shri guru gobind singh sahib ji an introduction - 100a

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Page 1: Shri Guru Gobind Singh Sahib Ji An Introduction - 100a
Page 2: Shri Guru Gobind Singh Sahib Ji An Introduction - 100a

वह प्रगटि�ओ मरद अगंमड़ा वरिरयाम अकेला ||

वाहु वाहु गोबि�ंद सि�ंह आपे गुर चेला || १७ ||

(भाई गुरदा� दूजा)

श्री गुरु गोबि�ंद सि�ंह जी का जन्म पोरव �ुदी �प्तमी �ंवत 1723 विवक्रमी को श्री गुरु तेग �हादर जी के घर माता गुजरी जी की पविवत्र कोख के प�न ेशहर में हुआ|

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मुर विपत पूर� कीयसि� पयाना || भावंित भावंित के तीरसि8 नाना || ज� ही जात वित्र�ेणी भए || पुन दान विनन करत वि�तए ||

तही प्रका� हमारा भयो || प�ना �हर विवख ेभव लयो ||

(दशम-ग्रं8: वि�सिचत्र ना�क ७ वां अध्याय)

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माता नानकी जी न ेअपन ेपौत्र के जन्म की ख�र देने के सिलए एक विवशेष आदमी को सिचट्ठी देकर अपन े�ुपुत्र श्री गुरु तेग �हादर जी के पा� धु�री शहर भेजा| गुरु जी ने सिचट्ठी पड़कर ज� राजा राम सि�ंह को खुशी भरी ख�र �ुनाई त� राजा ने अपने फौजी �ाजे �जवाए| तोपों की �लामी दी त8ा गरी�ों को दान टिदया| सिचट्ठी लेकर आने वाले सि�ख को गुरु जी ने �हुत धन टिदया उ�का लोक परलोक �ंवार टिदया|

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इ�के पश्चात गुरु जी ने माता जी को सिचट्ठी सिलखी विक माता जी! इ� �मय हम कामरूप के पा� धु�री शहर ठहरे हुए हैं| राजा राम सि�ंह का काम �ंवार कर जल्दी वाप� आप के पा� प�ने आ जाएगे| गुरु नानक �ाविह� आपके अंग-�ंग हैं| आपने सिचंता नहीं करनी| �ाविह�जादे का नाम "गोबि�ंद राय" रखना| यह आशीष और धैयM पूणM सिचट्ठी पड़कर माताजी और परिरवार के अन्य �दस्य �हुत खुश हुए|

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जो कोई भी भिभखारी और प्रेमी माता जी को �धाई देने घर आता माता जी उ�को धन, वस्त्र और मिमठाई आटिद �े प्र�न्न करके घर �े भेजते| माता जी ने �ाविह�जादे के �ोने व खेलने के सिलए एक �ुन्दर पंघूड़ा �नवाया जिज�मे �ाविह�जादे को ले�ाकर माता जी लोरिरयाँ देती व पंघूड़ा विहलाकर मन ही मन खुश होती| आपके हा8ों के कडे़, पाँव के कड़े और कमर की तड़ागी के घंुघरू खनखनाते रहते| माता नानकी जी �ालक गोबि�ंद राय को स्नान कराकर �ुंदर गहने व कपडे़ पहनाते|

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प�ने �े आनंदपुर �ाविह� �ुलाकर श्री गुरु तेग �हादर जी ने अपन े�ुपुत्र श्री गोबि�ंद राय जी को घुड़ �वारी, तीर कमान, �न्दूक चलानी आटिद कई प्रकार की सिशक्षा सि�खलाई का प्र�ंध विकया| �च्चो के �ा8 �ाहर खेलते �मय मामा कृपाल जी को आपकी विनगरानी के सिलए विनयत कर टिदया| इ� प्रकार श्री गुरु तेग �हादर जी के विकए हुए प्र�ंध के अन�ुार आप सिशक्षा लेते रहे|

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दशमेश जी इ� प्र8ाए अपनी आत्म क8ा �सिचत्र ना�क में सिलखते हैं –

मद्र दे� हम को ले आए || भांवित भावंित दाईयन दुलराऐ ||

कीनी अविनक भांवित तन रछा || दीनी भावंित भावंित की सि�छा ||

(दशम गं्र8 वि�सिचत्र ना�क, ७ वा अध्याय)

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प्राग राज के विनवा� �मय श्री गोबि�ंद राय जी के जन्म �े पहले एक टिदन माता नानकी जी ने स्वाभाविवक श्री गुरु तेग �हादर जी को कहा विक �े�ा! आप जी के विपता न ेएक �ार मुझे वचन टिदया 8ा विक तेरे घर तलवार का धनी �ड़ा प्रतापी शूरवीर पोत्र इश्वर का अवतार होगा| मैं उनके वचनों को याद करके प्रतीक्षा कर रही हँू विक आपके पुत्र का मँुह मैं क� देखूँगी| �े�ा जी! मेरी यह मुराद पूरी करो, जिज��े मुझे �ुख विक प्राप्तिप्त हो|

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अपनी माता जी के यह मीठे वचन �ुनकर गुरु जी ने वचन विकया विक माता जी! आप जी का मनोर8 पूरा करना अकाल पुरख के हा8 मैं है| हमें भरो�ा है विक आप के घर तेज प्रतापी ब्रह्मज्ञानी पोत्र देंगे|

गुरु जी के ऐ�े आशावादी वचन �ुनकर माता जी �हुत प्र�न्न हुए| माता जी के मनोर8 को पूरा करने के सिलए गुरु जी विनत्य प्रवित प्रातकाल वित्रवेणी स्नान करके अंतध्याMन हो कर वृवित जोड़ कर �ैठ जाते व पुत्र प्राप्तिप्त के सिलए अकाल पुरुष विक आराधना करत|े

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गुरु जी विक विनत्य आराधना और याचना अकाल पुरख के दर�ार में स्वीकार हो गई| उ�ुन ेहेमकंु� के महा तपस्वी दुष्ट दमन को आप जी के घर माता गुजरी जी के गभM में जन्म लेन ेविक आज्ञा की| जिज�े स्वीकार करके श्री दमन (द�मेश) जी न ेअपनी माता गुजरी जी के गभM में आकर प्रवेश विकया|

श्री द�मेश जी अपनी जीवन क8ा �सिचतर ना�क में सिलखते ह ै-

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|| चौपई ||

मुर विपत पूर� कीयसि� पयाना || भावंित भावंित के तीरसि8 नाना || ज� ही जात वित्र�ेणी भए || पुन्न दान टिदन करत वि�तए || १ || तही प्रका� हमारा भयो || प�ना �हर वि�खे भव लयो || २ || (दशम ग्रन्थ: वि�सिचत्र ना�क, ७वा अध्याय)

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पहला विाह

�ंवत 1734 की वै�ाखी के �मय ज� देश विवदेश �े �तगुरु के दशMन करन ेके सिलए �ंगत आई और लाहौर की �ंगत में एक �ुभीखी क्षत्री जिज�का नाम हरज� 8ा उन्होंने अपनी लड़की जीतो का रिरश्ता श्री (गुरु) गोबि�ंद राय जी के �ा8 कर टिदया| विववाह की मयाMदा को 23 आषाढ़ �ंवत 1734 को पूणM विकया| आज कल यह स्थान "गुरु का लाहौर" नाम �े प्रसि�द्ध है|

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साविहबजादे

चेत्र �ुदी �प्तमी मंगलवार �ंवत 1747 को �ाविह�जादे श्री जुझार सि�ंह जी का जन्म हुआ|

माघ महीने के विपछले पक्ष में रविववार �ंवत ्1753 को �ाविह�जादे श्री जोरावर सि�ंह जी का जन्म हुआ|

�ुधवार फाल्गुन महीने �ंवत् 1755 को �ाविह�जादे श्री फतह सि�ंह जी का जन्म हुआ|

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दूसरा विाह

�ंवत 1741 की वै�ाखी के �मय ज� देश विवदेश �े �तगुरु के दशMन करन ेके सिलए �ंगत आई और लाहौर की �ंगत में एक कुमरा क्षत्री जिज�का नाम दुनीचंद 8ा उन्होंने अपनी लड़की �ुन्दरी का विववाह �ात �ै�ाख श्री (गुरु) गोबि�ंद राय जी के �ा8 कर टिदया|

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साविहबजादे

23 माघ �ंवत 1743 को �ाविह�जादे श्री अजीत सि�ंह जी का जन्म पाऊँ�ा �ाविह� में हुआ|

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