shirdi shri sai baba ji - real story 015

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Page 1: Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 015
Page 2: Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 015

दादू की आँखों के आगे अपनी माँ, बहन और बीमार पत्नी के मुरझाये चेहरे घूम रहे थे|

दादू ने जैसे ही घर के आंगन में कदम रखा, उस ेपत्नी की उखड़ती हुई सांसों के साथ खांसने की आवाज कानों में सुनाई पड़ी| वह लपककर कोठरी में पहुंचा, जहां पिपछल ेकई महीनों से उसकी पत्नी चारपाई पर पड़ी हुई थी|"क्या बात है सीता ?" दादू ने पूछा|

सीता का शरीर टी.बी. की बीमारी के कारण बहुत जज3र हो गया था| शरीर के नाम पर केवल वह मात्र हपि5ड्यों का ढांचा शेष रह गयी थी, उसकी हालत दिदन-प्रपितदिदन पिगरती चली जा रही थी|

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दादू को घर आया देख उसकी अपंग बहन वहां आ गयी और बोली - "तुम कहां चले गये थे भैया ? भाभी की हालत पहले से ज्यादा खराब हो रही है| पहल ेजोरों की खांसी आती है और पि=र खांसत-ेखांसते खून भी =ें कने लगती हैं|

जल्दी से जाकर वैद्य जी को बुला लाओ|" उसके स्वर में घबराहट स्पष्ट नजर आ रही थी|

दादू ने घूमकर अपनी पत्नी की ओर देखा तो सीता दोनों हाथों से अपना सीना पकड़े बुरी तरह से हां=-सी थी| शायद बलगम उसके गल ेमें अटककर रह गया था, जिजसकी वजह से उस ेसांस लेन ेमें परेशानी हो रही थी| दादू ने उसे अपने हाथों से सहारा दिदया और पि=र उसकी पीठ मसलने लगा|

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"जा बेटा, जा जल्दी से वैद्य जी को बुला ला, आज बहू की हालत कुछ ठीक नहीं है|" दादू की अंधी माँ ने रंुधे गल ेसे कहा - "मुझे दिदखाई तो नहीं देता, लपेिकन बहू की सांस से ही मैं समझ गयी हूं| जा वैद्य जी को ले आ|“

दादू को पता था पिक पंपि5तजी बहुत ही जिजद्दी आदमी हैं| वह पिकसी भी कीमत पर नहीं आन ेवाले| वह कुछ देर तक खड़ा हुआ मन-ही-मन सोचता रहा, पि=र बहुत तेज चाल के साथ घर से पिनकला और द्वारिरकामाई मस्जिस्जद की ओर दौड़ता चला गया|

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वह बहुत बुरी तरह से घबराया हुआ था| अब उस ेसाईं बाबा के अपितरिरक्त कोई सहारा दिदखाई नहीं दे रहा था| वह द्वारिरकामाई मस्जिस्जद पहुंचा तो वहां साईं बाबा के पास कई लोग बैठे हुए थे|

"साईं बाबा...!" अचानक दादू की घबरायी हुई आवाज सुनकर सब लोग चौंक पडे़| उन्होंने पलटकर दादू की ओर देखा| उसके चेहरे पर दुपिनया भर की घबराहट और पीड़ा के भाव स्पष्ट रूप से दिदखाई दे रहे थे| आँखों से बराबर आँसू बह रहे थे|

"क्या बात है दादू ! तुम इतनी बुरी तरह से क्यों घबराये हुए हो ?" साईं बाबा ने उसे अपने पास आन ेका इशारा करते हुए कहा|

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दादू उनके पास पहुंचकर, पि=र उसने रोते हुए साईं बाबा को पंपि5तजी की सारी बातें बता दीं|

साईं बाबा मुस्करा उठे और बोले - "अरे, इतनी-सी बात से तुम इतनी बुरी तरह से घबरा गए| तुम्हें तो पंपि5तजी का अहसानमंद होना चापिहए| उन्होंने तुम्हें सही सलाह दी है|" -और खिखलखिखलाकर हँसने लगे|

सब लोग चुपचाप बैठे दादू की बातें सुन रहे थे| बाबा ने अपनी धूनी में से एक-एक करके तीन चुटकी भभूपित पिनकालकर उसे दी और बोले - "इस भभूती को ले जाओ और जिजस-जिजस तरह बताया है, उसी तरह प्रयोग करो| तुम्हारी सारी चिचंताए ंऔर कष्ट दूर हो जायेंगे|"

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साईं बाबा ने यह सारी बातें बडे़ ही सहज भाव से कहीं| सब लोग आश्चय3 से उनकी ओर देख रहे थे|

दादू ने खड़े होकर साईं बाबा के चरण स्पश3 पिकए और पि=र मस्जिस्जद की सीदिढयों से उतरकर तेजी से अपने घर की ओर चल दिदया|

पंपि5तजी ने साईं बाबा के पिवषय में जो कुछ कहा था, उसे सुनकर वहां बैठे सभी लोग बड़ी हैरानी के साथ साईं बाबा को देख रहे थे| जिजस दिदन से साईं बाबा इस गांव में आए हैं, पंपि5तजी जैसे रात-दिदन हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गये थे|

उन्हें तो जैसे साईं बाबा के पिवरुद्ध जहर उगलने के अलावा और कोई काम ही नहीं था| साईं बाबा को पंपि5तजी की इन बातों से जैसे कोई मतलब ही नहीं था| वह पि=र से ईश्वर सम्बंधी चचा3 करने लगे|

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द्वारिरकामाई मस्जिस्जद अब साईं बाबा का स्थायी 5ेरा बन गयी थी| मस्जिस्जद के एक कोने में साईं बाबा ने अपनी धूनी रमा ली थी| जमीन ही उनका पिबस्तर थी| साईं बाबा को अपने खाने-पीने की कोई पि=क्र न थी| जो कुछ भी उन्हें मिमल जाता था, खा लेते थे| दो-चार घर से बाबा भिभक्षा मांग लिलया करते थे, वह उनके लिलए बहुत रहती थी|

दादू भभूती लेकर तेजी के साथ अपने घर आया|

उसे बहुत ज्यादा चिचंता सता रही थी, पर साईं बाबा की बात पर उसे पूरा पिवश्वास था| उसने वैसा ही करने का पिनण3य पिकया, जैसा पिक उसे साईं बाबा ने बताया था| मन-ही-मन उस ेबड़ी तसल्ली मिमल रही थी| उसे पूरा पिवश्वास था पिक उसके सभी संकट दूर हो जायेंगे|

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घर पहुंचने पर उसने सबसे पहले अपनी अंधी मा ँकी आँखों में भभूपित सुरमे की भांपित लगा दी और थोड़ी-सी भभूपित अपनी अपापिहज बहन को देकर कहा - "यह साईं बाबा की भभूपित है, इसे ठीक से अपने हाथ-पैरों पर मल ले|“

पि=र उसने बेहोश पड़ी अपनी पत्नी का मुंह खोलकर थोड़ी-सी भभूपित उसके मुंह में 5ाल दी| बाकी भभूपित एक कपड़े में बांधकर पूजाघर में रख दी| पि=र अपनी पत्नी के लिसरहाने बैठ गया|

थोड़ी देर बाद उसने महसूस पिकया पिक सीता की उखड़ी हुई सांसें अब ठीक होती जा रही हैं| अब उसके गले में घरघराहट भी नहीं हो रही हैं| चेहरे का तनाव और पीड़ा भी अब पहले की अपेक्षा का=ी कम हो गयी है|

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थोड़ी देर बाद सहसा सीता ने आँखें खोल दीं और पिबना पिकसी सह्रारे के उठकर बैठ गई|

"अब कैसी तपिबयत है सीता?" - दादू ने अपनी पत्नी से पूछा|

"जी मिमचला रहा है शायद उल्टी आयेगी|" सीता ने कहा|

"ठहरो ! मैं कोई बत3न तुम्हारी चारपाई के पास रख देता हूं, उसी में उल्टी कर लेना| पिबस्तर से उठो मत|" दादू ने कहा और पि=र उठकर बाहर चला गया|

सीता को पिनरंतर पिहचपिकयां आ रही थीं| उसने अपने आपको रोकन ेकी बहुत कोलिशश की, लपेिकन रोक नहीं पाई|

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वह तेजी से पिबस्तर से उठने लगी|

"यह क्या कर रही हो भाभी, तुम मत उठो| पिबस्तर पर लेटी रहो| चारपाई के नीचे उल्टी कर दो| मैं सब सा= कर दंूगी|" सीता की अपापिहज ननंद सापिवत्री ने कहा|

"नहीं...नहीं भाभी नहीं| तुम उठने की कोलिशश मत करो|" उसकी अपापिहज ननंद धीरे-धीरे उसकी चारपाई की ओर बढ़न े लगी|

सीता नहीं मानी और आखिखर पिहम्मत करके पिबस्तर से उठकर खड़ी तो हो गई, लपेिकन उठते ही उसे जोर से चक्कर आया| उसने घबराकर दीवार को पकड़ने की कोलिशश की, लपेिकन दीवार उसकी पहुंच से बहुत दूर थी| वह दीवार का सहारा नहीं ल ेपायी और धड़ाम से नीचे पिगर पड़ी|

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"भाभी...!" सापिवत्री के मुंह से एक तेज चीख पिनकली और उसने तेजी से लपककर सीता को अपनी बांहों में भर लिलया और पि=र दोनों हाथों से उठाकर पिबस्तर पर लिलटा दिदया|

और पि=र जैसे ही उसने सीता को पिबस्तर पर लिलटाया, एक आश्चय3भरी चीख उसके होठों से पिनकल पड़ी|

"क्या हुआ बेटी?" अचानक अंधी माँ ने सीता के पिबस्तर की ओर बढ़ते हुए पूछा और पि=र झुककर बेहोश सीता के चेहरे पर पिबखर आये बालों को बडे़ प्यार हटाते हुए पीड़ा और दद3भरे स्वर में बोली - "हाय! पिकतनी कमजोर हो गयी है|

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चेहरा भी पिकतना पीला पड़ गया है| ऐसा लगता है पिक जैसे पिकसी के चेहरे पर हल्दी पोत दी हो|“

"मा.ँ..!" आश्चय3 और हष3-मिमभिjत चीख एक बार पि=र सापिवत्री के मुंह से पिनकल पड़ी| उसने अपनी मा ँके दोनों कंधे पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमा लिलया और पि=र बडे़ ध्यान से अपनी मा ँके चेहरे की ओर देखन ेलगी| मारे आश्चय3 के उसकी आँखे =टी जा रही थीं|

"इस तरह पागलों की तरह क्या आँखें =ाड़-=ाड़ देख रही है तू मुझे? बात क्या क्या है?" सापिवत्री की माँ ने उसकी =टी-=टी आँखें और चेहरे पर छाये दुपिनया बाहर के आश्चय3 को देखते हुए पूछा|

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"मा.ँ..क्या तुम्हें सच में भाभी का पीला-पीला चेहरा दिदखाई दे रहा है?" सापिवत्री ने जल्दी से पूछा|

"सब कुछ दिदखाई दे रहा है| यह तू क्या कह रही है बेटी?" माँ ने कहा|

और पि=र एकदम से चौंक पड़ी और बोली - "अरे हां, यह क्या हो गया, अरे यह तो चमत्कार है चमत्कार?" वह प्रसन्नता-मिमभिjत स्वर में बोली - "मुझे तो सब कुछ सा=-सा= दिदखाई दे रहा है| मैं तो अंधी थी|" पि=र जोर से पुकारा - "दादू ओ दादू, जल्दी से आ रे, देख तो मेरी आँखें ठीक हो गईं| अब मैं सब देख सकती हूं, मैं सब कुछ देख रही हूं रे|"

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माँ की आवाज सुनकर दादू तेजी से दौड़ता हुआ अंदर आया और मारे आश्चय3 के जैसे वह पत्थर की मूर्तितं बन गया|

बहन जो अभी तक हाथ-पैरों से अपापिहज थी, मा ँके कंधों पर हाथ रखे सीता की चारपाई के पास खड़ी थी| अंधी माँ अपनी आँखों के सामने अपना हाथ =ैलाए अपनी अंगुलिलयां पिगन रही थी|

"बोलो साईं बाबा की जय...|" दादू के होठों से बरबस पिनकल पड़ा|

पि=र वह पागलों की भांपित दौड़ता हुआ घर से पिनकल गया| वह गांव की पग5ंपि5यों पर 'साईं बाबा पिक जय' बोलते हुए पागलों की तरह भागा चला जा रहा था-भागा जा रहा था| उसका रुख द्वारिरकामाई मस्जिस्जद की ओर था|

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"क्या हुआ दादू?" कुछ व्यलिक्तयों ने उसे रोककर पूछा|

"मेरे घर जाकर देखो|" दादू ने उनसे कहा और पि=र दौड़ने लगा| दौड़ते-दौड़ते बोलते चला गया - "चमत्कार हो गया! चमत्कार हो गया! बोलो साईं बाबा की जय|“

यह कहकर वह दौड़ता चला गया|

दादू की हालत देखकर एक व्यलिक्त ने कहा-"ऐसा लगता है, दादू की पत्नी चल बसी है और उसी की मौत के गम में यह पागल हो गया है|"

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तभी अपन ेघर से बाहर चबूतरे पर बैठे पंपि5तजी ने दादू की हालत देखकर कहा - "घरवाली तो चली गयी, अब अपापिहज बहन और अंधी मा ँभी जल्दी ही चल बसेंगी और पि=र दादू भी| देख लेना एक दिदन गांव के इन सभी जवान छोकरों का भी यही हाल होने वाला है, जो रात-दिदन उस ढोंगी के पास बैठे रहते हैं|“

पि=र पंपि5तजी की नजर उन लोगों पर पड़ी जो इकट्ठा होकर दादू के घर की तर= जा रहे थे|

दादू की बात का सारे गांव में शोर मच गया था| साईं बाबा की भभूपित से दादू की माँ की आँखों में रोशनी आ गयी| अपापिहज बहन ठीक हो गई| टी.बी. की रोगी उसकी पत्नी स्वस्थ हो गयी|

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गांव भर में यह बात =ैल गई|दादू के घर के सामने लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी| साईं बाबा का चमत्कार देखकर सब हैरान रह गये थे| दादू रह-रहकर साईं बाबा की जय-जयकार के नारे-जोर-जोर से लगा रहा था| लोग उसकी पत्नी, माँ और बहन को देखकर आश्चय3चपिकत रह जाते थे|

गांव का प्रत्येक व्यलिक्त साईं बाबा के प्रपित jद्धा से नतमस्तक हो उठा| साईं बाबा वास्तव में एक चमत्कारी पुरुष हैं| सबको अब पूरी तरह से इस बात का पिवश्वास हो गया| गांव से साईं बाबा की प्रपितष्ठा और भी ज्यादा बढ़ गयी|

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पंपि5तजी इस घटना से बुरी तरह से बौखला गये| वह साईं बाबा के बारे में बहुत अनाप-शनाप बकने लगे| गांववालों ने पंपि5तजी को पागल मानना शुरू का दिदया| कोई भी व्यलिक्त उनकी बात सुनने के लिलए तैयार न था| पंपि5तजी का पिवरोध करना कोई मायने नहीं रखता था|