& फकी�र छो�ड़ीन� स� लल�टा मं# बेढ़9 हुई प्रचं�ड अग्नि<नव�ल�, मं*दे�गं की� मं�गंलमंय हिडमं-हिडमं ध्वहिन की� उच्च आर��-अवर�� स� त��डव न*त्य मं# तल्ल न ��न�व�ल� शि�वज सबे प्रकी�र स� स&��भि(त �� र�� �". ||११||कीड़ी� पीत्थर और की�मंल हिवशिचंत्र �pय�, सपी4 और मं�हितय1 की� मं�ल�, ष्टिमंट्टी9 की� ढे�ल1 और बेहुमं3ल्य रत्न1, �त्र& और ष्टिमंत्र, हितनकी� और कीमंलल�चंन स&�देरिरय1, प्रज� और मं��र�ज�ष्टिधार�ज1 की� प्रहित समं�न दृष्टिF रखत� हुएँ कीबे मं" सदे�शि�व की� (जन कीरू� गं�? ||१२||मं" कीबे नमं4दे� ज की� कीछो�र-की&� ज1 मं# हिनव�स कीरत� हुआ, हिनष्कीपीटा ��कीर शिसर पीर अ�जशिल धा�रण हिकीय� हुएँ, चं�चंल न�त्र1व�ल ललन�ओं मं# पीरमंस&�देर पी�व4त ज की� मंस्तकी पीर अ�हिकीत शि�वमंन्त्र की� उच्च�रण कीरत� हुएँ अक्षाय स&ख प्र�प्त कीरू� गं�. ||१३||दे�व��गंन�ओं की� शिसर मं# गं&�था� पी&ष्पी1 की� मं�ल�ओं स� झड़ीत� स&गं�धामंय पीर�गं स� मंन��र पीरमं ��(� की� धा�मं श्री शि�वज की� अ�गं1 की� स&�देरत�एँ� पीरमं�नन्देय&क्त �मं�र� मंनकी� प्रसन्नत� की� सव4दे� बेढ़�त र�#. ||१४||

प्रचं�ड बेड़ीव�नल की� (��हित पी�पीकीमं% की� (स्मंकीर कील्य�णकी�र आ(� हिबेख�रन�व�ल �शिक्त (न�र ) स्वरूहिपीण अभिणमं�दिदेकी अF मं��शिसजिuय1 तथा� चं�चंल न�त्र1व�ल दे�वकीन्य�ओं द्वा�र� शि�व-हिवव�� की� समंय की� गंय पीरमंश्री�ष्ठ शि�वमं�त्र स� पी3रिरत, मं�गंलध्वहिन स��स�रिरकी दुख1 की� नFकीर हिवजय ��. ||१५||इंस सवwIमं शि�वत��डव स्त�त्र की� हिनत्य प्रहित मं&क्त की� ठ स� पी�ठ कीरन� स� (रपी3र सन्तहित-स&ख, �रिर एँव� गं&रु की� प्रहित (शिक्त अहिवचंल र�त �p, दूसर गंहित न�y ��त तथा� �मं��� शि�व ज की� �रण प्र�प्त ��त �p. ||१६||पीरमं पी�वन, (3त (वन (गंवन सदे�शि�व की� पी3जन की� नत मं# र�वण द्वा�र� रशिचंत इंस शि�वत��डव स्त�त्र की� प्रदे�A की�ल मं# पी�ठ (गं�यन) कीरन� स� शि�वज की� की* पी� स� रथा, गंज, व��न, अश्व आदिदे स� स�पीन्न ��कीर लक्ष्मं सदे� ज्जिस्थार र�त �p. ||१७||

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