shri guru gobind singh sahib ji sakhi - 103a
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श्री गुरु गोबिंद सि ंह जी ने वचन कि�या कि� ह ेसि क्खो! जिज �ा जीवन धर्म� �े सि�ए है और अपना आचरण गुर-र्मया�दा �े अनु ार रखता है, वही पूरण सि क्ख है|
गुरु जी आगे �हन े�ग ेकि� सि क्ख अपनी �र्माई र्में े गुरु �े किनमिर्मत दशवंध दे|सि क्खी �ी रहत र्में रहे, स्नान और ध्यान स्र्मरण र्में �ग �र र्मय व्यतीत �रे| परायी स्त्री व पराये धन �ा त्याग �रे| गुरुाणी �ा पाठ �रे, गुरु पर किवश्वा रखे|
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सि�क्ख के धारण योग्य बातें:
१. सि क्ख भ्रर्म न �रे|
२. म्न्धी �े र्मरने पर रोना पीटना न �रे|
३. नीच चंडा� �ो और वैश्या स्त्री �ो �ज� न दे| खोटे पुरुष �े ाथ �भी प्रीकित ना �रे|
४. वाकिहगुरू �ी ओर े किवर्मुख हो�र आंहे न भरे|
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५. गुरूद्वारे जात े र्मय नाख्नों त� ारे पैर धो�र अंदर जाए|
६. रोटी खान े�े ाद पेट ना जाये|
७. च�ते-च�ते खाना व टट्टी पेशा न �रे|
८. अन्न खा �र उ �ी बिनंदा ना �रे|
९. दच�ण पुरुष व स्त्री े प्रीकित न �रे|
१०. धर्म� पुस्त�ों �ो पढ�र व ुन �र अपना अंह�ार दूर �रे|
११. जीवन �ी जुर्मेवारिरयो �ो धयै� े किनभाए|
१२. खोटा हठ, खोटा भोजन र्में अपना डप्पन न �रे|
१३. खाता-पीता र्मन �ो प्रभू �ी याद र्में �गाये|
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जो सि क्ख अपने व्यवहार तथा खाने-पीने �ो शुद्ध रखता है, उ �ा घर धन े भरपूर रहता है|
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