shirdi shri sai baba ji - real story 024

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Page 1: Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 024
Page 2: Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 024

सुबह-सुबह इंस्पेक्टर गोपालराव अपने दरवाजे पर खड़े थे कि� गांव �ा ए� मेहतर अपनी पत्नी �े साथ उन�े घर �े आगे से किन�ला| जैसे ही उन दोनों �ी दृष्टि) उन पर पड़ी, मेहतरानी अपने पकित से बोली - "घर से किन�लते ही कि�स किनपूते �ा मुंह देखा है| पता नहीं हम सही से पहुंच भी पायेंगे या नहीं ? आज रहने दो, �ल चलेंगे| मुंह अंधेरे ही किन�लेंगे जिजससे किनपूते �ा मुंह न देखना पडे़|“

इंसे्पक्टर गोपालराव �े दिदल �ो मेहतरानी �े ये शब्द तीर �ी भांकित अंदर त� चीरते चले गये| उन्होंन ेसंतान �ी इच्छा से चार किववाह कि�ए थे| लकेि�न ए� भी संतान नहीं हुई थी| उन्होंने सोचा था कि� शायद �ोई �मी है| उन्होंने डॉक्टरों, वैद्यों, ह�ीमों आदिद से इलाज आदिद �राया| सब �ुछ ठी� था, पर संतान नहीं हो रही थी|

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इस घटना ने इंस्पेक्टर गोपालराव �ो बुरी तरह से झि@ं@ोड़ �र रख दिदया था| क्या नहीं था उन�े पास-प्रकितष्ठा, जमीन-जायदाद, सर�ारी पद, धन सभी �ुछ तो था| नौ�री �े सिसलसिसल ेमें जहां भी गए थे, पयाFप्त मान-सम्मान और यश प्राप्त हुआ|

इस�े बाद भी संतान न होना बडे़ ही दुःख �ी बात थी|

संतान-प्राप्तिप्त �े सिलये क्या-क्या नहीं कि�या-डॉक्टरों �ी दवाइयां, पंकिडतों �े अनुष्ठान और ओ@ा, गकुिनयों �े गंडे-ताबीज सभी �ुछ बे�ार सिसद्ध हुए थे|

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मेहतरानी �ी बातें सुन�र उन्हें लगा कि� किन:संतान व्यसिP �ा जीवन ही बे�ार होता है| लोग सुबह उठ�र उस�ा मुंह देखना अशुभ और अपश�ुन सम@ते हैं| जब उन्होंने किनश्चय �र सिलया कि� नौ�री छोड़ देंगे| सारी धन-सम्पत्तिU चारों पत्नित्नयों �े नाम �र संन्यास लेंगे| यह किनश्चय �रने �े बाद उन्होंने त्याग-पत्र सिलखा और गहरे सोच-किवचार में डूब गए|

अभी �ुछ ही समय बीता था कि� दरवाजे पर बाहर गाड़ी रु�न े�ी आवाज सुनाई पड़ी| गोपालराव ने चौं��र दरवाजे �ी ओर देखा|

"गोपाल, गोपाल !" दरवाजे पर आवाज आयी और दूसरे ही पल उन�ा ष्टिमत्र �मरे में आ गया|

"हैलो रामू !" गोपालराव उठ�र खड़े हो गए|

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"तुम इतनी सुबह-सुबह �ैसे ?" गोपालराव ने अपने ष्टिमत्र �ा स्वागत �रते हुए �हा|

"टे्रन से अहमदाबाद जा रहा था, लकेि�न जैसे ही टे्रन यहां स्टेशन पर पहुंची, तभी कि�सी ने मेरे �ान में �हा - "रामू, यहीं उतर जा| गोपालराव तुम्हें याद �र रहा है| मैं किबना सोचे-सम@ उतर गया| स्टेशन �े बाहर आया तो मु@े घोड़ा-गाड़ी भी ष्टिमल गई और सीधा तुम्हारे घर चला आया|“

गोपाल अपने ष्टिमत्र रामू �ी ओर देखने लगा| उस�ी सम@ में �ुछ नहीं आ रहा था, यह सब क्या है ?

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इस प्र�ार ए�ाए� दोस्त �ा आ जाना गोपालराव �े सिलये बहुत आश्चयF �ा किवषय था|

गोपालराव ने रामू �ा स्वागत कि�या| कि^र पूछा - "यह बताओ, घर में सब �ैसे हैं ?“

"हा,ं सब �ुशल हैं| ए�ाए� तुम्हारे पास आन े�ा मन हो गया था|“

"ठी� कि�या, यदिद आज न आते तो शायद कि^र �भी न ष्टिमलना होता|" गोपालराव ने किनराशाभर ेस्वर में �हा|

"क्यों ?" रामू ने आश्चयF से पूछा|

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"क्या बताऊं !" गोपाल ने भराFये हुए स्वर में �हा और कि^र सुबह �ी घटना सुना दी|

"मेरी सम@ में सब �ुछ आ गया| अब जल्दी से तैयार हो जाओ| हम दोनों सिशरडी चलेंगे|“

"दो-चार दिदन यहीं रु�ो, कि^र सिशरडी चलेंगे|" गोपाल ने �हा|

"नहीं| आज ही सिशरडी चलेंगे|" रामू ने जोर देते हुए �हा|

रामू �े बार-बार जोर देने पर गोपालराव चुप रह गया|

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उसने �हा - "तब ठी� है| मैं अभी तैयार हो जाता हूं|“

कि^र वह दोनों सिशरडी �े सिलए रवाना हो गये|

इंसे्पक्टर गोपाल और रामू जब सिशरडी पहुंचे तो दिदन सिछप रहा था| द्वारिर�ामाई मस्जिस्जद में रोशनी �ी तैयारिरयां हो रही थीं| साईं बाबा मस्जिस्जद में चबूतर ेपर बैठे थे| अने� सिशष्य उन�े पास बैठे थे|

तभी गोपाल और रामू ने ए� साथ मस्जिस्जद में �दम रखा|

"आओ गोपाल, आओ रामू ! बहुत देर �र दी तुम लोगों ने| तुम तो सुबह दस बज चले थे शायद|" साईं बाबा ने मुस्�राहट �े साथ दोनों �ा स्वागत कि�या|

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गोपाल और रामू ने दिठठ� �र ए�-दूसरे �ी ओर देखा| कि^र उन्होंने आगे बढ़�र साईं बाबा �े चरणों पर अपना सिसर रख दिदया|

"आज तुम दोनों ने ए� साथ पांव छुए हैं| मस्जिस्जद में भी ए� साथ �दम रखा| मैं चाहता हूं तुम दोनों �ी मन �ी मुरादें भी ए� साथ ही पूरी हों|" साईं बाबा ने दोनों �ो अपने पैरों पर से उठाते हुए �हा|

कि^र बाबा ने पास खड़े हाजी सिसद्दी�ी से �हा - "सिसद्दी�ी आप तो हज �र आए हैं| बुजुगF व्यसिP हैं और तजुबk�ार भी| अब त� लाखों व्यसिP आप�ी नजरों �े सामने से गुजरे होंगे, इंसान �ी आप�ो जबदFस्त पहचान है| क्या आप यह बता स�ते हैं कि� इन दोनों में �ौन किहन्दू है| और �ौन मुसलमान ?"

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हाजी सिसद्दी�ी गोपालराव और रामू �े चेहरों �ो बडे़ ध्यान से देखने लगे और �ुछ देर बाद बोले - "साईं बाबा, आज तो मेरी बूढ़ी और तजुबk�ार आँखें भी मु@े धोखा दे रही हैं| मैं नहीं बता स�ता हूं कि� इन दोनों में से �ौन किहन्दू है और �ौन मुसलमान ? मु@े दोनों ही किहन्दू भी दिदखाई दे रहे हैं और मुसलमान भी|“

"तुम ठी� �हते हो हाजी ! ये दोनों किहन्दू भी हैं और मुसलमान भी| मैं भी यही चाहता हूं कि� इन�ा रूप ऐसे ही बना रहे| ये दोनों किहन्दू भी रहें और मुसलमान भी|" साईं बाबा ने हँसते हुए �हा|

"साईं बाबा ! जिजस दिदन हम दोनों �े मन �ी मुरादें पूरी हो जायेंगी, उस दिदन हम ऐसा �ाम �रेंगे, जो समाज �े सिलए ए� ष्टिमशाल बनेगी|" रामू ने साईं बाबा �े पैर छू�र �हा|

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"हा,ं बाबा ! हम दोनों ष्टिमत्र ष्टिमल�र जिजस तरह से ए� बन गए हैं, और उसी तरह किहन्दू और मुसलमान भी धमF �े भेद ष्टिमटा दें|" गोपाल ने �हा|

रामू �ा वास्तकिव� नाम अहमद अली था, पर उसने जानबू@�र अपने �ो रामू �हना, �हलाना शुरू �र दिदया था| उस�ी वेषभूषा देखने में सदा मुसलमान �े समान रहती थी, पूछने पर वह अपना नाम रामू ही बतलाता था|

"मेरी शुभ�ामनाए ंऔर आशीवाFद तुम दोनों �े साथ हैं|"

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साईं बाबा ने उन दोनों �ो आशीवाFद देत ेहुए �हा - "तुम्हारी मनो�ामना शीघ्र ही पूरी होगी|" साईं बाबा ने उन दोनों �ो मन से आशीवाFद दिदया|

ठी� नौ महीने बाद ए� दिदन गोपाल और रामू �े घरों पर ए� साथ शहनाइया ंबज उठीं|

साईं बाबा �े आशीवाFद से दोनों �ी मनो�ामना पूरी हो गई थी|

दोनों �े घर ए� ही दिदन, ए� ही समय बच्चे पैदा हुए थे और दोनों ही लड़�े थे| यह भी संयोग ही था कि� जिजस समय गोपाल ने मस्जिस्जद �ी सीदिढ़यों पर �दम रखा, ठी� उसी समय रामू भी मस्जिस्जद �ी सीदिढ़यों पर सामने से आ रहा था|

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"ठहरो गोपाल !" रामू ने आवाज दी|

गोपाल रु� गया| दौड़�र रामू �े गले सिलपट गया - "रामू, आज मैं बहुत खुश हूं| साईं बाबा �ी �ृपा से आज मेरे माथे �ा �ल�ं ष्टिमट गया| आज त� लोग मेरा मुंह देखना अशुभ सम@त ेथे|“

"और गोपाल, आज सवेरे तुम्हारा ए� छोटा-सा भतीजा आ गया|" रामू ने गोपाल �ो अपनी बांहों में �स�र �हा|

ऐसा लग रहा था, मानो उन�ो दुकिनया �ी सारी खुशी ष्टिमल गयी हो|

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दोनों साईं बाबा �े आशीवाFद से किपता बन गय ेथे|

साईं बाबा ने हम दोनों �ी मुरादें ए� साथ पूरी �र दीं| गोपाल न ेहँसत ेहुए �हा - "अब हम दोनों ए� साथ चल�र बाबा �ो यह खुशखबरी सुनायेंगे|“

दोनों ष्टिमत्रों ने जैसे ही अगला �दम रखा, मस्जिस्जद �ी सीढ़ी पर उन�े मुंह से ए� साथ किन�ला - "साईं बाबा ! और कि^र दोनों न ेसाईं बाबा �े चरण स्पशF कि�ए|“

साईं बाबा ने दोनों �ो आशीवाFद दिदया| कि^र उन�ा हाथ प�ड़�र अपनी धूनी �े पास ले गये|

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गोपाल बोला - "साईं बाबा, हम दोनों यह चाहते हैं कि� आज से सिशरडी में किहन्दू और मुस्लमानों �े जिजतने भी त्यौहार होते हैं, दोनों धमu �े लोग ए� साथ ष्टिमल�र उन त्यौहारों �ो मनाया �रें और इस�ी शुरूआत इसी राम-नवमी से �रना चाहते हैं, क्योंकि� इस दिदन किहन्दुओं �े भगवान राम �ा जन्मदिदन है और मुसलमानों �े पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब �ा भी जन्मदिदन है| किहन्दू-मुस्जिस्लम ए�ता �ो बढ़ाने �े सिलए इस परम्परा �े सिलए इससे शुभ दिदन और �ोई नहीं हो स�ता|“

"गोपाल �ी बात �ा मैं भी समथFन �रता हूं|" नई मस्जिस्जद �े इमाम साहब जल्दी से बोले - "मैं सिशरडी �े मुसलमानों �ी ओर से आप सबसे वायदा �रता हूं कि� किहन्दुओं �े जिजतने भी त्यौहार हैं हम लोग भी उन त्यौहारों �ा भी मनाया �रेंगे|"

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"ठी� है|" साईं बाबा मुस्�राये और बोले - "मेरे सिलये यह सबसे बड़ी खुशी �ी बात है| दोनों धमF वालों �े बीच भाईचारा स्थाकिपत �रना ही मेरा उदे्दश्य है, तुम लोग तैयारी �रो| �ल भगवान राम और हजरत साहब �ा जन्मदिदन ए� साथ मनाया जायेगा|“

यह सुन�र मस्जिस्जद में उपस्जिस्थत सभी लोग खुशी से ^ूले न समाए| सब�े सिलए यह प्रसन्नता �े साथ-साथ ए�ता बढ़ाने �ी भी महत्वपूणF बात थी|